ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

सोशल मीडिया नियमन-वैश्विक दृष्टि

डॉ0 शिवकान्त यादव
एसो0प्रोफेसर
डी0ए0वी0 (पीजी) कॉलिज, बुलन्दशहर

देश में सोशल मीडिया को लेकर केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए नये आईटी नियमों पर बहस छिड़ी हुई है। हालांकि तमाम विरोध और आनाकानी के पश्चात सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म फरवरी में लाए गए नियम को मानने के लिए राजी हो गए हैं। इस बहस के दो मुख्य तर्क निकल कर सामने आ रहे हैं। पहला, नये नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक होंगे, और दूसरा, ये नियम सोशल मीडिया को अधिक पारदर्शी और जिम्मेदार बनाएंगे। इन नियम को समझें तो स्पष्ट पता चलता है कि ’’बेलगाम घोड़े की भांति दौड़ते सोशल मीडिया पर आवश्यक अंकुश जरूरी था। समय की भी आवश्यकता थी। हम देखें तो आज फेक न्यूज और फर्जी आंकड़े, भड़काऊ सामग्री इन्हीं माध्यम से सबसे ज्यादा प्रचारित प्रसारित हो रही हैं।’’1
इस बहस का एक प्रमुख बिन्दु यह भी होना चाहिए कि ऐसे नियम बनाने वाला क्या भारत पहला देश है? विश्व के कई देशों ने सोशल मीडिया पर निगरानी और उसकी जबावदेही तय करने के लिए कानून बनाए है तथा इन कंपनियों ने अपनी सहमति भी जताई है। भारत में ये कंपनियां अड़यिल रूख क्यों अखित्यार कर रही हैं? क्या खुद को भारत के संविधान से बड़ा समझने लगी हैं? जिस तरह से विवाद गहराता गया, उससे तो यही लगता है कि इन कंपनियों ने यहीं मुगालता पाल लिया था। बहरहाल, विश्व के अन्य देशों में सोशल मीडिया कैसे रेग्यूलेट होती हैं, हमें इसको भी समझना होगा। जर्मनी में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक और नस्लीय भेदभाव पैदा करने वाले कंटेट के प्रति जबावदेही तय करने वाला कड़ा कानून 2018 में पारित किया गया था। इस कानून के अनुसार एक तय समयावधि में आपत्तिजनक कंटेट अपने प्लेटफार्म से हटाना होगा। ऐसा नहीं करने पर 50 मिलियन यूरो का भारी जुर्माना देना होगा। रूस में भी सोशल मीडिया के रेग्युलेशन के लिए नये कानून पारित किए गए जिनमें आपातकालीन स्थिति में वे वेब से कनेक्शन बंद करने की अनुमति देते हैं। ऑस्ट्रेलिया ने इस विषय की गंभीरता को पहले ही समझ लिया था। 2015 में ही उसने एक सुरक्षा आयुक्त बनाया। 2019 में घृणित कंटेट अधिनियम बनाया जिसके तहत सोशल मीडिया कंपनियों पर आपराधिक दंड के साथ वैश्विक कारोबार का 10प्रतिशत तक का वित्तीय दंड लगाया जा सकता है।
युरोपीय संघ के कानून की चर्चा आज सब जगह हो रही हैं। यूरोपीय संघ ने 2016 में जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन पेश किया जिसके तहत जो कंपनियां उपयोगकर्ताओं के डाटा इकट्ठा करती हैं, उनके लिए नियम तय किए गए। इनमें कॉपीराइट तक की जिम्मेदारी सोशल मीडिया प्लेटफार्मो को दी गई। आंतकवाद से जुड़े कंटेंट को लेकर यूरोपीय यूनियन इतना सख्त है कि एक घंटे के भीतर अगर प्लेटफार्म कंटेंट को नही हटाता है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है। इसी तरह अमेरिका में फेडरल कम्यूनिकेशन कमीशन हैं यहां सोशल मीडिया कंपनियों की पक्षधरता साफ दिखाई देती है। कैपिटल हिल में हुई हिंसा के बाद इन कंपनियों ने स्वतः फुर्ती दिखाते हुए आपत्तिजनक सोशल मीडिया अकांउट्स को बंद करने शुरू कर दिए। वहां किसी भी विवादित मसले पर इन कंपनियों के अधिकारी अमेरिकी संसद में पेश हो जाते हैं। न्यायालय के फैसलों पर इनकी जबावदेही तय हो जाती है। इस तरह विश्व के कई देश अपनी एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए सोशल मीडिया की सीमा तय करके उन्हें जबावदेह बनाते हैं। ’’आज भारत भी अपनी एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए वैधानिक कार्य कर रहा है, तो ये कंपनियां हायतौबा मचा रही हैं। ये ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म अमेरिका और यूरोप के देशों में आतंकवाद आदि से जुडे जानकारी सरकार को बिना देर किए उपलब्ध कराते हैं। वहीं भारत में ये कंपनियां निजता का अधिकार की दुहाई देकर अपने दोहरे रवैये को उजागर कर रही हैं।’’2
विदेशी कंपनियों को भारत में काम करना है, ’’तो उन्हें भारत के नियमों और कानूनों को मानना पड़ेगा, भारत की अंदरूनी राजनीति से पूर्णतः निरपेक्ष होना पड़ेगा और ऐसे लोगों की नियुक्तियों से भी बचना होगा, जो उनके यहां पदासीन होकर राजनीतिक एजेंडा चलाते हैं। इन विदेशी कंपनियों को समझना होगा कि चूंकि हर देश के अपने नियम, कानून और संविधान होते हैं, जो उनके लिए स्वाभाविक रूप से इन कंपनियों की कथित ग्लोबल पॉलिसी से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।’’3 निम्न कुछ उन देशों के उदाहरण है, ’’जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया पर लगाम कसी हैं।’’4
तुर्की: तुर्की के प्रधानमंत्री तैय्यप एर्दोगन ने भ्रष्टाचार पर एक ऑडियों रिकॉर्डिंग साझा किए जाने के बाद 2014 में ट्विटर पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। एर्दोगन ने दावा किया कि उनके दुश्मन ट्विटर के जरिए सिस्टम को गाली दे रहे थे। उन्होंने ट्विटर का सफाया करने की कसम खाई थी। यह प्रतिबन्ध केवल दो सप्ताह तक चला, जब तक कि 2015 में इसे फिर से अस्थायी रूप से अवरूद्ध नहीं किया गया। इस बार, फेसबुक औश्र यूटयूब को भी बंद कर दिया गया था। यह एक सरकारी अभियोजक मेहमत सेलिम किरज की छवियों को प्रसारित होने से रोकने के प्रयास में किया गया था, जो आतंकवादियों द्वारा बंधक बना लिए गए थे और सुरक्षा बलों की बचाव कार्यवाई में मारे गए थे। 2015 में ही प्रतिबन्ध हटा दिया गया लेकिन तुर्की ट्विटर के लिए कांटा बना हुआ है। देश ने बड़ी संख्या में ट्वीट हटाने के अनुरोध किए हैं। 2014, 2015 और 2016 में उसके सबसे अधिक अनुरोध थे। ट्विटर के अनुसार, जो ट्विीट हटाने के अनुरोध किए जाते हैं, उनमें से आधे तुर्की से बाहर से आते हैं।
ईरान: 2009 के ईरानी राष्ट्रपति चुनाव ने ऑनलाइन सेंसरशिप की शुरूआत हुई। तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अदमदीनेजाद तितरफा मुकाबले में थे। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी सीसीआरएफ उम्मीदवार मीर-होसैन मौसवी थे। अहमदीनेजाद को मतदान के बीच ही 62 प्रतिशत मतों से विजेता घोषित कर दिया गया। यह ईरानियों के एक बड़े गुट को ठीक नहीं लगा। सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए, पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। सरकार ने फेसबुक, ट्विटर और यूटयूब पर प्रतिबन्ध लगा दिया। ध्यान देने वाली बात यह है कि जहां देश अपने विरोधियों के लिए सोशल मीडिया को सेंसर करता है, वहीं वहा की सरकार अपने लिए सोशल मीडिया की मौजूदगी बनाए रखती हैं। उदाहरण के लिए, ईरान के राष्ट्रपति दो ट्विटर खातों को बनाए रखते हैं। एक अंग्रेजी में और दूसरा फारसी में जहां वह विदेशी और घरेलु मामलों के बारे में ट्वीट करते हैं। हालांकि ईरान के सोशल मीडिया प्रतिबन्ध को हटा दिया गया, लेकिन यह वेब पर कुछ सामग्री को अवरूद्ध करने के लिए स्मार्ट फिल्टरिंग का उपयोग करता है। वे उस सामग्री को सेंसर करते हैं, जो उन्हें आपत्तिजनक लगती है, जो सरकार या इस्लामी आस्था के खिलाफ होती है। हालांकि कुछ समय से ईरान में स्थायी सोशल मीडिया प्रतिबन्ध नहीं है, लेकिन सरकार समय-समय पर राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान ब्लॉक का उपयोग करती है। विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला को रोकने के प्रयास में 2017 और 2018 में इंस्टाग्राम और टेलीग्राम तक पहुँच को अवरूद्ध कर दिया था।
वियतनाम: वियतनामी सरकार सोशल मीडिया को लेकर दुविधा में हैं। रोक की शुरूआत 2009 में हुई जब देश ने एक सप्ताह के लिए फेसबुक तक पहुँच को अवरूद्ध कर दिया। हालांकि आधिकारिक रूप से प्रतिबन्ध को कभी स्वीकार नहीं किया गया, फिर भी सरकार को नागरिकों को सरकार की आलोचना करने से रोकने का एक तरीका मिल गया है। आज वियतनाम सरकार सोशल मीडिया साइटों को बेतरतीब ढंग से ब्लॉक करना जारी रखती है, हालांकि घोषित रूप से सोशल मीडिया को संेसर नहीं करती। यह 2016 के जून में लिंक्डइन पर प्रतिबन्ध लगाने तक चली गयी थी, सरकार ने कार्रवाई से इनकार करने का प्रयास किया, लेकिन बाद में यह झूठ साबित हुआ।
उत्तर कोरिया: उत्तर कोरिया ने तो सब कुछ सेंसर कर दिया। उसकी सेंसरशिप सोशल मीडिया के दायरे से बहुत आगे तक है। अधिकांश आबादी को इंटरनेट का उपयोग करने पर रोक हैं, इंटरनेट का उपयोग विशेष रूप से उच्च रैकिंग वाले सरकारी अधिकारियों, वैज्ञानिकों और कुलीन छात्रों के लिए आरक्षित है। लेकिन यहां तक कि इन व्यक्तियों पर भी कड़ी निगरानी है। यह पाबंदियां विदेशों में तैनात उत्तर कोरियाई अधिकारियों पर भी लागू होती है। सभी इन्टरनेट कनैक्शन जो इन लोगों तक पहुँचते हैं, उन पर उत्तर कोरियाई स्टाफ सदस्यों द्वारा कड़ी निगरानी रखी जाती है। देश का उद्देश्य मीडिया के सभी रूपों को नियन्त्रित करना हैं। यहां लोग रेडियों से लेकर राज्य प्रायोजित टेलीविजन और सरकार द्वारा स्वीकृत इन्टरनेट का ही उपभोग करते हैं। सरकारी इन्टरनेट की पहुँच बहुत कम वेबसाइटों तक है। 2013 में, उत्तर कोरिया ने विदेशी आंगतुकों को 3 जी मोबाइल नेटवर्क तक पहुँचने की अनुमति देना शुरू कर दिया। इसलिए उत्तर कोरिया में आगंतुक विदेशी इन्टरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए तीन घंटे के दौरान 30 सेंकण्ड तक के वीडियों को बफर कर सकते हैं। लेकिन खुद उत्तर कोरियाई लोग अब भी प्रतिबन्धित हैं। अधिकांश उत्तर कोरियाई लोगों को इस बात का कोई आभास नहीं है, कि इन्टरनेट वास्तव में क्या है, और यह क्या कर सकता है। वीपीएन को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है, साथ ही उनके उपयोग के लिए दंड भी अस्पष्ट हैं जबकि कुछ का कहना है कि उल्लंघन एक साधरण जुर्माने के साथ किए गए हैं, दूसरों ने संकेत दिया है कि वीपीएन का उपयोग करते हुए पकड़े गए उत्तर कोरियाई लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है। उत्तर कोरिया के बारे में यह दिलचस्प है कि लोगों को पता नहीं चल सकता है कि उन पर अत्याचार किया जा रहा है। चूंकि उनके पास कभी भी सही इन्टरनेट या सोशल मीडिया नहीं था, जिससे शुरूआत करने के लिए, उनके पास यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि वे इंटरनेट की दुनिया से क्यों गायब हैं। यह उत्तर कोरियाई जीवन की दुखद वास्तविकता है।
बांग्लादेश: 2015 में बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने दो दोषी युद्ध अपराधियों की मौत की सजा को बरकरार रखने का फैसला किया। इस पर भड़के आक्रोश के बाद सरकार ने इन्टरनेट के उपयोग पर पूरी तरह रोक लगा दी।
संक्षिप्त आउटेज के बाद जब इंटरनेट वापस आया तो कई सेवाएं अवरूद्ध हो गई। इसमें फेसबुक जैसी सोशल मीडिया साइट्स और व्हाट्सअप जैसे लोकप्रिय मैसेजिंग ऐप शामिल थे। पहले सरकार ने कहा कि यह एक गलती थी, जबकि यह सच नहीं था। अन्ततः ब्लॉक के पक्ष में सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए बयान में संशोधन किया गया। एक महीने से अधिक समय तक फेसबुक की पहुँच कम थी। ट्विटर और कई चैट ऐप्स बहुत अधिक समय तक प्रतिबन्धित रहे।
अमेरिकाः ऐसी कोई संस्था नहीं है जो सोशल मीडिया को लेकर तय कर सके कि क्या जाना चाहिए और क्या नहीं। वैसे फेडरल कम्युनिकेशन कमीशन के नियम सभी माध्यमों पर लागू हैं। इसके अलावा राज्यों के कानून भी हैं, जो यूजर डेटा संग्रहण और उनके इस्तेमाल को लेकर नियमन करते हैं। हालांकि देश में सोशल मीडिया अभी भी सेल्फ रेगुलेशन के आधार पर संचालित हो रही है।
युगांडाः यह अफ्रीकी राष्ट्र एक नई सनक का परीक्षण कर रहा है, जिसे राजनीतिक विश्लेषकों ने तानाशाही के रूप में वर्णित किया है। मौजूदा राष्ट्रपति 1986 से सत्ता में हैं, लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया सेंसरशिप में घुसपैठ शुरू हुई है। इन सेवाओं पर प्रतिबन्ध लगाने की बजाय युगांडा सोशल मीडिया ऐप्स पर भारी कर लगाने की कोशिश कर रहा है। विवादास्पद कर 60 अलग-अलग मोबाइल ऐप्स के लिए प्रतिदिन 200 युगांठा शिलिंग चार्ज करेगा। इनमें फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सअप प्रमुख हैं। आलोचकों ने युगांठा के राष्ट्रपति पर सबसे गरीब नागरिकों की आवाज को दबाने और मुक्त अभिव्यक्ति का अधिकार छीनने का आरोप लगाया है। युगांठा के राष्ट्रपति ने लक्जरी आइटम के रूप में सोशल मीडिया के उपयोग का उल्लेख करते हुए इसका बचाव किया है।
दुनिया भर में कई देशों ने सोशल मीडिया वेबसाइटों पर अपने लोगों की पहुँच को अवरूद्ध करने के लिए असाधारण कदम उठाए हैं। ऐसा करने से बाकी दुनिया की नजरों से मुक्त एक सेंसरयुक्त वातावरण बनता है। लेकिन क्या आज सोशल मीडिया एक बुनियादी मानव अधिकार नहीं बन गया हैं? क्या यह आन्तरिक रूप से व्यक्तिगत स्वतंत्रता से बंधा है? क्या हम एक ऐसा दिन देंखेगे जहां दुनिया में हर कोई ट्वीट करने के लिए स्वतंत्र है ? यही अपेक्षा है, यही आशा है। कई देशों में भी ’’सोशल मीडिया सर्वर को लेकर विवाद जारी और मांग उठ रही है कि यूजर्स का डेटा स्थानीय स्तर पर स्टोर किया जाए।’’5 वैसे तो हर देश में सरकारें सोशल मीडिया पर आजादी का पक्ष लेती हैं ’’लेकिन हिंसा, आतंकवाद, साइबर बुलिंग और चाइल्ड एब्युज जैसे मामलों को बढ़ावा देने वाले कंटेट को लेकर तमाम देशों ने निगरानी और नियमन के लिए तमाम संस्थाएं बनाई हैं और नियम भी तय किए हैं।’’6
ऑस्ट्रेलियाः 2019 में पारित कानून में नियमों के उल्लंघन पर कंपनियों पर आपराधिक जुर्माना, 03 साल तक की जेल और कंपनी के ग्लोबल टर्नओवर के 10 फीसद जुर्माने तक की व्यवस्था की गई। न्यूजीलैंड में मस्जिद शूटिंग की शूटिंग की घटना के लाइव स्ट्रीमिंग को लेकर सख्त कार्यवाही इसी नियम के तहत शुरू की गई। इससे पहले 2015 में आए ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट में आपत्तिजनक पोस्ट को हटाने को कहने का अधिकार ई-सेफ्टी कमिश्नर को दिया गया, जिसमें बाद में 2018 में रिवेंज पोर्न पर सख्त एक्शन के प्रावधानों को भी जोड़ा गया।
रूसः इमरजंेसी रूल एजेंसियों को ये अधिकार देता है कि वे किसी आपात स्थिति में ’वर्ल्डवाइड वेब’ को स्विच ऑफ कर सकें। रूस का 2015 का डेटा लॉ सोशल मीडिया कंपनियों के लिए ये अनिवार्य करता है कि रूस के लोगों से जुड़े डेटा को रूस में ही सर्वर में स्टोर करना होगा।
यूरोपः ब्रिटेन में लंबे समय से सोशल मीडिया कंपनियों के सेल्फ रेगुलेशन पर सरकार का जोर है। लेकिन जर्मनी ने 2018 में कानून बनाया, जो 20 लाख से ज्यादा यूजर्स वाली सोशल मीडिया कंपनियों पर लागू होता है। इसमें कंपनियों के लिए किसी आपत्तिजनक कंटेट को लेकर शिकायत आने के 24 घंटे के अंदर उसे हटाना अनिवार्य हैं इन नियमों के पालन में कमी रहने पर किसी शख्स के लिए 05 मिलियन यूरो और कंपनियों के लिए 50 मिलियन यूरो तक के जुर्माने की व्यवस्था की गई। आतंकवाद से जुड़े वीडियोज को लेकर यूरोपीय यूनियन ने काफी सख्ती दिखाई। एक घंटे के अंदर कट्टरपंथ से जुड़े वीडियो नहीं हटाने पर सख्त कार्यवाई का नियम बनाया। ईयू ने जर्मनी के कानून को लागू किया जिसमें सोशल मीडिया और अन्य कंपनियों के लिए डेटा स्टोरेज और लोगों के डेटा के इस्तेमाल को सुरक्षित करने के उपाय किए गए हैं। सदस्य देशों के लिए भी अपने यहां 2021 तक इन नियमों को लागू करने की समयसीमा तक की गई।
चीनः यहां ट्विटर, गूगल और व्हाट्सऐप जैसी सोशल मीडिया साइट्स ब्लॉक हैं। विकल्प के तौर पर चीन ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफामर््स डेवलप किए हैं। गूगल की स्वामित्व वाली यूटयूब ने जुलाई और सितम्बर 2019 के बीच 8.8 मिलियन वीडियों अपने प्लेटफार्म से हटाए। जिसमें से 93 फीसद नियमों के मुताबिक ऑटोमेटिक मशीनों द्वारा हटाए गए जो किसी न किसी नियम का उल्लंघन करते थे। इसी अवधि के दौरान 3.3 मिलियन चैनल और अब 517 मिलियन कमेंट भी हटाए गए। इन कंपनियों ने दुनियाभर में अपने हजारों कर्मचारियों को आपत्तिजनक कंटेट को हटाने और निगरानी के काम में लगाया हुआ है। इंस्टाग्राम ने भी लाखो पोस्ट पोर्नोग्राफी जुड़े हुए पोस्ट हटाए। इस कम्युनिस्ट राष्ट्र का अपने नागरिकों के जीने के अधिकार पर ताकत के इस्तेमाल का लंबा इतिहास है। 1980 में ही ब्लैक लिस्टेड वेबसाइटों को लोगों की नजर सेदूर रखने के लिए चीन का ग्रेट फायरवॉल बनाया गया था। इस सूची में अधिकांश सामाजिक और स्ट्रीमिंग सेवाएं शामिल हैं। तीन बड़े सामाजिक चैनल अरब स्प्रिंग से एक साल पहले ही 2009 में बंद कर दिए गए। चीन ने वीपीएन पर भी प्रतिबन्ध लगाए, सिवाए उन लोगों के जो सरकार की इच्छा के अनुरूप चलते थे। चीन के मुस्लिम अल्पसंख्यक उइगरों द्वारा किए गए शिनजियांग दंगों के साथ सामाजिक अवरोधन की शुरूआत हुई। उइगरों का प्रदर्शन ंिहंसा की लहर में बदल गया। अरब स्प्रिंग की ही तरह इन कार्यकर्ताओं ने फेसबुक का उपयोग अपने संचार नेटवर्क के हिस्से के रूप में और स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए किया। दंगे भड़कने के बाद, चीन सरकार ने उन साधनों पर रोक की शुरूआत की, जिनका नागरिक उपयोग कर सकते थे। सोशल मीडिया पर प्रतिबन्ध लगाने से चीन को राजनीतिक और राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर जानकारी की नियन्त्रित करने की शक्ति मिली कि वे दुनिया तक किस रूप में पहुँचे। हालांकि चीन में एक राष्ट्रीय सोशल मीडिया साइट है, जिसे वीबों कहा जाता है, जहां स्थानीय लोगों को इसके तहत मेलजोल करने की अनुमति है। सोशल मीडिया के स्थानीयकरण ने चीन को अपना एकाधिकार बनाने की ताकत दी है। चीन के भीतर कुछ स्थन हैं, जहां फेसबुक अनब्लॉक है। इसमें कुछ ही जिलों तक पहुँचा जा सकता है। जैसे शंघाई। यह भी काबिलगौर है कि ये सेवाएं हांगकांग में पूरी तरह से अनब्लॉक हैं, जो अनिवार्य रूप से खुद को नियन्त्रित है।
शुरूआत में, सोशल मीडिया को इन देशों के लिए एक बड़े खतरे के रूप में नहीं देखा गया था। यह सब तब बदला जब 2010 में ’अरब स्प्रिंग’ हुआ। दिसम्बर, 2010 और दिसम्बर , 2012, के बीच कई अरब देशों में सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं के विरोध प्रदर्शनों की एक लहर उठी। ट्यूनीशिया, लीबिया, मिस्त्र, यमन, सीरिया और बहरीन में लोग दमनकारी शासन के खिलाफ उठ खड़े हुए। ये सरकारें इससे या तो हिल गई या उन्हें इस आंदोलन के जरिए पूरी तरह से उखाड़ फेंका गया।
सोशल मीडिया को पहले पहल सेंसर करने वाले अधिकतर रूढ़िवादी सरकारों वाले देश थे। इनमें अधिकांश देश ’असंतुष्टों’ की आवाजों पर अंकुश लगाना चाहते थे जो उनकी सरकार का विरोध करते हैं। इनमें दूसरे राजनीतिक दल, अन्य अवरोधक, या स्वतंत्र प्रेस शामिल थे। लेकिन एक खास मुद्दा धर्म था। कई इस्लामिक देशों ने धर्म विरोधी संदेशों को प्रतिबन्धित या सेंसर करने की मांग की। धार्मिक विश्वास के खिलाफ उठने वाली आवाजों, या धार्मिक आग्रहों को अपने मूल्यों से बाहर रखने वालों को रोक लगाकर या सेंसरशिप के माध्यम से खामोश कर दिया जाता था।
बाकी दुनिया अरब देशों में घटित इन घटनाओं की गवाह बनी और अपनी आबादी पर कठोर नियंत्रण रखने वाले कई शासक घबरा उठे। जो युवाओं में बदलाव के विचारों को फैलने से रोकना चाहते थे। धार्मिक संघर्ष का हवाला देकर और देश पर खतरे का भय दिखाकर, लोगों के इकट्ठा होने और सरकारों का विरोध रोकने के लिए इन्टरनेट के उपयोग पर तुरंत बाधांए लगा दी गई, तब लोगों ने सोशल मीडिया और कई वेबसाईटों पर सरकारी रोक से बचने के लिए अन्य वर्चुअल प्राईवेट नेटवर्क का इस्तेमाल शुरू कर दिया। लेकिन इन सरकारों ने अगली चाल निकाली जो वीपीएन को एकमुश्त प्रतिबन्धित कर रही थी या वीपीएन को सरकार को एक बैकडोर देने पर मजबूर करती थी, ताकि वे उनके डेटा तक पहुंच सके। (जैसे चीन और रूस में हुआ) जब वेबसाइटों पर प्रतिबन्ध लगाने का समय आया, तो पहले सोशल मीडिया का नम्बर आया क्येांकि ये अरब स्प्रिंग के लिए लॉन्चिग प्लेटफॉर्म थे।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के नियमन सम्बन्धी भारत सरकार के दिशा-निर्देशों को लेकर सोशल मीडिया कंपनियों और सरकार के बीच तलवार खिंचे होने जैसे हालात हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियां इन दिशा-निर्देशों के दायरे में हैं। व्हाट्सएप तो दिशा-निर्देशों के खिलाफ अदालत तक पहुँच गई है। आई0टी0 मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद को तो अपना पद भी गवाना पड़ा। पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया देश-दुनिया के मसलों पर वैचारिक बहस के प्रमुख मंच के तौर पर उभरा है। लेकिन आज वो मंच बहस का अखाड़ा नहीं, बल्कि खुद बहस का मुद्दा बना हुआ है।

सन्दर्भ:-
1. आदर्श तिवारी, (स्वतंत्र टिप्पणीकार), जवाबदेही तय करने वाले नियम, हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, जून 05, 2021 ,नई दिल्ली।
2. आदर्श तिवारी, (स्वतंत्र टिप्पणीकार), जवाबदेही तय करने वाले नियम, हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, जून 05, 2021 ,नई दिल्ली।
3. अभिरंजन कुमार, (वरिष्ठ नीति विशलेषक), ट्वीटर, वाट्सएप, के विवाद में क्रू के प्रमोशन से बचे सरकार, हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, जून 05, 2021 ,नई दिल्ली।
4. जहां राज्य के अंकुश में है सोशल मीडिया, हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, मार्च 13, 2021, नई दिल्ली।
5. https://www.drishtiass.com/hindi
6. जहां राज्य के अंकुश में है सोशल मीडिया, हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, मार्च 13, 2021, नई दिल्ली।

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