ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

पंचायतों में महिलाओं की भूमिका

डाॅ0 भारत सिंह

पंचायती राज व्यवस्था महिलाओं के लिये एक वरदान के रूप में उभरी है, इसमें कोई सन्देह नही है, कि भारत में पंचायती राज आने से महिलाओं की स्थिति काफी सुधार हुआ है। पंचायतीराज का प्रयत्न सही दिशा में महिलाओं में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाने तथा उन्हें नया जीवन दान देने में सफल हुयी है। महिलाओं की समाज में विशेष स्थिति बन सके इसके लिये महिलाओं को ग्रामीण विकास में सहायक बनाने हेतु अनेक प्रयास किये गये। हमारे देश की प्रारम्भिक सामाजिक और संस्कृतिक पृष्ठ भूमि रही है जैसा कि प्राचीन संस्कृतियो में उद्धत से स्पष्ट होता है पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से महिलाओं को जीवन बहुत प्रभावित हुआ है सही मायने में पंचायती राज में महिलाओं को समाज का विशेष सदस्य बना दिया है। भारतीय महिलाएं भले ही कितनी सशक्त क्यों ना हो जाये लेकिन उनकी मान मर्यादायंे उनका पीछा नही छोड़ सकती है। विशेषकर ग्रामीण महिलाएं पढी लिखी होने के बाबजूद भी अन्ध विश्वास और जादू-टोना, रीत रिवाजों में ही उलझी रहती है यह अधिकतर निर्वाचित महिलाओं को निर्वाचित सदस्य होने के विषय में पूर्ण जानकरी भी नही है वह तो आज मात्र पुरूषों के हाथों कठपुतली बनी रहती है और महिलाएं वही करती है जो उनको पुरूष कहते है अगर उनसे उनके विषय में पूछा जाता है तो एक ही बार में अपनी बातें समाप्त कर देती है हम घर वालों से ऊपर होकर नही चल सकते। शायद उनको इस बात की जानकरी नही होती कि वह कितनी अधिकार सम्पन्न है।पंचायती राज व्यवस्था महिलाओं के लिये एक वरदान के रूप में उभरी है, इसमें कोई सन्देह नही है, कि भारत में पंचायती राज आने से महिलाओं की स्थिति काफी सुधार हुआ है। पंचायतीराज का प्रयत्न सही दिशा में महिलाओं में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाने तथा उन्हें नया जीवन दान देने में सफल हुयी है। महिलाओं की समाज में विशेष स्थिति बन सके इसके लिये महिलाओं को ग्रामीण विकास में सहायक बनाने हेतु अनेक प्रयास किये गये। हमारे देश की प्रारम्भिक सामाजिक और संस्कृतिक पृष्ठ भूमि रही है जैसा कि प्राचीन संस्कृतियो में उद्धत से स्पष्ट होता है पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से महिलाओं को जीवन बहुत प्रभावित हुआ है सही मायने में पंचायती राज में महिलाओं को समाज का विशेष सदस्य बना दिया है। भारतीय महिलाएं भले ही कितनी सशक्त क्यों ना हो जाये लेकिन उनकी मान मर्यादायंे उनका पीछा नही छोड़ सकती है। विशेषकर ग्रामीण महिलाएं पढी लिखी होने के बाबजूद भी अन्ध विश्वास और जादू-टोना, रीत रिवाजों में ही उलझी रहती है यह अधिकतर निर्वाचित महिलाओं को निर्वाचित सदस्य होने के विषय में पूर्ण जानकरी भी नही है वह तो आज मात्र पुरूषों के हाथों कठपुतली बनी रहती है और महिलाएं वही करती है जो उनको पुरूष कहते है अगर उनसे उनके विषय में पूछा जाता है तो एक ही बार में अपनी बातें समाप्त कर देती है हम घर वालों से ऊपर होकर नही चल सकते। शायद उनको इस बात की जानकरी नही होती कि वह कितनी अधिकार सम्पन्न है। व्यवहारिक दृष्टि से देखा जाए तो महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण का प्रभाव सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों पर पड़ा लेकिन सीमित समय में किसी क्रांतिकारी परिवर्तन की अपेक्षा नही की जा सकती है महिला सशक्तिकरण एक प्रक्रिया है जिसे प्रारम्भिक स्तर पर धीमी गति से प्राप्त किया जा सकता है जब पहली बार महिलाए निर्वाचित होकर पंचायतों में आयी तो पंचायतो की कार्य प्रणाली से बिल्कुल अनभिज्ञ थी प्रारम्भिक अवस्था में देखा गया कि पंचायत बैठक में महिला चुपचाप बैठे रहती थी अधिकतर महिलाओं के पति ही उनके स्थान पर कार्य करते थे यह लोग प्रधान पति कहलाये ग्रामीण परिवेश में रहने वाली अधिकांश निर्वाचित महिलायें परिवार के  पुरूष वर्ग के माध्यम से चुनाव तो जीत जाती है लेकिन पंचायत राज व्यवस्था के नवीन संगठन में उल्लिखित ग्यारवी अनुसूची के कार्यों के विषय में प्रायः असफल हो जाती हैं इसी कारण अपवाद को छोड़कर अधिकतर महिलाओं की वास्तविक भूमिका उनके परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा निभाई जा रही है इस तरह ग्रामीण क्षेत्र में एक नया पद पैदा गया हो गया है जिससे महिलाओं के स्थान पर उनके पति या परिवार के अन्य सदस्य पंचायत बैठको में जातेे हैं इसका प्रमुख कारण निरक्षरता एवं परिवार के पुरूष सदस्यों पर अन्ध विश्वास का हांेना है निरक्षर महिलाओं ने पति के आग्रह पर विश्वास करके अंगूठा लगा दिया बिना यह जाने की किस प्रस्ताव पर अंगूठा लगा रही हंै इन घटनाओं से स्पष्ट है कि आज भी पंचायतों में निर्वाचित महिलाओं की सक्रिय सहभागिता के सिद्धान को व्यवहारिक रूप नहीं मिल पा रहा है और पुरूषों का वर्चस्व बना हुआ है पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका हेतु शोधार्थी द्वारा निम्न सुझाव दिये जा सकते है-1. ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत ,जिला पंचाय चुनाव में महिलाओं का कम से कम आरक्षण तीन कार्य काल के लिये या 15 बर्षो के लिये निश्चित किया जाये।2. पंचायत चुनाव लड़ने वाली महिलाओं के लिये न्यूनतम योग्यता निर्धारित कर दी जाये इस शर्त के साथ उस निर्वाचन क्षेत्र में यदि महिलाये निर्धारित योग्यताएं पूरी नही करती है तो पंचायत क्षेत्र इस बाध्यता से मुक्त रहेगा।3. महिलाओं के लिए आरक्षित वाली ग्राम पंचायत क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत निर्वाचन क्षेत्र में पुरूषों के चुनाव प्रसार पर रोक लगे।
4. पंचायती राज विभाग में महिला कर्मचारिओं की भर्ती की जाए, कम से कम ग्राम स्तर पर एक महिला पंचायत कर्मी की अवश्य नियुक्ति की जाए।5. पंचायत की बैठकों में महिला प्रतिनिधियों के पति, पुत्रों या अन्य सदस्यों के आने पर प्रतिबन्ध लगे।6. पंचायतों की बैठकों में महिलाओं की उपस्थिति को अनिवार्य बनाये जाने का प्रावधान किया जाये, तथा कोरम में उनका प्रतिशत निर्धारित किया जाये।7. धनबल,जनबल,बाहुबल जैसे शब्दों को तोड़ने के लिए चुनाव प्रचार सामग्री का प्रबन्ध सरकार स्वयं करे, या किसी एजेन्सी की स्थापना करे।8. पंचायतो को कर्मचारिओं की नियुक्ति और वेतन भत्ते देने का अधिकार मिले।9. 73वें संविधान संषोधन अधिनियम के अन्तर्गत 29 विषयों को सौपकर क्रियान्वयन कराया जाए।10. ब्लाक प्रमुख तथा अध्यक्ष जिला पंचायत चुनाव में निरक्षर महिला प्रतिनिधियों की सुविधा के लिए चुनाव चिन्ह आवंटित किये जाये। जिससे हेल्पर प्रणाली पर विराम लगे, और महिलायें स्वेच्छा से अपना प्रमुख व अध्यक्ष चुन सके।11. ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत,जिला पंचायत के स्थान पर ग्राम सरकार,क्षेत्र सरकार व जिला सरकार का नाम दिया जाए।12. सम्पूर्ण महिला पंचायत का गठन किया जाए जैसे यदि ग्राम पंचायत प्रधान का पद महिला के लिए आरक्षित है तो उस पंचायत के सभी ग्राम पंचायत सदस्यों के पद भी महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिये जाए। यदि ब्लाक प्रमुख का महिला के लिए आरक्षित है तो क्षेत्र पंायत के सभी पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिये जाये, यदि जिला पंचायत के अध्यक्ष का पद महिला के लिए आरक्षित है तो पूरे जिले के निर्वाचन क्षेत्र का आरक्षण महिलाओं के लिए हो।13. यदि किसी महिला प्रधान महिला ब्लाक प्रमुख या महिला जिला पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उसे हटाया जाये तो उसके स्थान पर महिला का ही स्थान्नापूर्ति करने का प्रावधान किया जाये। 14. पंचायत चुनाव दलगत आधार पर न हो।15. प्रत्येक स्तर पर ग्राम, क्षेत्र तथा जिला स्तर पर महिला पंचायत सम्मेलन आयोजित किये जाये।16. महिला प्रतिनिधियों को पंचायत राज व्यवस्था से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षित कराया जाये17. पंचायत प्रतिनिधियों को सांसदों और विधायकों की तरह वेतन भत्ते दिये जाये। महिला प्रतिनिधियों को पुरूष प्रतिनिधियों की अपेक्षा 10 प्रतिशत अधिक वेतन भत्ता दिया जाये।18. केन्द्र द्वारा राज्य सरकार को योजना बनाने में पंचायतों को शामिल किया जाये, जिसमें 33 प्रतिषत महिलायें हांे।19. ग्राम क्षेत्र व जिला पंचायत की महिला प्रतिनिधियों में समन्वय स्थापित करने हेतु व्यवस्था वनायी जाये, कि कम से कम चार महीनें के अन्दर तीनों स्तरों की संयुक्त बैठके हो।20. अपने कार्यकाल में अच्छा कार्य करने वाली प्रतिनिधियों को पुरस्कार देने की व्यवस्था हो। 21. जब आधी आबादी महिलाओं की है तो त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में महिलाओं का आरक्षण बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जाये।पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका के समस्त पक्षों का अवलोकन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि महिलाओं का मानव सृष्टि में की नहीं वरन समाज निर्माण में भी महत्वपूर्ण स्थान है, देश का समग्र विकास महिलाओं की भागीदारी के बिना सम्भव नहीं है, क्योकि देश की आधी जनसंख्या महिलाओं की है।अतः यह आवश्यक है कि देश की राजनीति में भी महिलाओं की सशक्त भागीदारी हो, देश की अब तक की राजनीति में भी महिलाओं की सक्रिय सहभागिता काफी कम रही है, नवीन पंचायत राज व्यवस्था में जो नवीन महिला नेतृत्व उभरा है उसकी यदि समीक्षा की जाए तो यह तथ्य स्पष्ट होता है कि धीरे-धीरे महिला प्रतिनिधि पंचायत के कार्यों का निर्वाहन करने लगी है यह स्वीकार करना होगा कि ग्रामीण जन  की अस्मिता को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए पंचायतों में महिलाओं को अधिक महत्व दिया जाये। प्राचीन युग से लेकर वर्तमान युग तक दार्शनिकों और चिंतकों की यह चिर  परिचित कामना थी जहाँ नारियों का सम्मान होता है, वहा देवता निवास करते है। इसी कल्याणमयी भावना से गांधी जी ने कहा था कि आजादी हासिल कर लेना ही मेरी अन्तिम मंजिल नहीं है, यह तो केवल एक पड़ाव है यदि किसी आंखों से अभाव के आसूँ टपकते है तो उसे पोछने के लिए मेरा करवां चलता रहेगा। इसी अनुक्रम में हमें पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत चुनी गयी महिलाओं के अधिकारों को पुरूष मानस के प्रभाव से मुक्त करके समृद्ध और सक्षम बनाने में पूर्ण योगदान करना चाहिए। तथा ऐसे ही महिला प्रतिनिधियों की भूमिका को पंचायतों में यथार्थ के धरातल पर प्रतिबिम्वत व स्थापित किया जा सकता है। जो 73वें संविधान संशोधन              अधिनियम के अनुकूल दायित्व ही नहीं वरन् पंचायती राज व्यवस्था का अनिवार्य कर्तव्य बोध भी है।
सन्दर्भ सूची:-1. विनय शर्मा – पंचायती राजनीति में महिलाओं की भागीदारी , रजत प्रकाशन, नई दिल्ली ।2. डाॅ0 मनोज कुमार, अखलाक अहमद – पंचायती राज उभरतें मुद्दे , लक्ष्य साहित्य प्रकाशन ।3. महीपाल – पंचायती राज चुनौतियाँ एवं सम्भावनायें, नेशनल बुक ट्रस्ट इण्डिया 2004।4. कुकरेजा सुन्दरलाल पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत बनाने की आवश्यकता, कुरूक्षेत्र।5. पिल्ले सुधा- पंचायती राज द्वारा अधिकार सम्पन्नता,  योजना अगस्त 2001 ।6. गीता श्री- सुबह होने को है माहौल बनाये रखिए, राष्ट्रीय सहारा 10 जून 2000 ।7. उमेश चन्द्र अग्रवाल- महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के बदलते सन्दर्भ और राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति 2001 से अपेक्षाएं, प्रतियोगिता सागर सितम्बर 2001।

Latest News

  • Express Publication Program (EPP) in 4 days

    Timely publication plays a key role in professional life. For example timely publication...

  • Institutional Membership Program

    Individual authors are required to pay the publication fee of their published

  • Suits you and create something wonderful for your

    Start with OAK and build collection with stunning portfolio layouts.