डाॅ0 (श्रीमती) अनुपमा श्रीवास्तव
एसोसिएट प्रोफेसर राजनीति-शास्त्र विभाग
जवाहर लाल नेहरू मेमो0 पी0जी0 कालेज, बाराबंकी।
विगत वर्षों में विश्व परिदृश्य में लाखों लोगों की जाने चली गयी, लाखों लोग बीमार हुए, इन सब पर एक नए कोरोना वायरस का कहर टूटा है और जो लोग इस वायरस के प्रकोप से बचे हुए हैं, उनका रहन-सहन भी एकदम बदल गया है। ये वायरस दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया था, उसके बाद से दुनिया में सब कुछ उलट-पुलट हो गया, शुरूआत वुहान से ही हुयी, जहां पूरे शहर की तालाबंदी कर दी गई थी, इटली में इतनी बड़ी तादात में वायरस से लोग मरे कि वहां दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से पहली बार लोगों की आवाजाही पर इतनी सख्त पाबंदी लगानी पड़ी थी। ब्रिटेन की राजधानी लंदन में पब, बार और थिएटर बंद थे, लोग अपने घरों में बंद थे, दुनिया भर में उड़ाने रद्द कर दी गयी थीं, और बहुत से संबंध सोशल डिस्टैंसिंग के शिकार हो गये थे। ये सारे कदम इसलिए उठाए गए थे, ताकि नए कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके और इससे लगातार बढ़ती जा रही मौतों के सिलसिले को थामा जा सके दुनियाभर में उपद्रव मचाने वाले इस वायरस को लेकर हमारे जिम्मेदार से लेकर आम आदमी तक ने अजीबो-गरीब प्रतिक्रियाएं व्यक्त की थी। अब ये बात एकदम साफ हो चुकी है कि कोविड-19 की वैश्विक महामारी का पूरी दुनिया पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। ऐसे में नए कोरोना वायरस की महामारी के कारण अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का पूर्वाकलन करना तो मुश्किल है, लेकिन आज की तारीख में ये जरूर सम्भव है कि हम व्यवस्थागत तरीके से दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थों के उन सम्भावित क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं, जिन पर इस महामारी का विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर इस वायरस के प्रभाव को लेकर अनिश्चितता का माहौल होने की बड़ी वजह ये है कि किसी भी तार्किक विश्लेषण के लिये उसे कई चरणों से गुजरना पड़ता है।
की वर्डस- कोरोना वायरस महामारी, सोशल डिस्टैंसिंग, वुहान शहर, उत्पादकता, कोविड-19, लाॅकडाउन, भूमंडलीकरण।
कोरोना वायरस दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया जिससे दुनिया में सब कुछ उलट पलट हो गया, शुरूआत वुहान से ही हुई, जहां पूरे शहर की तालाबंदी कर दी गई, इटली में बहुत बड़ी तादात में वायरस से लोग मरे। वहां दूसरे विश्व युद्ध के बाद से पहली बार लोगों की आवाजाही पर इतनी सख्त पाबंदी लगानी पड़ी, ब्रिटेन की राजधानी लंदन में पब, बार और थिएटर बंद हो गये, लोग अपने घरों में बंद है, दुनिया भर में उड़ाने रद्द कर दी गई, और बहुत से सम्बन्ध सोशल डिस्टैंसिंग के शिकार हो गए।
ब्रिटेन, इटली, लंदन ही नहीं बल्कि दुनिया के बहुत से से देश वायरस की चपेट में आ गए, जिसमें भारत और अमेरिका भी शामिल है।
अब ये बात एकदम साफ हो चुकी है कि कोविड-19 की वैश्विक महामारी का पूरी दुनिया पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। ऐसे में नए कोरोना वायरस की महामारी के कारण अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का पूर्वाकलन करना तो मुश्किल है, लेकिन आज की तारीख में ये ज़रूर सम्भव है कि हम व्यवस्थागत तरीके से दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के उन सम्भावित क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं, जिन पर इस महामारी का विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर इस वायरस के प्रभाव को लेकर अनिश्चितता का माहौल होने की बड़ी वजह ये है कि किसी भी तार्किक विश्लेषण के लिये उसे कई चरणों से गुजरना पड़ता है हर विषय से जुडी़ कई परिकल्पनाएं होती है, जिनका आकंलन होता है।
विश्लेषण के पहले चरण में कोरोना वायरस के कारण विश्व की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर इसके कैसे दुष्प्रभाव पड़े है, ये भी जानना जरूरी है कि इनसे निपटने के लिये अलग-अलग राष्ट्रीय और उप राष्ट्रीय सरकारों ने क्या-क्या कदम उठाए हैं, ताकि कोरोना वायरस के प्रकोप को अधिक फैलने और आम जनता के लिए घातक होने से रोका जा सके। विश्लेषण के दूसरे चरण में इस वायरस से उत्पन्न महामारी के आर्थिक परिणामों, खासतौर से विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं जैसे कि अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था पर इसका कैसा प्रभाव पड़ेगा, साथ ही साथ हमें ये भी देखना होगा कि दुनिया की बड़ी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (जैसे कि भारत) पर इस महामारी के क्या दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे, इस विश्लेषण का तीसरा चरण ये है कि विभिन्न देशों की घरेलू राजनीति पर इस वायरस का क्या असर होगा। इसमें राजनीति नेतृत्व के मज़बूत होने या कमज़ोर होने, संभावित नेतृत्व के उभरने और सामाजिक एकता पर इसके क्या प्रभाव होंगे, ये भी देखना जरूरी है। इस विश्लेषण के चैथे चरण में हम इस बात की समीक्षा करेंगे कि किस तरह के नतीजों से अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के आयाम प्रभावित होंगे। क्या पहले से बहती आ रही बदलाव की बयार आगे भी चलेगी या फिर इसके परिणाम इसके उलट होंगे। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की शक्ति का स्रोत मूल रूप से किसी भी देश की आर्थिक शक्ति होती है, और पिछले तीन दशकों में हमने देखा है कि इस क्षेत्र में बहुत परिवर्तन आया है भारत और अमेरिका, यूरोप और जापान के बीच शक्ति का फर्क कम होता गया है। चीन की तुलना में इन देशों का शक्ति सन्तुलन उसी अनुपात में बढ़ता गया है और जहां तक रूस की बात है, तो ये कभी कम तो कभी ज़्यादा होता रहा है क्योंकि रूस की आर्थिक क्षमताओं पर ऊर्जा के संसाधनों की कीमतों में उतार चढ़ाव के अनुसार बदलाव होता देखा गया है।
अलग-अलग प्रभाव:-
इस नए कोरोना वायरस की महामारी का प्रत्येक देश पर अलग-अलग तरह के प्रभाव देखने को मिलेगा। पहली बात तो ये कि विभिन्न देशों के बीच आदान प्रदान यानी भूमंडलीकरण की राह दुर्गम होगी। इसमें व्यापार, यातायात और विदेशी निवेश शामिल है, दूसरी बात ये है कि वित्तीय बाज़ारों पर इसका बुरा असर देखने को मिलेगा क्योंकि, उज्जवल भविष्य को लेकर निवेशकों का विश्वास कमज़ोर हुआ है। इससे पूंजी के प्रवाह में विघ्न पड़ेगा, तीसरी बात ये है कि ख़रीदार अब कम व्यय करेंगे इसकी प्रमुख वजह सरकारों द्वारा लगाए गए लाॅकडाउन और यात्राओं पर लगे प्रतिबंध है। चैथी बात ये है कि उपरोक्त तीन कारणों से निर्माण क्षेत्र का उत्पादन घटेगा हालांकि, हर सेक्टर की उत्पादकता पर हमें अलग-अलग तरह के परिणाम देखने को मिलेंगे। पांचवी प्रमुख बात ये है कि ऊर्जा की खपत में कमी आएगी। शुरूआत में ये खपत अस्थायी होगी लेकिन आगे चल कर लम्बे समय के लिये ऊर्जा की खपत कम होने की सम्भावना है।
इन दुष्प्रभावों से उबरने और अपने-अपने देश की अर्थव्यवस्थाओं में नई जान फंूकने के लिए सरकारों के पास कई तरह के उपाय हैं, जिनका वो इस्तेमाल करती है। इनमें जो प्रमुख उपाय हैं, वो कुछ इस तरह हैं-
– उत्पादकता बढ़ाने के लिए कारोबार को वित्तीय मदद
– मौद्रिक उत्प्रेरक, और
– औद्योगिक नीतियों में परिवर्तन
अमेरिका और जापान तो अपनी अर्थव्यवस्थाओं को फिर से रतार देने के लिए पहले दो उपायों पर अधिक भरोसा कर सकते हैं, लेकिन औद्योगिक नीति पर अमेरिकी सरकार का नियंत्रण बहुत ही कम है जबकि प्रधानमंत्री शिंजो आबे के नेतृत्व में जापान ने अपने यहां औद्योगिक सुधार लाने के जो प्रयास किए है, वो अब तक असफल ही रहें है। यूरोपीय संघ के पास अपनी अर्थव्यवस्था में नई जान फंूकने के लिए केवल मौद्रिक उत्प्रेरक का ही विकल्प है। हालांकि, यूरोपीय संघ के अलग-अलग देश (विशेष तौर पर जर्मनी) अपने स्तर पर वित्तीय और औद्योगिक सुधारों का भी सहारा ले सकते है, ताकि अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाया जा सके। कोरोना वायरस से सबसे अधिक प्रभावित हुए इटली और स्पेन की कमज़ोर आर्थिक स्थिति उन्हें ऐसे उपाय करने के विकल्प आज़माने से भी रोकेगी। दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की बात करें, तो केवल चीन के पास अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए ये सभी उपाय आज़माने का विकल्प मौजूद है। हालांकि, सरकारी उद्यमों द्वारा बहुत अधिक मात्रा में कर्ज़ लेने की वजह से चीन के ये प्रयास भी बांधित होंगे। इस महामारी के कारण भारत के पास ये अवसर है कि वो इस चुनौती से निपट सके खासतौर से वस्तुओं के मूल्य में गिरावट (ख़ासतौर से ऊर्जा के) और निर्माण क्षेत्र की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी की संभावना, उसे इस मौके़ को भुनाने का अवसर देती है।
भारत के लिए प्रथम प्राथमिकता है कि कोविड-19 के बाद नई औद्योगिक नीति का निर्माण करना। इस महामारी के तुरन्त बाद, भारत के पास जो अवसर होगा वो कई पीढ़ियों में एक बार आता है, ताकि किसी औद्योगिक नीति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जा सके, ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका ने 1940 और 1950 के दशक में किया था या फिर, चीन ने 1980 और 1990 के दशक मंे किया था। ये तभी संभव होगा, जब भारत अपने यहां दूरगामी नतीजे लाने वाले क़दम उठाए। खासतौर से जब हम ये देखते हैं कि भारत के तमाम राज्यों की आर्थिक स्थिति में बहुत फ़र्क हैं और भारत द्वारा वित्तीय उत्प्रेरण के क़दम भी एक सीमा तक ही उठाए जा सकते है। निर्माण क्षेत्र के कुछ ख़ास क्षेत्रों की उत्पादकता को राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकताओं में शामिल करके, और जो लोग इन क्षेत्रों में निर्माण के लिए आगे आये उनके प्रस्तावों को सिंगल विंडो क्लिेयरेंस की सुविधा देकर ये किया जा सकता है। इसके अलावा महत्वपूर्ण क्षेत्रों, जैसे कि स्वास्थ्य के रिसर्च एवं विकास में सरकार के व्यय को बढ़ाया जाना चाहिए साथ ही साथ स्टेम ;ैज्म्डद्ध के अनुसंधान को प्राथमिकता के आधार पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए, खासतौर से उच्च शिक्षा संस्थानों में ऐसा करना बेहद आवश्यक है। जरूरी मूलभूत ढांचे के विकास (जैसे कि हाइवे, रेलवे, बंदरगाह और हाई स्पीड डेटा) और राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्य संसाधनों (रक्षा एवं साइबर स्पेस) के रूप में ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें राष्ट्रीय औद्योगिक नीति में अतिरिक्त प्राथमिकता वाले सेक्टर के रूप में विकसित किया जा सकता है।
भारत के लिए दूसरी प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि वो इस महामारी से उबरने के चीन के प्रयासों और प्रतिक्रियाआंे पर नज़र रखे क्योंकि चीन, आर्थिक एवं सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है। इस बात की आशंका अधिक है कि विदेशी निवेश, निर्माण और निर्यात के बाज़ारों के संदर्भ मंे चीन की अर्थव्यवस्था मंे उतार आने की आशंकाएं अधिक है। इन क्षेत्रों में कमी होने से चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की विश्वसनीयता में भी गिरावट आएगी। यही वजह है कि चीन इस महामारी को लेकर नई राजनीतिक व्याख्या गढ़ने का पुरज़ोर प्रयास कर रहा है। अगर चीन अपनी अर्थव्यस्था को दोबारा पटरी में लाने के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक उपाय करता है, जिसकी संभावना अधिक है तो इससे चीन की अर्थव्यवस्था में तेजी देखी जाएगी हालांकि, चीन की ये विकास दर कृत्रिम होगी। इसी के साथ-साथ, अन्य देश चीन में अपने निवेश को हतोत्साहित करंेगे, साथ ही साथ वो चीन के अपने यहां के बाज़ारों में पहुंच बनाने की राह में बाधाएं भी खड़ी करेंगे। इसके लिए वो राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देंगे, इससे मध्यम समय में चीन की विकास दर पर विपरीत असर पड़ना तय है। अन्य देशों की तुलना में चीन में आर्थिक तरक्क़ी और सुरक्षा नीति, सीधे तौर पर राजनीति की संवेदनाओं से जुड़ी हुई है इसका नतीजा ये होगा कि चीन, इन मुश्किलों से ध्यान हटाने के लिए अन्य कदम उठा सकता है। भारत को इसका बुरा अनुभव हो चुका है। 1962 में अपने तबाही लाने वाले ग्रेट लीप फाॅरवर्ड योजना के असफल रहने पर, चीन ने भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया था। चीन से मिलने वाली इन विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को चाहिए कि वो चीन के साथ सकारात्मक संवाद का वो सिलसिला बनाए रखे, जिसकी शुरूआत वर्ष 2017 में वुहान शिखर सम्मेलन से हुई थी। इसके साथ-साथ भारत को चाहिए कि वो संतुलन बनाए रखने के लिए विश्व की अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ भी अपने सम्बन्ध बेहतर करने की दिशा में बढ़ता रहे ताकि, अगर चीन कोई गलत कदम उठाता है, तो भारत के पास पर्याप्त मात्रा में वैश्विक समर्थन बना रहे। भारत को चाहिए कि वो अपनी विदेश नीति के ‘एक्ट ईस्ट‘ और ‘हिन्द प्रशांत‘ से जुड़े आयामों मंे और संभावनाएं तलाशने का काम जारी रखे। जो काम कम संसाधनों में भी हो सकता हैं क्योंकि, कोरोना वायरस की महामारी के बाद संसाधनों का अभाव होना तय है।
भारत के लिए एक तीसरी प्राथमिकता ये होगी कि उसे अमेरिका में चल रही उथल पुथल पर भी नज़र बनाए रखनी होगी हो सकता है कि अमेरिका में इस महामारी के सबसे अधिक मरीज़ हों और वहां सबसे अधिक लोगों की जान भी कोरोना वायरस के कारण जाने की आशंका है। इससे अमेरिका में उसके इतिहास के सबसे लम्बे आर्थिक वृद्धि की गति शायद कुछ धीमी हो जाये। अगर अमेरिका के आर्थिक संकेतों को देखें, जैसे कि बेरोज़गारी बढ़ी है और शेयर बाज़ार में भंयकर गिरावट देखी जा रही है पर चूंकि, अमेरिका ने पहले भी ऐसे आर्थिक सदमे झेले है, तो हम ये मान सकते हैं कि धीरे-धीरे ही सही, अमेरिका मुसीबतों के इस दलदल से उबर ही जाएगा। इसमें अमेरिकी सरकार द्वारा घोषित खरबों डाॅलर के स्टिमुलस पैकेज और उसकी मुद्रा डाॅलर की मज़बूती का बड़ा योगदान होगा। लेकिन, अमेरिका की हैसियत में गिरावट से भारत के लिए भी चुनौतियों में वृद्धि होगी क्योंकि भारत को अमेरिका से वित्तीय निवेश की दरकार है साथ ही साथ अगर अमेरिका अपनी अप्रवासी नीति में सख्ती करता है, जिसकी पूरी आशंका है, तो इसका सबसे अधिक विपरीत प्रभाव भारत पर ही पड़ेगा। अमेरिका के साथ वाणिज्यिक सलाह मशविरों से ऐसे अवसरों की तलाश की जा सकती है, जो कोविड-19 के बाद ही दुनिया में दोनों ही देशों के लिए लाभप्रद साबित हो सकें। इसके लिए भारत और अमेरिका के बीच परस्पर आर्थिक सहयोग की सख्त ज़रूरत है।
और अंत में, इस महामारी के भारत पर अन्य प्रभाव भी पड़ेंगे जो छोटे भी होंगे और बड़े भी, वैश्विक भी होंगे और स्थानीय स्तर के भी। इस बात का अभी आकंलन करना बहुत मुश्किल है लेकिन, भारत के लिए उम्मीद की किरण ये हो सकती है कि ऊर्जा के संसाधनों की क़ीमत में मध्यम समय के लिए गिरावट आनी तय है। इसका, भारत के चालू खाते के घाटे पर सकारात्मक असर पड़ेगा इससे भारत के पास ये अवसर होगा कि इस क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी को नियमित कर सके और इससे अन्य अहम निवेश के लिए अवसरों के द्वार खुलेंगे। ऐसे निवेशों में रक्षा क्षेत्र में पूंजीगत व्यय भी शामिल है। 2020-21 के वित्तीय वर्ष में भारत के रक्षा व्यय पर दबाव बढ़ गया है साथ ही इस क्षेत्र में विदेशी मदद भी कम हुई है जबकि, पूरी दुनिया में रक्षा मामलों का व्यय बढ़ेगा। अगर भारत अपने रक्षा क्षेत्र में उचित रणनीति के साथ पूंजीगत व्यय को बढ़ावा दे, तो आगे चल कर इससे भारत को काफ़ी लाभ हो सकता है। इसके अतिरिक्त, जीवाश्म ईधन की कीमतों में गिरावट आने से भारत के लिए एक और अवसर सामने आता दिख रहा है। इस परिस्थिति का लाभ उठा कर भारत अपनी ऊर्जा की खपत को तरल प्राकृतिक गैस की दिशा में मोड़ सकता है। भारत को चाहिए कि वो अपनी ऊर्जा ज़रूरतों की आपूर्ति करने वाले सभी बड़े देशों, जैसे कि कतर, अमेरिका, रूस और आॅस्ट्रेलिया के साथ तरल प्राकृतिक गैस का आयात-निर्यात बढ़ाने के लिए प्रयास करे। इसके साथ ही साथ भारत को चाहिए कि वो सौर ऊर्जा के उपकरणों को उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दे सौर ऊर्जा के संसाधनों की उपलब्धता की आपूर्ति श्रृंखला हमेशा से भारत की कमज़ोर कड़ी रही है। भारत के राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के लिए इन उपकरणों की आपूर्ति सुनिश्चित करना भारत के लिए ज़रूरी हैं तभी भारत अपनी लम्बे समय की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है।
भारत को चाहिए कि वो अपनी ऊर्जा ज़रूरतों की आपूर्ति करने वाले सभी बड़े देशों, जैसे कि क़तर, रूस और आॅस्ट्रेलिया के साथ तरल प्राकृतिक गैस का आयात-निर्यात बढ़ाने के लिए प्रयास करें। इसके साथ ही साथ भारत को चाहिए कि वो सौर ऊर्जा के उपकरणों को उपलब्ध कराने को प्राथमिकता दे।
ऐसा माना जा सकता है कि कोविड-19 की महामारी की व्यापकता और प्रभाव से सभी देशों को आर्थिक क्षति होगी लेकिन, जैसा कि 2007-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखा गया था, कई देश अन्य मुल्कों के मुकाबले और अधिक मज़बूत होकर उभरे थे। अगर भारत चाहता है कि वो इस महामारी के बाद ज़्यादा मज़बूत होकर उभरे और इस महामारी के अन्य दुष्प्रभावों (जिसमें सुरक्षा भी शामिल है) से स्वयं को बचा ले, तो इसे अपनी तमाम संभावनाओं और इनके कुछ आयामों का स्टीक तौर पर आकंलन करना होगा।
महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि भारत, कोविड-19 के बाद की दुनिया के लिए नई औद्योगिक नीति का निर्माण करें। इस महामारी के तत्काल बाद, भारत के पास जो अवसर होगा वो शायद कई पीढ़ियों में एक बार आता है, जिससे किसी औद्योगिक नीति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जा सके।
संदर्भः
1. देवांगन वीरेन्द्र कुमार,
2- THE HINDU, THE PANDEMIC NOTE BOOK A handy guid from THE HINDU on understanding the Coronavirus Pandemic and staying protected against Covid-19, 26 MARCH 2020
3- RATHOD SHAILESH, CORONAVIRUS (COVID-19), NOTION PRESS o”kZ 25 MARCH 2020
4- ALI AMIR, TIME LINE 2020, NOTION PRESS 2020