डा0 शिवकान्त यादव1 एवं गीता2
1. एसो0 प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग
(डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅ0, बुलन्दशहर)
2. शोधार्थिनी राजनीति विज्ञान विभाग,
(डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅ0, बुलन्दशहर)
पुलिस शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के च्वसपबम शब्द से हुई हैं। च्वसपबम की शुद्ध हिन्दी आरक्षी अथवा आरक्षक है। यह एक सुरक्षा बल होता है, जिसका उपयोग किसी भी देश के अन्दरूनी नागरिक सुरक्षा के लिए ठीक उसी तरह से किया जाता है जिस प्रकार किसी देश की बाहरी अनैतिक गतिविधियों से रक्षा के लिए सेना का उपयोग किया जाता हैं।1 पुलिस शब्द की उत्पत्ति के कई स्रोत हैं। ‘ग्रीक’ भाषा के च्वसपजमपं का अर्थ नागरिकता या राज्य या सरकार के प्रशासन से सम्बन्धित रहा है तो लैटिन भाषा के मूल शब्द च्वसपजमपं का अर्थ भी राज्य या प्रशासन या सभ्यता से जुड़ा रहा है। इन्हीं से मिलता जुलता शब्द फ्रेंच भाषा का च्वसपे है, जो नगर का अर्थ देता है। ऐसा माना जाता है कि ग्रीक शब्द च्वसपजमपं से ही कालान्तर में च्वसपजल (शासन पद्धति) च्वसपबल (नीति) तथा च्वसपबम शब्द बने हैं। स्पेनिश शब्द च्वसपबम भी इन्हीं सन्दर्र्भो में प्रयुक्त हुआ है।2 शाँति-व्यवस्था बनाए रखने एवं शासकीय नीतियों को क्रियावित करने के लिए पुलिस जैसी व्यवस्था की अत्यन्त आवश्यकता होती है। सुप्रसिद्ध चिन्तक, ‘जर्मी टाइलर’ के शब्दों में, यदि मानव में तर्क बुद्धि न होती और उस पर एक उच्चतर शक्ति न होती तो भेड़ियों का झुण्ड मनुष्यों की तुलना में अधिक शान्त और एकमत होता।3 आदि काल से लेकर आधुनिक सभ्य समाज तक पहुँचने में मनुष्य अनेकों सामाजिक समूहों-गतिविधियों में बँधता चला गया। एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़, अन्य को नियन्त्रित करने की मंशा आदि से शक्ति संघर्ष प्रारम्भ होता हैं, जिसे नियंन्त्रित करने के लिए पुलिस जैसे बल की नितान्त आवश्यकता होती हैं। किन्तु समाज में एक दूसरा ग्रुप भी रहता है, जिनमें वृद्ध, गरीब, महिलाएं, बच्चे, दिव्यांग एवं अन्य असहाय व्यक्ति शामिल होते हैं। इसी कारण पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारियों में केवल कानून-व्यवस्था को बनाए रखना ही शामिल नहीं होता, बल्कि समाज के पीड़ित वर्ग की जान-माल की रक्षा का दायित्व भी खाकी के कंधों पर होता है। यहाँ यह भी ध्यान रखने योग्य तथ्य है, कि यह सब पुलिस अकेले नहीं कर सकती। जनता के सहयोग की अपेक्षा होती है। अतः आवश्यक है कि जनता व पुलिस दोनों के सम्बन्ध पारस्परिक रूप से मधुर हो।
कोरोना का जन्म एवं फैलावः-
30 जनवरी 2020 को भारत के केरल राजय में एक नई बीमारी का जन्म हुआ, जिसे ‘कोविड-19’ कहा गया। कोविड-19 कोरोना नामक वायरस से उत्पन्न हुई संक्रामक महामारी है। कोरोना विषाणु की दस्तक वुहान वि0वि0 में पढ़ने वाले एक छात्र के आगमन से हुई। तत्पश्चात देखते ही देखते 22 मार्च 2020 तक कोविड से ग्रसित मरीजों की संख्या-500 तक पहुँच गयी।
महामारी के वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए प्रधानमंत्री श्री, ‘नरेन्द्र मोदी’ जी ने तुरन्त देशवासियों से अपने घरों में रहने एवं सामाजिक दूरी का पालन करने की अपील की। दिनांक 19 मार्च से 22 मार्च की सुबह 7 से 9 बजे तक जनता कर्यू की घोषणा की गयी। प्रधानमंत्री मोदी जी का कहना था। जनता र्कयू कोविड-19 के खिलाफ एक लंबी लड़ाई की शुरूआत हैं। ‘‘कोरोना की रोकथाम के लिए देशव्यापी लाॅकडाउन चार चरणों में निम्नवत लगाया गयाः-
प्रथम चरणः- 25 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 (21 दिन)
द्वितीय चरणः- 15 अप्रैल 2020 से 3 मई 2020 (19 दिन)
तृतीय चरणः- 4 मई 2020 से 17 मई 2020 (14 दिन)
चतुर्थ चरणः- 18 मई 2020 से 31 मई 2020 (14 दिन)
पाँचवा चरणः- 1 जून 2020 से 30 जून 2020 (30 दिन)4
लाॅकडाउन के दौरान सभी आवश्यक सेवाओं जैसे-चिकित्सा, पुलिस, मीड़िया, होम डिलीवरी, पेशेवर, तथा अग्निशामक आदि को छोड़कर अन्य लोगों से घरों में रहने की अपील की गयी। आम जनता के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी कुठाराघात होना प्रारम्भ हो गया। समस्त परिवहन सेवाओं – सड़क, वायु, रेल आदि को निलंबित किया गया। शैक्षणिक संस्थान, औद्यौगिक प्रतिष्ठानों, आतिथ्य सेवाओं को भी बंद रखने का ऐलान किया गया। लाॅकडाउन का पालन न करने वालो के लिए सजा का प्रावधान किया गया तथा चालान भी काटा गया।
देश की अर्थव्यवस्था को पट्टी पर पुनः लाने हेतु अनलाॅक की प्रकिया विभिन्न चरणों में प्रारम्भ की गयी। पहले चरण में 8 जून के बाद से धर्मस्थलों, होटलों, रेस्त्रांत, शाॅपिंग माॅल को खोलने की अनुमति सशर्त दी गयी। दूसरे चरण में, स्कूलों, काॅलेजों को, राज्य तथा केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों से विमर्श के बाद जुलाई माह में खोलने की अनुमति दी गयी तदुपरान्त तृतीय चरण में, परिस्थितियों के विश्लेषण के बाद अन्र्तराष्ट्रीय विमान यात्रा, मेट्रो सेवाओं, सिनेमा हाॅल, जिम, स्वीनिंग पुल और मनोरंजन पार्क आदि को खोलने की व्यवस्था की गयी। ऐसा प्रतीत होने लगा कि देश में कोरोना विषाणु की चेन टूट रही है, किन्तु अप्रैल 2021 के आते-आते कोरोना की संक्रमण दर में पुनः इजाफा होना प्रारम्भ हो गया। इसे कोरोना की ‘दूसरी लहर’ का नाम दिया गया। कोरोना के नये वोरियंट डेल्टा प्लस’ ने लोगों को सर्वाधिक शिकार बनाया। अस्पतालों से लेकर श्मशान घाट तक जगह खाली नहीं रह गयी। जुलाई 2021 तक कोरोना का कहर कुछ कम हुआ और पुनः देश अनलाॅक की ओर चल पड़ा जनता से सावधानी बरतने की अपील की जा रही है। खेद का विषय है कि 2 दिसम्बर 2021 को पुनः कोरोना के एक नए वेरियंट ‘आॅमिक्रोन’ की दस्तक हुई, और देखते ही देखते यह तेजी से फैलने लगा, जिसे कोरोना की ‘तीसरी लहर’ कहा जा रहा है।
पुलिस प्रशासन का कोरोना वाॅरियर्स अवतारः-
वैसे तो पुलिस का उपनाम ‘खाकी’ माना जाता है और खाकी का अर्थ, कठोरता व सख्ती के साथ कानूनों का पालन करवाना, कानून का उल्लंघन करने वालों को सजा दिलवाना आदि के सन्दर्भ में परिभाषित किया जाता है। उ0प्र0 के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के शब्दों, ‘‘सुशासन की ठोस नींव कानून के राज पर ही स्थापित हो सकती है। अगर कानून का राज नहीं है, तो सुशासन की परिकल्पना ही बेमानी है।’’5 किन्तु कोरोना के आक्रमण ने खाकी के इस चेहरे को परिवर्तित कर उसका मानवीय चेहरा दिखाया है। कोरोना संक्रमण के दौरान पुलिस के हाथो में जहाँ एक ओर संक्रमण फैलने से रोकने की जिम्मेदारी थी, वहीं दूसरी ओर लाॅकडाउन में फसें व्यक्तियों तक समस्त आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी भी आ गयी। यह ऐसा समय था, जब लोगों से दो गज की दूरी का पालन करने की सलाह दी जा रही थी, किन्तु वहीं खाकी सड़कांे पर उतरकर ‘कोरोना योद्धा’ ;ॅवततपवतेद्ध बनकर अग्रिम पंक्ति में खड़ी नजर आयी। पुलिसकर्मियों की इस ‘कोरोना वारियर्स’ अवतार को उसकी परम्परागत शैली के साथ ही साथ आधुनिक परिवर्तित कार्यप्रणाली के रूप में भी निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता हैं।
अ- परम्परागत शैली में कोरोना वाॅरियर्स (पुलिसकर्मी )
(प) कोविड प्रोटोकोल का कड़ाई से अनुपालनः-
प्रोटोकोल शब्द का प्रयोग प्रायः औपचारिक कार्यक्रमों के लिए किया जाता हैं। कोविड-19 के संक्रामक एवं भयावह परिणाम को देखते हुए भारत सरकार ने कोरोना से जुड़े प्रोटोकोल का कड़ाई से पालन कराने का आदेश दिया। जिसे पुलिस प्रशासन ने पूरे तन-मन से निभाया। भीड़ वाली जगहों पर एकत्रित न होना, सामाजिक दूरी बनाए रखना, नाक-मुँह को ढ़कते हुए मास्क का प्रयोग करना, एल्कोहल युक्त द्रव से हाथ धोना, गलियों-सड़को पर बेवजह न घूमना, इन सभी का पालन कराने की जिम्मेदारी पुलिस पर आ गयी। चिलचिलाती धूप की परवाह किये बगैर खाकी चैराहों पर ड्यूटी के लिए डटी रही। हाथ में माइक-साउण्ड लिए बडे़-बड़े अधिकारी जनता से घरों में रहने की अपील करते नजर आए। सरकार द्वारा घोषित कोरोना रोधी त्रिसूत्रीय मंत्र-ट्रेसिंग, ट्रैकिंग, ट्रीटमेण्ट, का क्रियान्वयन भी बिना पुलिस के सहयोग के पूरा कर पाना असम्भव था। जहाँ आम लोग कोरोना संक्रमित अपने ही परिचितों से मुँह फेर रहे थे, उन्हें अकेला छोड़ रहे थे, वहाँ पुलिस ने कोरोना वाॅरियर्स बन अपने फर्ज को बखूबी व बेखौफ निभाया। कोरोना का उल्लंघन करने वालों पर खाकी ने सख्ती दिखाते हुए बेहिचक चालान काटा। दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के स्पेशल कमिश्नर ‘ताज हसन’ के अनुसार 2019 में जहाँ अलग-अलग ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन में कुल 1,05,80,249 चालान काटे गये थे, वहीं पिछले साल कुल 1,38,02975 चालान पुलिस द्वारा काटे गये।6 ठीक इसी प्रकार यूपी पुलिस मुख्यालय की ओर से जारी आँकड़ों के मुताबिक लाॅकडाउन उल्लंघन को लेकर 53 लाख 67 ह0 238 चालान किए गए और इन चालानों से 85 करोड़ 57 लाख 17 हजार 229 रू वसूले गए हैं।7
(पप) ‘धारा-144’ का सफल प्रयोगः-
धारा-144 शाँति कायम रखने अथवा किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए लगायी जाती है। इसके अतिरिक्त सुरक्षा, स्वास्थ्य, सम्बन्धित खतरे या दंगे की आशंका होने पर भी इसका प्रयोग किया जाता है। धारा-144 लागू होने पर सम्बन्धित इलाके में पाँच या उससे अधिक लोग एक साथ जमा नहीं हो सकते। इस ब्रहमास्त्र का प्रयोग भी पुलिस के द्वारा अपने कत्र्तव्य पूर्ति के लिए बेहिचक सम्बन्धित जिलों के जिलाधिकारियों के आदेशानुसार कड़ाई से पालन किया। पुलिस द्वारा इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि कहीं भी 5 से अधिक व्यक्ति, किसी-प्रकार जुलूस, हड़ताल आदि न कर सकें। विभिन्न आयोजनों पर लाउडस्पीकर की ध्वनि तीव्रता के सम्बन्ध में ध्वनि प्रदूषण (विनिमय व नियंत्रण) नियम 2000 का कड़ाई से पालन कराया गया। यह भूमिका भी पुलिस के लिए आसान नहीं थी। कारण लोगों की स्वतन्त्रता बाधित हो रही थी। इस कारण हमारे कोरोना वाॅरियस को लोगों के अनेको दुव्र्यवहार को भी झेलना पड़ा। इस सन्दर्भ में स्मरण आता हैं दिल्ली की निजामुद्दीन स्थिति तब्लीग जमात के मरकज का। जिसमें चीन समेत 67 देशों से करीब 4500-9000 विदेशी एक साथ शामिल हुए।8 पुलिस के लिए यह दोहरी चुनौती के समान था। एक और जहाँ जमातियों को कोविड-प्रोटोकोल का पाठ पढ़ाना, उनकी टेस्टिंग करवाकर अस्पतालों में भर्ती करवाना, वहीं दूसरी ओर विभिन्न राज्यों में हुये जमातियों की खोज कराना टेड़ी खीर बना हुआ था। किन्तु हमारे कोरोना वाॅरियर्स ने यह सब बड़ी शाँति के साथ कर दिखाया।
(पपप) कोविड-19 प्रबन्धन में सुव्यवस्थित ‘सूचना व संचार केन्द्रों’ का संचालनः-
देश में अचानक आयी आपदा में प्रबन्धन के नवीन उपायों पर विचार किया जाने लगा। पुलिस कोरोना वाॅरियर्स के समक्ष कई चुनौतियाँ अचानक एवं एक साथ उपस्थित हो गयी। एक ओर ट्रेसिंग ट्रैकिंग व टीटमेंट की नीति को अमली जामा पहनाना था, वहीं दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित तरीके से उनके गन्तत्व तक पहुँचाने की जिम्मेदारी भी थी। एक ओर भूखे राहगीरों को भोजन कराने का दायित्व तो दूसरी ओर कोरोना संक्रमितों को अस्पताल तक पहुँचाना और क्वांरटीन सेंटरों का संचालन करना। इन सभी के लिए पुलिस द्वारा विभिन्न सूचना एंव संचार, नियन्त्रण केन्द्र बनाए गये तथा व्यवस्था की गयी कि पीड़ित द्वारा मात्र एक बटन दबाने भर से जरूरतमंद तक सभी सामग्री मुहैया करा दी जा सकें। पुलिस नियंत्रण कक्ष में तैनात पुलिसकर्मियों ने बिना रूके कई-2 घण्टों तक आम जनता की महती सेवा की है। संचार तकनीक का प्रयोग करते हुए देश भर में कोरोना के प्रति जागरूकता अभियान चलाया गया। जगह-जगह चैराहों पर लाउडस्पीकर लगाकर कोविड प्रोटोकोल का पालन करने की अपील की गयी। अनेक प्रकार के हेल्पलाइन नं0 जनता के लिए जारी किए गये, यथाः-
– राष्ट्रीय हेल्पलाइन नं0- 9भ्प्.23978046
– टोल फ्री नं0- 1075 – वायरस से सम्बन्धित किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता हेतु।
– डल ळवअजण् ब्वतवदं भ्मसचकमेाण् (व्हाट्रसएप चैटबाॅट) – कोरोना सम्बन्धी अफवाहों पर रोकथाम हेतु केन्द्र सरकार ने इसे लाॅन्च किया जो महामारी से सम्बन्धित अफवाहों को दूर कर सही जानकारी प्रदान करता है।
– हेल्पलाईन ईमेल आइडी – दमवअ2019/हवअण्पद इसके द्वारा सरकार को आवश्यक सलाह व सुझाव दिये जा सकते हैं।
– हेल्पलाइन नं0- 08046110007 – यह जनता को मनोवैज्ञानिक सलाह देने के लिए लाँच किया गया।9
नियंत्रण कक्ष का प्रयोग कोविड टीकाकरण के प्रति लोगों को प्रेरित करने के लिए भी किया गया। वस्तुतः कोविड़ पर नियन्त्रण पाना और जनता का टीकाकरण करवाना दोनों ही विस्तृत चुनौती थी, किन्तु पुलिस ने कोरोना योद्धा बनकर अनेकों रणनीति अपनाकर अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया है। इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है, ‘सोनभ्रद’ पुलिस की टैगलाइन – ‘‘खुद रहे सुरक्षित दूसरों को रखे सुरक्षित।’’10 इसी प्रकार यू0पी0 के अन्य जिले ‘अमरोहा’ में भी कोरोना से बचाव के मद्देनजर जिले में इंटीग्रेटेड कंट्रोल रूम संचालित किया गया। जिलाधिकारी श्री ‘उमेश मिश्र’ लोगों से कंट्रोल रूम नंम्बरों पर अपनी कोरोना सम्बन्धी शिकायतों को दर्ज कराने की अपील करते नजर आए।11
(पअ) ‘क्वारन्टीन केन्द्रों’ का सफल संचालनः-
24 मार्च 2020 को लाॅकडाउन लगते ही, अनेकों, कारखाने कंम्पनियां बंद कर दी गयी। आजीविका पर संकट आता देख लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर तथा कामगार अपने घरों की ओर लौटने लगे। किन्तु चिंता की बात यह थी, कि इतने व्यापक स्तर पर फैले कोरोना संक्रमण से कहीं यह प्रवासी मजदूर अपने घरवालों, रिश्तेदारों को संक्रमिक न कर दे। ऐसे में विभिन्न राज्यों की सरकारों ने व्यवस्था की क्वारन्टीन संेटरों की। इन सेंटरों में रूकने की अवधि-14 दिन की रखी गयी। इन 14 दिनों में कामगीरों के रहने-खाने आदि के जीवनयापन का प्रबन्ध करने की जिम्मेदारी पुलिस के कंधों पर छोड़ दी गयी। इतनी जल्दी तथा बड़ी संख्या में इसका प्रबन्ध करना एक बड़ी चुनौती थी, किन्तु हमारे पुलिसकर्मियों ने कोरोना वाॅरियर्स बन इस चुनौती का भी भली भाँति सामना किया। क्वारन्टीन सेंटरों के निर्माण करने तथा क्वारन्टीन हुए व्यक्तियों के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं पहुँचाने में कई पुलिसकर्मी भी संक्रमण की चपेट में आ गये, किन्तु देश-सेवा से ओत-प्रोत पुलिस ने हार नहीं मानी। महिला पुलिस के लिए तो यह एक और बड़ी चुनौती बन गयी। जहाँ एक तरफ उन्हें अपना फर्ज निभाना था, वही ड्यूटी खत्म होने पर पत्नी व माँ की भूमिका निभाते हुए अपने परिवार को संक्रमण से भी बचाना था। 14 दिन तक क्वारण्टीन व्यक्तियों को एक ही जगह रखना आसान नहीं था। लोग क्वारण्टीन होने के नाम से ही भाग निकलते थे। ऐसे में शारीरिक क्षमता के साथ-साथ मानसिक क्षमता का प्रयोग भी करना पड़ता है। लोगों को कोरोना संक्रमण की गम्भीरता समझाना तथा उनके स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने की पूरी जिम्मेदारी खाकी ने पूर्ण निष्ठा से निभायी है।
(अ) समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं ‘बैड, आॅक्सीजन व एंबुलेंस’ की आपूर्तिः-
कोरोना काल में लोग घरों में ही आइसोलेट (संक्रमित व्यक्ति का पृथक होना) हो गए। कुछ अन्य बीमारियों से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए भी यह आसान नहीं था कि वे घर से बाहर जाकर दवाईयाँ खरीद सकें अथवा आॅक्सीजन सिलेण्डर प्राप्त कर सकें। ऐसे में सामने आए हमारे पुलिस कोरोना वाॅरियर्स। कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के दौरान पुलिस लगातार मददगार बनी रही। अनेकों उदाहरण अखबारों की सुर्खियां बने रहे। यूपी में बागपत (बडौत) में 94 वर्ष के ‘किशन प्रकाश’ जब अपने ही घर पर आइसोलेट थे, तब अचानक उन्हें आॅक्सीजन की जरूरत पड़ी। ऐसे में सूचना मिलते ही सम्बन्धित जिले के जिलाधिकारी श्री ‘अभिषेक सिंह’ तथा पुलिस अधीक्षक श्री ‘प्रसाद सिंह’ ने न केवल वाहन और चालक को ढूँढ निकाला, बल्कि सिंगरौली स्थित आपूर्ति कर्ता से आॅक्सजीन सिलेण्डर लोड करवा कर अस्पताल तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।12 विपदा की इस घड़ी में अनेकों संक्रमित स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए पुलिस से सम्पर्क करते नजर आए। पुलिस ने भी उनकी गुहार को नजरन्दाज नहीं किया। ऐसे में याद आता है उदाहरण-मथुरा में तैनात दरोगा ‘नीटू सिंह’ का, जो 30 अप्रैल 2021 को आगरा से आॅक्सीजन टैंक लेकर नोएडा के लिए निकले। वहाँ गैस वितरण के बाद एयरलिट हुए आॅक्सीजन गैस टैंकरो के साथ हवाई जहाज से राँची पहुँचे। राँची से सड़क मार्ग से टैंक 150 किमी0 का सफर तय करके जमशेदपुर पहुँचे। वहाँ से आॅक्सीजन (व्2) भरवाकर सड़क मार्ग से ही टैंकर लेकर मथुरा के लिए वापस लौटे। इस 62 घंटे के सफर के दौरान ‘नीटू सिंह’ बमुश्किल 4/5 घंटे ही सो सके।13 और यह सब अपने लिए नहीं, बल्कि अस्पतालों में जिन्दगी मौत से जूझ रहे कोरोना संक्रमितों के जीवन को बचाने के लिए किया गया।
अपरिवर्तित कार्यशैली में कोरोना वाॅरियर्स (पुलिसकर्मी)
कोरोना जैसी विश्वव्यापी संक्रमित बीमारी ने न केवल लाखों लोगों को काल का ग्रास बनाया, बल्कि अनेकों अमिट यादें पीछे छोड़ चुका है, जिन्हें भुलाना आसान नहीं होगा। अनेकों कुदृश्य व घटनाएं लोक-चेतना में स्थायी रूप से बस चुके हैं। प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए मारा-मारी, चिलचिलाती धूप में सकैड़ों किमी पैदल चलना, अस्पतालों में बेड व आॅक्सीजन की कमी से काल का ग्रास बनते लोग आदि ने जनमानस को क्षुब्ध कर दिया है। किन्तु इन सबसे बीच मानवता के अनेकों उदाहरण भी प्रस्तुत हुए, जिन्होंने इस मानसिक तनाव के मध्य सुखद एहसास कराया। प्रधानमंत्री श्री ‘नरेन्द्र मोदी’ जी के शब्दों में, ‘‘हमारे पुलिसकर्मियों ने देश की सुरक्षा, कानून-व्यवस्था बनाए रखने और आतंकवाद से लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति भी दी। वे कई दिनों तक घर नहीं जा पाते, त्यौहारों पर भी नहीं जा पाते, लेकिन जब पुलिस की छवि की बात आती है तो लोगों की धारणा अलग ही होती है’’।14 पुलिस प्रशासन ने महामारी के दौर में अपनी परम्परागत शैली में परिवर्तन करते हुए मानवता के श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किए। पुलिस की सख्त व नियन्त्रणकारी छवि के साथ मानवीय व सेवाभाव से जुड़ी तस्वीरंे भी हमारे विश्लेषण का हिस्सा होनी चाहिए।
(प्) खाकी ‘फरिश्ते’ के रूप मेंः-
यूपी पुलिस ट्विटर हैंडल की तरफ से एक वीडियो पेश किया गया, जिसमें ऐसे पुलिसकर्मियों को ‘एंजिल्स इन खाकी’ का दर्जा दिया गया है और सैल्यूट किया गया है। वीडियो ंजारी कर बताया गया है कि कोविड में जहाँ लोग इतने भयभीत हैं, कि अपनों का ही सहारा बनने से हिचक रहे है, वहीं खाकी उनके लिए एक ‘फरिश्ते’ की तरह आगे आयी।15 खाकी की इस परिवर्तित भूमिका को कुछ उदाहरणों से भली प्रकार समझा जा सकता है।
(प) खाद्य आपूर्ति कर्ता के रूप मेंः-
कोरोना काल में 24 घंण्टे सड़कों पर अडिग रहकर, अपनी जान की परवाह किये बगैर पुलिस ने अनकों राहगीरों को भोजन उपलब्ध करवाया। यदि सरकार से पैसा आने में देरी हुई तो स्वयं स्टाफ से चन्दा इकट्ठा कर बिस्कुट के पैकेट बाँटे गये। इतना ही नहीं घरो में कैद लोगों ने जहाँ भी पुलिस को आवाज लगायी, खाकी स्वयं उसके घर राशन लेकर उपस्थित हुई।
(पप) बुजुर्गो के लिए मददगारः-
भारत के राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन और दो गज की दूरी वाले नियमों ने बुजुर्गांे के साथ सर्वाधिक परेशानी खड़ी कर दी थी। बुर्जुग लोग घरों में कैद एकान्त व असुरक्षित महसूस कर रहे थे। वहीं उनके प्रियजन भी अपने वृद्धजनों से दूर होने के कारण चिंतित थे, कि कैसे वे अकेले अपना जीवन जी रहे होंगे। कुछ कोरोना सक्रमित बुजुर्गों से अपनों ने भी दूरियां बना ली थी। ऐसे में इन बीमार बुजर्गों के लिए खाकी मददगार बनकर आयी। घरों में राशन-दवाईयाँ उपलब्ध कराने से लेकर, स्ट्रेचर पर उठाकर अस्पताल पहुँचाने तक, प्रत्येक दायित्व पुलिस ने सम्पूर्ण मानवता के साथ उठाया। इसका एक उदाहरण है ‘राजस्थान के उदयपुर जिले का। यहाँ 70 वर्षीय, ‘शांतिलाल निमावत’ की तबियत खराब थी, किन्तु किसी पड़ौसी ने मदद नहीं की, ऐसे में हाथीपोल थाने में तैनात एसआई, ‘हिम्मत सिंह ने स्वयं उन बुर्जुग को कपडे़ पहनाकर स्ट्रेचर पर लिटाया और एंबुलेंस से अस्पताल पहुँचाया।16 इसके जबाव में हिम्मत सिंह का कहना था, कि खाकी को तो काम ही सेवा हैं।
(पपप) आखिरी वक्त में सहाराः-
कोरोना जैसी संक्रामक बीमारी ने अपनों को ही पराया कर दिया। न परिजन अस्पताल में दिखायी देते और न शमशानो में। लोग अपने परिचितों की लाशों को लावारिस छोड़कर भाग उठते थें। ऐसे में खाकी ने इस स्तर पर भी मानवता का धर्म निभाया। अनगिनत लावारिस लाशों को पुलिस ने अपने कंधों पर उठाकर शमशान तक पहुँचाया। इतना ही नहीं जिन परिवारीजनों ने आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए पैसे का रोना रोया, उनके शवों के अंतिम संस्कार के लिए पुलिस ने अपने पास से आर्थिक सहायता भी दी। समाचार पत्र, संचार संदेश ऐसी मिसालों से भरे पड़े हैं।
(पअ) अनाथांे के नाथः-
कोरोना त्रासदी ने बच्चों पर भी सितम ढाया है। अनेकों ऐसे परिवार थे, जहाँ पति-पत्नी दोनों कोरोना संक्रमित होकर काल के गाल में समा गये। बच्चे अनाथ हो गये। ऐसे में यह भी डर बना रहता है कि बच्चे कहीं अवसाद का शिकार न हो जाएं, कहीं गरीबी, मानव तस्करी जैसे अमानवीय कार्यों में संलग्न न हो जाएं। ऐसी स्थिति में खाकी अनाथ बच्चों का सहारा बनी। ऐसे बच्चों को संरक्षा गृह में लाकर पूरी सरकारी सहायता प्रदान दी गयी।
(अ) रक्तदान कर्ता के रूप मेंः-
कोरोना की द्वितीय लहर लोगों पर कहर बनकर टूटी। कहीं आईसीयू, वैंटिलेटर, आॅक्सीजन आदि की कमी, तो कहीं रक्त का अभाव। पुलिस ने न केवल एक कदम आगे बढ़कर रक्तदान शिविरों का आयोजन कराया, बल्कि स्वयं पुलिस वाले भी रक्तदानकर्ताओं मंे शामिल हो गये। इसके लिए सुव्यवस्थित नियंत्रण कक्ष तथा टोल फ्री नं0 जारी किए गए। यही नहीं पुलिसकर्मियों के साथ उनके परिवारीजनों ने भी देश पर आयी इस संकट की घड़ी में उनका साथ दिया। ऐसे में उल्लखित है कानपुर नगर’ में पुलिस आयुक्त द्वारा आयोजित रक्तदान शिविर, जिसका स्लोगन था- ‘आइए नए रिश्ते बनाए, रक्तदान कर जिंदगी बचाए’।17
(प्प्) आपदा-प्रबन्ध हेतु खाकी के मानवीय प्रयोग
(प) धर्मगुरूओं के साथ स्वद्भावना बैठकः-
कोरोना संक्रमण के विस्फोट को रोकना पुलिस के लिए चुनौती थी, किन्तु जब यह धर्म से जुड़ गया तो स्थिति और विकट हो गयी। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव, ‘लव अग्रवाल’ जी ने बताया कि तब्लीगी जमात से सम्बन्धित मरीज देश के 23 राज्यों व केन्द्रशाति प्रदेेशों में पाये गये है। 14,378 पाॅजिटिव केसों में से 4,291 केस यानि 29.8 प्रतिशत निजामुद्दीन मरकज से ही सम्बन्धित थे।18 पुलिस पर आरोप लगाये गए कि वे मुस्लिम समुदाय का उत्पीड़न कर रही है। सामाजिक कार्यकर्ता, ‘अरूंधती राॅय’ ने तो इसे मुस्लिम नरंसहार की संज्ञा ही दे डाली,19 किन्तु हमारे कोरोना वाॅरियर्स ने इस स्थिति को बखूबी संभाला। सभी धर्मगुरूओं के साथ सद्भावना बैठक कर उनसे जमातियों व मुस्लिमों को समझाने की अपील की गयी। मौलवियों से अनुरोध किया गया कि वे मस्जिद में छुपे संक्रमितों को अस्पतालों में भर्ती होने की अपील करें, क्योंकि कोरोना जाति-धर्म देखकर नहीं आता।
(पप) स्वंय सेवी संस्थाओं के साथ सहभागिताः-
पुलिस बल के अतिरिक्त विभिन्न अन्य सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं ने कोरोना नियंत्रण व प्रबंधन में अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका अदा की। प्रवासी मजदूरों की समस्या से लेकर अस्पतालों, शमशान घाटों की समस्याओं को दूर करने के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा प्रयास किये गये। तमिलनाडू में ‘अम्मा कैंटीन’, कर्नाटक में- ‘इंदिरा कैण्टीन’, ओडिशा, छतीसगढ़ और झारखण्ड में ‘दाल-भात केन्द्र’ आदि को सफल बनाने में पुलिस की भी महती भूमिका रही। प्रशासन ने ई-काॅमर्स वेबसाइटों तथा विक्रेताओं के साथ बैठकंे की, ताकि लाॅकडाउन की अवधि के दौरान आवश्यक सामानों की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
(पपप) कोविड-19 के दौरान बाल संरक्षण वेबिनारः-
12 मार्च 2020 को यूनिसेफ के सहयोग से राष्ट्रीय पुलिस अकादमी ने कोरोनो काल में अनाथ हुए बच्चों के संरक्षण के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार के तहत श्री ‘‘अतुल करवाल (आई पीएस) निदेशक, राष्ट्रीय पुलिस अकादमी के द्वारा बाल संरक्षण के लिए एक केन्द्र की घोषणा की गयी। भारत में यूनिसेफ के सदस्य डाॅ0 ‘यास्मिन अली’ हम ने कहा, ‘‘पुलिस यूनिसेफ के बाल संरक्षण कार्यो में एक महत्वपूर्ण परिवार है। ये ऐसी किसी भी स्थिति में रेस्टपाँड करते हैं, जहाँ बच्चों पर संकट होता है। इसलिए बच्चों के प्रति उनकी संवेदनशीलता सभी मामलों में महत्वपूर्ण हैं’’20
(पअ) संचार-साधनांे का कलात्मक उपयोगः-
केवल शारीरिक उपस्थिति से ही नहीं, संचार साधनों के द्वारा भी पुलिस द्वारा कोरोना नियंत्रण का सफल प्रयास किया गया। सड़कों-चैराहों पर जगह-2 बैनर, होर्डिंग, लाउडस्पीकर लगाकर लोगों को जागरूक किया। स्लोगन, तख्ती व पंलेट्स लगाकर बाईक रैली कर कोरोना गाइडलाइन का शत प्रतिशत पालन सुनिश्चित करने का आह्वान करती नजर आयी खाकी। कोरोना नियंत्रण में खाकी ने सोशल मीडिया का भी बखूबी प्रयोग किया जिसमें हमें पुलिस साँस्कृतिक स्वरूप की झलक देखने को मिलती है। पुलिसकर्मियों ने कविता लिखकर, गाना गाकर आदि संगीतमय प्रस्तुति द्वारा कोरोना से बचाव के उपाय समझाये। लोगों का उत्साहवर्द्धन करने हेतु पुलिस वाले फिल्मी गाने गाते नजर आये। सचमुच सोचना भी कठिन है कि ऊपर से सख्त दिखने वाली खाकी दिल-दिमाग से कितनी रचनात्मक है?
(अ) दण्ड के नये मानकों का प्रयोगः-
अपनी परम्परागत छवि से हटकर हमारे कोरोना वाॅरियर्स ने दण्डित करने के नये-2 मानक स्थापित किये। लाठी-डण्डों से हटकर गाँधीगिरी द्वारा लोगांे से कोविड-19 के दिशा-निर्देशों का पालन करवाती नजर आयी खाकी। लाॅकडाॅउन का उल्लंघन करने वालों को कभी उठक बैठक लगवाकर, तो कभी फूल मालाएँ भेंटकर यमराज का डर दिखाया गया। चैराहों पर मास्क लगाकर लोगों को कोरोना के प्रति सचेत किया गया। इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है, तामिलनाडू पुलिस द्वारा किया गया प्रयोग, जिसमें बाइक सवार दो युवकों को एबुलेंस में बैठे व्यक्ति को कोरोना संक्रमित बताकर, उन्हें बार-बार अन्दर भेजा जा रहा था, ताकि वे डरे और आगे से बेवजह सड़कांे पर घूमने की गलती न करें।21
निष्कर्षः-
कोरोना काल की अविस्मृत घटनाओं ने यह तो सिद्ध कर दिया है कि आज हमारी पुलिस उस मानसिकता से प्रेरित नहीं है, जो ब्रिटिश काल में प्रचलित थी। जनता पर नियंत्रण बनाए रखना, उसे भयभीत किये रखना और उस पर शासन करना अब पुलिस के उद्देश्य नहीं रह गये हैं। अपनी परिवर्तित भूमिका में खाकी ने नियन्त्रणकारी की अपेक्षा सेवा कर्मी की भूमिका अपना ली है। वस्तुतः ‘पुलिस प्रशासन’ लोगों को सुरक्षा और शाँति प्रदान करने की कला और विज्ञान हैं, ताकि वे निडर होकर काम कर सकें और साथ ही देश में कानून व्यवस्था बनाए रख सकें।22 किन्तु फिर भी पुलिस और जनता के बीच वैसा जुड़ाव देखने को नहीं मिलता, जो एक प्रगतिशील, व्यवस्थित और अनुशासित समाज में होना चाहिए। जनता पुलिस के पास जाने से आज भी कतराती है और पुलिस पर रिश्वत, लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद, जैसे आरोप लगाती है। समय के साथ यह आवश्यक हो चला है कि पुलिस भी स्वंय पर लगे आरोपों का स्वयं ही निराकरकरण करें। यह सत्य है कि समाज व देश में कुछ असामाजिक तत्व विद्यमान होते हैं, जो कभी शाँति स्थापित नहीं होने देना चाहते। ‘नेशनल पुलिस कमीशन’ 1977-81 के अनुसार, ‘‘बढ़ती हुई हिंसा को देश में समकालीन कानून-व्यवस्था की स्थिति की सबसे परेशान करने वाली विशेषता के रूप में देखा जाता है। समाचार-पत्र अक्सर हिंसक घटनाओं के विवरण की रिपोर्ट करते हैं, जिसमें आन्दोलनकारियों के बड़े समूह शामिल होते हैं, जो असंतोष और हताशा के कुछ मुद्दों को व्यक्त करते हुए पुलिस के साथ संघर्ष करते हैं। ऐसी स्थितियों में व्यवस्था बहाल करने के लिए पुलिस कार्यवाही में अक्सर कुछ अवसरों पर आग्नेयास्त्रों सहित बल का उपयोग शामिल होता है जो बदले में होता हैं’’।23 ऐसे में पुलिस व जनता इन दोनों को ही अपनी जिम्मेदारी पहचाननी होगी, तभी वे एक-दूसरे के पूरक बन समाज को सुव्यवस्थित रख सकेंगे।
सन्दर्भ सूची
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(6) https://navbharattimes.indiatiomes.com/metro/delhi/other-news/delhi-traffic-police- cut-bumper-challan-in-corono-time-recovered-more than 124 crore rupees-fine-pine/amp.
(7) https://m.patrika.com/amp-news/lucknow-news/up-police-recovered-this-much- amount from chollan- in corona – period – 6834759
(8) https://en.m.wikipedia.org./wiki/2020-Tabligi-jannat-covid-19-hotspat-in Delhi.
(9) https://economictimy-indiatimes-com/hindi/business news/corona-virus-these-are-helpline-numbers-for-central-and-states/articleshow/75324370,
(10) https://www.live hindustan.com/uttat pradess./sonbhodr/story-corona-police-set up-control-room-alert-police-stations. 3098740-amp.
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(13) https://www.tvindia.com>India.
(14) nSfud tkxj.k] laLdj.k & dkuiqj nsgkr] 01 vxLr 2021]
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(16) https://www.bhaskar.com/amp/local/rajasthan/udapur/news/neighbor/made-destance-from-thesick-elderlydue-to-corona-so-police-became-helpfal-took-the-sick-eldery-on-a stretcher-on-the-hostpital- R8477362.htme.
(17) https://www.jagran.com
(18) https://navbharattimes.indiatimes.com
(19) mijksDr
(20) https://www.unicef.org/india/hi/story/covid-19-%EO%.
(21)https://www.livehindustan.com/national/story-corona-lockdown-violation-tamilnadu-tiruppur-police-violators-covid-19-patient-ambulance-drama-skit-viral-video- 3172840 amp.
(22) Goel.Dr S.L. Police Governace. and Administration, Publisher-Regal Publications Rajouris Garden, New Delhi. Page No-4.
(23) mijksDrA