बालश्रम एवं बाल शोषण: समस्या और समाधान
डाॅ0 कुमुद रंजन
दास काॅलिज, बदायूं
सारांष
’’हर बच्चा ईष्वर से यह संदेश लेकर आता है कि मनुश्य से ईष्वर अभी निराष नहीं हुआ है।’’ – रविन्द्र नाथ टैगोर
मानव किसी भी राश्ट्र की एक अनुपम सौगात है खासकर बच्चे तो राष्ट्र केे भविश्य और विकास की इमारत की मजबूत ईंट हैं। जिस प्रकार राष्ट्र किसी मजबूत इमारत की संरचना ईंटों से गुथी जाती है, ठीक उसी तरह किसी राष्ट्र का भविष्य वर्तमान के बच्चों की गुणवत्ता (फनंसपजल व िब्ीपसकतमद) पर निर्भर करता है। जैसी क्षमता,हुनर,योग्यता हमारे बच्चों में होगी, हमारे विकास का स्वरूप भी वैसा ही होगा। यदि वचपन को एक अनमोल सौगात मानते हुए उसे विकास का अवसर दिया जाए तो उसके परिणाम हमें वैसे ही प्राप्त होंगे जैसा जापान, फ्रान्स, जर्मनी, अमेरिका, यूरोप के अन्य देशों में हमें देखने को मिलता है। 1 नोबेल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि ’’ वचपन वह मूल्य है, जिसे पूरी उम्र के लिए सुरक्षित रखना चाहिए। इस प्रकार के सद्गुणों से जिन्दगी अधिक सरल बन जाती है और दुनिया पहले से कहीं अधिक खूबसूरत महफूज नजर आने लगती है।’’
न्यायमूर्ति श्री पी0एन0भगवती ने अपने एक फैसले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि बालश्रमिक नितान्त अमानवीय स्थितियों में गुजर रहे हैं और सभ्यता से मानों वहिष्कृत है। उनका जीवन पशुओं से भी बदतर है। पषु कहीं भी धूम फिर सकते हैं, लेकिन बालश्रमिक समाज में बधुआ है। वे ऐसी हालत में हैं कि पेट भरने के लिए जो कुछ थोड़ा बहुत मिल जाये। उसी पर निर्भर रहने को विवश हैं। तुम्हे खुले आकाश तले कड़ाके की ठंड में सोना पड़ता है। दरिद्रता और भूख के चलते वे बचपन मेें ही दुःखद और अभीष्ट जीवन व्यतीत करने वाले युवा बन जाते हैं। वे भारतीय समाज व्यवस्था पर लगा हुआ एक स्याह धव्वा है। हमारी समाजिक-आर्थिक संरचना से उत्पन्न एक भयावह समस्या है। एक ऐसी समस्या जिनका निदान नहीं हो पा रहा है जो असाध्य हो गयी है।
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