ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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उत्तर प्रदेश में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों का मूल्यांकन  (बुलन्दशहर जनपद के विशेष संदर्भ में)

                           ज्ञान सिंह यादव, शोध छात्र
डी.ए.वी. (पी.जी.) कॉलेज, बुलंदशहर
डा0 प्रवीण कुमार, एसो0 प्रोफेसर
                                                           डी.ए.वी. (पी.जी.) कॉलेज, बुलंदशहर
मतदान व्यवहार की अवधारणा भारतीय लोकतंत्र के प्रमुख पहलू के रूप में जनता को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार दिया गया है । जनता ने अपने मताधिकार में किस .ष्टिकोण का प्रयोग किया गया है यह एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक पहलू है जो कि भारतीय लोकतंत्र को आम चुनाव के माध्यम से एवं राजनीतिक दलों की प्रतिबद्धता एवं निष्ठा बोध के द्वारा यह प्रतिपादित करने का प्रयास करता है कि भारतीय जनता की लोकतंत्र के प्रति आस्था , रूचि क्या है । वह कहां तक जागरूक है । इन सभी बातों को मतदान आचरण से जाना जाता है । मतदान आचरण का अर्थ है कि मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करने में किन . किन बातों से प्रभावित होता है मताधिकार करने में कौनसे कारक व्यक्ति को प्रेरित करते है और कौन से कारक हतोत्साहित करते है और कौन से कारक व्यक्ति को एक विशेष उम्मीदवार या दल विषेष के पक्ष में मत देने के लिए प्रेरित करते है । मतदान आचरण का अध्ययन बीसवीं सदी की ही प्रक्रिया है सर्वप्रथम फ्रांस सन् 1913 में मतदान आचरण का अध्ययन किया गया । इसके बाद अमेरिका में दो विश्व युद्धों के बीच के काल में और ब्रिटेन में महायुद्ध के बाद मतदान आचरण का अध्ययन किया गया । भारत में द्वितीय आम चुनाव के बाद इस प्रकार के अध्ययनों को अपनाया गया है और अभी हाल के वर्षों में इस विषय पर प्रचुर साहित्य प्रकाशित हुआ जो अनुभाविक एवं वस्तुनिष्ठ सर्वेक्षणों पर आधारित है । मतदान मनोवैज्ञानिक तत्वों से प्रेरित एक गूढ़ राजनीतिक प्रक्रिया है जो अनेक आन्तरिक एवं बाहरी तत्वों से प्रभावित हाती है । स्वाभाविक रूप से मतदान व्यवहार के अध्ययन में अनेक कठिनाईयां आती है । सर्वप्रथम , एक क्षेत्र का मतदान व्यवहार दूसरे क्षेत्र के मतदान व्यवहार से भिन्न होता है , इसलिए किसी एक क्षेत्र के मतदान व्यवहार के आधार पर इस सबन्ध में किसी प्रकार के सामान्य निष्कर्ष निकालना संभव नहीं होता । विभिन्न क्षेत्रों में विद्यमान प्रवृतियों के लम्बे समय तक अवलोकन के आधार पर ही किन्हीं परिणामों पर पहुंचने की आशा की जा सकती है । द्वितीय , भारत जैस विविधता वाले देश में केवल कुछ निश्चित शीर्षकों के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश में मतदान व्यवहार का अध्ययन नहीं किया जा सकता । अतः कठिनाई आती है कि किन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाये और किन शीर्षकों के अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाये । इस संबंध में तृतीय और सबसे प्रमुख कठिनाई यह है कि जिन व्यक्तियों का साक्षात्कार किया जाता है , उनमें से अनेक अध्ययनकर्ता के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते और जो व्यक्ति उत्तर देने की क्षमता रखते है वे भी जान बूझकर ठीक- ठाक उत्तर नहीं देते । इन सबके अतिरिक्त साक्षात्कार के अन्तर्गत भाषा की कठिनाई भी सामने आती है । उपर्युक्त कठिनाईयों को पूर्ण रूप से किया जाना तो संभव नहीं है आंशिक रूप से ये कठिनाईयां तभी दूर हो सकती है जबकि अध्ययनकर्ता संबंधित क्षेत्रों की राजनीति , संस्.ति और आर्थिक तथा सामाजिक परिस्थितियों से पूर्णतया परिचित हो और उसके द्वारा लम्बे समय तक किये गये अध्ययन के आधार पर ही निष्कर्ष निकाले जायें । भारत में चुनाव एवं मतदान व्यवहार के सकारात्मक पक्ष व असफलताओं के संबंध में विद्वान लोगों , सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं जनप्रतिनिधियों और मतदाताओं के विचार जानने के लिए अनुभवमूलक अध्ययन में सभी जाति , धर्म , वर्ग के मतदाताओं को शामिल किया गया है । अध्ययन को अनुभवमूलक बनाने के उद्देश्य से एक प्रश्नावली तैयार की गई है जिसके माध्यम से चुनाव व मतदान व्यवहार से संबंधित प्रश्न जोड़े गये हैं । शोधकर्ता ने इन प्रश्नावलियों के संबंध में जानकारी मतदाताओं से संवाद करके प्राप्त की हैं । स्वयं शोधकर्ता की उपस्थिति से बहुत से ऐसे तथ्य सामने आये जो डाक द्वारा प्रश्नावली भेजे जाने से जाने- समझे नहीं जा सकते थे । उत्तरदाताओं ने चुनाव सुधारों में शिक्षा , पारदर्शिता एवं राजनीतिक जागरूकता को प्राथमिकता दी है । साथ ही अधिकतर उत्तरदाताओं का मानना है कि चुनाव सुधार लागू होने से मतदाताओं की चुनावों में भागीदारी बढ़ी हैं मतदाता अब अपने मतदान का प्रयोग निर्भीकता एवं ईमानदारी से करते हैं लेकिन ये सभी परिवर्तन आशा के अनुरूप नहीं है , तथा बहुत कुछ और किये जाने की आवश्यकता है । निर्वाचन आयोग एवं न्यायपालिका द्वारा उठाये गये विभिन्न कदमों से निर्वाचन व्यवस्था में हुए सुधार निश्चय ही एक प्रगतिशील कदम है । इससे लोगों की चुनावों में भागीदारी बढ़ी है । किंतु आज भी चुनावों में बाहुबल , धनबल भाई-भतीजावाद स्पष्ट रूप से दिखाई देता हैं । परिणामस्वरूप व्यवस्थापिका में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग पहुँच रहे हैं जो देश की विधायी प्रक्रिया को अपने निहित स्वार्थो के लिए प्रयोग में लाने का प्रयास करते है । कई उत्तरदाताओं ने माना कि राजनीतिक दलों एवं राजनेताओं के असहयोग ने मतदान व्यवहार के सुधार में बाधा उत्पन्न की है अशिक्षा , बेरोजगारी , जाति , क्षेत्रवाद , धनबल , भुजबल एंव मतदाताओं में जागरूकता की कमी भी मतदान व्यवहार में सुधार के मार्ग में बाधक है।
साहित्य-समीक्षा:-
रजनी कोठारी (1970 ) की पुस्तक “भारत में राजनीति”, में भारतीय राजनीति के सैद्धांतिक , ऐतिहासिक , सामाजिक , सांस्कृतिक आयामों पर चर्चा की गई । एक विचारक और शिक्षक के रूप में कोठारी की श्रेष्ठता इस पुस्तक में स्पष्ट है । यह भी पार्टी प्रणाली और गठबंधन , सामाजिक बुनियादी ढांचे और भारत की चुनौतियों और यह उपमहाद्वीप और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में परिकल्पना की गई बड़ी भूमिका सहित संतुलित विकास के विकल्प की राजनीति से संबंधित है । भविष्य के परिप्रेक्ष्य पर समापन अध्याय इस संभावना की ओर कोठारी के उपयोगी सूचक है ।
  रामाश्रय रॉय और पॉल वॉलेस (1988 ) की पुस्तक “इंडियन पॉलिटिक्स एंड 1998 इलेक्शन-रीजनालिस्म, हिंदुत्व एंड स्टेट पॉलिटिक्स”, में विद्वान लेखकों द्वारा अपने लेखों में भारतीय चुनाव से जुड़े अनेक आयामों पर विचार व्यक्त किए हैं । आमुख में पॉल वेलास ने 1999 के चुनाव पूर्व वाजपेयी सरकार के विरू अविश्वास पास होने के पीछे तीन दिग्गज राजनीतिक महिला नेत्रियों का उल्लेख किया । इसके बाद हुए चुनावों में क्षेत्रियतावाद , हिन्दुत्व तथा अन्य मुद्दों ने चुनावी मुद्दों का रूप धारण कर लिया । मतदाताओं ने स्थान . स्थान पर पृथक मतदान व्यवहार का परिचय दिया जिसके परिणामस्वरूप पुनः त्रिशंकु लोकसभा का गठन हुआ ।
मानचन्द खंडेला( 2007 ) की पुस्तक “वर्तमान भारतीय राजनीति”, में मौजूदा राजनीति परि.श्य का गहन वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करने का प्रयास किया है । इसी उद्देश्य से मतदाता की बढ़ती जागरूकता , लोकतांत्रिक व्यवस्था की सीमाओं , जनादेश के भ्रम जैसे मुद्दों पर विस्तृत एवं बहुकोणीय चर्चा की गई है ।
संदीप शास्त्री , के. सी. सूरी एवं योगेश यादव ( 2009 ) की पुस्तक “इलेक्टोरल  पॉलिटिक्स इन इंडियन स्टेट्स”, में भारतीय चुनावी राजनीति तथा मतदान व्यवहार का समग्र विवेचन किया है। भारतीय राजनीति के मतदान व्यवहार की बदलती हुई प्रवृत्ति एवं पार्टियों के राजनीतिक नेतृत्व का चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन इस पुस्तक में किया गया है।
शोध शीर्षक –
उत्तर प्रदेश में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारकों का मूल्यांकन:बुलंदशहर जनपद के विशेष संदर्भ में।
शोध प्रविधि:-
प्रस्तुत शोध में वर्णनात्मक शोध विधि के अंतर्गत सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया है ।
शोध की जनसंख्या व प्रतिदर्श के लिए प्रस्तुत शोध पत्र में बुलंदशहर जनपद के मतदाताओं का चयन शोध पत्र हेतु किया गया है । वहीं प्रस्तुत शोध हेतु न्यादर्श के लिए या.च्छिक प्रतिदर्शन विधि द्वारा 300 छात्रों का चयन प्रतिदर्श के रूप में किया गया है । प्रस्तुत शोध अध्ययन हेतु आँकड़ों को एकत्रित करने के लिए स्वनिर्मित साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया है ।
 प्रस्तुत सांख्यिकीय विधि -आँकड़ों की व्याख्या हेतु सांख्यिकीय विधि के अन्तर्गत प्रतिशत विधि का प्रयोग किया गया है।
प्रदत्तों का विश्लेषण , परिणाम एवं व्याख्या:-
प्रदत्तों का संकलन करने के पश्चात् प्राप्त प्रदत्तों की उद्देश्य के अनुसार विश्लेषण एवं व्याख्या-
उत्तरदाताओं का लिंग, आयु, जाति, आर्थिक व शैक्षणिक आधार पर वर्गीकरण करने पर कुल उत्तरदाताओं की संख्या में से-
लैंगिक संरचना के आधार कुल उत्तरदाताओं की संख्या में से 47.3 प्रतिशत उत्तरदाता महिला लिंग से है और       52.7 उत्तरदाता पुरुष लिंग से हैं। आयु के आधार पर वर्गीकरण करने पर ज्ञात हुआ कि 38 प्रतिशत उत्तरदाता 18 से 25 वर्ष से तक आयु वर्ग से संबंधित है । इसी प्रकार 22 प्रतिशत उत्तरदाता 26 वर्ष से 35 वर्ष आयु . वर्ग के हैं और 27 प्रतिशत उत्तरदाता 36 से 45 वर्ष तक आयु वर्ग से एवं 13 प्रतिशत उत्तरदाता 45 वर्ष से अधिक वर्ष से अधिक आयु- वर्ग संबंधित है। उत्तरदाताओं की जाति संरचना का वर्गीकरण करने पर ज्ञात होता है कि कुल उत्तरदाताओं में से 28 प्रतिशत उत्तरदाता सामान्य वर्ग से है जबकि 40.3 प्रतिशत उत्तरदाता अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित है तथा 31.7 प्रतिशत उत्तरदाता अनुसूचित जाति से संबंधित है। आर्थिक संरचना का वर्गीकरण करने पर ज्ञात होता है कि 27.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं का व्यवसाय मजदूरी है और 66 प्रतिशत उत्तरदाताओं का व्यवसाय .षि है, जबकि 2 प्रतिशत उत्तरदाता सरकारी नौकरी करते है तथा 4.7 प्रतिशत अन्य व्यवस्थाओं में कार्यरत है । शैक्षिक स्तर पर वर्गीकरण करने पर ज्ञात होता है कि कुल उत्तरदाताओं में से 83.7 प्रतिशत उत्तरदाता शिक्षित एवं 16.3 प्रतिशत उत्तरदाता अशिक्षित है ।
प्रश्न (1 ): क्या जाति की राजनीति भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है?
तालिका -1
क्रमांक विवरण आवृति , प्रतिशत
1 हाँ 232 77.3
2 नहीं 68 22.7
कुल योग 300100
 जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या चुनाव में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने में जाति एक महत्वपूर्ण समीकरण है तो कुल उत्तरदाताओं में से 77.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने मतदान व्यवहार को प्रभावित करने में जाति को एक महत्वपूर्ण समीकरण माना तथा 22.7 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने मतदान व्यवहार में जाति को महत्वपूर्ण नहीं माना । इससे स्पष्ट होता है कि तीन-चैथाई से अधिक उत्तरदाताओं ने माना कि प्रत्याशियों को समर्थन देते समय जाति को भी ध्यान में रखा जाता है क्योंकि चुनाव के दौरान मत देने वाला मतदाता  जाति को भी प्राथमिकता देता है । जाति को महत्वपूर्ण समझने वाले उत्तरदाताओं ने बताया कि चुनाव में जाति के आधार पर प्रत्याशियों का चुनाव करते हैं ।
प्रश्न (2 ):क्या उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव को धर्म की राजनीति ने प्रभावित किया है?
तलिका -2
क्रमांक विवरण आवृति प्रतिशत
1 हाँ 211 70.3
2 नहीं 89 29.7
योग300100
जब उत्तरदाताओं से जानने का प्रयास किया गया कि क्या उत्तर प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव को धर्म की राजनीति ने  प्रभावित किया है तो कुल उत्तरदाताओं में से 80.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि धर्म की राजनीति चुनाव के समय हावी रहती है। जबकि 19.7 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि धर्म की राजनीति चुनाव को प्रभावित नहीं करती । इस प्रकार स्पष्ट है कि धर्म की राजनीति चुनावों में हावी रहती है और मतदाताओं को प्रभावित करती है ।
प्रश्न (3 )ः क्या व्यक्ति का शैक्षिक स्तर मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है?
तलिका- 3
क्रमांक विवरण आवृति प्रतिशत
1 हाँ 219 73
2 नहीं 81 27
कुल योग 300100
जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या व्यक्ति का शैक्षिक स्तर मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है? तो कुल उत्तरदाताओं में 73 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि व्यक्ति का शैक्षिक स्तर अर्थात् व्यक्ति की शिक्षा का स्तर मतदान व्यवहार को प्रभावित करते हैं, वहीं दूसरी ओर 27 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि शैक्षिक स्तर मतदान व्यवहार को प्रभावित नहीं करते । इससे स्पष्ट है कि है कि तीन -चैथाई उत्तरदाताओं का मानना है कि लोकतंत्र को बनाये रखने हेतु मत के प्रयोग में मतदान व्यवहार को प्रभावित करते है।
प्रश्न (4 ): क्या चुनाव के समय किसी प्रत्याशी द्वारा दिया जाने वाला आर्थिक प्रलोभन/अवैधानिक प्रकार भी मतदाता को प्रभावित करता है?
तलिका -4
क्रमांक विवरण आवृति प्रतिशत
1 हाँ 161 53.7
2 नहीं 139 46.3
कुल योग 300100
ज्ब उत्तरदाताओं से जानकारी ली गई कि क्या चुनाव के समय किसी प्रत्याशी द्वारा दिया जाने वाला आर्थिक प्रलोभन या अवैधानिक प्रकार भी मतदाता को प्रभावित करता है? तो कुल उत्तरदाताओं में से 53.7 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना है कि चुनाव के समय मतदाताओं को दिया गया आर्थिक प्रलोभन भी मतदाताओं को प्रभावित करता है, तथा 46.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि आर्थिक  प्रलोभन व अवैधानिक प्रकार मतदाताओं को प्रभावित नहीं करते हैं। इस प्रकार आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने माना कि आर्थिक प्रलोभन और मतदाताओं पर  दबाव के द्वारा उनके मत को प्रभावित किया जाता है ।
प्रश्न (5 ): क्या सामाजिक मुद्दे मतदान व्यवहार को प्रभावित करते हैं?
तलिका -5
क्रमांक विवरण आवृति प्रतिशत
1 हाँ 77 25.7
2 नहीं 223 74.3
कुल योग 300100
जब उत्तरदाताओं से जानने का प्रयास किया कि क्या सामाजिक मुद्दे मतदान व्यवहार को प्रभावित करते हैं? तो 25.7 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि सामाजिक मुद्दे भी मतदान को प्रभावित करते हैं तथा कुल उत्तरदाताओं का का 74.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि सामाजिक मुद्दे मतदाताओं पर प्रभाव नहीं डालते हैं। जिससे स्पष्ट है कि लगभग तीन -चैथाई उत्तरदाता सामाजिक मुद्दे मतदान को प्रभावित नहीं करते हैं ।
निष्कर्ष:-
स्पष्ट है कि मतदाता जाति व धर्म के आधार पर मतदाता प्रभावित होते हैं। साथ ही  प्रत्याशियों द्वारा मतदाताओं को दिया गया आर्थिक व अन्य प्रलोभन मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है ।
जबकि व्यक्ति का शैक्षिक स्तर एवं सामाजिक मुद्दे मतदान व्यवहार को मुख्यतः प्रभावित नहीं करते है ।
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले उपर्युक्त तत्त्वों के वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि ये तत्त्व किसी विशेष क्षेत्र , वर्ग अथवा समुदाय को प्रभावित नहीं करते , वरन् सभी मतदाताओं को प्रभावित करते हैं । इस विषय में मतदाताओं की प्रवृत्ति कम अथवा अधिक समान है । भाषा , धर्म , समुदाय , क्षेत्रीयवाद व लुभावने नारे सभी को प्रभावित करते हैं । यहां मतदाता अक्सर धर्म , जाति , भाषा , सम्प्रदाय के नाम पर मतदान करते हैं । राष्ट्रीय एकता तथा अखण्डता के लिए यह आवश्यक है कि मतदाता इन संकुचित भावनाओं से ऊपर उठकर मतदान करें । लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु एक व्यापक राजनीतिक दृष्टिकोण का अपनाया जाना अनिवार्य है।

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