ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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वैश्विक आम्बड्समैन और लोकपाल

-डॉ0 विजय प्रताप मल्ल
एसो0 प्रो0 (राज0शा0)
जवाहर लाल नेहरू पी0जी0 कालेज, बाराबंकी

वर्ष 2012 मंे भारत ने इसकी मांग को लेकर अन्ना हजारे के नेतृत्व में शायद आजादी के बाद का सबसे बड़ा आन्देलन देखा। पहली बार जनसम्प्रभुता ने अपनी शक्ति दिखायी और राजनैतिक सम्प्रभु को झकझोर दिया। यह ऐसा आन्दोलन था जिसने सरकार के पास लोकपाल विधेयक पास करने के अतिरिक्त अन्य विकल्प सीमित कर दिये हैं। शायद यह इस आन्दोलन का ही परिणाम था कि सरकार ने हड़बड़ी में पहले तो सिविल सोसायटी को अपने सुझावों के साथ आमंत्रित किया। उनके साथ कई तरह के लोकपाल के मांडलों पर चर्चा की। कई दौर की वार्ता के बाद सरकार ने जो लोकपाल का माडल तैयार किया है उसको लेकर भी असहमति दिख रही है। वर्तमान ड्राट भी जन आंकाक्षा को पूरा करने, सरकार तथा उसके अधीनस्थें पर प्रभावी अंकुश लगाने मेें असफल दिख रहा है। वर्तमान ड्राट में सी0बी0आई0 की स्वतंत्रता और उसकी निष्पक्षता को लेकर कई प्रश्न अनसुलझे रह गये हैं।
भारत में लोकपाल का प्रश्न काफी पुराना है। लम्बे समय से इसकी मांग की जा रही है। लगभग 4 दशक से अधिक समय गुजर चुका परन्तु अभी तक देश को मजबूत, निष्पक्ष एवं स्वतंत्र लोकपाल नहीं मिल पाया है। 1963 में तत्कालीन लोकसभा के निद्रलीय सदस्य लक्ष्मीमल सिंघवी ने एक प्रस्ताव पेश कर ऐसी संस्था की मांग की थी। उन्होंने ओम्बड्समैन को पीपुल्स प्रोसीक्यूटर के नाम से सम्बोधित किया। 1965 में भी एक प्रस्ताव के द्वारा ऐसे ही पदाधिकारियों की मांग की गई जो जन शिकायतें दूर करें। 1967 में भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ओम्बड्समैन की स्थापना पर बल दिया। इसी सिफारिश को आधार बनाकर 1968 में इसे संसद में प्रस्तावित किया जो बाद में संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया। इसी संयुक्त समिति ने ही 1969 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और इसे लोकपाल और भारत में लोकपालः स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहम तलाश लोकायुक्त कहा। यह प्रस्ताव लोकसभा में पास भी हो गया परन्तु राजनीतिक पैंतरेबाजी के कारण यह राज्यसभा में पास नहीं हो पाया। बाद में 1971 में नया बिल लोकसभा में पेश किया गया। दुर्भाग्य से यहां भी पास नहीं हो पाया। मार्च 1977 में जनतापार्टी ने लोकसभा में इस आशय का बिल पेश किया। इसमें पहली बार प्रधानमंत्री तथा लोकपाल के दायरे में लाया गया और जांच के लिए स्वतंत्र प्रशासकीय ढांचा प्रदान किया गया। उसकी नियुक्ति के लिये मुख्य न्यायधीश, राज्यसभा के सभापति तथा लोकपाल के परामर्श पर राष्ट्रपति द्वारा किये जाने की व्यवस्था की गई। उसे स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाये रखने की व्यवस्था की गई। दुर्भाग्यवश राजनीतिक कारणों से यह प्रस्ताव भी पास नहीं हो पाया। 26 अगस्त 1985 को पुनः प्रस्तावित किया गया। राजीव गांधी की तत्कालीन सरकार ने इस निधेयक की पुनः समीक्षा की और नये विधेयक को लाने के वादे के साथ इसको वापस ले लिया। वी0पी0 सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने दिनांक 1989 में लोकसभा में नया लोकपाल विधेयक पेश किया। इसकी मुख्य बात तीन सदस्यीय लोकपाल कार्यालय का निर्माण था। इसमें भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा गया था। हाल में 2012 में जनता के बढ़ते दबाव के कारण सरकार ने हड़बड़ी में लोकपाल विधेयक पेश किया जिसमें जन आंकाक्षाओं की अनदेखी हुई।
भारत में लोकपाल (ओम्बड्समैन) को लेकर लम्बे समय से बहच चल रही है। भारत का राजनीतिक नेतृत्व प्रारम्भ से ही चाहे 1963 में पेश बिल, 1965 का बिल, 1968 में पेश बिल, 1971 का बिल, 1977 का प्रस्तावित बिल, 1968 का बिल, 1989 का बिल तथा 2012 का प्रस्तावित लोकपाल बिल सभी में इसे पास कराने में असफल रहा है। यह विभिन्न समय में विभिन्न राजनीतिक दलों के तिकड़म (न पास होने देने) का शिकार होता है। इस लम्बे लोकपाल यात्रा में सभी दलों ने समय-समय पर इसके मार्ग में बाधायें उत्पन्न की हैं। लगभग सभी दल सार्वजनिक बहसों में, भाषणों में ऐसे लोकपाल को लेकर अपने संकल्प को दोहराते हैं परन्तु सदन में वे इसे टालने, रोकने का प्रयास करते दिखते हैं। यह शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व का दोहरा चरित्र है कि विगत 50 वर्षों से लोकपाल बिल पास नहीं हो पाया है।
ओम्बड्समैन का उद्भव-
चीन में किन राजवंश में 221 बी0सी0 में ऐसी संस्था के संकेत मिलते हैं। कोरिया में जोसान राजवंश में राजा सीधे एक अधिकारी को नियुक्त करता था जो अन्य सरकारी अधिकारियों पर नजर रख सके। इसके अतिरिक्त रोमन साम्राज्य एवं टर्की में इसके संकेत मिलते हैं।
आधुनिक समय में ओम्बड्समैन स्कैण्डनेवियन देशों की संस्था है जिसका उद्भव स्वीडन में 1809 में हुआ। स्वीडन के बाद फिनलैण्ड ने 1919 में, डेनमार्क ने 1953 ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल में तथा नार्वे ने 1963 में इसे स्वीकार कर लिया था। न्यूजीलैण्ड जो भारत ही की तरह एक संसदीय शासन वाला देश है उसने इसे 1962 में तथा इंग्लैण्ड ने इसे 1966 में स्वीकार कर लिया था। स्वीडन में तो इसे ओम्बड्समैन कहते हैं परन्तु विभिन्न देशों में विभिन्न नामों से जाना जाता हैं। दुनिया के ज्यादातर संसदीय शासन में इसे स्वीकारा गया है। आज दुनिया में 77 देशों में यह संस्था स्थापित हो गई है। यह तथ्य भी स्मरणीय है कि संघीय व्यवस्था वाले देशों में यह लोकप्रिय नहीं हुआ है। ऐतिहासिक रूप से इन देशों में ओम्बड्समैन के उद्भव का मुख्य कारण सरकारी एवं प्रशासनिक मशीनरी के दुरूपयोग को रोकना था। आधुनिक समय में लोकतांत्रिक देशों में प्रशासनिक कार्यों का दायरा समय के साथ व्यापक हो गया है अतः ऐसे में सरकारी एवं प्रशासनिक शक्तियों का दुरूपयोग भी बढ़ा है। कतिपय इस दुरूपयोग को रोकने के लिये इस संस्था का जन्म हुआ। लोक कल्याणकारी राज्य के उदय ने राज्य का कार्य क्षेत्र व्यापक किया है। इसने सरकारों के विवेकाधिकारों को विस्तार दिया है। आज राज्य उन सभी कार्यों को कर रहा है जो पूर्व में व्यक्ति स्वयं किसी बंधन के बिना कर रहा था। प्रशासन की बढ़ती शक्तियों ने इनके दुरूपयोग की संभावना बढ़ा दी है। आधुनिक प्रशासन में ऐसे भी संकेत मिले है जब प्रशासनिक अधिकारियों ने नागरिक हितों की अनदेखी सार्वजनिक हित के नाम पर की है। कतिपय यही कारण है कि भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में यह गंभीरता के साथ यह महसूस किया जा रहा है कि प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग ठीक ढं़ग से हो तथा प्रशासन एवं नागरिक अधिकारों के बीच में संतुलन बनाया जाय। प्रशासनिक अधिकारियों को जितनी अधिक शक्तियाँ दी जायेगी उतनी ही नागरिक अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता महसूस की जाती है। इस प्रकार ओम्बड्समैन एक ऐसा मंत्र है जो प्रशासनिक मनमानेपन पर रोक लगाता है, नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है, प्रशासनिक शक्तियों के दुरूपयोग रोकने के लिये मशीनरी उपलब्ध कराता है। इसी उद्देश्य से 1809 में स्वीडन की संसद रिक्सडग ;त्पोकंहद्ध ने विधेयक पास कर ओम्बड्समैन को जन्म दिया। इसका मूल उद्देश्य ऐसी संस्था को जन्म देना था जो सरकारी मनमानी पर रोक लगा सके। इसको सरकार के नियंत्रण से मुक्त रखा गया। 1958 में नार्वे की सरकार ने प्रशासनिक प्रक्रिया पर विधिशास्त्रियों, वकीलों, बुद्धिजीवियों तथा श्रमिक संघों के प्रतिनिधियों का आयोग गठित किया। इस आयोग ने सरकारी एवं प्रशासनिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया और प्रशासनिक शक्तियों का अध्ययन किया। इसी आयोग ने वर्तमान व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी तथा मजबूत बनाने के लिये ओम्बड्समैन की सिफारिश की।
पूर्व स्वीडिश ओम्बड्समैन के शब्दों में:-
भारत में लोकपाल: स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहम तलाश 150 वर्षों के अनुभव ने यह सिद्ध किया है कि सरकार से स्वतंत्रा एक एजेन्सी की सदैव आवश्यकता है जो नागरिक अधिकारों की रक्षा कर सके। यह संस्था सैकड़ों वर्ष गुजर जाने के बाद भी आज प्रासंगिक है। यह नागरिक हितों की रक्षा के लिये वर्तमान बदलते दौर में आवश्यक है। नयी परिस्थितियाँ नये बदलाव को स्वीकार करती हैं।
दुनिया के अनेक देशों में ओम्बड्समैन सफलतापूर्वक काम कर रहा है। इसमें से कुछ प्रमुख देशों में ओम्बड्समैन की नियुक्ति एवं कार्य इस प्रकार है:-
स्वीडन-
स्पीडन का ओम्बड्समैन को वैधानिक रूप से जस्टिस ओम्बड्समैन कहा जाता है। स्पीडन में ओम्बड्समैन का चुनाव एक 48 सदस्यीय समिति के द्वारा किया जाता है जिसमें दोनों सदनों से चौबीस-चौबीस सदस्य होते हैं। यह समिति मतपत्र के द्वारा चुनाव करती है। ओम्बड्समैन का चुनाव राजनीतिक न होने पाय इससे बचने के लिये छोटे-2 राजनीतिक दल संगठित हो ओम्बड्समैन का चयन करते हैं। यह प्रक्रिया इस प्रकार की है जिससे यह सुनिश्चित हो कि ओम्बड्समैन किसी समूह का नहीं वरन सम्पूर्ण संसद का प्रतिनिधित्व करता है। उसकी सहायता के लिये एक उप ओम्बड्समैन भी उसी समिति द्वारा चुना जाता है। पद खाली होने पर नई नियुक्ति होने तक वह सम्पूूर्ण कार्य करता है। स्वीडन ये ओम्बड्समैन का कार्यकाल चार वर्ष तय किया गया है। इसके साथ उसके पुर्न निर्वाचन की व्यवस्था रखी गई है। वह संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। वह संसद में अपना वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है। वर्ष भर में की गई कार्यवाहियों का विवरण भी प्रस्तुत करता है। प्रत्येक वर्ष एक संसदीय समिति उसके प्रतिवेदन एवं कार्यों का विश्लेषण करती है। यदि समिति उसके कार्यों से सन्तुष्ट नहीं होती और उसे लगता है कि वह संसद से कर सकती है। स्वीडन के इतिहास में ओम्बड्समैन की पदच्युति का उदाहरण नहीं मिलता है।
स्वीडन में ओम्बड्समैन को सरकार एवं संसद से स्वतंत्र रखा गया है। उसका वेतन वार्षिक बजट में पास होता है। उसमें कार्यावधि के दौरान कटौती नहीं की जा सकती। उसे राजनैतिक एवं प्रशासनिक दबाव से स्वतंत्र रखा गया है। उसे सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश के बराबर वेतन मिलता है।
ओम्बड्समैन की योग्यता के सम्बन्ध में संविधान में यह उल्लिखित है कि इस पद पर नियुक्ति होने वाला व्यक्ति उच्चकोटि का विधि का जानकार होना चाहिए। कतिपय यही कारण है कि ख्याति प्राप्त एवं अनुभवी विधिवेत्ताओं, की नियुक्ति की ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल जाती है। इसके अतिरिक्त उसकी सहायता के लिये एक सहयोगी तथा छः विधिवेत्ता एवं कार्यालय सहायक भी नियुक्त किये जाते हैं।
डेनमार्क का ओम्बड्समैन-
डेनमार्क में ओम्बड्समैन को संदीय कमिश्नर कहा जाता है। उसका चुनाव डेनमार्क की संसद प्रत्येक आमचुनाव के बाद करती है। वहाँ पर भी स्वीडन की ही तरह पुर्न निर्वाचन पर किसी प्रकार की रोक नहीं है। वह संसद के विश्वास पर्यन्त अपने पद पर रहता है। विश्वास खत्म होते ही उसे पद छोड़ना पड़ता है। संसद किसी नये व्यक्ति को उसके स्थान पर चुन सकती है। संसद का सदस्य ओम्बड्समैन के लिये अर्ह नहीं होता, यही कारण है कि वहाँ सक्रिया राजनीति वाला व्यक्ति ओम्बड्समैन नहीं बन पाता है। वह राजनीतिक मामलों में अपनी राय नहीं देता। वह संसदीय समितियों के अतिरिक्त किसी निजी संस्था या सरकारी कार्यालय, का सदस्य नहीं हो सकता सामान्यतः इस पद पर विधि विशेषज्ञ नियुक्त किये जाते हैं। इनका वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश के बराबर वेतन मिलता है।
डेनमार्क में ओम्बड्समैन संसदीय समिति और संसद के बीच कड़ी के रूप में काम करता है। ओम्बड्समैन अपनी रिपोर्ट उसे सौंपता है। वह अपने सभी कार्यों को लेकर संसद से स्वतंत्र रहता है। संसद भी उसे किसी मामले की जांच सौप सकती है। वह अपनी रिपोर्ट संसद में रखता है जिसे वह स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। उसके खर्चों के लिये बजट में धनराशि स्वीकृत किया जाता है। उसे अपने कार्यालय में कर्मचारियों की नियुक्ति तथा पदच्युत करने का अधिकार है। इस प्रकार उसको संसद से स्वतंत्र निष्पक्ष रूप से कार्य करने का अवसर दिया गया है।
नार्वे-
नार्वे में ओम्बड्समैन चार वर्ष के लिये संसद के द्वारा चुना जाता है। उसकी मृत्यु, पदच्युति, त्यागपत्र की दशा में बचे हुए समय के लिये संसद नये ओम्बड्समैन का चुनाव करती है। अस्थायी रूप से बीमारी या अन्य कारण से उसके कार्य न करने की दशामें उप ओम्बड्समैन सभी दायित्वों का निर्वहन करता हैै। इस पद पर चुने जाने के लिये सम्बन्धित व्यक्ति के पास सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश जैसी योग्यता होनी चाहिए। वहाँ पर नियुक्त पहला ओम्बड्समैन 1963 में नियुक्त हुआ था जो कि सर्वोच्च न्यायालय का न्यायधीश था। डेनमार्क की ही तरह नार्वे की ओम्बड्समैन ने संसद की अनुमति के बिना किसी पद पर नियुक्त नहीं हो सकता है। उसका वेतन पेंशन संसद के द्वारा निश्चित होती है।
भारत में लोकपाल: स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहम तलाश ओम्बड्समैन अधिनियम में उसे स्वतंत्र रखने का प्रयास किया गया है। उसे संसद के नियंत्रण से मुक्त रखा गया है। इसके बावजूद कुछ प्रावधान उसकी स्वतंत्रता को बाधित करते हैं। इन प्रावधानों में संसद के 2/3 बहुमत से उसकी पदच्युति का प्रावधान तथा संसद द्वारा सामान्य नियमों का निर्देशन जिससे उसके कार्यालय का संचालन होता है। वह अपनी वार्षिक रिपोर्ट संसद में रखता है जिस पर संसद में चर्चा होती है।
नार्वे में ओम्बड्समैन को लेकर एक रोचक सलाह दी गई थी कि विपक्ष के द्वारा ही चुना जायेगा। बाद में इस सुझाव को सरकार ने खारिज कर दिया। ओम्बड्समैन के सम्पूर्ण कार्यालय (कर्मचारी) उसकी सलाह पर संसदीय समिति के द्वारा नियुक्त किये जाते है। उनका वेतन भी संसदीय कर्मचारियों के भाँति निश्चित रहता है।
फिनलैण्ड-
फिनलैण्ड में ओम्बड्समैन संसद (डायट) के द्वारा चार वर्ष के लिये चुना जाता है। यहाँ यह महत्वूपर्ण है कि वह संसद के द्वारा चुना जाता है परन्तु संसद द्वारा उसे पद से हटाया नहीं जा सकता। सामान्यतः वहाँ न्यायविदों को इस पद पर चुना जाता है। यदि संसद उसके कार्यों से संतुष्ट नहीं होती तो वह उसे पुनः नहीं चुनती। वह संसद में अपना वार्षिक प्रतिवेदन पेश करता है।
फिनलैण्ड में ओम्बड्समैन अपने कार्यकाल के दौरान कोई लाभ का पद धारण नहीं कर सकता। वह अपने कार्यालय पर पूरा नियंत्रण रखता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पदच्युत करता है। फिनलैण्ड में ओम्बड्समैन एक शक्तिशाली पदाधिकारी है। उसका प्रशासन में व्यापक प्रभाव है। उसका वेतन वरिष्ठ न्यायधीशों के समान होता है।
न्यूजीलैण्ड-
न्यूजीलैण्ड में ओम्बड्समैन की नियुक्ति गवर्नर जनरल के द्वारा प्रतिनिधि सभा की संस्तुति पर किया जाता है। ओम्बड्समैन की मृत्यु, सेवानिवृति, त्यागपत्र अथवा पदच्युति की दशा में यदि संसद का सत्र नहीं चल रहा है तो गवर्नर जनरल नया ओम्बड्समैन नियुक्त कर सकता है। इस नियुक्ति की पुष्ठि सदन से सत्र प्रारम्भ होने के दो माह के अंदर कराना होता है। वह संसद द्वारा प्रथम, द्वितीय सत्र में नियुक्त किया जाता है अतः ओम्बड्समैन के पास अधिकतम तीन वर्ष तथा अधिकतम चार वर्ष का कार्यकाल होता है। ओम्बड्समैन के समय प्रधानमंत्री विपक्ष के साथ सलाह कर नियुक्त करता है। यदि वह विपक्ष के विश्वास को तोड़ता है तो उसकी विश्वनीयता प्रश्न उठता है। यदि वह सरकार का विश्वास खोता है तो सरकार उसे ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल सहयोग नहीं करती है। ओम्बड्समैन संसद का सदस्य नहीं होता और न ही वह पद पर रखते हुए कोई लाभ का पद धारण कर सकता है। वह गवर्नर जनरल के द्वारा पदच्युत किया जा सकता है यदि वह अयोग्य, दीवालिया, कदाचार का दोषी प्रतिनिधि सभा में पाया जाता है। वह मूल रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होता है न कि गवर्नर जनरल के प्रति। उसको संचित निधि से वेतन प्राप्त होता है। वह पद धारण करने से पहले पद और गोपनीयता की शपथ लेता है। उसे यह शपथ प्रतिनिधि सभा का स्पीकर दिलाता है। वह स्वयं अपने कर्मचारियों की नियुक्ति करता है। कर्मचारियों की संख्या प्रधानमंत्री तय करता है जबकि उनका-उनका वेतन एवं भत्ता वित्तमंत्री तय करता है।
ब्रिटेन-
ब्रिटेन में संसदीय शासन का जन्म हुआ। वहाँ पर 1966 से ओम्बड्समैन कार्यरत है। ब्रिटेन में ओम्बड्समैन का प्रस्ताव सर्वप्रथम जस्टिस द्वारा किया गया। यह पार्लियामेंट कमिश्नर का स्थायी कार्यालय होता है। ब्रिटिश सरकार ने इस तरह का प्रस्ताव 12 अक्टूबर 1965 को भेजा था। ब्रिटेन में संसदीय शासन होने के कारण संसद ही परम्परागत रूप से वह स्थान था जहाँ नागरिक समस्याओं का निराकरण न बने, इसका ध्यान रखा गया। अतः 1966 में विधेयक के पास होने की प्रत्याशा में कन्ट्रोलर एण्ड आडीटर जनरल को पहला ओम्बड्समैन नियुक्त कर दिया। 1967 में पार्लियामेन्ट कमिश्नर एक्ट 1967 पास हो गया, जिसके द्वारा ओम्बड्समैन का वैधानिक नाम पालिर्यामेन्ट कमिश्नर फार एडमिनिट्रेशन हो गया। इस कानून में व्यवस्था की गई की इसकी नियुक्ति क्राउन द्वारा होगी। 65 वर्ष की आयु में उसे पद छोड़ना पड़ता है। दोनों सदनों की स्वीकृति से क्राउन द्वारा पद से हटाया जा सकता है। वह कामनसभा का सदस्य नहीं बन सकता। वह पदेन ट्रिव्यूनल का सदस्य होता है। उसका वेतन कामनसभा के द्वारा तय किया जाता है उसका वेतन, भत्ते, पेंशन आदि संचित निधि से दिये जाते हैं। कमिश्नर ही अपने कार्यालय के सदस्यों की नियुक्ति करता है। कमिश्नर स्वयं किसी को अपने अधिकार प्रदान कर सकता है। वह संसद में वार्षिक प्रतिवेदन पेश करता है।
स्कैण्डनेवियन (उत्तर पश्चिम यूरोप) देशों में ओम्बड्समैन के कार्य-
ओम्बड्समैन मूलतः स्कैडलेवियन (यूरोप) देशों की संस्था है। इसका प्रारम्भ स्वीडन में हुआ और उसके बाद फिनलैण्ड, नार्वे, डेनमार्क आदि देशों में फैला। आज यह दुनिया में लगभग 77 देशों में स्थापित है। मूलतः ओम्बड्समैन सरकारी एजेन्सियों भारत में लोकपाल: स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहंम तलाश अधिकारियों पर नियंत्रण रखने वाली नागरिक अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था है। कुछ प्रमुख देशों में ओम्बड्समैन के कार्य इस प्रकार हैं-
स्वीडन में ओम्बड्समैन के कार्य-
सामान्य शब्दों में कहे तो ओम्बड्समैन का कार्य नागरिक अधिकारों की रक्षा करना है। स्वीडन में इसका जन्म इसी उद्देश्य से हुआ। इसका मुख्य कार्य अधिकारियों एवं न्यायाधीशों के द्वारा कानून का पालन सुनिश्चित कराना था। इसका मूल उद्देश्य सरकार को इच्छा के अनुरूप कानून की अनदेखी को रोकना था। इस प्रकार ओम्बड्समैन ऐसा अधिकार है जो सरकार से स्वतंत्र संसद के विश्वास द्वारा नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है। उसके पास उन लोगों के विरूद्ध न्यायालय में कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है जो अपने अधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में भाई भतीजावाद, पक्षपात आदि करते है। उसका अधिकार क्षेत्र न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा स्थानीय निकायों के ऊपर होता है। वह मुख्य रूप से निर्णय करने वाले व्यक्तियों पर ध्यान केन्द्रित करता है। उसके अधिकार क्षेत्र से केवल सरकारी निगम, और मंत्री मुक्त होते हैं।
स्वीडन के कानून में सरकारी निगम को सरकार का अंग नहीं, वहीं माना जाता है। वहाँ पर मंत्री की संवैधानिक स्थिति संसदीय व्यवस्था में मंत्री की स्थिति से अलग होती है। स्वीडन में मंत्री की निर्णय निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती। वे केवल सलाहकार की भूमिका में होते हैं। राजा स्वयं निर्णय लेता है। मंत्री प्रशासकीय निर्णयों के लिये जिम्मेदार नहीं होता है। सभी मंत्री संसद के प्रति उत्तरदायी होते है। संसद उन पर कठोर नियंत्रण रखती है। संसद मंत्री के प्रति अविश्वास व्यक्त कर सकती है। वह उसकी अयोग्यता के आधार पर उसके विरूद्ध विशेष अदालत में मामला दर्ज करा सकती है। जिसमें ओम्बड्समैन विशेष प्रासीक्यूटर होता है। मंत्री को सीधे तौर पर ओम्बड्समैन के अधीन नहीं लाया जाता क्योंकि इससे राजनीतिक गतिरोध एवं अविश्वास पनपेगा। वहाँ पपर मंत्री व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से नौकरशाही के कार्यों के प्रति उत्तरदायी नहीं होते। स्वीडन का प्रशासन बहुत से मामलों में न्यायालय की ही तरह स्वायत्त है। सेना तथा सेना अधिकारियों को भी ओम्बड्समैन के नियंत्रण से मुक्त रखा गया है। वहाँ सेना सम्बन्धी मामलों के लिये एक अलग स्वतंत्र कमिश्नर की व्यवस्था की गई है जिसे सेना मामलों का कमिश्नर कहा जाता है।
स्वीडन में ओम्बड्समैन को न्यायपालिका से सम्बन्धित मामलों को देखने का भी अधिकार प्राप्त है। ओम्बड्समैन गंभीर मामलों में दखल दे सकता है। स्वीडन में ओम्बड्समैन का न्यायिक क्षेत्र की यह शक्ति कई बार गम्भीर बहस को जन्म दे देती ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल है कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं स्वायन्तता में हस्तक्षेप है। व्यवहार में न्यायपालिका और न्यायधीश की स्वतंत्रता इससे बाधित नहीं होती क्योंकि ओम्बड्समैन अपनी गतिविधियों को अपने कार्यालय में ही अंजाम देता है। इसके बावजूद यदि न्यायाधीश अपने दायित्वों का निर्वहन निष्पक्षापूर्वक नहीं करता है तब स्वतंत्रता के नाम पर उसे मनमानी करने की छूट नहीं दी जा सकती। अतीत में न्यायधीशों के द्वारा मनमानी करने तथा पक्षपात करने के आरोप में जुर्माना किया गया है। एक मामले में अपने मित्र को गैरकानूनी मदद देने के मामले में भी जुर्माना किया गया है। कुछ मामलों में न्यायधीशों को मुकदमें में देरी करने के कारण जुर्माना किया गया है। यहाँ पर यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि ओम्बड्समैन सीधे दखल नहीं करता वरन वह केवल सम्बन्धी न्यायाधीश के विरूद्ध वाद (मुकदमा) प्रारम्भ करता है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाये रखता है।
स्थानीय स्वशासन में ओम्बड्समैन की भूमिका नहीं रहती। वह स्थानीय स्वशासन में दखल नहीं देता है। स्वीडन की व्यवस्था में यह प्रावधान सोच समझकर किया गया है।
इस प्रकार स्वीडन में ओम्बड्समैन का मुख्य कार्य दायित्वों की अनदेखी, अवैधानिक रूप से किये गये कार्यों को रोकना गलत प्रशासन पर रोक लगाना होता है। वह सामान्यतः प्रशासनिक मामलों में दखल नहीं देता। वह सुपर प्रशासक की भूमिका का निवर्हन नहीं करता है। उसके सामने आये किसी मामले में वह प्रायः उसे खारिज करने, बदलने का कार्य नहीं करता है। वह केवल सम्बन्धित नौकरशाह के कार्यों, लापरवाहियों की सार्वजनिक आलोचना करता है। यदि कोई मामला गम्भीर होता है तो उसे वह न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है। वह प्रदत्त विधायन के मामलों को भी देखता है। वह विवेकाधीन शक्तियों के दुरूपयोग को रोकता है। उसका यह कार्य इस लिये महत्वपूर्ण है क्योंकि नागरिक अधिकारों एवं कर्तव्यों का संरक्षक है। वह विवेकाधीन शक्तियों के दुरूपयोग को रोकता है। संक्षेप में ओम्बड्समैन के मुख्य कार्यों को निम्न भागों में बाँट सकते हैं-
1. नागरिक अधिकारों की रक्षा करना।
2. समय-समय पर कानूनों की सही व्याख्या सुनिश्चित कराना।
3. समान प्रशासनिक गतिविधियों का पालन सुनिश्चित कराना।
4. कानूनी संशोधन के लिये समय-समय पर सुझाव देना।
डेनमार्क-
डेनमार्क में ओम्बड्समैन को व्यापक अधिकार प्राप्त है। वह सम्पूर्ण संघीय सरकार की गतिविधियों को पर्यवेक्षण करता है। वह नागरिक प्रशासन ही नहीं वरन सैनिक भारत में लोकपाल स्वास्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहम तलाश प्रशासन का भी नियमन करता है। वह नौकरशाही के कार्यों की ही जाँच नहीं करता वरन वह गैर नौकरशाही पर भी नजर रखता है। गैर नौकरशाही के अन्तर्गत विभिन्न निकायों, विश्वविद्यालयों, सांस्कृतिक संगठनों, नियमों, डाकतार, रेल विभाग आदि आते है। डेनमार्क में ओम्बड्समैन स्थानीय स्वशासन में भी दखल दे सकता है। स्वीडन के ओम्बड्समैन से अलग डेनमार्क का ओम्बड्समैन कैबिनेट मंत्री (विभाग का प्रमुख) के कार्य का निरीक्षण कर सकता है। वह उनके कार्यों का अनेकों बार आलोचना करता है परन्तु अपने कार्यालय को राजनीतिक विवाद का केन्द्र बनने से रोकता है। स्वीडन में मंत्री कार्यपालिका विभाग का प्रमुख नहीं होता यही कारण है कि दोनों देशों में ओम्बड्समैन की भूमिका अलग है। डेनमार्क में मंत्री विभाग का प्रमुख होता है वह ब्रिटेन की तरह संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। अतः मंत्री के उपर ओम्बड्समैनका नियंत्रण रखकर सम्पूर्ण विभाग पर नियंत्रण रखा जा सकता है। स्वीडन में न्यायधीशों को ओम्बड्समैन के दायरे में रखा गया है परन्तु इससे अलग डेनमार्क में न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं सम्मान के लिये उसे अलग किया गया है।
डेनमार्क में अनु0 3(1) में व्यवस्था की गई है कि वह उन सभी मामलों में दखल देगा जहाँ शक्ति तथा विवेक का दुरूपयोग हुआ है। इस प्रकार यदि विवेकाधीन शक्तियों का दुरूपयोग नहीं हुआ है तब वह उन मामलों में दखल नहीं देगा। सामान्यतः वह तभी आलोचना करता है जब वह विशेषज्ञों की राय अपने पक्ष में पाता है तथा जब उसके पास स्पष्ट प्रमाण होते हैं। वह आवश्यकता पड़ने पर नये प्रकार के कानून का सुझाव भी दे सकता है।
नार्वे के ओम्बड्समैन के कार्य-
नार्वे में ओम्बड्समैन का मुख्य कार्य नागरिक अधिकारों तथा हितों की रक्षा करना है। प्रशासन के बढ़ते कार्यों में नागरिक अधिकारों की रक्षा उसका मुख्य कार्य है। वहाँ पर ओम्बड्समैन का अधिकार क्षेत्र संघीय सरकार के सभी विभागों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, आदि तक है। प्रशासन के आंतरिक हिस्से जैसे भर्ती, अनुशासन, तथा कर्मचारियों की पदच्युति आदि की भी निगरानी करता है। एक सरकारी कर्मचारी के पास वहाँ यह अधिकार है कि वह ओम्बड्समैन से शिकायत कर सकता है यदि वह पाता है कि उसका नियोक्ता उससे असंवैधानिक कार्य कर रहा है।
कैबिनेट के निर्णय उसके अधिकार से बाहर है। वह केवल किसी मंत्री के निर्णय एवं कार्यों को देख सकता है। संसद एवं न्यायपालिका उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। स्थानीय निकाय के सम्बन्ध में उसके अधिकार क्षेत्र को व्यापक बनाया गया है। नागरिक अधिकारों की रक्षा करना उसका प्राथमिक दायित्व है। प्रत्येक नौकरशाह ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल एवं अन्य कर्मचारी अपने दायित्वों के निर्वहन में उसकी अनदेखी नहीं कर सकते है। यह सदैव उसकी जांच का विषय रहता है। ओम्बड्समैन की जांच का मुख्य विषय कानून का गलत पालन, साक्ष्यों का दुरूपयोग, तथा प्रशासनिक अक्षमता होती है। वह प्रशासनिक विवेकाधीन शक्तियों कि दुरूपयोग को रोकने का कार्य करता है। वहां पर कई बार उसकी बढ़ती शक्तियों के कारण प्रशासन के साथ टकराव की स्थिति बनती है। वास्तव में ओम्बड्समैन के प्रारम्भिक आयोग ने उसे व्यापक शक्तियाँ सौपी हैं। इन शक्तियों के पक्ष में व्यापक जनमत भी है। इसके विरूद्ध जो प्रशासनिक तर्क है कि वह सुपर प्रशासक बन जायेगा। इससे स्थापित प्रशासनिक अधिकारी अपने कार्याें, विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करने में हिचकते हैं। कई बार यह प्रशासनिक अक्षमता को भी बढ़ा देता है। यह कई बार प्रशासन एवं ओम्बड्समैन के मध्य टकराव एवं गतिरोध का कारण बन जाता है।
फिनलैण्ड में ओम्बड्समैन के कार्य-
फिनलैण्ड में ओम्बड्समैन के कार्य स्वीडन के ओम्बड्समैन से मिलते जुलते है। वह न्यायधीशों तथा प्रशासनिक अधिकारियों को कानून के अनुसार कार्य करने के लिये बाध्य करता है। फिनलैण्ड में ओम्बड्समैन को समस्त संघीय प्रशासन के उपरी नियंत्रण प्राप्त है। इसमें सैनिक प्रशासन, न्यायधीश, मंत्री, स्थानीय प्रशासन के अधिकारी, आदि शामिल हैं। शायद ही सार्वजनिक जीवन का कोई भी हिस्सा हो जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। उसके पास मंत्रीमण्डल की बैठकों मेें भी उपस्थित होने का अधिकार है। वह सामान्यतः बैठकों में उपस्थित नहीं होता है।
फिनलैण्ड के ओम्बड्समैन को स्वीडन के ओम्बड्समैन की ही तरह कोर्ट के ऊपर अधिकार प्राप्त है। यह नियंत्रण दुनिया में अनोखा है जो केवल फिनलैण्ड एवं स्वीडन में पाया जाता है। वह राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों के विरूद्ध पद के दुरूपयोग के आधार पर मुकदमा चला सकता है। स्वीडन के ओम्बड्समैन से अलग वह मंत्रियों के कार्यों की जांच कर सकता है। वह संवैधानिक कार्यों की सूची प्रकाशिक कर सकता है। वह संसद में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुुत करता है। संसद का महासचिव ओम्बड्समैन की मांग पर आवश्यक सूचनायें ओम्बड्समैन को देता। संसद को दी गई अपनी रिपोर्ट में वह संसद के कानून में उत्पन्न कमियों, कानूनों को विरोधाभास को उजागर कर सही करने की अपनी कर सकता है।
इसके अतिरिक्त वहां ओम्बड्समैन को कई और निरीक्षणात्मक कार्य करने पड़ते हैं। वहां सेना में कानून लागू कराने तथा जेल प्रशासन में कानून व्यवस्था लागू करने का प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। वह समय-समय पर सेना की बैरकों, पुलिस भारत के लोकपालः स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहम तलाश स्टेशनों तथा कारागारों का निरीक्षण करता है। सेना तथा जेल प्रशासन से जुड़ा भी व्यक्ति उसके समक्ष उपस्थित हो उससे अपनी शिकायत कर सकता है।
न्यूजीलैण्ड में ओम्बड्समैन का कार्य क्षेत्र बेहद व्यापक है। उसका मुख्य कार्य प्रशासन अथवा मंत्रियों के द्वारा दिया गया कोई आदेश अथवा कार्य जिसका सीधा प्रभाव नागरिक के ऊपर बड़ रहा हो कि जांच करना है। केवल विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, आदि उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। न्यूजीलैण्ड के सभी विभाग उसके अधिकार क्षेत्र में रहते हैं केवल विशेष व्यवस्था में संगठित निगम उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखे गये हैैं। इसका प्रमुख उदाहरण न्यूजीलैण्ड ब्राडकांस्टिंग कारपोरेशन, नेशनल एयरवेज कारपोरेशन, आदि को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
न्यूजीलैण्ड में ओम्बड्समैन को उन सभी मामलों को अस्वीकार करने का अधिकार प्राप्त है जिसमें संसद में जांच का अधिकार नहीं है। वह उन मामलों को भी अस्वीकार कर सकता है जिनमें उसकी नजर में जांच की आवश्यकता नहीं है। वह उन मामलों की भी जांच नहीं करता है जिसमें 12 माह से अधिक का समय गुजर चुका हो। वहां पर ओम्बड्समैन निम्न मामलों में कार्यवाही कर सकता हैः-
1. यदि प्रशासनिक कार्यवाही उसकी नजर में कानून के विरूद्ध है।
2. यदि कार्यवाही अवैधानिक, अन्यायपूर्ण तथा भेदभाव पूर्ण है।
3. यदि प्रशासनिक कार्यवाही गलत है तथा कानून के विरूद्ध है।
4. यदि प्रशासनिक विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग मानमाने ढं़ग से, अमर्यादित रूप से किया गया है।
5. यदि कार्यवाही दमनपूर्ण, अन्यायपूर्ण, पक्षपातपूर्ण तथा कानून विरूद्ध है।
वहां पर ओम्बड्समैन के पास प्रशासनिक कार्यों की जांच करने का व्यापक अधिकार प्राप्त है। न्यूजीलैण्ड में ओम्बड्समैन इस भाव के साथ कार्य करता है कि कोई भी निर्णय, कानून अंतिम नहीं होता उसकी जांच हो सकती है। यह भी सत्य है कि यदि कही भी पुनः अपील या जांच की सुविधा उपलब्ध है तो ओम्बड्समैन उस मामले की जांच नहीं करता है। यहां पर यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि उसके निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती और न ही उसे खारिज किया जा सकता है। ओम्बड्समैन तथा उसके कार्यालय को न्यायिक प्रक्रिया से उन्मुक्ति प्रदान की गई है।
न्यूजीलैण्ड में ओम्बड्समैन का अधिकार क्षेत्र मंत्रीमण्डल के निर्णय पर लागू नहीं होता है। यह व्यवस्था संसदीय शासन में गतिरोध रोकने के लिये की गई है। यद्यपि वह ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल विभागीय निर्देशों की जांच कर सकता है। वास्तव में विभागीय निर्देशों, निर्णयों की जांच कर वह अप्रत्यक्ष रूप से मंत्रीमण्डल के ऊपर नियंत्रण स्थापित करता है। सेना सम्बन्धी मामले जैसे सेवा, शर्तें, सम्बन्धी, दण्ड सम्बन्धी मामले उसके (ओम्बड्समैन) अधिकार क्षेत्र से बाहर है। स्थानीय निकायों के कर्मचारियों सम्बन्धी मामलें भी उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखे गये हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न न्यासों को भी उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
कई बार ओम्बड्समैन के अधिकार क्षेत्र को लेकर प्रश्न उन विभागों ने उठाया है जिनके विरूद्ध जांच लम्बित है। इसके बावजूद न्यायालय में ऐसा कोई माामला नहीं गया हैं
इंग्लैण्ड में ओम्बड्समैन के कार्य-
इंग्लैण्ड में ओम्बड्समैन व्यापक कार्यों को करता है। वहां पर डाकतार विभाग पर उसका नियंत्रण रहता है। लघु जमाओं से सम्बन्धित मामलों की आवश्यकता पड़ने पर वह जांच करता है। उसकी जांच करने सम्बन्धी सूची समय पर बदलती रहती है। राष्ट्रीय हित से जुडे़ मामले, सार्वजनिक हित से जुडे़ मामलों में, वैदेशिक सम्बन्ध संचालन सम्बन्धी मामले, सम्मान सम्बन्धी मामले, आदि उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होते हैं।
सामान्यतः ओम्बड्समैन उन मामलों में दखल नहीं देता जिन पर न्यायालय का अधिकार क्षेत्र होता है। यदि वह समरूता है कि न्यायालय में जाना शिकायतकर्ता के लिये अनुकूल नहीं होगा तो वह कार्यवाही कर सकता है। वह आवश्यकता पड़ने पर किसी मामले में संज्ञान लेने से इंकार कर सकता है। यदि वह समझता है कि आरोप तथ्यपूर्ण एवं वास्तविक नहीं है।
सामान्यतः बारह महीने पूर्व के मामलों में वह संज्ञान नहीं लेता है। यदि वह आवश्यक समझे तो उस मामलों परविचार भी कर सकता है। प्रशासनिक शक्तियों के दुरूपयोग सम्बन्धी मामलों का वह संज्ञान नहीं लेता है। वह नीतियों की आलोचना नहीं करता है। वह मंत्रियों के सलाह तथा मंत्रीमण्डल निर्णय की जांच नहीं करता है।
इस प्रकार से यह स्पष्ट होता है कि वह एक अधिकारी है, एक एजेट है जो संसद द्वारा नियुक्त होता है और स्वतंत्रतापूर्वक अपने कार्यों को करता है। वह तभी तक अपने पद पर रहता है जब तक सदन का विश्वास उसमें है। वह किसी दल का नहीं वरन पूरे सदन का होता है। प्रायः उसे सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों का विश्वास प्राप्त होता है। यही कारण है कि उसे पद की गरिमा के अनुरूप आवश्यक स्वतंत्रता प्राप्त हो पाती है। यही कारण है कि वह पूर्ण प्रभावशीलता के साथ कार्य कर पाता भारत में लोकपाल स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहम तलाश है। ओम्बड्समैन विधायिका, दबाव समूह, प्रेस से अलग वह राजनीतिक रूप से तटस्थ रहता हैं
यद्यपि वह संसद द्वारा नियुक्त किया जाता है और उस पर सामान्य रूप से संसद का नियंत्रण होता है परन्तु सभी देशों में उसकी स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता का बनाये रखने के लिए कदम उठाये गये हैं। उदाहरण के लिये उसका कार्यकाल संसद के समान बनाया गया है, उसको पुनः नियुक्ति का अवसर प्रदान किया गया है तथा उसको पद से हटाने के लिये विशेष व्यवस्था का पालन आवश्यक बनाया गया है। ओम्बड्समैन के कार्यों को देखते हुए प्रायः उसे ही ओम्बड्समैन नियुक्त किया जाता है जिसके पास वैधानिक पृष्ठाभूमि तथा प्रशासनिक अनुभव हैं। स्कैण्डनेवियन देशों (उत्तर पश्चिम यूरोप) में देखा गया है कि वहां ओम्बड्समैन के रूप में नियुक्त होने के लिये कानून का ज्ञान पहली अर्हता रखी गई है। सामान्यतः वहां वकील, न्यायधीश, कानून के जानकार इस पद पर नियुक्त किये जाते हैं। न्यूजीलैण्ड का प्रथम ओम्बड्समैन एक सफल वकी, प्रशासक तथा राजपूत था। वहीं इससे अलग इंग्लैण्ड का प्रथम ओम्बड्समैन एक नौकरशाह था जिसे कानून की विशेषज्ञता प्राप्त नहीं थी।
इंग्लैण्ड को छोड़ सभी देशों में शिकायत सीधे तौर पर ओम्बड्समैन से की जाती है। कुछ मामलों मेें वह स्वतः संज्ञान ले लेता है। कुछ देशों में उसे सरकारी कार्यालयों की जांच का अधिकार प्राप्त है। यह जांचे प्रायः की जाती हैं और खामियों, विधि के उल्लंघन को दूर किया जाता है। इंग्लैण्ड में इससे अलग पहले कॉमन सभा में शिकायत भेजी जाती है जहां से इसे ओम्बड्समैन को भेजा जाता है। इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य शिकायत की प्रारम्भिक जांच सदस्यों के द्वारा कराना था। इससे ओम्बड्समैन के पास शिकायत सें की संख्या बढ़ नहीं पाती है। इंग्लैण्ड एवं न्यूजीलैण्ड में निरीक्षण का सीधा अधिकार उसको नहीं सौपा गया है। इन देशों में स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार भी नहीं प्रदान किया गया है।
स्वीडन तथा फिनलैण्ड में अधिकारी के विरूद्ध मुकदमा चलाने का अधिकार है। दूसरें देशों में उसे यह अधिकार प्राप्त नहीं है। नार्वे तथा डेनमार्क में वह प्रशासन से दोषी अधिकारी के विरूद्ध मुकदमा चलाने को कह सकता है। प्रायः सभी देशों में सम्बन्धित विभाग में तथा संसद में प्रतिवेदन भेजने का अधिकार उसे प्राप्त है। संसद में रिपोर्ट भेजने की शक्ति का व्यापक प्रभाव पड़ता है। कोई भी विभाग नहीं चाहता है कि उससे जुड़ा मामला वहां पर चर्चा में आये। ओम्बड्समैन के द्वारा की गयी संस्तुतियों को व्यापक महत्व दिया जाता है। न्यूजीलैण्ड में संसद में मामला भेजने से पहले प्रधानमंत्री के पास भेजा जाता है। इंग्लैण्ड में सम्बन्धित मंत्री के पास मामला भेजा जाता है। स्कैण्डनेवियन देशोें में ओम्बड्समैन के पास दोष सिद्ध अधिकारी की ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल आलोचना का अधिकार होता है। यह अधिकार मुकदमा चलाने के अधिकार का विकल्प है। इंग्लैण्ड एवं न्यूजीलैण्ड में ऐसा कोई अधिकार दिखाई नहीं देता है। इन सभी देशों में स्वतंत्र प्रेस, स्वस्थ जनमत का निर्माण ओम्बड्समैन की प्रमुख शक्ति होती है। कोई भी विभाग ओम्बड्समैन की अनदेखी नहीं कर सकता। ओम्बड्समैन के अधिकार क्षेत्र को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वह प्रशासन पर नियंत्रण तथा नागरिक आधिकार एवं स्वतंत्रता की रक्षा का प्रमुख अभिकर्त्ता है। वह प्रशासन की लापरवाही को रोकने मंे सहायक होता है। वह ऐसा अधिकारी है जो सामान्यतः शिकायतों का निपटारा करता है। वह उपचारात्मक ही नहीं वरन निरोधात्मक कार्य भी सम्पन्न करता है। वह नागरिकों को न केवल सचेत करता है वरन उनके सहयोग से ही प्रशासनिक अक्षमता को उजागर कर प्रशासनिक सुधार सम्पन्न कराता है।
प्रायः सभी देशों में ओम्बड्समैनकी कार्यवाही की क्षमता समान नहीं है। स्वीडन में ओम्बड्समैन के पास मंत्रियों के विरूद्ध मुकदमा चलाने की शक्ति नहीं है। यह शायद वहां की विशेष शासन व्यवस्था में प्रशासनिक गतिरोध रोकने के लिये किया गया है। वहां पर मंत्री विभाग का प्रमुख नहीं होता है। वह केवल नीति निर्माण का कार्य करता है। न्यूजीलैण्ड में ओम्बड्समैन विभिन्न की मंत्रियों को की गई सिफारिश की भी जांच करने का अधिकार है। इंग्लैण्ड में तो कर्मचारी उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखे गये हैं।
स्वीडन एवं फिनलैण्ड में न्यायपालिका भी उसके अधिकार क्षेत्र में रखा गया है। फिनलैण्ड और डेनमार्क में सैनिक मामले उसके अधीन रखे गये हैं। न्यूजीलैण्ड में ये सभी मामले उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखे गये हैं। स्वीडन एवं नार्वे में सैनिक मामलों का एक अलग ओम्बड्समैन होता है।
प्रशासन की विवेकाधीन शक्तियों के मामले मेें वह सामान्यतः फैसले बदलने का आदेश नहीं देता है। वह अति आवश्यक होने पर विवेकाधीन शक्तियों की जांच करता है। स्वीडन में तो वह स्पष्ट रूप से विवेकाधीन मामलों की आलोचना कर सकता है। डेनमार्क में तो वह असंगत निर्णय की आलोचना कर सकता है। नार्वे में भी उसकी स्थिति ऐसी ही है। इंग्लैण्ड में दोष स्पष्ट होने पर ही वह दखल दे सकता है। न्यूजीलैण्ड में उसका दायरा व्यापक है वहां गलत निर्णयों की तो जांच की ही जाती है साथ में किन आधार पर सिफारिश की गई उसकी भी जांच की जाती है।
यहां पर यह तथ्य स्मरणीय है कि दुनिया में ओम्बड्समैन को इतना व्यापक एवं गहराई से जांच का अधिकार प्राप्त नहीं हैं जिता फ्रांस में ’कौसिल डि इटेट’ को भारत में लोकपाल: स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्यों की अहम तलाश प्राप्त है। यह विवेकाधीन प्रशासनिक शक्तियों की गहराई से जांच करती है। यह अन्य देशों मेें अलग संवैधानिक, प्रशासनिक कारणों से स्वीकार्य नहीं है। भारत में ही फ्रांस की व्यवस्था से अलग प्रशासनिक व्यवस्था के कारण संभव नहीं है। इंग्लैण्ड में फ्रेड कमेटी की सिफारिश तथा भारत में लॉकमीशन की सिफारिश को अस्वीकार कर दिया गया जो कि फ्रांस की वयवस्था के पक्ष में थी।
यहां पर यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि भारत में आमधारणा है कि ओम्बड्समैन भ्रष्टाचार रोकने का साधन है जबकि दुनिया के अन्य देशों में ओम्बड्समैन का मुख्य कार्य व्यक्ति की शिकायत को दूर करना तथा प्रशासनिक व्यवस्था को ठीक करना है। वह नौकरशाही के विरूद्ध सामान्यतः सीधवी कार्यवाही नहीं करता है। कुछ देशों में प्रतिबन्ध की शक्तियाँ दी गई हैं परन्तु व्यवहार में वह उपयोग में न लाकर केवल चेतावती तक सीमित है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि उत्तर पश्चिम यूरोप के देशों में भ्रष्टाचार का स्तर बहुत नीचे है। भारत जैसे देशों में यह चारों ओर फैला हुआ है। अतः यहां पर ओम्बड्समैन का कार्य एवं भूमिका अलग रखने की योजना लम्बे समय से बनायी जा रही है। प्रशासन से लेकर सार्वजनिक जीवन में पायी जाने वाली अनियमितता तथा भ्रष्टाचार को रोकने में उसकी महती भूमिका हो सकती है।
दुनिया के देशों में ओम्बड्समैन के कार्यों को देख कर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह न तो न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था के विरूद्ध है और ना ही यह संसदीय शासन के विरूद्ध है। यह दोनों ही व्यवस्था को अपने तरह से मजबूती प्रदान करता है। यह संसद का आँख एवं कान है। यह प्रशासन को नियंत्रण करने के पारम्परिक कार्य को सम्पन्न करने में मदद करता है। यह न्यायिक पुनरावलोकन में सहायता करता है क्योंकि प्रशासन के कई क्षेत्र कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर होते हैं। ओम्बड्समैन उन तक पहुंचकर व्यापक सुधार कराता है। यह भी पाया गया है कि जहां पर प्रशासनिक न्यायाधिकरण प्रभावी है वहां ओम्बड्समैन का प्रभाव कम हुआ है। यहां पर तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि इनके बावजूद भी ओम्बड्समैन का प्रभाव कम हुआ है। यहां पर तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि इनके बावजूद भी ओम्बड्समैन की भूमिका कम नहीं हुई है। यहां पर तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि इनके बावजूद भी ओम्बड्समैन की भूमिका कम नहीं हुई है। इंग्लैण्ड का उदाहरण इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है। वहां आज भी ओम्बड्समैन की भूमिका को स्वीकार किया जाता है।
इन देशों में ओम्बड्समैन को न्यायालय से अलग प्रशासनिक निर्णयों को बदलने, खारिज करने का अधिकार नहीं है। अतः वह प्रशासनिक मामलों में दखल नहीं देता है। उसका कार्य अत्यन्त तीव्र एवं कम खर्चीला होता है। ओम्बड्समैन के पास किसी मामले के तथ्यों को जानने का व्यापक अधिकार है। सामान्यतः ओम्बड्समैन अपने सुझावों के माध्यम से प्रशासन के मानक निश्चित कर देता है। यह कार्य न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन के माध्यम से नहीं कर पाता क्योंकि न्यायालयों के पास कार्य की अधिकता है। वह अपने अनुभव, विशेषज्ञता के माध्यम से विभागों के ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल प्रशासन सामंजस्य में सहायता प्रदान करता है। यह लगभग दुनिया के सभी देशों का अनुभव रहा है कि जहां ओम्बड्समैन की संस्था कार्यरत है वहां प्रशासनिक दक्षता, कार्यकुशलता में वृद्धि हुई है।
दुनिया के प्रारम्भिक ओम्बड्समैन वाले देशों (स्कैण्डनेवियन) में ओम्बड्समैन इसलिये नहीं स्वीकार किया गया कि वहां व्यापक प्रशासनिक अव्यवस्था और भ्रष्टाचार था। वहां पर न तो नागरिक अधिकारों पर गम्भीर खतरा था और न ही लोकतंत्र प्रभावित था। ब्रिटेन इसका अच्छा उदाहरण है क्योंकि वहां पर प्रशासनिक कुशलता और समानता के बावजूद ओम्बड्समैन को स्वीकार किया गया। अतः यह कहा जा सकता है कि ओम्बड्समैन प्रशासनिक परदर्शिता, विधि का शासन, सामाजिक न्याय का प्रतिबिम्ब है। वह सामान्य जनता के हित में कार्य करता है। वह जनता के मनोबल को बढ़ाने में सहायता करता है। कई बार प्रशासनिक अक्षमता पक्षपात के आरोप जांच करने पर लगत पाये जाते हैं। इससे प्रशासन एवं आम जनता का विश्वास आवश्यक होता है। यदि जनता का विश्वास प्रशासन में नहीं होता है तो यह लक्ष्य पाना मुश्किल हो जाता है। भारत सहित तीसरी दुनिया के तमाम देश आज इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। भारत में राजनीतिक एवं प्रशासनिक विश्वसनीयता धीरे-धीरे नीचे की और जा रही हैं। जानकारों का मानना है कि यह आजादी के बाद सबसे निचले स्तर पर है। भारत में उभरा जनलोकपाल आन्दोलन कतिपय ऐसी ही परिस्थिति की देन है। आज निराश-हताश आज जन राजनेताओं, नौकरशाहों तथा उद्योगपतियों के गठजोड़ से उभरे भ्रष्टाचार, घोटालों से निपटने के लिये ओम्बड्समैन को एक रामबाण के रूप में देख रही है। उनके मस्तिष्क पटल पर यह अंकित हो गया है कि ओम्बड्समैन (लोकपाल) की नियुक्ति के साथ उनकी समस्या का अंत हो जायेगा। सम्पूर्ण समस्याओं का हल चाहे लोकपाल के गठन के साथ न भी हो परन्तु हालात में बदलाव होगा। जनता का विश्वास बहाली, प्रशासनिक पारदर्शिता स्थापित होगी। व्यापक गठजोड़ से उपजे घोटालों पर प्रभावी अंकुश भी लगेगा। जनता के पास एक विकल्प और एक अवसर होगा जिसके माध्यम से वह प्रशासनिक समस्याओं का निदान करा सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि प्रत्येक मामले में समाधान न हो परन्तु इससे आम जनता की विश्वास बहाली होगी कि उसने स्वतंत्र एवं निष्पक्ष संस्था के पास अपील की थी और जो सही है वैसा ही हो रहा है। ऐसे में लोकपाल एक जन सम्पर्क बनाने, विश्वास बहाली का माध्यम बन सकता है। वह प्रशासन एवं जनता के बीच एक पुल का काम कर सकता है। लोकपाल विश्वास बहाली का कार्य सफलतापूर्वक कर सकता है। न्यूजीलैण्ड के ओम्बड्समैन के शब्दों में-
भारत में लोकपाल स्वस्थ जनतांत्रित्रक मूल्यों की अहम तलाश मेरे कार्यालय को प्रशासन विरोधी कहना गलत होगा। उसका कार्य कमी को खोजना नहीं है। यदि किन्हीं मामलों में प्रशासन को सलाह की आवश्यकता होती है तो वह ऐसा करते हैं। यदि पद के दुरूपयोग, विवेकाधीन शक्तियों के मामले गलत पाये जाते है तो वह प्रशासन के लिये एक कवच का काम करता है। यदि ऐसे मामले में पद के दुरूपयोग का प्रमाण मिलता है तो वह जनता को कार्यवाही के लिये आश्वस्त करते है।
न्यूजीलैण्ड में ओम्बड्समैन को प्रशासन ने सहजता से स्वीकार किया। प्रारम्भ में नौकरशाही को कुछ तनाव था परन्तु धीरे-धीरे चीजे सामान्य हो गई। कुछ अनुभवी नौकरशाहों ने इसका स्वागत किया और माना है कि प्रशासन के पास ओम्बड्समैन की तरह कोई व्यक्ति होना चाहिए जो समय-समय पर प्रशासन के मुश्किल समय से पथ प्रदर्शन करें। प्रशासन एवं विभागों को ओम्बड्समैन के द्वारा समय-समय पर दिये गये सुझावों को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि इससे विभागों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। अनेक देशों में जहां ओम्बड्समैन काम कर रहा है वहां पर प्रशासकों ने यह ईमानदारी से स्वीकार किया है कि ओम्बड्समैन के आने के बाद से वह निर्णय लेने में सावधानी बरत रहे हैं परन्तु इससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित नहीं हुई है। कई विभागाध्यक्षों ने स्वीकार किया कि ओम्बड्समैन की सलाह को विभागों की दशा, कार्यप्रणाली सुधारने में इस्तेमाल किया गया है।
उन देशों में जहां ओम्बड्समैन अस्तित्व में नहीं है वहां सामान्यतः शिकायत सम्बन्धित मंत्री के पास जाती है और सामान्यतः कार्यवाही नहीं हो पाती है। ऐसी शिकायतों का निवारण तंत्र मंत्रियों के पास बेहद कमजोर है। परम्परागत रूप से ऐसे मामले, में मंत्री द्वारा सवयं रूचि लेते हैं उनमें शिकायतों का निपटारा हो पाता है। ओम्बड्समैन अथवा लोकपाल के आने से यह स्थिति बदल सकती है। शिकायतों के लिये एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष संस्था होगी जो शिकायतों का न केवल निपटारा करेगी वरन प्रशासन पर नियंत्रण लगाते हुए नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता की रक्षा करेगी। इससे मंत्री के पास कार्य का बोझ कम होता है वह अपना समय अन्य रचनात्मक कार्यों में लगा सकते हैं। ओम्बड्समैन जिन देशों में कार्य कर रहा है वहां पर नौकरशाही के परम्परागत सिद्धान्तों को बचाकर रखा गया है। वे प्रशासन को एक इकाई के रूप में देखते हैं। वे किसी प्रशासन के विरूद्ध (नाम से) प्रतिवेदन नहीं देते हैं। प्रशासन में एकरूपता तथा परम्परा का बोलबाला रहता है। कई बार इससे प्रशासनिक आधुनिकता एवं बदलाव का अभाव रहता है। ऐसे में ओम्बड्समैन ग्लोबल ओम्बड्समैन और भारत का लोकपाल के द्वारा दिये गये सुझाव मूल्यवान सिद्ध होते हैं और इनसे आधुनिकता, पारदर्शिता का प्रसार होता है।
भारत जैसे देश में ओम्बड्समैन अथवा लोकपाल की आवश्यकता अधिक है। स्कैण्डनेवियन देशों, ब्रिटेन की व्यवस्था में प्रशासनिक जवाबदेही अधिक पाई जाती है वहां लगभग 25 प्रतिशत मामलों में आज भी ओम्बड्समैन कार्यवाही कर रहा है। इंग्लैण्ड जैसा देश जो हमेशा अपने उदार परम्पराओं और महान प्रशासनिक कुशलता के लिये जाना जाता है, ने इसे अपने यहां स्वीकार किया है। भारत जैसे देश में यह समय की जरूरत है। संसदीय शासन व्यवस्था तथा न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था जो पहले से इन देशों में कार्य कर रही है, के आधार पर इसे खारिज नहीं किया जा सकता। यहां पर लोकपाल की अविलम्ब आवश्यकता है। भारत में विगत वर्षों में प्रशासनिक मनमानी, भ्रष्टाचार घोटाले लगातार दिखायी पड़ रहे है। ऐसे में भारत को शिकायत निवारण यंत्र के विकास की आवश्यकता है। प्रशासन एवं जनता के बीच की दूरी को कम किये जाने की आवश्यकता है। हाल ही घटनाओं ने प्रशासनिक विश्वसनीयता को एकदम निचले स्तर पर पहुंचा दिया है। ऐसे में लोकपाल दो तरह से प्रशासन की मदद कर सकता है, पहला किसी शिकायत की जांच करने पर यदि वह पाता है कि शिकायत सही नहीं है तो इससे प्रशासनिक छवि सुधरती है। दूसरा लाभ तब होता है जब प्रशासन से जुडे़ लोग ओम्बड्समैन के कारण अधिक पारदर्शिता एवं नियमसम्मत ढं़ग से कार्य करते हैं। वे प्रशासनिक भेदभाव से बचतें है। इसके अतिरिक्त लोकपाल का पद उच्च आदर्श का प्रतीक है। भारत का संविधान जो कि विधि के शासन, विधि के समक्ष समता तथा सामाजिक न्याय की गारन्टी देता है वहां पर इसका पालन सुनिश्चत कराने के लिये ओम्बड्समैन या लोकपाल आवश्यकता हो जाता है। ऐसी स्थिति में यह आवश्यक हो जाता है कि एक ऐसी मशीनरी का विकास हो जिसमें किसी के साथ किसी प्रकार का कोई अन्याय नहीं हो। लोक कल्याणकारी राज्य में केवल न्यायपूर्ण व्यवस्था नहीं होनी चाहिए वरन न्याय होना चाहिए। केवल एक अन्याय का मामला लोकपाल के औचित्य को सिद्ध कर सकता है। यह सर्वमान्य सत्य है कि एक अच्छा कानून भी दुरूपयोग के कारण समानता के सिद्धान्त का उल्लंघन करता है। अतः यह परम आवश्यक हो जाता है कि न केवल अच्छे कानून का निर्माण किया जाय वरन उनका पालन सुनिश्चत कराया जाये। उनके क्रियान्वयन में भी भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह वातावरण केवल लोकपाल ही सुनिश्चत कर सकता है। अतः आज भारत में अविलम्ब रूप से लोकपाल नामक संस्था की स्थापना की जानी चाहिए। यह नागरिक विश्वास तथा शासन व्यवस्था में विश्वास बहाली के लिये परम आवश्यक है। हाल में सरकार ने पिनाकी चन्द्र घोष को आम्बुड्समैन के रूप में नियुक्ति किया है। इनकी नियुक्ति के साथ ही पिछले छः वर्षों से लम्बित नियुक्ति सम्पन्न हुइ है।

सन्दर्भ
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2. लिडा सी रीफ, इण्टरनेशनल ओम्बड्समैन एॅथालॉजी।
3. राय जार्च, फिलिप जेम्स, राइटिंग रॉगसः दि ओम्बड्समैन इन सिक्स कॉटीनेटस।
4. पोहेकर, प्रीति, ए स्टडी आफ ओम्बड्समैन इनन इण्डिया- 2010 दिल्ली।
5. चार्ल्स हार्वड, दि आर्गनाइजेसनल ओम्बड्समैन, 2011
6. ट्रेवर बक, रिचर्ड एल किकल, ओम्बड्समैन इन्टरप्राइजेज एण्ड एडमिनिस्ट्रटिव जस्टिस- 2011
7. करपश्न एण्ड लोकपाल बिल- एम वी कामथ, गायत्री पगडी, इण्डस सोर्स बुक, 2011
8. जन लोकपाल बिल – इण्डियन एण्टीकरपश्न बिल मूवेंमट – विजय कुमार गुप्ता, मिनर्वा प्रेस, 2011
9. आर0के0 घवन, पब्लिक ग्रीवान्सेज एण्ड लोकपाल।
10. डी0आर0 सक्सेना, ओम्बड्समैन (लोकपाल) रीडेªस आफ सिटिजंस ग्रीवान्सेज इन इण्डिया, 1987 दीप पब्लिकेशन।
11. सुभाष चन्द्र गुप्ता ओम्बड्समैनः एवं इण्डियन पर्सपेविटव।
12. एम0पी0 जैन आम्बुडसमैन एण्ड लोकपाल इन इण्डिया।

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