ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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सोशल मीडिया दिशा-निर्देश-2021

डॉ0 मोहित मलिक
असि0प्रो0
राजकीय महिला महाविद्यालय, खरखौदा, मेरठ

सोशल मीडिया ’’रोटी, कपड़ा और मकान की तरह हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। कंम्प्यूटर और इंटरनेट पर आधारित डिजिटल क्रांति ने अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज, तीनों को प्रभावित किया है। फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सअप जैसे ऑनलाइन सोशल प्लेटफार्म्स के बिना आज जीवन की कल्पना करना बेमानी है।’’1
सूचना क्रांति के इसी वाहन यानि स्मार्टफोन ने अन्ना के आंदोलन की सफल गाथा लिखी। अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने जैसे हाथों-हाथ लिया, उसमें स्मार्टफोन की सबसे बड़ी भूमिका है। इसीलिए उन्होंने मुफ्त ’वाई-फाई’ की अहमियत को समझा और इसे देने का चुनावी वादा किाय। समाज और खास तौर पर युवाओं में आ रहे जबरदस्त बदलाव की सबसे अच्छी भनक अरविन्द और उनके साथियों ने पा ली थी। नरेन्द्र मोदी के जमाने वाली भाजपा ने तो अपने मीडिया सेल के जरिए इसका ऐसा दोहन किया कि अब वो अजेय बने नजर आते हैं। सोशल मीडिया ने ही उन नेताओं और उनकी पार्टियों के उन हथकंडों को ध्वस्त या कमजोर करके दिखाया जो कभी जातिवादी और क्षेत्रवादी फार्मूले वाली राजनीति करते थे। आम आदमी पार्टी का परचम देश के अन्य इलाकों में वैसा नहीं लहराया, जैसा दिल्ली ने बार-बार देखा है। वजह साफ है कि स्मार्टफोन की दिल्ली जैसी मौजूदगी और मोबाइल के डाटा सिग्नल की रफ्तार देश के बाकी हिस्सों में नहीं रही। उसने अन्य राज्यों में स्मार्टफोन के जरिए प्रचार करने वाले युवाओं की सक्षम टीम भी नहीं थी लेकिन भाजपा ने आप से सोशल मीडिया का मंत्र बहुत तेजी से सीखा।
पच्चीस फरवरी 2021 को भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 को अधिसूचित किया। मंत्रालय ने कहा कि ऐसा डिजिटल मीडिया से सम्बन्धित उपयोगकर्ताओं की पारदर्शिता, जबावदेही और अधिकारों की कमी के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच और जनता और हितधारकों के साथ विस्तृत परामर्श के बाद किया गया। इन नये नियमों के अनुसार सोशल मीडिया सहित सभी मध्यस्थों को ड्यू डिलिजेंस या उचित सावधानी का पालन करना होगा। अगर वे ऐसा नही करते तो उन्हें कानून के द्वारा दी गई सुरक्षाएं नहीं मिलेंगी। साथ ही ये नियम मध्यस्थों को शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने को कहते हैं, और उपयोगकर्ताओं विशेष रूप से महिला उपयोगकर्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मध्यस्थ पर डालते हैं। इन नियमों के अनुसार गैर-कानूनी जानकारी को हटाने की जिम्मेदारी भी मध्यस्थों की होगी और उन्हें उपयोगकर्ताओं को सुनने का अवसर देना होगा और एक स्वैच्छिक उपयोगकर्ता सत्यापन तंत्र की स्थापना करनी होगी। जिन सोशल मीडिया मध्यस्थों के 50 लाख से ज्यादा उपभोक्ता हैं, उनके लिए सरकार ने कहा कि उन्हें मुख्य अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी जो अधिनियम और नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होगा। साथ ही, इन बडे़ मध्यस्थों को कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ चौबीसों घंटे समन्वय के लिए नोडल संपर्क अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी जो शिकायत निवारण तंत्र के अन्तर्गत कार्यों को करेगा। इन पदों पर उन्हीं लोगों की नियुक्ति होगी जो भारत के निवासी हों। साथ ही, प्राप्त शिकायतों के विवरण और शिकायतों पर की गई कार्यवाई के साथ-साथ इन सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा सक्रिय रूप से हटाई गई सामग्री के विवरण का उल्लेख करते हुए मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी।
इन नये नियमों ने 2011 से लागू पुराने नियमों की जगह ली है। इसके भाग-1 में परिभाषाएं हैं, प्रभावी नियम भाग -2 और 3 में हैं। इनमें मध्यवर्ती या बिचौलियों (इंटरमीडियरीज) से जुड़े निर्देश हैं इनका भी अलग-अलग वर्गीकरण है। बिचौलियों में सोशल मीडिया से जुड़ी संस्थाए हैं। इस हिस्से का नियमन इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन है। भाग 3 डिजिटल न्यूज मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों से सम्बद्ध है। ओटीटी प्लेटफार्म जैसे कि नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और डिज्नी हॉट स्टार वगैरह। भाग-3 का नियमन सूचना मंत्रालय करेगा।
डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के ’’विनियमन के लिए केन्द्र सरकार की नवीनतम कोशिशों को लेकर तीन विनियमन न केवल जरूरी है, बल्कि इसे ’नख-दंत’ की जरूरत है। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी कहीं है।’’2 दूसरी, विनियमन ठीक है, पर इसका अधिकार सरकार के पास नहीं रहना चाहिए। इस दलील में उन बड़ी तकनीकी कंपनियों के स्वर भी शामिल हैं, जिनके हाथों में डिजिटल (या सोशल) मीडिया की बागडोर है। और तीसरी दलील मुक्त-इंटरनेट के समर्थकों की है।
मनोरंजन ओटीटी मीडिया का केवल एक पहलू है। इसका दायरा बहुत बड़ा है। यह अस्पष्ट है कि न्यूज मीडिया से आशय क्या है? हाल में यूटयूब पर भारी संख्या मंें छोटे-छोटे चैनल सामने आए हैं। ज्यादातर एक व्यक्ति के चैनल है। खान-पान, व्यंजन, गीत-संगीत और घुमक्कड़ी जैसे विषयों के शौकीनों के चैनलों की बाढ़ आई है। इससे युवा मीडियाकर्मियों को अपनी बात कहने के मौके मिले और विचार अभिव्यक्ति के नये आयाम खुले हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच भले ही मीडिया का लेन-देन नहीं है, पर यूटयूब ने इस कमी को पूरा किया है। यह सब अच्छा है, इसे जारी रहना चाहिए।
यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि आज जिस तरह सोशल मीडिया कंपनियां मजबूत हुई हैं , वो देशों को प्रभावित करने की असीमित ताकत से लैस हो गई हैं। इसे इस तरह समझिए कि आज दुनिया भर में 450 करोड से ज्यादा की आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है, लेकिन इन्टरनेट यूजर्स की इतनी बड़ी दुनिया गिनी-चुनी टेक कम्पनियों तक सीमित है- फेसबुक, गूगल, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल के साथ दो-तीन कंपनियों और। केवल इन पांच कंपनियों का नेट वर्थ ही 460 लाख करोड़ से ज्यादा हैं। दुनिया के 143 देशों की जीडीपी से भी लगभग दोगुनी है। ’’आर्थिक शक्ति से मिली यह ताकत अगर बेलगाम होकर औपनिवेशिक मानसिकता से व्यवहार करने लगे, तो कई देशों पर फिर गुलामी की तलवार लटक सकती है।’’3
सोशल मीडिया की ताकत को ’’आम बोलचाल में बंदर के हाथ में उस्तरा भी कह सकता हैं। भारत में इस बीमारी ने बीचे दशक भर में महामारी का रूप हासिल कर लिया है। पश्चिम के विकसित देश इसे और पहले से झेल रहे हैं।’’4 2015 में इंग्लैंड के कुछ नौसैनिकों ने इसलिए नौकरी से धड़ाधडत्र इस्तीफा देना शुरू कर दिया कि उनकी तैनाती पनडुब्ब्यिों में थी। जहां पानी के नीचे रहने की वजह से उन्हें इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं मिल पा रही थी और इस वजह से वो सोशल मीडिया से दूरी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे।
ओटीटी कंटेंट ने ’’मनोरंजन की एक धारा तो खोली है, लेकिन उसका बहाव हमारे समाज और सरकार , दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। क्या अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में यह निर्बाध स्वच्छंदता सही है? क्या इसकी कोई सीमा होनी चाहिए या नहीं?’’5 लेकिन आज जमाना बहुत आगे निकल गया है ’’देश सोशल मीडिया को बहुत आसानी से समझ रहा है। लेकिन इसी आसानी में भस्मासुर का बीज छिपा है।’’6
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के नियमन संबंधी भारत सरकार के दिशा-निर्देशों को लेकर सोशल मीडिया कंपनियों और सरकार के बीच तलवार खिंचे होने जैसे हालात हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियां इन दिशा-निर्देशों के दायरे में हैं। व्हाट्सएप तो दिशा-निर्देशों के खिलाफ अदालत तक पहुँच गई है। नये नियम में यूजर ट्रेसेबिलिटी सम्बन्धी निर्देश पर उसे आपत्ति है। उसका कहना है कि इससे उसके यूजर्स की निजता का हनन होगा। बेशक, निजता के हनन का मसला बड़ा है, और किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र की भांति ही भारत में भी निजता का अधिकार बेशकीमती मूल्य का मानिंद सहेजा जाता है। सोशल मीडिया कंपनियों से किसी भी साझा की गई जानकारी/सूचना के ओरिजनेटर की बाबत पूछना किसी भी दृष्टि से बेजा नहीं है। खासकर उस स्थिति में जब इन्हीं कंपनियों द्वारा कई देशों में जानकारियों के स्रोत सरकारों के साथ साझा किए गए हैं तो भारत में दोहरा मानदंड क्यों। ये कंपनियां निरंकुश बने रहना चाहती हैं। इस करके कई देशों ने इन्हें प्रतिबंधित तक कर दिया है। कहना न होगा कि भारत आज तमाम मोर्चा पर जूझ रहा है। जहां तक आतंकवाद समर्थकों, देश विरोधी तत्वों, देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता के खिलाफ काम करने वालों का मामला है, तो भारत को अपनी धरती पर कुत्सित इरादे वालों पर नकेल डालने का पूरा अधिकार है। लेकिन चिंता यह भी है कि कहीं नये नियमों के बहाने सरकार अपनी नीतियों पर उठने वाली आवाज ही तो नहीं दबा रही।
रेग्यूलेशन की अनेक सतहे हैं। सामग्री का विनियमन, मॉडरेशन और उससे जुड़ा कारोबार। हम और आप व्हाट्सएप के संदेशों के आदान-प्रदान से खुश हैं, पर हमें यह मंच उपलब्ध कराने वाले की दिलचस्पी उसके कारोबार में हैं। युवान नोवा हरारी ने लिखा है, जिनके हाथों में डेटा है, उनके हाथों में भविष्य हैं।’ जिसके पास यह सब होगा, उसका ही राज होगा। यह सब कुछ लोगों के हाथों में जा रहा है। हम चाहते हैं कि दुनिया की सत्ता मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सिमटने से बचे, तो हमें डेटा के स्वामित्व को नियंत्रित करना होगा।
ये नियम डिजिटल प्लेटफॉर्म के सामान्य उपयोगकर्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए और उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामले में जबावदेही मांगने के लिए काफी हद तक सशक्त बनाते हैं। सोशल मीडिया के मध्यस्थ अब अक्सर प्रकाशक बन जाते हैं, और ये नियम ’उदार स्व-नियामक’ ढांचे के साथ उदार स्पर्श’ का अच्छा मिश्रण है। ये नियम ऑनलाइन या ऑफलाइन सामग्री पर लागू होने वाले देश के मौजूदा कानूनों पर काम करते हैं। समाचार और सम सामयिक मामलों के सम्बन्ध में प्रकाशकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे भारतीय प्रेस परिषद के पत्रकारिता आचरण और केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम के तहत कार्यक्रम संहिता का पालन करें, जो पहले से ही प्रिंट और टीवी पर लागू हैं। इसलिए केवल एक समान खेल मैदान प्रस्तावित किया गया है।
यह ठीक है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया ने भौगोलिक सीमाएं खत्म कर दी हैं, लेकिन किसी भी ऐसे प्लेटफॉर्म को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह देश के अंदरूनी मामलों में दखल दें। वास्तव में ट्विटर हो या कोई और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, उन्हें मनमाने ढंग से काम करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। किसी भी देश में सोशल मीडिया कंपनियों की इतनी आजादी नहीं है, जितनी उन्हेें भारत में रही है। ऐसे में, सोशल मीडिया कंपनियों को पूरी सतर्कता के साथ सरकार के नियम कायदे के हिसाब से चलना चाहिए, लेकिन यह अफसोस की बात है, ये कंपनियां मनमानी छोड़ने का नाम नहीं ले रही है।
राष्ट्रीय सीमा में ’’राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय कानूनों को सर्वोच्चता प्राप्त होती है और इन्हें न मानना राज्य की प्रभुता को चुनौती देना है। इंटरनेट कंपनियां यहीं कर रहीं है।’’7 पहले व्हाट्सअप ने अपनी सेवा शर्तों को राष्ट्रीय कानूनों के अनुकूल करने के आग्रह के प्रति उदासीनता दिखाई। दूसरी ओर ट्विटर ने तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अकाउंट को ही बंद कर दिया। ट्रंप से सहमति और असहमति का परिप्रेक्ष्य भी राज्येतर नियंत्रण की एक भयावहता को कम नहीं कर सकता है।
इन दिनों सोशल मीडिया प्लेटफार्म के साथ ही ओटीटी और डिजिटल मीडिया की बाबत सरकार द्वारा जारी नई गाइडलाइंस की चर्चा जोरों पर है, बल्कि कहंे कि यह चर्चा बहस के केन्द्र में है। इस सिलसिले में अदालत का दरवाजा भी खटखटाया जा चुका है। दरअसल, हाल के समय में जिस तरह से सोशल मीडिया एक समानान्तर सत्ता की तरह आचरण करने लगा है, उससे जरूरी हो गया कि इसका नियमन किया जाए। लेकिन गाइडलाइंस की आड़ में सोशल मीडिया पर मिली अपनी बात कहने की आजादी पर लगाम लगाने का प्रयास भी नहीं होना चाहिए। सोशल मीडिया को स्वस्थ, शालीन और मर्यादित बनाना जितना जरूरी है, उसकी आजादी भी उतनी जरूरी है। पर किसी व्यक्ति की गरिमा को धूमिल कर देने के साथ ही सोशल मीडिया विभिन्न समाजों के बीच सद्भाव को पलीता भी लगा सकता है। इसी प्रकार ओटीटी जिसने लॉकडाउन के दौरान अपनी पूरी धमक साबित कर दी थी, ने जिस प्रकार कला के नाम पर अश्लीलता परोसनी शुरू कर दी उससे महसूस होने लगा कि अभिव्यक्ति की आजादी निर्बाध नहीं है, उसके साथ दायित्व बोध भी नत्थी होता है।

सन्दर्भ सूची –
1. प्रो0 संजय द्विवेदी, महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली, डिजिटल मीडिया की हदें, सरहदें, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 13 मार्च 2021
2. प्रमोद जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, हवाओं की पहरेदारी से जुड़े सवाल, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 13 मार्च 2021
3. उपेन्द्र राय, मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ, सहारा न्यूज नेटवर्क’, कितने सही, कितने कारगर!, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 13 मार्च 2021
4. मुकेश कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार, मगरमच्छ की सवारी है सोशल मीडिया, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 13 मार्च 2021
5. अमिताभ श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार, अभिव्यक्ति की आड़ में स्वच्छंदता!, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 13 मार्च 2021
6. साकेत सूर्या, विश्लेषक, पीआरएस, लेजिस्लेटिव रिसर्च, नये नियमों के निहितार्थ, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 13 मार्च 2021
7. सन्नी कुमार, अध्येता, इतिहास, इतिहास का अंत होना अभी शेष है!, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 13 मार्च 2021

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