ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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चंपारण सत्याग्रह और गांधी

चंपारण सत्याग्रह और गांधी

डा0 मोहित मलिक(असिस्टेन्ट प्रोफेसर राजनीति शास्त्र)

विजय सिंह पथिक

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कैराना (शामली)

एक शताब्दी पहले मोहनदास करमचन्द गांधी ‘राजकुमार शुक्ल’1 के लगातार तकादे पर किसानों की दुर्दशा जानने बिहार के चंपारण गए थे। तब वे दक्षिण अफ्रीका से लौटे ही थे। वहां रंगभेद के खिलाफ राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी लड़ाई में परचम लहराने की उनकी विजयगाथा भारत पहुँची ही थी, कि शुक्ल समेत कुछ जागरूक किसानों को गांधी जी में अपना तारणहार दिखा जो निलहों के तरह-तरह के अत्याचार से त्रस्त थे। चंपारण आकर गांधी जी की दूरदर्शिता ने किसानों की दुर्दशा और उनकी चैतरफा लाचारी में अंग्रेजों को भारत से भगाने की व्यवस्थित शुरूआत की और इसमें शर्तिया कामयाबी को भी भांप लिया था कि देश के 95 फीसद किसान ही आजादी के आन्दोलन के बेहतर संवाहक हो सकते हैं। इसको लेकर उन्हें कोई दुविधा नहीं रही। उस समय के लोगों और बाद में तो पूरे भारत के साथ समुची दुनिया ने भी देखा कि दक्षिण अफ्रीका में अपनाए गए औजारों पर चंपारण में किस तरह सान चढ़ाया गया जिसने न केवल भारत बल्कि दुनिया में कहीं भी आजादी की लडाई में अंहिसा और सत्याग्रह को एक कारगर और कामयाब हथियार बना दिया। चंपारण ने खुद गांधी जी के साथ-साथ समग्र भारत को उसकी नियति से पहला साक्षात्कार करा दिया। दस अप्रैल 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली में आयोजित चंपारण शताब्दी समारोह में बोलते हुए कहा, ’’महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह से ’पंचामृत’ की धारा निकली। यह धारा थी- सत्याग्रह की ताकत और जनशक्ति की शक्ति से अवगत कराना, स्वच्छता व शिक्षा को लेकर जागृति, महिलाओं की स्थिति सुधारने का प्रयास और अपने हाथों से वस्त्र बनाना।’’ उन्होंने आगे कहा कि चंपारण से हमें दो मोहन याद आते है-ं एक चक्रधारी मोहन,  दूसरे चरखाधारी मोहन। चंपारण ने मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बना दिया।’‘2‘‘ पटना में गांधी के विचारों पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय विमर्श के साथ चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने कहा ’‘गांधी जी की लोग बहुत इज्जत करते हैं पर उनके विचरों पर अमल नहीं करते।’’3  गांधी का रास्ता कष्टकारी है। उसमें आपको थोड़े में सन्तोष करना है। कम से कम चीजें, कम से कम झंझट। ज्यादा से ज्यादा त्याग और संतोष। इस रास्ते पर कौन चल सकता है। अच्छे से अच्छे खाने पहनने और रहने की चाहत आसान है। हिंसा करना आसान है। इसलिए हमने आसान चीजों को पकड़ा हुआ है। मधुसूदन आनन्द अपने लेख ‘सादे गांधी, कठिन गांधी‘ में कहते हैं कि   गांधी को पकड़ना वस्तुतः कठिन काम है। सच्चा गांधीवाद वास्तव में माक्र्सवाद, माओवाद और खुले बाजारवाद से अधिक कठिन है। यह खासतौर से ध्यान में रखने की बात है कि गांधी किसी चकत्कारिक पुरूष की तरह पैदा नहीं हुये थे। एक अत्यन्त साधारण मनुष्य अपने आत्मबल को पहचान कर किस ऊँचाई तक पहुँच सकता है, गांधी उसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। उनके व्यक्तित्व का क्रमिक विकास प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है। अनुभव यही बताता है कि केवल व्यक्ति या केवल राज्य व्यवस्था बदलने से समाज का वांछित परिवर्तन संभव नहीं है इसलिए गांधी ने व्यक्ति और व्यवस्था दोनों के साथ-साथ परिवर्तन पर जोर दिया। समाज परिवर्तन में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह एक अचूक नुस्खा है। हमारा देश आज हिंसा-प्रतिहिंसा, सांप्रदायिक, जातीय विद्वेष तथा अर्थिक और सामाजिक असमानता से उपजे हिंसात्मक आंदोलन से जूझ रहा है। इन सबके ऊपर नव साम्राज्यवाद का आर्थिक गुलामी का कसता हुआ शिंकजा। अगर इन समस्याओं से निजात पाना है तो निश्चय ही गांधी जी की स्वदेशी, स्वावलम्बन, अप्ररिग्रह और अंहिसा की भावना पुनः जागृत करना होगा।

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