ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

ब्रिटिश काल में कृषि भूमि पर दबाव एवं उसका विभाजन व हस्तांतरण

ब्रिटिश काल में कृषि भूमि पर दबाव एवं उसका विभाजन व हस्तांतरण

डाॅ0 राजेश गर्ग,
एसोसिएट प्रोफेसर (इतिहास विभाग)
डी0ए0वी0 (पी0जी0) काॅलिज, बुलन्दशहर

सारांष

प्राक् ब्रिटिश व्यवस्था में ’’पहले ग्राम समुदाय द्वारा प्रदत्त भूमि पर परिवार के प्रत्येक सदस्य का संयुक्त अधिका होता था किन्तु अब निजी भूस्वामित्व के अधिकार और इसके हस्तांतरण कर सकने के कारण संयुक्त परिवार में विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्तियों का प्रादुर्भाव हुआ। इसके कारण भूमि के संयुक्त अधिकारों का इसके विभिन्न दावेदारों के मध्य बंटवारा होने लगा। इससे भूमि का अधिकाधिक उपविभाजन हुआ।1 वहीं बटाईदारी प्रथा के कारण भू-विभाजन की प्रक्रिया तीव्र हुई। इसके कारण कृषि जोत और अधिक छोटी होने लगी। लेकिन भूमि के विखण्डनीकरण की प्रक्रिया तब और अधिक तीव्र हुई जब हस्तशिल्प व कुटीर उद्योग समाप्ति के कगार पर पहुँच गए जिसके कारण कृषि पर निर्भर लोगों की संख्या में वृद्धि हुई जिससे कृषि पर अत्यधिक दबाव पड़ा। भारतीय ग्रामीण जीवन की ऋण ग्रस्तता एक अनन्य समस्या बन चुकी थी। वस्तु स्थिति यह है कि कृषकों की 80 प्रतिशत संख्या कृषि आय के द्वारा अपना ऋण चुकाने में सर्वथा असमर्थ थी।20
इस सार्वभौमिक ऋणग्रस्तता के कारण बड़े स्तर पर भूमि का हस्तांतरण कृृषक के हाथों से निकल कर गैर कृषक अथवा महाजन व जमींदार के हाथों में हुआ

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