ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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आत्मनिर्भर भारत में स्वदेशीकरण की भूमिका

डॉ कौशलेन्द्र कुमार सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
राजनीति विज्ञान विभाग
जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल परास्नातक महाविद्यालय , बाराबंकी
भूपेन्द्र मिश्रा
शोध छात्र

आत्मनिर्भर भारत कैसे बनेगा इसको समझने से पहले यह समझना पड़ेगा कि आखिर आज इसकी जरूरत क्यूँ पड़ी और क्यूँ इसे आज बढ़ावा दिया जा रहे है । कोरोना महामारी ने सम्पूर्ण विश्व के देशों को उसकी भौगोलिक सीमाओं तक सीमित कर दिया । और जिसके कारण विश्व अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान हुआ ,सभी देशो ने कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिये सभी आयातों और निर्यातों को रोक दिया था । जिससे सभी को हानि हुई। ना जाने कितने देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई ।
संकट से समय सभी राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते है ऐसे समय अगर हम किसी अन्य राष्टृ पर किसी चीज के लिये निर्भर रहेंगे तो निश्चय ही हमें परेशानियों का सामना करना पड़ेगा । इसलिये जितना हो सके हमें उतना आत्मनिर्भर बनना होगा क्यूँकि इसी के माध्यम से हम भविष्य में आने वाले संकट के लिये तैयार हो सकते है । आत्मनिर्भर भारत का अर्थ है कि मूलभूत आवश्यकताओं के लिये हमेशा किसी अन्य राष्ट्र पर निर्भर ना होना पड़े । इसीलिये भारत में उत्पादन को बढ़ावा देना और उसकी गुणवत्ता में सुधार लाना, जिससे हमारी निर्मित सिर्फ हमारे देश में ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिये उपयोगी सिद्ध हो । जिससे भारत में निर्मित वस्तुओं की माँग बढ़े और भारत की अर्थव्यवस्था में तीव्र विकास हो । भारत को आत्मनिर्भर बनाने में आने वाली कुछ प्रमुख समस्याएँ है जिनके निराकरण के बिना हम आत्मनिर्भर भारत का निर्माण नही कर सकते है ।
वर्तमान समय में एक अवधारणा चल रही है कि यदि राष्ट्र का विकास होगा तो सबका विकास होगा , अर्थात की विकास कि दिशा ऊपर से नीचे की ओर है । जबकि वर्तमान समय में नीचे से ऊपर की ओर विकास की अवधारणा उपयोगी लग रही है । भारत एक ग्रामीण प्रधान देश है यहाँ की अधिकतर जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। इसलिये आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिये हमें आत्मनिर्भर गाँवो का निर्माण करना होगा और यही पहली सीढ़ी है भारत के आत्मनिर्भर बनने की ओर ।विकेंद्रीकरण के माध्यम से स्थानीय निकायों के स्तर पर योजनाओं का निर्माण व उनके क्रियान्वयन को प्रोत्साहन देना चाहिये। कोरोना काल में जब भारत में प्रवासी मजदूर अपने घर के लिये लौट रहे थे तो उनकी अथाह भीड़ देखकर चिंता हुई कि आखिर क्यूँ इतनी ज्यादा संख्या में मजदूरों को रोजगार के लिये अपने घरों से इतनी दूर शहर जाना पड़ा । उस भीड़ में सबसे ज्यादा लोग भारत के उत्तरी मैदानी राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, बिहार,झारखंड, मध्यप्रदेश के थे । अब यह चिंता का विषय है कि जहाँ की भूमि इतनी उपजाऊ है वहाँ के लोग पलायन करने पर आखिर क्यूँ विवश हुये और जब देश लॉकडाउन में था और रोजगार के सभी क्षेत्र बंद हो गये थे तो उन्हे रोटी के लिये अपने घर की ओर लौटना पड़ा ,इसका अर्थ है कि अपने घर से दूर रह्ने के बाद भी उनकी आर्थिक स्थिति में इतना सुधार नही हो सका कि वो संकट के उस दौर में अपना गुजारा कर सके जो कि अत्यंत चिंता का विषय है । आत्मनिर्भर का अर्थ यह भी है कि हमें रोजगार के लिये अपने घर अपने गाँव से दूर ना जाने पड़े । हमें अपने राज्य में अपने शहर व गाँव में रोजगार के पर्याप्त साधन उपलब्ध हो और हमारे जीवन के स्तर में बेहतर सुधार हो सके। अब इस समस्या को और समझने का प्रयास करते है कि आखिर क्यूँ इस क्षेत्र के लोग पलायन करने के लिये मजबूर हुये? शिक्षित युवा कृषि करने में रुचि नही रखता है बल्कि वो नौकरी के लिये शहर की ओर भागता है उसको लगता है कि गाँव में रहकर उसका विकास नही हो सकता और अपने विकास के लिये वो शहर चला जाता है इस तरह जो गाँव का विकास करने की योग्यता रखता था वो तो गाँव से ही चला गया तो अब गाँव का विकास कैसे होगा ?
कोरोना के इस संकटकाल में राज्य के कार्यों को देखकर यह सिद्ध हो गया कि लोककल्याणकारी राज्य की क्या भूमिका होती है । निशुल्क अन्न उपलब्ध कराना, कोरोना की निशुल्क जाँच एवं उपचार, महिलाओं के खाते में हर महीना 500 रुपये सहयोग राशि देना । इस तरह रोजगार के मामलें में सरकार की यही भूमिका है । आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिये भारत सरकार की योजना “स्टार्टअप व स्टैण्डअप”
के तहत निम्न क्षेत्रों में जैसे- फूड प्रोसेसिंग यूनिटों का निर्माण , डेयरी(कामधेनु योजना के तहत राज्य सरकार इसे प्रोत्साहन दे रही है।) , पोल्ट्री फॉर्म , फिशिंग, मशरूम खेती, बांस की खेती , फूलों की खेती और अन्य औषधीय पौधों (तुलसी , एलोवेरा, गिलोय) की खेती आदि । इन सबके माध्यम से गाँवों की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और वहाँ के लोगो को रोजगार के लिये अपने घरों से दूर नही जाना पड़ेगा और इससे गाँव का विकास होगा और राज्य के राजस्व में भी वृद्धि होगी । लघु एवं कूटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिये भारत सरकार ने “प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम ;च्डम्ळच्द्ध” लागू की । जिसके अंतर्गत उद्योग लगाने के लिये 25 लाख और सेवा क्षेत्र में निवेश करने के लिये 10 लाख तक का कर्ज उपलब्ध कराया जायेगा । और सरकार के द्वारा 25ः की सब्सिडी भी दी जायेगी । गाँव में निर्मित श्रेष्ठ उत्पादों का प्रचार व प्रसार जिससे वो सिर्फ देश में ही नही बल्कि देश के बाहर अन्य देशों में भी लोगो के उपयोग में आये, इसके लिये राज्य सरकार नें “व्दम क्पेजतपबज व्दम च्तवकनबज;व्क्व्च्द्ध” की योजना लागू की जिसके अंतर्गत जो जिला जिस विशेष सामान के लिये जाना जाता है उसके लघु उद्योगों को पैसा देगी और उसका प्रोत्साहन करेगी । जैसे-आगरा में चमड़े की वस्तुओं का उत्पादन ,अम्बेडकर नगर में वस्त्र उद्योग , बस्ती में काष्ठ कला, बाराबंकी में वस्त्र उद्योग, गोण्डा में फूड प्रोसेसिंग (दाल)। इनके निर्यात को भी बढ़ावा दिया जायेगा । और इस तरह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में आत्मनिर्भर गाँव अपना पूरा योगदान दे पायेगा ।
भारत सरकार की कौशल विकास योजना जो युवाओं को उनकी विशेष रुचि के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने का कार्य कर रही है । जिसने उनके अंदर कौशल का विकास हो और वो स्वरोजगार के लिये प्रेरित हो और जो लोग आर्थिक रूप से स्व रोजगार सृजन में सक्षम नही है उन्हें मुद्रा योजना के माध्यम से आर्थिक मदद दी जा रही है जिससे वो अपना रोजगार आसानी से शुरू कर सके। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये “बैंक सखी” योजना लागू कि गई जिसके अंतर्गत गाँवों में शिक्षित महिलाओं को बैंकिंग का काम सिखाया जायेगा ,जिससे गाँवों कि महिलाओं को पैसे निकालने के लिये बैंक नही बल्कि बैंक सखी के पास जाना होगा और इससे ग्रामवासियों को भी सुविधा होगी और बैंक पर भी कार्यभार कम पड़ेगा।
आत्मनिर्भरता तभी सार्थक होती है जब आपके पास उपभोग के लिये पर्याप्त साधन हो और आप एक बेहतर जीवन जी रहे हो और भारत की जनसंख्या इतनी ज्यादा है कि यहाँ संसाधन कम और उपभोगकर्ता ज्यादा है जिसकी वजह से हमें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अन्य देशों पर निर्भर होना पड़ता है । रोजगार की कमी और बेहतर सुविधाओं का ना उपलब्ध हो पाना जनसंख्या की निरंतर वृद्धि के कारण ही हो रहा है। इसलिये भारत सरकार को अब जनसंख्या नियंत्रण के लिये एक विशेष कानून बनाकर उसे शीघ्र अतिशीघ्र लागू करना चाहिये। जनसंख्या में हो रही निरंतर वृद्धि को अगर नही रोका गया तो आत्मनिर्भर भारत के लिये किये जा रहे अनेकों प्रयास निरर्थक हो जायेंगे । वर्तमान की आवश्यकता है जनसंख्या नियंत्रण कानून ।इसके माध्यम से भारत में भी किसी भी दम्पत्ति को अधिकतम एक बच्चे के लिये बाध्य किया जाये । और ऐसा करने से दम्पत्ति को अपनी एक संतान को बेहतर बनाने में अधिक बोझ नही पड़ेगा और उस बालक का शारीरिक व मानसिक विकास बेहतर होगा व उसकी शिक्षा व अन्य आवश्यकताओं के लिये माता-पिता पर अधिक आर्थिक बोझ भी नही पड़ेगा और इस तरह एक बेहतर स्वस्थ्य ,शिक्षित, सम्पन्न व आत्मनिर्भर समाज का निर्माण होगा।
आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिये पूरे देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था लागू करने की आवश्यकता है। एक जैसा पाठयक्रम और एक जैसी शिक्षा प्रणाली होना बहुत जरूरी है। किसी बोर्ड के विद्यार्थी को एक अलग नजरिये से देखा जाता है उसकी प्रतिभा पर प्रश्न उठाये जाते है, शिक्षा की भाषा को लेकर भी अलग-अलग नजरिया रखा जाता है और इसी वजह से ना जाने कितने प्रतिभावान व मेधावी विद्यार्थियों को पर्याप्त अवसर नही मिल पाते और उनकी प्रतिभा का ह्रास होता है। जो अपने समाज अपने देश के लिये बहुत कुछ कर सकते थे वो अपने भाग्य को कोसते हुये नजर आते है। अगर युवाओं की शक्ति और उनकी प्रतिभा का इसी तरह हनन होता रहेगा तो भारत को आत्मनिर्भर कौन बनायेगा । जब युवा स्वयं ही आत्मनिर्भर नही होगा तो वो देश को आत्मनिर्भर कैसे बनायेगा । ऐसे में पूरे देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था की बहुत ज्यादा आवश्यकता है जिससे सभी को समान अवसर व समान सम्मान मिले और वो प्रतिभा का उपयोग राष्ट्रहित में कर सके ।
“स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य मस्तिष्क का निर्माण होता है ।”देश में एक जैसी शिक्षा व्यवस्था की तरह एक जैसी स्वास्थ्य व्यवस्था भी होनी चाहिये । अगर व्यक्ति स्वस्थ्य नही रहेगा तो वो अपनी पूरी शक्ति का उपयोग नही कर पायेगा और इसलिये यह जरूरी है कि देश कि स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार किये जाये। सरकारी व गैर सरकारी अस्पतालों में आपको सुविधाओं का अंतर साफ दिखता होगा और इस अंतर को न्यूनतम करने का दायित्व राज्य व केन्द्र सरकार का है । और इस समय सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य पर नही बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी हो गया है । मानसिक तनाव इतना बढ़ गया है कि व्यक्ति की कार्यक्षमता में निरंतर गिरावट देखी जा रही है । लोग आत्महत्या की ओर अग्रसर हो रहे है और ना जाने कितनी मानसिक बिमारियों से ग्रसित हो रहे है। मानसिक रोगों के बारे में लोगो को जानकारी भी कम है और लोग इसे गम्भीरता से भी नही लेते जबकि यह बहुत ही खतरनाक स्थिति होती है जब व्यक्ति परेशान तो होता है किंतु अपनी परेशानी को व्यक्त नही कर पाता। एक बीमार व्यक्ति कभी आत्मनिर्भर नही बन सकता क्यूँकि वो खुद दूसरों पर निर्भर रहता है। इसलिये एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिये एक स्वस्थ्य भारत चाहिये और इसके लिये पूरे देश में एक जैसी और बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था होना अनिवार्य है।
एक जैसी स्वास्थ्य व शिक्षा व्यवस्था लाने के लिये सरकार कुछ संविधान संशोधन करने चाहिये । जिनमें सबसे पहला है दृ“ समान नागरिक संहिता” । समान नागरिक संहिता के माध्यम से भारत के सभी नागरिकों के लिये एक जैसे कानून का निर्माण किया जायेगा । जिससे किसी भी नागरिक को किसी भी आधार पर भेदभाव का पात्र ना बनना पड़े । सभी के लिये एक समान कानून, सभी को आत्मविकास के लिये एक समान अवसर, व सभी के लिये एक समान दण्ड की भी व्यवस्था की जाये ।
दूसरा जो संविधान संशोधन करने की आवश्यकता है वह है- शिक्षा व स्वास्थ्य को समवर्ती सूची से निकालकर राज्य सूची अथवा केंद्र सूची में डाल दिया जाये। जिससे इनमें एक स्पष्ट एकरूपता आ सके। शिक्षा व स्वास्थ्य के लिये कानून बनाने का अधिकार, राज्य अथवा केंद्र में से किसी एक को मिले। और ऐसा करने से इन दोनों क्षेत्रों में एक बेहतर सुधार देखने को मिलेगा और इसी के माध्यम से समान शिक्षा व स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर हम अग्रसर हो पायेंगे।
आत्मनिर्भरता सदैव आत्मविश्वास से आती है अगर आप स्वयं पर विश्वास नही करते तो आप कभी आत्मनिर्भर नही बन सकते है । हम विदेशी कम्पनियों की बहुत तारीफ करते है और उन्ही को प्राथमिकता देते है । हमारे दिन की शुरुआत से लेकर अंत तक ना जाने कितनी विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करते है । उनसे अच्छे और सस्ते सामान जो भारत में निर्मित होते है हम उनकी उपेक्षा करते है । जब हम ही अपनी चीजों पर विश्वास नही करेंगे , उनका उपयोग नही करेंगे तो दूसरों से क्यूँ ये उम्मीद रखे कि वो लोग हमारी चीजो का उपयोग करेंगे । रुपये की गिरती कीमत इसी की निशानी है। किसी भी देश की मुद्रा के मूल्य में वृद्धि या कमी इसी बात पर निर्भर करती है कि उस देश की निर्मित वस्तुओं की विश्व में कितनी माँग है । लॉकडाउन में सभी मॉल बंद थे, जो लोग अपने पड़ोस की दुकान में कभी सामान लेने नहीं जाते थे संकट के समय में उन्ही दुकानों ने आपकी आवश्यकताओं की पूर्ति की। जब आप अपने आस-पास के लोगो को आत्मनिर्भर बनने के लिये प्रेरित नही करेंगे उनका प्रोत्साहन नही करेंगे तब तक आप भारत को आत्मनिर्भर कैसे बनायेंगे । अपने देश में निर्मित सामानों का उपयोग कीजिये जिससे आपके देश में उत्पादन क्षेत्रों का विकास हो और भारत आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर बने ।
कर्ज लेने की प्रवृत्ति हमें छोडनी होगी । ऋण लेकर घी पीने की व्यवस्था को अपनाकर हम कभी आत्मनिर्भर नही बन सकते बल्कि गुलाम बनने की ओर जरूर अग्रसर हो सकते है । कर्ज उतना ही लीजिये जितना आवश्यक हो और जितनी जल्दी हो सके उसे चुका दीजिये और ऐसा करने से ही आप मानसिक तनाव से बच सकते है और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ सकते है । जरूरत से ज्यादा कुछ भी अच्छा नही होता और कर्ज और मर्ज से जितना दूर रहेंगे उतना ही हमारे लिये सही रहेगा ।
सरकार को निजी उद्योगो को बढ़ावा देना चाहिये, किसी भी नये काम को शुरु करने के प्रक्रिया जितनी सरल होगी लोगो का ध्यान उसकी तरफ अधिक होगा । स्व दृरोजगार सृजन के क्षेत्र में सरकार लोगो को सहायता दे, और अपना कम से कम हस्तक्षेप रखे जिससे शुरुआत करने में किसी को कठिनाई ना आये क्यूँकि समसे मुश्किल काम किसी ़काम को शुरु करना ही होता है और उसके बाद की प्रक्रिया तो सरल होती है और अपने आप अपने विकास के रास्ते बनाती जाती है। सरकारी नौकरी सीमित है और युवाओं की संख्या बहुत अधिक है इसलिये उन्हे स्टार्टअप के लिये प्रोत्साहित व मार्गदर्शित करना बहुत जरूरी है। जिससे वो रोजगार की तलाश न करे बल्कि रोजगार निर्माता बनकर उभरे।
एक बालक जब इस दुनिया में आता है तो वो अपनी माँ पर निर्भर रहता है और फिर वो अपने परिवार पर निर्भर होता है । फिर उसको सिखाया जाता है कि कैसे उसे अपने पैरों पर खड़ा होना और चलना है । इस तरह वो चलने के लिये आत्मनिर्भर बनता है फिर उसे भाषा सिखाई जाती है जिससे वो अपनी बात को कहने के लिये आत्मनिर्भर बनता है। शिक्षा के माध्यम से उसके अंदर के गुणों को बाहर निकाला जाता है। जिससे वो समाज में अपना योगदान दे पाता है और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनता है । आत्मनिर्भरता का अर्थ यह नही है कि हमें किसी से कोई मतलब ही नही है या फिर हम किसी की सहायता ही नही करेंगे इसका अर्थ यह है कि हमें तुम्हे चलना सीखायेंगे जिससे तुम चलने के लिये किसी और पर निर्भर न रहो ।
आत्मनिर्भर भारत बनाने का भी यही अर्थ है कि हम सब एक दूसरे का सहयोग करके एक दूसरे को आत्मनिर्भर बनाये । और यह प्रक्रिया अन्य देशों के लिये भी है। भारत सबकी मदद करेगा, जो राष्ट्र इस संकटकाल में कमजोर हो गये है उनकी सहायता करके उन्हे भी आत्मनिर्भर बनने में सहयोग करेगा । हम सबका भी यही दायित्व बनता है कि अपने आस-पास के लोगो को आत्मनिर्भर बनाने में उनका सहयोग करे । क्यूँकि हम सब परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुये है और एक का विकास हम सबका विकास होगा, एक की आत्मनिर्भरता हम सबकी आत्मनिर्भरता होगी । भारत देश हमसे और आपसे मिलकर तो बना है और हमारा आत्मनिर्भर होना ही भारत का आत्मनिर्भर होना है ।
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