ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

बांग्लादेश-50 अतीत, वर्तमान व भविष्य

डाॅ0 मोहित मलिक
असि0प्रो0 (राज0शास्त्र)
राजकीय महिला महाविद्यालय, खरखैदा, मेरठ
बांग्लादेश 16 दिसम्बर 2021 को अपने मुक्ति युद्ध की स्वर्ण जयंती के रूप में मना रहा है। बांग्लादेश का यह उत्सव केवल उसके लिए ही हर्ष का विषय नहीं है, बल्कि भारत के लिए भी गर्व का विषय है। कारण यह कि ‘‘1971 में भारत की पाकिस्तान पर विजय ने ही बांग्ला संस्कृति और उसके अनुयायियों को दमनकारी पाकिस्तानी शासन से मुक्ति दिलाई थी और संपूर्ण दक्षिण एशिया के इतिहास तथा भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदलने का कार्य भी किया था ’’1 आज भी भारत अपनी नेबर्स फस्र्ट की नीति के तहत आगे बढ़ कर बांग्लादेश का साथ दे रहा है।
हमारे पूर्वी पड़ोसी बांग्लादेश ने अपनी आजादी के पांच दशक 16 दिसम्बर 2021 को पूरे कर लिए। मील का यह पत्थर पार होने पर जश्न सरहद के दोनों ओर मना। उधर दमन से मुक्ति के संग्राम की जय का, इधर मानवता के दुश्मन पर सेना के पराक्रम की विजय का। ‘‘दुनिया के इतिहास में यह बिरला उदाहरण है जहां दो देश मिलकर अपनी खुशियां साझा करते हैं। सैन्य इतिहास में भी ऐसी मिसाल दुर्लभ है जहां लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कोई देश इस तरह पड़ोसी का रक्षाकवच बना हो।’’2 इसके लिए आजाद बांग्लादेश के इतिहास की इस सबसे स्वर्णिम याद के स्वर्ण जयंती जलसे में शामिल होने के लिए जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति भवन की बेकरी में बना केक और मिठाइयां लेकर वहां की पीएम शेख हसीना से मिलने पहुंचे तो यह औपचारिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि ‘अपनेपन का स्पर्श’ था जो बीते पचास वर्ष से दोनों देशों के बीच रिश्तों की गर्मी और गरिमा, दोनों की अच्छी मिसाल है।
पचास वर्ष पहले बांग्लादेश का अलग राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आना भी तत्कालीन परिस्थतियों के नये सिरे से परिभाषित होने के कारण ही संभव हुआ था। बंगाली और गैर-बंगाली मुसलमानों के बीच की इस लड़ाई ने इस तथ्य को अटल सत्य की तरह स्थापित किया कि केवल एक धर्म का होना एकजुट होकर रहने की गारंटी नहीं हो सकता। मुक्ति वाहिनी के बंगाली मुस्लिम सदस्यों ने बांग्ला भाषा और संस्कृति को अपना सरमाया मानकर नौ महीनों तक इस स्वप्न को पाला-पोसा कि वे एक दिन गैर-बंगाली मुसलमानों को अपनी जमीन से खदेड़ने में सफल हो जाएंगे। आखिरकार, भारतीय सेना का शोर्य और पराक्रम उनके इस स्वप्न को सत्य बनाने का माध्यम बना।
बांग्लादेश के निर्माण को लेकर पाकिस्तान भले ही आज भी भारत के लिए नफरत पाले बैठा हो लेकिन हकीकत यही है कि इसकी पृष्ठभूमि रातों-रात तैयार नहीं हुई थी। पाकिस्तानी अखबारों की कतरनों से धारणा पुष्ट होती है कि पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान की लगातार चैड़ी खाई के लिए कोई और नहीं, बल्कि खुद पाकिस्तान जिम्मेदार था। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले छोटे कद और सांवले रंग के बंगालियों को मछलियां पकड़ने और चावल उगाने के लायक ही समझा जाता था। रेडियों जैसे सार्वजनिक संचार के माध्यम उनकी बोलचाल के बंगाली लहजे का मजाक उड़ाते थे। लेकिन समय बीतने के साथ लंबे-चैड़े, गोरे, नफासत से उर्दू बोलने वाले पाकिस्तानी अपनी अकड़ की जकड़ में बंध कर रह गए। आज हालत यह है कि पाकिस्तान खुद मजाक बनकर रह गया है। आर्थिक प्रगति से लेकर मानव विकास के तमाम पैमानों पर उसका ही हिस्सा रहा बांग्लादेश महज पांच दशक में उससे मीलों आगे निकल गया है। बांग्लादेश की आर्थिक वृद्धि दर 8 फीसद के आसपास पहुंच गई है, जबकि पाकिस्तान अभी भी 6 फीसद की वृद्धि पाने के लिए ही संघर्ष कर रहा है। औसत बांग्लादेश की एक पाकिस्तानी के मुकाबले कमाई दोगुनी है, और कर्ज आधा। शिशु मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा, महिला रोजगार जैसे तमाम पैमानों पर बांग्लादेश तेज छलांगें लगा रहा है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री के क्षेत्र में तो पाकिस्तान क्या, चीन भी बंाग्लादेश के सामने बौना साबित हो रहा है।
हैरान करने वाला तथ्य यह भी है कि बांग्लादेश की आजादी पर उस दौर में अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे हेनरी किसिंजर ने पाकिस्तान के इस ‘गरीब भाई’ के ‘इंटरनेशनल बास्केट केस’ बन जाने का दावा किया था। यह शब्द आर्थिक रूप से अत्यंत कमजोर होने की स्थिति के लिए उपयोग में लाया जाता है। पचास साल की इस यात्रा में बांग्लादेश ने पाकिस्तान के तरफदार रहे किसिंजर के उस बड़बोलेपन को झूठा साबित कर दिया है। उल्टे हालत यह है कि आज पाकिस्तान ही ‘इंटरनेशनल बास्केट केस’ बन गया है, जिसे वजूद बचाने के लिए चीन समेत वल्र्ड बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं से खैरात मांगने के लिए हाथ फैलाने पड़ रहे है। लेकिन बांग्लादेश के जन्म और विकास से पाकिस्तान कोई सबक लेता नहीं दिख रहा है। डूरंड लाइन को लेकर अफगानिस्तान से उसके विवाद से खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में अलगांव की वैसी ही आग सुलग रही है, जिसने पूर्वी पाकिस्तान की पहचान को खाक किया था।
पाकिस्तान के खंड-खंड होने की इस आशंका के बीच ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि कभी इस भूखंड को अखंड बनाने के विचार ने भी जोर पकड़ा था। 1947 में भारत की आजादी के कुछ साल बाद समाजवादी चिंतक डाॅ0 राम मनोहर लोहिया ने भारत और पाकिस्तान को आपसी विवाद भुलाकर दोनों देशों की जनता की सामाजिक-आर्थिक उन्नति के लिए साथ आने और महासंघ बनाने की बात कही थी। आगे के वर्षों में भारतीय जनसंघ के पुरोधा पं0 दीनदयाल उपाध्याय, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के एमवी कामथ और फिर बाद के वर्षों में लालकृष्ण अडवाणी आदि ने भी इस विचार को आगे बढाया।
बांग्लादेश के निर्माण ने उत्तर-पूर्व में भारत की कई चुनौतियों को आसान किया है। उग्रवाद पर बांग्लादेश के जीरो टाॅलरेंस और भारत सरकार के शांति प्रयासों से वहां हिंसा और विद्रोह में काफी कमी आई हैै। बीते वर्षो में बांग्लादेश ने अरविंद राजखोवा, अनूप चेतिया, रतन सरकार जैसे कुख्यात उल्फा नेताओं और बोडो विद्रोहियों को या तो भारत को सौंपा है या निर्वासित किया है। चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों को ध्यान में रखते हुए सिलीगुड़ी गलियारा के मामले में भी बांग्लादेश की सामरिक महŸाा बढ़ जाती है। चिकन नेक के नाम से प्रचलित इस इलाके में अगर चीन हमारी आवाजाही रोक देता है, तो उŸार-पूर्व में जाने के लिए बांग्लादेश ही माध्यम रहेगा।
भौगोलिक और सामरिक चुनौतियों के साथ ही बांग्लादेश से समन्वय दक्षिण एशिया में व्यापार और आर्थिक गतिविधियों के लिए भी महŸवपूर्ण है। उŸार-पूर्व में वर्षों की अशांति ने इस क्षेत्र को दशकों पीछे धकेल दिया है। दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय व्यापार अपनी क्षमता से कम है, जिसे रफ्तार देने के लिए दोनों देश मजबूत द्विपक्षीय संबंधों का निर्माण कर रहे हैं। कई कनेक्टिविटी चैनलों को पुनर्जीवित किया गया। यह संपर्क    निर्बाध हो जाता है, तो समय और लागत बचाने के साथ ही सरहद के दोनों ओर के इलाकों को समृद्ध कर सकता है। अच्छी बात यह है कि भारत और बांग्लादेश की लीडरशिप जान गई है कि यहां के लोगों की आजीविका की बेहतरी पर ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है। जिस तरह एक समय भारत ने बांग्लादेश में शांति स्थापित करने के लिए हाथ बढ़ाया था, उसी तरह अब इस क्षेत्र की समृद्धि के लिए बांग्लादेश की सहायता की आवश्यकता है।
बंगाली अस्मिता ही थी जिसने पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलग होने का औचित्य सिद्ध किया। यह अंतर तब और निर्णायक हो गया जब बंगाली समुदाय को उसकी भाषा से अलग करने का प्रयास किया जाने लगा। भाषा कोई निर्जीव उपस्थिति न होकर जीवन संसार है। ‘‘भाषा के दायरे में पूरी संस्कृति आकार लेती है, उसके साथ फूलती-फलती है, और उसके साथ ही क्षरित हो जाती है। इससे पूरी जीवनचर्या नाभिनालबद्ध होती है।’’3 इस देश का निमार्ण भी वहां के लोगों के दिल टूट जाने से हुआ था क्योंकि पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों और पंजाबी फौजियों ने बंगाली मुसलमानों को आदमी नहीं समझा। उनका नरसंहार किया। उनकी महिलाओं के साथ रेप किया और उन्हें बंदूक उठाने पर मजबूर किया। 1971 के बाद ‘‘पाकिस्तान के शासकों ने यह जानने के लिए कि बांग्लादेश के निर्माण के क्या कारण थे, एक आयोग का गठन किया जिसे महमूद-उर रहमान आयोग के नाम से जाना जाता है। इसकी रिपोर्ट रौंगटे खड़े कर देने वाली है कि पाकिस्तानी सैनिकों ने बांग्लादेशियों पर किस तरह के जुल्म ढाए।’’4
भारत ने 6 दिसम्बर, 1971 को बांग्लादेश को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी थी। दस दिन बाद ‘‘16 दिसम्बर को पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेक दिए थे। शेख मुजीब-उर रहमान नवस्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति बने।’’5 अब बंग्लादेश देश दुनिया की सबसे ‘‘तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। हालांकि विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा पिछले कई वर्षों से इसे निम्न-माध्यम आय अर्थव्यवस्था के रूप में चिह्नित किया जाता रहा है, लेकिन अब इसमें नाटकीय रूप से बदलाव आया है।’’6 यहाँ के पासपोर्ट के लिए सम्मान दुनिया भर में बढ़ रहा है जबकि पाकिस्तान का पासपोर्ट खिसक रहा है। ‘‘इसी तरह बांग्लादेशी नागरिकों के लिए सम्मान बढ़ रहा है जबकि औसत पाकिस्तानी को संदेह की नजर से देखा जाता है। आज की युवा पीढ़ी इस महान उपलब्धि को हासिल करने के लिए अपने पूर्ववर्तियों के कष्टों और वीर युवाओं द्वारा किए गए बलिदानों की कल्पना भी नहीं कर सकती। उन्हें 1971 में बांग्लादेशी युवाओं के बलिदान के बारे में जानने की जरूरत है।’’7
हमारे देश भारत ने बांग्लादेश को कई प्रकार की सुविधाएं दी हैं। ‘‘अनेक उत्पादों को भारतीय बाजारों में ड्यूटी-फ्री प्रवेश की इजाजत है। नाॅन-टैरिफ बैरियर्स को कम करने के प्रयास भी जारी हैं। भारत सीमा पर 10 क्राॅसिंग पाॅंइट्स पर चेकपोस्ट तैयार कर रहा है। 1999 में ढाका को कोलकाता से जोड़ने वाली बस सेवा शुरू की गई। ऐसी ही सेवा अगरतला से भी शुरू हुई। 2008 में ढाका और कोलकाता के बीच पुरानी रेल लाइन को चालू किया गया। यह 43 साल से बंद पड़ी थी। मैत्री एक्सप्रेस की शुरूवात हुई। अनेक पुराने रेल नेटवर्क फिर से शुरू किए गए। यह काम लगातार जारी है।’’8 पाकिस्तान का विभाजन और बंग्लादेश का उदय भारत की सैनिक और कूटनीतिक उपलब्धि का अनूठा उदाहरण है। भारत ने इसके जरिए छोरों पर स्थापित दुश्मन को विभाजित कर पाकिस्तान को भू-आर्थिक और भू-सामरिक रूप से कमजोर कर दिया और अपने लिए बाएं किनारे पर एक अच्छे दोस्त को स्थापित करने का काम किया। इस जीत के फलस्वरूप वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका न केवल बदली, बल्कि नये सिरे से परिभाषित भी की जाने लगी।
संन्दर्भ
1. डाॅ0 रहीस सिंह (वैदेशिक मामलों के जानकार); मैत्री के मायने; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021
2. उपेन्द्र राय; (मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ सहारा न्यूज नेटवर्क); उजली यादें सुनहरा भविष्य; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021
3. सन्नी कुमार (इतिहास अध्येता); सांस्कृतिक प्रतिरोध का नतीजा था बांग्लादेश का निर्माण; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021
4. कुर्बान अली (वरिष्ठ पत्राकार); … और निर्माण के सबक; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021
5. रणधीर तेजा चैधरी (वरिष्ठ पत्रकार) जाड़े के वो सूने दिन और सुनसान रातें; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021
6. डाॅ0 दर्शनी प्रिय (महिला विषयक लेखिका); महिला नेतृत्व ने बदल डाले तेवर; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021
7. आरपी सिंह (ब्रिगेडियर रि0 वीएसएम;  सामरिक विशेषज्ञ); परिपक्व और आत्मविश्वासी; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021
8. प्रमोद जोशी (मुख्य संपादक-डिफेंस माॅनिटर); रिश्तों के खट्टे-मीठे पचास साल; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 27 दिसम्बर 2021

Latest News

  • Express Publication Program (EPP) in 4 days

    Timely publication plays a key role in professional life. For example timely publication...

  • Institutional Membership Program

    Individual authors are required to pay the publication fee of their published

  • Suits you and create something wonderful for your

    Start with OAK and build collection with stunning portfolio layouts.