ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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‘‘अपने अपने अजनबी’ में वैयक्तिक यथार्थबोध: एक अनुशीलन’’

शोधार्थिनी
गरिमा वर्मा
जे0आर0एफ0 (हिन्दी)
डी0ए0वी0 स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बुलन्दशहर (उ0प्र0)

वैयक्तिक यथार्थबोध का अपने साहित्य में चित्रण करने वाले लेखकों में अज्ञेय का नाम विशेष रूप में लिया जाता है। उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाएँ अभिव्यक्त होती हैं। अज्ञेय की दृष्टि अन्तर्मन को पढ़ने में सक्षम है। उनकी रचनाएं व्यक्ति केन्द्रित होती हैं, जिसमें व्यक्ति का अन्तद्र्वन्द अत्यन्त संवेदनशीलता से व्यक्त होता है एवं वैयक्तिक यथार्थबोध सूक्ष्मता से परिलक्षित होता है।वैयक्तिक यथार्थबोध का अपने साहित्य में चित्रण करने वाले लेखकों में अज्ञेय का नाम विशेष रूप में लिया जाता है। उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाएँ अभिव्यक्त होती हैं। अज्ञेय की दृष्टि अन्तर्मन को पढ़ने में सक्षम है। उनकी रचनाएं व्यक्ति केन्द्रित होती हैं, जिसमें व्यक्ति का अन्तद्र्वन्द अत्यन्त संवेदनशीलता से व्यक्त होता है एवं वैयक्तिक यथार्थबोध सूक्ष्मता से परिलक्षित होता है। संवेदनाएँ मनुष्य के व्यक्तिगत यथार्थ का एक अभिन्न अंग है। साहित्य में मनुष्य के संपूर्णता के साथ चित्रण के लिये इस यथार्थ को समझना अति आवश्यक हो जाता है। वैयक्तिक यथार्थबोध का साहित्यिक सिद्धान्त इसी चित्रण को और गहराई से समझने और मनुष्य के अन्तर्जगत को पहचानने के लिये महत्वूपर्ण है। वैयक्तिक यथार्थबोध के अन्तर्गत अन्तश्चेतना और व्यक्तिवादी प्रवृत्तियों का समावेश होता है। अन्तश्चेतना में अहं प्रधान होता है। अहं का अर्थ है-अस्तित्व। अन्तश्चेतना के द्वारा स्वानुभूति से ही मनुष्य को वैयक्तिक्तता का बोध होता है। इस बोध को समझने के लिये उपयुक्त वैयक्तिक यथार्थबोध के सिद्धान्त के बिना साहित्यिक विश्लेषण की दुनिया अधूरी है। अज्ञेय के उपन्यास ‘शेखर: एक जीवनी’ में शशि ‘नदी के द्वीप’ में चन्द्रमाधव और ‘अपने-अपने अजनबी’ में ‘योके’ आदि पात्र मुख्य रूप से यथास्थिति से असंतुष्ट चरित्र है। ‘अपने-अपने अजनबी’ उपन्यास में ‘योके’ का पात्र भी तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों से असंतुष्ट रहकर उसे बदलने के पक्ष में है। ‘योके’ युवती है और अपने प्रेमी पाल सोरेन के साथ बर्फ की यात्रा करने आयी है और अप्रत्याशित रूप से सेल्मा के घर में, उस के साथ, बर्फ में कैद हो गयी है। तीन-चार महने तक बर्फ से दबे मकान में कैद करने की कल्पना से ही योके सिहर उठती है। बल्कि उसे मृत्यु की डरावनी संभावना दिखाई पड़ने लगती है। वह रोज की डायरी लिखती है। जिससे उसकी मनः स्थिति का पता चलता है। योके को धीरे-धीरे कैद की वह जिन्दगी असहय होने लगती है। सेल्मा साथ होकर भी उसके लिए अजनबी है और वह अकेलापन महसूस करती है। धीरे-धीरे बूढ़ी सेल्मा के प्रति उसके मन में गुस्सा और विरोध भाव बढ़ जाता है। मृत्यु के प्रति सेल्मा की उदासीनता भी योके को सहय नहीं होती। उसके जीने के अनासक्ति, ईश्वर में आस्था आदि योके के लिए असह्य हो जाता है। उसकी इच्छा होती है ‘‘चीखूँ की जलती हुई लकड़ी उठा कर सेल्मा की कलाईयों पर दे मारों।’’ अपने बाल नोच ले, नहेरेने से अपने माथे, नाक, कान ठोडी पर घाव कर ले। वह न ईश्वर को मानती है, न मृत्यु को। उनकी यथास्थिति से असंतोष के कारण सेल्मा पर इतना उग्र हो उठती है और अपना काम पूरा करने को कहती है। वह पश्चाताप से सेल्मा से क्षमा मांगती है, फिर भी उसके प्रति विरोधाभाव दूर नहीं होता। मृत्यु से योके कितनी आतंकित है यों देख सकते हैं ‘‘मृत्यु-मृत्यु-उसकी एकमात्र प्रतीक्षा, ऊपर बर्फ हो या न हो-और हाँ, कैन्सर भी हो या न हो। क्या सेल्मा की प्रतीक्षा मेरी प्रतीक्षा से इसलिए कुछ भिन्न है कि उसे कैन्सर है और मुझे नहीं है, या कि भिन्न इसी बात में है कि उसके पास कार्य-कारण की संगति का सबूत है और मेरे पास वह भी नहीं है? क्या मैं ज्यादा लाचार, ज्यादा दयनीय-ज्यादा मरी हुई नहीं हूँ? क्या मुझे ज्यादा कैन्सर नहीं है यह कैन्सर जिसे हम जिन्दगी कहते हैं?’’ सेल्मा की अतीत कथा सुनकर भी योके का विरोध भाव समाप्त नहीं होता, सेल्मा मर जाती है। उसकी मृत्युगन्ध का अनुभव होता है। योके सेल्मा की लाश को बर्फ के नीचे ढकती है। योके अपने मन में सेल्मा के प्रति उठते हुए करूणा के भाव को दबा देती है। वह सोचती है ‘‘करूणा गलत है, बचाव उसमें नहीं है। घृणा भी नरक का द्वार है तो दया भी नकर का द्वार है। मैं दया कर के भी वही गिरूँगी जहां घृणा कर के गिरती …….।’’ इस सर्वव्यापी अविश्वास, अनास्था, विरोध और घृणा के भाव को लेकर योके बर्फ की कैदी से मुक्त होती है। उस का साथी यह साहसिक ‘पाल सोरेन’ उसे बर्फ से बाहर निकालता है। इस बार ‘पाल’ ने उसे धोखा दिया और जर्मन सैनिकों ने उसे वेश्या का जीवन जीने को मजबूर किया है। उस के कपड़े अस्तव्यस्त हैं और उससे भी ज्यादा उसका चेहरा और आँखें अस्त-व्यस्त हैं ‘‘उसकी आँखों में मानो पतझर के मौसम की एक समूची वन खण्डी बसी हुई थी। वह खुली-खुली आँखों से, बिखरी हुई दृष्टि से चारों ओर देख रही थी।’’ इस तरह योके के पात्र का परिवेशगत चित्रण नारी-शोषण के विरूद्ध आवाज बुलन्द करने वाली संयमित चरित्र के रूप में हुआ है। वेश्या बनने के बाद योके जहर खा कर मृत्यु का वरण कर लेती है लेकिन जगन्नाथन उसका पीछा करता है। वह येाके से अन्य लोगों की तरह व्यवहार न करता है, मरते समय योके कहती है ‘‘मैं चाहती थी कि किसी अच्छे आदमी के पास मरूँ। क्योंकि मैं मरना नहीं चाहती-कभी नहीं चाहती थी।’’ वेश्या योके किसी अच्छे आदमी के पास मरने की महत्वाकांक्षा को साकार बनाने के लिए यथास्थित समाज में संघर्ष करती है। ‘अपने अपने अजनबी’ अज्ञेय के बाकी उपन्यासों से भिन्न प्रकृति की रचना है। इस उपन्यास में यथार्थबोध के वैयक्तिक पक्ष की प्रधानता है। इसे कुछ विद्ववानों ने अस्तित्वादी चेतना का उपन्यास भी माना है। अज्ञेय ने इसकी रचना दो पात्रों, योके और सेल्मा के माध्यम से की है जो एक बर्फ से दबे घर में फँस गई हैं। दोनों पात्रों की नितान्त वैयक्तिक अनुभूतियाँ इसमें व्यक्त होती है। उपन्यास के केन्द्र में मृत्यु है। मृत्यु जीवन का अन्तिम सत्य है। मनुष्य मृत्यु का अनुभव नहीं कर सकता और उसे देख नहीं सकता परन्तु उसे मृत्युबोध हो सकता है। जीवन और निकट आती मृत्यु के समय का अनुभव ही मृत्युबोध है। मृत्युबोध से उत्पन्न होने वाली संवेदनाओं का उपन्यास में समावेश किया गया है। उपन्यास में मृत्युबोध दो रूपों में सामने आता हे- एक निकट आती मृत्यु का बोध और दूसरा मृत्यु का भय। ‘योके’ सामाजिक यथास्थिति से आंशिक रूप से पलायन कर चलने वाली युवती का पात्र है। वह अपने प्रिय ‘पाल’ के साथ बर्फ में सैर करने आकर एक कठघरे में सेल्मा नाम बुढ़िया के साथ बंदी हो जाती है। साहसी ‘पाल सोरेन’ उसे बर्फ से बाहर निकालता है, लेकिन जब उस कठघरे में बर्फ के नीचे रहते समय यथास्थिति जीवन बिताने के बदले वहां से पलायन कर लेने की कोशिश करती है। क्योंकि उसके मन में अपने जीवन के प्रति आस्था है। सेल्मा मर जाती है। उसकी मृत्युगन्ध से योके बेचैन हो जाती है। वह द्वन्द्व में पड़ती है। वह अपने प्रिय ‘पाल’ के द्वारा समस्त यातनाओं एवं उपेक्षाओं को सहते हुए सामाजिक यथास्थिति से असंतुष्टि का अनुभव करने लगती है। सामाजिक विवशता के कारण, सामाजिक परिस्थितियों की यथार्थता के कारण वह असंतुष्ट है, फिर इस स्थिति से पलायन कर जगन्नाथन जैसे अच्छे आदमी के पास मरना चाहती है, वह आगे कहती है ‘मैं चाहती हूँ कि मैं किसी अच्छे आदमी के पास मरूँ। क्योंकि मैं मरना नहीं चाहती थी-कभी नहीं चाहती थी।’’ अतः ‘योके का चरित्र सामाजिक यथास्थिति से पलायन की अंतिम परिणति पाकर अत्यंत दुःखित था। मृत्यु के भय का चित्रण भी अज्ञेय ने बहुत गहनता से किया है। उपन्यास में कैंसर से पीड़ित सेल्मा द्वारा बार-बार मृत्यु की बात टालने से यह परिलक्षित होता है कि अन्दर उसको भी मृत्यु का भय है पर वह उस मृत्युबोध को अपने तक ही रखना चाहती है। इसीलिये वह अपने कैंसर की बात भी योके को नहीं बताती क्योंकि उसकेा शायद डर है कि जिस मृत्यु के भय को वह भुलाकर जी रही है, वह दूसरे पर प्रकट हो जाने से समक्ष प्रस्तुत हो जायेगा। वह मृत्यु से परिचय नहीं करना चाहती। सेल्मा मृत्यु से अपरिचित रहते हुए जीवंत रूप से अपना बाकी समय व्यतीत करना चाहती है। मृत्युबोध जैसी विषम स्थिति में सेल्मा की व्यक्तिगत भावना को उपन्यास में चित्रित किया गया है। सेल्मा की मनोभावना पाठक की मनोभावना से सम्बन्ध स्थापित करके, पाठक को पात्र के वस्तुजगत में पहुँचा देती है। वैयक्तिक यथार्थबोध का ऐसा चित्रण व्यक्ति की मानसिकता को समझने में सहायक हो सकता है। साथ ही सेल्मा जैसे पात्र समाज के ऐसे व्यक्ति भी हैं, जो अन्तर्मन की भावनाओं को अपने तक ही सीमित रखते हैं और किसी कारणवश आत्माभिव्यक्ति करने में असमर्थ रहते हैं। उपन्यास के कथानक में योके का सेल्मा के विरूद्ध निरन्तर संघर्ष चलता रहता है। यह संघर्ष है, सामान्यता का। ‘‘उसके स्वर में जो चिड़चिड़ापन था। उफ! उससे मुझे कितनी तृप्ति मिली! तो बुढ़िया का वचन भी नीरंध्र नहीं है, कहीं प्रबल, दुर्दमनीय उल्लास, एक विजय का गर्व मेरे भीतर उमड़-आया।’’ इतने दिनों से घर में रहते हुए योके ने सेल्मा का प्रत्येक क्षण संयत व्यवहार देखा था। मृत्यु के प्रति वह बिल्कुल उदासीन था। यह बात योके को उद्वेग से भर देती है। सेल्मा की खोज कर उसे लगा कि उसका मन भी हार सकता है। मृत्यु से वह भी डर सकती है। जब उसे आभास होता है कि सेल्मा भी कहीं न कहीं उसकी भांति व्याकुल और भयभीत है तब उसे संतोष हो जाता है कि उसकी व्याकुलता और भय सही था और वह सामान्य होने का अनुभव करती है जो एक व्यक्ति की सहज प्रवृत्ति है। लेखक ने इस सामान्यता को विजय का नाम दिया है क्योंकि योके की दृष्टि में उसके और सेल्मा के बीच एक संघर्ष चल रहा है जिसे योके जीतना चाहती है। एक कठिन समय में भी दो प्राणियों की परिस्थिति अपनी-अपनी मनोस्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। आकस्मिक कारणों से होने वाला मृत्युबोध मनुष्य के लिये अत्यन्त उद्वेग करने वाली परिस्थिति है। ऐसी परिस्थिति से सामना करने का प्रयास करते हुए भी वह उद्विग्न हो जाता है क्योंकि मृत्यु निश्चित ही मनुष्य की सबसे अनचाही चीज है। अपने अपने अजनबी में मृत्यु का भय सदमे के रूप में भी उपस्थित हुआ है। इस उपन्यास में सदमें के अनुभवों को दो प्रकार से वर्णित किया गया है। पहला सदमे से पर्यन्त पड़ने वाला मानसिक प्रभाव, दूसरा सदमें से उपजा उन्माद। सदमे से जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में कैंथी कैरथ ने कहा कि किसी सदमें की कहानी को याद यदि उसके देर में होने वाले अनुभव के वृत्तान्त के रूप में देखा जाये तो इसे मृत्यु के यथार्थ या उसके सम्बन्धित प्रभाव से पलायन की अपेक्षा उसके जीवन पर्यन्त पड़ने वाले प्रभाव के रूप में जाना चाहिये। ‘अपने-अपने अजनबी’ उपन्यास में ‘योके’ एक उत्साही, नटखट तथा जीवंत शैलानी युवती है। रामस्वरूप चतुर्वेदी के शब्दों में ‘उपन्यास’ में मुख्य समस्या योके की है, जो मृत्युगन्ध और मृत्यु की प्रतीक्षा से त्रस्त है। पहले खंड में कुछ गहरे और तीखे वर्णन याके की मनः स्थिति के विश्लेषण के संदर्भ में दिये गये हैं, उससे व्यंजित होता है कि रचना के केन्द्र में वह है।’’ योके में अदम्य साहस तथा जीने की लालसा है। वह अपने को टूटी और हारी हुई नहीं समझती थी। ‘योके’ अचानक सेल्मा के साथ कठघरे में बर्फ के नीचे बंदी हो गयी है। उस समय मृत्यु भय से रोज-रोज डायरी लिखती है, जिस में उकसे मन की दुरूहता और मानसिक संघर्ष का पता चलता है। सेल्मा मरणासन्न बुढ़िया है और कैन्सर रोगी है। उनको भगवान पर आस्था और मृत्यु को वरण करने की अभिलाशा है, लेकिन योके मृत्यु से भयभीत और जीवन आस्थावान युवती है। योके की डायरी के निम्नांकित अंशों से ज्ञात होता है कि योके तथा सेल्मा के विचारों में कितना अन्तर है- ‘‘और ठीक यही पर फर्क है। वह जानती है कि और जानकर मरती हुई भी जिये जा रही है। और मैं हूँ कि जीती हुई भी मर रही हूँ और मरना चाह रही हूँ।’’ योके में सक्रिय जीवंत चेतना है जिस के बल पर वह जीना चाहती है। दोनों के विचार बिलकुल विरोधी है। इन विरोधी भावों से ही सेल्मा के प्रति क्रोध, यथास्थिति से असंतोष और निराशा उत्पन्न होती है। असंतुष्ट जीवन हमेशा संघर्ष का शिकार बनती हैं। उसे लगता है मृत्यु उसके कंधों पर सवार होकर उसका गला घोंट रही है। कैसा बेपनाह है वह पंजा, जो  छोड़ेगा, नहीं लेकिन जिसकी ऊँगलियों की छाप भी नहीं पड़ेगी। उसकी इच्छा है कि ‘‘जलती हुई लकड़ी उठाकर सेल्मा की कलाइयों पर दे मारे।’’ जगन्नाथन जैसे अच्छे आदमी की तलाश कर जहर खा कर योके आत्महत्या कर लेती है।            विरोध की मनः स्थिति में भी जीने की कामना करने वाली नारी के रूप में योके का चत्रिण किया गया है। ‘योके’ को धीरे-धीरे कैद की वह जिन्दगी असह्य होने लगती है। मृत्यु के प्रति सेल्मा की उदासीनता भी ‘योके’ को सह्य नहीं होती, क्योंकि वह मृत्यु को एक मात्र सच्चाई मानती है। उसकी विवशता का दर्शन, मृत्यु को कुछ न मानना, मृत्यु की छाया के नीचे बैठकर गाना, वर्तमान के प्रत्येक क्षण को सहज रूप से जीने की उस की क्षमता, सब कुछ के प्रति सर्वथा अविरोध भाव, जीवन से अनासक्ति, बाहर के प्रति दया और करूणा का भाव, ईश्वर में आस्था आदि, सब कुछ उस के लिए असह्य हो जाता है। उसे लगता है कि मृत्यु उस के कंधो पर सवार होरक उसका गला घोंट रही है। सेल्मा मर जाती है। योके इस मृत्यु गन्ध से विक्षिप्त-सी हो जाती है। उसे सर्वत्र, यहां तक कि अपनी देह में भी            मृत्युगन्ध का अनुभव होता है। ‘‘वह और मृत्युगन्ध-अकेली वह और सर्वत्र व्यापी हुई मृत्युगन्ध-गन्ध के साथ अकेली वह।’’ ईश्वर के प्रति उसका आक्रोश प्रबल हो जाता है और वह उसे गालियाँ भी देती हैं।निष्कर्षः- अपने अपने अजनबी उपन्यास के माध्यम से ‘अज्ञेय’ ने व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों में असामंजस्य स्थिति के कारण किस प्रकार की परिणितियाँ सामने आती हैं, उनका व्यापक चित्रण किया है। अज्ञेय के पात्रों के वैयक्तिक एवं सामाजिक व्यवहार के द्वारा उनकी विशिष्ट सामाजिक मानदंडों की प्रविध्यिों में रखकर उन पात्रों का मनोसामाजिक विश्लेषण किया गया है। ‘अपने अपने अजनबी’ अज्ञेय जी का वैयक्तिक यथार्थबोध पर आधारित उपन्यास है। इस उपन्यास में योके और सेल्मा अजनबी हैं। अजनबीपन की भावना दोनों पात्रों  में से योके के मन में अधिक आती है। वह सेल्मा को समझ पाने में असमर्थ है। इसीलिये उन दोनों में बातें नहीं होती हैं। विपत्ति में मनुष्य किसी न किसी माध्यम से अपने मन का बोझ हल्का करना चाहता है। इसलिए योके अपनी भावनाओं को डायरी के माध्यम से व्यक्त करती। योके और सेल्मा में अपरिचय की भावना अंत तक बनी रहती है।संदर्भ ग्रन्थ सूची1. अज्ञेय गद्य रचना-संचयन-संपादक-कुमार विमल पेज-429-430 अज्ञेय गद्य रचना-संचयन-संपादक-कुमार विमल पेज-433-4342. अपने अपने अजनबी (उपन्यास) – अज्ञेय पेज-101-1023. अपने अपने अजनबी (उपन्यास) – अज्ञेय पेज-31, 39, 514. अपने अपने अजनबी (उपन्यास) – अज्ञेय पेज-58, 595. अपने अपने अजनबी (उपन्यास) – अज्ञेय पेज-105, 1096. अपने अपने अजनबी (उपन्यास) – अज्ञेय

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