‘‘भारतीय राजनीति में किसानों की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में चैधरी चरण सिंह के चिंतन की प्रासंगिकता’’
डाॅ0 प्रवीण कुमार
एसोसिएट प्रोफेसर (राजनीति विज्ञान)
डी0ए0वी0 (पी0जी0) काॅलिज, बुलन्दशहर
वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर भारत को एक उभरती हुई आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् स्वतन्त्र हुए नवोदित राष्ट्र-राज्यों में भारत एक मजबूत एवं प्रमुख लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्था के रूप में भी उभरा है। जहाँ अनेक राष्ट्रों में राजनीतिक-व्यवस्थाओं में उथल-पुथल एवं तानाशाही स्थितियों का उभर आया है वहीं भारत अपने लोकतांत्रिक ढांचे के अन्तर्गत सुदृढ़तापूर्वक आगे बढ़ रहा है साथ ही विश्व की उभरती हुई अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में भी अपना स्थान बनाएँ हुए है किन्तु इस भव्य, उज्ज्वल एवं मनमोहक तस्वीकर के कुछ दूसरे श्याह पहलू भी है जो हमें एक बारगी कुछ ठहर का इस समग्र परिदृश्य पर गम्भीरता पूर्वक चिंतन करने को विवश करते है। जीवन के लिए आदर्श स्थिति, भूख, कुपोषण, गरीबी, बेरोजगारी आदि की दृष्टि से भारत विश्व के खराब स्थिति वाले राष्ट्रों की श्रेणी में गिना जाता है। ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की वर्ष 2015 की मानव विकास रिपोर्ट में 188 देशों की गणना में भारत 130वें स्थान पर है यहाँ तक की भारत का पड़ौसी देश श्रीलंका भी हमसे कहीं बेहतर 73वें स्थान पर स्थित है।’1इन सब स्थितियों में सर्वाधिक पीडा दाई स्थिति है भारतीय कृषक एवं कृषक मजदूरों की। जीवन भले ही कितना ही कष्टप्रद हो उसकी अपनी गरिमा एवं महत्ता है किन्तु इससे त्रासदपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता कि किसी को स्वयं ही अपने जीवन को समाप्त करने के लिए विवश होना पडे और इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है इन सब स्थितियों को मात्र आंकड़ों के रूप उल्लेखित करके यह तुलनाएँ करना कि उस वर्ष से इस वर्ष में किसान आत्महत्याओं के आंकड़ों में कमी आई है। चै0 चरण सिंह जब तक राजनीति जगत में रहे किसानों के हित की एक सक्षम आवाज बनकर रहे। उन्हीं के अथक प्रयासों के फलस्वरूप जमीदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार जैसे बहुत ही गम्भीर तथा पेचीदा किसान हित के मुद्दों को सुलझाया जा सका तथा उन्हीं के प्रबल तथ्यापूर्ण विरोध के फलस्वरूप विदेशी पृष्ठभूमि की आयातित सहकारी खेती के नेहरू माॅडल से भारतीय किसानों की जान बच पाई। किन्तु उनके जाने के बाद कृषि एवं किसानों के प्रति इतने गम्भीर यथार्थवादी चिंतन तथा संघर्ष करने वाले व्यक्तित्व का अभाव भारतीय किसानों की उपेक्षा एवं दुर्दशा का एक बड़ा कारण रहा है। उनके उत्तर प्रदेश सरकार से इस्तिफा देने पर ‘नेशनल हेराल्ड’ के सम्पादक श्री चलपति राव ने 23 अप्रैल 1959 को अपने लेख में कहा था ‘‘श्री चरण सिंह के इस्तीफे में वैयक्तिक एवं सांगठनिक दोनों ही तरह की त्रासदी निहित है। उनका जाना उत्तर प्रदेश प्रशासन के लिए एक क्षति है और डाॅ0 सम्पूर्णानन्द ने भी एक ऐसे योग्य, अति उत्साही और घोर परिश्रमी सहयोगी को खो दिया है जो अपनी सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध है जबकि ऐसी प्रसिद्धि आज दुर्लभ है। ऐसे बहुत से अवसर थे जब नीति को लेकर चरण सिंह से हमारा गम्भीर मतभेद रहा लेकिन उद्देश्य के प्रति उनकी ईमानदारी, सम्बद्ध विषय की उनकी जानकारी और कत्र्तव्यों के प्रति उनकी निष्ठा पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकता था।’’16वस्तुतः भारतीय कृषि एवं किसानों की दशा में सुधार के लिए ऐसी ही सत्यनिष्ठा के साथ ईमानदारी से प्रयास किये जाने की आवश्यकता है और ये सभी कार्य नगर के ऐ0सी कमरों में बैठकर महज आँकड़ों की बाजीगरी के द्वारा सम्पन्न नहीं किए जा सकते है इसके लिए चैधरी चरण सिंह के समान इस समस्या के सभी पहलुओं का जमीनी स्तर पर जाकर गम्भीर अध्ययन करके स्थानीय परिस्थितियों की दृष्टिगत रखते हुए ठोस रणनीति बनाकर ईमानदारी व सत्यनिष्ठा से कार्य करने की आवश्यकता है और किसान व कृषि क्षेत्र के उद्धार एवं विकास की दृष्टि से चैधरी चरण सिंह का चिंतन वर्तमान संदर्भ में निःसंदेह और भी अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण रूप से हमारा मार्गदर्शक एवं सहायक सिद्ध होगा।
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