ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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निजता का अधिकार

डा0 मोहित मलिक
असिस्टेन्ट प्रोफेसर (राजनीति शास्त्र)
राजकीय पी0जी0 कॉलिज, खैर अलीगढ़

वर्तमान समय में भारतीय संदर्भ में निजता को कैसे एवं किन मायनों में परिभाषित किया जाए और इसकी दशा -दिशा एवं सीमाएँ कैसे निर्धारित की जाएँ, एक महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, इसी संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2017 में आधार संख्या के सम्बन्ध में निजता के अधिकार के मुद्दे पर विचार करने हेतु न्यायाधीश ’जगदीश सिंह खेहर’ की अध्यक्षता में 09 सदस्यीय संविधान पीठ गठित की। 24 अगस्त, 2017 को इस खण्डपीठ ने ’के0 एस0 पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ’ वाद में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए ’निजता के अधिकार’ को संविधान के ’अनुच्छेद 21’ के जीवन एवं स्वतन्त्रता के अधिकार’ के तहत् मूल अधिकार का अभिन्न हिस्सा माना, जिसे संविधान के ’भाग 3’ द्वारा गारण्टी प्रदान की गयी है। इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने ’एम0पी0 शर्मा वाद’ में आठ न्यायाधीशों की खण्डपीठ एवं ’खड़क सिंह वाद’ में 06 न्यायाधीशों की खण्डपीठ द्वारा दिए गए अपने पूर्व के निर्णयों को बदल दिया। ’’इतनी बड़ी पीठ इसलिए बनानी बड़ी क्योंकि पहले 06 और 08 सदस्य पीठ निजता के अधिकार को मूलाधिकार न मानने का फैसला दे चुकी।’’1
इसके अलावा आपातकाल के समय ’एडीएम जबलपुर बनाम एस0एस0 शुक्ला वाद- 1976’ (जिसे बन्दी प्रत्यक्षीकरण या हैबियस कॉपर्स वाद भी कहा जाता है) में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ’वाई0वी0 चन्द्रचूड़’ ने जिस प्रकार से राष्ट्र के लोगों के जीवन में झाँकने की खुली छूट दी थी, उसकी तुलना में मौजूदा निर्णय एक प्रगतिशील एवं उदारवादी फैसला कहा जा सकता है। ’’यह ऐतिहासिक फैसला कई बातों को पुष्ट करता है’’2 बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद निजता को समय स्थान एवं परिस्थितियों की कसौटी पर कसने का वक्त आ चुका है। ताकि निजता को विभिन्न आयामों, स्तरों एवं परिस्थितियों में सुपरिभाषित किया जा सके और उसकी सीमाएँ निर्धारित की जा सकें। सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक निजता में ’व्यक्तिगत सम्बन्धों एवं पारिवारिक जीवन की पवित्रता, गोपनीयता, दाम्पत्य जीवन, घर-परिवार एवं यौन-उन्मुखता का संरक्षण, इसमें एकान्त छोड़ देने का अधिकार व व्यक्तिगत प्राथमिकता भी शामिल है। यह अधिकार न केवल सामान्य विधि अधिकार, वैधानिक अधिकार एवं मूल अधिकार है, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति में अन्तर्निहित प्राकृतिक अधिकार भी है। निजता का मौलिक अधिकार निरपेक्ष या असीमित नहीं है, बल्कि विशेषीकृत प्रतिविधानों एवं प्रतिबन्धों के अधीन है। यह वह अधिकार है, जो राज्य एवं गैर राज्य शक्तियों के हस्तक्षेप से व्यक्ति के आन्तरिक क्षेत्र को रोकता है। एक उदारवादी एवं प्रभावी लोकतंत्र की अवधारणा में मानव जीवन के कतिपय पहलुओं में प्रवेश करने का राज्य/सरकार को अबाध अधिकार नहीं होना चाहिए और प्राधिकार के अधिकार को संवैधानिक अधिकारों से सीमित करना चाहिए, ’मूल अधिकार’ एकमात्र वे अधिकार हैं, जो राज्यों को ऐसा करने से रोकता है, जिनमें निजता का अधिकार भी शामिल है। व्यक्ति की गरिमा एवं स्वतंत्रता भारतीय संविधान का आधार है। संविधान ने जीवन और स्वतंत्रता को व्यक्ति में सन्निहित माना है, जिसे अलग नहीं किया जा सकता, निजता मानव गरिमा का मूल तत्व है।
न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में सरकार के उस तर्क का भी समर्थन किया गया है कि डिजिटल माध्यम कल्याणकारी राज्य में बेहतर, पारदर्शी एवं गुणवत्तापूर्ण शासन स्थापित करने का महत्वपूर्ण उपकरण है, इस हेतु व्यक्ति, समाज तथा उसे जुड़ी चीजों से सम्बन्धित आँकड़ों का संग्रहण उचित ही है, समग्र व समावेशी विकास एवं विभिन्न समुदायों के लिए सरकार द्वारा चलायी जा रही विभिन्न कल्याणकारी सामाजिक-आर्थिक उन्नयन की योजनाओं/राष्ट्रीय कार्यक्रमों के उचित निर्धारण, संचालन एवं प्रबन्धन के लिए सरकार द्वारा विभिन्न स्त्रोतों से व्यक्ति विशेष के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ जुटायी जाती हैं, मगर इन आँकड़ों के संग्रहण एवं संरक्षण के लिए उचित मापदण्डों का विकास किया जाना भी सरकार के लिए जरूरी हैं।
न्यायाधीश एस0ए0 बोबड़े के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 28 (3) से स्पष्ट है कि राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संगठनों से इतर शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार छात्रों को है, ऐसे छात्रों को बिना उनके अभिभावकों की अनुमति से शैक्षणिक संस्था के किसी धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जाहिर तौर पर निजता का अधिकार सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार का अभिन्न अंग है। इस अधिकार में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों विषय शामिल है, नकारात्मक विषय नागरिक से व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं स्वाभाविक अधिकारों में राज्य की घुसपैठ को रोकता है, वहीं इसका सकारात्मक विषय व्यक्ति की निजता को सुरक्षित रखने के लिए राज्य को सभी आवश्यक उपाय करने का दायित्व देता है।
आज के बदलते सूचना तथा संचार प्रौधोगिकी के युग में प्रत्येक व्यक्ति की निजता को दुरूपयोग होने से बचाने के लिए निजता का अधिकार अपरिहार्य बन गया है।’’निसन्देह नई तकनीकी का सहारा लेकर सोशल मीडिया कम्पनियों को लोगों को अपनी बात कहने और दूसरे से सम्पर्क-संवाद का सहज-सरल माध्यम उपलब्ध कराया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे लोगों की निजता में सेंद लगाने के साथ किसी देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को छल-छदम से प्रभावित करने का काम करें। यदि सोशल मीडिया कम्पनियों पर सही लगाम नहीं लगी और उनके उपभोगताओं निज जानकारी का राजनीतिक इश्तेमाल नहीं रोका गया तो लोकतंत्र के समक्ष एक नया खतरा खड़ा हो सकता है।’’3
निजता के अधिकार का मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिलने पर व्यक्ति को राज्य अथवा किसी अन्य व्यक्ति, संस्था या संगठन के द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेप से बचा सकता है। अतः अनुच्छेद 14, 19 एवं 21 के अनुसार इसे संवैधानिक मान्यता दी गई। निजता का अधिकार व्यक्ति की वैयक्तिक स्वतंत्रता, सुरक्षा, सम्मान तथा गरिमा को बनाए रखने एवं उसे विशिष्टता प्रदान करने में सहयोगी है। आधार कार्ड में बायोमीट्रिक आँकड़ों एवं अन्य निजी जानकारियों की सुरक्षा और इसी प्रकार के निजी जानकारी वाले दस्तावेजों को सुरक्षा प्रदान किए जाने के लिए निजता के अधिकार को कानूनी व संवैधानिक मान्यता देनी जरूरी है वरना।’’प्राईवेसी पर शीर्ष अदालत का फैसला कानून के जंजाल में एक और रिसर्च पैपर बनकर रह जायेगा।’’4 निजता का अधिकार लोकतंत्र की शक्ति एवं गरिमा को बढ़ाने में सहायक है। ’’वास्तव में मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता को अक्षुण रखना एक बड़ी चुनौती हैं।’’5
निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिलने पर सरकारी क्रियाकलापों तथा कार्यक्रमों व योजनाओं के उचित क्रियान्वयन एवं प्रबन्धन पर इसका प्रभाव पड़ सकता है, उक्त परिप्रेक्ष्य में कई बार व्यक्ति की निजी जानकारी को एकत्र करना जरूरी हो जाता है मगर कानूनी मान्यता मिलने पर कोई भी व्यक्ति निजता के अधिकार का हवाला देते हुए अपनी निजी जानकारी को देन से मुकर सकता हैं। विशेषकर संवेदनशील एवं व्यापक जनहित या राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों पर उचित निर्णयन एवं नियमन के समय सरकार को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
यदि निजता का मौलिक अधिकार के रूप में प्राथमिकता प्रदान की जाती है, तो यह बार-बार कानूनी अधिकारों को चुनौती देने का विकल्प प्रदान करेगा। जब तक निजता को सही ढंग से परिभाषित, निरूपित एवं व्याख्यायित नहीं किया जाता और उसकी सीमाएँ तय नहीं की जाती, तब तक उसे मौलिक अधिकार के अन्तर्गत समायोजित करना कई अन्य विसंगतियों को जन्म दे सकता है। संविधान के तहत मान्यता प्राप्त मौलिक अधिकार स्वयं में सम्पूर्ण नहीं माने गए हैं, और किन्हीं खास परिस्थितियों में इन्हें प्रतिबन्धित किया जा सकता है, निजता का अधिकार भी इसी दायरे में आता है। मगर इसके सन्दर्भ में नियन्त्रण या प्रतिबन्ध से सम्बन्धित खास परिस्थितियाँ या सीमाएँ कैसे तय की जाएँगी, जबकि इसे अभी भारतीय सन्दर्भ में सहीं ढंग से परिभाषित ही नहीं किया गया है।
सरकार यह भी मानती है कि जब आम नागरिक बैंक में स्वेच्छा से अपनी निजी जानकारी को दे सकता है, तो सरकार को क्यों नहीं? सरकार का यह भी तर्क है कि निजता को कानूनी वैधता से सूचना के अधिकार पर भी प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि कई बार व्यापक जनहित एवं राष्ट्रहित में सरकार को सूचना के अधिकार के तहत बेहद निजी सूचनाओं को भी एकत्रित प्रकाशित या प्रसारित करना पड़ता है, जैसे आतंकवाद, भ्रष्टाचार तथा देशद्रोह जैसे संगीन मामलों में संलिप्त व्यक्तियों या संदिग्धों की अत्यन्त गोपनीय या निजी जानकारियों का संग्रहण एवं आदान-प्रदान।
सरकार का मानना है कि जब देश की अधिकांश आबादी आधार परियोजना के अन्तर्गत स्वेच्छा से अपनी निजी जानकारी देने को तैयार है, तो फिर निजता का हवाला देकर इस पर रोक लगाना क्या देशहित में उचित होगा ? अब जबकि सरकार स्वस्थ, पारदर्शी एवं प्रगतिशील शासन-प्रशासन प्रणाली को आगे बढाने की दिशा में प्रभावी ढंग से आगे बढ़ ही चुकी है। ऐसे में इस परियोजना को विराम देना सम्भव नहीं है। ’’प्रत्येक मनुष्य अद्वितीय है, उस जैसा दूसरा कोई नहीं इसलिए प्रत्येक की निजता की गरिमा है, लेकिन निजता असीम नहीं। हमारी निजता का विस्तार दूसरे की निजता की सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकता।’’6 ’’निजता को मौलिक अधिकार होना चाहिए, लेकिन इसे तर्कसंगत पाबन्दी के अधीन होना चाहिए।’’7
दुनिया का कोई भी नीति-नियामक ऐसा नहीं है, जो आदर्श रूप में पूर्णतः लाभदायक या हानिकारक हो और जिसमें समयानुरूप फेरबदल न किया जा सके, सही नीति नियमन, नियोजन एवं क्रियान्वयन से किसी भी नीति नियामक को अधिकतम उपयोगी, उपादेय एवं जबावदेय बनाया जा सकता है, निजता के अधिकार को लागू करने से पूर्व अगर सरकार कुछ अहम बातों का ध्यान रखती है तो इसे अवश्य अधिक जनोपयोगी बनाया जा सकता है। जैसे- भारतीय सन्दर्भ में निजता/गोपनीयता को सही ढंग से परिभाषित करना। विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों के अनुरूप निजता के लिए प्रभावी मानक एवं सीमाएँ तय करना। निजता के अधिकार के अनुरूप सूचना के अधिकार, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, आधार अधिनियम सहित तमाम अन्य सम्बद्ध नीति-नियामकों को प्रभावी बनाना, ताकि ये सभी एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक बन सके।
सन्दर्भ –
1. चिराग गुप्ता, निजता के मूल अधिकार बनने का मतलब, दैनिक जागरण, मेरठ, 25 अगस्त, 2017
2.. अश्विनी कुमार, निजता का अधिकार की महत्ता, दैनिक जागरण, मेरठ, 18 सितम्बर, 2017
3. संजय गुप्ता, निजता के समक्ष नया खतरा, हिन्दुस्तान, मेरठ, 25 अगस्त 2017
4. चिराग गुप्ता, निजता के मूल अधिकार बनने का मतलब, दैनिक जागरण,मेरठ 25 मार्च,2017
5. सम्पादकीय, निजता मौलिक अधिकार, अमर उजाला, मेरठ, 25 अगस्त, 2017
6. हृदय नारायण दीक्षित, निजता के अधिकार का दायरा, दैनिक जागरण, मेरठ, 20 अगस्त, 2017
7. रविशंकर प्रसाद, केन्द्रीय कानून मंत्री, निजता का अधिकार सम्पूर्ण नहीं, तर्कसंगत पाबंदी संभव, हिन्दुस्तान, मेरठ, 25 अगस्त 2017

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