ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

भारतीय संविधान में समाजवादी तत्व

जयकरन यादव
शोध छात्र
डाॅ0 प्रवीण कुमार, एसो0प्रोफेसर
डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅलिज, बुलन्दशहर
भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद है अर्थात यहाँ उत्पादन और वितरण के साधनों पर निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों का अधिकार है। भारतीय समाजवाद का चरित्र गाँधीवादी समाजवाद की ओर अधिक झुका हुआ है जिसका उद्देश्य अभाव, उपेक्षा और अवसरों की असमानता का अन्त करना है समाजवाद मुख्यरूप से जन कल्याण की विचारधारा को प्रोत्साहित करता है और यह सभी लोगों को राजनैतिक आर्थिक व सामाजिक समानता प्रदान करने के साथ-साथ वर्ग आधारित शोषण को समाप्त करता है।
समाजवाद का उद्देश्य शोषण का समापन है चाहे वह किसी भी रूप में हो। सामाजिक न्याय पर आधारित व्यवस्था बनाना, उत्पादन सामाजिक आवश्यकता के अनुसार होना चाहिए उत्पादन एवं वितरण को समाज या राज्य नियंत्रित करे और सभी वर्गाें के लोगों को प्रगति का समान अवसर प्राप्त होना चाहिए। समाजवाद किसी प्रकार का शोषण हो जैसे साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद रंगभेद सभी को समाप्त कराने का प्रयास करना है।
शोषण मुक्त एवं समता मूलक समाज की स्थापना करना समाजवाद का उद्देश्य है। समाज में विद्यमान सामाजिक और आर्थिक विषमताएं जिससे दीनों और अंकिचन-जनों को भाँति-भाँति के तिरस्कार और अवहेलनाएं झेलनी पड़ती है इन सब समस्याओं को हल करने वाला यदि कोई व्यक्ति भारत में हुआ तो वह महात्मा गाँधी थे। उन्होंने ही सामान्य जनों के जीवन स्तर को ऊँचा किया। उन्होंने जनता के अन्दर मानवोचित स्वाभिमान को उत्पन्न किया। उनकी अहिंसा की शिक्षा केवल व्यक्तिगत आचरण की शिक्षा नहीं हैं उनकी अहिंसा वह महान अस्त्र है जो समाज की आज की विषमताओं का, जो वैमनस्य और विद्वेष के कारण है, उन्मूलन करना चाहती है।
सामाजिक और आर्थिक विषमता को दूर कर, मनुष्य को मानवता से विभूषित कर आत्मोन्नति के लिए सबको ऊँचा उठाकर जाति-पाति और सम्प्रदायों के बंधन को तोड़कर ही हम अहिंसा को सच्चे अर्थाें में प्रतिष्ठित कर सकते हैं। समाज से ऊँच-नीच, भेद-भाव, विभिन्न प्रकार की विषमताओं अस्पृश्यता, दरिद्रता और आर्थिक विषमताओं को उन्मूलित करके समाजवाद लाया जा सकता है।
डाॅ0 राम मनोहर लोहिया के अनुसार भारत में समाज वाद की शुरूआत गाँधी जी के विचारों एवं क्रियाओं से हुई। वह गाँधी जी के आदर्शाें, मूल्यों और-तौर तरीकों से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने गाँधी जी के ‘सत्याग्रह’ एवं ‘असहयोग आन्दोलन’ को 20वं सदी की रचना बताया। लोहिया चाहते थे कि समाजवाद का सिद्धन्त गाँधीवाद से जुड़े। समाजवाद का अर्थ केवल गरीबी हटाना और असमानता दूर करना नहीं था बल्कि व्यक्तिगत सुधार एवं चरित्र निर्माण करना था। भारतीय समाजवाद अध्यात्मवाद, भौतिक वाद, समाज सुधार व व्यक्ति सुधार को जोड़ने का कार्य करता है।
लोहिया जी व्यक्ति और समाज में कोई विरोध नहीं देखते थे क्यों कि वे व्यक्ति को साध्य और साधन दोनों मानते थे।
लोहिया जी गाँधीवाद की सीमाओं से परिचित थे लेकिन उन्होंने गाँधीवाद को एक खुले सिद्धान्त के रूप में अपनाया। उनका विश्वास था कि गाँधीवादी विशेषताओं की तर्कपूर्ण प्रक्रिया भारतीय समाज को मजबूती प्रदान करेगी। उन्होंने वर्ग संघर्ष का समाजवादी सिद्धान्त और गाँधीवादी सत्याग्रह की तकनीक को एक करने का प्रयास किया।
लोहिया जी की समाजवादी विचारधारा भारतीय सन्दर्भ में अधिक उपयुक्त थी और है भी, उन्होंने समाजवाद स्थापित करने के लिए चैखम्भा राज व्यवस्था, अल्प प्रमाणतंत्र (छोटी मशीन योजना), सप्त क्रान्तियां, जाति प्रथा, दाम (मूल्य) नियंत्रण, कृषि व खाद्य समस्या, नारी वर्ग का उत्थान, हिन्दू-मुस्लिम एकता, रंग-भेद, हथियारों की निरर्थकता, नियोजन सबन्धी विचार, भाषा, खर्च सीमा निर्धारण, विशेष अवसर का विचार व कृषि समस्याओं के हल पर बल दिया।
भारतीय समाज वाद के प्रमुख पुरोधा जय प्रकाश नारायण स्वतंत्रता के आदर्श की तरह ही समानता के आदर्श को भी महत्वपूर्ण मानते थे, अकेले स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं थी। स्वतंत्रता के साथ शोषण, भुखमरी और दरिद्रता से मुक्ति भी जुड़नी चाहिए। जय प्रकाश नारायण जानते थे कि समस्याओं के हल के लिए माक्र्सवाद ही सबसे       अधिक संतोषजनक उपाय बताता हैं उन्होंने सहकारी एवं सामूहिक कृषि की हिमायत करते हुए गांवों के सशक्तीकरण और सत्ता के विकेन्द्रीकरण की बात की। गांव को इकाई मानकर कृषि औद्योगिक ग्राम समाज की कल्पना की। उन्होने बुनियादी उद्योगों और बैंकों आदि के समाजीकरण की वकालत की।
उन्होंने स्वतन्त्र भारत का ऐसा खाका बनाया था जिसमें प्रत्येक भारतीय को समान अधिकारों की गारंटी होगी। राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की रचना सामाजिक न्याय और आर्थिक व्यवस्था की रचना सामाजिक न्याय और आर्थिक स्वतंत्रता के सिद्धान्त को ध्यान में रखकर की जायेगी।
केवल मौलिक आवश्यकताएं पूरा करना ही इसका उद्देश्य नहीं होगा। व्यक्ति की स्वस्थ जीवन यापन की व्यवस्था के साथ उसके नैतिक और बौद्धिक विकास को सिद्ध करना उसका लक्ष्य होगा। इस प्रकार का सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए सहकारी समूहों के प्रयत्न में छोटे पैमाने के उत्पादक उद्योगों को प्रोत्साहित किया जायेगा। छोटे उद्योगों के साथ-साथ मध्यम, भारी एवं बड़े उद्योग धन्धों को राष्ट्रीय उद्योगों का रूप देकर उनका संचालन किया जायेगा। जमींदारी प्रथा उन्मूलित की जायेगी बन्धक जमीनों को मुक्त कराया जायेगा और जमीनों के साथ जुड़ी गुलामी का अन्त किया जायेगा। गरीब और कमजोर एवं दलित वर्गाें के हितों की रक्षा के साथ-साथ उच्च वर्गाें के हितों को भी संरक्षित किया जायेगा।
जय प्रकाश और लोहिया दोनों नेताओं में से बड़ा समाजवादी नेता भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ। दोनों ही नेता गाँधी जी के कदमों पर चलने वाले नेता थे जो कभी आजादी से पहले अंग्रेजो के विरूद्ध लड़े जेल गये और आजाद भारत में भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ते रहे और जेल गए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत के पास दो विकल्प थे एक अमेरिकी नेतृत्व वाली पूँजीवादी व्यवथा अपनाने का और दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व वाली समाजवादी व्यवस्था अपनाने का, लेकिन बहुत विचार-विमर्श के बाद भारत ने मिश्रित अर्थ व्यवस्था की विचारधारा को अपनाया जिसमें निजी क्षेत्र के साथ-2 सार्वजनिक क्षेत्र को भी अपनाया गया। सार्वजनिक क्षेत्र को अपनाने का कारण था कि भारत में गरीबी और बेरोजगारी थी, इसलिए सार्वजनिक कल्याण को ध्यान में रखते हुए समाजवादी तत्वों को संविधान में स्थान दिया गया जिससे गाँधीवादी विचारों के अनुकूल भारत में समाजवादी व्यवथा साकार हो सके और गरीबी, बेरोजगारी एवं शोषण से मुक्ति मिल सके।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति प्रतिष्ठा वं अवसर की समता प्राप्त कराने का संकल्प व्यक्त किया गया हो।
सामाजिक न्याय का तात्पर्य है कि व्यक्ति को व्यक्ति होने के कारण समाज में महत्व दिया जाना चाहिए और जाति, धर्म, वर्ग, लिंग, नस्ल, सम्पत्ति या अन्य आधार पर भेद-भाव नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक न्याय का अर्थ है नागरिकों को स्वतंत्रता के साथ समानता प्रदान करना है। सामाजिक न्याय की स्थिति में अस्पृश्यता या छुआ-छूत जैसी बुराइयां जो समाज में कोढ के समान हैं, का समाज में कोई स्थान नहीं होगा।
आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय का पूरक है और इसका तात्पर्य यह है कि ऐसी व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए जिसमें कुछ साधन सम्पन्न  व्यक्तियों द्वारा बहुसंख्यक साघनहीन व्यक्तियों का शेषण किया जाता हो। आर्थिक न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उत्पादन एवं वितरण के समस्त साधनों पर समाज का अधिकार हो और समस्त समाज के हित में उसका प्रयोग हो। व्यक्तियों को उनकी क्षमता एवं योग्यता के आधार पर, रोजगार, रोजगार के बदले भरण-पोषण के लिए पर्याप्त वेतन और गंम्भीर विषमताओं की समाप्ति होनी चाहिए। आर्थिक न्याय के इस लक्ष्य की प्राप्ति के आधार पर समाजवादी समाज की स्थापना की जा सकती है।
राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को राजनीतिक क्षेत्र में स्वतंत्र एवं समान रूप से भाग लेने का अवसर मिलना चाहिए भारतीय संविधान के अन्तर्गत न केवल न्याय बल्कि इसके साथ स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व को भारतीय संविधान का लक्ष्य घोषित किया गया है।
42वें संविधान संशोंधन 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द को जोड़कर समाजवाद के प्रति प्रतिबद्धता का दोहराया गया है।
भारतीय संविधान के भाग-3, में मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत समानता का अधिकार दिया गया है (अनु0-14 से 18 तक) जिसमें कानून के समक्ष समानता, सामाजिक समानता, सरकारी पदों की प्राप्ति हेतु अवसर की समानता विशेषकर अनु0 15 (4) और 16 (4), अस्पृश्यता का समापन (जिसके द्वारा समाज का एक बड़ा तबका जो सदियों से छुआ छूत के आधार पर शोषित रहा है, उसको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया गया है),    उपाधियों का अन्त (इसमें सेवा व विद्या संबंधी    उपाधि के अतिरिक्त राज्य कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा क्योंकि ब्रिटिश काल में राय बहादुर, खान साहब, सर आदि की उपाधि दी जाती थी जो समाज को विभाजित करने का काम करती थी)।
शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनु0-23-41) के अन्तर्गत मानव का दुव्र्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रतिषिद्ध किया गया है।
भारतीय संविधान के भाग-4, के अन्तर्गत (राज्य के नीति निदेशक तत्व) भी संविधान में समाजवादी तत्वों को समाहित किया गया है। अनु0-38 (प) एवं (पप) इससे संबंधित है जिनमें उल्लेख है कि राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा। राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करें, भरसक प्रभावी रूप में स्थापना एवं संरक्षण करके लोक कल्याण को बढ़ाने का प्रयास करेगा। राज्य विशेषकर, आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा और न केवल व्यक्तियों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूह के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।
अनु0-39, राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व
जैसे- (1) पुरूष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
(2) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व एवं नियंत्रण इस प्रकार बँटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वाेत्तम रूप से साधन हो।
(3) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधरण के लिए अहितकारी संक्रेन्द्रण न हो।
(4) पुरूषों एवं स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन हो।
(5) पुरूष एवं स्त्री कर्मचारियों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालको की सुकुमार अवस्था का दुरपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगार में जाना न पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो।
(6) बालको को स्वतंत्र एवं गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाय और बालको और अल्पवय व्यक्तियों की शेषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाय।
अनु0-41, 42, 43 एव 43 (क) जिसमें उल्लेख किया गया है कि राज्य अपनी आर्थिक सामथ्र्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के शिक्षा पाने के, और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निशक्तता तथा अन्य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता या सरकारी सहायता को पाने का प्रभावी प्रबन्ध किया जायेगा और राज्य की महिला कर्मचारियों के लिए काम की मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित एवं प्रसूति सहायता देने का प्रबन्ध होगा।
कर्मचारियों के  लिए राज्य उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि, उद्योग या अन्य प्रकार के काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर और अवकाश का सम्पूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाऐं तथा सामाजिक सांस्कृति अवसर उपलब्ध कराने का प्रयास होगा और राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों या अन्य संगठनों के प्रबन्ध में कर्मचारियों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त नियम कानून बनायेगा।
अनु0-45, 46 और 47 जिसमें जिक्र किया गया है कि राज्य छः वर्ष की आयु के सभी बच्चों के पूर्व बाल्यकाल की देख-भाल और शिक्षा देने की कोशिश करेगा और राज्य जनता के दुर्बल वर्गाें को विशेषकर अनुसूचित जातियों और अनु0 जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शेषण से उनकी रक्षा की जायेगी। राज्य अपनी जनता के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य सुधार को अपने प्राथमिक कत्र्तव्यों में मानेगा और राज्य विशेषकर मादक द्रव्यों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दवाओं, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न उपयोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा।
भाग-10, अनु0-244, के अन्तर्गत अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के लिए कुछ प्रशासन संबंधी प्रावधान हैं।
संविधान के भाग-16, के अनु0-330 से लेकर 342 तक समाज के कुछ वर्गाें के संबंध में विशेष उपबंध किए गये है।
भारत में संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 जिसका उद्देश्य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए लोगों को वहनीय मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता के खाद्यान्न की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराना भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (च्क्ै) संचालित है। जिसका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं विशेषकर (ठण्च्ण्स्ण्) गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को रियायती कीमतों पर आवश्यक उपभोग की वस्तुएं उपलब्ध कराना जिससे न्यूनतम पोषण स्तर बनाया जा सके। सामान्य वर्ग के गरीब लोगों (म्ॅै) के लिए 2019 में एक नोटिफिकेशन के द्वारा 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।
उ0प्र0 में जिला अस्पतालों में सस्ती दर पर गरीबों के लिए इलाज की व्यवस्था है। इसी तरह 108 नम्बर एम्बुलेन्स चलायी गयी है। जो समाजवादी व्यवस्था का एक अच्छा उदाहरण है।
इस तरह भारतीय संविधान में अनेकों समाजवादी प्रावधान है जो भारत में समाजवादी व्यवस्था को लाने में सहायक हो सकते है उपरोक्त कुछ सकारात्मक क्रियाओं से ऐसा परिलक्षित भी होता है।
सन्दर्भ सूची:-
1. नरेन्द्र देव, आचार्य, राष्ट्रीयता और समाजवाद, निदेशक नेशनल बुक इस्ट इंडिया, नेहरू भवन, बसंत कुंज, नई दिल्ली चैथा संस्ककरण 2011
2. नारायण, जय प्रकाश, समाजवाद क्यों, सी0एस0पी0 वाराणसी संस्करण 1936
3. उपाध्याय, डाॅ0 जय जय राम, भारत का संविधान-1950, ठंतम ।बज क्पहसवजए सेन्ट्रल एजेन्सी 30-क्ध्1ए मोतीलाल नेहरू रोड इलाहाबाद संस्करण-2011
4. जैन, डाॅ0 पुखराज, इण्टरमीडिएट भारतीय संविधान तथा नागरिक जीवन, साहित्य भवन पब्लिकेशन, आगरा 35 वाॅ संस्करण 2011
5. केलकर, इंदुमति, डाॅ0 राम मनोहर लोहियाः जीवन और दर्शन समाजवादी साहित्य संस्थान, दिल्ली,       संशोधित संस्करण 2010
6. कपूर, मस्तराम, राम मनोहर लोहिया रचनावली-1 एवं 2 समता न्यास, हैदराबाद, संस्करण 2013
7. कश्यप, सुभाष, हमारा संविधान, भारत का संविधान और संवैधानिक विधि, निदेशक, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया एन्ड ग्रीन पार्क नयी दिल्ली तीसरा संस्करण 1999
8. शरद, ओंकार, लोहिया, लोक भारती प्रकाशन इलाहाबाद तृतीय संस्करण-1967

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