ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

राज्य की नीति के निदेशक तत्व 

डाॅ0 रश्मि फौजदार
प्राचार्या (कार्यवाहक)
मुस्लिम गल्र्स डिग्री काॅलिज बुलन्दशहर
जिस प्रकार किसी पथिक को एक पथ प्रदर्शक की जरूरत होती है, उसी तरह राज्य को भी सही दिशा दिखाने या ठीक ढंग से चलने के लिए, मार्गदर्शक का होना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है, राज्य की नीति के निदेशक तत्व ‘‘संविधान के आदर्शों के मंजिल के पथ प्रदर्शक है ये कार्यपालिका और विधायिका के दिशा-सूचक है तथा प्रशासकों के लिए आचरण संहिता है’’1 इसलिए भारतीय संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्र आयरलैण्ड के संविधान से प्रभावित होकर राज्यों के लिए नीति निदेशक सिद्धांत का प्रतिपादन किया है ये सिद्धांत आधुनिक संविधानिक व्यवस्था की एक नवीन तथा प्रमुख विशेषता है।
भारत संविधान के भाग प्ट के अन्तर्गत अनुच्छेद-36 से 51 तक राज्य के नीति-निदेशक सिद्धान्त को ‘भारतीय संविधान की चेतना’ कहा जाता है। यह राज्य के लिए सकारात्मक निर्देश है, जिसका पालन लोक कल्याणकारी व्यवस्था के निर्माण में अपनी भूमिका निभाता है। नीति-निदेशक तत्व न्यायालय से लागू नहीं करवाए जा सकते अर्थात् इसका स्वरूप वैधानिक नहीं है, किन्तु ‘लोकतन्त्र’ में राजनीतिक प्रतिस्पद्र्धा के कारण इसके महत्व में वृद्धि हुई है। इसे आयरलैण्ड के संविधान से लिया गया है। नीति-निदेशक तत्व हमारे संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। भारत तथा आयरलैण्ड को छोड़कर विश्व के अन्य किसी भी देश के संविधान में इस प्रकार के निदेशक तत्वों का उल्लेख नहीं है। निति निदेशक तत्वों की ‘‘परिधी अत्यन्त विस्तरित है और ये जीवन के विविध पेहलूओं से सम्बन्धित हैं अतः इनका सर्वमान्य वर्गीकरण सम्भव नहीं है।’’2 किन्तु अध्ययन की सुविधा के लिए इन तत्वों को मुख्य रूप से निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।
आर्थिक एंव समाजवादी सिद्धान्त
नीति- निदेशक तत्वों का प्रमुख लक्ष्य एक लोक कल्याणकारी समाज की स्थापना करना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु नीति-निदेशक तत्वों के अन्तर्गत सामाजिक एंव आर्थिक न्याय को सुनिश्चित किया गया है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित सिद्धान्तों को शामिल किया गया है।
अनुच्छेद-38 के अन्तर्गत नीति-निदेशक तत्व राज्य को निर्देश देते हैं कि वे लोक कल्याण की अभिवृद्धि करके ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करे जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय सुनिश्चित हो। ये निर्देश संविधान की प्रस्तावना में अन्तर्निहित है।
अनुच्छेद-39 के अन्तर्गत राज्य को विशेषतया अपनी नीति का इस प्रकार संचालन करने का निर्देश देता है, जिससे कि –
1. पुरूष और स्त्री सभी को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
2. समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियन्त्रण इस प्रकार बँटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोŸाम रूप से साधन हो।
3. पुरूषों और स्त्रियों दोनांे का समान कार्य के लिए समान वेतन हो।
अनुच्छेद-42 के अन्तर्गत राज्य काम को न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता उपलब्ध करने का कार्य करेगा।
अनुच्छेद-43 (।) के अन्तर्गत राज्य किसी उद्योग में लगे हुए उपक्रमों संस्थाओं या अन्य संगठनों के प्रबन्ध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त विधान द्वारा या किसी अन्य नीति से विशेष कदम उठाएगा।
गाँधीवादी सिद्धान्त
अनुच्छेद-40 के अन्तर्गत राज्य ग्राम पंचायत का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा, जो उन्हें स्वायŸा शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने में आवश्यक हों।
अनुच्छेद-43 के अन्तर्गत राज्य गाँवों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद-46 के अन्तर्गत राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा।
अनुच्छेद-47 के अन्तर्गत राज्य का यह प्राथमिक’ कर्तव्य है कि वह लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर ऊँचा करने और लोक स्वास्थ्य सुधारने का प्रयास करे साथ ही मादक पदार्थों तथा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक        औषधियों के प्रयोग पर प्रतिषेध लगाए।
अनुच्छेद-48 के अन्तर्गत राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों पर संगठित करने का प्रयोग करेगा। विशेषकर गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू पशुओं के सुधार पर उनके वध के प्रतिषेध हेतु राज्य कुछ विशेष कार्य प्रारम्भ करेगा।
अनुच्छेद- 48 (।) के अन्तर्गत पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्द्धन का प्रयास करना तथा वन एवं वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करना।
पाश्चात्य उदारवादी सिद्धान्त
नीति-निदेशक तत्वों के अन्तर्गत पाश्चात्य उदारवादी सिद्धान्तों को भी अपनाया गया है। जिनका उल्लेख निम्नलिखित है।
अनुच्छेद-44 के अन्तर्गत राज्य, भारत के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद-45 के अन्तर्गत राज्य सभी बालकों के लिए छह वर्ष की आयु पूरी करने तक, प्रारम्भिक बाल्यावस्था की देख-रेख और शिक्षा देने के उपबन्ध करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद-50 के अन्तर्गत कार्यपालिका का न्यायपालिका से पृथक्करण की बात कही गई है।
अनुच्छेद-51 के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बढ़ावा देने की बात कही गई है।
संविधान के अन्य भागों में नीति-निदेशक तत्व
संविधान के भाग प्ट में उल्लेखित निर्देशों के ‘‘अतिरिक्त संविधान के अन्य भागों में राज्यों को सम्बोधित करने के अन्य निर्देश है’’3 इनका वर्णन निम्नलिखित है।
अनुच्छेद-350 (।) इसके अनुसार, प्रत्येक राज्य तथा राज्य के भीतर स्थानीय प्राधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि भाषायी अल्पसंख्यक वर्ग बालकों की शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा को पर्याप्त सुविधाओं का       प्रबन्ध बने।
अनुच्छेद-351 इसके अन्तर्गत संघ का यह कर्तव्य है कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए और उसका विकास करें, ताकि वह भारत की सार्वभौमिक संस्कृति के सभी तत्वों अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।
अनुच्छेद-335 के अन्तर्गत संघ या राज्य के कार्यकलाप से सम्बन्धित सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियाँ करने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों का प्रशासन की सक्षमता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा। यद्यपि अनुच्छेद-335, 350(।), 351 संविधान के भाग प्ट में सम्मिलित नहीं है फिर भी न्यायालयों द्वारा इन्हें नीति-निदेशक सिद्धान्तों की श्रेणी में संयोजित किया गया है।
राज्य के नीति के निदेशक तत्व एक नजर में
अनुच्छेद-36परिभाषा
अनुच्छेद-37इस भाग में अन्तर्विष्ट तत्वों का लागू होना
अनुच्छेद-38राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा
अनुच्छेद-39राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व
अनुच्छेद-39(।) समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता
अनुच्छेद-40ग्राम पंचायतों का संगठन
अनुच्छेद-41कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
अनुच्छेद-42काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबन्ध
अनुच्छेद-43कर्मकारों के लिए निर्वा मजदूरी आदि
अनुच्छेद-43(।) उद्योगों के प्रबन्ध में कर्मकारों का भाग लेना
अनुच्छेद-44नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता
अनुच्छेद-45प्रारम्भिक शैशवावस्था की देख-रेख छह वर्ष से कम आयु के बालकों की शिक्षा का प्रावधान
अनुच्छेद-46अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि
अनुच्छेद-47पोषाहार स्तर और जीवन-स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य
अनुच्छेद-48कृषि और पशुपालन का संगठन
अनुच्छेद-48(।) पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्द्धन और वन तथा अन्य जीवों की रक्षा
अनुच्छेद-49राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
अनुच्छेद-50कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
अनुच्छेद-51अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि
42 वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा जोड़ा गया कि अनुच्छेद-39 (।) कानूनी व्यवस्था इस प्रकार काम करें कि न्याय समान अवसर सिद्धान्त के आधार पर सुलभ हो और राज्य विशिष्टतया आर्थिक या किसी अन्य नियोग्यता के मामलों में निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था करें। अनुच्छेद-39 (थ्) बच्चों को स्वतन्त्र एवं गरिमाम्य वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ प्रदान की जाएँ। अनुच्छेद-43 (।) उद्योगों के प्रबन्ध में कर्मकारों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए। अनुच्छेद-48 (।) पर्यावरण का संरक्षण हो तथा उसमें सुधार लाया जाए तथा वनों और वन्य जीवों की रक्षा की जाए। 44 वें संविधान (1978) द्वारा अनुच्छेद-38 (।) राज्य विशिष्टतः आयु की असमानताओं को कम करने और समूहों के बीच तथा विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।
नीति-निदेशक तत्वों का क्रियान्वयन
सरकार स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही नीति-निदेशक तत्वों को मौलिक अधिकारों में परिवर्तित करने के लिए प्रयासरत है। ‘‘राज्य ने इन निदेशक तत्वों को क्रियान्वित करने में कदम भी उठाए हैं और इन कदमों में सफलता भी प्राप्त की है।’’4
अनुच्छेद-39 में दिए गए नीति-निदेशक तत्व अर्थात् स्त्री-पुरूष को समान कार्य के लिए समान वेतन आदि के क्रियान्वयन के लिए सरकार ने एक ओर पंचवर्षीय योजनाओं एवं भूमि सुधार कार्यक्रम आरम्भ किया तो दूसरी ओर महिलाओं की आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए स्वयं सिद्धा कार्यक्रम जैसे अनेक कार्यक्रमों को प्रारम्भ किया। निश्चित रूप से सरकार ने अनुच्छेद-39 में दिए गए नीति-निदेशकों के क्रियान्वयन में काफी सफलता प्राप्त की परन्तु आज भी भारत में बेरोजगारी और असमानता जैसी समस्याएँ समाप्त नहीं हो सकी हैं।
अनुच्छेद-40 में दिए निर्देश, ग्राम पंचायतों का संगठन तथा स्वायत शासन की स्थापना के लिए भारत सरकार ने 73वें तथा 74वें संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान करते हुए पूरे देश में अधिकार सम्पन्न और त्रिस्तरीय पंचायत राज प्रणाली की स्थापना की।
अनुच्छेद-41 के तहत सरकार ने जनता को राजगार की व्यवस्था करने के लिए समन्वित गामीण विकास कार्यक्रम, प्रधानमन्त्री स्वरोजगार योजना, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना जैसी अनेक योजनाएँ संचालित की हैं। फरवरी, 2006 में प्रारम्भ राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी कार्यक्रम में प्रावधान है कि प्रत्येक परिवार के मुखिया को वर्ष में 100 दिन का रोजगार दिलाने में सरकार असफल रहती है तो उसे बेरोजगारी भत्ता देने की व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद-44 में दिए गए समान सिविल संहिता के लिए सरकार ने विशेष विवाह अधिनियम तथा हिन्दू     उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 पारित किए हैं, परन्तु शाहबानों (1986), सरला मुद्गल (1995) के वादों में सर्वोच्च न्यायालयों के आदेश के बाद सरकार पूरे देश में समान सिविल संहिता लागू करने में असफल रही है।
अनुच्छेद-45 में दिए गए निर्देशक तत्व 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को 86वें     संशोधन अधिनियम द्वारा मौलिक अधिकारों में परिवर्तित कर दिया गया है, अब यह अनुच्छेद-21ए के अन्तर्गत एक मौलिक अधिकार है।
अनुच्छेद-46 के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों के शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास की अभिवृद्धि के लिए विभिन्न रोजगार कार्यक्रमों में इनके लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई तथा सरकारी नौकरियों में इन वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। अनुच्छेद-47 के क्रियान्वयन के लिए बच्चों में पर्याप्त पोषाहार के लिए मिड-डे मील कार्यक्रम स्कूलों में चलाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त मादक पदार्थों के सेवन को रोकने के लिए मादक पदार्थ तस्करी अधिनियम पारित किया गया है।
अनुच्छेद-48 में दिए गए निर्देश कृषि एवं पशुपालन का वैज्ञानिक तरीके से संगठन कराने के लिए कृषकों को      आधुनिक बीज उपकरण तथा उर्वरक उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सरकार ने वर्ष 2000 में नई राष्ट्रीय कृषि नीति की घोषणा की, जिसमें इन्द्रधनुषी क्रान्ति का लक्ष्य रखा गया है।
अनुच्छेद-49 में दिए निर्देशक तत्व के क्रियान्वयन के लिए सांस्कृतिक मन्त्रालय तथा पुरातत्व विभाग महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे है।
अनुच्छेद-51 में अन्तराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा में अभिवृद्धि के लिए सरकार ने गुटनिरपेक्ष नीति, पंचशील सिद्धान्त तथा यूएनओ का समर्थन आदि को अपनी विदेश नीति के आधार स्तम्भ के रूप में स्वीकार किया है। नीति-निदेशक तत्वों के पूर्ण क्रियान्वयन के लिए अभी गम्भीर प्रयास करने होंगे, नीति-निदेशक तत्वों के पूर्ण क्रियान्वयन के बाद ही अपने देश में राजनीतिक लोकतन्त्र के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक लोकतन्त्र स्थापित कर सकेंगे और ‘पूर्ण लोकतन्त्र‘ के आदर्श को प्राप्त कर सकेंगे।
समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता का तात्पर्य एक पंथनिरपेक्ष विधि से है, जो सामान्यतः सभी धर्म के लोगों के लिए समानरूप से लागू होता है। समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म या जाति सम्बन्धित सभी व्यक्तिगत कानूनों से श्रेष्ठ होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-44 के तहत राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह समस्त भारतीयों के लिए चाहे वे किसी धर्म के प्रति अपनी आस्था रखते हों. नागरिक संहिता लागू करें।
भारत सरकार ने हिन्दू विवाह अधिनियम, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के माध्यम से हिन्दू कानून में सुधार करने का प्रयास भी किया, परन्तु इसके अतिरिक्त समान सिविल संहिता के मामले में सरकार पूरी तरह से निष्क्रिय रही। शाहबानों वाद (1986) मामले में न्यायालय ने सरकार को समान नागरिक संहिता (अनुच्छेद-44) निदेशक तत्व के क्रियान्वयन का आदेश दिया था।
इसके अलावा सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) बाद में जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान भी न्यायालय ने सरकार को एक बार फिर समान नागरिक, संहिता लागू करने का निर्देश दिया था, परन्तु वस्तु स्थिति यही है कि सरकार की दृढ इच्छा शक्ति के अभाव में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो पा रही है। धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधताओं के कारण समाज के विभिन्न समुदायों एवं वर्गों में भी समान नागरिक संहिता लागू किए जाने का विरोध करते रहे हैं। भारत में ज्यादातर निजीगत कानून धार्मिक आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध, हिन्दू विधि के अन्तर्गत आते हैं, जबकि मुस्लिम और ईसाई के लिए अपने पृथक कानून हैं। मुस्लिम कानून का मुख्य स्त्रोत शरीयत है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के निजी कानून संवैधानिक मूल्यों पर आधारित हैं। वर्तमान में विश्व के अनेक पन्थनिरपेक्ष देशों, जैसे रूस, नॉर्वे, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, कनाडा, पोलैण्ड एवं चीन में समान नागरिक संहिता लागू है।
नीति-निदेशक ‘‘तत्वों से सम्बन्धित वाद’’5
चम्पाकम दोराइराजन बनाम मद्रास
(1951) इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि नीति-निदेशक तत्व मौलिक      अधिकारों की उपेक्षा या अवहेलना नहीं कर सकते है, साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार किया है, कि निर्धारित प्रक्रिया के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य वाद
(1965) इस वाद में न्यायालय ने निदेशक तत्वों को शासन के लिए आधारभूत माना है और मौलिक अधिकारों के साथ इनके समन्वय पर बल दिया है।
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)
इस वाद में न्यायालय ने कहा कि मौलिक अधिकार और नीति-निदेशक तत्व के बीच सन्तुलन संविधान के आधारभूत ढाँचे का भाग है, संसद इस सन्तुलन को नष्ट कर सकती है।
रणछोर बनाम भारत संघ (1982)
इस वाद में न्यायालय ने कहा कि यद्यपि समान कार्य के लिए समान वेतन संविधान के अधीन एक मौलिक अधिकार नहीं है, वरना नीति-निदेशक तत्व है, किन्तु निश्चित ही यह हमारा सांविधानिक लक्ष्य है।
नीति निदेशक तत्वों के सन्दर्भ में ‘‘कुछ महत्वपूर्ण वक्तव्य’’6
1. यद्यपि मौलिक अधिकारों के क्षेत्र या परास का निर्धारण करने में निदेशक सिद्धान्त मौलिक अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकते, अपितु न्यायालय इन सिद्धान्तों की पूर्णयता उपेक्षा भी नहीं कर सकते। अतः उन्हें, जहाँ  तक सम्भव हो, दोनांे के कार्यान्वयन के लिए मधुर सामजस्य का सूत्र अपनाना चाहिए। (दुर्गादास बसु)
2.ये निर्देशक सिद्धान्त राज्य की नीति के आधारभूत सूत्र है, उनका कानूनी मान्यता न होने पर भी उन्होंने न्यायालयों के लिए उपयोगी प्रकाश स्तम्भों का काम किया है।
(एम0सी0 सीतलवाद)
3. जबकि मौलिक अधिकार शासन को कुछ काम करने से रोकने के निर्देश है, निर्देशक सिद्धान्त सरकार को कुछ काम करने हेतु सकारात्मक आदेश है। (एलन ग्लैडहिल)
4. इन निर्देशक सिद्धान्तों के पीछे ब्रिटिश समाजवादियों के प्रेत की छाया दिखायी देती है।
(आइवर जेनिंग्स)
5. ये सिद्धान्त पवित्र निरर्थकताओं की तरह हैं या उस चेक के समान हैं जिन्हें कोई बैंक अपनी सुविधानुसार भुनायेगा।’’1 (के0टी0 शाह)
राज्य के ‘‘नीति निदेशक तत्वों के सन्दर्भ में विभिन्न विचार’’7
6. ‘‘नीति-निदेशक तत्वों को पुण्यात्मा, नैतिक आकाक्षा, फेबियान समाजवाद से प्रेरित आदि संज्ञाएँ दी है।’’ (आइवर जैनिंग्स)
7. ‘‘नीति-निदेशक तत्व समाज के समाजवादी ढाँचे की स्थापना करते हैं। नेहरू
8. ‘‘नीति-निदेशक तत्व संसद एवं न्यायपालिका में संघर्ष को बढ़ावा देते है। केसी हीयर
9. यह सामाजिक क्रान्ति को स्थापित करते है या क्रान्ति को बढ़ावा देते है। आॅस्टिन
10. यह आर्थिक क्षेत्र में समाजवाद की स्थापना करते है। के0एम0 पणिक्कर
11. नीति-निदेशक तत्व आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना करते है। अम्बेडकर
12. यह एक ऐसा चेक है, जिसका भुगतान बैंक की इच्छा पर छोड़ दिया गया है।            (प्रो0 केटी शाह)
13. नीति-निदेशक तत्व नागरिकों के प्रति राज्य का सकारात्मक दायित्व है।’’2 पायली
भारतीय संविधान के लिए निर्देांशक तत्व तेजबहादुर स्प्रू समिति ने तैयार किया। भारतीय संविधान के भाग 4 की धारा 36 से लेकर 51 तक राज्य की नीति के निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है। संविधान की प्रस्तावना में परिकल्पित, लोकहितकारी राज्य एवं समाजवादी राज्य की स्थापना का आदर्श तभी प्राप्त किया जा सकता है जबकि राज्य इन सिद्धांतों को लागू करें। इस सिद्धांत का मुख्य उदद्ेश्य विधानमंडल और कार्यपालिका तथा क्षेत्रीय प्राधिकारियों के समक्ष उपलब्धि का एक मानदण्ड रखना है जिस पर उनकी सफलता और असफलता की जाँच की जा सके, साथ ही साथ इसके माध्यम से संविधान को गतिशील एवं प्रभावशाली बनाए रखने का सार्थक प्रयास किया है।
संदर्भ
1. अशोक कुमार; राज्य के नीति के निदेशक तत्व; राजनीति विज्ञान; उपकार प्रकाशन आगरा-2; पृष्ठ 311
2. डाॅ0 एस0के0 ओझा (सम्पादक); नीति निदेशक तत्व और मूल कर्तव्य; भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था; बौद्धिक प्रकाशन इलाहाबाद 2013
3. डाॅ0 पुखराज जैन भारतीय शासन एवं राजनीति; साहित्य भवन पब्लिकेशन्स, आगरा; 2004 पृष्ठ 52
4’. बी0 बी0 तायल; मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक सिद्धान्त; भारतीय राजनीतिक व्यवस्था; सुल्तान चन्द एण्ड सन्स प्रकाशक; नई दिल्ली; पृष्ठ 67
5. नीति-निदेशक तत्वों से सम्बन्धित वाद; नीति निदेशक तत्व राज्य के दायित्वों की संकल्पना; समसामयिकी महासागर; जुलाई 2018; पृष्ठ 70
6. डाॅ0 जे0सी0 जौहरी; कुछ महत्वपूर्ण वक्तव्य; राजनीति विज्ञान; एस0बी0पी0डी0 पब्लिकेशन्स आगरा; 2020; पृष्ठ 140
7. नीति-निदेशक तत्वों के सम्बन्ध में विभिन्न विचार; नीति निदेश्क तत्व राज्य के दायित्वों की संकल्पना समसामयिकी महासागर; जुलाई 2018; पृष्ठ 69

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