ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

प्रो० रघुवीर सिंह राज विद्या एवं भारतीय प्रज्ञा के पुरोधा

प्रो० गणेश प्रसाद
डी० लिट
पूर्व प्राचार्य, जी०वी०पी०जी० कालेज रिसिया बहराइच

-प्रो० रघुवीर सिंह भारतीय प्रज्ञा एवं मनीषा के सशक्त हस्ताक्षर थे। उनका व्यक्तित्व दया, मानवता और विद्वत्ता का संगम था। वे जीवन भर अपने कार्य एवं व्यवहार से सतत विद्या के संवर्धन में लगे रहें। राजनीति शास्त्र के मनीषी साहित्यकार के रूप में उनकी विश्व भर में ख्याति अक्षुण्ण है। विद्यानुरागी सर्वातिशायिनी प्रतिभा के आगार प्रो रघुवीर सिंह जान लाक पर स्थापित अपने मंतव्य के कारण अक्षय कीर्ति अजित कर चुके हैं।
– प्राच्य एवं पौर्वात्य प्रज्ञा को समेकित एवं तादात्म्य स्थापित करने वाले लोगों में कभी भी पूजनीय प्रो रघुवीर सिंह पीछे नहीं रहे अपितु वे मानते थे कि ज्ञान राशि तो एक ही है किंतु उसकी अभिव्यक्ति अनेक रुपों में परिलक्षित होती है। मनीषियों का कहना है कि किसी चीज की जानकारी होने से अंतिम सत्य तक नहीं पहुंच सकते जब तक उसका बोध नहीं होता। प्रोफेसर रघुवीर सिंह को ऋषियों की तरह जान का बोध हो गया था जो उनके चिंतन में सर्वत्र विराजमान हैं और परिलक्षित होता है।
– प्रो रघुवीर सिंह प्रभूत साहित्य सृजन में विश्वास नहीं करते थे, वे लेखन की गुणवत्ता में अगाध श्रद्धा रखते थे। अपनी सर्जनात्मक प्रतिभा का उन्मेष करते हुए दिखाई पड़ते हैं। किसी भी विषय पर लिखते समय उनके मन में सर्वाेत्कृष्ट साहित्य सृजन की उत्कट अभिलाषा थी। चाहे प्राच्यविद्या के प्रवर्तन की उद्दाम आकांक्षा हो अथवा पौर्वात्य मनीषा के रहस्यों को उजागर करने में निरत हाँ, आदि से अंत तक उनकी कृतियों में निरंतरता एवं संगतता को अविच्छिन्नता के साथ लक्षित किया जाना चाहिए।
– इस संक्षिप्त पृष्ठभूमि के पश्चात यह समीचीन होगा कि हम प्रोफेसर रघुवीर सिंह के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाले। इस महान विभूति का जन्म 1929 में 30 प्र0 के गाजीपुर जिले में हुआ था। उनकी शिक्षा बनारस और प्रयागराज में हुई। अविच्छिन्न उत्तम शैक्षिक अभिलेख के साथ आयंत उन्होंने प्रथम श्रेणी प्राप्त किया और 1950 में राजनीति शास्त्र विषय से इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर विश्वविद्यालय मे प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1950 में ही लखनऊ विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हो गए और 1963 में गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग में आचार्य एवं अध्यक्ष पद पर आसीन हुए। एक लम्बी अवधि तक प्राध्यापन के बाद 1989 में सेवा निवृत्त होकर महानगर लखनऊ में 2011 में मृत्यु पर्यन्त स्वाध्याय में लीन रहे। प्रो रघुवीर सिंह जी की अक्षय कीर्ति का आधार उनके बहुप्रशंसित एवं बहुउद्धृत अकादमिक बिरलतम लेख है जो 1950 से 2011 के बीच उनकी अक्षुण्ण लेखनी से प्रसूत है। लगभग 60 वर्षों के लम्बे सृजन काल में अभिव्यक्त उनके राजनीतिक विचार विश्व चिंतन के थाती बन चुके हैं, जिन पर उनके किसी भी समर्पित शिष्य को गौरवानुभूति हो सकती है। यद्यपि छात्र जीवन से ही उनके मन में अध्ययन एवं लेखन के प्रति अगाध श्रद्धा एवं उत्साह था। लखनऊ विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहते हुए उन्होंने सरला मोहन द्वारा जान लाक दवारा लिखित शासन पर निबंध, के हिंदी अनुवाद की प्रस्तावना लिखी है जिसमें लाक से संबंधित उनकी पस्थापनाओं की भली-भांति समझा जा सकता है। लॉक की दोनों कृतियों में पूर्ववर्ती विचारकों की स्थापनाओं का खंडन किया है जिसमें लाक की पुस्तक….. Essays Human Understanding के अनुभव वाद और Two treatises- On Civil Gove Government सिद्धांत के विवेकवाद में अंतर्दवंदव लक्षित किया गया है। परंतु प्रोफेसर रघुवीर सिंह ने इन दोनों कृतियों में संगतता का प्रतिपादन किया है। जो लाक वाद को नूतन धरातल पर प्रतिष्ठित करने वाले मनीषियों में अग्रणी स्थान रखते हैं।
-प्रो रघुवीर सिंह के कुछ ऐसे निबंध लेखन है जिससे विद्वत समाज कम ही परिचित है। मशहूर समाज शास्त्री प्रो ए के सरन पर लिखा उनका लेख, A K,Saran, Philosophia perenis लेखन जगत की अक्षय निधि है। इस सुन्दर एवं गंभीर निबंध में प्रो रघुवीर सिंह ने भारतीय प्रज्ञा के सर्वातिशायी प्रभाव का विश्लेषण किया है। इसी प्रकार अपने मित्र पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय चंद्रशेखर जी पर भी एक महत्वपूर्ण निबंध लिखा है जिसमें उनके समाजवादी विचारों का प्रतिपादन किया गया है। प्रो रघुवीर सिंह के पुत्र श्री उपेन्द्र कुमार सिंह पूर्व आई आर टी एस ने अथक परिश्रम एवं मनोयोग से उनकी कृतियों का संकलन उनके मरणोपरान्त Perspective in Philosophy, Metaphysics and Political Theory नामक पुस्तक में 2014 में प्रकाशित हुआ जिसकी प्रस्तावना गोलोकवासी प्रो एल ए एस राठौर जोधपुर ने लिखी है। इस पुस्तक में कुल चैदह निबंध संकलित हैं। इन कृतियों को प्रो० राठौर की भूमिका ने बोधगम्य बना दिया है। ये निबंध इस प्रकार सगुंफित है।
1- Heraklietos and the law of Nature,
2- Politics and Ethics in Indian Thought and Modern Political Theory
3- Recent English Political Theory and the idea of Liberty
4- Metaphysical Tradition and the philosophies of value
5- John Locke and the theory of Natural Law
6- John Locke and the idea of Sovereignty
7- Problems and Perspective In Lockers Political thought
8- Casualty Meaning and Purpose in Politics
9- Prolegomena to a conceptual Treatment of Nehru’s View of Democracy
10- Political theory of Indian Constitution, From Constitutional government to Mass Democracy
11- Political culture and Culture of politics in Indian-
12- The Concept of Social justice-
13- The Administrative and Homo Politicus
14- On the unity of Knowledge] Besides one more prominent article is as entitled] Traditional Wisdom and Modern Science as Paradigm of political Discource

  • इन कालजयी कृतियों के अतिरिक्त प्रोफेसर रघुवीर सिंह ने गणित एवं भौतिक विज्ञान के भारतीय एवं पश्चिम जगत के ह्वाईटहेड जैसे गणितज्ञ और आइंस्टीन जैसे भौतिक विज्ञान के मनीषियों का गहराई से अध्ययन किया था। उनका संस्कृत साहित्य का विशद ज्ञान हमें भारतीय प्रज्ञा में निमज्जित कर देता है। एक बार आदरणीय गुरुदेव के साथ मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग में उनके गुरू प्रो0ए0बी0 लाल स्मृति व्याख्यान का श्रवण किया था। लगभग पांच घंटे की लखनऊ इलाहाबाद की यात्रा के दौरान उन्होंने संस्कृत भाषा के शीर्ष ग्रंथों श्री हर्ष के नैषधीय चरित आदि में वर्णित वैदर्भी एवं पांचाली काव्य रीतियों का विशद विवेचन किया। संस्कृत साहित्य का अनुरागी मैं स्तब्ध रह गया। इसी प्रकार उर्दू साहित्य सृजन के पुरोधा शायरों, मिर्जा गालिब और फिराक गोरखपुरी की नज़्म एवं ग़ज़लों के प्रकांड विद्वान थे। अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के उनके ज्ञान की कोई सीमा नहीं 1976 से 2011 तक उनके सानिध्य में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 1976 से 2011 उनके मृत्यु पर्यन्त उनके साथ उठने बैठने एवं निरंतर सीखने का अवसर मिला। राजनीति शास्त्र के इस मनीषी का साहचर्य ही मेरे जीवन का संबल रहा है। आज आदरणीय गुरुदेव प्रोफेसर रघुवीर सिंह को कोटि-कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

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