ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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अटल की उत्तरजीविता-वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में

-डाॅ0 रश्मि फौजदार
एम0फिल0, पी0एच0डी0
मुस्लिम गल्र्स डिग्री काॅलिज, बुलन्दशहर

वर्ष 1996 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। हमारी पीढ़ी जिसने न गाँधी की राजनीतिक नैतिकता देखी, नेहरू की लोकतान्त्रिक राजनीति देखी, न लाल बहादुर की सौम्यता और सामान्यीकरण देखा, न तो इन्दिरा की दृढ़ता देखी, उनके लिए अटल बिहारी वाजपेयी का जाना राजनीति में आदर्शों के युगों की समाप्ति है। ‘‘उनके जैसे समावेशी राजनीति के शिल्पकार दुर्लभ है। वह कितने विरले थे, वह इससे प्रकट होता है कि आज उनके जैसे भरोसा पैदा करने वाला नेता दूर-दूर तक नहीं नजर आता। उनके यश की कीर्ति जिस तरह फैली उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। उनकी लोकप्रियता दलगत सीमाओं से परे पहुंच गई थी।’’1 प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीतिक वैचारिकता से आगे जाकर राष्ट्र निर्माण की संकल्पना को सर्वाेपरि स्थान दिया। अटल जी के बारे में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैंः-वर्ष 1996 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। हमारी पीढ़ी जिसने न गाँधी की राजनीतिक नैतिकता देखी, नेहरू की लोकतान्त्रिक राजनीति देखी, न लाल बहादुर की सौम्यता और सामान्यीकरण देखा, न तो इन्दिरा की दृढ़ता देखी, उनके लिए अटल बिहारी वाजपेयी का जाना राजनीति में आदर्शों के युगों की समाप्ति है। ‘‘उनके जैसे समावेशी राजनीति के शिल्पकार दुर्लभ है। वह कितने विरले थे, वह इससे प्रकट होता है कि आज उनके जैसे भरोसा पैदा करने वाला नेता दूर-दूर तक नहीं नजर आता। उनके यश की कीर्ति जिस तरह फैली उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। उनकी लोकप्रियता दलगत सीमाओं से परे पहुंच गई थी।’’1 प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीतिक वैचारिकता से आगे जाकर राष्ट्र निर्माण की संकल्पना को सर्वाेपरि स्थान दिया। अटल जी के बारे में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैंः-अद्भुत शख्सियात:-1. नवाज शरीफ ने कहा था कि अटल जी तो पाक में चुनाव जीत सकते हैं।2. जय जवान, जय किसान में जय विज्ञान को जोड़कर नया नारा दिया।3. कवि होने के साथ 11 भाषाओं के जानकार थे अटल बिहारी वाजपेयी।4. करगिल पर अमेरिका से कहा था कि पाक सेना हटाए वरना सीमा पार करेंगे।5. 1977 में यूएन में हिन्दी में भाषण देने वाले पहले व्यक्ति बने।अनूठी बाते:-1. ‘‘1957 में नेहरू ने कहा था कि एक दिन यह युवा (अटल) पीएम बनेगा।2. अटल और उनके पिता ने लाॅ कोर्स में एक साथ दाखिला लिया था।3. चार राज्यों (यूपी, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात) सांसद चुने गए।4. पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री।5. छात्र जीवन में वामपंथी विचारधारा से प्रेरित थे। 1939 में संघ से जुड़े।अहम पड़ाव:- 1942 में ‘भारत छोड़ों आंदोलन’ में शामिल हुए, 28 दिन जेल में रहे। 1954 में कश्मीर मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी संग अनशन पर बैठे। 1957 में यूपी के बलरामपुर से चुनाव जीत पहली बार सांसद बने। 1996 में 16 मई को पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 2005 में सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की।अडिग फैसले:- 1998 में पोखरण परीक्षण से भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाया। फरवरी 1999 में दिल्ली से लाहौर के बीच बस सेवा की शुरुआत की। वर्ष 2000 में दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति लाने वाली नीति बनाई। 2001 में बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का कानून बनाया। 2004 में कश्मीर मुद्दे के हल के लिए अलगाववादियों से वार्ता शुरु की।तिथिओं में अविरल यात्रा:- 1924, 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में जन्म। 1942, भारत छोड़ा आन्दोलन में हिस्सा लिया। 1947, राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) के प्रचारक बने। 1951, भारतीय जनसंघ में शामिल। 1957, पहली बार बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से लोकसभा के लिए निर्वाचित। 1962, राज्यसभा के लिए निर्वाचित। 1968, जनसंघ के अध्यक्ष बने। 1975, आपातकाल के दौरान बैगलुरु जेल में बन्द। 1977, जनता पार्टी की सरकार में केन्द्रीय विदेश मंत्री नियुक्त, 4 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिन्दी में भाषण। 1980, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना के साथ संस्थापक अध्यक्ष बने। 1992, पद्म विभूषण सम्मान से अलंकृत। 1993, लोकसभा में विपक्षी दल के नेता। 1994, श्रेष्ठ सांसद पुरुस्कार/गोविन्द वल्लभ पन्त अवार्ड से सम्मानित/लोकमान्य तिलक पुरुस्कार प्रदान। 1996, 16 मई को पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 1998, 19 मार्च को दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 1998, 11 से 13 मई के बीच सफल परमाणु परीक्षण का नेतुत्व 1999, 19 फरवरी को लाहौर के लिए बस यात्रा की। 1999, कारगिल युद्ध में भारत की विजय। 1999, 13 अक्टूबर को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। 2001, भारत-पाकिस्तान के बीच 14 जुलाई को आगरा शिखर सम्मेलन। 2005, सक्रिय राजनीति से अवकाश। 2015, ‘भारत रत्न’ से अलंकृत। 2018, 16 अगस्त को नई दिल्ली में निधन।अटल जी के बारे में कुछ आकर्षक तथ्य:- 10 बार लोकसभा तथा 2 बार राज्यसभा के के सदस्य रहे। वर्ष 1991 से 2004 तक पाँच बार लखनऊ से लोकसभा सांसद रहे। वर्ष 1996 से 2004 तक तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। 24 दलों के गठबन्धन का नेतृत्व किया। सरकार में अधिकतम 81 मन्त्री थे। वह उस राजनीति के वाहक भी थे जिसके कुछ मूल्य और मर्यादाएं थी। उनके लिए सत्त ही सब कुछ नहीं थी। इसीलिए कि लोकतंत्र उनकी जीवन श्रद्धा था। अटल जी ने भारत के राजनीतिक सार्वजनिक जीवन के लिए एक मर्यादा रेखा खींची। यह रेखा सामान्य राजनीति से बहुत ऊंची है। मूल्य आधारित विचारनिष्ठ सार्वजनिक जीवन की यह रेखा सभी राजनीतिक दलों के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने न केवल केवल गठबंधन राजनीति को बल और संबल प्रदान किया, बल्कि विदेश नीति को भी नया आयाम दिया।  वाजपेयी के साथ उस दौर के नेताओं का अंत हुआ जो राजनीतिक लाभ-हानि के परे मर्यादा की लक्ष्मण रेखा खींचते हैं। राजनीति को जिम्मेदारी मानने वाले वाजपेयी भारतीय परिदृश्य में उस रामराज्य वाली राजनीति के दूत थे, जिससे भारत का लोक जुड़ा है। इनके साथ हिन्दुत्व की राजनीति में राम और रामायण का वह लोक पक्ष जुड़ता है जो सहज, सरल और करुणामय है। दक्षिणापंथी राजनीति में सहजता, उदारता और जिम्मेदारी का चेहरा रहे। ‘‘अटल बिहारी वाजपेयी पर सोचते और समझाते वक्त जो शब्द सबसे ज्यादा सहज लग रहा है वह सहजता ही है। यह सामान्य, सहज आज सबसे ज्यादा दुर्लभ है। अटल जी पर बहुत लोग बहुत कुछ कह रहें हैं, लेकिन किसी के लिए भी उनके जीवन से जुड़े सभी पहलुओं पर प्रकाश डालने संभव नहीं।’’2 वह एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके बारे में जितना कहा जाए कम है। ‘‘अटल जी को अलविदा कहते वक्त कोई क्या लिख सकता है। जो संवाद और भावों का सबसे बड़ा प्रेषक है। आप उसके लिए शब्द कहां से खोजेंगे। इस युुगांत पर हम अटल जी के लिए नहीं अपने लिए लिख रहे हैं।’’3 आपातकाल के दौरान कमर में तकलीफ के उपचार के लिए उन्हें एम्स ले जाया गया। डाॅक्टर ने पूछा कि क्या आप झुक गए थे? दर्द में भी उनका हास्यबोध कायम था। उन्होंने आपातकाल के संदर्भ में जवाब दिया, ’‘झुकना तो सीखा नहीं डाॅक्टर साहब, मुड़ गए होंगे। इसी विचार से उन्होंने अस्पताल बेड पर ही ‘टूट सकते हैं, मगर झुक नहीं सकते’ जैसी आपातकाल विरोधी कविता लिखी जो उस दौर में बहुत लोकप्रिय हुई। अटल जी ‘‘सच्चे अर्थाें में लोकतांत्रिक थे। उनकी राजनीतिक शैली उदार थी। वह आलोचना को स्वीकार करते थे। संसदीय लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में पगे हुए होने के कारण आम सहमति की कद्र करते थे। किसी से कोई द्वेष नहीं रखते थे। असहमति रखने वालों से भी संवाद करते थे। विपक्ष में रहे हों या सत्ता में उनका रवैया कभी नहीं बदला। वह ऐसे प्रतिष्ठित ओजस्वी वक्ता थे जिनकी हालिया इतिहास में मिसाल मिलाना मुमकिन नही। साख उनकी सबसे बड़ी थाती थी। नेहरूवादी कांग्रेस के दबदबे वाले दौर में उन्होंने ऐसी वैकल्पिक राजनीतिक धारा बनाई जो न केवल कांग्रेस का विकल्प बनी, बल्कि उससे कहीं आगे निकल गई। धैर्य के मामले में अटल जी मैराथन धावक थे। अटल जी भले ही इस दुनिया से विदा हो गए हों, लेकिन उन्होंने जिस दौर की बुनियाद रखी वह आगे और समृद्ध होता जाएगा।’’4 किसी भी ‘‘जन नायक का मूल्यांकन उसके जाने के बहुत बाद होता है। कुछ नीतियाँ दीर्घकालिक होती हैं उनके परिणाम रातोंरात नहीं आते। ऐसी नीतियों का तात्कालिक आकलन अक्सर उस नेता की असफलता के रूप में किया जाता है।’’5 वाजपेयी उस तरह के ‘‘राजनैतिक नेता नहीं थे जिस तरह की राजनीति हम अक्सर देखते रहे हैं। कुछ राजनेता अपने समय से बहुत दूर देखते हैं, और दूर तक की योजना करते हैं। लेकिन अधिकतर राजनीति को तात्कालिक संभावनाओं का ही खेल मानते हैं। सच तोे यह है कि राजनैतिक दलों के लिए अधिकतर नीतियां केवल चैथे साल के लिए ही बनती हैं। इस संदर्भ में अटल जी के व्यक्तित्व का लाभ नहीं उठाया जा सकता है क्योंकि वे पांच साल से आगे के लिए नीतियां बनाते थे, जो तात्कालिक कार्यकाल के लिए लाभदायक हों न हों। उदाहरण के लिय वाजपेयी की नीतियों को ही ले, देश को सड़को से जोड़ने की उनकी कल्पना उनके शासनकाल में आंशिक रूप से ही फलीभूत हुई थी। वह चुनावों का मुद्दा नहीं बन पायी।’’6 यह भी कैसे भूले जा सकता है कि ‘‘गुजरात में 2002 के नरसंहार के वक्त राजधर्म निभाने की जो सीख उन्होंने वहां के तत्कालीन मुख्यमंत्री को दी थी, उसके प्रधानमंत्री बन जाने के बाद उसकी चर्चा तक गुनाह हो गई है, और उनके कई मंत्री और मुख्यमंत्री अल्पसंख्यकों के खिलाफ आक्रामक रवैये और हिंसा का औचित्य सिद्ध करते नहीं लजाते। देश के सबसे संवेदनशील सीमावर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर में जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत का जो पैगाम अटल जी ने दिया था, और जिसे अब ‘अटल डाॅक्ट्रिन’ के नाम से जाना जाता है।’’7  अटल जी ने कहा था कि ‘‘संसद को समाज का दर्पण होना चाहिए। अगर संसद से तथ्य छिपाए जाएंगे अगर उसमें उन्मुक्त वाद-विवाद के लिए वातावरण नहीं होगा, अगर संख्या के बल पर बात गले के नीचे उतरवाने की कोशिश की जाएगी तो संसद राष्ट्र के हृदय का स्पन्दन नहीं रहेगी, एक संस्था मात्र रह जाएगी, न देश में कोई बुनियादी परिवर्तन ला सकेगी, न ही देश को अराजकता की ओर जाने से रोक सकेगी।’’8 बसपा की मुखिया और उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के     निधन पर शोक जताते हुए कहा कि ’’उन्होंने पार्टी हित से ऊपर उठकर समाज व देशहित में काम किया। उन्होने यह भी कहा कि अगर वह स्वस्थ्य रहते तो भाजापा शायद कभी इतनी जनविरोधी, संकीर्ण, संकुचित, अहंकारी व विद्वेषपूर्ण नीति वाली पार्टी न होती जितनी हर तरफ नजर आती है।’’9 इस विकट मोहोल में ‘‘कांग्रेस के समानान्तर वैकल्पिक विचारधारा का प्रचार यदि भारत में हो सका तो उसका श्रेय अकेले श्री वाजपेयी को दिया जा सकता है।’’10 अब वे नहीं हैं, तो उनके मूल्यांकन में यही सवाल प्रमुख रहेगा कि वह कौन चीज थी, जो बीमार स्मृतिभं्रश के शिकार अटल बिहारी वाजपेयी को इतना वजन देती थी और वह कौन चीज है, जिसे हासिल करने के लिए भाजपा, संघ परिवार और मोदी सरकार उनकी मौत को इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और आदर देने का आयोजन किया। मोदी सरकार ने या भाजपा के हालिया नेतृत्व ने वाजपेयी ही नहीं, उनकी पीढ़ी के नेताओं या उनके साथ काम कर चुके लोगों से कुछ दूरी बनाकर रखी है। पर इस नतृत्व की भी मजबूरी है कि उसने भले ही बीते चुनावों में अटल जी की तस्वीर का उपयोग नहीं किया पर अब उसे ऐसा करना लाभप्रद दिखता है। असल में ‘‘हिन्दी पट्टी और बाभन-बनिया की पार्टी मानी जाने वाली भाजपा को एक अखिल भारतीय पहचान और जमीन देने का काम अटल शासन के दौरान ही हुआ। उनके समय जो गठबंधन बना वह भाजपा की साख और आधार को फैलाने वाला साबित हुआ और अटल जी की सोच को मुल्क की राजनीति के मुख्य स्वर के ज्यादा पास पाया गया। यह सही है कि कभी विभाजन की मांग वालों ने तो कभी मन्दिर आंदोलन ने तो कभी अच्छे दिन के वायदे ने देश की राजनीति को काफी हिलाया-डुलाया है, पर बाकी समय जो मुख्य स्वर रहा है, भाजपा को उसके करीब लाने और उसमें अपनी आवाज को स्वीकृति दिलाने का काम अटल बिहारी वाजपेयी ने ही किया है। उनका पुरुषार्थ विक्षोभी स्वर पैदा करने की जगह भाजपा के स्वर को सम पर लाने का रहा। यह उनका सबसे बड़ा योगदान है।’’11 निश्चित रूप से अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय तक हमारी राष्ट्रीय कांग्रेस के समान्नान्तर और राष्ट्रीय आंदोलन तथा राजनीति के हाशिए पर रही हिन्दुत्वादी धारा के सबसे बड़े नेता हैं। आज जिसे संघ परिवार कहा जा रहा है, और जो आज देश की सबसे प्रमुख राजनैतिक शक्ति बन चुकी है, उसे यहां तक लाने वाले जो लोग रहे हैं, उनमें अटल जी का नम्बर शायद सबसे बड़ा हो और उन्हें अगर कोई चुनौती देता दिखता है, तो वे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं, जिन्होंने अपने दम पर भाजपा को 282 सीटें दिलवा कर केन्द्र में बहुमत की सरकार बनाई मोदी जी के कामकाज का मूल्यांकन करने का अभी वक्त नहीं है, पर आज अगर वे शैकिया गठबंधन की सरकार चला रहे हैं, तो अटल जी ने ‘मजबूरी’ में तीन बार सरकार बनाने चलाने का प्रयोग किया। और केन्द्र में बीस-बाइस पार्टियों की सरकार चलाने और मजबूत फैसले लेने का यह देश में पहला सफल प्रयोग था। यह बात जितनी सही है। उतनी ही दूसरी बात भी सही है, कि पार्टी को दो सीटों से शासन की सीढ़ियों तक लाने का मुख्य काम लालकष्ण आडवाणी ने किया था। लेकिन गठबंधन की स्थिति आते ही साफ हो गया कि सरकार अगर कोई बना और चला सकता है तो अटल जी ही चला सकते है। प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी की ‘‘तीन प्रमुख उपलब्ध्यिां गिनाई जा सकती हैं।’’12 इनमें एक पाकिस्तान के साथ सुलह के लिए पाकिस्तान की यात्रा थी, और और वहां जाकर पाकिस्तान मीनार तर्क पहुचना भी। वाजपेयी की प्रेरणा से दिल्ली-लाहौर बस सेवा और समझौता एक्सप्रेस जैसी रेलगाड़ी का चलाया जाना संभव हो सका। वाजपेयी की दूसरी बड़ी सफलता पोखरण दो वाला थर्मान्यूक्लियर परमाणविक विस्फोट था। तीसरे भारत पाकिस्तान के बीच कश्मीर के कांटे के हमेशा के लिए निकाल फेंकने के लिए वाजपेयी ने जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को आश्वासन दिया था कि इस समस्या का समाधान वैधानिक आधार पर नही इंसानियत के आधार पर तलाशेगें। आज तक कश्मीर के सभी राजनीतिक दल और नागरिक समाज उनकों इस दिलेरी के लिय याद करते है। अटल जी की नीतियों की जो तात्कालिक प्रासंगिकता थी, वही आज भी हो यह आवश्यक नहीं। लेकिन अगर अटल जी से कोई बात सीखी जा सकती है, तो वह यह है कि कोई भी राजनेता, जो स्थायी छाप छोड़ना चाहता हो, न तो एकदम पूरी तरह वर्तमान को नजर अंदाज कर सकता है और न ही आनेवाले कल को परसों पर टाल सकता है। देश आज पुन गठबंधन की राजनीति के चैराहे पर खड़ा है। आज के परिदृश्य एक और अटल की आवश्यकता है।सन्दर्भ -1. संपादकीय; विराट व्यक्तित्व की विदाई; दैनिक जागरण, नई दिल्ली 17 अगस्त, 20182. राजीव शुक्ला एम0पी0; सहज स्वभाव वाले विलक्षण राजनेता; दैनिक जागरण, नई दिल्ली 18 अगस्त, 20183. राजकाज जनसत्ता दिल्ली 18 अगस्त, 20184. अरूण जैटली; भविष्य की राह दिखाने वाला अटल युग; दैनिक जागरण, नई दिल्ली 18 अगस्त 20185. जवाहरलाल कौल; देर और दूर तक रहेगा अटल प्रभाव; हस्तक्षेप-राष्ट्रीय सहारा-नई दिल्ली 25 अगस्त, 2018।6. जवाहरलाल कौल; देर और दूर तक रहेगा अटल प्रभाव; हस्तक्षेप-राष्ट्रीय सहारा-नई दिल्ली 25 अगस्त, 2018।7. कृष्ण प्रताप सिंह संकीर्ण विचारधारा से बड़ा बनाने वाला अटलीय अवयव; हस्तक्षेप-राष्ट्रीय सहारा-नई दिल्ली 25 अगस्त, 2018।8. कृष्ण प्रताप सिंह संकीर्ण विचारधारा से बड़ा बनाने वाला अटलीय अवयव; हस्तक्षेप-राष्ट्रीय सहारा-नई दिल्ली 25 अगस्त, 2018।9. मायावती बसपा प्रमुख अटल जी रहते तो भाजपा इतनी अहंकारी नहीं होती, राष्ट्रीय सहारा 18 अगस्त 2018।10. अटल बिहारी वाजपेयी का अनुछुआ पक्ष; संपादकीय पंजाब केसरी, नई दिल्ली 18 अगस्त 201411. अरविन्द मोहन, अटल युग के लाभ और जोखिम हस्तक्षेप; राष्ट्रीय सहारा-नई दिल्ली 25 अगस्त, 2018।12. पुष्पेश पंत; परिवर्तन व निरंतरता का दुर्लभ संतुलन; राष्ट्रीय सहारा-नई दिल्ली 25 अगस्त, 2018।

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