ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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महात्मा गांधी आज भी प्रासंगिक

डाॅ0 ऋचा सिंह
प्राचार्या
वी0आई0ई0टी0, गौतमबुद्धनगर
भारत के बाद गांधी जी सबसे ज्यादा मूर्तियां, स्मारक व संस्थाएं अमेरिका में ही है। जबकि वह कभी अमेरिका गए तक नहीं उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, अमेरिका में गांधी जी की दो दर्जन से ज्यादा प्रतिमाएं और एक दर्जन से ज्यादा सोसाइटी व संगठन हैं। ‘‘महात्मा गांधी भारत के अकेले ऐसे नेता हैं, जिनकी भारत सहित 84 देशों में मूर्तियां लगी है। उनके जन्मदिवस पर पूरी दुनिया अहिंसा दिवस मनाती है। गांधी की हत्या के 21 साल बाद ब्रिटेन ने उनके नाम से डाक टिकट जारी किया। इसी ब्रिटेन से भारत ने गांधी की अगुवाई में आजादी हासिल की थी। अलग-अलग देशों में कुल 48 सड़के उनके नाम पर हैं। देश में 53 मुख्य मार्ग गांधी जी के नाम पर हैं। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, ‘कुछ सालों बाद लोग इस बात पर यकीन नहीं करेंगे कि महात्मा गांधी जैसे शख्स कभी इस धरती पर हाड़ मांस का शरीर लेकर चलते थे।’ मार्टिन लूथर किंग से लेकर नेल्सन मंडेला तक गांधी के मुरीद हैं। अफ्रीका जैसे कई देशों ने गांधी के रास्ते से आंदोलन चलाया और आजादी हासिल की।’’1
बापू केवल ‘‘व्यक्ति के जीवन में ही अहिंसा के पक्षधर नहीं थे, बल्कि पूरे समाज को अहिंसक बनाना चाहते थे।’’2 लेकिन आज हमने अहिंसा के मार्ग को लगभग छोड़ चुके है।
निस्संदेह, गांधी जी भारत के महासपूतों में से एक थे, ‘‘जिनकी राजनीति का संबल अध्यात्म था। राष्ट्रहित से ही प्रेरित होकर उन्होंने कई निर्णय लिए थे और अंतिम सांस तक सक्रिय रहे। क्या बापू स्वयं को राष्ट्रपिता कहलाना पसंद करते?- शायद कभी नहीं, क्योंकि वह जानते थे कि शाश्वत सनातन संस्कृति और कालातीत परंपरा में इन प्रतीकात्मक संबोधनों का क्या अर्थ है।’’3 गांधी जी ने राजनीतिक आजादी के बाद आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आजादी के लिए संघर्ष और निर्माण की व्यापक कल्पना रखी थी। ‘‘दुर्भाग्य से एक उन्मादी के हाथों उनकी हत्या हो गई। गांधी जी जिंदा होते तो मेरा मानना है कि देश में एक दूसरी आजादी का संघर्ष शुरू होता। उन्होंने पूंजीपति घनश्याम दास बिरला से कहा भी था कि अब तुम लोगों के साथ हमें मीठा संघर्ष करना होगा। गांधी को मानने वाले लोग इस अमृत महोत्सव में संकल्प करें कि उनका जो अधूरा सपना था अखंड भारत का, भारत को धर्म आधारित राज्य बनाने का, परस्पर सहकार और सहयोग पर आधारित दुनिया के लिए आदर्श और प्रेरक स्वावलंबी भारत बनाने का, उस दिशा में कैसे काम किया जाए।’’4 हर वर्ष 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनायी जाती है। पूरा देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भी उस महान शख्सियत की याद में नतमस्तक होती है, जिन्होंने हमें नफरत के बीच प्रेम, हिंसा के बीच अहिंसा और झूठ-प्रपंच के बीच सत्य और स्वाधीनता के मायने समझाए। ऐसा भी नहीं है कि ‘‘जीवन दर्शन से जुड़े इन मूल्यों का बापू ने ही अविष्कार किया हो, वो तो पहले से ही अस्तित्व में थे। लेकिन इन मूल्यों पर खुद चलकर बापू ने अपने समय की मानवता को इनके होने और इन्हें अपनाने के महŸव से परिचित करवाया। संयोग से इस बार गांधी जयंती का अवसर ऐसा है कि देश आजादी का अमृत महोत्सव भी मना रहा है। यह जश्न प्रतीक है अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के उस पावन मौके का, जो 75 वर्ष बाद भी देश के जनमानस को आंदोलित करता है, लेकिन क्या हम यही बात इतने ही विश्वास के साथ उस शख्स के विचारों के लिए भी कह सकते हैं, जो दरअसल इस आजादी का प्रेणता और इसके कई नायकों में सबसे प्रतिष्ठित नाम था।’’5 एक स्वतंत्र देश के रूप में हम गांधी के सपने को कितना सच बना पाए हैं? नया भारत अपने राष्ट्रपिता के विचारों की कसौटी पर कितना खरा उतरा है? देश की क्यों वैश्विक परिदृश्य में आज गांधीवाद कितना प्रासंगिक रह गया है? इन तमाम प्रश्नों के उŸार के बिना गांधी जयंती मनाना सार्थक नहीं होगा।
हमारे देश के बीते साढ़े सात दशक की हमारी यात्रा लंबे संघर्ष ओर सफलता-असफलताओं का एक विस्तृत दस्तावेज है। कई अवसरों पर हम लड़खड़ाए हैं, तो कई असंभव-सी दिखने वाली चुनौतियों को पार कर हमने विश्व में अपनी प्रतिष्ठा को कायम भी रखा है। बेशक, हर वक्त नहीं, लेकिन संकट के हर दौर में गांधी हमें याद आते रहे हैं। हाल के दिनों में जब कोरोना की सबसे ताजा चुनौती के बीच दुनिया एक बार फिर भारत के तौर-तरीकों की ओर मुखातिब हुई है, तब भी गांधी पथ ने हमारा मार्गदर्शन किया है। इसके बावजूद आज भी कई ऐसे मसले हैं, जिनमें दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने सबसे बड़े मार्गदर्शक की दिखाई राह से भटकता दिखा है। देश जब स्वतंत्रता के जश्न में डूबा था, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू संसद में अपना विश्व प्रसिद्ध ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ वाला भाषण पूरा कर रहे थे, घर-घर में तेल या घी नहीं, आजादी के दीये जल रहे थे, तब गांधी कहां थे? वो तो इस राष्ट्रीय उत्सव से दूर तत्कालीन बंगाल के नौआखली में थे। क्यों? क्योंकि देश का वह क्षेत्र सांप्रदायिक दंगों में जल रहा था। बापू वहां लोगों को यही समझा रहे थे कि दुनिया को हिंदू-मुसलमान में हम बांटते हैं, ईश्वर तो सबको इंसान बनाकर ही भेजता है। चंद महीनों बाद बापू खुद ही इस विभाजनकारी सोच के शिकार भी हो गए। 75 साल बाद वही सांप्रदायिक विभाजन रेखा आज भी हमारे लिए एक ऐसी चुनौती है, जिसे पाटा नहीं जा सका है। इन संप्रदायों के अंदर की जातियों के नाम पर होने वाले झगड़े ने इसे और चैड़ा कर दिया है। देश के बंटवारे का आधार बने ये मसले आज भी देश को टुकड़ो-टुकड़ो में विभक्त कर रहें हैं। हकीकत यह है कि राजनीतिक विमर्श और चुनावी सियासत का केंद्र बन जाने से नफरत की यह हवा देश की सामाजिक समरसता के लिए बड़ा खतरा बन गई है।
आबादी का वह हिस्सा जो गरीबी रेखा के नीचे जीने को मजबूर है। इसका सबसे ज्यादा खमियाजा उठाता है यह एक और क्षेत्र है, जहां हम भारत को अब भी गांधी के सपनों वाला देश नहीं बना पा रहे हैं। देश में 2011 के बाद इस तरह का कोई आधिकारिक आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण नहीं हुआ है। संयुक्त राष्ट्र का एक अनुमान जरूर है, जिसके हिसाब से साल 2019 तक देश में करीब 36.40 करोड़ गरीब थे, जो कुल आबादी का 28 फीसद है। इसमें कोरोना के कारण 3.2 करोड़ लोगों के मिडिल क्लास से गरीबी रेखा के नीचे चले जाने वाले वल्र्ड बैंक के अनुमान को जोड़े, तो यह संख्या 40 करोड़ के आसपास बैठती है यानी एक-तिहाई से थोड़ा कम। इतना ही चिंताजनक एक दूसरा आंकड़ा भी है। आॅक्सफेम इंडिया की दो साल पुरानी एक रिपोर्ट बताती है कि देश में आर्थिक असमानता इस स्तर पर है कि कुल संपŸिा सृजन का 73 फीसद हिस्सा केवल एक फीसद अमीरों के हाथों में चला गया है। ‘‘यह सब अचानक नहीं हुआ है, बल्कि पिछले करीब तीन दशक में श्रम की जगह पूंजी और अकुशल की जगह कुशल श्रम को बढ़ावा देने वाली नीतियां इसकी जिम्मेदार हैं।’’6 हर साल बजट से पहले सुपर रिच टैक्स की चर्चा इसीलिए जोर पकड़ती है, क्योंकि पूंजी के इस असमान वितरण पर टैक्स लगाकर गरीबों के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण को सुधार कर गांधी के समान अवसरों वाला देश बनाने की परिकल्पना का कुछ अंश तो साकार किया ही जा सकता है,
गांधी जी  समाज के पहले और आखिरी व्यक्ति के बीच बढ़ती इस खाई को बापू ने बहुत पहले ही भांप लिया था और ग्राम गणराज्य की संकल्पना को इसके निदान के रूप में प्रस्तुत किया था, जो दरअसल पंचायती राज व्यवस्था का मूल आधार है। पंचायतें दिल्ली से निकली ग्रामीण स्तर की हर योजना का अंतिम लेकिन बेहद महŸवपूर्ण बिंदु होती हैं, और योजना की सफलता ओर ग्रामीण अंचलों में रोजगार के विषय से सीधे जुड़ती हैं। लेकिन अन्य निकायों की तरह पंचायतों को दलगत राजनीति से जोड़ दिए जाने से इनके सशक्तिकरण की मुहिम प्रभावित हुई है। गांव के विकास की जगह दल का हित सर्वोपरि हो गया है। अच्छी बात यह है कि सरकार ने अब देश की 2.51 लाख पंचायतों को भी संसद ओर विधानसभा की तर्ज पर चलाने का फैसला किया है, जिसमें गांवों से जुड़े सभी हितग्राहियों के बीच नियमित बैठकें होने से तत्काल समाधान भी निकलेगा और पंचायतों का सशक्तिकरण हो सकेगा।
इन तमाम चुनौतियों के बीच कम-से-कम दो ऐसे क्षेत्र गिनाए जा सकते हैं, जहां आज का भारत बापू के सपनों से तालमेल करता दिखता है। पहला स्वदेशी का भाव को मेक इन इंडिया से रफ्तार पकड़ते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान तक पहुंच गया है, और दूसरा स्वच्छता पर आई जागरूकता। बापू जी कहते थे स्वच्छता को अपने आचरणमें इस तरह अपना लो कि वह आपकी आदत बन जाए। देश इस दिशा में काफी आगे बढ़ा है। जिस तरह अंग्रेजों के खिलाफ गांधीजी का ‘भारत छोड़ो’ का आहवान स्वतंत्रता पर जाकर खत्म हुआ था, अब देश स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण में प्रवेश कर गया।
स्वच्छता की ही तरह स्वदेशी का भाव भी स्वाधीनता आंदोलन का अमूर्त आधार था, जिसे बापू ने अपने चरखे से भौतिक रूप में अभिव्यक्त किया था। यह दिलचस्प है कि 100 साल पहले बापू ने जिस तरह अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग का नारा बुलंद करते हुए स्वदेशी की सफलता की कहानी लिखी थी, उसी तरह आत्मनिर्भरता के विचार से आधुनिक भारत विकास करना है। ‘मेक इन इंडिया’ के विचार को आगे ले जाते हुए ‘मेक फाॅर वल्र्ड’ की सराहनीय पहल है बात भी कही है। जिसकी वकालत गांधी जी भी किया करते थे। गांधी जी अपने सिद्धान्तों के प्रति अंतिम सांस तक प्रतिबद्ध रहे। किसी व्यक्ति ने देश को सच्चे अर्थो में सिद्धांत और व्यवहार से जोड़ा तो वह महात्मा गांधी थे। नारी पर उनके सुदृढ़ विचार मिसाल थे तथा उन्होंने कामकाजी नारी की नींव मजबूत की। नारी शक्ति को नया आयाम दिया। गांधी के अनुसार ‘‘नारियों के लिए बराबरी की बात परिवार से ही शुरू होनी चाहिए। आज परिवार में हो रहे भेदभाव और यौनिक हिंसा जैसे विषयों पर गांधी ने पहले ही औरतों को सचेत किया था।’’7 सवाल उठता है, ‘क्या है गांधी-दर्शन’? ‘‘अन्याय और शोषण के विरूद्ध अहिंसक प्रतिरोध, मानव-सेवा और करूणा, सच के प्रति आग्रह, भीरूता की बजाय आत्मबल, स्वदेशी की भावना से सर्वोदय की कामना, स्वच्छाग्रह और अछूत-निषेध एवं त्यागवृŸिा के साथ संचय की कामना आदि विचारों को समग्र रूप से गांधीय-चिंतन कहा जा सकता है।’’8
गांधी जी सदैव साधारण शब्दों और शांत शैली में भाषण देते थे। परंतु जब उनको लगा कि अब अंग्रेजों को भारत छुड़ाने का समय आ गया है परंतु उनकी पार्टी ही उनसे असहमत हो रही थी तब उनके द्वारा गोवालिया टैंक मैदान, बंबई में दिया गया भाषण इतिहास के सबसे प्रेरक भाषणों में से एक बन गया। उनके इस अंतिम सार्वजनिक भाषण के बाद प्रत्येक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को नेता बन गया और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। गांधी की संवाद क्षमता का सामथ्र्य इसमें रही कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर आंग सान सू की तक पूरी दुनिया में अन्याय के विरूद्ध युद्ध में कमजोरों को इसने शक्ति प्रदान की। गांधी जी दूसरों को उपदेश तब तक नहीं देते थे, जब तक उस पर अमल नहीं कर लेते थे। इसी कारण उन्हें क्रान्तिकारी युग दृष्टा कहा गया हमारा कर्तव्य है कि उनके विचारों से प्रेरणा लेकर उनके मूल्यों को आगे बढ़ायें।
संदर्भ:-
1. बापू की जय बोलते रहो; कृष्णकांत की फेसबुक वाॅल से; साइबर संसार; हिन्दुस्तान, मेरठ 02 अक्टूबर 2021
2. राधा बहन (गांधीवादी चिंतक); पहरेदारी के खिलाफ थे गांधी; अमर उजाला; नई दिल्ली; 02 अक्टूबर 2021।
3. बलबीर पुंज (पूर्व सांसद, भाजपा); गांधी को इस तरह भी देखें; अमर उजाला; नई दिल्ली; 02 अक्टूबर 2021।
4. अवधेश कुमार (वरिष्ठ पत्रकार); गांधी के सपनों की न आजादी मिली न भारत बना; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 02 अक्टूबर 2021
5. उपेन्द्र राय (मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ सहारा न्यूज नेटवर्क); आजादी का 75 वां वर्ष राष्ट्रपिता का सपना; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 02 अक्टूबर 2021
6.उपेन्द्र राय (मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ सहारा न्यूज नेटवर्क); आजादी का 75 वां वर्ष राष्ट्रपिता का सपना; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 02 अक्टूबर 2021
7.डाॅ0 प्रज्ञा पाण्डेय (पोस्ट डाॅक्टोरल फेला); भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली (आईसीपीआर); आम औरत को आगे बढ़ाते गांधी; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 02 अक्टूबर 2021
8. अंबिकेश कुमार त्रिपाठी (सहायक प्रध्यापक); गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार; गांधीय-विचार में है समाधान; हस्तक्षेपः राष्ट्रीय सहारा; नई दिल्ली; 02 अक्टूबर 2021

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