– मोनिका यादव
रामअवध यादव गन्ना कृषक पी0जी0 कालेज
शाखा शाहगंज जौनपुर।
सामाजिक चेतना में ही साहित्य जीवित रह सकता है, फल-फूल सकता है और अपनी सार्थकता सिद्ध कर सकता है। साहित्य अपने उद्देश्य में तभी सफल होगा, जब वह आम जन की बात करे, उनके प्रति समाज को झकझोरे और उनके हितों का संवर्द्धन करे। साहित्य समाज का वह परिधान है, जो जनसाधारण के सुःख-दुःख, हर्ष-विवाद, आकर्षण-विकर्षण के ताने-बाने से बुना जाता है। इसमें विशााल मानव जाति की आवाज सुनाई देती है।सामाजिक चेतना में ही साहित्य जीवित रह सकता है, फल-फूल सकता है और अपनी सार्थकता सिद्ध कर सकता है। साहित्य अपने उद्देश्य में तभी सफल होगा, जब वह आम जन की बात करे, उनके प्रति समाज को झकझोरे और उनके हितों का संवर्द्धन करे। साहित्य समाज का वह परिधान है, जो जनसाधारण के सुःख-दुःख, हर्ष-विवाद, आकर्षण-विकर्षण के ताने-बाने से बुना जाता है। इसमें विशााल मानव जाति की आवाज सुनाई देती है। साहित्य समाज का दर्पण है वास्तव में आज का साहित्य इस वाक्य को पूर्णरूपेण सार्थक कर रहा है। उदय प्रकाश कृत मोहनदास’ कहानी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। 2005 में हंस में और 2006 में पुस्तकार रूप में प्रकाशित ‘मोहनदास’ शक्तियों और सीमाओं का एक ऐसा योग है जिससे काफी कुछ सीखा जा सकता है। जिसका कथानक देश में लम्बित पड़े तीन करोड़ अस्सी लाख मुकदमों में से एक मुकदमें पर आधारित है। मोहनदास’ उदय प्रकाश की महाकाव्यात्मक कहानी है यह कहानी भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था, दोषपूर्ण, न्यायप्रणाली, औद्योगिक के प्रभाव से कुटीर उद्योगांे का विनाश, सम्पूर्ण देश का भरण-पोषण करने वाले किसानों की दुर्दशा-दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली, राष्ट्रशक्ति के प्रतीक शिक्षित युवाओं का अंधकारमय जीवन, पंचायती राज्य की तानाशाही भारतीय समाज में स्त्रियों की दीनहीन दुर्बल दशा, स्वयं सेवी संस्थाओं का अपना उल्लू सीधा करने की प्रवृत्ति आदि पर गहन विचार किया गया है। इस रचना में जीवन और समाज के सारे रंग दृष्टिगोचर होते हैं।कहानी का नायक मोहनदास भ्रष्ट व्यवस्था में अस्तित्व की रक्षा की लड़ाई लड़ता हुआ न्याय की अपेक्षा करता है- ‘मनुष्य के भीतर एक चीज ऐसी है जो कभी-भी, किसी भी युग में किसी भी तरह की सत्ता द्वारा नहीं मिटाई जा सकती है और वह है न्याय की आकांक्षा।’’1 मोहनदास’’ कहानी मूलतः गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित है। रचनाकार ने केवल महात्मागांधी से सम्बन्ध सिद्धान्तों का पालन करवाया है। कुछ आलोचक कहानी को गांधीवादी विचारधारा पर व्यंग्यात्मक रूप में बताते है, उदय प्रकाश की यह कहानी एक लम्बे सत्याग्रह की कहानी है। जिसका नायक गांधीवादी सिद्धान्तों पर चलता हुआ भले ही पराजित होता है, परन्तु वह अन्दर ऐसी टीस छोड़ जाता है कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। रचनाकार का मानना है कि अहिंसा की नींव पर ही व्यवस्था में परिवर्तन हो सकता है। मोहनदास कहानी पर विचार व्यक्त करते हुए गिरीश पटेल जी कहते है- ‘‘उदय प्रकाश की लम्बी कहानी ‘मोहनदास’ में जीवन की यथार्थ की स्पष्ट झलक मिलती है। इस रचना में जीवन और साहित्य के सारे रंग दृष्टिगोचर होते है यह कहानी न केवल लेखक के गहरे अध्ययन को दर्शाती है बल्कि सामाजिक परिवेश और वर्तमान काल की विसंगतियों को भी दर्शाती है।’’2 भारतीय समाज में दलितों के जीवन की एक अलग कहानी है। अभाव और उपेक्षा उनके जीवन के ही अंग बन गए। ‘मोहनदास’ नामक लम्बी कहानी में उदय प्रकाश ने हाशिए के दलितों के स्वत्व हनन और आरक्षित जीवन की त्रासदी चित्रित किया है। मोहनदास ऊँची श्रेणी में उच्च शिक्षा प्राप्त निम्न श्रेणी का गरीब व्यक्ति है। अथक परिश्रम और तपस्या के बाद उसे नौकरी तो मिलती पर नियुक्ति नहीं हुई। उसे पता चला कि उसकी जगह उसके नाम और पते पर एक पंूजीपति का बदमाश बेटा बिसनाथ काम कर रहा है। असली मोहनदास के प्रमाणपत्र सहित सर्वस्व छीनकर ऊँची जाति का विसनाथ नकली मोहनदास बनकर उसका स्वत्व एवं नौकरी छीन लेता है। अपने को असली मोहनदास सिद्ध करने का वह कठिन प्रयत्न करता है लेकिन उसके खिलाफ नौकरशाही, राजनीति एवं गुण्डागर्दी का सम्बन्ध षडयंत्र था। इसका वर्णन उदय प्रकाश ने इस प्रकार किया है- ‘‘अपने लैट में उसने श्रीवास्तव जी का जम कर सत्कार किया। अपनी पत्नी अमिता को उसने लो कट ब्लाउज और नीली साड़ी में, शर्बत का ट्रे लेकर ड्राइंगरूम में आने का निर्देश दे रखा था। लेकिन नगर मार्केट में हाल ही में खुले शिल्पा ब्यूटी पार्लर में जाकर अमिता ने अपना फेशियल कराया था। शर्बत के ट्रे मेज पर रखते हुए मुस्कुराकर जब श्रीवास्तव जी से नमस्ते की और कहा-‘‘सरिता दीदी को साथ में नहीं लाये सर’’ तो अचानक वहाँ वातावरण आत्मीय, घरेलू और ऐंद्रिक हो गया। इंक्वायरी आॅफिसर की नजर बार-बार अमिता की खुली नाभि पर अटक जाती थी।’’3 इनके सामने वह अपनी असलियत स्थापित न कर सका। उसका भूखा परिवार आतंक और गरीबी में तितर-बितर हो जाता है। हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि गांव के पटवारी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक बिकने के लिए ‘सत्यमेव जयते’ की कुर्सी पर बैठे हैं। बस आपके पास उन्हें खरीदने के लिए पूंजी होनी चाहिए। मोहनदास को इंसाफ पाने की लड़ाई पर विचार व्यक्त को इंसाफ पाने की लड़ाई पर विचार व्यक्त करते हुए गिरिश पटेल कहते है- ‘‘एक कर्तव्यनिष्ठ वकील के सारे प्रयासों और केस से सम्बन्धित जज की सद्भावनाओं के बावजूद वर्तमान स्थिति सुखों को प्राप्त कर लेने की अन्धी दौड़, वर्ग और जाति विभेद आर्थिक पृष्ठभूमि और सामाजिक विषमताओं के चलते मोहनदास न्याय को नहीं मानस, पर वारदात होने पर नकली मोहनदास की जगह असली मोहनदास को गिरत में लेता है कानून व्यवस्था के खोखलेपन को उजागर किया है।’’4 उदय प्रकाश मोहनदास कहानी के माध्यम से भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था में संघर्षरत शिक्षित युवाओं की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करते है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली बाहरी ताकतों को बढ़ावा दे रही है। हमारे देश की सबसे बड़ी विडम्बना भ्रष्टाचार है। इस भ्रष्टाचार ने गरीब लोगो के हाथ पैर काट दिए है। गरीब व्यक्ति न्याय की उम्मीद भी नहीं कर सकता। इस भ्रष्ट समाज में न्याय मिलता नहीं खरीदा जाता है। न्यायालयों में न्याय उसी के पक्ष में होता है। जिसके पास पैसा होता है। विचारी गरीबी पेट तो भरने नहीं देती। न्याय क्या दिलाएगी। मोहनदास अपनी गरीबी और बेरोजगारी से लाचार है। मोहनदास न्याय के लिए तरसता रहता है। इस कहानी में भ्रष्ट न्याय व्यवस्था जातिवाद और सामाजिक विकृतियों का चित्रण किया गया है। मोहन एक डरे हुए व्यक्ति की कहानी है। असल में आज के हर आम इंसान की कहानी है एक साधारण परिवार के एक प्रतिभावान व्यक्ति की कहानी जो समाज की क्रूरता का शिकार है। उसका परिवार मेहनती होते हुए भी गरीब है। ईमानदार होते हुए भी मोहनदास वोकरे खाता है। असल में यह समकालीन सामाज की क्रूर सच्चाई है। सत्ताधारियों का भ्रष्टाचार आज किसी से छिपा नहीं है। यह कहानी हमारे समय और समाज का आईना है यह वह व्यक्ति है जो हमारे पास है शायद कहीं हम खुद ही मोहनदास है। ‘‘मोहनदास’’ कहानी में डरे हुये व्यक्ति का ‘‘डर का रंग कैसा होता है? धूसर, सलेटी, जर्द, हल्का स्याह या फिर राख जैसा? ऐसी राख जिसके भीतर आग अभी पूरी तरह मरी न हो। या फिर कोई ऐसा रंग, जिसके पीछे से अचानक कोई सन्नाटा झांकने लगता है और उसकी दरार में से एक फासले पर कोई सिसकी अटकी हुई दिखती है? समुद्र या नदी की किसी लहर द्वारा अचानक दूर रेत पर उछाल कर पटक दी गयी मछली की फटी आंखे आपने देखी है कभी? मरती हुई, खुली-फटी आंखे ………?……. उस जैसा रंग!’’5 गरीबी, दुःख मानसिक प्रताड़ना, संघर्ष खोज बेबसी और लाचारी का बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है। मोहनदास की मानसिक स्थिति के बिगड़ जाने का चित्रण कहानीकार ने यों किया है-’’मोहनदास टूटकर बिखर गया न वह ठीक से खा पाता, न सो पाता, किसी काम में उसका मन न लगता। अजीब-अजीब से प्रश्न और संदेह उसके दिमाग में पैदा होते और वह बेचैन हो जाता। उसे लगता कि जितने भी लोग नौकरियों में है या ऊंची जगहों पर बैठे हुए है, कारों मे घूम रहे है, मौज-मस्ती कर रहे हैं वे क्या वास्तव में वही लोग है, जिस नाम और पहचान से वे जाने जाते है या वे असल में कोई और है और उन्होंने जालसाजी करके किसी और का मुखौटा लगा रहा है।’’ इसमें निरंकुश शासकों की बर्बरता अनैतिकता और पतन का चित्रण है। हिन्दी की लम्बी कहानी परम्परा को मजबूती देती यह कहानी हमारे समाज की यथार्थ तस्वीर दिखाती है। मोहनदास अपनी अस्मिता की लड़ाई से जूझ रहा है दूसरी तरफ उसका परिवार बीमारी और भूख से जूझ रहा है। गरीबी के कारण आज परिवार अस्त व्यस्त हो रहा है। मोहनदास लड़ते-लड़ते थक गया है। वह इतना बेबस और लाचार हो गया है उसे अपने चारो तरफ भ्रष्टाचार जातिवाद, वर्गभेद, गरीबी के अलावा कोई भी खुशी नजर नहीं आती। किसी भी परिवार में शिशु का जन्म खुशियां लाता है। परन्तु गरीबी के कारण मोहनदास जरा भी खुश नहीं होता। ‘‘एक और पेट ने आज के दिन घर में जन्म ले लिया। अब कम से कम छह-आठ महीने तक हर रोज आधा किलोग्राम के दूध का इंतजाम करना होगा।’’7 कितनी बड़ी विडम्बना है कि सम्पूर्ण मानव जाति के लिए जो क्षण सबसे आह्लादिक होता है, उसे गरीबी नाम का राहू निगल जाता है। कहानी का अन्त बड़ा दर्दनाक है। जब सच्चाई ही अपनी अस्मिता को छोडने के लिए तैयार हो जाती है। ‘‘मैं आप लोगों से हाथ जोड़ता हूं कि मुझे किसी तरह बचा लीजिए। मैं अदालत मे जाकर हलफनामा देने को तैयार हूँ। मैं मोहनदास नहीं हूं जिसे बनना हो बन जाए मोहनदास मैने कभी बी0ए0 नहीं किया, मै किसी नौकरी के लायक नहीं, बस मुझे चैन से जिन्दा रहने दिया जाए।’’8 उदय प्रकाश ने ‘मोहनदास’ कहानी के माध्यम से देश में समकालीन समाज की दशा एवं दिशा का जीवंत एवं यथार्थ स्वरूप प्रस्तुत किया है। अस्मिता के संकट से ग्रस्त कहानी भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था, दोषपूर्ण न्याय प्रणाली जातिवाद के कारण होने वाली समस्याएं युवा बेरोजगार के कारण देश की दयनीय स्थिति पंचायती राज्य की स्वार्थपरता से होने वाली जन साधारण की कठिनाइयां, कहानी के साथ चलने वाली घटनाओं, कुघटनाओं का जिक्र और उस पर लेखक की टिप्पणी पाठकों की संवेदना को जाग्रत कर कथा को गहराई से उतरने के लिए विवश कर देती है। उदयप्रकाश ने ‘मोहनदास’ कहानी में वर्तमान जीवन के जटिल यथार्थ की अभिव्यक्ति है। कहानी की केन्द्रीय समस्या उच्च वर्ग की ओर से निम्न वर्ग का उत्पीड़न और शोषण का चित्रण किया है।निष्कर्षः- उदय प्रकाश जी ने अपने कथासाहित्य में जीवन के सभी परिदृश्यों का प्रमुखता से वर्णन किया है। उदय प्रकाश जी ने सामाजिक जीवन से सम्बन्धित परिवर्तित होते नैतिक मूल्यों को प्रमुखता के साथ चित्रित किया है। समाज में नैतिकता का स्वरूप बदलता जा रहा है। नैतिक मानदण्ड विघटित होते जा रहे हैं भौतिकता की अन्धी दौड़ में मानवीय मूल्यों का विखराव हो रहा है। जातिवाद, सामंती व्यवस्था के प्रति विद्रोह, भ्रष्टाचार, पूँजीवादी व्यवस्था के कारण सामाजिक विकृतियां बढ़ती जा रही है। वैश्वीकरण की समस्या ने मध्यवर्गीकरण परिवार की समस्याओं को और अधिक बढ़ा दिया है। नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के विचारों में अन्तर प्रमुखता से आ रहा है जिससे जाति-पाति, छुआ-छूत के बन्धन मजबूत होते जा रहे है।उदय प्रकाश जी अपने समय के एक प्रसिद्ध कथाकार है इन्होंने अपनी कथा रचना के माध्यम से समाज की सभी समस्याओं को उजागर किया है।सन्दर्भ ग्रन्थ सूची-1. उदयप्रकाश, मोहनदास, वाणी प्रकाशन, पृ0सं0-772. हंस नवम्बर, 2005 पृ0सं0 123. उदयप्रकाश, मोहनदास, वाणी प्रकाशन, पृ0सं0-494. उदयप्रकाश, मोहनदास, वाणी प्रकाशन, पृ0सं0-125. उदयप्रकाश, मोहनदास, वाणी प्रकाशन, पृ0सं0-76. उदयप्रकाश, मोहनदास, वाणी प्रकाशन, पृ0सं0-537. उदयप्रकाश, मोहनदास, वाणी प्रकाशन, पृ0सं0-178. उदयप्रकाश, मोहनदास, वाणी प्रकाशन, पृ0सं0-85
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