नारी विमुक्ति: वैश्विक संदर्भ
प्रो0 लालबाबू यादव विभागाध्यक्ष
राजनीति विज्ञान विभाग
जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा
सारांष
प्रसिद्ध समाजशास्त्री जीन जेकब रूसों ने कहा था कि इन्सान स्वतंत्र रूप से पैदा होता है परंतु वह जन्म लेने के बाद मृत्यु पर्यन्त बेड़ियों में जकड़ जाता है। इन बेड़ियों में जकड़न का सर्वाधिक दुष्प्रभाव स्त्रियों पर ही पड़ताहै। यही कारण है कि प्राचीन काल से आज तक विश्व के विचारकों, दार्शनिकों, रचनाकारों और समाजशास्त्रियों ने न केवल संसार में व्याप्त आर्थिक वैषभ्य, पराधीनता, अन्याय, अशांति उत्पीड़न और शोषण को समाप्त कर एक मानवीय और सुखी संसार के निर्माण के लिए अपने चिंतन को स्थापित किया है। आज आधी दुनिया (स्त्री) की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों का आकलन कर उनकी मुक्ति के संदर्भ में उन्होंने अपनी चिन्ता एवं विचारों की प्रखरता से हमे विस्मित किया है। स्त्री विरोधी पुरूष मानसिकता के कारण ही व्यवस्थापिका में नारी-आरक्षण को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है। रात्रि की पाली में स्त्रियों का काम करने का अधिकार भी कम बड़ा निर्णय नहीं है। स्त्री की मुक्ति स्त्री के जाति, सम्प्रदाय और वर्ग से ही संगठित होकर लड़ने पर ही संभव है। विचारशील और योद्धा पुरूष उनके सहचर हो सकते हैं लेकिन यह लड़ाई उन्हें स्वयं लड़नी होगी।
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