ब्रजेश कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
डी0ए0वी0 (पी0जी0) कालेज
बुलन्दशहर।
समाचार पत्र रहित जीवन की आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते। समाचार पत्र-पत्रिकाएं हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन का एक महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य अंग बन गये हैं। आधुनिक जीवन में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। प्रेस किसी भी संगठित समाज के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में केन्द्रीय भूमिका अदा करता है। मीडिया केवल जनता को विभिन्न विषयों राजनीति से लेकर मनोरंजन के उपलब्ध साधनों तक की सूचना ही नहीं देता वरन् यह जनता की भावनाओं को एक स्वरूप देने, उसे प्रभावित करने तथा उसके विचारों को प्रतिबिंबित करने का कार्य भी करता है।1 समाचार पत्रों के द्वारा सरकार पर नियंत्रण भी रखा जाता है। एक पत्रकार अपने लेखों, विचारों, संपादकीयों द्वारा सरकार को जनता की भावनाओं एक विचारों से अवगत करता है। प्रेस का उत्तरदायित्व इतना व्यापक और विशिष्ट है कि उसके उचित ‘‘लोकतन्त्र का चतुर्थ अंग’’ कहा जाता है। पत्रकारिता यथार्थ का ही प्रतिबिंब है। भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन ब्रिटिश साम्राज्य की समाप्ति का ही संघर्ष नहीं था, अपितु यह भारत में नवजागरण काल का सूत्रपात भी कर रहा था। यही कारण है कि हम स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ ही राजाराम मोहन राय, महात्मा ज्योतिबा फुले, महात्मा गांधी और डाॅ0 अम्बेडकर जैसे समाज सुधारकों को भारत की सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध संघर्ष करते हुए देखते हैं और पत्रकारिता के विकास क्रम को भी इसमें गुंथा हुआ पाते हैं। निष्कर्षतया कोई भी व्यक्ति ‘‘युग पुरूष’’ प्रचारित सस्ती लोकप्रियता भर से नहीं हो सकता। जरूरी है कि जनता में उसकी सेवाओं की जड़ें हों तथा समाज व देश को आगे ले जाने की इच्छा और दृष्टि तथा क्षमतायें भी हों। डाॅ0 अम्बेडकर के व्यक्तित्व में ये गुण समाहित थे। इन गुणों को विकसित करने व उनका इस्तेमाल करने में कुछ सहयोगी शक्तियों का विशेष हाथ था। महाराज सयाजी गायकवाड़ द्वारा उच्च शिक्षार्थ सहायता दी गयी थी। कोल्हापुर के छत्रपति शाहू महाराज ने तो शुरू में ही डाॅ0 अम्बेडकर के समाचार पत्रों के प्रकाशन में आर्थिक सहायता भी की थी। ‘‘मूकनायक’’ को दी गयी उनकी मदद अविस्मरणीय है। अम्बेडकर के आन्दोलनों, अछूतों की सभा-सम्मेलनों में शाहू महाराज बराबर अम्बेडकर के साथ रहे। अछूतों के नेता के रूप में अम्बेडकर की सार्वजनिक पहचान महाराज ने ही कराई थी। ‘‘अछूतों को अब अपना नेता मिल गया है’’ यह सार्वजनिक घोषणा 1920 में ‘माण’ गाॅव की विशाल परिषद में की थी। जिसे हम अम्बेडकर युग कहते हैं। उसके निर्माण में अनेक युगी शक्तियों का योगदान था।
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