ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

श्रम-कल्याण प्रबन्ध

डाॅ0 अशोक कुमार श्रीवास्तव
         प्राचार्य
गायत्री विद्यापीठ स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय,
रिसिया, बहराइच (उ0प्र0)
श्रम-कल्याण का अर्थ:
श्रम-कल्याण शब्द की व्याख्या अत्यन्त व्यापक अर्थों में की जाती है तथा इसमें वे सब कार्य सम्मिलित किये जाते है जो श्रमिकों के हित के लिए किये जाते है। जैसे उनके मनोरंजन के लिए खेल-कूद अथवा नाटकों का आयोजन जलपान के लिए कैन्टीन की व्यवस्था, सफाई, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाये, निवास की      सुविधाएँ, यातायात की सुविधा तथा अन्य सभी कार्य जिनका उद्देश्य श्रमिकों का मानसिक, शारीरिक, नैतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक उत्थान करना हो। श्रम कल्याण इतना व्यापक शब्द है कि श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के अन्तर्गत किये जाने वाले कार्य भी इसी में ही सम्मिलित किये जाते है जैसे भविष्य निधि की व्यवस्था, बेकारी अथवा बीमारी से सम्बन्धित बीमा आदि। श्रमिकों में बचत एवं मितव्ययता की आदत पैदा करने के उद्देश्य से सहकारी समितियों का निर्माण अथवा बचत बैंको की स्थापना भी श्रम कल्याण का ही एक अंग है।
1- संयुक्त राज्य अमरीका के श्रम कल्याण ने श्रम-कल्याण कार्य को ’’आराम तथा विकास, सामाजिक तथा बौद्धिक विकास के लिए श्रमिकों को मजदूरी के अतिरिक्त उपलब्ध की जाने वाली सुविधा कहा है, जो उद्योगों का आवश्यक दायित्व नहीं है।’’
2- रीगे समिति ;स्ंइवनत प्दअमेजपहंजपवद ब्वउउपजजममए 1946द्ध ने श्रम-कल्याण कार्यांे का क्षेत्र बहुत व्यापक बताया है। इनमें वे सब क्रियाएं सम्मिलित की जाती है जो श्रमिकों के बौद्धिक, भौतिक, नैतिक तथा आर्थिक कल्याण से सम्बन्धित है। ये चाहे नियोक्ताओं द्वारा, चाहे सरकार द्वारा और चाहे अन्य संस्थाओं द्वारा     उपलब्ध की जाती है।
इस प्रकार श्रम कल्याण के अन्तर्गत आवास, चिकित्सा, शिक्षा, स्वास्थ्य, आराम एवं मनोरंजन, सहयोग    सम्बन्धी, सुविधां सम्मिलित की जाती है। बच्चों की पाठशालाएँ, शिशु-गृह अवकाश, विशेष बीमा सुविधाएं (जिनमें बीमारी बीमा योजना, मातृत्व योजना, भविष्य निधि, पेन्शन, ग्रेच्युटी) आदि, योजनाएँ भी इसमें सम्मिलित की जाती है।
3- श्री एन0एम0 जोशी के अनुसार ’’श्रम-कल्याण कार्यो में वे सभी प्रयास सम्मिलित किये जाते है जो श्रमिक को न्यूनतम स्तर पर निर्धारित कार्य की दशाओं के अतिरिक्त लाभान्वित करने की दृष्टि से किये जाते हैं। ये प्रयास कारखाना अधिनियम तथा अन्य वैधानिक प्रावधानों के अतिरिक्त दिये गये लाभों से सम्बन्धित है जो दुर्घटना, वृद्धावस्था, बेरोजगारी तथा बीमारी से सुरक्षा की व्वस्था करते हैं।’’
4- अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, ’’ऐसी सेवाएँ एवं सुविधाएँ जैसे, सुव्यवस्थित जलपान गृह, मनोरंजन    संुविधाएँ घर से कार्य-स्थल तक एवं कार्य-स्थल से घर तक आवागमन की सुविधाएँ तथा अन्य ऐसी सेवाएँ जिनसे कार्यक्षमता में वृद्धि होती है, ’’श्रम-कल्याण’’ की परिभाषा में सम्मिलित की जाती है।’’
5- अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की 102वीं सिफारिश के अनुसार, श्रम-कल्याण के अन्तर्गत (अ) भोजन की व्यवस्था जो इकाई के भीतर की गयी हो या अन्यत्र (ब) विश्राम तथा मनोरंजन की सुविधाएँ (अवकाश सुविधा के अतिरिक्त), तथा (स) जहाँ सामान्य आवागमन के साधन विकसित नहीं हो वहाँ श्रमिकों को आवागमन की सुविधा प्रदान करने आदि बातों को सम्मिलित करना चाहिए।
6- सन् 1959 में भारत सरकार द्वारा नियुक्त अध्ययन दल ने श्रम कल्याण कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया हैं-
;पद्ध संगठन के भीतर (प्दजतं.उनतंसद्ध कार्य – उपलब्ध कल्याण सुविधाएँ जैसे- शौचगृह तथा मूत्रालय, कपड़ा धोने एवँ नहाने की सुविधा, शिशु-गृह, विश्राम गृह एवं जलपान गृह, पेयजल सुविधा, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सेवाएँ, थकान मिटाने सम्बन्धी सुविधाएँ, सुरक्षा प्रदान करने वाले विशिष्ट वस्त्रों की सुविधा व पारी भत्ता आदि।
;पपद्ध संगठन के बाहर ;म्गजतं.उनतंसद्ध कार्य – उपलब्ध कल्याण सुविधाएँ जैसे मातृत्व लाभ, सामाजिक बीमा व्यवस्था, पेरोकारी कोष, चिकित्सा सुविधा, शिक्षा-सुविधा, आवासीय-सुविधाएँ आवास-गृह तथा अवकाश के समय यात्रा सुविधाएँ श्रमिक सहकारिता श्रमिकांे के आश्रितों को कार्य सम्बन्धी प्रशिक्षण, स्त्री, नवयुवकों तथा शिशु कल्याण की अन्य योजनाएँ तथा घर से कार्यस्थल तक एवं वापसी की सुविधा आदि।
;पपपद्ध सामाजिक सुरक्षा ;ैवबपंस ैमबनतपजलद्ध कार्य – दुर्घटना बीमा, वृद्धावस्था पेंशन, रोजगार सुरक्षा नियमित आय आदि।
1. श्रम-कल्याण प्रबन्ध की व्याख्या:
श्रम-कल्याण सुविधाओं का अर्थ स्पष्ट हो जाने के बाद श्रम-कल्याण क्रियायें संस्थान के विभिन्न कर्मचारियों को जिस प्रकार लाभान्वित करती हैं, वह व्यवस्था कल्याण क्रियाओं का प्रबन्ध करने वाले अधिकारियों द्वारा इस प्रकार से व्यवस्थित की जानी चाहिए जिससे सभी वर्गों के कर्मचारियों को पर्याप्त सुविधायें जिसकी व्यवस्था         अधिनियमों में प्रदान करने की प्रक्रिया को श्रम-कल्याण प्रबन्ध के अन्तर्गत शामिल किया जाता है। यदि संस्था में इन क्रियाओं का प्रबन्ध सही प्रकार से होता है तो कल्याण सम्बन्धी क्रियाओं से कर्मचारियों को उचित लाभ प्राप्त होता है। यदि प्रबन्ध व्यवस्था अकुशल होती है तो संस्थान द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का उचित लाभ कर्मचारियों का प्राप्त नहीं होता है। इसके कारण प्रबन्ध के प्रति श्रमिकों में संघर्ष की भावना तथा हड़ताल की क्रियाएँ प्रारम्भ हो जाती है। अतः संस्थान के संचालन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए श्रम कल्याण प्रबन्ध का कार्य सही प्रकार से किया जाना चाहिए।
2. श्रम-कल्याण कार्यों का औद्योगिक सम्बन्धें पर प्रभाव:
श्रमिकों के शारीरिक, नैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक उत्थान के लिए जहाँ श्रम-कल्याण आवश्यक है। वही औद्याोगिक सम्बन्ध मधुर बनाने की दिशा में किया गया ’’विनियोग’’ है। कार्य क्षमता तथा श्रम-कल्याण में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। इससे औद्योगिक शान्ति का वातावरण बनाता है। जब श्रमिक अनुभव करते हैं कि उनके नियोक्ता उनकी दैनिक जीवन चर्या में रूचि लेते हैं तो वे अधिक प्रसन्नता का अनुभव करते है। इससे उनमें आपसी वैमनस्य की भावना का अन्त होता है। संक्षेप में श्रम-कल्याण कार्यों का औद्योगिक सम्बन्धों पर निम्न प्रकार प्रभाव पड़ता है-
(अ) औद्योगिक शान्ति पर प्रभाव: श्रम और पूँजी औद्योगिक मशीनरी के दो पहियों के समान है। उद्योग की सफलता के लिए दोनों में सामंजस्य का होना अति आवश्यक है। इसके अभाव में औद्योगिक अशान्ति का भय उत्पन्न को जाता है। जिससे सभी को क्षति पहुँचती है। श्रम कल्याण के द्वारा श्रम और पूँजी दोनों में घनिष्ट     सम्बन्ध हो जाते है, तथा औद्योगिक शान्ति स्थापित होने लगती है।
(ब) श्रम संघ एवं औद्योगिक सम्बन्ध: श्रम कल्याण अब बड़े उद्योगपतियों की उदारता का फल नहीं माना जाता वरन् श्रमिकों तथा श्रमिक संघों को सन्तुष्ट रखने का एक आवश्यक औजार समझाा जाता है। कल्याण कार्यों से श्रमिकों की कार्य करने की इच्छा एवं क्षमता में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। लाभ की मात्रा में वृद्धि के फलस्वरूप श्रमिकों तथा सेवानियोजकों दोनों को ही लाभ पहुँचता है तथा औद्योगिक सम्बन्ध सुधरते हैं।
(स) श्रमिकों का नैतिक सुधार: स्वस्थ मनोरंजन के साधनों का अभाव होने के कारण श्रमिक प्रायः शराब खोरी, वेश्यावृत्ति जैसे अनैतिक कार्यों का शिकार हो जाता है। श्रम कल्याण के कार्यों के द्वारा श्रमिकों के लिए मनोरंजन के विविध साधनों की व्यवस्था की जा सकती है और उनका नैतिक उत्थान किया जा सकता है। श्रमिकों का इन बुराइयों से दूर रखने पर औद्योगिक सम्बन्ध प्रगाढ़ रहते है।
(द) मानसिक क्रान्ति तथा औद्योगिक सम्बन्ध: श्रम कल्याण कार्यक्रम सामाजिक दृष्टि से भी लाभदायक होते है। चिकित्सा सुविधा, मातृत्व सुविधा तथा शिशु कल्याण योजना से श्रमिक को स्वास्थ्य लाभ होता है। इन सेवाओं से शिशु मृत्यु दर, शिक्षा सुविधाओं से श्रमिक की मानसिक क्षमता तथ आर्थिक उत्पादकता बढ़ती है। श्रम-कल्याण कार्यों के द्वारा श्रमिकों की मानसिक दशा में क्रान्ति आती है, जीवन के प्रति उदासीन और नैराश्य से परिपूर्ण रूख बदलकर उनमें उत्साह तथा आशा का संचार होता है। वे अपने सेवा नियोजताकों को अपना शोषणकर्ता न समक्ष कर एक हितैषी समझने लगते है। जिसके फलस्वरूप् औद्योगिक सम्बन्ध सुधरने लगते है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि श्रम-कल्याण कर्मचारियों के जीवन को जीने योग्य बनाने का प्रयास है जो औद्योगिक तंत्र का एक औजारर मात्र है। यह श्रम कल्याण राम राज्य की स्थापना का एक साधन है। यह स्थली, सन्तुष्ट एवं कार्यकुशल श्रमशाक्ति के विकास एवं स्थापना के लिए वरदान है जिसमें औद्योगिक सम्बन्धों को सुधारने में काफी सहायता प्राप्त होती है।
3. श्रम-कल्याण सम्बन्धी कार्य:
श्रम कल्याण कार्यों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
(अ) आन्तरिक एवं बाह्य कार्य
(ब) रोजगार की दशा सम्बन्धी तथा जीवन निर्वाह की दशा सम्बन्धी कार्य।
(स) अनिवार्य एवं ऐच्छिक कार्य।
(अ) आन्तरिक एवं बाह्य कार्य: आन्तरिक कार्याें के अन्तर्गत वे सभी कार्य योजनाएँ सम्मिलित की जाती है, जो कारखानों के भीतर उपलब्ध की जाती है। इनमें चिकित्या सुविधाएँ, दुर्घटनाओं के लिए क्षतिपूर्ति शिशु-गृह, अल्पाहार-गृह की व्यव्स्था, पेयजल की व्यवस्था, स्नान करने तथा कपड़ा धोने की सुविधा, सुरक्षा के पर्याप्त उपाय, मशीन एवं संयंत्र की अच्छी व्यवस्था, भविष्य निधि पेंशन, ग्रेच्यूटी, मातृत्व लाभ आदि। वाह्य कार्यों के अन्तर्गत वे सभी कार्य सम्मिलित किये जाते हैं जो श्रमिकों को सुविधा के रूप में कारखानों के बाहर उपलब्ध होते है। इनक कार्यों में आवासीय सुविधा, मनोरंजन संविधाएँ, खेलकूद एवं आमोद-प्रमोद, शैक्षिक सुविधायें प्रौढ़े तथा पुस्तकालय एवं वाचनालय आदि की सुविधायें प्रमुख है।
(ब) रोजगार की दशा सम्बन्धी तथा जीवन निर्वाह की दशा सम्बन्धी कार्य: रोजगार की दशा सम्बन्धी श्रेणी में वे तथ्य सम्मिलित किये गये है जो कार्य से सम्बन्धित है यथा कार्य के घण्टे, मजदूरी, सवेतन अपकाश, विश्राम-अवकाश, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा, रोजगार की निरन्तरता तथा स्त्री श्रमिक एवं कम आयु के बच्चों को रोजगार प्रदान करने सम्बन्धी नीति आदि। जीवन निर्वाह दशा सम्बन्धी कार्यों में लाभ की विभिन्न योजनायें, सरकारी समितियाँ वैधानिक एवं चिकित्सा सम्बन्धी सहायता, आवासीय सुविधा आदि बातें सम्मिलित है।
(स) अनिवार्य एवं ऐच्छिक कार्य: अनिवार्य श्रम-कल्याण कार्य वे है जिनके लिए सरकार द्वारा नियम बनाये गये हैं और कानूनी व्यवस्था की गई है। इसके अन्तर्गत कारखाना अधिनियम 1948, बागान श्रमिक अधिनियम 1951, खान अधिनियम 1952, कोयला खान श्रमिक कल्याण कोष, अधिनियम 1957, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1952 तथा विभिन्न आवासीय अधिनियम इस परिधि में रखे गये है। ऐच्छिक कार्यों की श्रेणी अराजकीय संस्थाओं द्वारा किये गये कल्याणकारी कार्यों को सम्मिलित किया गया है।
03-1 आवास सुविधायें एवं भत्ता: औद्योगिक विकास के साथ-साथ आवास समस्या जटिल होती जा रही है। श्रमिकों का रहने के लिए उचित मकान प्राप्त नहीं होते। अतः कई संस्थानों द्वारा आवासीय सुविधाा अपने श्रमिकों कांे प्रदान की जाती है। रेलवे, डाकघर एवं परिवहना विभाग द्वारा अपने कर्मचारियों के लिए आवासीय सुविधायें प्रदान की जाती है। जिन संस्थानों या उपक्रमों में आवास सुविधायें उपलब्ध नहीं है, वे अपने श्रमिकों कोे किराये की क्षतिपूर्ति के रूप में आवासीय भत्ता उपलब्ध कराते हैं ताकि श्रमिकों पर किराये का विपरीत भार न पड़े। केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा सहकारी समितियों आदि के माध्यम से निम्न 8 आवासीय योजनाओं पर आर्थिक सहायता दी जा रही है।
(1) अनुपूर्ति आवासीय योजना
(2) निम्न आय वर्ग आवासीय योजना
(3) बागान श्रमिक आवासीय योजना
(4) गन्दी बस्तियों की सफाई एवं विकास योजना
(5) ग्रामीण आवासीय योजना
(6) मध्यम आय वर्ग गृह-निर्माण योजना
(7) भूमि अदाप्ति तथा विकास योजना
(8) किराया मकान योजना (केवल राज्य सरकारी कर्मचारी के लिए)।
देश मे मकानों के निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिए आर्थिक सहायता औ अनुदानों की प्रणाली को सरकार द्वारा अपनाया जा रहा है।
2. संस्थान द्वारा यातायात व्यवस्था: औद्योगिक विकास के तीव्रगति से होने कारण श्रमिकों की आवास समस्या के कठिन होने के कारण संस्थान में कार्यरत श्रमिकों को संस्थान से दूर आवासीय सुविधा उपलब्ध हो जाती है जिनके फलस्वरूप श्रमिकों को संस्थान में प्रतिदिन आने तथा जाने के लिए यातायात के साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह यातायात व्यवस्था श्रमिक की अपनी भी हो सकती है तथा संस्थान प्रबन्ध द्वारा भी इस यातायात व्यवस्था को उपलब्ध कराया जा सकता है। यातायात व्यव्स्था के अन्तर्गत कुछ संस्थानों के प्रबन्धतंत्र श्रमिकों का अपने वाहन यथा- स्कूटर, मोपेड, मोटरसाइकिल, कार आदि क्रय करने के लिए ऋण सुविधा भी उपलब्ध कराते है। इसपर या तो ब्याज बिल्कुल नहीं लिया जाता या उसकी दर से बहुत कम होती है। संस्थान के प्रबन्धक ऋण की अदायगी हेतु श्रमिक के वेतन में से प्रतिमाह कुछ रकम काट लेते है। जिससे धीरे-धीरे ऋण की राशि पूरी हो जाती है।
03-03 अनुदान पूर्ण यातायात व्यवस्था:  संस्थान का प्रबन्ध-तंत्र श्रमिकों के कार्य पर आने तथा वापस घर पहुँचने हेतु कोई न कोई सुदृढ़ यातायात पद्धति को अपनाता है जिससे श्रमिकों को कार्य के घण्टे खराब न हो। इसी दृष्टिकोण के तहत अधिकतर संस्थान के प्रबन्धक, श्रमिकों को अपने आवासीय आवास नहीं हो पाती हैं। लेकिन जिन श्रमिकों को यह आवास सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है, उन्हें दोहरा भार सहना पड़ता है। (1) आवास का कारखाने से दूर होना (2) यातायात की उचित व्यवस्था न होना। अतः संस्थान का प्रबन्ध तंत्र ऐसे श्रमिकों हेतु अनुदानपूर्ण यातायात व्यवस्था को अपनाता है। ऐसे श्रमिक जिनके पास अपने निजी वाहन है।, उनके रख-रखाव तथा चालान-व्यय के रूप् में तथा ऐसी कुछ राशि श्रमिक के वेतन में अतिरिक्त जोड़ दी जाती है तथा ऐसे श्रमिक जिनके पास अपना कोई निजी वाहन नहीं है उन्हें द्वारा व्यय किये गये किराये की कुछ प्रतिशत राशि अनुदान के तौर परदी जाती है।
03-4 चिकित्सा सुविधायें तथा भत्ता: कारखाना अधिानियम के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक कारखाने में समस्त कार्य के घण्टों मे ंप्राथमिक उपचार की सन्दूकों अथवा आलमारियों की व्यवस्था की जायेगी जो निर्धारित वस्तुओं से युक्त होगी। ये ऐसे स्थानों पर रखी जायेगी जहाँ तत्काल पहुँचा जा सके। प्रत्येक एसे कारखानों में जिसमें 500 से अधिक श्रमिक नियुक्त है एक निर्धारित आकार का तथा निर्धारितव स्तुओं से सज्जित उपचार कक्ष होगा। यह निर्धारित चिकित्सा अधिकारी और नर्सों के अधिकार में रहेगा। यह सुविधा कारखानें में कार्य के दौरान हमेशा उपलब्ध रहेगी। 15 से 17 वर्ष के श्रमिकों का सामयिक स्वास्थ्य परीक्षण होना चाहिए। जहाँ कारखानों का स्वयं का कोई चिकित्सक नही है। वहाँ अत्यन्त इस प्रकार का परीक्षण आयोजित किया जाना चाहिए। 500 से अधि श्रमिक कार्यरत होने की स्थिति में वहाँ वाहनों की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
भारत में चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराना राज्य सरकार का उत्तरदायित्व है किन्तु फिर भी कुछ नियोक्ताओं द्वारा यह सुविधा उपलब्ध की जाने लगी है। ऐसे सेवा योजक जो यह सुविधा उपलब्ध नहीं करा पाते, अपने श्रमिक को चिकित्सा भत्ता उपलब्ध कराते है।
03-5 शिक्षा एवं मनोरंजन कार्य: शाही श्रम आयोग ने बताया है कि ’’भारत में लगभग सभी वर्ग के श्रमिक अशिक्षित है। इस अयोग्यता का मजदूरी, उत्पादन संगठन तथा कुछ अन्य बातों पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है। यह बताना कठिन है। ’’कुछ संस्थान प्रबन्धक प्रौढ़-शिक्षक कक्षाएँ तथा दस्तकारी प्रशिक्षण कक्षाएँ जैसे सिलाई, कशीदारी, बुनाई आदि के कार्य क्रम चलाते हैं। मनोरंजन की दृष्टि से श्रम-कल्याण कार्य महत्वपूर्ण है। इससे लम्बे काल तक कार्य करने के उपरान्त उपलब्ध अन्य मानसिकता तथा उदासी से मुक्ति मिलती है। औसत श्रमिक गर्मी-  धूल, शोर-गुल आदि वातावरण में कार्य करते है। अतः कार्य का एक रास्ता कम करने के लिए मनोरंजन आवश्यक है। मनोरंजन कार्यक्रमों के अन्तर्गत चलचित्र, प्रदर्शनी, रेडियों, खेलकूद, सामाजिक संगीत कार्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन मण्डलियाँ, मुशायरा, कीर्तन, कवि, सम्मेलन, लोकगीत, लोकनृत्य आदि प्रस्तुत किये जाते है। अनेक राज्य सरकारें भी मनोरंजन सुविधाएँ प्रदान करती है। मनोरंजन सुविधायें पूर्णतः ऐच्छिक कार्य है। इससे श्रमिकों का नैतिक स्तर बढ़ता है तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उन्हे अधिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है।
03-6 केन्द्रीय व्यवस्था: केन्द्रीय सव्यवस्था के अन्तर्गत कार्य की दशाओं सम्बन्धी श्रम-कल्याण कार्य सम्मिलित किये जाते है इन श्रमिक कल्याण कार्यों से श्रमिक की रक्षता वृद्धि में सहायक होते है। इनके अन्तर्गत निम्न कार्य सम्मिलित किये जाते है।
(अ)सेवातन(ब)ताप-नियन्त्रण
(स)प्रकाश(द)स्वच्छता।
(अ) सेवातन: सामान्य स्वास्थ्य की रक्षा करने की दृष्टि से पर्याप्त प्रकाश, धूप आदि प्राप्त करने तथा बढ़ते हुए तापक्रम एवं आर्द्रताओं को नियंत्रित करने की दृष्टि से सेवातन की पूरी सुविधा होना अत्यन्त आवश्यक है।
(ब) ताप नियंत्रण: कार्य स्थल पर ताप क्रम वांछित मात्रा तक नियन्त्रित किया जाना चाहिए जिससे श्रमिकों को शीर्घ थकान का अनुभव न हो तथा उसका कार्य में मन लगा रहे।
वातानुकूलित कमरे अथवा गर्मी में खस की टरियों का प्रबन्ध अधिक उचित रहता है।
(स) प्रकाश: कार्य स्थल पर पर्याप्त तथा जहाँ तक सम्भव हो, प्राकृतिक प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था है तो वह उतनी तेज नहीं होनी चाहिए कि आँखे चकाचैंध हो जाये तथा आँखो ंपर विपरीत प्रभाव पड़े।
(द) स्वच्छता: कारखाने में प्रायः गन्दगी तथा धूल पाई जाती है, जिसके होने से श्रमिक के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है तथा सामान्यतः कार्य-क्षमता एवं अनुशासन में कमी आती है। कारखाना     अधिनियम के अन्तर्गत कारखानों को भीतर एवं बाहर से स्वच्छ एवं बदबू सड़न आदि से बचाने पर बल दिया गया है। इसके लिए दैनिक सफाई की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रति सप्ताह फर्श की धुलाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
03-7 खेलकूद एवं सामाजिक कार्य: श्रम-कल्याण के अन्तर्गत खेलकूद एवं सामाजिक क्रिया कलापों से सम्बन्धित कार्य भी सेवा नियोजकों को अपने श्रमिकों को उपलब्ध कराना पड़ता है। नियोजक द्वारा किये गये कल्याण कारी कार्यों से श्रमिकों की विचार धारा में परिवर्तन हो जाता है। वे मिल मालिकों को अपना शोषक नहीं वरन् पोषक समझने लगते है। वे कारखानों को अपना देवालय समझने लगते हैं तथा मन लगाकर अधिक कार्य क्षमता से कार्य करते है। उससे उत्पादन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा राष्टीªय उत्पादकता में भी वृद्धि हो जाती है। रहन-सहन की दशाओं पर पर्यवेक्षण किया जा सकता है तथा आवश्यक शिक्षा प्रदान की जाती है। इस दृष्टि से चिकित्सकों की सेवाएँ ली जा सकती है तथा कई व्यवसायी, वाचनालय, सामुदायिक केन्द्र चिकित्सालय,            धर्मशाला, मन्दिर तथा अन्य धर्मार्थ संस्थाएँ बनवाने और उन्हें सुचारू रूप से चलाने हेतु मुक्त हस्तदान देते है। इसके फलस्वरूप श्रम कल्याण कार्यों में वृद्धि से औद्योगिक सम्बन्ध मधुर करने में सहायता मिलती है।
03-8 अन्य कल्याणकारी योजनाएँ: श्रम कल्याण कार्यों के क्षेत्र में अब नई दिशाएँ परिलक्षित होनी लगी है। परिवार-नियोजन कार्य क्रम को प्राथमिकता दी जानी है। इसकी सफलता के लिये शिक्षा-प्रसारण तथा क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की जाती है। ये कर्मचारी परिवार-नियोजन कार्यक्रम को अपनाने के लिए श्रमिकों को प्रेरित करते है तथा परिवार नियोजन के विभिन्न साधन, उपकरण आदि मुत वितरित किये जाते है तथा लूप लगाने तथा शल्य-क्रिया कराने के लिए नकद राशि भी दी जाती है। आरोग्य प्रद भोजन वितरित करने को भी प्राथमिकता दी जा रही है। श्रमिकों का अनुदान मूल्य पर भोजन पदार्थ उपलब्ध कराये जाते है। उन्हें सन्तुलित भोजन वितरित किया जाता है, जिससे उन्हें आवश्यक पौष्टिक पदार्थ मिल सके और उनकी कार्य यथावत बनी रह सके। अब उद्योगपति यह अनुभव करने लगे है कि उन्हें मानवीय आधार पर श्रम कल्याण कार्यों के लिये व्यय करना चाहिए।
सन्दर्भ ग्रन्थ:
1- रिपोर्ट आॅफ दि राॅयल कमीशन, पेज-161,
2- रिपोर्ट आॅफ दि लेबर इनवेस्टीगेशन कमेटी, पेज-345,
3- श्री एन0एम0 जोशी, ट्रेड यूनियन मूवमेन्ट इन इण्डिया, पेज-26,
4- आई0एल0वो0 रिपोर्ट आॅन सेकेन्ड एशियन कान्फ्रेंस 1950, पेज-3

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