राम मनोहर लोहिया
डाॅ0 सर्वजीत सिंह
एसो0 प्रोफेसर राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय महाविद्यालय टनकपुर चम्पावत (उत्तराखण्ड)
23 मार्च 1910, अकबरपुर, जिला-फैजाबाद, उत्तरप्रदेश में माता श्रीमती चंद्री व पिता श्री हीरालाल के घर पैदा हुए इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अकबरपुर की पाठशाला और मारवाड़ी स्कूल मुंबई में की। बाद में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय से अध्ययन किया। बाद में पीएचडी की डिग्री 1933 में जर्मनी के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय से हासिल की। 1933-34 कलकत्ता के विद्यार्थी जगत में कार्य किया। 1934 में कांग्रेस समाजवादी पक्ष की संस्थापना में सहयोग और पक्ष की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति पर सदस्य के नाते इनकी नियुक्ति हुयी। डाॅ0 राममनोहर लोहिया के शताब्दी वर्ष में नया देश, नई दुनिया बनाने के उनके सपने और संकल्प को स्पष्टता के साथ समझना परिवर्तनगामी व्यक्तियों और आंदोलनों के लिए उपयोगी रहेगा, इसीलिए लोहिया धारा के बारे में प्रचलित ‘नकारात्मकता’ के भ्रम को दूर करना एक जरूरी काम है। लोहिया ने एक बार राजनीति का मकसद बताते हुए इसे सत्ता (स्वार्थ) और पैगम्बरी (परमार्थ) की दुहरी चाह से प्रेरित बताया था। गांधी और लोहिया के दौर की राजनीति की तुलना आज के दौर से न हो सकती है और न ही की जा सकती है। लोहिया की राजनीतिक सोच समय के हिसाब से बदल नहीं सकती। आज के दौर में सत्ता हासिल करने की जुगत में सभी लगे हुए हैं। बड़ा योगी आज भोगी हो गया है। अपराधी जेल से निकलने के साथ ही किसी न किसी राजनीतिक दल के दतर पहुंच रहे हैं। एक जगह शरण नहीं तो दूसरी जगह सम्मान मिलता है। इनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है। न ही ये किसी बुनियादी मुद्दे को लेकर जनांदोलन चलाने वाले हैं और न ही किसी गंभीर सामाजिक समस्या पर जागरूकता की मुहिम की अगुवाई करने वाले। उनका मकसद सभी को पता है। उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं, यह भी पूरी तरह से स्पष्ट है। महात्मा गांधी और राममनोहर लोहिया जैसे लोगों ने समाज में अपनी अमिट छाप इसलिए छोड़ी क्योंकि उन लोगों ने मूल्यों की लड़ाई लड़ी। समय लगा, पर जीत भी हासिल हुई। स्ंासद को स्वांग, पाखंड और रस्म अदायगी का अड्डा बना दिया गया है। सरकार और सदस्य जानवरों की तरह जुगाली करते रहते हैं। जब तक सेना की भर्ती को सभी हिस्सों के लिए अनिवार्य नहीं बना दिया जाता आज की तरह एच्छिक नहीं, तब तक मातृभूमि के लिए समान रूप से बलिदान देने वाली आदर्श सेना नहीं बन सकती। लोहिया का एक ही अपराध था- आजादी के बाद पेैदा ‘भोगवाद’ और ‘दिशाहीनता’ के लिए देश को सचेत करते हुए नेहरू जी के नेतृत्व में शुरू हुई दोषपूर्ण नीतियों- कार्यक्रमों का खुला प्रतिकार करना। इससे उनकों कई अर्धसत्यों का शिकार बनना पड़ा और देश उनकी बात सुनने से बंचित रह गया। देश उनके दिखाए रास्ते की खूबियों को नहीं समझ सका और निरक्षरता-निर्धनता के दो पाटों में से नहीं निकल सका। जाति और योनि के दो कटघरों को तोड़कर समता और संपन्नता के लिए व्यापक सामाजिक एकता का मुद्दा शुरू नहीं हो पाया। फिर भी लोहिया को भरोसा था कि एक दिन लोग मेरी बात सुनेंगंे जरूर… लेकिन शायद मेरे मरने के बाद। डाॅ0 लोहिया का 12 अक्टूबर, 1967 को दिल्ली के सरकारी अस्पताल में रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में निधन हो गया। फिर भी धीरे-धीरेे उनके विचारों व आंदोलनों के इर्द-गिर्द बनाई गई धुंध छंटती जा रही है। उनकी भविष्यवाणी सच हो रही है।
Timely publication plays a key role in professional life. For example timely publication...
Individual authors are required to pay the publication fee of their published
Start with OAK and build collection with stunning portfolio layouts.