डाॅ0 अशोक कुमार श्रीवास्तव
प्राचार्य
गायत्री विद्यापीठ स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय,
रिसिया, बहराइच (उ0प्र0)
किसी भी औद्योगिक संगठन में नियोजन एवं श्रमिकों तथा श्रम संघों के मध्य विद्यमान सम्बन्धों को औद्योगिक सम्बन्ध कहा जाता है। व्यापक अर्थ में औद्योगिक सम्बन्ध प्रबन्ध कर्मचारियों एवं सरकार के बीच आपसी सम्बन्धों का मिश्रण है। औद्योगिक सम्बन्ध एक गतिमान एवं विकासशील अवधारणा है जिसकी सीमाएँ निर्धारित नहीं की जा सकती है।
’’औद्योगिक सम्बन्ध यातोराष्ट्र अथवा सेवा योजकों तथा श्रम संगठनों के मध्य सम्बन्ध है या व्यावसायिक संगठना कें के मध्य सम्बन्ध है।’’ अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
’’औद्योगिक सम्बन्ध में आशय उन सभी क्षेत्रों के सम्बन्धों से है, जो पुरूषों एवं स्त्रियों को उद्योग में नियमित रोजगार में बनाये रखने तथा साथ-साथ कार्य करने के कारण उत्पन्न होते है।’’ -डेल योडर
औद्योगिक सम्बन्ध के क्षेत्र के अन्तर्गत सेवायोजकों और श्रमिकों के बीच कारखाना स्तर पर पाये जाने वाले व्यक्तिगत सम्बन्धों तथा सेवा योजकों एवं श्रम संगठनों के बीच स्थानीय क्षेत्रीय प्रादेशिक या राष्ट्रीय स्तर पर पाये जाने वाले सामूहिक सम्बन्धों के साथ-साथ इन सम्बन्धों के नियंत्रण में राज्य की भूमिका को भी शामिल किया जाता है। किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास औद्योगिक सम्बन्ध पर पूर्ण रूपेण निर्भर करता है। औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि करने, श्रमिकवर्ग की आर्थिक दशा सुधारने तथा राष्ट्र को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न एवं समृद्ध बनाने के लिए श्रम व पूंजी के मध्य मधुरसम्बन्ध का होना अति आवश्यक है। भूतपूर्व राष्ट्र पति श्री वी0वी0 गिरि के अनुसार ’’यदि भारत में शीघ्र ही राष्ट्रीय विकास एवं अधिकाधिक सामाजिक न्याय सम्बन्धी लक्ष्यों की पूर्ति करना है तो श्रमिकों तथा नियोक्ता के मध्य सौहार्द पूर्ण सम्बन्ध होना नितान्त आवश्यक है।’’
औद्योगिक सम्बन्धों में कमी व तनाव के अनेक दुष्प्रभाव पड़ते है जिससे आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक जीवन मे ंअशान्ति उत्पन्न होती है। हड़ताल, तालाबन्दी और हिंसात्मक घटानाओं आदि से देश का वातावरण क्षुब्ध बना रहता है जिसका कुप्रभाव राष्ट्रीय जीवन श्रमिकों मिल मालिकों, उद्योगों और अन्ततोगत्वा सम्पूर्ण राष्ट्र को भारी आर्थिक हानि उठानी होती है। जिससे सभी उद्योगों में मंदी आ जाती है। अतः कुछ उद्योग बन्द होने के स्थिति में आ जाते हैं, और राष्ट्र को काफी क्षति पहुँचती है।
औद्योगिक अशान्ति से आशय उद्योगों में शान्ति के अभाव से होता है यदि श्रमिक असन्तुष्ट रहता है तो उद्योग में हडताल, तालाबन्दी, घेराव, प्रदर्शन व नारेबाजी होती है जो औद्योगिक अशान्ति का प्रतीक होती है। जब नियोक्ता श्रमिकों की मांगों को पूरा करने में असमर्थ रहता है तो श्रमिकों में असन्तोष उत्पन्न होता है, औद्योगिक अशान्ति को जन्म देता है। औद्योगिक शान्ति के लिए उचितपृष्ठ भूमितैयार की जानी चाहिए। इसके लिए राज्य द्वारा न्याय व्यवस्था, प्रमाण निर्धारण, समान शर्तों पर कर्मचारियों के साथ सौदेबाजी, कर्मचारी कल्याण में वृद्धि के प्रयास व जनसमूह की सद्भावना प्राप्त करने के प्रयास किये जाते रहना चाहिए जिससे कर्मचारियों तथा नियोक्तओं में सहयोग की भावना उत्पन्न हो सके। अतः निष्कर्ष रूप में औद्योगिक शान्ति के लिए औद्योगिक स्वतंत्रता उसी प्रकार आवश्यक है जितनी की राजनीतिक शान्ति के लिए राजनैतिक स्वतंत्रता आवश्यक है।
जब कोई विवादव्यापक रूप धारण कर लेता है तो हड़तालें की जाती हैं, धरना दिया जाता है जिससे परिवाद औद्योगिक विवाद बन जाता है। औद्योगिक विवाद में मुख्य अंग हड़ताल एवं तालाबन्दी है।
हड़ताल एक अस्थायी रूप से कार्य की रूकावट है जो ’’श्रमिकों द्वारा अपने असन्तोष को व्यक्त करने, अपनी माँगे स्वीकृत करवाने तथा कार्य की दशाएँ सुधारने हेतु नियोक्ता से आग्रह है’’
’’व्यक्तियों के समूह द्वारा जो मिल कर कार्य करते हैं, सामूहिक रूप से कार्य नहीं करना अथवा एकमत होकर कार्य करने से मना करना हड़ताल कहलाता है।
-औद्योगिकविवादअधिनियम की धारा 2(फ)
संगठित श्रमिकों के लिए हड़ताल अत्यधिक शक्तिशाली अस्त्र है जिसके द्वारा वे नियोक्ता को अपनी माँगे मनवाने के लिए बाध्य करते हैं। यह श्रमिक द्वारा स्वतः कार्य मुक्ति है। इसका आयोजन सामूहिक कल्याण तथा कार्य की दशाओं में सुधार की दृष्टि से किया जाता है।
तालाबन्दी नियोक्ता के हाथ में एक औजार है जिस से वह श्रमिकों को तितर वितर करने, उनके आचार दूषित करने तथा उनके सामूहिक प्रयास को असफल ने का प्रयत्न करता है। वह श्रमिकों की चेतना को नष्ट करने का अस्त्र है।
’’नियोक्ता द्वाराकर्मचारियों से कार्य नहीं लेना अथवा कार्य स्थल पर ताला लगा देना अथवा कार्य स्थगित कर देना आदि क्रियाएँ तालाबन्दी कही जाती है।’’
-औद्योगिकविवादअधिनियम की धारा 2(1)।
जब नियोक्ता श्रमिकों के मानवीय अधिकारों पर शासन, करना चाहता है तथा उन परसम्पत्ति के अधिकार का प्रयोग करना चाहता है तो वह उन्हें व्यवसाय क्षेत्र से बाहर निकालते हुए कार्य करने से रोकता है।
औद्योगिक सम्बन्ध का श्रम संघो एवं समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। औद्योगिक सम्बन्ध को मजबूत बनाने में श्रम संघों का बहुत महत्व है। इसकी सहायता से श्रमिक अपने नियोक्ताओं की मजबूती से सौदे बाजी करते है जिससे उनसे अच्छे एवं न्याय पूर्ण व्यवहार की आशा कर सकते है। जब श्रमिक संघवाद एक शाक्तिशाली एवं सजीव शाक्ति बन जाता है, तो वह देश में औद्योगिक विवादों को रोकने के लिए एक प्रभावशाली उपाय होता है। इसके फलस्वरूप देश मे ंऔद्योगिक शान्ति को बढ़ावा मिलता हैं इस प्रकार औाद्योगिक सम्बन्ध प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से समाज को विकसित करने में अपना योगदान देते है। किसी भी देश का उत्पादन सम्बन्धी विकास औद्योगिक सम्बन्ध पर निर्भर करता है। उत्पादन के विभिन्न साधनों जैसे भूमि, श्रम, पूँजी, मशीन, माल आदि का महत्वपूर्ण स्थान है किन्तु इन सभी साधनों में श्रम अत्यन्त महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि यही उत्पादन को वास्तविक रूप देता हैं श्रम की उपेक्षा करने से अन्य साधन निष्क्रिय हो जाते हैं। अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध द्वारा ही श्रम व पंूजी में सम्बन्ध, सहयोग व अच्छे वातावरण में उत्पादन के साधनों का अधिकतम विदोहन सम्भव है जिस के फलस्वरूप् न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन सम्भव हो सकता हैं मधुर औद्योगिक सम्बन्ध से श्रम विरोधी हड़ताल तालाबन्दी घेराव आदि की घटनाओं में कमी आती है। जो श्रम व समय की बरबादी बचाते है और उत्पादन वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देते है। इसके विपरीत जहाँ औद्योगिक सम्बन्धों में बिखराव आ जाता है, वहाँ श्रमिकों का मनोबल टूटने लगता है। जिससे श्रम समय की बरबादी होती है और उत्पादन प्रभावित होता है। अतः हम कह सकते हैं कि औद्योगिक सम्बन्ध किसी भी उद्योग के उत्पादन की नीव होते हैं। अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध के साथ नियोक्ता को अधिकतम उत्पादन एवं लाभ प्राप्त होते हैं जो किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में सहायक होते हैं।
कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का कार्य भी औद्योगिक सम्बन्ध के अन्तर्गत आता है। कर्मचारी की भरती से लेकर सेवा निवृत्तितक कर्मचारियों के चिकित्सा सम्बन्धी कार्य की व्यवस्था इसके अधीन आती है। श्रमिकों के द्वारा कारखाने में कार्य करते समय यदि कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसकी प्रारम्भिक चिकित्सा इसी के अन्तर्गत की जाती है। यह सुरक्षा सम्बन्धी कार्य औद्योगिक सम्बन्ध प्रशासन करता हैं औद्योगिक सम्बन्धों के इन प्रयासों से श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं कार्य कुशलता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। यदि औद्योगिक सम्बन्धों की व्यवस्था को प्रभवी ढंग से लागू नहीं किया जाता है तो श्रमिकों की कार्य कुशलता एवं स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः श्रमिकों को उचित एवं सन्तोषप्र्रद कार्य की दशाएँ स्वास्थ्य सुविधाएँ, सुरक्षा प्राविधान उपलब्ध करवाए जाने चाहिए इससे औद्योगिक सम्बन्ध में सुधार होगा, श्रमिकों की कार्यकुशलता में वृद्धि होगी।
मधुर औद्योगिक सम्बन्धों के परिणाम स्वरूप श्रमिकों की आय में वृद्धि होती है, उनके कार्य दशाओं में सुधार होता है। जिससे श्रमिकों की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। मजदूरी में वृद्धि एवं लाभो में सहभागिता के फलस्वरूप श्रमिकों के जीवन स्तर में वृद्धि हो जाती है जिसमें श्रमिक अपने परिवारों को उचित शिक्षा व्यवस्था व अन्य कार्य करने में सफल होते हैं।
जब परिवार शिक्षित होता है तो परिवार नियोजन की शिक्षा के फलस्वरूप श्रमिकों के परिवार का आकार छोटा हो जाता है। जब परिवार समिति होगा, तब आवश्यकताएँ, भी सीमित होगी और आय के अनुपात में जीवन स्तर बढ़ सकेगा। एक शिक्षित समूह अच्छा उत्पादक और इच्छा उपभोक्ता बन जाता है। जिससे समाजिक कल्याण एवं जीवन स्तर ऊँचा उठता है। श्रमिकों के असन्तोष को दूर करने की लिए श्रम कल्याण और सामाजिक सुरक्षा एक उपकरण है।
औद्योगिक सम्बन्ध व्यापार भी अपना प्रभाव डालता है। हमारे देश में निर्यात की अत्यन्त आवश्यकता है। व्यापार सन्तुलन की प्रतिकूलता को दूर करने के लिए नए बाजारों की खोज, विकास परियोजनाओं के लिए विदेशों से माल मंगवाने की आवश्यकता तथा उसके भुगतान में माल के निर्यात को बढ़ाया देना आवश्यक है। व्यापार असन्तुलन की मुख्य समस्या अच्छा निर्यात न हो पाना है। विदेशों से मशीनरी संयन्त्र व दुर्लभ कच्चे माल मँगा लिया जाता है जिसका भुगतान वस्तुओं के निर्यात द्वारा ही सम्भव है जो कि औद्योगिक सम्बन्ध पर निर्भर करता है। अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध होने पर विदेशी सहायता की निर्भरता से मुक्ति दिलायी जा सकती है। श्रमिकों की कार्य की दशाओं में सुधार न होने तथा उनकी असन्तुष्टता के कारण औद्योगिक विवाद जन्म लेते है। जिनसे कम उत्पादन, ऊँची लागत, घटिया किस्म का माल ही तैयार होता है, जो निर्यात व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
राष्ट्रीय आर्थिक विकास से आशय केवल जनसंख्या के आकार से ही नहींहै वरन् जनसंख्या की कार्य क्षमता, संरचना वृद्धि पर साक्षरता दर आदि सभी बातें सम्मिलित की जाती है। यदि भौतिक एवं प्राकृतिक साधन भरपूर मात्रा में हो परन्तु मानवीय साधन निर्बल हो तो आर्थिक विकास की गति अत्यन्त धीमी होती है। इसके विपरीत यदि मानवीय तत्वस बल तेजस्वी है तो वह अपने परिश्रम एवं उत्साह के बल पर अपने देश को उन्नति के शिखर पर पहुँचा देता है। प्रो0 रिचार्ड टी0 गिल के अनुसार ’’आर्थिकविकास एक यान्त्रिक प्रक्रिया नहीं है। अन्तिम रूप से यह एक मानवीय उपक्रम है तथा अन्य मानवीय उपक्रमों के समान इसका परिणाम अन्तिम रूप से इसको संचालित करने वाले मनुष्यों की कुशलता, गुण और प्रवृत्तियों पर निर्भर करता है।’’ अतः आर्थिक विकास में औद्योगिक सम्बन्ध को उपयोगी बनाने के लिए जनसंख्या वृद्धि की दर को नियन्त्रित हुए श्रमिक शक्ति को शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया जाए, स्वास्थ्य स्तर तथा कार्य की दशाओं में सुधार किया जाय तथा उनके दृष्टि कोण के गतिशील बनाया जाय इससे श्रमिकों की कार्य क्षमता व उत्पादकता बढ़ेगी। औद्योगिक सम्बन्धों के मधुर होने पर हड़ताल एवं तालाबन्दी तथा अन्य विवादों से छुटकारा मिलेगा, जिससे औद्योगिक शान्ति स्थापित होगी। परिणाम स्वरूप् आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध का राष्ट्रीय आय पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है जो कि देश की आर्थिक प्रगति का मापदण्ड है। राष्ट्रीय आय की मात्रा देश की आर्थिक विकास पर निर्भर करती है। यदि किसी देश की राष्ट्रीय आय ऊँची होगी तो उस देश की प्रति व्यक्ति आय की दर भी ऊँची होगी। प्रति व्यक्ति आय के विश्लेषण से अर्थ व्यवस्था में विभिन्न उत्पादन कार्यों, उद्योग कृषि आयात एवं निर्यात आदि का तुलनात्मक अध्ययन करने में मदद मिलती है। राष्ट्रीय आय, एवं प्रति व्यक्ति आय के कम होने के विभिन्न कारणों में औद्योगिक सम्बन्ध का अच्छा दन होना एक महत्वपूर्ण कारण है। जिससे प्रति व्यक्ति आय तथा राष्ट्रीय आय की दर निम्न हो जाती है। अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों की स्थापना से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है और देश के विकास में बढ़ोतरी होती है। मधुर औद्योगिक सम्बन्धों का उद्देश्य उत्पादन बढ़ाना, श्रमिकों तथा प्रबन्धकों के हिता एवं अधिकारों की रक्षा करना तथा कर्मचारी एवं प्रबन्धक के मध्य अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना है। किसी देश में औद्योगिक सम्बन्धों की व्यवस्था वहाँ की राजनैतिक सरकार के स्वरूप पर आधारित होती है। औद्योगिक संगठनों के उद्देश्य आर्थिक तथा राजनीतिक कारणों से प्रभावित होते है।’’
-किरकाल्डी के अनुसार
औद्योगिक सम्बन्धों का प्रभाव सामाजिक कल्याण एवं जीवन स्तर पर भी पड़ता है। अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध के परिणाम स्वरूप् श्रमिक की मजदूरी में वृद्धि होती है, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार होता है, साथ-साथ समाजिक कल्याण में वृद्धि होती है। मधुर औद्योगिक सम्बन्ध के अन्तर्गत श्रमिकों को परिवार-नियोजन की शिक्षा प्रदान की जाती है जिससे कर्मचारियों का परिवार छोटा हो जाता है और उनकी आवश्यकताओं पर कम व्यय होने लगता है। प्राप्त बचत से वे अपने सामाजिक स्तर पर अत्यधिक सुधार कर सकते है। औद्योगिक शान्ति के फलस्वरूप उत्पादन अधिक एव ंउच्च श्रेणी का होने से लागत में कमी हुई है। जिससे उपभोक्ताओं को उच्च श्रेणी की वस्तुएँ कम मूल्य पर उपलब्ध हो रही है। इसके साथ-साथ श्रमिकों के सामाजिक वातावरण में मधुरता बनाने में सहायता मिलती है।
औद्योगिक सम्बन्ध का मशीनों के प्रयोग पर भी अच्छा प्रभाव पड़ा है। औद्योगिक सम्बन्ध में प्रशिक्षण एवं पदोन्नति की क्रियाएँ की जाती है। तकनीकों एवं विधियो ंमे ंलगातार परिवर्तन के फलस्वरूप कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना भी अत्यन्त आवश्यक है। उचित प्रशिक्षण एवं जानकारी होने पर कर्मचारी मशीनों का प्रयोग अच्छे ढंग से करते हैं, जिससे टूटने-फूटने व मशीन के खराब होने की सम्भावना कम हो जाती है। अपव्यय तथा टूट-फूट नहीं होने के कारण रख-रखावपर खर्चे कम होते हैं, जिससे संस्थान के लाभ बढ़ जाते हैं।
अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि औद्योगिक सम्बन्ध का भारतीय अर्थ व्यवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध से श्रमिक और नियोक्ता के बीच तनाव में कमी होती है, जिससे श्रमिकों की आय नियोक्ता की आय, प्रति व्यक्ति आय व राष्ट्र की आय में वृद्धि होती है व देश का विकास सम्भव होती है।
सन्दर्भ ग्रन्थ:
1- रिपोर्ट आॅफ दि राॅयल कमीशन, पेज-161,
2- रिपोर्ट आॅफ दि लेबर इनवेस्टीगेशन कमेटी, पेज-345,
3- श्री एन0एम0 जोशी, ट्रेड यूनियन मूवमेन्ट इन इण्डिया, पेज-26,
4- आई0एल0वो0 रिपोर्ट आॅन सेकेन्ड एशियन कान्फ्रेंस 1950, पेज-3