डा0 शिवकान्त यादव1 एवं गीता2
1. एसो0 प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग
(डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅ0, बुलन्दशहर)
2. शोधार्थिनी राजनीति विज्ञान विभाग,
(डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅ0, बुलन्दशहर)
किसी भी देश की लोकतन्त्रात्मक प्रणाली की सफलता वहाँ लोक नीति को क्रियान्वित करने वाले प्रशासन पर निर्भर करती है। प्रशासन, मूल रूप से संस्कृत भाषा का शब्द है। यह ‘प्र’ उपसर्गपूर्वक, ‘शास्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता हैं, उत्कृष्ट रीति से शासन करना। वास्तविक अर्थ में इसका अर्थ-निर्देशन, पथ-प्रदर्शन व आज्ञा देने से हैं वैदिक युग में ‘प्रशासन’ इसी रूप में समझा जाता था। प्रशासन का अंग्रेजी रूपान्तर ‘एडमिनिस्टेªशन’ हैं। यह मूलत ‘एड’ उपसर्गपूर्वक ‘सेवा करने का अर्थ’ देने वाली लैटिन की धातु ‘मिनीस्ट्री’ से बना है।1 इसका मूल अभिप्राय एक व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति के हित की दृष्टि से उसकी सेवा का कोई कार्य करना है, जैसे पादरी द्वारा किसी व्यक्ति को धार्मिक लाभ पहुँचाने के लिए धार्मिक संस्कार करना, न्यायधीश द्वारा न्याय करना, डाॅक्टर द्वारा बीमार को दवाई देना आदि।
प्रशासन की सबसे महत्पूर्ण इकाई के रूप में कार्मिक होते हैं उनकी भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पद-वर्गीकरण, आचार-संहिता एवं मनोबल आदि प्रशासन का अनिवार्य हिस्सा है। ‘‘प्रबंध मानव के विकास के लिए है न कि वस्तुओं के निर्माण के मार्ग निर्देशन के लिए। प्रबन्ध और कार्मिक प्रबन्ध एक ही है।’’2 वस्तुतः कोई भी संगठन अपने कार्मिकों की कुशलता, नेतृत्व, कत्र्तव्यनिष्ठा आदि निर्भर होता है। ‘‘प्रबंध मानव के विकास के लिए है न कि वस्तुओं के निर्माण के मार्ग निर्देशन के लिए’’ ……प्रबन्ध और कर्मिक प्रबंध एक ही है।3 अमेरिकी विद्वान एफ0डब्ल्यू0टेलर द्वारा प्रतिपादित ‘वैज्ञानिक प्रबन्धन’ को कार्मिक प्रशासन का जन्मदाता माना जाता है। भारत में कार्मिक प्रशासन के तत्व हमें प्राचीन भारतीय ग्रन्थों, महाकाव्यों में देखने को मिलता है, किन्तु वर्तमान स्वरूप में यह ब्रिटिश शासन की देन है। संक्षेप में राष्ट्रीय सरकारों के किए गए प्रयासों के परिणाम स्वरूप कार्मिक प्रशासन दिनों-दिन उत्कृष्ट होता जा रहा है।
महिलाओं का पुलिस विभाग में प्रवेशः-
‘माक्र्स’ का कहना था कि ‘‘स्त्रियों की सामाजिक स्थिति से सामाजिक प्रगति को ठीक-ठाक मापा जा सकता है। स्त्रियों की स्थिति के कुछ महत्वपूर्ण और आपस में एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े पहलू इस प्रकार है। उनके आदर्श परिवार में उनकी भूमिका, समाज में उनकी भूमिका, आर्थिक भूमिका, कार्यक्षेत्र और निषिद्ध कार्यों का दायरा आदि’’। इस सम्बन्ध में ‘गोरे’ का कथन महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होने लिखा है कि, परिवार में स्त्री के छोटे दर्जे का संबंध आर्थिक कार्यों से, उसके अलग रखे जाने से है। वह अपने कथन के समर्थन में भारत की नीची जाति और ऊँची जाति के परिवारों की तुलना प्रस्तुत करते हैं, जिनमें देखा जाता है कि कुछ नीची जाति की स्त्रियों के मामले में विरासती जायदाद की समस्या करीब-करीब है ही नहीं और व सामान्यतः लाभप्रद कार्यो में लगी हुई है और ऊँची जातियों की तुलना में उन्हें ज्यादा स्वतन्त्रता प्राप्त है, क्योंकि ऊँची जाति की स्त्रियाँ लाभप्रद कार्यों में नहीं लगी हुई हैं, अथवा उन्हें आर्थिक कार्यों से अलग रखा जाता है।4
भारतवर्ष में महिला पुलिस का आरम्भ लगभग स्वतन्त्रता के बाद ही हुआ। स्वतन्त्रता से पूर्व लाहौर शहर में ही सबसे पहले महिला पुलिस निरीक्षक रेलवे स्टेशन के थाने में तैनात थी। सन् 1948 ई0 में पंजाब और दिल्ली में कुछ संख्या में महिला पुलिस नियुक्त की गई। कलकत्ता में पहली महिला पुलिस सन् 1949 ई0 में और बम्वई में सन् 1952 ई0 में नियुक्त की गयी।5 पुलिस बल में महिलाओं की आवश्यकता तब महसूस की गयी, जब आजादी के बाद हुए दंगों में अपहरण और बलात्कार की घटनाएं तेजी से बढ़ने लगी। शरणार्थियो में महिलाओं की तादात काफी अधिक थी। महिलाओं व बच्चों के प्रति तेजी से बढ़ते अपराधों ने पुलिस में इस बात की आवश्यकता बढ़ा दी जिसमें महिलाएं अपने आप को अधिक सुरक्षित महसूस कर सकें।6 अपराध में सम्मिलित महिलाओं के बयान रिकार्ड करने, पूछताछ करने में भी महिला पुलिसकर्मियों की आवश्यकता होने लगी नकारात्मक दृष्टिकोण से ही नहीं, सकारात्मक दृष्टिकोण से भी यह सिद्ध हो चुका है कि नारी में नव दुर्गा स्वरूप कई गुण मौजूद होते है। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि सफल गृहिणी होने के साथ-साथ महिलाओं ने अनेक मोर्चे पर सफल नेतृत्व प्रदान किया है।
भारत मंे कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। सन् 2001 को महिला सशक्तीकरण वर्ष के रूप में घोषित किया गया है ताकि महिलाएं सशक्त बनाकर स्वस्थ राष्ट्र की स्थापना कर सकें। हम राष्ट्रपिता ‘महात्मा गांधी’ के इस कथन को पूर्णतः साकार करना चाहते हैं, कि ‘‘जब तक भारत की महिलाएं सार्वजनिक जीवन का हिस्सा नहीं होगी, देश तरक्की नहीं कर सकता।7
विभिन्न राज्यों ने महिला पुलिस की स्थितिः-
जिस प्रकार एक परिवार केवल पुरूष के दम पर ही खड़ा नहीं हो सकता, ठीक उसी प्रकार एक राष्ट्र भी तभी विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा हो सकता है जब उसके विकास में पुरूषों के बराबर ही महिलाओं की भी भागीदारी सुनिश्चित हो। इस संबंध में राष्ट्रीय पुलिस आयोग ने यह सुझाव दिया है कि यदि अधिक से अधिक महिला पुलिस का प्रयोग किया जाए तो पुलिस के दुव्र्यवहार की शिकायतें कम हो सकती है। महिला पुलिस कार्य प्रायः शांतिपूर्व ढंग से करती है और परिस्थितियों पर अपने अच्छे व्यवहार से काबू पा लेती हंै। महिला पुलिस के समुचित प्रयोग से एक ऐसे समाज का निर्माण हो सकता है, जिसमें अपराधों पर नियंत्रण हो और शाँति और व्यवस्था कायम हो।8 किन्तु भारतीय पुलिस बल के आँकड़े कुछ और ही कहते है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों, सरकारों एवं संघशासित प्रदेशों को 2009, 2012 एवं 2016 में पत्र लिखकर महिला पुलिस की संख्या 33 प्रतिशत करने की सलाह दी गयी, किन्तु इसके बाद भी स्थिति दयनीय है। गृह मंत्रालय के अनुसार वर्तमान पुलिस बल में महिला पुलिस कर्मियों की संख्या सिर्फ 10.30 फीसदी है, जो कुल संख्या 20,91,488 मंे से 2,15504 है। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो द्वारा जारी, 1 जनवरी 2020 की नवीनतम पुलिस संगठनों पर आधारित आँकड़ो के अनुसार यह चिंता का विषय है। रिपोर्ट में कहा गया हैं, पुलिस में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व महिलाओं और महिला अपराधियों के खिलाफ अपराधों से निपटने में गभीर चुनौतियां पेश कर रहा है। इसलिए यह आवश्यक है कि महिला पुलिसकर्मी अत्याधुनिक स्तर पर दिखाई दे। इसके अलावा, सशस्त्र पुलिस सहित सभी राज्यों और केंन्द्र शासित प्रदेशों के लिए कुल स्वीकृत पुलिस बल 26,23,225 हैं, जिसमें 5,31,737 रिक्त पद अभी भी खाली हैं।9 टाटा ट्रस्ट द्वारा जारी, इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के मुताबिक विभिन्न राज्यों में महिला पुलिस की उपस्थिति का प्रतिशत-
बिहार-25.3/100
तमिलनाडू-18.5/100
पं0 बंगाल-9.7/100
दिल्ली-12.3/100
केरल-7.2/100
झारखण्ड-7.1/100
रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश एवं तेलंगाना देश के उन राज्यों में शामिल हैं, जहाँ पुलिस में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम है। मध्य प्रदेश में 6/100 तो तेलगंाना में 5/100 महिला पुलिसकर्मी है। जबकि हरियाणा, गोवा, मिजोरम जैसे राज्यों में महिला पुलिस की संख्या में गिरावट दर्ज की गयी।10
महिला पुलिसकर्मियों की समस्याएॅः-
आकड़ों से स्पष्ट है कि पुलिस बल में महिला पुलिसकर्मियों की क्या स्थिति है। आँकड़ों को ठीक करने की कोशिश की जाए, तब भी यह विभाग महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण बना रहेगा। पुलिस बल में नियुक्ति पाने से लेकर प्रत्येक दिन की ड्यूटी को पूरा करने तक महिलाओं को अनेक किस्म की समस्याओं से दो-दो हाथ होना पड़ता हैं। दरसल विभाग की संरचना पुरूषों को ध्यान में रखकर बनायी गयी हैं और दूसरी ओर भारतीय समाज की रूढ़िवादी, परम्परावादी सोच भी इसके लिए उत्तरदायी है। संक्षेप में महिला पुलिसकर्मियों की चुनौतियों को मोटे तौर पर तीन स्तरों में विभाजित किया जा सकता हैः-
अ- पुलिसीय ढाँचा व महिला पुलिसकर्मी
ब- कार्यस्थल की कार्यप्रणाली व महिला पुलिसकर्मी
स- समाज, परिवार और महिला पुलिसकर्मी
(प) पुलिस में नियुक्ति व महिला पुलिसकर्मी की चुनौतीः-
पुलिस बल में नियुक्ति पाते समय जहाँ एक ओर आत्मविश्वास चरम स्तर पर होता है, तो वहीं दूसरी ओर गृहजनपद से विपरीत दिशा में नियुक्ति त्वरित चुनौती बन कर सामने खड़ी हो जाती है। एक ओर कत्र्तव्य पथ पर अडिग रहने की प्रतिबद्धता, तो दूसरी ओर पारिवारिक दायित्वों, सुखों की तिलांजली देने का कष्ट सहना होता है। महीनों बीत जाते हैं बच्चों व परिवारीजनों से मुलाकात किए। महिला पुलिस के अनुसार अब तीज-त्यौहार तो मानों छूट ही गये हैं। जल्दी-जल्दी अवकाश लेना भी संभव नहीं होता है। त्यौहारों पर जहाँ महिलाओं की इच्छा होती हैं कि वह अपने परिवार के साथ सभी परम्पराएं निभाए, वहीं पुलिस को 24 घंटे की सर्तकता के साथ अतिरिक्त डयूटी करनी होती है। यह समस्या तब और बड़ी हो जाती है जब उनका जीवन साथी भी पुलिसकर्मी हो और उसकी नियुक्ति किसी अन्य जनपद में।
(पप) थानों में विश्राम-कक्ष, शौचालय व महिला पुलिसः-
उ0प्र0 सरकार ने प्रत्येक थाने में कम से कम दो महिला पुलिसकर्मियों की नियुक्ति का आदेश दिया हैं, किन्तु धरातलीय स्तर पर इस व्यवस्था को लागू करना बड़ा चुनौतीपूर्ण है। आधिकांश थानों में महिलाओं के लिए अलग से विश्राम कक्ष, शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का नितान्त अभाव दिखायी देता है। एक स्त्री होने के नाते कभी अनियमित माहवारी का दर्द से झेलना होता है, तो कभी माँ होने के नाते दूध मुँहे बच्चे को स्तन-पान कराना होता है। किन्तु थानों में महिला पुलिस की निजता का कोई ध्यान नहीं रखा गया है। उन्हें पुरूषों के विश्राम कक्ष चेजिंग रूम तथा शौचालयों का प्रयोग करना पड़ता है। यदि कुछ थानों में शौचालय आदि की व्यवस्था की भी तो वे इतनी जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, कि उनका प्रयोग करना संभव ही नहीं। न उनमें बल्ब, दरवाजे आदि की व्यवस्था मिलेगी, न ही सेनेटरी पैड को नष्ट करने के लिए कूडे़दान/बाॅर्डर आउट पोस्ट में तो महिला व पुरूष दोंनों की ही बैरक एक कम्पाउड में कर दी जाती है। बैरकंे अलग-अलग होती है किन्तु उनके मध्य दीवार या पर्दे भी नहीं रहते कई वार तो दरवाजे भी गायब रहते है। यह महिला के लिए काफी असहज स्थिति हैं, जिसे तुरन्त दूर किए जाने की आवश्यकता हैं।
(पपप) पुलिसीय पोशाक एवं महिला पुलिस कर्मी:-
पुलिस की पोशाक खाकी वर्दी, बुलेट प्रूफ जैकेट, दंगे आपदा के समय बेल्ट आदि निर्धारित की गयी, जिसकी रचना पुरूषों की शारीरिक बनावट के अनुसार की गयी हैं इस कारण यह महिला पुलिसकर्मी के अनुकूल नहीं होती। भारी-भरकम गोली रोधक जैकेट सीने के हिसाब से फिट नहीं बैठती। उन्हें घुटन, साँस लेने में तकलीफ आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त वर्दी का खाकी रंग माहवारी के समय उन्हें असहजता का अनुभव कराता है। इस स्थिति में पेट एवं पीठ में दर्द होने के कारण पुरूषों की भांति कमर पर कसकर बेल्ट बाँधना भी अत्यन्त कष्टदायी होता है। बी0पी0आर0एन0डी0 ने भी वर्ष-2011 में सिफारिश की थी कि माहवारी के दौरान महिलाकर्मी को किसी भी तरह की शर्मिन्दगी व उत्पीड़न का शिकार न होना पड़े, इसका ध्यान रखते हुए प्रशासन को पुलिस कर्मियों के लिए वैकल्पिक यूनिफार्म का प्रावधान करना होगा।11 विभाग को महिला पुलिस की इन आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर नीतियाँ कार्यप्रणाली परिवर्तित की आवश्यकता है जिससे महिला पुलिसकर्मी की कार्यक्षमता अधिक उत्कृष्ट हो सके।
(पअ) आवासीय उपलब्धता एवं महिला पुलिसकर्मीः-
पुलिस विभाग ने महिलाओं को आधी आबादी मानकर उन्हें पुलिस में भर्ती होने का अवसर तो दिया, किन्तु प्रशासनिक ढाँचा अभी उनके लिए पृथक आवास की समुचित व्यवस्था कर पाने में अक्षम रहा है। प्रत्येक जनपद में पुलिस लाइन आवास तो होते हैं, किन्तु उनकी संख्या मौजूद पुलिसकर्मियों की संख्या से कई गुना कम होती है। ऐसे में पुलिस लाइन में आवास मिलना अत्यन्त चुनौती पूर्ण कार्य है। थानों में तो यह स्थिति और भी विकट है। ऐसी स्थिति में या तो कही किराये का मकान लेकर रहना पड़ता है। अथवा एक ही आवास में दो-तीन महिला पुलिसकर्मियों को एक साथ रहना पड़ता है। लाइन से बाहर रहने पर महिला पुलिसकर्मी का कहना है, कि उन्हें लोग आते जाते अजीब नजरों से देखते हैं, उन पर छींटाकशी करते है। ऐसे में पूरे मन से नौकरी करना बहुत कठिन हो जाता है।
लखनऊ के डी0जी0आर0 आॅफिस से सम्बद्ध एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक आवास की समस्या बहुत गम्भीर है, लेकिन उसे दूर करने की कोशिशें हो रहीं है। अभी तो स्थिति यह है कि ऐसे थानों में जहाँ 50-60 महिला पुलिस की तैनाती है वहाँ महज दो या तीन छोटे आवास ही उपलब्ध है। ऐसे में मुश्किल से 7-8 महिला शेयर कर पाती है। बाकी लोगों को बाहर ही आवास का इंतजाम करना पड़ता है।
(अ) गश्त तथा बाह्य र्मोचे पर डयूटी हेतुः-
पुलिसिंग प्रणाली मंे गश्त एक महत्वपूर्ण गतिविधि है। अधिकांश अपराध रात्रि के समय ही होते है, किन्तु इस मुश्किल वक्त में महिला कर्मी सिर्फ एक डण्डे के भरोसे कार्य करती है। हद तो तब हो जाती है, जब अचानक आयी आपदा-साम्प्रदायिक दंगे, हड़ताल-नियन्त्रण, प्राकृति आपदा आदि में महिला पुलिस को गन्तव्य तक पहुँचाने के लिए ट्रक, लोडर, आदि का इस्तेमाल किया जाता हैं। ट्रकांे में सीढ़िया नहीं होती। महिलाओं को भी पुरूषों की भाँति कूदकर चढ़ना उतरना पड़ता हैं। माहवारी के समय तो यह समस्या और भी विषम हो जाती हैं। लंबे सफर में शौच आदि का भी कोई इंतजाम नहीं होता। इसीलिए वे पानी भी कम पीती हैं। फलतः अनेक प्रकार के इन्फेक्शन घेर-लेते महिला पुलिस को वीआईपी ड्यूटी पर भेज दिया जाता, जहाँ न ड्यूटी के कोई निश्चित घण्टे होते और न ही भोजन का प्रबंध/क्या बिना खाये-पीये एक कर्मचारी अच्छे प्रदर्शन कर सकता हैं?
(अप) बच्चों की देख-रेख व महिला पुलिसः-
पुरूषों के समान वर्दी पहनने पर भी एक नारी का नारीत्व एवं मातृत्व लुप्त नहीं हो सकता। 24 घण्टे की डयूटी की थकान तथा आकस्तिक रूप से ड्यूटी आदेश का पालन, इन सभी को महिला पुलिस अपने कत्र्तव्य का ही एक भाग मानती है, किन्तु उन्हें फिक्र रहती है तो अपने मासूम बच्चों की। 21 वीं सदी में जहाँ दुनिया इतनी आधुनिक हो चुकी, वहाँ आश्चर्य होता है कि अभी तक भी किसी ने पुलिस विभाग में ‘क्रैच’ जैसे मूलभूत सुविधाओं पर विचार क्यों नहीं किया? अक्सर महिला पुलिसकर्मी की अपने दुध मँुहें बच्चे के साथ ड्यूटी करते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती है। हाल ही में उ0प्र0 के झाँसी जिले में तैनात साहिला आरक्षी ‘अर्चना’ की अचानक एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो गयी, जिसमें वो कुर्सी पर बैठकर काम करती नजर आ रही, वही बंगल में एक मेज पर उनकी बच्ची सो रही थी। उसका कारण यह था कि उनका गृह जनपद आगरा हैं और पति की नियुक्ति दिल्ली के पास।12 यह केवल शिशुओं तक ही सीमित नहीं है। कुछ महिला पुलिसकर्मी जिनके बच्चे किशोरावस्था में हैं, बताती है कि यदि रात्रि के समय उन्हें ड्यूटी पर बुलाया जाता है तो उन्हें अपने बच्चों को कमरे में बन्द करके आना पड़ता है। इस ह्रदयविदारक स्थिति का तुरन्त समाधान किये जाने की आवश्यकता हैं।
(अपप) पदोन्नति का क्रम व महिला पुलिसः-
पुलिस बल में विघमान पदोन्नति-प्रणाली भी महिला पुलिस कर्मी को हतोत्साहित करने वाली है। एक आरक्षी को 10-15 वर्ष लग जाते हैं मुख्य आरक्षी बनने के लिए और तकरीबन इतने ही वर्ष लग जाते है मुख्य आरक्षी से ‘सहायक उपनीरक्षक’ बनने तक। इसमें योग्यता का ध्यान रखने के बजाए बैच का ध्यान रखा जाता है। कभी-कभी तो पदोन्नति में इतना विलम्ब हो जाता है कि एक आरक्षी मुख्य आरक्षी बनकर ही सेवानिवृत्त हो जाती है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत बताते है कि पुलिस में जितनी महिलाएं हैं, उनमें से भी सिर्फ 1 प्रतिशत महिला पुलिसकर्मी उच्च पदों तक पहुँच पाती हैं। 90 प्रतिशत से ज्यादा महिलांए आरक्षी ही रह जाती हैं।13 अपनी पारिवारिक स्थिति को संभालने के लिए वे कम उम्र में आरक्षी वर्ग में सम्मिलित हो जाती हैं, किन्तु योग्य पुलिसकर्मी की इच्छा होती है कि उसे और आगे बढ़ने का मौका दिया, जिससे उसकी योग्यता के साथ पूरी तरह से न्याय हो सके।
(अपपप) अवकाश प्राप्ति व महिला पुलिसः-
पुलिस प्रशासन द्वारा महिला पुलिस के लिए अनेक प्रकार के अवकाशों की व्यवस्था की गयी है, यथा मातृत्व अवकाश, बाल्य-देखभाल अवकाश आदि। प्रसव होने पर एक महिला पुलिसकर्मी को 6 माह का मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाता हैं। किन्तु महिला पुलिस का कहना है कि 6 माह में बच्चा बड़ा तो नहीं हो जाता, ऐसे में उन्हें इसके साथ ही बाल्य देखभाल अवकाश की भी महती आवश्यकता पड़ती है। यदि इतने भी अवकाश उन्हें आसानी से प्राप्त हो जाएं, तो भी उन्हें अपनी ड्रयूटी पूरी करने में काफी मदद मिल सकती है। किन्तु समस्या तो तब आती है, जब उन्हें सरकार द्वारा प्रदत्त इन अवकाशों को प्राप्त करने हेतु भागदौड़ करनी पड़ती है। अत्यधिक कागजी कार्यवाही, भागदौड़ के उपरान्त भी उन्हें भ्रष्टाचार जैसी समस्यओं का सामना करना पड़ता है। उनका मानसिक उत्पीड़न किया जाता है। अनेक अवसरों पर गर्भावस्था में भी महिला पुलिसकर्मी अपनी स्थिति के विपरीत कत्र्तव्य निर्वहन कर रही होती हैं। पुलिस अधिकारी से लेकर बाबू तक उनको अवकाश न देने में इस मनोदशा से प्रेरित होकर कार्य करते हैं, कि महिला पुलिस को बैठने की तनख्वाह क्यों दी जाए? महिला पुलिस को भी पुरूष पुलिसकर्मी के समान ही कार्य करना चाहिए। यह स्थिति अत्यन्न निंदनीय हैं। प्रकृति ने महिलाओं को कुछ प्राकृतिक अधिकार कत्र्तव्य से नवाजा है, पुरूष पुलिसकर्मियों को भी अपनी सोच बदलने की आवश्यकता हैं।
(पग) लिंगीय भेदभाव व महिला पुलिसः-
पुलिस, समाज में कानून-व्यवस्था तथा शांति-व्यवस्था की स्थापना हेतु गठित की गयी हैं, किन्तु खेद का विषय है कि स्वंय महिला पुलिसकर्मी लैंगिक भेदभाव का शिकार होती रहती हैं। महिला पुलिस को पुरूषों के समान दायित्व देने में अधिकारी कतराते हैं। उनका मानना है कि महिलाओं ऐसे कार्य सौंपे जाने चाहिए जिनमें शारीरिक बल की अपेक्षा मानसिक योग्यता की आवश्यकता पड़ती हो, जैसे – रजिस्टर सम्बन्धी कार्य, एफ0आई0आर0 दर्ज करना, जनसुनवाई के मामले देखना आदि। इसमें यह केन्द्रीय भाव कार्य करता है कि महिला स्वंय अपनी सुरक्षा नहीं कर सकती तो क्षेत्रीय कार्यो जैसे-दबिश देना, ततीश करना, वी आई पी सुरक्षा आदि में उनके साथ पुरूषों को भी भेजना पड़ेगा। यही नहीं पुरूष पुलिसकर्मियों को महिला पुलिस को अपने समकक्ष मानने में बहुत हिचकिचाहट होती है। इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है, दि0-14 जुलाई 2021 का एडीजी ‘अखिल कुमार’ का महिला पुलिसकर्मियों से आॅनलाइन संवाद। इस संवाद में गोरखपुर जोन की महिला पुलिसकर्मियों ने सर्वप्रथम यही माँग रखी कि पुरूष हमराही के साथ उनकी डयूटी न लगायी जाए।14 भारतीय समाज जो पुरूष प्रधान है जहाँ स्त्रियों को निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, कमोवेश ऐसी ही मानसिकता से ग्रसित पुरूष पुलिसकर्मी भी विभाग में मौजूद हैं। आरक्षी पद तो दूर की बात इस्पेक्टर स्तर की महिलाकर्मी भी अपने सह पुरूषकर्मी को नाराज करके निर्णय लेने में कठिनाई का अनुभव करती है। यहाँ तक कि सुश्री किरण बेदी, जो पुलिस बल में सबसे ऊँचे ओहदे पर भर्ती हुई थी, को भी राष्ट्रीय राजधानी में उच्चतम पद पर तैनाती के लिए विचार करते समय अपने पेशे के भीतर ही पुरूष सहकर्मियों के वर्चस्व के आगे झुकना पड़ा था।
(ग) महिला-उन्मुखी वातावरण और महिला पुलिसः-
पुलिस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं, क्योंकि यह माना जाता है कि यह निम्न व मध्यम वर्ग की महिलाओं के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करता हैं। यदि थानों में महिला पुलिस होती हैं, तो पीड़ित महिलाओं का मनोबल बढ़ता है। किन्तु खेद का विषय है कि स्वयं महिला पुलिसकर्मी अपने वरिष्ठ अधिकारियों तथा सहकर्मियों के हाथों यौन शोषण का शिकार होती रहेती हैं। इस सन्दर्भ में कुछ घटनाएं इस बात की पुष्टि करती है। 05 जुलाई, 2021 को यूपी के कासगंज जिले में तैनात महिला आरक्षी ने अपने ‘एस0एच0ओ0’ पर गम्भीर आरोप लगाते हुए फांसी लगा ली।15 इसी प्रकार 10 जनवरी, 2020 को यू0पी0 के लखनऊ में नियुक्त एक अन्य महिला आरक्षी का अपने वरिष्ठ अधिकारी पर यौन उत्पीड़न का गभीर आरोप लगाते हुए वीडियों वायरल हुआ जिसमें उसके शब्द थे, ‘‘जब मैं अपने ही पुलिस विभाग में सुरक्षित नहीं हूँ, तो मैं अन्य पीड़ितो को कैसे सांत्वना दे सकती हूँ’’।16 सचमुच अत्यन्त शर्मसार करने वाली घटनाएँ हैं। माहवारी के समय शासकीय नीति में तीन दिवसीय अवकाश की व्यवस्था की गयी हैं, किन्तु महिला पुलिसकर्मी सिर्फ इसलिए यह नहीं लेती, कि वह अपने पुरूष अधिकारी और सहकर्मी से इस विषय पर बात नहीं कर सकती। हद तो तब होती है जब महिला अधिकारी द्वारा भी इसे सामान्य समस्या कहकर नजरंदाज कर दिया जाता है। गर्भावस्था के दौरान 24 घण्टे की ड्रयूटी लगा दी जाती है और वह उस समय होने वाली पीड़ा को अपने सहकर्मियों के साथ साझा भी नहीं कर सकती।
इस प्राकृतिक स्थिति को महिलाओं की कमजोरी मानकर पुरूष सहकमर्मियों द्वारा कभी छींटाकशी की जाती है, तो कभी इसे मजाकिया अंदाज मंे इस प्रकार लिया जाता हैं, कि उसे कत्र्तव्य निर्वहन में असुविधा उत्पन्न होने लगती है। महिला पुलिस को अनेकों बार भद्दी टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है। कुछ महिला पुलिस आपबीती बताती हैं, कि जब वे भर्ती हुई तो उनके पुरूष सहकर्मियों के द्वारा उन्हें सुनने को मिलता था कि महिलाओं को इस विभाग में पुरूषों के मनोरंजन के लिए ही लाया गया है ताकि वे ड्यूटी करते समय बोझिल महसूस न करें। अत्यन्त शर्म आती है जब हम कानून के रखवालों को ऐसी मनः स्थिति से ग्रस्ति देखते हैं।
(गप) सामाजिक, रूढ़िवादी वातावरण व महिला पुलिसः-
महिलाओं ने अपनी परम्पारागत सोच से हटकर इस पेशे को अपना लिया, किन्तु भारतीय समाज की परमपराओं को तोड़ना इतना आसान भी नहीं है। समाज में आज भी महिलाओं का इस व्यवसाय में आना अच्छा नहीं माना जाता हैं। इस धारण के मूल में बहुत से कारण चिन्तनीय होते है – कार्य के अनिश्चित घण्टे, रात्रिकालीन ड्यूटी, समय पर अवकाश मिलने में देरी, पुरूषों वाली पोषाक आदि। कारण चाहे जो भी हो इतना तो तय है कि समाज महिला पुलिस को एक बेटी के रूप में भले ही स्वीकार कर ले, किन्तु एक बहू के रूप में उन्हें अक्षम माना जाता हैं। यह माना जाता है कि यदि घर की महिला 24 घण्टे की नौकरी करेगी, तो गृहिणी वाले कार्य – खाना पकाना, घर को व्यवस्थित रखना, बच्चों की देखभाल आदि पीछे घूट जाएंगे। ऐसे में महिलाओं को पुलिस बल में भर्ती होने के लिए प्रेरणा का अभाव रहता है।
(गपप) पारिवारिक सुखो की तिलांजलि व महिला पुलिसः-
महिला पुलिस के अनुसार, वर्दी पहनकर उन्होंने जैसे गुनाह ही कर दिया है। नारी धर्म बहुत पीछे छूट गया और केवल एक यंत्र की भाँति उनका जीवन हो गया है। बच्चों और परिवारीजनों को समय न दे पाना, घर को सुव्यवस्थित न रख पाना, रीति-रिवाजों को पूर्ण न कर पाना आदि किस्म के दवाबों को हर पल झेलना पड़ता है। इसके अतिरिक्त त्यौहारों पर अधिक सख्त ड्यूटी लगना पारिवारिक कार्यक्रमों हेतु अवकाश न मिल पाने का दर्द भी कम असहनीय नहीं होता। ऐसे में उनके अधिक कार्यकुशल होने की उम्मीद नहीं की जा सकती हैं।
(गपपप) वैवाहिक जीवन व महिला पुलिसः-
वर्दीधारी होने का प्रभाव महिला पुलिस के वैवाहिक जीवन पर भी स्पष्ट रूप देखा जाता है। उन्हें उपयुक्त जीवन साथी खोजने में कठिनाई होती है। अधिकाँश पुरूष अपना जीवन साथी ऐसा चाहते हैं। जो हर पल उनके साथ रह सके, किन्तु महिला पुलिस के साथ ऐसा संभव नहीं हो पाता। गृह जनपद से दूर नियुक्ति मिलती है और कार्य के घण्टे भी अनिश्चित होते हैं। इसके अतिरिक्त हमारे समाज में बच्चों का दायित्व भी पिता की अपेक्षा माता का माना जाता हैं। ऐसे में बच्चों की परवरिश भी एक बड़ी समस्या लगने लगती है। परिणामस्वरूप आम आदमी महिला पुलिस से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने में हिचकते हैं।
निष्कर्षः-
हर्ष का विषय है कि आज नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता के बल पर आगे बढ़ रही है किन्तु यह देखकर कष्ट होता है कि हमारी सरकारों ने आज तक महिलाकर्मियों सम्बन्धित मूलभूत आवश्यकताओं की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। महिला पुलिसकर्मी द्वारा जगह-जगह आम महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए मिशन चलाया जा रहा है। किन्तु अफसोस स्वंय महिला पुलिस अपने पुरूष सहकर्मी से समान भागीदारी व सम्मान हासिल करने हेतु जूझ रही है। इसके लिए शिक्षा व शिक्षक दोनों को ही नर-नारी के प्रति समान दृष्टिकोण विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभानी होगी। शिक्षण संस्थाओं, प्रशिक्षण केन्द्रों, कार्यशालाओं, विचार संगोष्ठी आदि के मध्यम से सह-शिक्षा, समान-पाठयक्रम को बढ़ावा देना होगा। भर्ती के समय केवल कानून-व्यवस्था कायम रखने का ही पाठ नहीं पढ़ाया जाना चाहिए। उन्हें मानवता, लिंग संवेदीकरण जैसे विषयों की भी शिक्षा देनी होगी, ताकि वे पुलिस थानों में ऐसा मौहाल उत्पन्न कर सकें, जहाँ महिला पुलिस अपनी तकलीफ को खुल कर पुरूष सहकर्मी से कह सकें।
विभाग को कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधि0 2013 का कड़ाई से पालन करना चाहिए।17 संविधान के अनु0-21 के अनुसार महिलाओं को गरिमा के साथ जीने का अधिकार जिसके तहत सरकारी दतरों में उन्हें स्वच्छ शौचालय साफ पानी और सही मात्रा में सेनेट्री प्रोडक्ट्स उपलबध कराए जाने चाहिए।18 पुलिस में एक बाॅक्स स्थापित करने की आवश्यकता है। जिससे महिला अपनी समस्याओं को अज्ञात रूप से बता सकें। ‘द काॅमवेल्थ हयूमन राइट्स इनिशिएटिव’ संस्था की एक रिसर्च के अनुसार महिला पुलिस की समस्याओं को दूर करने के लिए ‘माॅडल पाॅलिसी फाॅर विमन इन पुलिस इन इंडिया’ नामक का एक्शन प्लान अपनाए जाने की आवश्यकता हैं। इस योजना के अनुसारः-
. महिलाओं को पुलिस में बराबरी का मौका मिले, काम के माहौल को बेहतर बनाया जाए स्थानान्तरण नीति को ठीक किया जाए, परिवार उन्मुखी नीति होनी चाहिए व यौन उत्पीड़न के खिलाफ जीरो टाॅलरेंस नीति को शामिल किया जाना चाहिए।
. लिंग बजटिंग प्रणाली लागू हो।
. इस एक्शन प्लान को लागू करने के लिए एक विशेष टीम होनी चाहिए जो सुनिश्चित करे कि चीजें सही तरीके से हो रही है या नहीं।19
अधिकारियों को भी अपनी मानसिकता बदलने की दरकार है। महिलाओं की समस्याओं को उनकी कामचोरी, अथवा सामान्य बताकर नजरंदाज नहीं किया जा सकता। उनका यह तर्क कि महिला पुरूष के समान वेतन लेती है तो उनके समान कार्य भी करेगी, मानवता की दृष्टि से न्यायोचित प्रतीत नहीं होती। याद रखना चाहिए कि हम वर्दीधारी होने से पूर्व मनुष्य हैं और उसके बाद देश के नागरिक भी। यदि दोनों ही दृष्टिकोण से विचार किया जाने लगे, तो महिला पुलिस को उसके कर्तव्य निर्वहन में और अधिक सशक्त बनाने मेंः-
सन्दर्भ सूची:-
;1द्ध व्गवितक म्दहसपेी क्पबजपवदंतल अवसण्प्ण्च्ण् 147ण्
;2द्ध श्रनदपवत ळवनसक – ॅपससपंउ बवइइ ;मजद्धण् क्पबजपवदंतल व िजीम ेवबपंस ेबपमदबमे न्छम्ैब्व्ए चच 10.12ण्
(3) लारेंस अप्पेल, मैनेजमेण्ट दि सिम्पुल वे, परसोनेल वालूम 19, नं0-4, पृ0 595-603, 1943।
(4) सारस्वत स्वप्निल, ‘महिला विकास’ प्रकाशनः नमन, नई दिल्ली, संस्करण-प्रथम-2007, पृष्ठ सं0- 56।
(5)शिशिर कुमार सिंह (आई0पी0एस0) ‘भारतीय पुलिस और जनता,’ प्रकाशन-पराग प्रकाशन, आई-2/16, मैन अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002, प्रथम संस्करण – 2004, पृष्ठ सं0- 211
(6) https://hindi.feminisminindia.com/2019/11/04/struggle-indian women-police-force-hindi/amp.
(7) सक्सेना, श्रीमती वन्दना, ‘महिलाओं का संसार और अधिकार’, प्रकाश-मनीषा, अशोक विहार दिल्ली, संस्करण-प्रथमः 2004 पृष्ठ सं0- 175
(8) शिशिर कुमार सिंह, वही, पृष्ठ सं0- 4
(9) रिपोर्टः पुलिस अनुसंधान एवं विकास न्यूरों (बी0पी0आर0एंड0डी0) उपलब्ध,
https://www.india.com/hindi-news/india-hindi/women-police-personnel-ratio-is-only-10-/percent-in-india-said-home-ministry-4885235/amp/.
(10) https://www.aajtak.in/amp/india/news/story/india-justia-report-2020-women-police-constable-women-police-officers-india.
(11) https://hindi.feminisminindia.com ogh] i`”B la0& 2
(12) https://amp.dw.com/hi
(13) https://www.bbc.com/hindi/india-47736993. amp.
14-अमल उजाला नेटवर्क गोरखपुर, प्रकाशन-विवेक शुक्ल, दि0-14 जुलाई 2021, वेबसाइट www.amrajala.com/amp/gorakhpur/duty-of-female-solien-should-not be-imposed with – man
(15) https://www.abplive-com/states/up-uk/lady police-constable-attempted-suicide in kasgang- uttar pradesh- ans 1936326/amp
(16) https://www.india.com/hindi-news/india-hindi/a-woman-constable-hasput-up-a-videoclip-on-social-media-and-alleged-sexual-harassment-3904968/amp.
;17द्ध संविधान के भाग-3 मंे वर्णित जीवन के अधिकार की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनः व्याख्या
(18) सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवासी मजदूरों की समस्यओं के सम्बन्ध में संविधान के भाग-3 के अन्तिम में अनु0 21 की पुनः व्याख्या – 29 जून 2021
(19) https://www.bbc.com वही पृष्ठ सं0- 8