डाॅ0 कौशलेंद्र कुमार सिंह
प्राचार्य
केन सोसायटी नेहरू पीजी कॉलेज, हरदोई
श्वेता वर्मा
शोधार्थी
शोध सारांश
प्रस्तुत शोध पत्र जयदेव कपूर का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान का ऐतिहासिक तथा विश्लेषणात्मक अध्ययन है। जिसमें हरदोई के एक स्वतंत्रता सेनानी जयदेव कपूर के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के साथ देशभक्ति का वर्णन किया गया है। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी जिनका अभूतपूर्व साहस ,वं त्याग तथा सब कुछ बलिदान कर देने का जज्बा उनके बारे में और जानने में रुचि पैदा करता है। ब्रिटिश शासन की शोषणकारी नीतियों का विरोध करते हुए यह क्रांतिकारी बेफिक्री व दिलेरी के साथ ही उनका खुलापन साहस एक दूसरे के प्रति गहरा प्रेम, सम्मान और देश के प्रति बलिदान होने का जज्बा आज के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। आज हम क्रांतिकारियों के नाम पर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु जैसे कुछ ही नाम जानते हैं। जबकि इसके अलावा भी अनेक क्रांतिकारी मौजूद है जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के इमारत में हीरे के साथ-साथ नींव के पत्थर बनकर इमारत को खड़ा किया है। जिनके पैर कभी नहीं लड़खड़ाते, जिनके कंधे कभी नहीं झुकते, जो तिल-तिल कर अपने आपको इसलिए गलाते तथा जलाते रहते हैं ताकि स्वतंत्रता रूपी दिये की ज्योति मध्यम ना पड़ जाए। हरदोई के जयदेव कपूर ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी हुए जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश के नाम कर दिया। उन्होंने ब्रिटिश शोषणकारी शासन का विरोध करने वाले अनेक क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी की और जीवन के अंतिम दिनों तक जन सेवा की। जयदेव कपूर ने विभिन्न क्रांतिकारियों के साथ मिलकर विभिन्न आंदोलनों में सहयोग किया जिसमें हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल होना सांडर्स हत्या, आगरा बम फैक्ट्री कांड, असेंबली बम कांड, लाहौर षड्यंत्र, के साथ ही भूख हड़ताल, जेल सुधार हेतु प्रयास, आदि महत्वपूर्ण है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गरम दल के क्रांतिकारियों में जयदेव कपूर, शिव वर्मा, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, सचिंद्रनाथ सान्याल, सुरेंद्र भट्टाचार्य, अजय कुमार घोष, बटुकेश्वर दत्त, चंद्रशेखर आजाद, सुरेंद्र पांडे, भगवती चरण बोहरा, जैसे युवा क्रांतिकारी शामिल है। जिन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए तथा भारत की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी तरीकों के साथ-साथ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, प्रताप प्रेस, किरती, बंदी जीवन, प्रभात, महारथी आदि का सहारा लिया। इन्हीं क्रांतिकारियों के मूल्यों को समेटते हुए शासन द्वारा समय-समय पर उनके सम्मान में कार्यक्रम किए जाते हैं जिससे आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा ले सकें।
1- प्रस्तावना
17वीं सदी के शुरुआती दशक में आयी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 17वीं सदी के अंत तक भारत के प्रमुख व्यापारिक बंदरगाहों बंबई, कलकत्ता, मद्रास, सूरत में अपनी फैक्ट्रियां स्थापित कर ली, तथा 1755 ई0 आते-आते कंपनी एक व्यापारिक संस्था के रूप में भारत में शासन करने लगी। 1769 से 1856 के बीच देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ 40 से ज्यादा विद्रोह हुए। 1857 की क्रांति हुई जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा गया। 1858 के भारत शासन अधिनियम द्वारा कंपनी के शासन का अंत हुआ और शासन सीधे सामाज्ञी के हाथों में चला गया। अब तक जनता में भारी असंतोष तथा क्रांति की भावना जन्म ले चुकी थी जो विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों के रूप में सामने आने लगी। ब्रिटिश हुकूमत की शोषणकारी सत्ता को चुनौती देने तथा भारत की स्वतंत्रता का सपना लिए अनेकों क्रांतिकारियों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उत्तर प्रदेश का जिला हरदोई भी ऐसे क्रांतिकारी से अछूता नहीं है। यहां के प्रमुख क्रांतिकारियों में जयदेव कपूर, मदारी पासी, (एका आंदोलनकारी) राजा नरपति सिंह, शिव वर्मा, बाबू मोहनलाल वर्मा, काशीभाई, लल्लू सिंह, रानी विद्या देवी, बाबू छेदालाल गुप्त, बाबू राधाकृष्ण अग्रवाल, आदि शामिल थे। जिन्होंने विभिन्न क्रांतिकारी आंदोलनों जैसे असहयोग आंदोलन, 1920 स्वदेशी आंदोलन 1929, नमक सत्याग्रह 1930, सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930 भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में भाग लेना शामिल था। इसके साथ ही काकोरी कांड, लाहौर षड्यंत्र, सांडर्स हत्या, दिल्ली असेंबली बम कांड, सहारनपुर बम फैक्ट्री कांड में इन लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
ऐसे ही हरदोई के महान स्वतंत्रता सेनानी जयदेव कपूर थे। जिन्होंने जीवन पर्यंत आजादी की लड़ाई में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया। शिव वर्मा उनके अच्छे मित्र थे। जिनके द्वारा वे महान क्रांतिकारी भगत सिंह से मिले और विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों (लाहौर षड्यंत्र सांडर्स मर्डर केस असेंबली बम कांड में भाग लिया तथा पकड़े जाने पर 17 वर्ष का आजीवन कारावास अंडमान निकोबार में बताया। जहां उन्हें अनेक प्रकार की यातनाएं नित्य 30 वेतों की सजा दी जाती थी। 60 दिन की भूख हड़ताल तथा अपनी मांगों को लेकर अनेकों बार छोटी-छोटी भूख हड़तालें साथियों के साथ करते थे। 1946 में जेल से छूटकर वापस हरदोई आए और यहां आकर मजदूर यूनियनों को चलाकर मजदूरों की आवाज बने। स्वतंत्रता सेनानी जयदेव कपूर अंतिम दिनों तक लोगों के साथ खड़े रहे।
जयदेव कपूर का स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश उनके बचपन से ही हो जाता है जिसे गति गांधी जी के असहयोग आंदोलन में आवाहन से मिलती है। इसके साथ ही अपने अध्ययन में गांधी जी के आगमन के साथ ही असहयोग आंदोलन से जयदेव का प्रभावित होना, चैरी चैरा कांड, जयदेव का अध्ययन के लिए कानपुर जाना तथा यहीं से अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत करना विभिन्न क्रांतिकारियों से मुलाकात आदि शामिल किया है। जो आगे चलकर विभिन्न एक्शन जैसे कोटला में बैठकर साइमन कमीशन का विरोध सांडर्स हत्या, असेंबली बम कांड तथा अंतिम में क्रांतिकारियों का जेल जाना काला पानी में उनके संघर्ष के दिन लंबी-लंबी भूख हड़तालें विभिन्न प्रकार की यातनाएं अंत में देश की आजादी का वर्णन किया गया है। आजादी के बाद जयदेव कपूर ने अपने घर हरदोई वापस आकर मजदूर यूनियनों में योगदान देते हुए देशभक्ति को सदैव ऊपर रखा। जयदेव कपूर का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान उनकी देशभक्ति आज भी युवाओं के लिए प्रेरक है।
स्वतंत्रता सेनानी जयदेव कपूर का वर्णन करता हुआ शोध पत्र जिसमें स्पष्ट शैली का प्रयोग किया गया है। ऐतिहासिक, वर्णनात्मक, तथ्यात्मक पूर्वव्यापी और विश्लेषणात्मक शैली के प्रयोग के साथ ही शोध प्रबंध में मौलिक दस्तावेजों, लेखों, भाषणों, साक्षात्कारों भौतिक रूप से सत्यापन सरकारी संस्थानों गांधी भवन, डीएम ऑफिस, विभिन्न तथ्यों, पुस्तकों तथा सहायक स्रोतों का सहारा लिया गया।
2- जयदेव कपूर का आरंभिक जीवन
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम आग 1857 की क्रांति में देखी जा सकती है जिसे गोली और तलवारों द्वारा दबाया गया परंतु नीचे तभी चिंगारी सुलगती रही। अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियों के विरोध स्वरूप जनता में राष्ट्र प्रेम की भावना के चलते तथा अपनी हृदय में स्वतंत्रता की ज्योति जलाए अनेक क्रांतिकारियों का जन्म हुआ। 19वीं सदी के अंत में पुणे के चापेकर बंधुओ से लेकर बंगाल के खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी, कन्हैया लाल, सत्येन, पंजाब के करतार सिंह 20वीं सदी के प्रारंभ में गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल काकोरी षड्यंत्र राष्ट्रभक्त बंधुओ का विरोध आदि अंग्रेजी शासन को भयभीत करने लगा। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपनाए गए तरीकों द्वारा दो दलों का निर्माण हुआ गरम दल तथा नरम दल। क्रांतिकारी भावना से प्रेरित होकर उत्तर प्रदेश जिले के गरम दल के नेता जयदेव कपूर जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम तथा सामाजिक क्रांति का आदर्श मन में संजोए जीवन पर्यंत क्रांतिकारी गतिविधियों में अपनी सक्रिय भूमिका अदा की।
जयदेव कपूर का जन्म 24 अक्टूबर 1908 को दिवाली की पूर्व संध्या को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में हुआ था। उनके पिता शालिग्राम कपूर तथा माता गंगा देवी थी। पिता शालिग्राम (आर्य समाजी को अंग्रेजी हुकूमत के समय पोस्ट मास्टर की नौकरी से निकाल दिया गया था। जिससे उनमें असंतोष तथा अंग्रेजों के खिलाफ विरोधी भावना व्याप्त थी। जयदेव जी स्वभाव से अत्यंत संवेदी प्रखर और दृढ़ निश्चय थे। वे शरीर से मजबूत हष्ट पुष्ट तथा तगड़े थे। उन पर विभिन्न क्रांतिकारियों के अनुभवों तथा विचारों का प्रभाव बाल्यावस्था से ही था। जयदेव की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा हरदोई से ही हुई। 1925 में हरदोई में ही दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा बाद में कानपुर चले गए। जयदेव जी पर क्रांतिकारी जीवन का प्रभाव उनके प्रधानाचार्य अयोध्या सिंह राठौड़ का पडा, जिन्होंने बचपन से ही जयदेव को क्रांतिकारी की पुस्तक पत्र-पत्रिकाओं से अवगत कराया। जयदेव जी के मित्र शिव वर्मा थे। जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर भाग लिया। शिव वर्मा शरीर से दुबले पतले थे जिससे उन्हें बिस्मिल वाले एक्शन में शामिल नहीं किया गया, वरन् उन्हें संगठन के प्रचार प्रसार के लिए रखा गया।
जयदेव बचपन से ही क्रांतिकारीयों से प्रेरित रहे हैं चाहे वह बचपन में क्रांतिकारियों की प्रेरणादायक कहानी हो या तात्कालिक परिस्थितियों सभी ने जयदेव को क्रांतिकारी जीवन की ओर आकर्षित किया। बचपन की एक घटना जिसने जयदेव कपूर को विशेष प्रभावित किया। बचपन में गांव में अपने पिताजी के साथ जयदेव जा रहे थे वहीं कुछ अंग्रेज सैनिकों द्वारा हंटर और चाबुक लिए तेज गति से निकलते जा रहे थे तथा रास्ते में आने वाले लोगों को मारते और गालियां देते हुए जा रहे थे। जिसका प्रभाव छोटे जयदेव पर गहरा पड़ा। इस घटना ने जयदेव को यह समझा दिया था कि विलायत से लोग आकर हम लोगों पर राज कर रहे थे और शोषण कर रहे थे। यहीं से उनकी सोच विकसित हुई जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश के लिए प्रेरित किया। जयदेव जी को दूसरी प्रेरणा गांधीजी के असहयोग आंदोलन में देश की जनता से आवाहन से मिली। 20 नवंबर 1920 कोलकाता में गांधी जी का भाषण हम लड़ेंगे जरूर लड़ेंगे लेकिन हिंसा से नहीं अहिंसा से। हमारा हथियार होगा पूर्ण असहयोग आंदोलन।
गांधीजी ने 1920 में देश की जनता से आवाहन किया- तुम खड़े हो जाओ चाहे तुम्हारे ऊपर कितनी ही मार पड़े, पीटा जाए, जेल में डाला जाए कितनी ही यात्राएं दी जाए, तुम खड़े हो जाओ। इन शब्दों ने जयदेव पर गहरी छाप छोड़ी। क्रांतिकारी जीवन के शुरुआती दिनों में जयदेव ने कांग्रेस में भी काम किया। इसके साथ-साथ विदेशी वस्तुओं की होली जलाना, शराब की दुकानों पर धरना देना संगठन खड़ा करना सार्वजनिक बहिष्कार करना आदि सब हरदोई से ही शुरू किया। 17 वर्ष की आयु में जयदेव ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया तथा क्रांतिकारी मार्ग पर चल पड़े। 12 फरवरी 1922 चैरी चैरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन 11 फरवरी 1922 को वापस ले लिया गया। 1925 में हाई स्कूल करने के बाद जयदेव कपूर कानपुर के डीएवी कॉलेज में पढ़ने चले गए। वहीं शुरुआती दिनों में उन्होंने क्रांतिकारी समाचार पत्र- पत्रिकाओं तथा प्रताप प्रेस से जुड़ गए। 1925-27 तक जयदेव ने बनारस का क्रांतिकारी नेटवर्क विकसित किया तथा अपनी देखरेख में क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रचार-प्रसार जारी रखा। अब आंदोलन समाजवाद की ओर झुक रहा था। अक्टूबर 1924 में सशक्त क्रांति के लिए संगठन के उद्देश्य से हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ की स्थापना हुई जिसमें जयदेव 1926 में शामिल हुए। जिसमें सत्येंद्र नाथ सान्याल योगेश चटर्जी राम प्रसाद बिस्मिल जैसे पुराने क्रांतिकारी नेताओं तथा भगत सिंह शिव वर्मा, सुखदेव, भगवती चरण बोहरा, चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा क्रांतिकारी भी शामिल थे।
3-स्वतंत्रता आंदोलन में जयदेव कपूर और भगत सिंह
तात्कालिक समय में क्रांतिकारी घटनाएं चरम पर थी। एक तरफ का जहां गांधीजी स्वतंत्रता की प्राप्त अहिंसक तरीके से प्राप्त करना चाहते थे वहीं अधिकांश ने यह मान लिया था कि आजादी सिर्फ हिंसक तरीके से ही पाई जाती है। इसमें पुराने नेता क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल सचिंद्रनाथ सान्याल जैसे व्यक्ति थे। 1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए धन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए 9 अगस्त 1925 को काकोरी गांव में 8 डाउन मालगाड़ी को रोककर सरकारी खजाना लूटा गया। जिसमें 17 क्रांतिकारियों को लंबी सजा और चार को आजीवन कारावास दिया गया। काकोरी कांड के एक क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल को जेल से मुक्त करने के लिए ही भगत सिंह लाहौर से कानपुर आए थे। यही वे प्रथम बार जयदेव कपूर और शिव वर्मा से रंजीत नाम से मिले।
भगत सिंह (1907-1931) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी व क्रांतिकारी जिन्होंने अभूतपूर्व साहस के साथ ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया। इंकलाब जिंदाबाद का नारा लिए भगत सिंह ने सांडर्स हत्या, दिल्ली असेंबली बम कांड द्वारा ब्रिटिश शासन का विरोध किया। अंत में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को फांसी की सजा दी गई। तथा यह अमर सपूत मरकर भी अमर हो गए।
कानपुर के डीएवी कॉलेज के छात्रावास में जयदेव कपूर, शिव वर्मा और भगत सिंह कई दिनों तक रहे। भगत सिंह कानपुर काकोरी कांड के नेता बिस्मिल को छुड़ाने के लिए आए थे। जयदेव कपूर के मजबूत शरीर और साहस की वजह से उन्हें बिस्मिल वाले एक्शन में शामिल किया गया। इससे पहले भगत सिंह ने 1926 में भगवती चरण बोहरा यशपाल के साथ नौजवान भारत की स्थापना की गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रताप प्रेस में भी काम किया तथा किरती नाम से गुरमुखी और उर्दू में मासिक पत्रिका भी लिखते रहे।
4-प्रमुख आंदोलन
सितंबर 1928, दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में हिंदुस्तान सामाजिक प्रजातंत्र संगठन (भ्ैत्।) की मीटिंग हुई। जिसमें संयुक्त प्रांत, बिहार, पंजाब, राजस्थान से 10 प्रतिनिधि शामिल हुए। इसके प्रमुख नेता भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद, विजय कुमार, शिव वर्मा, जयदेव कपूर, भगवती चरण, सुखदेव थे। जिसका उद्देश्य भारत में समाजवादी गणतंत्र राज्य की स्थापना तथा क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रचार प्रसार करना था।
सांडर्स हत्या – 1928 में आए साइमन कमीशन का भारत में भारी विरोध हुआ। इस विरोध प्रदर्शन में लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हुए, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। लाला जी की मृत्यु से ठीक 1 महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर पुलिस के केंद्रीय दफ्तर से निकलते समय सांडर्स (डिप्टी सुपरीटेंडेंट पुलिस) को जिनके हाथ से लाठियां खाकर लाल जी आहत हुए थे गोली मार दी। सांडर्स की हत्या के बाद लाहौर से बाहर निकालने के लिए भगत सिंह ने साहबी लिवास ओवरकोट और हैट पहने दुर्गा भाभी, शची, और राजगुरु को लेकर कोलकाता निकल गए। इसी समय भगत सिंह ने जयदेव को जेब घड़ी देते हुए आजादी की मसाल जलाए रखने का वचन लिया। जो उन्हें महान क्रांतिकारी सचिन्दनाथ सान्याल ने दी थी।
आगरा बम फैक्ट्री- बनारस के बाद जयदेव बम प्रशिक्षण के लिए आगरा गए। यतींद्र दास भगत सिंह के प्रस्ताव पर आगरा में बम बनाने का प्रशिक्षण देते थे। इसी समय जयदेव कपूर ने ट्रेड डिस्प्यूट बिल और पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में विधानसभा विस्फोट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
असेंबली बम कांड-आगरा के बाद भगत सिंह के कहने पर जयदेव दिल्ली गए। वहां उन्हें असेंबली की जानकारी लेने एक्शन के लिए तैयार रहने तथा तीन घर रेंट पर लेने की जिम्मेदारी दी गई। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। असेंबली में प्रवेश के लिए जयदेव कपूर ने अपना परिचय हरिश्चंद्र राजनीतिक विज्ञान का विद्यार्थी के रूप में दिया। भगत सिंह की प्रसिद्ध टोपी वाला फोटो असेंबली बमबारी से पहले ली गई थी। इसके लिए जयदेव कपूर ने दिल्ली के कश्मीर स्थित रामनाथ फोटोग्राफर के स्टूडियो की व्यवस्था की थी। प्रतिष्ठित फोटो पुस्तक “ए रिवॉल्यूशनरी हिस्ट्री ऑफ इंटरवार इंडिया, वायलेंस, इमेज वार एंड टेक्स्ट, के अनुसार चित्र का उद्देश्य लोगों की स्मृति में नेता की एक सौम्य छवि बनाना था। इसी समय भगत सिंह ने अपने नए जूते जयदेव कपूर को दिए। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंका और पर्चे फेंके जिसकी पहली पंक्ति में लिखा था “बहरों को सुनाने के लिए जोर की आवाज की जरूरत है”। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर मुकदमे चले। उधर जयदेव कपूर और अन्य साथी भी सहारनपुर बम कांड के कारण गिरफ्तार हुए और 15 मई 1929 को भगत सिंह तथा अन्य साथियों से जेल में मिले।
लाहौर षड्यंत्र केस रू 10 जुलाई 1929 को भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त तथा के सदस्यों पर केसे आरंभ हुआ। भगत सिंह जेल में खराब खाने, फटे कपड़े के खिलाफ 63 दिन की भूख हड़ताल पर बैठ गए। जिसके बाद एक दुबले पतले युवा क्रांतिकारी जतींद्र दास शहीद हो गए। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी की सजा दी गई तथा जयदेव कपूर और अन्य साथियों को अंडमान में काला पानी की सजा हुई। इससे पहले ही लाहौर षड्यंत्र केस से बच निकले चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस के साथ मुठभेड़ में अंतिम गोली स्वयं को मार कर आजाद हो गए।
आज वे सब शहीद भारत की रगों में बसे हुए हैं। और आज हम कह सकते हैं जो शहीदों की याद में भगत सिंह गाया करते थे “वे सूरते इलाही किस देश में बस्तियां हैं, जिनके निहारने की आंखें तरस्तियां है” उन शहीदों के नाम पर आज हम कह सकते हैं “वे सूरते इलाही इस देश में बस्तियां हैं।”
5- काला पानी, अंडमान निकोबार
1929-30 तक सभी क्रांतिकारियों को सजा दे दी गई जिसमें कुछ को फांसी तथा बहुतों को आजीवन कारावास की सजा हुई। ऐसे महान क्रांतिकारी भारत में ही हो सकते हैं जो स्वतंत्रता की मसाल लिए जीवन के अंतिम समय तक मुस्कुराते हुए शहीद हुए। 1929 लाहौर षड्यंत्र केस के बाद जयदेव कपूर और साथियों को आजीवन अंडमान निकोबार में काला पानी की सजा हुई तथा भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा हुई। यतींद्रदास, भगवती चरण बोहरा और आजाद तो पहले ही जा चुके थे। यतींद्रदास ने अपनी आंखें सदा के लिए 63 दिन के अनशन के दौरान 13 सितंबर 1929 को की थी। ठीक ही गाया करती थी यतींद्र दास की टोली ’’वक्त आने दे बता देंगे तुझे आसमां, हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।’’
जयदेव 1928 में पकड़े जाने के बाद 1946 तक विभिन्न जेलों में रहे। मद्रास की जेल में जयदेव कपूर के साथ हुई एक घटना बहुत प्रचलित थी। जिसमें उन्होंने जेल के एक सुपरिटेंडेंट को अपनी साहस का परिचय देते हुए दो-दो हाथ किए। जिनके बाद जयदेव को रोज 20 बेंत मारे जाते थे। जनवरी 1933, उन दिनों अंडमान जेल की हालत बहुत खराब थी। वहां इंसान जानवर की तरह रखे जाते थे। सम्मानजनक व्यवहार, अच्छा खाना, पढ़ने लिखने की सुविधा, सूरज की रोशनी, आदि की मांग को लेकर बन्दियों ने 12 मई 1933 को अनशन आरंभ किया। जो 60 दिन तक चला। जिसमें उनके साथी महावीर सिंह, मोहित मित्र, मोहन किशोर शहीद हो गए।
काला पानी में जयदेव को अनेक प्रकार की यातनाएं झेलनी पड़ी। 16 वर्ष जेल की सजा, जहां उन्हें 60 दिनों तक हर सुबह 30 बेतों की सजा दी जाती थी। जिनके निशान उनकी मृत्यु तक बने रहे। अंडमान में नित्य नयी यातनाओं के बाद भी वे क्रांतिकारी तारों की तरह जगमगा रहे हैं। यहां न जाने कितने ही ज्ञात तथा अज्ञात क्रांतिकारियों ने अपना रक्त और मांस गला दिया है। धन्य है वह माता-पिता जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया। उनकी यादें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास की पवित्र धरोहर हैं।
06- हरदोई में जयदेव कपूर का योगदान
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद औपनिवेशिक ताकतें कमजोर होने लगी थी। 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्माण के साथ ही तीसरी दुनिया के देश का उदय हुआ तथा अनेक देश आजाद हुए। भारत में संविधान बनाने के लिए 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया। अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान के विभाजन के साथ भारत एक स्वतंत्र देश बना।
1946 से ही क्रांतिकारी को जेल से छोड़ा जाने लगा। अनेक यातनाओं के बाद 1946 में जयदेव जेल से छूटने के बाद अपने घर मंगलीपुरवा (हरदोई) आए। हरदोई में उन्होंने अपना घर बनाया। जिसमें आज भी उनका परिवार रहता है। 1950 में उन्होंने सरोजिनी कपूर से विवाह किया। जिससे उनको पांच पुत्रों -कमल कपूर (स्वर्गीय), विजय कपूर (स्वर्गीय), विमल कपूर, अजय कपूर, संजय कपूर और एक पुत्री की प्राप्त हुई। हरदोई में रहते हुए उन्होंने हरदोई शुगर फैक्ट्री के यूनियन अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे फैक्ट्री के मजदूरों का केस खुद ही लड़ते थे। अनेक यातनाओं के बाद भी उन्होंने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा तथा देश प्रेम के लिए अपना काम करते रहे। 19 सितंबर 1994 को उन्होंने अंतिम सांस ली।
क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयदेव कपूर का सानिध्य पाए अधिवक्ता अभय शंकर गौड़ बताते हैं कि उन्होंने उनके साथ काफी समय बिताया। 15 अगस्त 1994 को क्रांतिकारी जयदेव कपूर को उनके स्कूल स्प्रिंग डेल, स्टेशन रोड पर पुरस्कार वितरण करने आए थे और अपने हाथों से बच्चों को पुरस्कार दिया था। जयदेव ने ही हरदोई स्थित कंपनी गार्डन का नाम शहीद उद्यान करवाया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर शहीदों की पुण्य स्मृति में कार्यक्रमों का संचालन, शाहिद उद्यान में शहीद स्तंभ का निर्माण, चंद्रशेखर आजाद तथा भगत सिंह की प्रतिमा को स्थापित करवाने में जयदेव जी का योगदान स्मरणीय है। ऐसे महान क्रांतिकारी का हरदोई वासियों की ओर से शत-शत नमन। जिन्होंने जीवन पर्यंत देश हित को ऊपर रखा। इंदिरा गांधी द्वारा जयदेव कपूर को ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया। अंडमान में भी उनकी तस्वीर क्रांतिकारियों में प्रथम पंक्ति में लगी है। आवश्यकता है कि उनकी यादों को सहेजने की तथा उनके परिवार के साथ सरकार को खड़े रहने की ताकि ऐसी महान विभूतियों को आने वाली पीढ़ियां याद कर सकें।
निष्कर्ष
ब्रिटिश शासन से पूर्व जो भारत आर्थिक दृष्टि से एक आत्मनिर्भर राष्ट्र था। वही ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों से भारत की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। परिणामस्वरुप जनता में असंतोष पनपा जो समय-समय पर विभिन्न आंदोलनों के रूप में दिखाई देने लगा। 1885 में कांग्रेस की स्थापना हुई। इसके बाद राष्ट्रीय आंदोलन के तीन चरण दिखाई देते हैं। प्रथम चरण 1885 से 1905 उदारवादी चरण, 1905 से 1919 तक उग्रवादी चरण, तथा 1919- 47 गांधीवादी युग। 1915 में गांधी जी के आगमन के बाद क्रांतिकारी घटनाओं में तीव्रता आई। जिस पर समाजवादी तथा मार्क्सवादी विचारों का प्रभाव था। जिसमें विभिन्न युवा क्रांतिकारी जैसे भगत सिंह, शिव वर्मा, जयदेव कपूर, सुखदेव, राजगुरु, भगवती चरण बोेहरा, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां आदि शामिल थे। जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया।
हरदोई के जयदेव कपूर भी इस स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के साथ शामिल हुए। जिसकी शुरुआत उन्होंने कानपुर में प्रताप प्रेस से जुड़कर की। 1926 में सचिंद्रनाथ सान्याल द्वारा स्थापित हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन में शामिल हुए। जिसका मुख्य उद्देश्य पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हेतु प्रत्यक्ष कार्यवाही और सशक्त क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना था। जयदेव ने भगत सिंह के साथ मिलकर विभिन्न एक्शन में सहयोग किया। जिसमें सांडर्स हत्या, आगरा बम प्रशिक्षण कांड, सहारनपुर बम कांड, असेंबली बम कांड आदि महत्वपूर्ण है। क्रांतिकारियों का मुख्य उद्देश्य मानव मात्र के लिए सुख और शांति का वातावरण तैयार करना था। यह क्रांतियां किसी को हानि पहुंचाने के लिए नहीं की जा रही थी। इसके बाद क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियां हुई। जेल में तरह-तरह की सजा एवं यातनाएं इन क्रांतिकारियों के हृदय में जलती स्वतंत्रता की ज्वाला को धीमा नहीं कर सकी। जेल से छूटने के बाद भी जयदेव कपूर ने मानव मात्र की सेवा को ही चुना और मजदूर यूनियन का सहारा बने। आजादी के बाद कुछ सेनानी विषम परिस्थितियों में स्वर्ग चले गए और उनके परिवारजन आर्थिक संकट का सामना करते रहे। जिन पर बाद में ध्यान दिया गया। 15 अगस्त 1975 को श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर सेनानियों को सम्मानित करना आरंभ किया। अपनी रूस की यात्रा के बाद इंदिरा गांधी द्वारा जयदेव कपूर को ताम्रपत्र से सम्मानित किया गया जो आज भी उनके परिवार के पास स्मृति चिन्ह के रूप में है।
प्रहलाद नगरी हरदोई के स्वतंत्रता सेनानी जयदेव कपूर की देशभक्ति को हरदोई वासी आज भी अपने हृदय में संजोए हुए हैं। उनका परिवार उनके मूल्यों को साथ में लेते हुए प्रतिवर्ष उनकी पुण्य स्मृति में कार्यक्रमों का आयोजन करके उन्हें याद करते हैं।
संदर्भ सूची –
1. जयदेव कपूर के पुत्र संजय कपूर तथा पौत्र श्री यश कपूर से उनके निजी निवास पर भेंट 31ध्04ध्2025
पुस्तकें
2. वर्मा शिव, “संस्मृतियां”, दूसरा संस्करण 2024
3. चंद्र विपिन, ’’आधुनिक भारत का इतिहास’’, पुनः मुद्रित 2017
4. सोमवंशी सिंह धर्मेंद्र, हरदोई का स्वतंत्रता संग्राम एवं सेनानी
5. गुप्ता एस, के- डॉ., “आधुनिक भारत’’, 2015 शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद
6. बंधोपाध्याय शेखर, ’’पलासी से विभाजन तक और उसके बाद’’, अनुवाद -नरेश नदीम, दूसरा संस्करण 2015
7. थापर रोमिला, ’’भारत का इतिहास’’ 28वां संस्करण 2016 समाचार पत्र और पत्रिकाएं
9. दैनिक जागरण- 21.08.2018-60 दिन तक भूखे रहे थे जयदेव कपूर रोजाना खाते थे 30 बेंत।
10. Buddha Darshan news, Lucknow, ऐसे थे भगत सिंह के मित्र डॉ- गया प्रसाद बाहर दवाखाना अंदर चलाते थे बम बनाने की फैक्ट्री।
11. दैनिक जागरण 21.11.2021- यह धरती है बलिदान की सचिंद्रनाथ की किताब वतन पर मरने वालों से।
12. BBC News-22/03/2021, मोहम्मद आसिम खान फैजी की रिपोर्ट, भगत सिंह के निशान जो अब उनके साथी जयदेव कपूर के परिवार के पास है’’
13.News India samachar, azadi ka Amrit mahotsav, menstream weekly 2009Þa day to rememberß-
14- Times of India, Shahid Divas, known stories about Bhagat Singh
15.www.etvbharat.com, August 15]2019- “इस क्रांतिकारी वीर ने भगत सिंह और बटुकेश्वर को पहुंचाया था असेंबली के अंदर
16. Madhya Pradesh news – durdarshan, azadi Amrit mahotsav, October 24, 2021, 24, 2021, आजादी के सफर में जानिए अमर स्वतंत्रता सेनानी जयदेव कपूर, लक्ष्मी सहगल और रफी अहमद किदवई के जीवन से जुड़े कुछ अनकहे किस्सो के बारे में।