भारतीय राजनीति में महिलाओं की सहभागिता
डाॅ0 आदित्य कुमार सिंह
अध्यक्ष, राजनीतिशास्त्र विभाग
एस0एस0 काॅलेज, शाहजहाँहपुर
भारतीय राजनीति में महिलाओं की सहभागिता को समझने से पूर्व हमें भारतीय परिवेश और सामाजिक संरचना को समझना होगा। हमारा सामाजिक ढांचा इस प्रकार का है जिसमें लड़कों के प्रति अतिरिक्त सजगता और लड़कियों के प्रति उदासीनता का रवैया अब तक देखा जाता रहा है। परिवार चलाने के लिए पुत्र लालसा और पुत्रियों के लिए दहेज की व्यवस्था की अवधारणा आज भी महिला और पुरूष में भेदभाव प्रदर्शित करती है और यही कारण है कि हमारी आजादी के 68 वर्ष पूरे हो चुके हैं पर हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र हैं आबादी के लिहाज से हम दुनियां में दूसरे नम्बर पर आते हैं लेकिन आधी आबादी कही जाने वाली महिलाएं भारतीय लोकतन्त्र में कैसा योगदान कर रही हैं उनकी राजनीति में सहभागिता क्या है? इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महिलाओं को राजनीति में 33 प्रतिशत सहभागिता दिलाने के लिए ‘महिला आरक्षण’ का मुद्दा 14 वर्षो के संघर्ष के बाद अमली जामा पहन पाया। अब सवाल यह उठता है कि क्या आरक्षण के माध्यम से राजनीति में प्रवेश करने वाली महिलाएं अब भी कठपुतली बनी रहेंगी या स्वविवेक से निर्णय करेंगी।लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएं तभी लोकतान्त्रिक मानी जाती हंै जब वे समाज के सभी वर्गो और विचारों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करें। आम तौर पर यह विश्वास किया जाता है कि एक व्यक्ति एक वोट के द्वारा समाज के विभिन्न वर्ग एक साझा पहचान से जुड़ जाते है1 और समानता का भाव पैदा होता है लेकिन समानता रूपी सहभागिता भारतीय परिवेश में कितनी प्रासंगिक है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने बुर्कानशीं मुस्लिम महिलाओं के फोटो, मतदाता सूची में प्रकाशित करने के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि धार्मिक आस्थाएं संवैधानिक नियमों से ऊपर नहीं हो सकती लिहाजा अगर कोई महिला वोट देना चाहती है तो उसे फोटो खिचवाना जरूरी है2 इस सामाजिक ढांचे के साथ राजनीति में सहभागिता सिद्धान्त और व्यवहार के अन्तर को प्रदर्शित करती है। हाँ, लेकिन एक बात जो सकारात्मक लगती है वह यह है कि वर्तमान में जो भी महिलाएं राजनीति में सहभागिता कर रही हैं वह दलगत विरोधाभासों के बावजूद महिला आरक्षण के नाम पर एकमत दिखाई दी। प्रतिनिधित्व और सहभागिता दो अलग-अलग अवधारणाएं हैं सहभागिता से ही प्रतिनिधित्व का निर्धारण होता है। सहभागिता जितनी अधिक सक्रिय होगी प्रतिनिधित्व का गुण उतना ही उच्च होगा अब आवश्यकता इस बात की है यह सहभागिता सिर्फ दिखावे के लिए न हो बल्कि सक्रिय सहभागिता हो। परवीन अमानुल्ला15 बिहार में यदि नौकरशाही के खिलाफ लड़ाई लड़ती हैं तो महनरी सक्रियता है हमें यह सक्रियता उत्पन्न करनी होगी। शिक्षा के प्रचार-प्रसार को बढ़ाना होगा और स्त्री शिक्षा के प्रति गम्भीर होना पड़ेगा भारत गार्गी, मैत्रेयी, मदालसा, भारतीय जैसे विदुषी महिलाओं का देश है16 यह परम्परा चलती रहनी चाहिए तभी राननीति में महिलाओं की सहभागिता, तर्क संगत और न्याय संगत होगी अन्यथा नहीं।
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