ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

बालश्रम एवं बाल शोषण: समस्या और समाधान

बालश्रम एवं बाल शोषण: समस्या और समाधान

 डाॅ0 कुमुद

रंजनदास काॅलिज, बदायूं

’’हर बच्चा ईष्वर से यह संदेश लेकर आता है कि मनुश्य से ईष्वर अभी निराष नहीं हुआ है।’’ – रविन्द्र नाथ टैगोर मानव किसी भी राश्ट्र की एक अनुपम सौगात है खासकर बच्चे तो राष्ट्र केे भविश्य और विकास की इमारत की मजबूत ईंट हैं। जिस प्रकार राष्ट्र किसी मजबूत इमारत की संरचना ईंटों से गुथी जाती है, ठीक उसी तरह किसी राष्ट्र का भविष्य वर्तमान के बच्चों की गुणवत्ता (फनंसपजल व िब्ीपसकतमद) पर निर्भर करता है। जैसी क्षमता,हुनर,योग्यता हमारे बच्चों में होगी, हमारे विकास का स्वरूप भी वैसा ही होगा। यदि वचपन को एक अनमोल सौगात मानते हुए उसे विकास का अवसर दिया जाए तो उसके परिणाम हमें वैसे ही प्राप्त होंगे जैसा जापान, फ्रान्स, जर्मनी, अमेरिका, यूरोप के अन्य देशों में हमें देखने को मिलता है। 1 नोबेल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि ’’ वचपन वह मूल्य है, जिसे पूरी उम्र के लिए सुरक्षित रखना चाहिए। इस प्रकार के सद्गुणों से जिन्दगी अधिक सरल बन जाती है और दुनिया  पहले से कहीं अधिक खूबसूरत महफूज नजर आने लगती है।’’आज हम कई गंम्भीर समस्याओं, संकटों और अनैतिक आचरणों से जूझ रहे हैं, किन्तु इसमें दोहराय नहीं कि बचपन को कुचल देना हमारे दौर का सबसे बड़ा अनैतिक आचरण है। निहित हितों द्वारा लूटे जा रहे बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना हमारा दायित्व है,कर्तव्य है,धर्म है। स्वतंत्रता परमात्मा है और दासता मानव का अनुमान और डिजाइन है। इसलिये यह कभी नष्वर नहींे रह सकती। अन्त में स्वतंत्रता ही जीतेगी। हम सबको मिलकर बच्चों के लिये एक मैत्रीपूर्ण संसार विकसित करना चाहिए उनके जीवन को सम्मान जनक बनाया जाना चाहिए हमें अपने व्यक्तिगत,राजनैतिक और सामाजिक जीवन में बचपन को शीर्ष प्राथमिकता देनी चाहिये। हर बच्चा शोषण और मजदूरी दोनों से मुक्त होना चाहिये क्योंकि ये उन्हे शिक्षा और भविष्य के अवसर से वंचित कर देते हैं। इससे वयस्क वेरोजगारी और गरीवी के साथ एक दुश्चक्र का निर्माण कर देते हैं। इससे दर्दनाक विरोधावास को ध्यान में रखना आवश्यक है कि जहां 17 करोड बच्चों के पास पूरे समय के लिये रोजगार है, वहीं लगभग 20 करोड वयस्क वेरोजगार हैं। वे वयस्क कोई और नहीं वल्कि बाल मजदूरों के माता-पिता ही हैं। स्पष्ट है कि किसी को यह चक्र तोडना ही होगा और यह विरोधावास बालश्रम की मुक्ति से ही समाप्त भी हो जायेगा। यह काम असम्भव तो नहीं है। भारत सौ समस्याओं का एक देश हो सकता है किन्तु यह हजारो समाधानों की मातृभूमि भी है। सामूहिक कार्यों,राजनीतिक इच्छा शक्ति, पर्याप्त संसाधनों और वंचित बच्चों के लिये प्रति पर्याप्त सहानुभूति से बाल मजदूरी समाप्त की जा सकती है और यह समाप्त होगी। बाल मजदूरी शिक्षा के अधिकार को नकारना या उसका उल्लंधन है, इसलिये यह बच्चों के विरूद्ध हिंसा भी है भारत के पास अपनी बडी समस्याओं से निपटने का सर्वाधिक अहिंसक और शान्तिपूर्ण तरीका विधमान है और यह इसकी परम्पराओं में ही निहित है ऐसे में, हमें बच्चों के लिये एक सामंजस्यपूर्ण वातावरण तैयार करने के लिये काम करना चाहिये और इस मामलों में युवाओं की अदम्य शक्ति को अनुभव किया जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में नोवेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने सहानुभूति का वैश्वीकरण सूचना का लोक तंत्रीकरण और अधिकारों का सर्वव्यापी करण करने का नारा भी दिया है जिसे आधार बनाकर बालश्रम जैसी बड़ी समस्या का निराकरण किया जाना संभव हो सकता है।

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