ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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अन्ना का अनशन 2011 और 2018 सवाल और सम्भावनाएं

डाॅ0 मोहित मलिक
(असिस्टेन्ट प्रोफेसर राजनीति शास्त्र)
विजय सिंह पथिक राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
कैराना, (शामली)

अन्ना हजारे ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अगस्त, 2011 और मार्च, 2018 में दो बार जो अन्न अनशन किये उनमें 2011 का अनशन बढ़ा प्रभावी रहा लेकिन 2018 का आनदोलन शुरू से ही बुझा-बुझा नजर आया न तो आम आदमी का समर्थन मिला और न किसी संगठन का, राजनैतिक दल भी दूर-दूर ही रहे। उनके साथ कोई केजरीवाल, किरन बेदी, वीके सिंह, प्रशान्त भूषण, शशि भूषण, योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास आदि भी न थे। जनता उनके आंदोलन को लेकर उदासीन बनी रही। पिछली बार रामलीला मैदान में लोगों की इतनी भीड़ होती थी कि तिल रखने की जगह नजर नहीं आती थी, लेकिन इस बार एक टैंट तक नहीं भर पाया।  यह वही अन्ना थे जिन्होेने 7 साल पहले अपने आंदोलन से यूपीए सरकार और उसके प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह को हिला कर रख दिया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावी माहौल बनाने में कामयाब रहे थे। ऐसे में सवाल स्वाभाविक है कि उनका 2018 का यह आंदोलन 2011 के आन्दोलन जैसा प्रभावी क्यों नहीं रहा? अन्ना चुके हुए तीर क्यों नजर आये।अन्ना हजारे ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अगस्त, 2011 और मार्च, 2018 में दो बार जो अन्न अनशन किये उनमें 2011 का अनशन बढ़ा प्रभावी रहा लेकिन 2018 का आनदोलन शुरू से ही बुझा-बुझा नजर आया न तो आम आदमी का समर्थन मिला और न किसी संगठन का, राजनैतिक दल भी दूर-दूर ही रहे। उनके साथ कोई केजरीवाल, किरन बेदी, वीके सिंह, प्रशान्त भूषण, शशि भूषण, योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास आदि भी न थे। जनता उनके आंदोलन को लेकर उदासीन बनी रही। पिछली बार रामलीला मैदान में लोगों की इतनी भीड़ होती थी कि तिल रखने की जगह नजर नहीं आती थी, लेकिन इस बार एक टैंट तक नहीं भर पाया।  यह वही अन्ना थे जिन्होेने 7 साल पहले अपने आंदोलन से यूपीए सरकार और उसके प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह को हिला कर रख दिया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावी माहौल बनाने में कामयाब रहे थे। ऐसे में सवाल स्वाभाविक है कि उनका 2018 का यह आंदोलन 2011 के आन्दोलन जैसा प्रभावी क्यों नहीं रहा? अन्ना चुके हुए तीर क्यों नजर आये। दरअसल में  अन्ना हजारे में इस बार आन्दोलन शुरू करने से पहले 12 मार्च, 2018 को आगरा में पत्रकारों से बातचीत करते हुये कहा कि वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार में उनके आन्दोलन के बाद जब अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बना ली थी तो उन्होंने उनसे कोई वास्ता नहीं रखा ‘‘इस बार 23 मार्च, 2018 से वह एक और आन्दोलन शुरू करने वाले हैं और उम्मीद करते हैं इससे कोई नया केजरीवाल पैदा नहीं होगा। उन्होने इस आन्दोलन के लिये 3 सूत्री कार्यक्रम में  लोकपाल की नियुक्ति, किसानों की समस्या, चुनाव सुधार को लेकर जनता में जागरूकता पैदा करने का लक्ष्य रखा है। उन्होेंने यह भी घोषित किया कि अब जो भी कार्यकर्ता आन्दोलन के दौरान उनसे मिलेंगे वे स्टाम्प पेपर पर लिख कर देगें कि कोई पार्टी नहीं बनायेंगे। साथ ही उन्होने घोषणा की यह न तो किसी पार्टी का समर्थन करेंगे और न ही किसी पार्टी से किसी को चुनाव लड़वायेंगे।‘‘1  उन्होने 24 दिसम्बर, 2017 को सम्भल (उत्तर प्रदेश) में किसान सम्मेलन में कहा कि आगामी 23 मार्च, 2017 से दिल्ली में होने वाला आन्दोलन ‘‘उनके जीवन का अन्तिम आन्दोलन होगा। सरकार को सभी मांगे पूरी करनी होंगी अन्यथा अनशन में बैठे-बैठे प्राण त्याग दूंगा। अनशन खत्म नहीं होगा……….. केन्द्र सरकार केे अभी तक के कार्य समाज हित में नहीं है। किसानों की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा और उद्योगपतियों को बढ़ाने के प्रयास में सरकार जुटी है, लेकिन अब सरकार के इस खेल को खत्म करना होगा। इसके लिये पूरा देश मेरे साथ 23 मार्च से दिल्ली के रामलीला मैदान मंे देश का दूसरा सबसे बड़ा आन्दोलन करने जा रहा है। यह मेरे जीवन की अन्तिम लड़ाई होगी।‘‘2  23 मार्च, 2018 को अन्ना हजारे महाराष्ट्र सदन से राजघाट पंहुचे और वहां उन्होेने महात्मा             गांधी की प्रतिमा को नमन किया। वहां से बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित शहीदी पार्क पंहुचकर उन्होने शहीद भगत सिंह और सुखदेव और राजगुरू को श्रद्धांजली दी उसके बाद अन्ना ने रामलीला मैदान पंहुचकर लोगोें को सम्बोधित किया। सत्याग्रह में ‘‘अन्ना के साथ मंच साझा करने वाले लोगों में देश के अलग-अलग राज्यों से चुने गये 26 लोगों की कोर कमेटी बनाई गई। इस मौके पर आन्दोलन के जनसम्पर्क अधिकारी जयकान्त ने बताया कि इस बार के आन्दोलन को राजनीति का शिकार नहीं होने देने की कोशिश की जायेगी। इसलिये सिर्फ मजदूरों और किसानों की पैरवी करने वाले संगठनों को कोर कमेटी का हिस्सा बनाया गया है। महज सात साल पहले ‘‘अन्ना हजारे इतिहास में सुनहरा पन्ना बनकर जुड़ गये आजादी के बाद कई नेताओं ने आन्दोेलन किये……….. लेकिन अन्ना का किस्सा इन सब से अलग है उसके साथ आजादी के बाद सबसे बड़ा जन सैलाब खड़ा है कल क्या होगा कोई नहीं जानता, लेकिन आज सारा हिन्दुस्तान अन्ना हजारे के साथ खड़ा है। ‘‘इसमें एकदम नये लोग शामिल हुये जो समाज में व्यप्त व भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं व भ्रष्टाचार से छुटकारा पाना चाहते हैं वे इसके लिये सड़कों पर संघर्ष करने के लिये तैयार हैं। यह आधुनिक भारत के लिये एक शुभ संकेत है। युवा पीड़ी ने इस आन्दोलन को विस्तार देने के लिये फेसबुक, ट्विटर जैसी आधुनिक संचार तकनीकों का सहारा लिया और कुल मिलाकर दबाव इतना बड़ा कि सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा‘‘ इसमें दो राय नहीं कि अन्ना की निर्विवाद और निष्कलंक व्यक्तित्व के नेतृत्व में जनता की बहुत बड़ी जीत है। ‘‘मीडिया ने खासकर टीवी चैनलों ने ऐसा माहौल खड़ा कर दिया जैसे देश में क्रांति आ गई हो। अन्ना की तुलना महात्मा गांधी से की जा रही है। जंतर-मंतर को मिस्त्र का तहरीर चैक बताया जा रहा है।‘‘ चंपारण सत्याग्रह को जब याद किया जाता है, ‘‘तब उस एक शक्स का नाम लोग जरूर याद करते हैं जिसने अपने आग्रह के जरिये मोहनदास कर्मचन्द गांधी को चम्पारण आने के लिये मजबूर किया था उस शक्स का नाम था राजकुमार शुक्ल आज एक बार फिर वही किरदार है, सिर्फ नाम बदल गये हैं अन्ना अगर दूसरे गांधी हैं तो अरविन्द केजरीवाल दूसरे राज कुमार शुक्ल‘‘ जहां 2011 के ‘‘आन्दोलन के दौरान देश की राजधानी ठहर गई थी, रामलीला मैदान में तिल रखने की जगह नहीं बची थी उसी मैदान में आज धूल उड़ रही है। चारों ओर लगभग सन्नाटे का आलम है। न मीडिया घरानों के ओबी वैन खड़ी करने की कोई मारामारी दिखाई देती है और न ही चैबीसों घण्टे लाइव रिपोर्टिंग का कोई नजारा है। भीड़ नदारद है। साथ ही वह नेता भी गायब हैं जो पिछली बार इस आन्दोलन की सुर्खियों में थे। भव्य पंडाल में देश के दूरदराज के गांवों से आये बेहद कम किसान बैठे हैं…………….. अनशन स्थल के पास तमाम छोट-छोटे स्टाल बनाये गये हैं एक स्टाल पर मुफ्त अन्ना टोपी बांटी जा रही है। लेकिन वहां रखी टोपियों के गट्ठर को देखकर ही अन्दाजा लगाया जाता है कि इनकी चाहत ज्यादा लोगों को नहीं है। इस बार लोगों में पिछले आन्दोलन जैसा उत्साह नहीं दिखता। अन्ना के मंच के ठीक नीचे से हरियाणा, पंजाब और यूपी आदि के किसान नेता अपनी तकरीरों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को कोस रहे हैं। कुछ नेता केन्द्र की भाजपानीत राजग की भी आलोचना कर रहे हैं। किसानों की दुर्दशा का जिक्र विस्तार से हो रहा है बीच-बीच में जनलोकपाल के पक्ष में भी कुछ बातेें कही जा रही हैं। मैदान के बाहर जाकिर हुसैन काॅलिज की दीवार के पास राम लड्डू बेचने वाला विक्रेता इसकी वजह बताता है। वह कहता है कि पिछली बार तो इसकी बिक्री खूब हुई इस बार भी उसे कमाई की उम्मीद थी लेकिन लोग इसलिये शायद घरों से निकलकर नहीं आ रहे हैं कि अन्ना के पिछले आन्दोलन से सरकार से जरूर बदल गई लेकिन आम आदमी की जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं आया।‘‘8  अचानक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने अन्ना से मुलाकार कर अनशन तोड़ने की गुजारिश की रामलीला मैदान में ‘‘अन्ना हजारे ने छठे दिन अनशन खत्म कर दिया,  इसके बाद फडणवीस ने अन्ना को जूस पिलाया। इसके बाद अन्ना ने कहा कि सरकार ने केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकआयुक्तों की जल्द नियुक्ति का लिखित आश्वासन दिया है। इसके लिये उन्होंने सरकार को छः महीने का वक्त दिया है। उन्होने कहा कि सरकार ने हमें आश्वस्त किया है कि वह लोकपाल व लोकायुक्तों की जल्द से जल्द नियुक्तियां करेगी वह किसानों को डेढ़ गुणा ज्यादा समर्थन मूल्य देने को तैयार है। इसमें फसल पैदा करने में किसानों की महनत और कर्ज पर लगने वाला ब्याज भी शामिल है। अन्ना ने चेतावनी दी है कि अगस्त तक यदि सरकार अपना वादा पूरा नहीं करती तो वह सितम्बर में फिर से अपना आन्दोलन शुरू करेंगे। इसके पहले महाराष्ट्र के मंत्री गिरीश महाजन ने प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डाॅ0 जितेन्द्र प्रसाद की तरफ से भेजा गया ड्राफ्ट अन्ना को सौंपा गया सात पन्ने के ड्राफ्ट में अन्ना की तरफ से उठाये गये मसलों पर सिलसिलेवार ढंग से जवाब दिया गया था। अन्ना की पूर्व कमैटी के सदस्य जयकान्त मिश्रा बताते हैं कि सरकार के ड्राफ्ट में सभी 11 मांगों पर स्पष्टीकरण दिया गया है। अन्ना ने लम्बी चर्चा के बाद इसे स्वीकार कर लिया है।‘‘ अन्ना हजारे के अनशन अचानक खत्म किये जाने पर उनको हर तरफ से कठघरे में खड़ा किया। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तंज कसा कि ‘‘यह उनका अनशन था या अभिनय यूपीए-2 सरकार के दौरान अन्ना के आन्दोेलन में पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाया था, क्या अन्ना ने सभी मांगे पूरी होने पर अपना अनशन खत्म किया, वाह। सभी मांगे पूरी भी हो गई और देश को कानों-कान खबर तक नहीं हुई‘‘1 मीडिया चाहे तो हीरो बना दे चाहे तो हीरो को जीरो। आज से सात साल पहले जो अन्ना हजारे रामलीला मैदान के हीरो थे इस बार जीरो बन कर रह गये। वे फिर रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे और वहीं से बोलते भी रहे लेकिन मीडिया ने उनकी खबर को हासिये तक पर न रखा जो व्यक्ति सात साल पहले रामलीला मैदान में हीरो था…………. सरकार हिली नज़र आती अन्ना विजयी हुये। इसके पीछे केजरीवाल की कुशल टीम की बड़ी भूमिका रही लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ अन्ना सिर्फ आश्वासन लेकर लौट गये।‘‘  अन्ना के इस बार के सत्याग्रह को ‘‘अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने का कारण कई मुद्दोें का शामिल किया जाना नहीं बल्कि उनकी विश्वसनीय छवि का खंडित होना है। कहना न होगा कि सार्वजनिक जीवन में आपकी छवि ही आपकी दौलत होती है। आज वे तमाम लोग अन्ना से किनारा कर चुके हैं जिन्होने अन्ना की छवि का इस्तेमाल अपने लिये राजनीतिक सफलता की सीढियां तैयार की और सत्ता तक जा पंहुचे। अब जब अन्ना आन्दोलन से पैदा हुए राजनैतिक नेताओं की साख पर सवाल उठ रहे हैं तो उसकी आंच अन्ना तक पंहुचना स्वभाविक ही थी। कहा जाना चाहिए कि जब पुत्र बेईमान होता है, तो पिता की इमानदारी भी सन्देह के घेरे में आ जाती है।‘‘ केन्द्र में राजग सरकार के चार साल का कार्यकाल पूरा होने पर 26 मई, 2018 को अन्ना हजारे नें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कई अधूरी वादे पूरा करने की याद दिलाई है। उन्होने इस सिलसिले में प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर कहा है ‘‘चुनाव प्रचार के दौरान आपने कई आश्वासन दिये उनमें एम एस स्वामीनाथन की सिफारिशों को लागू करने के लिये एक समिति के गठन करने का वादा भी किया था इस बारे में मुझे लिखित भी दिया था। लेकिन वे वादे अभी तक पूरे नहीं किये गये। समिति का गठन अभी हुआ या नहीं, इस बारे में भी कोई जानकारी नहीं मिली………….। उन्होंने पीएम को सम्बोधित अपने पत्र में उन्हें याद दिलाया कि ‘‘मार्च में नई दिल्ली के रामलीला मैदान में उनकी सप्ताह भर चली भूख हड़ताल के बाद सरकार ने आश्वासन दिया था कि किसानों की मांगों को पूरा करने के लिये एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जायेगा। इसमें कृषि लागत और मूल्य आयोग को स्वायत्तता देने की बात भी शामिल थी लेकिन इस दिशा में अभी तक कुछ भी नहीं किया गया उन्होंने चेताया कि अगर मोदी सरकार ने गांधी जयंती तक लोकपाल एवं लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की तो वे उपने गांव रालेगण सिद्धि में 2 अक्टूबर, 2018 से आंदोलन शुरू करेंगे।‘‘ अन्ना के ‘‘बहाने किसानों की आवाज एक बार फिर देश की सर्वोच्च सत्ता सदन तक पंहुच गई है। सरकार ने जो आश्वासन दिये हैं उनमें से अधिकांश पूरे हो सकते हैं। प्रधानमंत्री सहित तमाम प्रदेशों के मुख्यमंत्री इनके बारे में अलग अलग आश्वासन भी दे चुके हैं………… अन्ना ने इस मौके पर सियासी आश्वासनों के तह में पड़ी जन लोकपाल को भी विमर्श में लाने की कोशिश की है।‘‘ जहां तक अन्ना हजारे द्वारा उठाये गये मुद्दों का सवाल है वह हर तरह से प्रासंगिक है और इन मुद्दों को हल किया जाना देश हित में है। ये सभी हमारे राष्ट्रीय जीवन से जुडे सवाल हैं। आप अन्ना हजारे को पसन्द करें या नापसंद पर सार्वजनिक जीवन का लम्बा इतिहास उनकी निस्पृहता की गवाही देता है। सन्दर्भ:-1. अन्ना बोले, अगले आन्दोलन में केाई ‘केजरीवाल‘ पैदा नहीं होगा। जनसत्ता: नई दिल्ली,    13 दिसम्बर, 20172. मागें पूरी नहीं हुई तो अनशन में प्राण त्याग दूंगा। दैनिक जागरण मेरठ: 25 दिसम्बर, 20173. अन्ना ने फिर भरी हुंकार, केन्द्र सरकार पर साधा निशाना: अमर उजाला नई दिल्ली, 24 मार्च, 20184. संतोष भारतीय: यह पूरे देश का आन्दोलन है: चैथी दुनिया नई दिल्ली: 29 अगस्त से 4 सितम्बर, 20115. मेधा पाटकर: भ्रष्टाचार के खिलाफ: हस्तक्षेप राष्ट्रीय सहारा 16 अप्रैल, 20116. कैलाश सत्यार्थी: संस्थापक बचपन बचाओ आन्दोलन:  अन्ना का आन्दोलन: हस्तक्षेप  राष्ट्रीय सहारा नई दिल्ली 16 अप्रैल, 20117. शशि शेखर: अन्ना का अनशन: एक कहानी बेहतर मैनेजमेंट की: चैथी दुनिया नई दिल्ली 5 सितम्बर से 11 सितम्बर, 20118. जनसत्ता: इस बार कम किसान, खाली है रामलीला मैदान: जनसत्ता नई दिल्ली, 25 मार्च, 20189. सरकार ने मानी मांगे, अन्ना ने तोड़ा अनशन: अमर उजाला नई दिल्ली, 30 मार्च, 201810. कांग्रेस का तंज: अन्ना हजारे का अनशन था या अभिनय: अमर उजाला नई दिल्ली, 1 अपै्रल, 201811. सुधीश पचैरी: अन्ना हीरो, अन्ना जीरो: राष्ट्रीय सहारा नई दिल्ली, 01 अपै्रल, 201812. कुमार नरेन्द्र सिंह: क्यों विफल हुए अन्ना ?: राष्ट्रीय सहारा नई दिल्ली, 3 अपै्रल, 201813. अन्ना बोले: वादे पूरे करें पीएम मोदी: दैनिक जागरण मेरठ 27 मई, 201814. शशि शेखर: अन्ना के जाने और आने के बीच: हिन्दुस्तान नई दिल्ली, 01 अपै्रल, 2018

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