ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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भारतीय मुख्य न्यायाधीश का पद एवं उत्तरदायित्व

डॉ0 रश्मि फौजदार
असि. प्रो.
मुस्लिम गर्ल्स डिग्री कॉलिज, बुलन्दशहर।

सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश भारतीय न्यायपालिका का ‘प्रधान’ होता है। वह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में वरिष्ठ होता है। मूल संविधान में सर्वोच्च न्यायालय के लिए मूल रूप से एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों को अधिनियमित किया गया था। न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाने का उत्तरदायित्व संसद को सौंपा गया। संविधान का अनुच्छेद-124 में कहां गया है कि ‘‘सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जो मुख्य न्यायाधीश और सात अन्य न्यायाधीशों से गठित होगा, जब तक संसद नियम अधिनियमित कर उसकी संख्या में वृद्धि नहीं करे।’’1 सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के परामर्श के बाद नियुक्त किया जाएगा। परम्परागत रूप से सेवानिवृत्ति होने के पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने उत्तराधिकारी के बारे में प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय के ‘‘मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की परम्परागत प्रक्रिया में कई जटिलताएँ भी हैं। वरीयता का मामला थोड़ा पेचिदा है।’’2 जिसका उदाहरण जस्टिस जे, चेलेश्वरम तथा दीपक मिश्रा के मामले में समझा जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय में दीपक मिश्रा तथा जे. चेलेश्वरम की नियुक्ति एक दिन ही हुई थी। 10 अक्टूबर, 2011 को दोनों न्यायाधीशों को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था, किन्तु चलेश्वरम की आयु दीपक मिश्रा से अधिक रहने के बाबजूद अगस्त, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश दीपक मिश्रा को नियुक्त किया गया।
ऐसा हो वर्ष 2000 में हुआ था, जब न्यायाधीश रूमा पाल और वाईके सभरदाल में वाईके सभरवाल को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में यह देखा जाता है कि किस न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय में अधिक समय तक अपनी सेवाएँ दी हैं। सीधे ‘बार काउन्सिल’ द्वारा नामित और उच्च न्यायालय में कार्य करने के अनुभव के आधार पर भी किसी न्यायाधीश को वरीयता प्रदान कर मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है।
प्रत्येक बार वरिष्ठता की परम्परा को ही अपनाया गया, किन्तु इसके अपवद भी समने आए है। 25 अप्रैल, 1974 को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीस एसएम सीकरी सेवानिवृत्त हुए। उस समय जस्टिस एएन रे वरीयता के आधार पर चौथे स्थान पर थे, किन्तु उन्हें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 28 जनवरी, 1977 को मुख्य न्यायाधीश एएन रे सेवानिवृत्त हुए। उस समय एचआर खन्ना सर्वोच्च न्यायालय के सीनियर न्यायाधीश थे, किन्तु एमएच बेग को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। केन्द्रीय विधि मन्त्री सेवानिवृत्ति होने वाले सीजेआई से नए मुख्य न्यायधीश के नाम की सिफारिश करने की माँग करते हैं। सेवानिवृत्त होने वाले मुख्य न्यायाधीश द्वारा अगले मुख्य न्यायाधीश के रूप में वरीयता प्राप्त न्यायाधीश के नाम की सिफारिश की जाती है। सीजेआई से सिफारिश मिलने के बाद विधि मन्त्रालय सिफारिश को पीएमओ के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजता है।
राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति तथा उसे शपथ दिलाने का कार्य करता है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में केन्द्र सरकार की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती है। न्यायाधीश की नियुक्ति में कॉलेजियम के फैसले को सरकार अवश्य सर्वोच्च न्यायालय के पास भेज सकती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा ट्रांसफर में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को तय किया गया है। ‘थ्री जजेज केस’ में ‘कॉलेजियम व्यवस्था’ का सृजन हुआ। तीन मामलों में सुनवाई के बाद यह व्यवस्था सामने आई। सितम्बर, 2013 में ‘‘कॉलेजियम व्यवस्था को समाप्त करने के लिए ‘न्यायिक नियुक्ति आयोग’ गठन हेतु अधिनियम पारित किया, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया’’।3 कॉलेजियम को पुनस्थापित करते हुए न्यायाधीशों की नियुक्ति में इसे प्रभावी बनाया गया है। कॉलेजियम व्यवस्था के अनतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में पाँच वरिष्ठ न्यायाधीशों की समिति न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा हस्तान्तरण का फैसला लेती है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पदोन्नत कर सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त करने की प्रक्रिया भी ‘कॉलेजियम’ के तहत आती है।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद-124(2) में निम्न उपबन्ध दिए गए हैं व्यक्ति भारत का नागरिक हो। कम-से-कम 5 वर्ष के लिए किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर रहा हो या दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम-से-कम पाँच वर्षो तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो। अथवा किसी उच्च न्यायालय/न्यायालयों में लगातार दस वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में कार्य कर चुके हो तथा राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता होना चाहिए। किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या फिर सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के एक तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के सम्बन्ध में संविधान में न्यूनतम आयु का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु पूर्ण करने तक होता हैं। संविधान के अनुच्छेद-124(2) मेें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के कार्यकाल का विवरण है। भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते संविधान की दूसरी अनुसूची व अनुच्छेद-125 में उपबन्धित है। 1 जनवरी, 2016 से मुख्य न्यायाधीश को रु 2.80 लाख तथा अन्य न्यायाधीशों को रु 2.50 लाख मासिक वेतन दिया जाता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-124 (4) में न्यायाधीशों को हटाए जाने की प्रक्रिया का उल्लेख है। इस प्रक्रिया को आम बोलचाल की भाषा में ‘महाभियोग’ कहा जाता है। किसी न्यायाधीश को केवल संसद के दोनो सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति की सहमति पर पद से हटाया जा सकता है। न्यायाधीशों को उनके पद से हटाए जाने की प्रक्रिया का विस्तृत उल्लेख न्यायाधीशों से पूछताछ अधिनियम 1968’ में उल्लेखित है। इस अधिनियम में न्यायाधीशों को पद से हटाए जाने की प्रक्रिया दी गई है। न्यायाधीशों को पद से हटाए जाने की प्रक्रिया की शुरुआत संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव पेश कर आरम्भ की जा सकती है। लोकसभा में प्रस्ताव को अध्यक्ष के समक्ष पेश करने से पर्व 100 सदस्यों के हस्ताक्षर तथा राज्यसभा में सभापति के समझ प्रस्ताव पेश करने से पूर्व 50 सदस्यों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं। अध्यक्ष (लोकसभा) अथवा सभापति (राज्यसभा) विशेषज्ञों की राय ले सकते हैं। अथवा नोटिस से सम्बन्धित सामग्री की प्रसंगिकता जाँच की जा सकती है। इस आधार पर वह प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है अथवा खारिज कर सकता है। प्रस्ताव को स्वीकार किए जाने के उपरान्त तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है, जो न्यायाधीश पर लगे आरोपों की जाँच करते हैं। इस समिति में निम्न व्यक्ति शामिल होते हैं।
1. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा अन्य न्यायाधीश
2. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
3. एक विशिष्ट विधिवेत्ता
समिति द्वारा जाँच के आधार पर आरोप तय किए जाते हैं। समिति जाँच की रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष अथवा राज्यसभा सभापति को सौंपते हैं जिसे सदन में प्रेषित किया जाता हैं।
‘सिद्ध कदाचार या अक्षमता’ पाए जाने पर न्यायाधीश के विरूद्ध ‘महाभियोग’ पर बहस चलाई जाती है। बहस के अन्त में मतदान होने पर दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति सम्बन्धित न्यायाधीश को हटाए जाने का निर्देश जारी करता है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर ‘‘महाभियोग चलाने के लिए 20 अप्रैल, 2018 को राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को राज्यसभा के 62 सांसदों ने ‘महाभियोग प्रस्ताव’ सौंपा। सभापति ने 23 अप्रैल, 2018 को इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।’’4 सभापति ने प्रस्ताव में किसी ‘सिद्ध दुर्व्यवहार’ तथा ‘अक्षमता’ की अनुपस्थिति को आधार बनाते हुए प्रस्ताव को खारिज कर दिया जाता है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गागोई पर लगे यौन उत्पीडन के आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में असाधारण घटना के तहत 20 अप्रैल 2019 को विशेष बेंच गठित कर सुनवाई की गई ‘‘सीजेआई ने आरोपों को बेबुनियाद और बड़ी साजिश बताते हुए कहा, मैंने यह कदम इसलिए उठाया, क्योंकि चीजें हद से बढ़ गई हैं। न्यायपालिका की आजादी पर गंभीर खतरा है। कोई ‘बड़ी ताकत’ प्रधान न्यायधीश (सीजेआई) दफ्तर को निष्क्रिय करना चाहती है, लेकिन हम ऐसा हरगिज नहीं होनें देंगे।’’5 दरअसल, मुख्य न्यायाधीश गोगाई पर एक पूर्व महिला कर्मचारी ने आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत के 22 जजों को हलफनामों भेजा था। इसके हवाले से शनिवार सुबह वेब पोर्टल्स पर खबर प्रकाशित होते ही छुट्टी के दिन विशेष बेंच गठित कर सुनवाई की गई। चीफ जस्टिस की तीन सदस्यीय बेंच ने सुबह 10.30 बजे से सुनवाई शुरू की। चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, आरोपों की जांच सहयोगी जज करेंगे। आरोप अविश्वसनीय हैं, मुझे नहीं लगता कि इनका जवाब देने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए। मुझे बेंच गठित करनी पड़ी। क्योंकि यह मेरी जिम्मेदारी है।
अब मुख्य न्यायाधीश तथा उनका दफ्तर सूचना के अधिकार के अन्तर्गत आता है। The office of the Chief Justice of India (CJI) is a ‘public authority’ under the Right to Information (RTI) Act, a five-judge Constitution Bench led by Chief Justice of India Ranjan Gogoi Declared on 13 Nov. 2019. The main judgment of the Constitution Bench authored by Justice Sanjiv Khanna Said “The Supreme Court is a ‘public authority’ and the office of the CJI is part and parcel of the institution. Hence, if the Supreme Court is a public authority, so is the office of the CJI”.6
सर्वोच्च न्यायालय के गठन, स्वतन्त्रता, कार्य तथा शक्तियों, का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग ट के अनुच्छेद-124 से 147 के बीच किया गया है। भारतीय संविधान के अनुसार, सर्वोच्च न्यायाल संविधान का अभिभावक है और यह नागरिकों के मूल अधिकारों की गारण्टी देता है। यह संविधान के अनुच्छेद-32 में वर्णित है। सर्वोच्च न्यायालय के पास अधिकार होगा कि वह निर्देश, आदेश और रिट जारी कर सकता है, जिसके माध्यम से अधिकारों का उपचार कर सके। ये रिट हैबियस कार्पस, मण्डमस, प्रोहिबिजन, क्वा वारण्टो तथा सर्टिरेरी के रूप में हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पिरामिड में शीर्ष पर है। राज्यों में उच्च न्यायालय शीर्ष पर होता है। भारत के स्तर पर यह न्यायिक प्रणाली का अन्तिम प्रक्रियागत तथा संस्थागत स्वरूप है। यह भारत का ‘फाइनल ज्यूडिशियल ट्रिब्यूनल’ है। “सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर के अनुसार, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, विश्व के किसी भी हिस्से में स्थित सर्वोच्च न्यायालय से अधिक शक्तिशाली है। यह इसलिए कि एक संघीय न्यायालय के रूप में कार्य करते हुए यह संविधान का संरक्षक, अपीलीय न्यायालय तथा सलाहकारी शक्तियों से युक्त है।” सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक प्रक्रिया को तीन भागों में बाँटा जा सकता है
1. सामान्य, 2. अपीलीय, 3. सलाहकारी सामान्य रूप में सर्वोच्च न्यायालय संविधान का अभिभावक तथा संरक्षक है। सर्वोच्च न्यायालय का समन्वित न्याय क्षेत्र जिन मामलों में परिवृत्त है, वे निम्न हैं
संघ बनाम एक या एक से अधिक राज्य संघ तथा एक राज्य या एक से अधिक राज्य बनाम एक राज्य अथवा एक से अधिक राज्य एक या एक से अधिक राज्य बनाम एक या एक से अधिक राज्य
सर्वोच्च न्यायालय का ‘अपीलीय अधिकार’ सिविल तथा क्रिमिनल दोनों प्रकार के मामलों में समान रूप से प्रभावी होता है। उच्च न्यायालय में दिए गए फैसलों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। आपराधिक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती हे, जब उच्च न्यायालय, निम्न अदालत के फैसले को पलट देता है, जिसमें ‘मृत्युदण्ड’ दिया गया हो। उच्च न्यायालय मामले को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लायक मानता हो। सर्वोच्च न्यायालय को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-143 के आधार पर ‘सलाहकारी भूमिका’ दी गई है। राष्ट्रपति कानून सम्सत तथ्यी पर सर्वोच्च न्यायालय से सुझाव माँग सकता है।
केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा विधायिका से पारित कानून अथवा कार्यकारी निर्देशों के संवैधानिकता की जाँच की शक्ति, जो न्यायापालिका में निहित है, ‘न्यायिक पुनरीक्षण’ (श्रनकपबपंस त्मअपमू) कहलाता है। न्यायिक पुनरीक्षण की संकल्पना ‘अमेरिका संविधान’ तथा न्यायपालिका के सम्बन्ध से ग्रहण किया गया है। यदि पारित कानून या आदेश किसी संवैधानिक उपबन्ध को अतिक्रमित करती है तो न्यायपालिका उक्त कानून को असंवैधानिक तथा अवैध करार दे सकता है। न्यायिक पुनरीक्षण के दो मुख्य आयाम हैं सरकार के कार्यो की वैधानिकता की जाँच तथा किसी प्रकार के संवैधानिक अतिक्रमण को संरक्षित करना सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में ‘न्यायिक पुनरीक्षण’ की शक्ति का प्रयोग किया है जैसे:- 1. गोलकनाथ मामला (1967), 2. द प्रिविपर्स एबोलिशन मामला (1971), 3.केशवानन्द भारती (1978), 4. मिनर्वा मिल्स मामला (1980)
वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने 99 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2014 तथा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम 2014 को शून्य मानते हुए रद्द कर दिया।
एनजेएसी, अधिनियम में ‘कॉलेजियम’ प्रणाली को समाप्त कर न्यायिक नियुक्तियों में ‘संसद’ की सर्वोच्चता स्थापित करने का प्रयास किया गया था। कॉलेजियम प्रणाली की पुनर्स्थापना से न्यायिक नियुक्ति में पुनः न्यायपालिका के वर्चस्व को स्थापित किया गया।
न्यायपालिका द्वारा ‘‘समाज में न्यायिक प्रक्रिया की स्थापना तथा नागरिकों क अधिकारों के संरक्षण के लिये सक्रिय भूमिका निभाने की प्रक्रिया ‘न्यायिक सक्रियता’ (श्रनकपबपंस ।बजपअपेउ) है। इसे ‘न्यायिक गतिशीलता’ (श्रनकपबपंस क्लदंउपेउ) भी कहते हैं। विधायिकों तथा कार्यपालिका जब अपने उत्तरदायित्वों को बेहतर ढंग से आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं होती है तो न्यायपालिका को सक्रिय होना पड़ता है।’’7 देश के नागरिक अपनी स्वतन्त्रता और अधिकारों के संरक्षण के लिए न्यायपालिका की ओर देखते है। भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में न्यायिक सक्रियता के बिन्दु स्पष्ट होते हैं।
भारत के ‘‘प्रधान न्यायधीश अपने ‘‘समकक्षें में प्रथम’’ हैं और मुकदमों के आवंटन तथा उनकी सुनवाई के लिए पीठ के गठन का संवैधानिक अधिकार उन्हीं को है।’’7 12 अप्रैल 2018 को भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने मुकदमों के तकपूर्ण तथा पारदर्शी आवंटन और उनकी सुनवाई के लिए पीठों के गठन के संबंध में दिशा-निर्देश तय करने की मांग करने वाली जनहित याचिका को आज खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की। पीठ के लिए फैसला लिखते हुए न्ययमूर्ति चन्द्रचूड़ ने संवैधानिक उपचार का हवाला देते हुए कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश समकक्षों में प्रथम हैं और मुकदमों के आवंटन तथा पीठों के गठन का अधिकार उनके पास है। ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ ‘‘सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिया गया विशेषाधिकार है, जिसके तहत मामलों की सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठों का गठन किया जाता है।’’8 सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश समान में वरिष्ठ’ की भूमिका में होता है। उसे ‘समकक्षों में प्रथम’ (ज्ीम पितेज ंउवदह मुनंसे) कहा जाता है। यह अवधारणा सर्वोच्च न्यायालय को प्रशासनिक रूप से प्रभावी बनाने के लिए की गई है। ‘‘मास्टर ऑफ रोस्टर के कारण जहाँ सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश शंक्ति सम्पन्न दिखता है तो वहीं वह ‘समकक्षों में प्रथम की अवधारणा से आगे निकलता हुआ प्रतीत होता है।’’8 यह व्यवस्था सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को शक्ति सम्पन्न तो बनाती है, किन्तु उत्तरदायित्वों से मुक्त भी कर देती हैं। सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश एक प्राधिकार है, जो अन्य न्यायाधिशों के कार्य का वितरण करता है।
भारत का संविधान सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका के सन्दर्भ में ‘मूक’ है। संविधान में ऐसे किसी उपबन्ध की चर्चा नही है, ‘‘जो मुख्य न्यायाधीश के उत्तरदायित्वों को रेखांकित करे, किन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न मामलों में लिए गए फैसलों के आधार पर उसकी भूमिका तथा उत्तरदायित्व को तय किया गयाहै।’’9 परम्परागत विचार तथा फैसलों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को नेतृत्व प्रदान किया गया है। वह सर्वोच्च न्यायालय की प्रशासनिक प्रवृत्तियों का प्रमुख है तथा उसे न्यायिक कर्तव्यों के बँटवारे का अधिकार हैं। किसी मामले में मुख्य न्यायाधीश का निर्णय यदि उसके खण्डपीठ में बहुमत में नहीं है तो मुख्य न्यायाधीश का पक्ष होने के बावजूद ‘बहुमत’ का निर्णय मान्य होता है। इससे स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, शीर्ष न्यायालय का केवल वरिष्ठतम न्यायाधीश है।
संसद को संविधान में संशोधन करने के अधिकार दिये गये मगर इसके मूलभूत ढांचे के साथ छेड़-छाड़ करने की इजाजत नहीं दी गई। इस व्यवस्था के लिए सर्वाेच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की स्वतन्त्र सत्ता इस प्रकार निर्धारित की गई है कि संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति के साये में अपने कार्याें का निष्पादन बिना किसी बिना किन्ही बाहरी प्रभावों के निर्भय होकर निर्णय कर सके।

संदर्भ ग्रन्थ –
1. भारत का सर्वाेच्च न्यायालयhttps/www.drinhtiia.com
2. भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद एवं दायित्व; समसामयिकी महासागर सितम्बर 2018.
3. विजय कुमार चौधरी अध्यक्ष बिहार विधान सभा; कॉलेजियम पर उठे सवाल; हिन्दुस्तान मेरठ 23 जनवरी 2020.
4- Vice President rejects oppn’s of CJI Removal Motion, The Times India New Delhi, APRIL 24, 2018
5. मुख्य न्यायाधीश सर्वाेच्च न्यायालय न्यायपालािक की आजादी खतरे में है; अमर उजाला 21 अप्रैल 2019.
6- Office of the Chief Justice of India Come under RTI Act; The Hindu 14 Nov., 2019
7- ARUNODYA BAJPAL, Chaingang nature of PIL and Judicial Activism in India, P.D. RNI No. UP Eng./06/17031, April 2019
8. चीफ जस्टिस ही सुप्रीम पंजाब केशरी नई दिल्ली; 12 अप्रैल, 20418.
9. पी0 चितम्बर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री, प्रधान न्यायाधीश की भी सुने; अमर उजाला नई दिल्ली; 01 मई 2019.

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