ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

सावित्रीबाई फुले का काव्यकर्म-एक अवलोकन

प्रो0 दीप्ति जौहरी
शिक्षा शास्त्र विभाग
बरेली कॉलेज, बरेली।
भारत में सामाजिक परिवर्तन के क्रान्तिकारी विचार को लाने में महात्मा जोतिबा फुले अग्रणी थे। उनके साथ ही उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले भी सामाजिक क्रान्ति के विचार में उनके साथ कदम से कदम मिलाती रहीं। समानता पर आधारित, शोषण रहित समाज की रचना हेतु फुले दम्पति ने अपने लम्बे संघर्षमय जीवन में शूद्रातिशूद्रों का शोषण, वर्णभेद, विषमता, अन्धविश्वास तथा रूढ़ीवाद के विरूद्ध आवाज उठाई। उन्होंने जीवन भर स्त्री शिक्षा के लिए, स्त्री-पुरूष समानता से लिये महत्वपूर्ण कार्य किये। इस महत्वपूर्ण मिशन हेतु सावित्रीबाई ने जोतिराव के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्य किया। जोतिराव से विवाह के वक्त उनकी उम्र केवल 9 वर्ष थी, उनकी शिक्षा की शुरूआत जोतिराव ने ही करवाई। उसके बाद सावित्रीबाई ने अध्यापन कार्य का प्रशिक्षण लिया। 1848 ने      बुधवार पेठ, पुणे में जोतिराव ने पहली कन्या पाठशाला खोली जिसमें सावित्रीबाई ने पहली अध्यापिका का कार्य प्रारम्भ किया। सामाजिक विरोध को झेलने के बावजूद फुले दम्पत्ति ने 1848 से 1852 के मध्य पुणे एवं उसके आस-पास 18 स्कूल खोले।
जोतिराव फुले के इस कार्य में स्थिरता लाने तथा आगे बढ़ाने का श्रेय सावित्रीबाई फुले को ही है। स्वयं जोतिराव फुले ने उनके योगदान के सम्बन्ध में कहा है, ‘‘मैं अपने जीवन में जो कुछ भी कर सका, उसके पीछे मेरी पत्नी ही कारण है।’’
सावित्रीबाई फुले ने अध्यापन व समाज सेवा के कार्य के साथ-साथ अपनी कविताओं के माध्यम से भी स्त्री-शिक्षा एवं जनचेतना के कार्य को आगे बढ़ाया। इस प्रकार दलित साहित्य के शुरूआत में भी उनकी अग्रणी भूमिका रही।
दलित साहित्य का उद्भव स्वतन्त्रता के बाद ही आठ के दशक के आस-पास हुआ है हालांकि इसकी शुरूआत इतिहास में बहुत पहले से हो चुकी थी। इसमें पुरोधा के रूप में सावित्री जोतिबा फुले, जिन्होंने 19 वीं सदी मे जब से शिक्षा अभियान शुरू किया तब से महिलाओं ने पढ़ना-लिखना शुरू किया। इसमें प्रथम स्वर अपने काव्य के माध्यम से सावित्रीबाई फुले ने ही दिया।
उनके साहित्य का संकलन ‘काव्यफुले’ (1854) से शुरू होता है, जिसके प्रकाशन के समय वे मात्र 23 वर्ष की थीं और इसका अन्त ‘बावनकशी सुबोध रत्नाकर’ (1892) से होता है।
सावित्रीबाई का मूल्यवान लेखन, निम्नांकित पुस्तकों में संग्रहित है-
1. काव्यफुले – कविता संग्रह, 1854
2. जोतिरावस स्पीचेस, सावित्रीबाई द्धारा सम्पादित, 25 दिसम्बर, 1856
3. सावित्रीबाईज़ लेटर्स टू जोतिराव
4. स्पीचेस आफ मातुश्री सावित्रीबाई, 1852
5. बावनकशी सुबोध रत्नाकर, 1892
सावित्रीबाई के प्रथम कविता संग्रह, ‘काव्याफुले’ में 41 कविताओं का संग्रह है, जो प्रकृति, सामाजिक मुद्दों तथा इतिहास पर केन्द्रित हैं। इसके साथ ही इसमें शिक्षाप्रद रचनाएं भी संग्रहित हैं। उनका हर शब्द चेतना की सुभाशित सुगंध है। उन्होंने ‘पढ़ने के लिये जागते रहो’ शीर्षक कविता में कहा है –
‘उठो अतिशूद्रों भाईयों मैं कहती बार-बार।
जागो फिर एक बार।
परम्परा की गुलामी करना है दृढ़पार।
जागो फिर एक बार।।’’
‘अज्ञान’ या ‘अविद्या’ ने अछूतों के जीवन को बर्बाद किया। तथागत बुद्ध ने बताया कि मनुष्य विद्या और आचरण से ही महान और श्रेष्ठ विद्वान होता है। यह सामाजिक क्रान्ति का सशक्त मुद्दा उनके ‘अज्ञान’ कविता में है। वे शूद्रातिशूद्रों से कहती हैं –
‘‘एक ही शत्रु हम सब का।
पिटेंगें, दिखायेंगे दम सब का।।
उसके सिवा कोई दुश्मन नहीं।
मन में खोजो दिखाई देता है क्या कही।
…………….. बताती हूँ उस शत्रु का नाम।
ध्यान से सुनो ……. वो बहुत बदनाम।।
‘अज्ञान’
जब चहुँओर अविद्या के काले-काले बादल छाये थे, ऐसे समय में जोतिबाफुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को न केवल शिक्षित किया बल्कि उन्हें अन्यों को शिक्षित करने की क्षमता प्रदान की। दोनों ने अछूतों की बस्ती में ज्ञान से उजाला किया। शिक्षा की महिमा का कथन करते हुये कवियित्री सावित्रीबाई अपने ‘षूद्रों का दर्द’ शीर्षक कविता में कहती हैं –
‘‘शूद्रों ! शिक्षा से हर बन्धन कट जाता है।
शिक्षा से मनुष्य का पशुत्व हट जाता है।’’
उनकी कविताओं में बड़े-बड़े शब्दों का उपयोग नहीं है, बल्कि सबकी समझ में आने वाले छोटे-छोटे शब्द हैं। ‘शूद्रों का परावलंबन’ शीर्शक कविता में कवियित्री ने कहा है-
‘‘देव धर्म रूढ़ि अचीसीने के पार गई शूद्रों और अतिशूद्रों को। अविद्या मार गई।।’’
अंग्रेजी भाषा ज्ञान भाषा है, संस्कृत नहीं। बहुजन समाज के लोगों को अंग्रेजी पढ़ना चाहिये। आगे बढ़ना चाहिये। इस सम्बन्ध में ‘अंग्रेजी माऊली’ नामक कविता में वे कहती हैं-
’’अंग्रेजी माँ जैसी। अंग्रेजी वैखरी।
शूद्रों को उद्धारी। मनोभावे।।’’
सवित्रीबाई की कल्पना ने प्रकृति के चित्रों में सुन्दरतम रंग भर दिये हैं। उन्होंने प्रकृति की नैसर्गिंक सुन्दरता को अलंकारों के बोझ से दबने नहीं दिया।
‘जूही सुन्दर यह जूही की कली।। धृ0।।
छटा गुलाबी अंग-अंग से लगती भती।
कैसी सुरेख कच्ची इठलाती बलखाती चली।।
प्रकृति पर मानवीय भावों का आरोपण, उसकी मधुरता, शीतलता तथा परम यथार्थता को अधिक आकर्षक बना देता है- इसी कविता के अन्त में वे कहती है-
‘‘नष्ट हो जाती आखिर वो मनचली।
ऐसा ही मानव है जूही की कली।।’’
नई संस्कृति के निर्माण और उसकी नवचेतना का परिचयात्मक काव्य की झलक उनके ‘मेरी जन्मभूमि’ षीर्शक कविता हैं-
‘बलिराजा के बस्ती के किसान दानशूर।
लगती मेरी जन्मभूमि बलि का कश्यप पूर।
‘‘हम उसके वंशज, रोना नहीं सीखा हमने।
स्वावलम्बी बनो, हमें सिखाया हमार श्रम ने।।’’
उनकी कविता स्पष्ट रुप से उपदेश देती है, इसमें व्यर्थ की बयानबाजी न होकर स्पष्ट सरलता है जैसे ‘बालक को उपदेश को दो छन्द-’
‘‘आज का काम। कल पर न टालो।
जो भी करना है। इसी वक्त कर डालो।।
‘‘क्षण रूकता नहीं। क्षण का रहे स्मरण।
काम हुआ या नहीं। पूछता नहीं मृत्यु-कारण।।’’
सत्य का अनुभव होता है, निर्णय नहीं होता। सत्य कोई गणित की पहेली न होकर जीवन का अनुभव है। बच्चों को अनुभव प्रदान करते हुये वे ‘सामुदायिक संवाद-पद्य’ नामक कविता में कहती हैं-
‘‘आलस बहाने-बाजी छोड़कर,
स्कूल में जाएंगें हम।
युग युग की गुलामी की जंजीरे,
तोड़कर दिखाएंगें हम।।’’
वह अपने कर्म के बल पर अन्तिम ऊँचाई तक जा पहुँची थी। ‘‘बावनकशी सुबोध रत्नाकर’ में जोकि उनका आखिरी काव्य संग्रह था, अत्यन्त विनम्रता से वे कहती हैं-
‘मेरा अल्पज्ञान, वही ज्ञान का बीज होगा।
आपके काम आये तो मेरे श्रम का चीज होगा।
मेरा काव्य कैसा है, यह मुझे निःसंकोच बताओ।
मनोहर या रम्य, या उसमें कहीं खता हो।।’
सावित्रीबाई के जीवन के सूर्य उनके पति जोतिराव फुले, जिन्होंने उनके जीवन को नई दृष्टि दी, के प्रति कृतज्ञता बोध उनकी कविता ‘जोतिबा का बोध’ में झलकता है-
‘‘स्वामी जोतिबा के। चरणों पर जिंदगानी।
उनकी मधुर वाणी। मन में घूम रही।।’’
‘‘मन पर लिक्खे हैं। जोतिबा के बोल।
न ही होऊँगी डाँवाडोल। जिन्दगी में।।’’
‘संसार का रास्ता’ कविता में कवियित्री अपने गृहस्थ जीवन का भी विवरण कुछ यूँ करती हैं –
‘‘मेरे जीवन में। जोतिबा स्वानन्द।
जैसा मकरन्द। कली में रहता।।’’
‘‘ऐसा भगवन्त। मुझे मिला है।
आनन्द से खिला है। बाय जीवन का।।’’
अभिव्यक्ति की कुशल शिल्पी, पहली महिला कवियित्री, आधुनिक मराठी कविता की जननी, स्त्रियों की भाग्य     विधाता, सत्यशोधक, राष्ट्रवादी सावित्रीबाई, बावनकशी सुबोध (1892) रत्नाकर के 50वें रत्न में जोतिबा फुले के व्यक्तित्व का वर्णन कुछ ऐसे करती हैं-
‘‘जन्म से शूद्रमाली, लेकिन अत्यंजों में रहता।
सच्चा महार वो, उसे कोई माली न कहता।
चिरंजीवी जोति, मनु से बढ़कर थे।
वन्दामि जोतिबा को, महात्मा लड़कर थे।। 50।।’’
इस प्रकार देखने में आता है कि सावित्रीबाई की काव्यधारा अजस्र स्त्रोत के रुप में काव्यफुले (1848) से प्रारम्भ होकर बावनकशी सुबोध रत्नाकर (1892) तक अविरल बहती रही। यहाँ यह उल्लेख करना होगा कि सावित्रीबाई फुले केवल कवियित्री ही नहीं, बल्कि समाजसेविका भी थी। अतीत से चली आ रही जाति व्यवस्था पर प्रहार करने का तथा अन्यायपूर्ण नारीशोषण की कुरीतियों पर उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से वार किया। उनकी हर कविता समाज का दर्पण है। उनका जीवन आजीवन संघर्ष की गाथा है।
सन्दर्भ सूची :-
1. भगत, आचार्य सूर्यकान्त (2020), ज्ञान ज्योति सावित्रीबाई फुले और उनकी काव्य सम्पदा, सुधीर प्रकाशन,     वर्धा।
2. म्हात्रे, उज्जवला (2023) सावित्रीबाई फुले का समस्त साहित्यकर्म जोतिराव फुले के भाशण सहित, फारवर्ड प्रेस, नई दिल्ली
3. आचार्य, हेमलता (2015) भारत की सामाजिक क्रान्ति के पथ प्रदर्शक ज्योतिगाफुले, सम्यक प्रकाशन नई दिल्ली, पृष्ठ-99
4. सेनगुप्ता, स्वाति (2023) द इनक्रेडिबल लाइफ ऑफ सावित्रीबाई फुले, स्पीकिंग टाइगर बुक्स, नई दिल्ली
तिलक, रजनी और अनुरागी, रजनी (संपादक (2018) समकालीन भारतीय दलित महिला लेखन, स्वराज प्रकाशन, नई दिल्ली)
5. ष्क्तण् क्ममचजप श्रवीतपए च्तवमिेवतए क्मचंतजउमदज वि म्कनबंजपवदए ठंतमपससल ब्वससमहमए ठंतमपससलष् पे ज्ींदानिस जव डण्श्रण्च्ण् त्वीपसांदक न्दपअमतेपजलए ठंतमपससल वित जीम पिदंदबपंस ेनचचवतज पद जीम वितउ वि ष्प्ददवअंजपअम त्मेमंतबी ळतंदज ;प्त्ळद्धष् ूपजी पिसम दवण् प्त्ळध्डश्रच्त्न्ध्क्व्त्ध्2022ध्09ण्

Latest News

  • Express Publication Program (EPP) in 4 days

    Timely publication plays a key role in professional life. For example timely publication...

  • Institutional Membership Program

    Individual authors are required to pay the publication fee of their published

  • Suits you and create something wonderful for your

    Start with OAK and build collection with stunning portfolio layouts.