ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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नये राज्यों का पुनर्गठन:-एक समीक्षात्मक विश्लेषण

अनिल कुमार गुप्ता
सहायक अध्यापक
लखनऊ

आजादी के बाद से ही भारत में नई भौगोलिक इकाईयों के गठन को लेकर माॅग उठनी शुरू हो गई थी। यह माँगे कई आधार पर उठाई जा रही थी। यह माँग देश की तत्कालिक परिस्थितियों के कारण लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने तथा इस माँग के पीछे लोगों को राजनीतिक रूप से क्रियाशील होने के लिये पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं कर पाई। हाँलाकि लम्बे समय तक पृथक राज्य की माँग को निष्प्रभावी या कमजोर रखना राजनीतिक व्यवस्था के लिये सम्भव नहीं हो पाया। आजादी के बाद से ही भारत में नई भौगोलिक इकाईयों के गठन को लेकर माॅग उठनी शुरू हो गई थी। यह माँगे कई आधार पर उठाई जा रही थी। यह माँग देश की तत्कालिक परिस्थितियों के कारण लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने तथा इस माँग के पीछे लोगों को राजनीतिक रूप से क्रियाशील होने के लिये पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं कर पाई। हाँलाकि लम्बे समय तक पृथक राज्य की माँग को निष्प्रभावी या कमजोर रखना राजनीतिक व्यवस्था के लिये सम्भव नहीं हो पाया।  नये राज्यों का पुनर्गठन:- एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण 1947 में आजादी के समय भारत में अंग्रेजो के अधीन प्रति और रियासतें शमिल थी। ब्रिटिश शासन के तहत कई भारतीय प्रांतो को विभाजित किया गया। बंगाल को पूर्वी एवं पश्चिमी बंगाल में विभाजित किया गया। पुनः बंगाल से बिहार और उड़ीसा को अलग किया गया। प्रांतो का यह विभाजन प्रशासनिक सुविधा के दावे के लिये किया गया, परन्तु इसके मूल में राष्ट्रीय आन्दोलन को कमजोर करना था।  ‘‘1947 के बाद से क्षेत्रीय आन्दोलनों एंव भाषावाद की लहर ने नये राज्यों की मांग को प्रबल किया।‘‘1 कहीं-कहीं आन्दोलन इतना तीव्र हो गया कि भारत की एकता और अखण्डता को चुनौती प्रस्तुत करने लगा। दक्षिण भारत में तेलगू भाषियों द्वारा आन्ध्र प्रदेश की मांग का आन्दोलन इसका एक उदाहरण था। अन्दोलन की तीव्रता ने स्वतंत्रता के बाद भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित हैं या नही इसकी जाॅच के लिये संविधान सभा के अध्यक्ष डा0 राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एस0 के0 धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग्य की नियुक्ति की। घर आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया और प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया।2 विपिन चन्द्र- आजादी के बाद का भारत पृष्ठ-134-135 धर आयोग के निर्णयों की परीक्षा करने के लिये कांग्रेस कार्य समिति ने अपने जयपुर अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू वल्लभ भाई पटेल, पी0 सीता रमैया की एक समिति का गठन किया इस समिति ने भाषा के आधार पर नये राज्यों की मांग को अस्वीकार कर दिया। इस समिति के रिर्पोट के बाद मद्रास शासत्र के तेलगू भाषियों ने पोटी श्री रामुल्लू के नेतृत्व में आन्दोलन प्रारम्भ किया। बी0एल0फडिया – भारतीय शासन एवं राजनीति, पृष्ठ सं0 2 छप्पन दिन के आमरण अनशन के बाद 15 दिसम्बर 1952 को रामुल्लू की मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु से उप्पनन असंतोष एवं ंिहंसा के कारण प्रधानमंत्री नेहरू ने तेलुगू भाषियों के लिये अलग आंध्र प्रदेश के गठन की घोषणा कर दी। इसके बादे देश के अन्य क्षेत्रों से अलग-अलग राज्योें की मांग शांत करने के लिये राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन कर दिया गया। इस आयेग के अध्यक्ष फजल अली थे और इसके अन्य सदस्य हद्य नाथ कुंजरू और सरदार के एम0 पणिक्कर थे। आयोग 30 सितम्बर 1955 को निम्न सिफारिशे केन्द्र सरकार को प्रस्तुत किया। 1. केवल भाषा एवं संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नही करना चाहिये। 2. राज्यों के पुनर्गठन में राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तिय एवं प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजनाओं की सफलताओं का भी ध्यान रखना चाहिये। आयोग की सिफारिशों के आधार पर सांसद के द्वारा जुलाई 1956 ई0 में राज्य पुनर्गठन                 अधिनियम पास कर दिया गया। इस धिनियम के अनुसार भारत में 14 नयें राज्यों तथा छः केन्द्रशषित क्षेत्र बनाये गये। ये राज्य इस प्रकार थे- 1. जम्मू कश्मीर 2. पंजाब, 3. उत्तर प्रदेश, 4. बिहार 5. बंगाल 6. असम 7. उड़ीसा 8. आन्ध्र प्रदेश 9. तमिलनाडु 10. केरल 11. मैसूर 12. बम्बई 13. मध्य प्रदेश               14. राजस्थान। केन्द्र शसित क्षेत्र निम्न थे- 1. हिमाचल प्रदेश 2. दिल्ली 3. मणिपुर 4. त्रिपुर 5. अण्डमान निकोबार द्वीप समूह 6. लक्षद्वीप तथा मिनीकाय द्वीप। 4.डी0 डी0 बसु भारतीय संविधन: पृ0 सं0- 71.72 नये राज्यों की मांग का यह दौर राज्य पुनर्गठन             अधिनियम से रूका नही बल्कि नये राज्यों की मांग का यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। नये आकाक्षाओं नेताओं की सत्ता लोलुपता तथा विकास में विषमता एवं क्षेत्रिय असनतुलन ने नये राज्यों की मांग को हवा दिया। 1 मई 1960 को मराठी एवं गुजराती भाषियों की बीच संघर्ष के कारण बम्बई राज्य का बॅटवारा करके महाराष्ट्र और गुजरात दो नये राज्यों सृजन किया गया।  नागा आन्दोलन ने नागालैण्ड की मांग एक ऐसे व्यापक क्षेत्र वाले राज्य के रूप में की जिसमें नागा बाहुल्य वाले शमिल थे। इन जिलों में कुल जिले मणिपुर राज्य के अन्तर्गत थे जिन्हे मणिपुर राज्य छोड़ने के लिये तैयार नही था इस स्थिति केन्द्र के लिये निष्पक्ष स्थिति अपनाकर विवाद का सामाधा एक कठिन कार्य रहा। इस प्रकार 1962 में असम को विभाजित करके नागालैण्ड राज्य बना।  1 नवम्बर 1966 ई0 में पंजाब को विभाजित करके पंजाब एवं हरियाणा का गठन किया गया।  25 जनवारी 1971 को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।  21 जनवरी 1972 ई0 में माणिपुरर त्रिपुरप एवं मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।  26 अप्रैल 1975 ई0 को सिक्किम भारत का 22 वाॅ राज्य बना।  20 फरवरी 1987 ई0 में में मिजोरम एवं अरूणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।  30 मई 1987 ई0 में गोवा को भारत का 25 वाॅ राज्य बनाया गया।  सन् 2000 ई0 में छत्तीसगंढ उत्तराॅचल (उत्तराखण्ड) तथा झारखण्ड का निर्माण किया गया।   2 जून 2014 को तेलंगाना को भारत का 29 वाॅ राज्या बनाया गया।  इस प्रकार हम देखते है कि देश के विभिन्न हिस्सों में छोटे राज्यों की माॅग बहुत पुरानी है। नये राज्यों की गठन के लिये तर्क दिया जाता है कि छोटे राज्यों में विकास तेज गाति से होता है, पर अभी तक का यह अनुभव रहा है कि कुछ राज्यों जैसे- पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश ने तेजी से विकास किया। जबकि झारखण्ड छत्तीसगढ़ लोगों के उम्मीदों पर खरे नही उतरे। इससे यह तर्क पूरी तरह से सही नही है कि छोटे राज्य प्रशासनिक दृष्टि से बेहतर होते है वहाॅ विकास भी तेजी से होता है। भारत में औसतन 31/2 करोड़ लोग। राज्य में रहते है, जबकि ब्राजील के लिये यह संख्या 70 लाख और अमेरिका के लिये 60 लाख लेकिन भारतीय राज्य क्षेत्रफल की दृष्टि से बहुत छोटे है और प्रति व्यक्ति धनत्व कम है। नये राज्यों को चलाने के लिये नया विधान सभा, नया सचिवालय, नया उच्च न्यायालय की आवश्यकता होती है। इसके लिये वित्तीय संसाधनों पर बोझ पड़ता है। नये राज्यों की गठन से क्षेत्रीयता की भावना मजबूत होती है और राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होती है तो उसे इन सभी प्रश्नों पर विचार करके इनके जवाब ढूढने होगे।  पृथक राज्य की माँग का सबसे अच्छा विकल्प यह है कि जिस भाग को उपेक्षा की शिकायत है उसे राज्य की सीमा के अन्तर्गत रहते हुये स्वायत बनाये जाय, उसे न्यायोचित संसाधन दिये जाये ताकि उपेक्षा की शिकायत दूर हो सके। इस प्रकार के प्रयोग गोरखालैण्ड तथा बोडोलैण्ड के सन्दर्भ में किये गये है और वे सफल रहे है यदि स्थानीय स्वशासन विशेषकर पंचायती राज में जरूरी सुधार कर इसे अधिक शक्तिशाली बनाया जाय और उसे अधिक लोकतांत्रिक रूप दिया जाय तो इससे कई समसयाओं का समाधान हो सकता है।  क्षेत्रीय आनदोलनो के द्वारा नये राज्यों की मांग के पीछे मूल कारण लोकतांत्रिक आंकाक्षाओं का कुंठित होना जिसे पंचायती राज्य की संस्थाआंे में सुधार तथा प्रतिनिधित्व के द्वारा दूर किया जा सकता है। इसके बावजूद एक अन्य स्तर पर क्षेत्रिय उपेक्षा जैसे मुद्दे उठते है इसलिये नये राज्यों की माँग के दरवाजे को सदा के लिये बंद नही किया जा सकता है। लोगों को यह सन्देश देना चाहिये कि ऐसी माँगो को लोकतांत्रिक तौर-तरीको से ही उठाया जाय। और उसके लिये हिंसा और आगजनी जैसे तौर-तरीके न अपनाया जा सके। जहाॅ आन्दोलनकारियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिये वही सरकार को भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार कर स्थानीय लोगों की आंकाक्षाओं के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिये।सन्दर्भ:- 1. महेन्द्र प्रसाद सिंह एवं हिमांशु राय। भारतीय राजनीतिक प्रणाली, संरचना और विकास, पृष्ठ सं0 202 2. विपिन चन्द्र आजादी के बाद का भारत । पृष्ठ संख्या – 134-1353. बी0एल0 फड़िया: भारतीय शासन एवं राजनीति, पृष्ठ सं0 5754. डी0डी0बसु: भारतीय संविधान, पृष्ठ सं0- 71-725. बी0एल0 फड़िया: स्टेट पाॅलिटिक्स इन इण्डिया

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