ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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सन् 1947 से 1980 के दौरान विभिन्न केन्द्रीय सरकारों का समाजवाद की और झुकाव – एक विश्लेषण

जयकरन यादव
शोध छात्र
डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅलिज, बुलन्दशहर
डा0 प्रवीण कुमार, एसो0प्रोफेसर
डी0ए0वी0 पी0जी0 काॅलिज, बुलन्दशहर
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू समाजवादी व्यवस्था के प्रबल समर्थक थे। वे लोकतंत्र को शासन प्रणाली के साथ ही साथ एक जीवन पद्धति मानते थे। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय से ही नेहरू जी आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र में विश्वास रखते थे। वास्तव में नेहरू जी लोकतांत्रिक समाजवाद के प्रवर्तक थे।
नेहरू जी समाजवाद के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लोकतांत्रिक रास्ते को उचित मानते थे दूसरे शब्दों में लोकतांत्रिक समाजवाद के समर्थक थे। उनका मानना था कि भारत में समाजवाद की स्थापना के लिए जरूरी है कि यहां की बहुसंख्यक जनता समाजवादी नीतियों एवं कार्यवाहियों का समर्थन करे। उन्होंने समाजवाद की स्थापना के लिए अहिंसात्मक एवं शांतिपूर्ण साधनों का समर्थन किया।
नेहरू जी के लिए जितना महत्व पूर्ण लोकतंत्र था उतना ही स्वतंत्रता एवं समानता भी थे। 1939 में भारत की एकता शीर्षक निबंध के अन्तर्गत उन्होंने लिखा कि समानता के बिना लोकतंत्र और स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं होता। सच्ची समानता तब तक नहीं आ सकती जब तक उत्पादन के साधन निजी स्वामित्व में रहेंगे। उनका उद्देश्य लोकतांत्रिक साधनों से समाजवादी व्यवस्था स्थापित करना था। नेहरू जी के समाजवाद में अभाव से पीड़ित जनता के लिए विशेष स्थान जीवन के सभी क्षेत्रों में सभी लोगों के लिए समानता के पक्षघर थे।
नेहरू जी की समाजवाद की अपनी विचारधारा थी और वे मानते थे कि आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं था। अवाड़ी कांग्रेश अधिवेशन सन् 1955 में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि उनका समाजवाद रूसी साम्यवाद या अन्य देशों के समाजवाद का अनुकरण मात्र नहीं है। यह एक जीवन दर्शन है। उन्होंने कहां, ‘‘मेरी दृष्टि में निर्धनता, चारों और फैली हुई बेरोजगारी, भारतीय जनता का अंध पतन तथा दासता को समाप्त करने का मार्ग समाजवाद को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं दिखना।’’
अपनी समाजवादी व्यवस्था या समाजवाद को अमल में लाने के लिए डन्होंने नियोजित विकास के अन्तर्गत मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया। तेज आर्थिक विकास के लिए औद्योगिक विकास के साथ-साथ कृषि और भूमि सुधार द्वारा जमींदारों के शोषण से दबी हुई ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का प्रयास किया उनका मानना था कि औद्योगीकरण का उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना होनी चाहिए उनकी योजना में उन्नत तकनीक वाले बड़े उद्योगों की महत्व पूर्ण भूमिका थी। उनके अनुसार जमीन के दबाव को घटाने, गरीबी को कम करने और जीवन स्तर को ऊचा करने के लिए भारत का तीव्र औद्योगीकरण आवश्यक था।
नेहरू जी ने आर्थिक मामले में मिश्रित अर्थव्यवस्था का समर्थन किया जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों तरह के उद्योग साथ-साथ कार्य करते हैं। अर्थव्यवथा को सुदृढ़ करने अज्ञानता को मिटाने और सामाजिक अन्याय को दूर करने के लिए नेहरू जी विज्ञान और प्रद्यौगिकी पर विशेष बल दिए। नेहरू जी मानते थे कि इस देश की समस्या का समाधान केवल विज्ञान ही कर सकता है। भूख और गरीबी, अस्वच्छता और निरक्षरता, अंध विश्वास और जान लेवा रीति-रिवाज, विशाल संसाधनों की बर्बादी ओर एक सम्पन्न देश में भुखमरी से पीड़ित जनता की समस्या का समाधान केवल विज्ञान ही कर सकता है। नेहरू जी के अनुसार व्यक्तियों के रहन-सहन में       सुधार, गरीबी को हटाना केवल और केवल आधुनिक प्रद्यौगिकी से ही सम्भव हो सकता है।
नेहरू का समाजवादी विचार केवल किताबी अनुभव नहीं था बल्कि व्यवहारिक था। 1920 ई0 में नेहरू ने उत्तर प्रदेश के कुछ गांवों को देखा वहां के रहने वाले भूखें-नंगे किसानों की स्थिति अत्यन्त ही दयनीय थी जिससे व बहुत ही प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि ‘‘ उनको और उनकी गरीबी देखकर मैं शर्मिन्दा औरदुःखी हो गया। शहर के कुछ लोग आराम का जीवन जीते हैं, भौतिक कठिनाइयों से दूर रहते हैं किन्तु देहातों में रहने वाले करोड़ों लोग दीन-हीन जीवन जीने के लिए विवश हैं। हम इन भूखे-नंगे दलित और पीड़ित लोगों के प्रति संवेदनहीन हैं’’
नेहरू जी ने एक समतावादी समाज की स्थापना के लिए लोकतांत्रिक समाजवाद की अवधारणा को अपनाया समतावादी समाज ऐसा समाज होता है जिसमें समाज के तमाम लोगों को बिना किसी भेद-भाव के समान अवसर दिए जाते हैं, और समाज में व्याप्त गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने का प्रयास किया जाता है। लोकतांत्रित समाजवाद लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने का सबसे उपयुक्त माध्यम है। जिसमें मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक सम्पन्न होने वाली विभिन्न जन उपयोगी क्रियाओं का संचालन तत्परता के साथ किया जाता हैं। 1936 में नेहरू जी ने राष्ट्रीय योजना समिति के अध्यक्ष के रूप में औद्योगीकरण द्वारा सुदृढ़ भारत की कल्पना की थी और उन्होंने इसे आगे बढ़ाया जिससे भारत में तीव्र औद्योगिक विकास हुआ। इसमें कृषि विकास एवं गाॅधी जी के प्रभाव के कारण लघु एवं कुटीर उद्योगों पर भी जोर दिया गया उन्होंने कहा था कि, ‘‘मैं देश के शीघ्र विकास में विश्वास करता हूँ और यह तभी सम्भव है जब निर्धनता को समाप्त किया जाय और लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा बनाया जा सके।’’ उन्होंने खादी योजना को बढ़ाया, और व्यक्ति के आर्थिक जीवन में खादी एवं ग्रामोद्योग को विशेष स्थान दिया।
12 अप्रैल 1936 को लखनऊ कांग्रेस के सभापति के रूप में उन्होंने ‘समाजवाद ही क्यों’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि,’’ मेरा यकीन है कि दुनियां की और हिन्दुस्तान की समस्या का एक ही हल है और वह है समाजवाद। जब मैं इस शब्द का प्रयोग करता हूँ तो मैं अस्पष्ट जनसेवी तरीके पर नहीं वरन् वैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टि से करता हूँ। समाजवाद एक आर्थिक सिद्धान्त की अपेक्षा कुछ ज्यादा मायने रखता है। यह जिन्दगी का दर्शनशास्त्र है और इसका यह रूप मुझे पसन्द भी है। मैं  समाजवाद के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं देखता जो गरीबी, बेकारी, बेइज्जती और गुलामी से हिन्दुस्तान के लोगों को छुटकारा दिला सकें।’’ नेहरू जी के नेतृत्व में भारतीय संविधान के अन्तर्गत समाजवाद के तत्वों को अपनाया गया विशेषकर प्रस्तावना एवं नीति निर्देशक तत्वों तथा कुछ हद तक मौलिक अधिकारों में देखा जा सकता है। सन् 1954 में केन्द्रीय संसद ने एक प्रस्ताव के द्वार भारत में समाजवादी व्यवस्था की स्थापना योजनाओं का लक्ष्य घोषित किया और एक लोक कल्याणकारी राज्य के निर्माण का संकल्प लिया। 1955 में अवाड़ी कांगेस में प्रस्ताव पारित किया गया कि संविधान की प्रस्तावना व नीति-निर्देशक तत्वों के क्रियान्वन के लिए योजना द्वारा ‘समाजवादी ढाँचे के समाज’ की स्थापना की जाय जिसके अनुसार उत्पादन के साधनों पर समाज का स्वमित्व और नियंत्रण रहे, उत्पादन में वृद्धि हो, और राष्ट्रीय आय का समुचित वितरण सम्भव हो सके। प्रस्ताव में जिन बातों पर जोर दिया गया, वे इस प्रकार हैं- प्रमुख उद्योगों एवं उत्पादन के साधनों पर समाज का नियंत्रण, भूमि सुधार, उद्योगों में श्रमिकों को हिस्सा, सहकारिता को प्रोत्साहन और सामाजिक न्याय। 1956 में नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने शांतिपूर्ण और न्यायोचित साधनों द्वारा एक ‘समाजवादी सहकारी राज्य’ के निर्माण का प्रस्ताव पास किया। 1962 में भावनगर अधिवेशन और 1964 में भुवनेश्वर अधिवेशन में लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना के संकल्प को दोहराया गया।
नेहरू जी के शासन काल में समाजवादी व्यवस्था की स्थापना की नीव रखी गयी। सम्पूर्ण भारत में सामुदायिक विकास योजनाओं का जाल बिछाया गया और विकास कार्याें में जन सहायोग प्राप्त करने व राज्य की शक्ति को विकेन्द्रित करने के लिए पंचायती राज व्यवस्था स्थापित हुई। सामाजिक संरक्षण व श्रम के क्षेत्र में भी सरकार द्वारा अनेक कानून बनाये गये और श्रमिकों के कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये गये।
नेहरू जी के पश्चात शास्त्री जी ने केन्द्रीय योजना के साथ नेहरू की समाजवादी आर्थिक नीतियों को जारी रखा। उन्होंने दूध के उत्पादन और आपूर्ति को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान का प्रचार किया अमूल दूध सहकारी समिति आनन्द, गुजरात का समर्थन और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना की ओर कदम बढ़ाया। वे 31 अक्टूबर 1964 को कंजरी में अमूल की कैटल फीड फैक्ट्री के उद्घाटन के लिए आनन्द गए। वह इसकी  सफलता जानने के लिए उत्सुक थे इसलिए वह गांव में किसानों के साथ रात बिताये और एक किसान परिवार के साथ भोजन भी किया उन्होंनें वर्गीज कुरियन के साथ अपनी इच्छा पर चर्चा की फिर कैराना जिला सहकारी       दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड (अमूल) के महाप्रबन्धक ने इस माॅडल को देश के अन्य हिस्सों में, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के लिए प्रयास किया। उनकी इस यात्रा के परिणाम स्वरूप राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (छक्क्ठ) 1965 में आनंद में स्थापित किया गया था।
अक्टूबर 1965 में उन्होंने इलाहाबाद के उरवा में ‘ जय जवान जय किसान’ का नारा दिया। जो राष्ट्रीय नारा बन गया। भारत में खाद्य उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने 1965 में भारत में हरित क्रान्ति को बढ़ावा दिया। इससे खाद्यान्न उत्पादन में भारी वृद्धि हुई विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। उनकी सरकार ने राष्ट्रीय कृषि उत्पाद बोर्ड अधिनियम पारित किया और खाद्य निगम अधिनियम 1964 के तहत भारतीय खाद्य निगम  की स्थापना की।
शास्त्री जी गरीबी और बेरोजगारी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। वे कहते थे कि, ‘‘आर्थिक मुद्दे हमारे लिए सब से ज्यादा जरूरी है और यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अपने सबसे बड़े दुश्मन ‘गरीबी और बेरोजगारी’ से लड़े’’।
शास्त्री जी के बाद श्रीमती इंदिरा गाॅधी ने शासन सँभाला। इंदिरा पर अपने पिता का काफी प्रभाव था। उनका भी झुकाव समाजवादी नीतियों की तरफ था। 1967 में मई में काग्रेस कार्य समिति ने उनके प्रभाव से दस सूत्रीय कार्य क्रय अपनाया। इस कार्य क्रम में बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण, आम बीमा का राष्ट्रीयकरण, शहरी संपदा एवं आय का परिसीमन, खाद्यान्न का सरकारी वितरण, भूमि सुधार तथा ग्रामीणों को आवासीय भूखंड देने के प्रावधान शामिल थे।
इंदिरा गाॅधी ने 1969 में 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके देश को अलग दिशा की तरफ मोड़ दिया। इन बैंकों के पास देश की लगभग 70ः पूंजी थी। इनमें जमा पैसा उन्हीं सेक्टरों में निवेश किया जा रहा था, जहाॅ लाभ के जयादा अवसर थे।
वही सरकार की मंशा कृषि, लघु उद्योग और निर्यात में निवेश करने की थी। राष्ट्र का पैसा राष्ट्र के नाम की आड़ में यह कदम उठाया गया 15 अप्रैल 1980 को 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
स्वतंत्रता के पश्चात देशी रियासतों का विलय भारतीय संघ में करने से पहले सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि रियासतों के तत्कालीन शासक परिवार को निश्चित मात्रा में निजी संपत्ति रखने का अधिकार होगा। साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें कुछ विशेष भत्ते भी दिए जाएगें। ये दोनों चीजें (यानी शासक की निजी संपदा और भत्ते) इस बात को आधार मानकर तय की जाएगी कि जिस राज्य का विलय किया जाना है उसका विस्तार, राजस्व और क्षमता कितनी है। इस व्यवस्था को ‘प्रिवी पर्स’ कहा गया। रियासतों के विलय के समय राजा-महाराजाओं को दी गयी इस विशेष सुविधा की खास आलोचना नहीं हुई थी। उस समय देश की एकता, अखण्डता का लक्षय ही प्रमुख था।
लेकिन वंशानुगत विशेषाधिकार भारतीय संविधान में उल्लिखित समानता और सामाजिक आर्थिक न्याय के सिद्धान्तों से मेल नहीं खाते थे। नेहरू जी ने कई बार इस व्यवस्था को लेकर अपना असंतोष जताया था। 1967 के चुनावों के बाद इंदिरा गाॅधी ने ‘प्रिवीपर्स’ को खत्म करने की मांग का समर्थन किया। उनका विचार था कि सरकार को ‘प्रिवी पर्स’ की व्यवस्था समाप्त कर देनी चाहिए। ‘प्रिवी पर्स’ की व्यवस्था को खत्म करने के लिए इंदिरा सरकार ने 1970 में संविधान में संशोधन का प्रयास किया लेकिन राज्य सभा ने मंजूरी नहीं दी। इसके बाद सरकार ने अध्यादेश जारी किया लेकिन सर्वाेच्च  न्यायालय में यह निरस्त हो गया।
इंदिरा ने 1971 के चुनावों में इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया और उन्हें इसपर समर्थन भी मिला। 1971 में मिली भारी सफलता के बाद संविधान में संशोधन हुआ और ‘प्रिवी पर्स’ को समाप्त कर दिया गया।
1971 के चुनाव में इंदिरा गाॅधी ने गरीबी हटाओं’ का नारा दिया और इस नारे से उन्होंने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की 1975 में इंदिरा द्वारा बीस सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया गया। प्रधानमंत्री इंदिरा गाॅधी ने एक रेडियों प्रसारण में, अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और समाजवादी झुकाव वाले एक नेता के रूप में अपनी छवि को मजबूत करने हेतु उपायों की घोषणा की। इन घोषणाओं में तस्करों की स्वामित्व वाली सम्पत्तियों को जब्त करना, खाली जमीन के स्वामित्व और कब्जे की हदबंदी करना और अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण करना शामिल थी। भूमि हदबंदी कानून को सख्ती से लागू किया गया और अतिरिक्त भूमि ग्रामीण गरीबों के बीच वितरित की गयी। बीस सूत्रीय कार्यक्रम में आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नीचे लाना, भूमिहीन मजदूरों, छोटे किसानों और कारीगरों से कर्ज की वसूली पर रोक हेतु कानून लाना, सरकारी खर्च में कठोरता को बढ़ावा देना, बंधुआ मजदूरी पर कारवाई, ग्रामीण ऋणग्रस्तता को समाप्त करना आदि कदम शामिल थे।
बीस सूत्रीय कार्यक्रम में, ग्रामीण गरीबी पर हमला, वर्षा आधारित कृषि के लिए रणनीति, सिंचाई के पानी का बेहतर उपयोग, बड़ी फसलें, भूमि सुधार का प्रवर्तन, ग्रामीण श्रमिकों के लिए विशेष कार्यक्रम, स्वच्छ पीने का पानी, सभी के लिए स्वास्थ्य, दो बच्चों का आदर्श, शिक्षा में विस्तार, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए न्याय, महिलाओं के लिए समानता, महिलाओं के लिए नए अवसर, लोगों के लिए आवास, मलिन बस्तियों के लिए सुधार, वानिकी के लिए नई रणनीति, पर्यावरण संरक्षण, उपभोक्ताओं की समस्याएं, गांवों के लिए उर्जा और जिम्मेदार प्रशासन।
जनता सरकार एक संक्षिप्त समय के लिए बनी जो अपने अन्र्तकलह में ही उलझी रही। जनता सरकार को आर्थिक सुधारों को प्राप्त करने में कम सफलता मिली। इसने कृषि उत्पादन और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से छठी पंचवर्षीय योजना शुरू की। आर्थिक आत्म निर्भरता और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को भारतीय निगमों के साथ साझेदारी में जाने के लिए बहु-राष्ट्रीय निगमों की आवश्यकता थी। नीति विवादास्पद साबित हुई, विदेशी निवेश में कमी आई और भारत से कोका कोला और आई0बी0एम0 जैसे निगमों के हाई-प्रोफाइल निकास का कारण बनी लेकिन सरकार बेरोजगारी और गरीबी के मुद्दों को हल नहीं कर पायी।
आपसी कलह के कारण मोरार जी सरकार गिर गयी बाद में कांग्रेस के समर्थन से चैधरी चरण सिंह की सरकार बनी लेकिन कुछ ही समय में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और  चैधरी साहब की सरकार का समापन हो गया।
प्रधानमंत्री रहते हुए चरण सिंह कोई फैसला नहीं ले पाये थे लेकिन वित्तमंत्री पद पर रहने के दौरान उन्होंने खाद और डीजल के दामों को कंट्रोल किया खेती की मशीनों पर टैक्स कम किया, नाबार्ड की स्थापना उन्हीं के समय में हुई थी।
सन्दर्भ-सूची
1. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुंसंधान और प्रशिक्षण परिषद (2007) (छब्म्त्ज्) स्वतंत्र भारत में राजनीति-12, ISBN-81-7450-769-8.
2- Sharma, P.D. Arvachin Rajnitik Chintan Marx to Present day, College Book Deepo.
3. नरेन्द्र देव, आचार्य, राष्ट्रीयता और समाजवाद, निदेशक नेशनल बुक ईस्ट इंडिया, नेहरू भवन बसंत कुंज, नई दिल्ली चैथा संस्करण 2011
4. दीक्षित, ताराचन्द, डाॅ0 राम मनोहर लोहिया का समाजवादी दर्शन, लोकभारती प्रकाशन महात्मा गाॅधी मार्ग इलाहाबाद संस्करण-2013
5. गुहा, राम चन्द्र (2008) भारत के बाद गाॅधी, दुनिया के सबसे बड़े लोक तंत्र का इतिहास, ISBN 978-0330-39611-0
6. किशोर, गिरिराज, लोहिया के सौ वर्ष, सर्व सेवा संघ प्रकाशन, राजघाट वाराणसी, संस्करण-2011
7. लोहिया, राममनोहर, आजाद हिन्दुस्तान के नए सम्मान, समता विद्यालय प्रकाशन हैदराबाद संस्करण – 163
– https://www.mpgk.PDF.com>2021/07
9- https://www.mpgkpdf.com>2020/21
10- https://wikicareer.in>wiki>Lal-Ba
11- https://lohiashodhmanch.com

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