ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019

शिवकान्त यादव
एसोसिएट प्रोफेसर
डी0ए0वी0 (पी0जी0) कॉलिज, बुलन्दशहर

केन्द्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को सर्वप्रथम 19 जुलाई, 2019 को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था। विधेयक के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से विचार करने तथा उस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए 12 अगस्त, 2019 को यह विधेयक संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया था। अन्ततः 12 दिसम्बर, 2019 को राज्यसभा तथा लोकसभा से पारित होने और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के उपरान्त यह विधेयक अधिनियम बन गया। ’’नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 की मुख्य विशेषताएँ’’1 निम्नलिखित हैं।
इस अधिनियम के तहत 31 दिसम्बर, 2014 तक धर्म के आधार पर प्रताड़ना के चलते पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के अनुयायी को अवैध घुसपैठिया नहीं माना जाएगा, बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी।
इस अधिनियम की विशेष बात यह है कि इस अधिनियम में मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान नहीं की जा सकेगी, इसके पीछे यह कारण दिया गया है कि उक्त तीनों देश इस्लामी देश हैं और मुस्लिम वहाँ बहुसंख्यक हैं।
पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए कम-से-कम पिछले 11 वर्ष से यहाँ रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक वर्ष से लेकर 06 वर्ष किया गया है अर्थात इन तीनों देशों के छह धर्मों को मानने वाले लोगों को बीते एक से 06 वर्षों में भारत आकर बसने पर भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।
इस अधिनियम में नागरिकता अधिनियम या किसी भी अन्य कानूनों के उल्लंघन के मामले में सरकार को भारत के विदेशी नागरिकता (ओवरसीज सिटिजन ऑफ इण्डिया,) कार्डधारकों के पंजीकरण को रद्द करने का भी प्रावधान किया गया है।
इस अधिनियम के अनुसार, सरकार अब किसी भी उल्लंघन की स्थिति में पंजीकरण को रद्द कर सकती है, इसमें हत्या जैसे गम्भीर अपराध और ट्रैफिक कानून के उल्लंघन जैसे अपराध भी शामिल हैं।
केन्द्र सरकार का कहना है कि ये अल्पसंख्यक समूह मुस्लिम बहुल राष्ट्रों में उत्पीड़न से बच गए हैं। हालांकि यह अधिनियम सभी धार्मिक अल्पसंख्यमकों की रक्षा नहीं करता है और न ही सभी पड़ौसियों पर लागू होता है। पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमम समुदाय और यहां तक कि शिया समुदाय भी भेदभाव का सामना करते हैं। म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिम व हिन्दू तथा श्रीलंका में ईसाई, तमिल व हिन्दू उत्पीडन झेल रहे हैं। सरकार का मानना है कि मुसलमान इस्लामी राष्ट्रों में शरण लें सकते हैं, लेकिन हिन्दू समेत अन्य अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों के लिए भारत ही एक रास्ते के रूप में नजर आता है।
नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है, जो भारत में वैद्य यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के बगैर घुस आए हो, या फिर वैद्य दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हो, लेकिन उसमें उल्लिखित अवधि से ज्यारा समय तक यहां रूक जाएँ। नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती।
अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है, लेकिन केन्द्र सरकार ने वर्ष 2015 और 2016 में विदेशी अधिनियम 1946 तथा पासपोर्ट अधिनियम 1920 में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को छूट दी हैं।
इसका अर्थ यह हुआ कि इन धर्मों से सम्बन्ध रखने वाले लोग अगर भारत में वैद्य दस्तावेजों के बगैर भी रहते है तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनकों निर्वासित किया जा सकता है।
यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उन लोगों को प्राप्त है, जो 31 दिसम्बर 2014 को या उससे पहले भारत पहुँचे। इन्हें धार्मिक समूहों को नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 संसद में पेश किया गया था। इस अधिनियम के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये जाते हैं।
देशीयकरण की लम्बी प्रक्रिया से इन तीन देशों (पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान) के छह अल्पसंख्यक समुदायों को अवैध प्रवासी माना जाता है और भारतीय नागरिकतों को मिलने वाले लाभों से इन्हें वंचित रहना पड़ता है।
यह अधिनियम देश की पश्चिमी सीमाओं से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में आए उत्पीड़ित प्रवासियों को राहत प्रदान करेगा।
नागरिकता अधिनियम, 2019 का समर्थन करने वालों का मानना है कि इससे ’भेदभाव और धार्मिक उत्पीड़न’ झेलने वाले प्रवासियों को राहत मिलेगी।
नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत इन छह अल्पसंख्यक समुदाय सहित भारतीय मूल के कई लोग नागरिकता पाने में असफल रहते थे। इस नए अधिनियम से उन्हें राहत प्रदान होगी।
इस अधिनियम के समर्थकों का मानना है कि यह अधिनियम नागरिकता देने के सम्बन्ध में है, नागरिकता छीनने के सम्बन्ध में नहीं।
इन तीन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की लगातार घट रहीं संख्या को विश्व पटल पर लाने मंे यह अधिनियम सफल साबित होगा।
विपक्षियों द्वारा इस नागरिकता अधिनियम को वर्ष 1985 के असम समझौते से पीछे हटने के एक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है।
यह अधिनियम नागरिकता देने के लिए अवैध प्रवासियों के बीच धार्मिक आधार पर भेदभाव संविधान के अनुच्छेद – 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार की संवैधानिक गारण्टी के विरूद्ध है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 का विरोध करने वालों का मानना है कि यह संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता है।
यह अधिनियम असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को बाधित करेगा, जो किसी भी धर्म के अवैध प्रवासी को एक पूर्व निर्धारित समय-सीमा के आधार पर परिभाषित करता है।
ओ0सी0आई0 कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने का प्रावधान केन्द्र सरकार के विवेकाधिकार का दायरा विस्तृत करता है, क्योंकि कानून के उल्लंघन में हत्या जैसे गम्भीर अपराध के साथ यातायात नियमों का मामूली उल्लंघन भी शामिल है।
असम समझौते में 24 मार्च, 1971 के बाद बिना वैद्य दस्तावेजों के असम में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को विदेशी नागरिक माना गया है। इस मामले में यह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
असम में स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दे पर जारी हिंसक प्रदर्शन के समाधान के लिए वर्ष 1983 में बातचीत की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई तथा 15 अगस्त, 1985 को केन्द्र सरकार और आन्दोलनकारियों के बीच समझौता हुआ जिसे ’असम समझौता’ के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के अन्तर्गत वर्ष 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार देने का फैसला हुआ। उसके बाद वर्ष 1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिए गए, लेकिन उन्हें मतदान देने का अधिकार प्रदान नहीं किया गया।
इस समझौते के अनुसार 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विरोधियों को कानून के अनुासर निष्कासित किया जाएगा। यह भी निर्णय लिया गया कि असमिया भाषा लोगों के सांस्कृतिक सामाजिक और भाषायी पहचान की सुरक्षा के लिए विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय किए जाएंगे।
कालान्तर में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर 31 दिसम्बर, 2017 को असम के लिए नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एन0आर0सी0) का मसौदा जारी किया गया जिसमें दो करोड़ से ज्यादा लोगों के नाम हैं। इस मसौदे को लेकर राज्य में भारी असन्तोष देखने को मिला।
भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात देश के बँटवारे से उपजी विभिन्न समस्या के हल के लिए सर्वप्रथम 1955 में नागरिकता अधिनियम लाया गया था। भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है। भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार निम्न में से किसी एक के आधार पर नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।
वह प्रत्येक व्यक्ति जिसका जन्म संविधान लागू होने अर्थात 26 जनवरी, 1950 को या उसके पश्चात भारत में हुआ हो, वह जन्म से भारत का नागरिक होगा। राजनियकों और विदेशियों की सन्तान इसका अपवाद है।
भारत के बाहर अन्य देश में 26 जनवरी 1950 के बाद जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई भारत का नागरिक है।
भारत सरकार से देशीयकरण का प्रमाण-पत्र प्राप्त कर भारत की नागरिकता प्राप्त की जा सकती है।
निम्नलिखित वर्गों में आने वाले लोग पंजीकरण के द्वारा भी भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
– वे व्यक्ति जो पंजीकरण प्रार्थना-पत्र देने की तिथि से छह महीने पहलीे से भारत में रह रहे हो
– वे भारतीय, जो विभाजन पूर्व भारत से बाहर किसी देश में निवास कर रहे हों।
– वे स्त्रियाँ, जो भारतीयों की अवयस्क सन्तान
– राष्ट्रमण्डलीय देशों के नागरिक, जो भारत में रहते हो या भारत सरकार की नौकरी कर रहे हो, आवेदन देकर भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
यदि किसी नए भू- भाग को भारत में शामिल किया जाता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को स्वतः भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
इस अधिनियम को लेकर देशभर में अनेक प्रदर्शन हुए,Several protests some peaceful, some violent erupted across India against the police crackdown in Jamia Millia Islamia here and the controversial citizenship law as students and political leaders took to the streets, even as Prime Minister Narendra Modi called these protests “deeply distressing” and appealed for peace.’2 तथा सर्वाेच्च न्यायालय “took serious note of rioting and destruction of public property during protests against the Citizenship Amendment Act across the country and said that “violence must stop immediately.”3
सारा बवाल ’नागरिकता कानून’ में उस बदलाव को लेकर है, जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर 31 दिसम्बर 2014 से पहले भारत आए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी लोगों को बिना दस्तावेज दिखाए नागरिकता दी जा सकेगी। संशोधित कानून के तहत इन देशों के मुसलमानों को यह सहूलियत नहीं दी जाएगी क्योंकि ये तीनों देश घोषित रूप से इस्लामिक देश हैं, जहां मुस्लिम आबादी के प्रताड़ित होने की सम्भावना नहीं हो सकती।3
’नागरिकता देना या न देना निश्चय ही निर्विवाद रूप से संप्रभु राज्य का एकाधिकार है पर इस विषय में किसी भी नीति के निर्धारण और निर्णय के राजनयिक प्रभाव के बारे में दूरदर्शी विचार विमर्श की दरकार है।4
नागरिकात संशोधन अधिनियम भले ही लागू हो गया है लेकिन सरकार को इस सम्बन्ध में अनेक विरोधों को सामना करना पड़ रहा है। पूरे देश में इसके खिलाफ प्रदर्शन चल रहे है। भ्रम का जाल जब अपना विस्तार करता है तो अटूट भरोसा भी उसकी मार से बच नहीं पाता। नागरिकता संशोधन कानून पर देश में मचा बबाल इसी बात की बानगी है।
सन्दर्भ सूची:-
1. The Gezette of India, Part II- Section-1, Ministry of Law and Justice, Legislaton Department, Dec 12, 2019, New Delhi rFkk The citizenship (Amendment) Act, 2019
2. Several Univ Express Solidarity, The Times of India, New Delhi, 17 Dec 2019
3. Violence must stop at once : SC, The Times of India, New Delhi, 17 Dec. 2019
4. उपेन्द्र राय, ’अपनो से कैसा बैर? ’’हस्तक्षेप’’, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय सहारा दिनंाक 21 दिसम्बर 2019
5. पुष्पेश पंत, ’विदेशों में धूमिल हुई भारत की धर्मनिरपेक्ष-जनतांत्रिक छवि’, ’’हस्तक्षेप’’ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय सहारा, दिनांक 21 दिसम्बर 2019

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