ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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छायावादोत्तर काव्य में गांधी दर्शन की भूमिका

डॉ आराधना वैष्य 
हिन्दी विभाग
बरेली कॉलेज बरेली

महात्मा गाँधी विधाता की अनुपम सृष्टि थे। गंगा सी पावन और हिमाद्रि-सी उतुंग सरणि ने न केवल भारत अपितु विश्व मानवता का कल्याण किया है।
वे भगवतद्गीता के स्थित प्रज्ञ थे जिनका अवतार निर्धनता दासता और दमन उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने हेतु हुआ था। पंत जी ने उन्हें राम, कृष्ण, गौतम आदि की परम्परा का अवतारी पुरुष माना है।
देव पुत्र था निश्चय वह जन मोहन मोहन।
सत्यचरण धर, जो पवित्र कर गात धरा कण।
विचरण करते थे उसके संग विविध युग वरद। 1
महात्मा गांधी तो युग पुरुष थे धर्मपरायण (श्रद्धा के फूल) भारतीय जनता ने न उन्हें महात्मा की पद्वी दी, सम्पूर्ण विश्व उन्हें महात्मा गांधी नाम से जानता है, जबकि देशवासी उन्हें प्यार से बापू कहते थे। गुरुदेव टैगोर ने उन्हें युग-युग तक मार्ग दर्शक माना है। 2
और दिनकर जी ने लिखा है-
इतिहास परख नूतन विधान, पन्ने समेट ले पुराचीन।
बापू ने कलम उठाई है, लिखने को कुछ गाथा नवीन।। 3
महाकवि दिनकर जी बापू को आत्मा के नभ का तुंग केतु कहते हैं
तू कालोदधि का महास्तंभ, आत्मा के नभ का तुंगकेतु।
बापू! तू भर्व्य, अमर्त्य, स्वर्ग-पृथ्वी, भू-नभ का महासेतु।। 4
गांधीदर्शन और गांधीवाद-
किसी भी विचारधारा का अविर्भाव एक निश्चित समय के प्रांगण में प्रदीर्घकाल के पश्चात् ही होता है। समय-समय पर देश में अनेक विचारधाराओ ने जन्म लिया है और काल प्रवाह में विलीन हो गई लेकिन यह सत्य है कि सूर्य की प्रखर मयूख की भांति निरंतर इस देश की संस्कृति में जन्म लेने वाली सनातन विचारधाराऐं किसी न किसी रूप में गतिमान रही है। जब इस देश पर काल की काली छाया मंडरा रही थी उसे दूर करने के लिए समय की शक्ति ने प्रकाश पुॅ्ज के रुप मे महात्मा गांधी का अवतरण हुआ।
बीसवीं शताब्दी चमत्कार युग की है इस शताब्दी में दो चमत्कारिक घटनाएँ हुई, एक अमेरिका द्वारा चन्द्र पर मानव विजय, दूसरा महात्मा गांधी की अहिंसात्मक पद्धति की प्राप्ति, उन्होंने भारत के राजकीय जीवन में तो क्रान्ति की ही उसकी अपेक्षा सम्पूर्ण विश्व के मानव को ‘मानवधर्म’ की सीख दी।
महात्मा गांधी जी का जीवन कर्म और साधना का अद्भुत समन्वय था। उन पर टालस्टाय रास्किन का बहुत प्रभाव था। उन्होंने जिन विचारों को लेकर इस देश का दिशा-निर्देश किया वे ही विचार गांधी दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हुए। गांधीदर्शन मूलतः इस देश की संस्कृति और सभ्यता से जुड़ा रहा। गांधी जी के विचार इस देश की मिट्टी से उपजे हुए विचार हैं। यही कारण है कि उनका दर्शन आज भी प्रासंगिक है, गांधी दर्शन में इस देश और उसके साहित्य को कितना प्रभावित किया यह इसी बात से जाना जा सकता है कि आज भी हमारे देश के साहित्यकार व नेता गांधी जी की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं।
साहित्य में प्रस्फुरित यह विचारधारा समता, ममता व क्षमता का समन्वय कर जनता के सम्मुख रखने में सफल रही गांधी व गांधी विचारधारा हर सांस को शाश्वत तथा सदा जीवित रखने की शक्ति अगर किसी में है तो वह साहित्य में न कि इतिहास में गांधी दर्शन नींव का वह पत्थर है जो मकान की मजबूती के लिए जमीन के अन्दर ही अपने अस्तित्व को बनाए रखता है। गांधी दर्शन सत्य-अहिंसा की नींव पर टिका दर्शन है जो परिवर्तनीय नहीं है।
‘सादा जीवन उच्च विचार’ और कथनी व करनी में अन्तर न होना, का आदर्श गांधी जी ने थोरो से ही ग्रहण किया। सविनय अवज्ञा पद्धति भी थोरो की देन है, ‘सविनय अवज्ञा सम्बन्धी कर्तव्यों पर एक बहुत ही सुन्दर गं्रथ की रचना की थी। लेकिन थोरो की शायद अहिंसा की पूर्णतया हामी नहीं थी और सम्भवतः उसने इस आंदोलन को केवल करो राजस्व सम्बन्धी अवैध कानूनों को भंग करने तक ही सीमित रखा। 5
गांधीदर्शन और छायावादोत्तर हिन्दी कविता-
गांधी जी ने विश्व को एक रेखा संर्वागपूर्ण दर्शन दिया, जो अद्भुत और अपूर्व है। उनके जीवन दर्शन में पतित पावनी गंगा सी पवित्रता, सागर सी गहनता, अकाश सी विशालता व मधुरता है। इस विशिष्ट दर्शन के दो पक्ष है- आध्यात्मिक और व्यवहारिक।
डॉ0 नगेन्द्र के अनुसार ‘‘गांधी दर्शन हमारा युग दर्शन है और इसके सर्वव्यापी प्रभाव से आधुनिक कवि अछूते नहीं रह सकते हैं। 6 वास्तव में न केवल हिन्दी अपितु अन्य भारतीय भाषाओं के काव्य पर भी गांधी दर्शन का प्रभाव पड़ा है। 7
गांधी जी और उनकी विचार धारा का प्रभाव सभी कवियों पर पड़ा है। सुमिषानन्दन पंत ने गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेकर छात्र जीवन को सदा के लिए त्याग दिया।
वह पहला ही असहयोग था, बापू के शब्दों से प्रेरित।
विदा छात्र-जीवन को दे मैं करने लगा स्वयं को शिक्षित। 8
सर्वप्रथम कविताओं में गांधीवाद के दर्शन हुए, गांधी जी के प्रभावकाल के प्रथम चरण में हिन्दी कविता का छायावाद चल रहा था। छायावादी युग में गांधीवाद को अभिव्यक्ति देने के स्थान पर कवि ह्रदयतन्षी के तारों को छेड़ रहे थे। उन कविताओं में अहिंसा, सत्याग्रह, समानता, ग्रामोहार समन्वय आदि ऐसे तत्व हैं जो छायावादी कविता में अभिव्यक्त हुए हैं और छावादोत्तर कविता में भी।
‘‘छायावाद का नवीन दृष्टिकोण गांधी जी से अत्याधिक प्रभावित था। प्रसाद ने यांत्रिक सभ्यता का ध्वंस दिखाकर आधुनिक जीवन की अति यांत्रिकता के प्रति अपना विरोध तो प्रकट किया ही है, गांधी दर्शन की मूलभित्ति श्रद्धा को भी छिन्न संस्कृति के मूलाधार के रूप में स्वीकार किया है।’’ 9
छायावादोत्तर हिन्दी कविता का विकास अनेक अन्तर्विरोधों और विसंगतियों की प्राश्ठभूमि में हुआ है। हिन्दी कविता का यह युग तीन काव्य चरणों में प्रकल्पित किया गया है-
प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और सामयिक कविता।
पंत जी ने युगान्त 1937 में छायावादी युग के अंत की घोषणा कर दी थी। पंत जी ने युगवाणी, श्रद्धा के फूल, ग्राम्या बापू आदि अनेक कविताएं प्रगतिशील कवि के रूप में लिखी! साम्यवाद ने दिया जगत को सामूहिक जनतंत्र, महान,
भवजीवन के दैन्य दुःख से किया यभुजता का परित्राण। 10
छायावादोत्तर की साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित होकर काव्य रचने वाले प्रगतिवाद कवि कहलाये, प्रयोगवादी प्रयोग करने में विश्वास करते है और अस्तित्ववादी व्यक्ति की स्वतंत्र सत्ता पर बल देते हैं छायावादोत्तर काव्य सामाजिक चेतना को लेकर, निर्मित हुआ। उस समय विषम संकट और संघर्ष जनजीवन को बल दे रहता था जो सामन्तवाद और पूँजीवााद की विभिषकाओं को कुचलकर सर्वहारा का अधिनायक स्थापित कर रहा था। प्रगतिवाद सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति को ही रचना, का उद्ेदश्य मानता है। जनता के मन को समझना उनके जीवन की बात कहना उनका लक्ष्य रहा, प्रगतिवादी कवियों में नागार्जुन, मुक्तिबोध रामविलास शर्मा पंत जी व दिनकर जी आते हैं – ये कवि अमीरी-गरीबी की खाई को पाटना चाहते थे।
स्वानों को मिलता दूध-वस्त्र भूखे बालक अकुलाते हैं। माँ की छाती से चिपक-ठिठुर जाडे़ की रात बिताते हैं। ये कवि सामाजिक, समानता लाना चाहते हैं निराला की कविता ‘कुकुरमुत्ता’ सर्वहारा व पूँजीपतियों के बीच के दृव्द को उजागर करने वाली कविता है-
अवे सुन वे गुलाब
भूल मत जो पाई खुशबू रंगो आब
खून चूसा खाद का तूने, अशिष्ट डाल पर इतराता है कैपटेलिस्ट। 11
उसी समय स्वाधीन भारत में हमें नग्न यथार्थ का साक्षात्कार हुआ। स्वाधीनता संघर्ष के काल का आवेशमय स्वपन दृश्य क्लिीन हो गया हम भन्नाकर रह गये-
मै उस आदमी को बरसो से खोज रहा हू ।
जिसने आजादी का परचम उठाकर हमसे हमारा इतिहास चुरा लिया
और नकली दस्तावेज रखकर खुद चोर दरवाजे से कहीं बाहर निकल गया। 12
अंतः हिन्दी कविता में गांधीवाद को प्रबंध और मुक्तक दोनों काव्य रूपों में अभिव्यक्ति मिली है। मैथलीशरण गुप्त (साकेत भारत भारती) दिनकर (कुरूक्षेत्र), (पंत जी-लोकायतन) आदि रचनाएं गांधी दर्शन को मुखरित करने वाली हैं सियाराम शरण गुप्त पर विशेष प्रभाव था वे तो गांधीमय हो गये थे।
माखनलाल चतुर्वेदी जी भी इसी विचारधारा के कवि हैं। युगचरण, समर्पण हिमकिरीटिनी आदि कृतियाँ गांधी दर्शन से ओत-प्रोत हैं।
सियाराम शरण गुप्त गांधी जी के राम को इन शब्दों में अभिव्यक्ति देते हैं-
नहीं दूसरा है वह कोई उसे रहीम कहो या राम।
भिन्न उसे कर सकते हैं क्या, देकर भिन्न-भिन्न कुछ नाम।।
मंदिर में भी मस्जिद में भी ज्योति उसी की फैली है।
यदि तुम देख नहीं सकते तो दृष्टि तुम्हारी मैली है। 13
सारतः दर्शन वह वस्तु विधान है जो मनुष्य को अर्न्तबाहर्य जीवन के अवलोकन विश्लेषण और संस्कार की दृष्टि प्रदान करता है। छायोवदोत्तर कवि बुद्धिवादी थे जगज्जीवन में व्याप्त निराशा, हताशा, घुटन पराजय आदि ने नाना मत-वादों को स्वीकार, अस्वीकार के लिये प्रेरित किया।
महात्मा गांधी ने जिस विचार दर्शन के प्रस्तुत किया उसका मूल प्राचीन भारतीय दर्शन में है वास्तव में गांधीवाद युग दर्शन है उनके विराट व्यक्तित्व के बारे में सोहनलाल द्विवेदी ने लिखा है-
चल पड़े जिधर दो डग मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि, गड़ गये कोटि द्वग उसी ओर।। 14
सन्दर्भ सूची –
1. सुमिषानन्दन पंत ग्रंथावली 2
2. रवीन्द्रनाथ टैगोर, जीवन साहित्य अक्टूबर-नवम्बर 1961 पृ0 422
3. रामधारी सिंह दिनकर, बापू, पृ0 22
4. बही – पृ0 33
5. श्री रामनाथ सुमन द्वारा संपादित ‘सत्याग्रह’ पृ0 110
6. डॉ0 नगेन्द्र, आधुनिक हिन्दी कविता की प्रमुख प्रर्वत्तियाँ पृ0 39
7. भारत का स्वराज्य – डॉ0 सुधीन्द्र, हिन्दी कविता में युगान्तर पृ0 20
8. सुमित्रानन्दन ग्रंथावली, चार पृ0 179 (वाणी)
9. प्रो0 सिद्धेश्वर प्रसाद, छायावादोत्तर काव्य पृ0 111
10. सुमित्रानन्दन पंत ग्रंथावली दो युगवाणी (समाजवाद-गांधीवाद) पृ0 93-94
11. सूर्यकान्त त्रिपाठी, निराला (कुकुरमुत्ता पृ0 48)
12. कुमारेन्द्र परसनाथ सिंह, आधी रात पृ0 71
13. सियाराम शरण गुप्त आत्मोत्सर्ग, पृ0 28
14. सोहन लाल द्विवेदी, गांधी अभिनन्दन ग्रंथ (युगावतार गांधी) पृ0 56

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