ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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पंचायती राज; उद्भव व विकास

डाॅ0 रश्मि फौजदार
(कार्यवाहक प्राचार्या)
मुस्लिम गल्र्स डिग्री काॅलिज, बुलन्दशहर।
आजादी के बाद 2 अक्टूबर 1952 को जब सामुदायिक विकास कार्यक्रम शुरू किया गया तो सरकार की मंशा थी कि ‘‘गांधी के पंचायती राज की संकल्पना को साकार रूप दिया जाये’’1 देश के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए पंचायती राज व्यवस्था की मजबूती बेहद आवश्यक है, इसीलिए संविधान के अनुच्छेद-40 में सरकार को ग्राम पंचायतों के गठन का निर्देश देते हुए कहा गया है कि-‘‘राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करेगा और उनको वे सब अधिकार प्रदान करेगा जिससे वे स्वायŸाशासी इकाइयों के रूप में प्रभावी ढंग से कार्य करने के योग्य हो जाए’’, भारतीय संविधान लागू होने के बाद शासन का विकेन्द्रीकरण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न राज्यों द्वारा ग्राम पंचायतों की स्थापना की कवायद शुरू की जाने लगी। 1952 में गाँवों के सर्वांगीण विकास हेतु ‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ तथा वर्ष 1953 में ‘राष्ट्रीय विस्तार सेवा योजना’ प्रारम्भ को गई, इन कार्यक्रमों हेतु आवश्यक जन सहयोग जुटाने तथा इन्हें सफल बनाने हेतु ‘बलवंत राय मेहता कमेटी’ का गठन किया गया, समिति ने वर्ष 1957 में प्रस्तुत अपने प्रतिवेदन में ‘त्रिस्तरीय पंचायती राज्य योजना’ का प्रारूप पेश किया जिसे साधारणतया लोकतंात्रिक विकेन्द्रीकरण कहा जाता है। समिति के प्रारूप के मुताबिक ग्राम स्तर पर ‘ग्राम पंचायत’, खण्ड स्तर पर ‘पंचायत समिति’ तथा जिला स्तर पर ‘जिला परिषद्’ की स्थापना का सुझाव दिया गया था भारत में ‘पंचायती राज योजना’ को लागू करने वाले प्रथम दो राज्य-‘राजस्थान’ तथा ‘आंध्र प्रदेश’ थे, 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान का ‘नागौर जिला’ पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने वाला स्वतंत्र भारत का प्रथम जिला बना। इसके बाद भी समय-समय पर भारत में पंचायती राज व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण तथा उसकी सफलता के संदर्भ में अन्य समितियों का गठन भी किया जाता रहा, जिनमें प्रमुख थी-‘अशोक मेहता समिति’ (1977), ‘डाॅ0 पी0 वी0 के0 राव समिति’ (1985) तथा ‘एल0 एम0 सिंघवी समिति’ (1986)। ‘‘पंचायती राज प्रणाली गांवों की तस्वीर बदलने के साथ वंचित तब को को विकास की मुख्य धारा से भी जोड़ रही है।’’2 इस व्यवस्था को प्रभावी बनाने  तथा अनिवार्य रूप से कानूनी जामा पहनाने के लिए ‘राजीव गांधी’ के प्रधान मंत्रित्व काल से ही कवायदें तेज की गई।
1986 में राजीव गांधी ने ‘लोकतंत्र एवं विकास के लिए पंचायती राज संस्थाओं का पुनरूद्धार’ नामक शीर्षक पर ’एम0 एल0 सिंघवी’ की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया, समिति की सिफारिशों तथा सुझावों के आधार पर राजीव गांधी सरकार ने वर्ष 1989 में पंचायती राज विधेयक को 64वाँ संविधान ‘संशोधन विधेयक’ के रूप में लोक सभा में पारित कर दिया, मगर अपने कुछ विवादास्पद प्रावधानों के कारण यह राज्य सभा में पारित होकर कानून की शक्ल नहीं ले पाया, जून 1991 में ‘‘पी0 वी0 नरसिंहा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेसी सरकार सŸाा में आई तथा इस सरकार ने सितम्बर 1991 में विवादास्पद प्रावधानों को हटाकर पुनः पंचायती राज विधेयक को लोक सभा में प्रस्तुत किया गया, अन्ततः 22 दिसम्बर, 1992 को ‘73वें संविधान संशोधन विधेयक- 1992’ के रूप में यह   विधेयक लोक सभा में तथा अगले ही दिन 23 दिसम्बर, 1992 को सर्वसम्मति से राज्य सभा में भी पारित हो गया, इसके पश्चात् 17 राज्यों की राज्य सरकारों द्वारा भी मंजूरी मिलने के बाद यह विधेयक राष्ट्रपति ‘डाॅ0 शंकर दयाल शर्मा’ को भेजा गया, 20 अप्रैल 1993 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के बाद 27 अप्रैल, 1993 को इसे ‘पंचायती राज कानून’ के रूप में पूरे देश में लागू कर दिया गया।’’3 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक (अधिनियम)-1992 कई मायनों में ऐतिहासिक था, सर्वप्रथम ‘‘इसी संशोधन के द्वारा हमारी पंचायतों को संवैधानिक दर्जा हासिल हुआ, इस संविधान संशोधन के बाद ही, संविधान के ‘अनुच्छेद-40’ में नीति निर्देशक सिद्धान्त के रूप में पूर्व में दी गई सलाह को मानना  राज्य सरकारों की बाध्यता बन गई।’’4 संविधान के भाग-8 के पश्चात् भाग-9 जोड़कर, उसमें अनुच्छेद-243 को शामिल करने से ऐसा हुआ दरअसल किसी गाँव की निर्वाचन नामावली में जो नाम दर्ज होते है, उन व्यक्तियों के समूह को अनुच्छेद 243 (क) में ग्राम-सभा की संज्ञा दी गई है 73वें संशोधन से ही त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था बनाई गई तथा उनके लिए 5 वर्ष के कार्यकाल की अनिवार्यता सुनिश्चित की गई सभी स्तर पर सीधे-सीधे जनता द्वारा चुनाव, जनसंख्या के अनुपात में निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन अनुसूचित जाति-जनजाति का आबादी आधारित आरक्षण तथा पंचायती राज स्तर पर प्रधान, प्रमुख एवं अध्यक्ष पदों पर महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों के आरक्षण का  प्रावधान भी 73वें संशोधन के द्वारा सम्भव हुआ इसके अलावा ‘‘73वें संविधान संशोधन ने संसाधनांे की उपलब्धता व व्यवस्था हेतु ‘राज्य विŸा आयोग’ तथा चुनाव हेतु ‘राज्य चुनाव आयोगों’ के गठन का मार्ग प्रशस्त किया 11वीं अनुसूची के माध्यम से विकास सम्बन्धी 29 विभागों के प्रमुख कार्यों को पंचायतों के सुपुर्द कर दिया ग्राम सभाओं के गठन को अनिवार्य बनाना, राज्यों के विधानमण्डलों को यह निर्देश देना कि वे ग्राम सभाओं को और अधिकार प्रदान करने के लिए अपने-अपने स्तर पर कानून बनाएं तथा राज्यों को निर्धारित समय के अन्तर्गत अपने-अपने पंचायत अधिनियमों को ‘‘पंचायती राज अधिनियम-1992’ के अनुरूप संशोधित करने का निर्देश देना’’5
73वें संशोधन अधिनियम के तहत् संविधान के ‘भाग-8’ के साथ नया ‘भाग-9’ तथा अनुच्छेद-243 जोड़ा गया है। अनुच्छेद-243 (क) के तहत् ग्राम-सभा को कार्य एवं शक्तियाँ प्रदान करने का उŸारदायित्व राज्य विधान सभाओं को सौंपा गया है तथा संविधान की 11वीं अनुसूची में निर्दिष्ट 29 विषयों के सन्दर्भ में सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास की योजनाएं बनाने तथा उनके क्रियान्वयन व मूल्यांकन का कार्यभार ग्राम सभाओं को सौंपा गया है। अनुच्छेद-243 (ख) के तहत् ‘ग्राम-सभा’ को परिभाषित किया गया है, इसके अनुसार ग्राम सभा से तात्पर्य एक ऐसी समिति से है, जिसमें गाँव स्तर पर पंचायत क्षेत्र में पंजीकृत सभी मतदाता शामिल होंगे। अनुच्छेद-243 (ग) पंचायतों की संरचना से सम्बन्धित है, जिसमें 20 लाख से अधिक आबादी वाले सभी राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था (गाँव स्तर पर ग्राम पंचायत, क्षेत्र या खण्ड स्तर पर ‘क्षेत्र-पंचायत’, तथा जनपद स्तर पर जिला-पंचायत) लागू करने की बात कही गई है, जबकि 20 लाख से कम आबादी वाले क्षेत्रों में द्विस्तरीय पंचायत प्रणाली लागू करने का निर्देश दिया गया है, इसके अलावा इस अनुच्छेद में पंचायतों के गठन व चुनाव सम्बन्धी निर्देश भी दिए गए है,
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं के लिए सीटें, जोकि 33ः से कम न हो, आरक्षित की जाए, सभी राज्यों में राज्य विŸा आयोगों की नियुक्ति की जाए, जोकि पंचायतों के विŸाीय अधिकारों के बारे में सिफारिशों व सुझाव प्रस्तुत करें। ‘जिला पंचायत समिति’ बनाई जाए, जोकि पूरे जिले के लिए विकास योजनाओं की रूपरेखा तैयार कर सके। पंचायतों को आवश्यक कर, टोल, फीस लगाना तथा उन्हें संग्रहित करने का अधिकार है।
सबसे छोटी ईकाई ग्राम पंचायत, बहुत महत्वपूर्ण इकाई है 1000 से अधिक आबादी वाले गाँव में ग्राम पंचायत के गठन का प्रावधान है, यदि किसी गाँव की आबादी 1000 से कम है, तो दो या दो से अधिक गाँवों को मिलकर ग्राम पंचायत का गठन किया जा सकता है, प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक ‘ग्राम प्रधान’ के अलावा आबादी के मुताबिक 9-15 निर्वाचित सदस्य होते है, उŸार प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब आदि के पंचायत अधिनियमों में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था के अलावा न्याय पंचायतों का भी प्रावधान है। इसका गठन क्षेत्र अथवा विकास खण्ड स्तर पर किया जाता है बिहार, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र में इसे ‘पंचायत समिति’, आन्ध्र प्रदेश में ‘मण्डल पंचायत’, मध्य प्रदेश में ‘जनपद पंचायत’, असम में ‘आंचलिक पंचायत’, कर्नाटक में ‘तालुका डेवलेपमेंट बोर्ड’, तमिलनाडु में ‘पंचायत यूनियन’, पश्चिमी बंगाल में ‘आंचलिक पंरषद्’, अरूणाचल प्रदेश में ‘अंचल-समिति’ तथा उŸार प्रदेश, उŸाराखण्ड आदि राज्यों में ‘क्षेत्रीय समिति’ के नाम से जाना जाता है, इसके सदस्यों में ‘ब्लाॅक प्रमुख’ समेत विकास खण्ड या क्षेत्र की सभी ग्राम पंचायतों के प्रधान, प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा निर्वाचित सदस्य, (ठक्ब्), क्षेत्र के निर्वाचक के रूप में पंजीकृत राज्य सभा और विधान-परिाषद् के सदस्य तथा उस क्षेत्र से निर्वाचित लोक सभा या विधान सभा के सदस्य शामिल होते हैं। जनपद स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का तीसरा सोपान है-‘जिला पंचायत’, इसके सदस्यों में जिला पंचायत अध्यक्ष के अलावा जनपद के सभी क्षेत्र पंचायतों के प्रमुख, जिला पंचायत के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा निर्वाचित जिला पंचायत सदस्य, जिला पंचायत क्षेत्र में समाहित क्षेत्र से लोक सभा तथा विधान सभा के लिए निर्वाचित सदस्य, जिला पंचायत क्षेत्र में निर्वाचक के रूप में पंजीकृत राज्य सभा तथा विधान परिषद् के सदस्य सम्मिलित होते हैं, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायतों को वही कार्य तथा उŸारदायित्व सौंपे गए हैं जिनका उल्लेख 11वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों के रूप में है।
पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित किया गया है, मगर राज्य सरकार इसे ‘‘कुछ विशेष प्रावधानों के तहत् समयावधि से पहले भी भंग कर सकती है, मगर भंग होने के 6 माह के अन्दर इनका पुनः चुनाव करवाना आवश्यक है पंचायतों की यह विधिक प्रणाली न्यायालय की समीक्षा से परे हैं, इसके लिए विभिन्न राज्यों में अलग-अलग     प्रावधान बनाए गए हैं, उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश तथा छŸाीसगढ़ में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों द्वारा अपने कार्यों तथा उŸार-दायित्वों के प्रति उदासीनता या अनियमितता बरतने पर उन्हें जनता द्वारा ‘वापस बुलाने (राइट टू रिकाॅल) का प्रावधान है’’6 यद्यपि मध्य प्रदेश सभा में सर्वप्रथम ‘राइट टू रिकाॅल’ विधेयक 24 मार्च, 1999 को पारित किया गया था, मगर पहली बार इसका प्रयोग 16 जून, 2008 को छŸाीसगढ़ की जनता ने तीन पंचायत प्रमुखों को वापस बुलाकर किया। हरियाणा, पंजाब तथा बिहार के पंचायत अधिनियमों के प्रावधान के अनुसार ‘ग्राम सभा’ अपनी बैठकों में कुल मतदाताओं के दो-तिहाई बहुमत के अविश्वास प्रस्ताव से ग्राम पंचायत के निर्वाचित प्रधान को अपने पद से हटाया जा सकता है, उŸार प्रदेश तथा उŸाराखण्ड में पंचायतों के निर्वाचित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के अविश्वास प्रस्ताव से जिला पंचायत प्रमुख, क्षेत्र पंचायत प्रमुख, (ब्लाॅक प्रमुख) तथा प्रधान को उसके पद से हटाया जा सकता है, इसी प्रकार सिक्किम में पंचायतों का एक वर्ष तक बर्खास्त करने का विधिक प्रावधान है, जबकि असम तथा गोवा में ‘आयुक्त’, हरियाणा तथा पंजाब में निदेशक (पंचायती राज), तथा बिहार, केरल, अरूणाचल प्रदेश तथा मणिपुर में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्राधिकरण ‘सरपंचों को हटा सकता है महाराष्ट्र में ‘स्थायी-समिति’ को तथा राजस्थान में जिले के ‘मुख्य प्रशासनिक अधिकारी को सरपंच को पद से हटाने का अधिकार है इसी प्रकार        आन्ध्र प्रदेश में सरकार, आयुक्त तथा जिलाधिकारी को पंचायती राज अधिनियम की अनेक धाराओं के तहत् तीनों स्तर की पंचायती व्यवस्था पर नियंत्रण का हक है।
ग्राम पंचायतों के कार्यों व उŸारदायित्वों को ‘‘मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है- (ं) ग्रामीण क्षेत्र से सम्बन्धित केन्द्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं तथा कार्यक्रमों को लागू करना तथा (इ) संविधान की 11वीं सूची में निर्दिष्ट 29 विषयों के सन्दर्भ में आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय सम्बन्धी योजनाएं बनाना तथा सफल क्रियान्यवन व मूल्यांकन सुनिश्चित करना।’’7 पंचायतों के लिए केन्द्र सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाएं तथा कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, ‘‘जिनका क्रियान्वयन राज्य सरकारों के माध्यम से त्रिस्तरीय पंचायतों द्वारा ही किया जाता है, इन योजनाओं में प्रमुख है-‘महात्मा गांधी’ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका अभियान (छत्स्ड), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (च्डळैल्),      प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, ग्रामीण स्वच्छ भारत अभियान, अटल आदर्श ग्राम योजना, पं0 दीनदयाल      उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, इंदिरा आवास योजना (प्।ल्), निर्मल भारत योजना, डिजिटल इण्डिया तथा स्टार्ट-अप इण्डिया इत्यादि।’’8 पंचायतों को ‘‘सशक्त बनाने में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल व ग्रामोदयके संदर्भ में      प्रधानमंत्री के आहवान का खास असर पड़ा है।’’9  2009 में पंचायती राज मंत्रालय की ओर से ‘110वाँ संविधान     संशोधन विधयेक’ भी लाया गया, जिसके अनुसार त्रिस्तरीय पंचायती चुनावों में सीटों तथा अध्यक्ष के 50ः पद महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान बनाया गया है, पंचायती राज मंत्रालय भारत में पंचायती राज व्यवस्था से सम्बन्धित आँकड़ों का संग्रहण तथा उनका प्रकाशन भी सुनिश्चित करता है वर्ष 2015 तक देशभर में जिला पंचायतों की संख्या 608, प्रखण्ड पंचायतों की संख्या 6568 तथा ग्राम पंचायतों की संख्या 247934 तथा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संख्या 30 लाख तक पहुँच चुकी थी, यहाँ इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि देश के कुछ राज्यों ने त्रिस्तरीय चुनावों में 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं हेतु आरक्षित करने का प्रावधान बनाया है, ये राज्य हैं-उŸाराखण्ड, मध्य प्रदेश, छŸाीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, झाखण्ड, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा तथा केरल।
पंचायतों को संचालन तथा क्रियान्वयन के लिए मूलतः चार प्रकार से विŸा की प्राप्ति होती है-(1) केन्द्रीय विŸा आयोग द्वारा अनुशंसित योजनाओं से, (2) राज्य विŸा आयोग द्वारा अनुशंसित योजनाओं से, (3) केन्द्र प्रायोजित योजनाओं तथा कार्यक्रमों को आवंटित धन से तथा (4) पंचायती स्तर पर लगाए जाने वाले विभिन्न मदों के करों, उपकरों, टोल, फीस तथा जुर्माने से, प्रथम तीन मदों से प्राप्त धन का उपयोग पूर्णरूप से कल्याणकारी योजनाओं पर किया जाता है, जबकि चैथे मद से प्राप्त धन को ‘पंचायत निधि’ में जमा कर दिया जाता है तथा इसका उपयोग पंचायतों के परिचालन व्यय, पंचायतों के लिए आय बढ़ाने वाले स्त्रोतों के विकास व विस्तार तथा क्षेत्रीय स्तर पर ग्राम पंचायतों एवं क्षेत्र पंचायतों द्वारा अनुशंसित आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय से सम्बन्धित योजनाओं पर खर्च किया जाता है, इसके अलावा पंचायतों के प्रशासनिक संचालन, योजनाओं के क्रियान्वयन व नियमन        सम्बन्धी आवश्यक जानकारी देने तथा सरकार व पंचायतों के बीच समन्वय सेतु स्थापित करने के लिए सरकारी स्तर पर ग्राम विकास अधिकारी, ग्राम पंचायत विकास अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी, उपखण्ड विकास अधिकारी तथा राजस्व निरीक्षक व राजस्व उपनिरीक्षक जैसे कई अधिकारियों और कर्मचारियों की भी नियुक्ति होती है। भारत गांव का देश माना जाता है गांव के विकासों में पंचायती राज की महती भूमिका है। अतः सशक्त पंचायती राज व्यवस्था बेहद जरूरी है।
संदर्भ-
1. अवजीत मोहन; पंचायती राज की भूमिका; जनसŸाा; नई दिल्ली; 04 सितम्बर 2017
2. नरेन्द्र सिंह तौमर (केन्द्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज्यमंत्री); साकार होता ग्राम स्वराज का सपना; दैनिक जागरण; नई दिल्ली; 24 अप्रैल 2018
3. डाॅ0 चन्द्र शेखर प्राण; आदर्श पंचायती राज; दैनिक जागरण; 13 सितम्बर 2010
4. पंचायती राज दिवस पर 3378 गांवों में गूंजेगा ‘मोदी का भाषण’ दैनिक जागरण; नई दिल्ली; 23 अप्रैल 2018
5. गजेन्द्र सिंह मधुसूदन एवं सोनू जैन; प्रतियोगिता दर्पण; जून 2016/98
6. ऋषि कुमार सिंह; पंचायती राज की विसंगतियां; जनसŸाा; दिल्ली; 28 सितम्बर 2018
7. सम्पादकीय; सशक्त बने पंचायतें; दैनिक हिन्ट; गाजियाबाद; 24 अप्रैल 2021
8. महीपाल; पच्चीस साल में कहां पहुंची पंचायतें; अमर उजाला; नई दिल्ली; 24 अप्रैल 2018
9. नरेन्द्र सिंह तौमर (केन्द्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज्यमंत्री); पंचायती राज से लक्ष्य हासिल करने के लिए; हिन्दुस्तान; मेरठ, 24 अप्रैल 2017

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