पंचायती राज व्यवस्था में महिला सशक्तिकरण एवं विकास
कुमारी शालिनी मौर्या
जौनपुर
प्राचीन काल से ही धार्मिक अडम्बर, रूढ़िगत विचार, परम्परागत सामाजिक संस्कार सभी ने मिलकर ने मिलकर एक ऐसा अंधकारमय परिवेश भारतीय नारी के समक्ष उपस्थित कर दिया था जिसे तोड़ना सहज न था। उत्पादन के साधनों के विकास के साथ-साथ निजी संपत्ति का उदय हुआ। वंशगत आधार पर संपत्ति का हस्तांतरण होता रहे, इसके लिए यह आवश्यक था कि संतानों के माता पिता निश्रित डों डाॅ0 गोपी जोशी लिखती है कि ‘‘ यहीं से स्त्रियों को घर की चहारदीवारी मेें सम्पत्ति की तरह सुरक्षित रखने का दौर शुरू होता है ताकि उसे उस पर पुरूष के सम्पर्क से दूर रखकर अचल संपत्ति की रक्षा की जा सके।‘‘ वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति सम्मान जनक थी। अध्यात्मिक ज्ञान ने साथ-साथ धार्मिक क्षेत्र में भी स्त्री को पुरूष के बराबर अधिकार प्राप्त था। बालिकाओं के लिए शिक्षा ग्रहण करना उतना ही अनिवार्य था जितना बालकों के लिए। वैदिक कालीन स्त्री को समाज में सम्मान प्राप्त था परन्तु संपत्ति के अधिकार से वे वंचित थीं। धीरे धीरे ब्राह्णों ने शिक्षा तथा धर्मशास्त्रों पर एकाधिकार स्थापित कर स्त्रियों तथा निम्न जातियों से शिक्षा प्राप्त करने व धर्म ग्रन्थों के पठन पठन का अधिकार छीन लिया। स्त्री पति के चित्त की अनुगामिनी, पति-अनुवर्तितनी, पति को संतुष्ट करने वाली तथा पुत्र को जन्म देने वाली मानी जाने लगी। स्वामी विवेकानन्द ने पुरोहित-कर्म की कटु निन्दा की थी क्योंकि उसने स्त्रियों पर होने वाले सामाजिक अत्याचारों को कायम रखने में मदद की। पुरोहितों ने नारी को देवदासी के रूप में मन्दिरों में लाकर उन्हें अपनी वासना तृप्ति को माध्यम बनाया। सुकुमारी भट्टाचार्य ने नारी के देवदासी स्वरूप पर टिप्पणी करते हुए लिखा है। ‘‘ देवदासियाँ या त्रिदशलय वनिता‘‘ मंदिर के पांगण में देवता के निमित्त नृत्य करती थी। इसके बदले उन्हें वृत्ति के रूप में अन्न एं भरण-पोषण की सुविधा मिलती थी। वास्तव में उनका काम पुरोहितों की वासना तृप्ति करना था। सुकुमारी भट्टाचार्य ने स्त्री के ‘गणिका‘ स्वरूप पर भी प्रकाश डाला है। यौन- कर्मियों में वह सर्वश्रेृष्ठ होती थी तथा राजकर्मचारियों में उनका दरबान से नीचा स्थान था। आज सरकार द्वारा नारी की रक्षा और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण और कठोर कानून बना दिये गये हैं। फिर भी समाज में नारी असुरक्षित है। आज भी समाज में नारी शोशण, हिंसा एवं व्यभिचार का शिकार हो रही है। कभी उन्हें दहेज की आग में धकेल दिया जाता है और कभी वह उत्पीड़न का शिकार होकर रस्सी से झूल जाती है। कभी रास्ते में उस पर तेजाब फैका जाता है, तो कभी उस पर ब्लेड मारे जाते हैं। दिल्ली जैसे बड़े और विकसित नगर जहां कानून का ढोल पीटा जाता है, ऐसी घटना अनेक बार सामने आयी हैं। यहां तक कि नारी का घर से अकेले कहीं बाहर जाना भी दुश्वार हो गया है। उनके साथ छेड़छाड़ की घटना आम हो गई हैं। वर्तमान समय में अनेक बार गैंग रेप जैसी घिनोने अपराध के उदाहरण हमारे सामने आए हैं। दिल्ली में हुए बहुचर्चित दामिनी गैंग रेप केस को आज भी जब हम याद करते हैं, तो हम कांप उठते हैं। चूंकि दामिनी केस दिल्ली जैसे क्षेत्र का था, इसलिये वह प्रकाश में आ गया था। ऐसे अनगिनत केस हैं जो दबा दिये जाते हैं। कामकाजी महिलाओं का भी उत्पीड़न समाज में दिखाई देता है। फिल्मों तथा टी0वी0 सीरियलों में भी नारी का उत्पीड़न साफ दिखाई देता है। यदि वे अर्धनग्न प्रदर्शन ना करें तो उन्हें काम नहीं मिलता है। हमारे समाज के लोग एक तरफ तो नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर वह फिल्मों में नारी को नग्न देखना चाहता है। वर्तमान समय में चारों तरफ नारी असुरक्षित दिखाई देती है। चारों तरफ नारी को शोषण और अत्याचार हो रहा है। वर्तमान समय में नारी उत्पीड़न और उस पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए सरकार और समाज को कठोर कदम उठाने होंगे तथा नारी के प्रति अपनी मानसिकता को बदलना होगा। सरकार को उन महिला और पुरूषों के लिए भी कठोर दण्ड का प्रावधान करना होगा, जो नारी सम्बन्धी कानूनों का र्दुप्रयोग करते हैं। इससे यह लाभ होगा कि नारी के उत्पीड़न को सही माना जायेगा, वरना आज समाज में लोग यही कहते हैं कि नारी अपनी सुरक्षा के लिए बनाये कानून का र्दुप्रयोग करती हैं। यदि ऐसा हुआ तो समाज का प्रत्येक सामाजिक व्यक्ति और आम आद मी नारी के सम्मान की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहेगा।
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