ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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कोविड-19 महामारी और ग्राम-पंचायतें: संभावनाएं एवं चुनौतियां

अमित प्रियदर्शी
शोधार्थी, राजनीति विज्ञान
राजकीय महाविद्यालय, टनकपुर
कुमांऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

परिचय- भारत सहित संपूर्ण विश्व इस वक्त कोविड-19 नामक महामारी से जूझ रहा है । विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार अब तक विश्व भर में 94 लाख से ज्यादा लोग इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं और लगभग 5 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है । भारत में 4.9 लाख से अधिक लोग इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं और 15 हजार से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है । यह आंकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं । आंकड़ों में उत्तरोत्तर वृद्धि इस बीमारी की भयावहता की तरफ इशारा कर रही है । चीन के वुहान शहर से फैली इस महामारी के कारण पूरी दुनिया में सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियां थम गयीं हैं । भारत भी इस विकराल समस्या के दुष्प्रभावों से अछूता नहीं रहा है । पूरे भारत में आम नागरिकों की समस्याओं सहित प्रवासी मजदूरों की समस्या भी जबरदस्त रूप से उभर कर सामने आई है । करोड़ों प्रवासी मजदूर एवं उनके परिवार उद्योगों के अचानक बंद होने के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं । यह मजदूर भारत के विभिन्न प्रांतों के ग्रामीण क्षेत्रों से संबंध रखते हैं । इनमें भी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आदि राज्यों के मजदूरों की संख्या अधिक है। जिन्हें इस कोविड-19 नामक महामारी ने अचानक ही बेरोजगार कर दिया है और इन्हें मजबूरन घर लौटना पड़ा है। मजदूरों की समस्याओं के अलावा स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, शिक्षा संबंधी समस्याएं, रोजगार संबंधी समस्याएं, घरेलू हिंसा से संबंधित समस्याएं भी अचानक ही बढ़ गई हैं ।
कोविड-19 महामारी से प्रभावित शहरी क्षेत्र के नागरिकों की समस्याएं बड़े स्तर पर चर्चा का विषय हैं। परंतु इस महामारी से प्रभावित ग्रामीण भारत के नागरिकों की समस्याएं ज्यादा चर्चा का विषय नहीं बन पायीं हैं । ग्रामीण भारतीय नागरिकों की समस्याओं ने ग्राम-पंचायतों के समक्ष अकस्मात ही एक नई चुनौती पेश कर दी है । ग्राम पंचायतों पर शहरी क्षेत्रों में रोजगार के लिए पलायन कर गए ग्रामीणों के अचानक वापस गांव लौट आने से उनके लिए क्वॉरेंटाइन सेंटर, जीवन यापन के लिए मूलभूत सुविधाओं, रोजगार, उनके उपचार आदि का प्रबंध करने का दबाव बढ़ गया है । अगर चुनौतियों का बुद्धिमत्तापूर्वक और बहादुरी से सामना किया जाए तो नई संभावनाएं और अवसर प्रदान होते हैं । एक सार्थक रणनीति बनाकर अगर उसका उचित क्रियान्वयन किया जाए तो ग्राम पंचायतों को और भी सार्थक और प्रासांगिक बनाया जा सकता है ।
1992 में 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतीराज अधिनियम पारित हुआ।1 इस अधिनियम में पंचायतों को आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय, महिला एवं बाल विकास और आधारभूत ढांचे का विकास आदि विषयों पर योजनाएं बनाने एवं संचालित करने की शक्ति प्रदान की गई ।‘2 कोरोना काल में इन शक्तियों की महत्ता बढ़ गई है । यदि ग्रामीण विकास के लिए इन शक्तियों का प्रयोग ईमानदारी से किया जाए तो ग्रामीण भारत में विकास की नई धारा बह सकती है। हालांकि राज्य विधायिका और प्रशासन सदैव ही ग्राम पंचायतों को लंगड़ा घोड़ा ही बनाकर रखना चाहते हैं। वर्तमान समय में पंचायती राज नियम-कायदे से नहीं, सरपंच एवं नौकरशाही के बलबूते चल रहा है ।‘3 घ्ंचायती राज व्यवस्था का मुख्य कार्य सामाजिक न्याय को अमल में लाना है । लेकिन यह संस्था इसे छोड़कर बाकि सारे काम करती है ।‘4 वर्तमान कोरोना संकट इन कमियों को दूर करने का एक सुअवसर हो सकता है ।
कोरोना महामारी के ग्रामीण क्षेत्र पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव-
विज्ञान, तकनीकी और औद्योगिकीकरण के दौर में भी ग्रामीण भारत पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है। हालांकि तकनीकी प्रगति से भारत का ग्रामीण क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा परंतु इसका अंशतः या न्यूनतम लाभ ही ग्रामीण भारत को मिल पाया । इसके प्रमुख कारण निरक्षरता, अंधविश्वास और सरकारों की शिथिलता हैं । वर्तमान समय में भी ग्रामीण भारत की जनसंख्या अपनी समस्त जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि पर निर्भर है जबकि सर्वविदित है कि केवल कृषि से परिवार के सभी सदस्यों की खाने की जरूरतें भी मुश्किल से ही पूरी हो पाती हैं । अनेक कारणों से कृषि अभी भी लाभ का व्यवसाय नहीं बन पायी है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में कृषि एवं इससे संबंधित व्यवसायों ने भारतीय जीडीपी में 17.1 प्रतिशत का योगदान दिया है जबकि भारत की 53 प्रतिशत जनसंख्या यानि लगभग 70 करोड़ लोग कृषि व संबंधित व्यवसायों पर जीविकोपार्जन के लिए निर्भर हैं ।‘5 कृषि व संबंधित व्यवसायों का लाभ के व्यवसाय न बदल पाने या कम लाभ के व्यवसाय में बदल पाने के कारण परिवार की मूलभूत जरूरतें ही मुश्किल से पूरी हो पाती हैं । इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण भारत के अधिकांश लोग औद्योगिक नगरों और शहरों में रोजगार की तलाश में पलायन कर जाते हैं । वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 45 करोड़ लोग प्रवासी मजदूर हैं । जिनमें 93 प्रतिशत लोग असंगठित क्षेत्र के रोजगार से जुड़े हुए हैं ।‘6 अतः यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि ग्रामीण क्षेत्र में कोरोना क्या-क्या नए संकट लेकर आया है ?
कोविड-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित ग्रामीण भारतीय ही हुए हैं । पलायन कर गए लोगों की आकस्मिक वापसी के कारण गांवों में संक्रमण के फैलने की आशंका के कारण भय का माहौल उत्पन्न हुआ है। क्वारंटाइन सेंटर की व्यवस्था न होने के कारण बाहर से आए लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । लोग बाहर से आए अपने संबंधियों को गांव से बाहर खुले में या असुरक्षित जगहों पर खुद से दूर रखने को मजबूर हैं । इससे ग्रामीण परिवेश के सामाजिक तानेबाने में एक खींचाव या तनाव उत्पन्न हुआ है और बाहर से आया व्यक्ति कुंठा एवं मानसिक तनाव का शिकार हो रहा है । कृषि आय जो पहले ही बहुत कम है । उसपर लोगों की निर्भरता अचानक ही बहुत बढ़ गयी है । गांव में रोजगार प्रदान करने वाले क्षेत्रों पर दबाव बढ़ गया है । ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति आय जाहिर तौर पर और कम हो जाएगी। भूमिहीन ग्रामीणों का जीवन बहुत ही मुश्किल हो गया है । भूमिहीन परिवारों को दो वक्त की रोटी का प्रबंध करना भी बहुत कठिन हो गया है । अतः भूमिहीन ग्रामीण परिवारों पर इस माहमारी की सबसे अधिक मार पड़ी है । हालांकि केंद्र सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत लॉकडाउन लगाने के दिन अर्थात् 25 मार्च 2020 को ही 80 करोड़ लोगों को तीन माह तक सस्ता अनाजय दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल, देने की घोषणा की है । 7 परंतु प्रथम ध्यान देने योग्य बात ये है कि इसमें समस्त भारत के शहरी व ग्रामीण लोग शामिल हैं । द्वितीय यह कि इस महामारी का संकट काल एक से दो वर्षों तक भी बढ़ने के अनुमान लगाए जा रहे हैं और स्थिति को सामान्य होने में लम्बा समय लगने का भी अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। राज्य सरकारों ने भी कुछ ऐसी ही घोषणाएं की हैं परंतु राज्य सरकारों के वित्तीय साधन सीमित हैं। मनरेगा ने बहुत हद तक ग्रामीण क्षेत्र के भूमिहीन मजदूरों एवं जरूरतमंद लोगों को रोजगार प्रदान कर तात्कालिक मदद उपलब्ध करायी है । मनरेगा के लिए 40 हजार करोड़ के अतिरिक्त बजट का प्रावधान केंद्र सरकार ने किया है ।
इस महामारी ने भारत क्या ? समस्त विश्व की शिक्षा प्रणाली को प्रभावित किया है । हालांकि तकनीकी क्षेत्र में प्रगति करने वाले देशों ने तकनीकी का प्रयोग कर इस समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया है । परंतु भारत के ग्रामीण क्षेत्र जहां दूर संचार के साधन विकास के प्रथम चरण में ही प्रवेश कर पाए हैं वहां तकनीकी, शिक्षा प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने में विफल साबित हुयी है । अतः ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा प्रणाली को इस माहमारी ने बिल्कुल ध्वस्त कर दिया है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि छोटे बच्चे तकनीकी से अनभिज्ञ हैं और ज्यादातर बच्चों के माता-पिता में तकनीकी ज्ञान का अभाव भी है इसलिए तकनीकी ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा प्रणाली में विशेष रूप से सहायक सिद्ध नहीं हुयी है ।
अतः हम देखते हैं कि इस महामारी ने ग्रामीण परिवेश में रहने वाले भारतीयों को बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में डाल दिया है।
प्रवासी ग्रामीण मजदूरों की समस्याएं-
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 45 करोड़ प्रवासी मजदूर थे जिनमें 93 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के मजदूर शामिल हैं । असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का कोई डेटाबेस सरकार के पास उपलब्ध नहीं है । परंतु इन्हीं प्रवासी मजदूरों की बदौलत औद्योगिक क्षेत्र भारतीय जीडीपी में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान देता है ।‘8 इन प्रवासी मजदूरों की बदौलत उद्योग जगत लाभ तो कमाता है लेकिन इन प्रवासी मजदूरों की समस्याओं की तरफ न तो उद्योग जगत का ध्यान जाता है और न ही केंद्र व राज्य की सरकारों का ध्यान जाता है । यह प्रवासी मजदूर देश की आर्थिक रीढ़ होने के बावजूद भी उपेक्षा का शिकार हैं। कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923, संविदा अनुबंध श्रम (विनयिमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970, समान पारिश्रमिक अधिनियम,1976, मातृत्व लाभ अधिनियम,1961, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948, बंधुआ मजदूरी व्यवस्था (निवारण) अधिनियम,1976 और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून, 2005 जैसे कानून होने के बावजूद भी असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों का बहुत शोषण होता है क्योंकि सरकार और प्रशासन इन मजदूरों के प्रति उदासीन हैं । कोविड-19 महामारी के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाया गया। इसके कारण समस्त उद्योगों को तत्काल बंद करना पड़ा । अचानक ही कारखाने बंद होने के कारण बेरोजगार हुए इन प्रवासी मजदूरों की किसी ने सुध नहीं ली और ना ही इन्हें कोई सहायता धनराशि उपलब्ध कराई गई । लॉकडाउन के कारण भारतीय रेल समेत यातायात के सभी साधनों पर तत्काल ही रोक लगा दी गई । आवागमन बंद हो जाने, आय का साधन समाप्त हो जाने, पहले से उपलब्ध समस्त खाद्य सामग्री के खत्म हो जाने, किराए पर रह रहे इन प्रवासी मजदूरों को मकान मालिकों द्वारा मकान खाली करने को कहने एवं केंद्र व राज्य की सरकारों द्वारा इन प्रवासी मजदूरों की कोई सुध न लिए जाने के कारण भीषण गर्मी में भी हजारों किलोमीटर दूर विभिन्न राज्यों में स्थित अपने घरों के लिए ये मजबूर और बेबस मजदूर पैदल ही निकल पडे। जनता द्वारा चुनी गईं लोकतांत्रिक सरकारों द्वारा प्रवासी मजदूरों के साथ इस तरह का घोर अमानवीय व्यवहार शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो। भीषण गर्मी में हजारों किलोमीटर दूर स्थित अपने घरों के लिए पैदल ही निकल पड़े इन प्रवासी मजदूरों एवं इनके परिवार की महिलाओं, छोटे-छोटे बच्चों और बूढ़ों को बहुत ही विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा । सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, टीवी चेनलों पर केंद्र व राज्य की सरकारों की खूब आलोचना होने के बाद इन सरकारों की नींद टूटी । तबतक हजारों प्रवासी मजदूर और उनके परिवार के सदस्य भुखमरी, बीमारियों, गर्मी, सड़क हादसों आदि के शिकार बन चुके थे । इस दौरान कई प्रवासी मजदूरों के साथ ह्रदयविदारक घटनाएं घटीं । ऐसी ही एक घटना महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में रेलवे ट्रैक पर घटी । जहां पैदल चलने के बाद थकने के कारण रेलवे ट्रैक पर ही सो गए 16 मजदूरों पर से मालगाड़ी गुजर जाने के कारण उनकी मौत हो गयी। केंद्र सरकार द्वारा किराया वसूली की शर्त पर विशेष ट्रेनों को चलाने की अनुमति देने के बाद राज्य सरकारों ने इन्हें वापस बुलाने का प्रबंध किया। इस दौरान महाराष्ट्र, झारखंड, तेलंगाना आदि राज्यों की सरकारों द्वारा किए गए कार्य सराहनीय हैं। कई राज्यों की सरकारों ने श्रमिकों की सहायता करने के बजाय श्रम कानून के ही कई उपबंध रद्द कर दिए तो कई राज्यों से मजदूरों को बंधक बनाने की खबरें भी आईं।
ग्रामीण क्षेत्र के इन प्रवासी मजदूरों की न किसी राजनीतिक संगठन ने और न ही केंद्र व राज्य की सरकारों ने कोई सुध ली। इनके लिए केंद्र सरकार के राहत पैकेज में भी सीधे तौर पर कोई योजना घोषणा शामिल नहीं है।
इस तरह कोरोना संक्रमण काल प्रवासी मजदूरों के लिए किसी बुरे सपने जैसा है। जिसे वे कभी नहीं भुला पाएंगे। ग्रामीण क्षेत्र के प्रवासी मजदूरों को सरकार विभिन्न प्रकार की योजनाओं में शामिल करे और श्रम कानूनों को उचित ढंग से लागू करे । तब ही वे आत्मनिर्भर बन पाएंगे और देश की प्रगति में अधिक योगदान दे पाएंगे ।
कोरोना महामारी का ग्रामीण महिलाओं पर प्रभाव-
महामारी के इस दौर में महिलाओं पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है । उनके प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि पाई है। भारत में लैंगिक भेदभाव सदियों पुरानी समस्या है । आजादी के बाद महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए कई कानून और योजनाएं बनी। इन प्रयासों से स्थितियों में सुधार जरूर हुआ है परंतु अब भी महिलाओंध्लड़कियों से भेदभाव जारी है । 2001 की जनणना के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय लिंगानुपात 933 है। पुरुष साक्षरता 75.26 प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता 53.67 प्रतिशत है ।‘9 लिंगानुपात और महिला साक्षरता प्रतिशत महिलाओं की प्रगति के द्योतक हैं। इन दो आंकड़ों से ही महिलाओं की स्थिति का आंकलन किया जा सकता है । महिलाओं की स्थिति में जो सुधार हुए हैं। वे शहरी क्षेत्र में ज्यादा प्रभावी हैं । भारत के ग्रामीण क्षेत्र में सुधारों की गति शहरी क्षेत्र की तुलना में धीमी है । ग्रामीण भारत में महिलाओं की स्थिति में बहुत बदलाव की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्र में जब परिवार की आय के साधन घटते हैं तो इसका सीधा प्रभाव उस परिवार की महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है। परिवार की महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, पोषण आदि मदों में किये जा रहे खर्चों में या तो कटौती की जाती है या फिर कुछ खर्च बिलकुल बंद ही कर दिए जाते हैं। बहुत अधिक आर्थिक तंगी में भी लड़कों को तो स्कूल भेजा जाता है परंतु लड़कियों को स्कूल न भेजकर घर या बाहर काम पर लगा दिया जाता है। वर्तमान समय में भी ग्रामीण क्षेत्र में ये परिकृश्य बहुत सामान्य हैं। शहरी क्षेत्र के कम आय वर्ग वाले परिवारों में भी यही स्थिति है। ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों की शिक्षा में सरकारी स्कूलों का बहुत योगदान है। यह कहना गलत न होगा कि ग्रामीण क्षेत्र में मंहगे निजी स्कूलों का लड़कियों की शिक्षा में योगदान शून्य‘ है। कोरोना महामारी ने महिलाओं की प्रगति पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की आय के अन्य स्त्रोत खत्म होने से और पूरे परिवार का कृषि आय पर ही निर्भर होने से महिलाओं की स्थिति पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा । उनके ऊपर होने वाले खर्चों में सबसे पहले कटौती की जाएगी। जैसा कि पहले ही वर्णित है कि आय के कम होने का सबसे पहला प्रभाव महिलाओं और लड़कियों पर ही पड़ता है। इस महामारी के समय में ये प्रवृत्ति और बढ़ने की प्रबल संभावना है । लड़कियों को सरकारी स्कूलों में भी न भेजकर, उनको घर या खेतों में काम पर लगाया जाता रहा है । इस महामारी के समय में इस तरह की प्रवृत्ति में भी वृद्धि के आसार हैं। आशंका है कि ग्रामीण क्षेत्र में ही नहीं वरन समस्त भारत में महिलाओं की स्थिति में अबतक हुए सुधार बहुत प्रभावित होंगे ।
स्पष्ट है कि इस महामारी से महिलाएं सीधे तौर प्रभावित हुयी हैं। इसपर केंद्र व राज्य सरकारों को आपस में समन्वय बनाकर उचित कदम उठाने चाहिए । कोविड-19 महामारी में ग्राम पंचायतों की भूमिका एवं सुझाव-
कोविड-19 महामारी के इस संकटकाल में ग्राम पंचायतें भी बहुत दबाव में हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ग्राम पंचायतें जो केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाओं के क्रियान्वयन का हथियार मात्र बनकर रह गई हैं । इस महामारी के समय बेबस नजर आ रही हैं । ग्राम पंचायतों को जिस प्रकार इस महामारी के संकट में फंसे समस्त ग्रामीण जनों की सहायता के लिए, उन्हें इस संकट से उबारने के लिए कार्य करना चाहिए, वो जमीनी स्तर पर कहीं भी नजर नहीं आ रहा है । केंद्र सरकार के 80 करोड़ लोगों को लॉकडाउन के आरम्भ की तिथि से तीन माह तक सस्ता अनाज उपलब्ध कराने की योजना व राज्यों की इस संकटकाल में बनी योजनाओं में ही ग्राम पंचायतों ने अपनी भूमिका अदा करने की औपचारिकता पूरी की है। गौरतलब है कि ग्रामीण क्षेत्र को महामारी के संकट से उबारने के लिए केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने पंचायती राज मंत्रालय के साथ मिलकर काम किया है। पर ग्राम पंचायतें जो इस महामारी से निपटने में अहम भूमिका निभा सकती हैं, खुद ही निष्क्रिय नजर आ रही हैं। ग्राम पंचायतों के पास इस संकट से निपटने की कोई कार्य योजना नहीं है। सरकार की योजनाओं का ग्रामीण क्षेत्र में क्रियान्वयन ग्राम पंचायतों के बिना संभव नहीं है। परंतु खुद के क्षेत्र की जरूरतों की जानकारी ग्राम पंचायतों के अलावा कौन बेहतर जान सकता है ? गांवों में ऐसी महामारियों से बचने के लिए न क्वारंटाइन सेंटर हैं और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं हैं। इस महामारी में गांव की शिक्षा व्यवस्था भी धराशायी हो गई है। लैंगिक भेदभाव के बढ़ने की प्रबल संभावनाएं हैं। प्रवासी मजदूरों के गांवों में लौट आने से गांव में रोजगार के बेहद सीमित क्षेत्र और अधिक दबाव में आ गए हैं। बेरोजगारी और भुखमरी जैसी समस्याएं भी महामारी में महामारी की तरह फैल रहीं हैं। ऐसे समय में ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी बहुत अधिक बढ़ गई है । कृषि आधारित उद्योग जैसे सूती वस्त्र उद्योग, चीनीध्गुढ़ उद्योग, पटसन उद्योग, बागान उद्योग, मधुमक्खी पालन, बीज उत्पादन व्यवसाय, दुग्ध उत्पादन, खादी ग्रामोद्योग, पशुपालन, जल कृषि- आधारित मत्स्य पालन, झींगा पालन, सिंघाड़ा उत्पादन आदि को बढ़ावा देने में ग्राम पंचायतें महत्ती भूमिका अदा कर सकती हैं । गावों में लौटे प्रशिक्षित प्रवासी मजदूर, प्रशिक्षित होने के साथ-साथ स्थानीय भाषा से भी अवगत हैं । इन प्रशिक्षित मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मुहैया कराने, लघु व कुटीर उद्योग लगाने में सहयोग दिया जाए। ऐसे प्रशिक्षित प्रवासियों से अन्य स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देने का काम भी ग्राम पंचायतों द्वारा दिया जा सकता है । उन्हें इस कार्य के बदले उचित भत्ता प्रदान किया जाए। इससे इन प्रवासी मजदूरों को घर में ही रोजगार उपलब्ध होगा और अन्य स्थानीय लोग भी उनसे लाभान्वित होंगे । ग्राम पंचायत स्तर पर ही महिलाओं को संक्रामक बीमारियों के प्रति जागरूक करने के लिए कुछ महिलाओं को इस कार्य के लिए पंचायत स्तर पर ही प्रशिक्षित किया जाए। जो ग्राम पंचायत स्तर या आसपास के गांवों चौपाल लगाकर ऐसी बीमारियों के प्रति लोगों को समय-समय पर जाकर जागरुक और आगाह करती रहें । ऐसे ही कुछ पुरुष भी प्रशिक्षित किए जा सकते हैं और ऐसे लोगों को उचित भत्ता पंचायत स्तर से प्रदान किया जाना चाहिए। ग्रामीण महिलाओं को भी व्यापक स्तर पर मानव संसाधन बनाने की आवश्यकता है। जिसे पूरा करने में ग्राम पंचायतें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। कृषि उद्यम, हस्तशिल्प उद्यम, पशुपालन उद्यम, लघु व कुटीर उद्योगों आदि में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने में ग्राम पंचायतों को अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए। महिलाओं को मास्क आदि बनाने का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है। सामूहिकता की भावना और सबके लिए कुछ न कुछ काम की व्यवस्था इस महामारी के संकट में ग्रामीणों को बहुत बड़े संकट से बचा सकती है। ग्रामीण महिलाओं को व्यापक तौर पर मानव संसाधन के रूप में विकसित करने से लैंगिक भेदभाव घटेगा और साथ ही साथ बालिका सशक्तिकरण को मजबूती मिलेगी। वर्ष 1958 में कृषि प्रशासनिक समिति ने यह कहा था कि कृषि ही सभी उद्योगों की जननी है और मनुष्यों को जीवन प्रदान करने वाली है ।‘10 ग्राम पंचायतें जहां यह कृषि भूमि आती है, इस संकट काल में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं।
निष्कर्ष- कोविड-19 महामारी में ग्राम पंचायतों ने सरकारी योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर, अपनी उपयोगिता सिद्ध की है । परंतु जिस उद्देश्य से ग्राम पंचायतों को स्थापित किया गया । इस महामारी के समय में ग्राम पंचायतों ने उस उद्देश्य के साथ न्याय नहीं किया है । सिर्फ सरकार की योजनाओं को लागू करने में ही नहीं बल्कि पंचायत स्तर पर क्वारंटाइन सेंटरों की स्थापना, स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने की योजना, प्रवासी मजदूरों की गांव वापसी से उपजी समस्याएं को सुलझाने, लैंगिक भेदभाव कमध्खत्म करने, ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने, बालिका शिक्षा एवं सशक्तिकरण को बढ़ावा देने, गांवों में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने, मनरेगा को और अधिक उपयोगी बनाने आदि में भी ग्राम पंचायतें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। कोरोना काल में अपनी भूमिका को सही ढंग से निभाकर ग्राम पंचायतें अपनी प्रसांगिकता को और अधिक बढ़ा सकती हैं। इस प्रकार ग्राम पंचायतें ग्रामीण क्षेत्र व देश दोनों के विकास में अपना योगदान देकर, देश को आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर करने में मददगार साबित होंगी।
संदर्भ-
1) महीपालःपंचायती राज, चुनौतियां एवं संभावनाएं, एनबीटी, भारत, पृ-24, 2019
2) एम.असलम,पंचयती राज इन इंडिया,एनबीटी 2019 चौप्टर-3,पेज-43
3) महीपालः गांवों में शासन हो, प्रशासन नहीं, अमर उजाला, दैनिक अखबार, दिनांक-16-03-2020,पृ-1
4) महीपालः गांवों में शासन हो, प्रशासन नहीं, अमर उजाला, दैनिक अखबार, दिनांक-16-03-2020,पृ-1
5) व्हाट इज द सेक्टर-वाइज कोंट्रीव्यूसन ऑफ जीडीपी इन इंडिया? जागरण जोश न्यूज पेपरwww-jagranjosh-com DATE 03/01/2020
6) प्रदीप सिंह,चुनौतियों को अवसर में बदलते योगी, दैनिक जागरण दैनिक अखबार, दिनांक-28May2020 पृ-6
7) 80 करोड़ लोगों को तीन माह सस्ता अनाज, अमर उजाला, दैनिक अखबार, दिनांक-26March2020, च-1
8) व्हाट इज द सेक्टर-वाइज कोंट्रीव्यूसन ऑफ जीडीपी इन इंडिया? जागरण जोश न्यूज पेपर www-jagranjosh-com DATE 03/01/2020
9) भारत 2013, प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, पृ-13
10) डा.कल्पना द्विवेदीःभारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि आधारित उद्योगों की भूमिका, कुरुक्षेत्र, अंक-मई2014, च-9

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