ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण में सोशल मीडिया की भूमिका

डॉ0 सर्वजीत सिंह 
प्रोफेसर राजनीति विज्ञान
राजकीय पी0जी0कॉलेज, पतलोट, नैनीताल।

अमित प्रियदर्शी

शोधार्थी, राजनीति विज्ञान, कुमांऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

सोशल मीडिया: परिचय –
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में ऐसी वेबसाइटों को शामिल किया गया है जो इंटरनेट का प्रयोग करके ऑनलाइन या वास्तविक समुदाय में प्रयोक्ता जनित सामग्री का इस्तेमाल कर सकें। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सामाजिक नेटवर्किंग वेबसाइटों जैसे फेसबुक, ट्विटर, लिंकर, यूट्यूब, लिंकडइन, पिंटरेस्ट, माइस्पेस, साउंडक्लाउड, जूम, इंस्टाग्राम, विबेक्स मीट, गूगल मीट, टेलीग्राम और ऐसी ही अन्य वेबसाइटों पर प्रयोगकर्ताओं को विचार विमर्श, सहयोग करने, नवीन ज्ञान का सृजन करने, नये विचारों को अभिव्यक्त करने, लिखित संदेश भेजने, फोटो, आडियो संदेश तथा वीडियो संदेश भेजने एवं साझा करने और जानकारी को परिष्.त करने की योग्यता एवं सुविधा प्रदान करता है। सोशल मीडिया का आकार डिजिटल मीडिया में विद्यमान जीवन से भी बड़ा है, जो स्वयं विज्ञान, प्रौद्योगिकी और मानव अभिव्यक्ति के लिए व्यापार, संचार, सामाजिक वार्तालाप और शिक्षा आदि क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभा रही है। यह अभिव्यक्ति और जानकारी को साझा करने का अद्भुत माध्यम है, जिसका अनुसरण और अनुकरण विश्व भर में किया जा रहा है। इसने विश्व के सभी देशों की सीमाओं से परे जाकर विश्व को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। यह एक दूसरे से मानव संपर्क को बनाए रखने का नया एवं अद्भुत साधन है। सोशल मीडिया वेबसाइट्स को सोशल मीडिया नेटवर्किंग के नाम से भी जाना जाता है। अतः ‘‘सोशल मीडिया इंटरनेट आधारित अनुप्रयोगों का ऐसा समूह है जो प्रयोक्ता-जनित सामग्री के सृजन और आदान-प्रदान की अनुमति देता है।‘‘1 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मोबाइल और वेबसाइट पर आधारित तकनीकी से ऐसे क्रियाशील प्लेटफार्मों को उपलब्ध कराता है जिनकी मदद से व्यक्ति और समुदाय प्रयोक्ता जनित जानकारी का संप्रेषण एवं सह-सृजन कर सकते हैं। उसपर विचार विमर्श कर सकते हैं। इससे उपलब्ध जानकारी की उपयोगिता कई गुना बढ़ जाती है। यह संगठनों, समुदायों और व्यक्तियों के बीच संचार में महत्वपूर्ण और व्यापक परिवर्तनों को अंजाम देता है।
सोशल मीडिया की उपयोगिता और महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है की हाल ही में भारत सरकार के द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं ताकि इन का गलत इस्तेमाल ना किया जा सके। नई दिशा निर्देश बुद्धिजीवियों एवं आम जनता के बीच सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने हुए हैं। भारत सरकार के अनुसार भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़ उपयोगकर्ता, यूट्यूब के 44.8 करोड़ उपयोगकर्ता, फेसबुक के 41 करोड़ उपयोगकर्ता, इंस्टाग्राम के 21 करोड़ उपयोगकर्ता तथा ट्विटर के 1.75 करोड़ उपयोगकर्ता हैं।‘‘2 आंकड़ों के अनुसार व्हाट्सएप के उपयोगकर्ता देश की जनसंख्या का लगभग 42 फीसदी हैं।
ग्रामीण महिला सशक्तिकरण में सोशल मीडिया की भूमिका एवं उपयोगिता-
व्यक्ति के सशक्तिकरण का अर्थ है कि उस व्यक्ति में ऐसी क्षमता का विकास हो जाए। जिससे उसमें स्वयं निर्णय लेने की योग्यता आ जाए। वह अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। एक सम्यक राष्ट्र व समतामूलक समाज की संकल्पना को साकार करने के लिए हमें एक दूसरे के अधिकारों को सम्मान देना चाहिए। दुर्बल को सबल बनाने का अवसर प्रदान करना चाहिए। तब ही एक सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र की संकल्पना को धरातल पर उतारा जा सकता है या उसे वास्तविक रूप प्रदान किया जा सकता है। सशक्तिकरण की बात यदि आधी आबादी के संबंध में हो यानी महिलाओं के संबंध में हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण का महत्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि ‘भारत के लगभग 74 फीसदी नागरिक 6,38,000 गांवो में रहते हैं। गांव में आबादी बढ़ने के साथ ही कृषि पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। रोजगार के वैकल्पिक अवसरों के अभाव में गांवों से शहरों की ओर पलायन में लगातार इजाफा हुआ हो रहा है।‘3 भारतीय समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण का अर्थ है कि महिलाओं संबंधी समस्याओं की संपूर्ण जानकारी के लिए उनकी योग्यता और कौशल को बढ़ाकर उनके सर्वांगीण विकास अर्थात सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक विकास की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करना और महिलाओं की आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों में सहभागिता को बढ़ावा देना ताकि वे अपने जीवन में व्यापक गुणवत्तापरक एवं सकारात्मक बदलाव ला सकें। आज से लगभग 20 वर्ष पहले आई सूचना क्रांति के परिणाम स्वरूप ही सोशल मीडिया का जन्म हुआ। महिलाओं को आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने में सोशल मीडिया प्लेटफार्म बहुत उपयोगी साबित हो रहे हैं। ग्रामीण महिलाओं पर सोशल मीडिया के आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में प्रभाव निम्न हैंः-
(अ) ‘महिलाओं की व्यापारिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में सोशल मीडिया के विभिन्न अवयवों का उपयोग किस प्रकार लाभप्रद हो सकता है, उसका उदाहरण पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले के रामनगर-2 विकासखंड के मंदारपुर गांव में मिलता है। मंदार पुर गांव में तसलीमा नसरीन काजू प्रसंस्करण इकाई स्थित है। इसका संचालन मुमताज बीवी करती हैं। वे स्वयं सहायता समूह का संचालन भी करती हैं। वे जिले में 180 स्वयं सहायता समूह की स्थापना, संचालन और प्रबंधन से जुड़ी हुई हैं। उन्हें सहकारी क्रांति की अगुवाई करने वाली महिला कहा जा सकता है।
पूर्व मेदिनीपुर में काजू प्रसंस्करण का व्यवसाय परवान चल रहा है जहां तसलीमा नसरीन काजू प्रसंस्करण इकाई जैसी संस्थाएं दक्षिण अफ्रीका और देश के अन्य भागों से काजू का आयात करती है और उनके प्रसंस्करण तथा पैकिंग के बाद विश्व के तमाम देशों को निर्यात करती है।
मुमताज बीवी ने नौ अन्य महिलाओं को साथ लेकर अपने समूह की शुरुआत की और समाज की बेहतरी के लिए उन्हें सशक्त बनाने का अवसर प्रदान किया। यह युवा, ऊर्जावान और संकल्पित महिलाएं अपने विचारों को दूसरे समूहों तक पहुंचाने और व्यवसाय के विस्तार के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करती है। यद्यपि उसका संबंध एक कट्टर मुस्लिम परिवार से है फिर भी वह अपने दो बच्चों को उचित शिक्षा प्रदान कर उन्हें ज्ञान का प्रकाश दिखाना चाहती है।‘4
यद्यपि मुमताज बीवी अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करती हैं। परंतु वह निरक्षर हैं। इस कारण सोशल मीडिया के इस्तेमाल में वे पूर्व मेदिनीपुर जिले के उप प्रधान जो स्नातक हैं कि मदद लेती हैं। अतः निरक्षरता की समस्या सोशल मीडिया के प्रयोग में कुछ हद तक बाधक है एवं सोशल मीडिया का संपूर्ण लाभ लेने से वंचित करती है। लेकिन मुमताज बीवी जैसी प्रगति पसंद महिलाएं इन समस्याओं का डटकर सामना कर रही हैं। वे जागरूकता के उच्चतम स्तर की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही हैं। सोशल मीडिया ऐप व्हाट्सएप ने बिजनेस व्हाट्सएप एप लॉन्च किया है जिसमें ऑनलाइन लेन-देन भी किया जा सकता है। ऐसे सोशल मीडिया एप ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। व्यापारिक लेखा-जोखा रखना ग्रामीण महिलाओं के लिए एक मुश्किल कार्य है परंतु खाताबुक, माईबिलबुक, ओकेक्रेडिट, पगारखाता, ओकेस्टाफ, व्यापार, दुकान, कैशबुक, पगारबुक स्टाफ आदि एप्स ने इसे भी आसान बना दिया है। वहीं दूसरी तरफ फोनपे, गूगलपे, पेटीएम, भीमपे, एयरटेल थैंक्स, सैमसंग पे, योनो एसबीआई, एमआधार आदि यूपीआई पेमेंट आधारित एप्स ने लेनदेन को बहुत सरल बना दिया है। हां, इन एप्स को चलाने के लिए थोड़े प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
‘थॉमसन राइटर्स फाउंडेशन के वर्ष 2016 मैं आए सर्वेक्षण में जी 20 देशों में महिलाओं की स्थिति की पड़ताल की गई थी और भारत में महिलाएं बुरी स्थिति में पाई गईं। हद तो यह है कि सऊदी अरब जैसा रूढ़ीवादी देश भी इस मामले में भारत से बेहतर निकला। विश्व आर्थिक मंच के लिंग भेद सूचकांक में भी भारत 135 देशों में 113 में स्थान पर दिखता है। रोजगार का मामला आता है तो यह भेद और भी ज्यादा दिखता है और गांव शहर में कमोवेश हर जगह महिलाएं मोटे तौर पर पोयम दर्जे की ही मानी जाती हैं। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एन एस एस ओ) के 2011 में जारी आंकड़ों के मुताबिक गांवों में केवल 30 फीसदी महिलाओं को ही रोजगार मिला है और शहरों में तो यह 20 फीसदी पर ही अटक गया।‘5 1991 की जनगणना के आंकड़ों में प्रत्येक 100 लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 945 थी लेकिन 2011 की जनगणना में आंकड़ा 918 पर ही ठहर गया है।6 कोरोना महामारी ने इन हालातों को और गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण बना दिया है। ग्रामीण महिलाएं भी ऐसी विषम परिस्थिति का सामना कर रही हैं। मुमताज भी जैसी ग्रामीण महिला की कहानी आशा की नई किरण जगाती है। निश्चित ही ग्रामीण महिला सशक्तिकरण में गंभीर चुनौतियां हैं परंतु बिना आर्थिक स्वावलंबन के ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं के सामाजिक एवं राजनीतिक स्वावलंबन की कल्पना नहीं की जा सकती है। आज सरकार खुद ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर है। जब सरकार की विभिन्न योजनाओं की जानकारी सोशल मीडिया पर आसानी से उपलब्ध है तब सोशल मीडिया महिलाओं की आर्थिक आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है।
(ब) वर्तमान समय में समस्त विश्व की शिक्षा व्यवस्था कोरोनावायरस महामारी से प्रभावित है। कोविड-19 महामारी जोकि वर्ष 2019 में चीन से शुरू हुई थी, अभी तक जारी है। इस महामारी की गंभीरता के कारण पूरे भारत में कुछ माह के लिए लॉकडाउन लगा दिया गया। इस दौरान सभी औद्योगिक इकाइयां, स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय आदि पूर्णतः बंद रहे। इस समय भी इस महामारी के फैलने का डर अभी बना हुआ है। ‘उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में शुक्रवार सुबह 2 अप्रैल 2021 को आयोजित टीम 11 की बैठक में पहली से 12वीं तक के स्कूली बच्चों को संक्रमण से बचाने के लिए स्कूलों को 11 अप्रैल 2021 तक बंद करने का निर्णय लिया गया है।‘7 ‘2001 की जनगणना के अनुसार देश की औसत साक्षरता दर 64.84ः, पुरुष साक्षरता दर 75.26ः तथा महिला साक्षरता दर मात्र 53.67ः है।‘8 कोरोना काल में यदि सोशल मीडिया जैसे जनसंचार के माध्यम नहीं होते तो देश की साक्षरता दर पर बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ते। खासकर महिलाओं की शिक्षा दर जो कि पुरुषों से लगभग 21.59 प्रतिशत कम है और भी अधिक कम हो जाती। ग्रामीण महिलाओं की शिक्षा दर जो शहरों की तुलना में कम है और भी कम हो जाती।
कोरोनाकाल में अब भी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद या कम सक्रिय हैं तब सरकार ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से विद्यार्थियों की ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था की है। इस व्यवस्था में सोशल मीडिया एप यूट्यूब, जूम, गूगलमीट आदि सोशल मीडिया एप्स ने ऑनलाइन पठन-पाठन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
सर्वविदित है कि भारत का अधिकांश बुद्धिजीवी वर्ग शहरी क्षेत्र में निवास करता है। इसके कारण ग्रामीण क्षेत्र को इनकी शिक्षाओं को ग्रहण करने का मौका नहीं मिल पाता है। परंतु सोशल मीडिया एप्स के आने के कारण यह स्थिति बदल चुकी है। आज सोशल मीडिया के माध्यम से देश-विदेश का कोई भी व्यक्ति कहीं दूर-दराज के किसी भी व्यक्ति को शिक्षित-प्रशिक्षित कर सकता है या शिक्षण-प्रशिक्षण में मदद कर सकता है। ग्रामीण महिलाएं भी यूट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़ चुकी हैं और इनकी मदद से शिक्षण एवं प्रशिक्षण ले रही हैं। इनसे जुड़कर वे अपने ज्ञान में वृद्धि कर रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से शिक्षा के क्षेत्र में जो नए अवसर ग्रामीण महिलाओं को मिले हैं उनकी आज से 20 वर्ष पहले तक तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। आज सोशल मीडिया की मदद से ग्रामीण महिलाएं बहुत लाभान्वित हो रही हैं। स्थानीय लोग जो किसी कारणवश शहरों या विदेशों में पलायन कर गए थे, ऐसे लोग ग्रामीण महिलाओं के शिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि ध्यान देने योग्य है बात है की सोशल मीडिया प्लेटफार्म से मिले अवसर हमें उतना ही सशक्त बनाते हैं जितना कि हम उनका सदोपयोग करते हैं।
ग्रामीण महिलाओं के शैक्षणिक विकास में भी सोशल मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। शिक्षा के क्षेत्र में भी सोशल मीडिया के लाभ उसकी हानियों से कहीं अधिक हैं। आता है सोशल मीडिया को शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक उपयोग करने की जरूरत है। इसके हानिकारक पहलुओं से सचेत रहते हुए इसका प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है। सोशल मीडिया में जो बातचीत, चिंतन, सहयोग, वैश्विक पहुंच और कम लागत की शिक्षा की जो भी संभावनाएं निहित हैं, वे भारत की ग्रामीण महिलाओं को शिक्षित, प्रशिक्षित एवं सबल बनाने में वरदान सिद्ध हो सकती हैं।
(स) निर्भया कांड जैसे मामले कौन भूल सकता है। देश की राजधानी में हुए इस जगन ने अपराध ने पूरे देश को झकझोर दिया था। ‘ 20 मार्च 2020 को सुबह 5ः30 बजे दी गई फांसी की सजा के साथ ही दिसंबर 2012 की सर्दियों में पूरे भारत को झकझोर देने वाले निर्भया कांड का अंत हो गया। लेकिन हर 15 मिनट में बलात्कार का एक मामला दर्ज करने वाले भारत के सामने महिलाओं के खिलाफ हो रही यौन हिंसा से जुड़े सवाल अब भी पहाड़ की तरह खड़े हैं।9 निर्भया, पायल तडवी, डेल्टा मेघवाल आदि महिला अपराधों से जुड़े मामले सोशल मीडिया में चर्चा का विषय रहे। वही महिला आरक्षण तीन तलाक जैसी राजनीतिक मुद्दे भी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय रहे। इन विषयों की चर्चा ग्रामीण भारत में भी खूब हुई। विभिन्न स्थानीय लोगों के यूट्यूब पर न्यूज चौनल खोलने के कारण ग्रामीण महिलाओं तक भी यह सभी मुद्दे पहुंच रहे हैं। स्थानीय लोगों के न्यूज चौनल खोलने से ग्रामीण महिलाओं को स्थानीय भाषा या बोली मैं इन मुद्दों के बारे में आसानी से जानकारी उपलब्ध हो रही है। निरक्षर महिलाओं को भी ऐसे मुद्दों पर चर्चा करने एवं इन्हें समझने का अवसर सोशल मीडिया की वजह से मिल रहा है। ऐसे में ग्रामीण महिलाएं आपस में स्थानीय स्तर पर ऐसे मुद्दों पर चर्चा कर अपनी राजनीतिक एवं सामाजिक समझ को विकसित कर रही हैं। सोशल मीडिया ने जो अवसर सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर उपलब्ध कराएं हैं वह अवसर प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अबतक उपलब्ध कराने में असफल रही है। ऐसा कतई नहीं है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सही काम नहीं किया परंतु इसका सबसे बड़ा कारण ग्रामीण भारत में प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पहुंच बहुत कम होना है। ग्रामीण महिलाओं के बीच में प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उनके निरक्षर होने की वजह से भी बहुत कम लोकप्रिय है। परंतु सोशल मीडिया ने बहुत कम खर्च में ही इस कमी को बड़ी आसानी से दूर कर दिया है। आज ग्रामीण महिलाएं यूट्यूब फेसबुक व्हाट्सएप में बोलकर लिख सकती हैं, आडियो-वीडियो मैसेज भेज व प्राप्त कर सकती हैं। इसके लिए उन्हें किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। थोड़े से ही प्रशिक्षण से ऐसे एप्स का आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।
सोशल मीडिया ने महिलाओं विशेषकर ग्रामीण महिलाओं को न केवल उनके अधिकारों के विषय में ही जागरूक किया है वरन उन्हें सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से भी सशक्त बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सोशल मीडिया के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं की पहुंच एवं जागरूकता स्वस्थ, शिक्षा, राजनीतिक, सामाजिक, रहन-सहन, स्थानीय मनोरंजन, लोकगीत, वैश्विक मुद्दों की समझ पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ गई है। यही कारण है कि सरकार की नीतियों और निर्णय लेने में लोगों की भूमिका बढ़ गई है। निशानदेही सोशल मीडिया ने ग्रामीण महिलाओं जिनमें अधिकांश शिक्षित लड़कियां हैं, में सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भावी चुनौतियां एवं निष्कर्ष –
वर्तमान समय में सोशल मीडिया ने ग्रामीण महिलाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों के प्रति चेतना जागाई है। परंतु मात्र जागरूकता बढ़ने से शहरी महिलाओं और ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं हो सकता है। आज आधुनिक सोशल मीडिया के युग में भी महिलाएं गरीबी, शोषण, बेरोजगारी, खाद्य असुरक्षा, पक्षपात, दहेज उत्पीड़नध्हत्या इत्यादि का शिकार हो रही हैं। यह जरूर है कि भारत सरकार के बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना, मनरेगा, दहेज निरोधक एक्ट आदि प्रयासों के कारण स्थिति बदली है परंतु इन प्रयासों को और अधिक व्यापक और प्रभावशाली बनाने की आवश्यकता है। ग्रामीण महिलाओं की स्थिति अभी भी निराशाजनक बनी हुई है। इन सभी समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब सरकार और प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं सोशल मीडिया आपस में मिलकर एक सही उद्देश्य के साथ, सही दिशा में, सही प्रयास करें। लोकतंत्र तभी अच्छा काम करता है जब उसके नागरिक अपने अधिकारों के बारे में जानते हो एवं उचित निर्णय लेने की उनमें क्षमता हो। निसंदेह सोशल मीडिया ने यह कार्य बखूबी किया है लेकिन सोशल मीडिया में गलत जानकारियां, झूठ, अफवाहें, पक्षपाती एवं भ्रामक विचार, महिलाओं का गलत चित्रांकन भी बड़ी तेजी से फैल रहा है। सोशल मीडिया में ग्रामीण महिलाओं की नकारात्मक छवि को खत्म करने के लिए अभी और प्रयास की जाने हैं। आज भी सोशल मीडिया पर वायरल भी जातर जानकारियां शहरी महिलाओं से संबंधित हैं। सुदूर गांव के भट्टे पर तपती धूप में, गोद में नवजात शिशु को गोद में लिए ईंट थापती औरत की बेबसी की खबरें कभी सोशल मीडिया पर वायरल नहीं होती हैं। हम सभी को ग्रामीण महिलाओं की स्थिति के बारे में और अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है।
डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था- ‘‘मैं किसी समुदाय की प्रगति को इस पैमाने पर देखता हूं कि उसकी महिलाओं ने कितनी प्रगति की है? महिलाओं के संगठन में मेरा अत्याधिक विश्वास है। यदि वे आश्वस्त हो जाएं तो समाज को सुधारने के लिए क्या नहीं कर सकती हैं?‘‘10 डॉक्टर अंबेडकर के समतामूलक समाज के सपने को पूरा करने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका हो सकती है। शिक्षा सामाजिक औद्योगिक राजनीतिक नीति आयोग राज्य सरकारों यानी सभी जगह महिला सशक्तिकरण की चर्चा चल पड़ी है। ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण पर सोशल मीडिया के कारण ही सबका ध्यान गया है। यह भविष्य के लिए एक सकारात्मक संकेत है।

सन्दर्भ सूची –
1) पैट्रिक एस एल घोष, परंजय गुहा ठाकुरता, डिजिटल स्पेस में विस्फोटन, योजना मई 2013, पेज-9।
2) Govt. announces new social media rules to curb its misuse,www.thehindu.com, date 25th Feb. 2021.
3) पार्थिव कुमार, पर्यटन विकास से बढ़ेंगे गांवों में रोजगार, कुरूक्षेत्र अक्टूबर 2014, पेज-16।
4) मधुश्री दास गुप्ता चटर्जी, सोशल मीडिया महिलाओं के सशक्तिकरण का साधन, योजना मई 2013, पेज-48।
5) ऋषभ .ष्ण सक्सेना, बालिका सशक्तिकरण हेतु योजनाओं का आंकलन, कुरूक्षेत्र जनवरी 2016, पेज-10।
6) ऋषभ .ष्ण सक्सेना, बालिका सशक्तिकरण हेतु योजनाओं का आंकलन, कुरूक्षेत्र जनवरी2016, पेज-10-11।
7) कोरोना का खौफ: यूपी सरकार का फैसला पहली से बारहवीं तक के स्कूल 11 अप्रैल तक बंद,www.amarujala.com दिनांक- 02 अप्रैल 2021।
8) भारत भूमि और उसके निवासी, भारत 2013, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, पेज-13।
9) प्रियंका दुबे, निर्भया कांड: मृत्यु दंड से क्या होगा हासिल? www.bbc.com दिनांक-19 मार्च 2020।
10) डॉ. भावना शुक्ल, डॉक्टर अम्बेडकर-महिला सशक्तिकरण के उद्धोषक, सामाजिक न्याय संदेश, अप्रैल 2015, पेज-63।

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