ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

कृषि जनित आय में वृद्धि द्वारा सामाजिक आर्थिक जीवन में सुधार जनपद हरदोई की तहसील शाहबाद के विशेष सन्दर्भ में।

डाॅ0 अच्युत कुमार यादव

आशीष राॅयल पार्क, बरेली

भारत के कृषि प्रधान देश होने के नाते आजादी के बाद से ही और अब भी कृषकों की आय में वृद्वि उनके जीवन में सभी प्रकार के परिवर्तन परिलक्षित होते है। यद्यपि कृशि की ओर पहले जैसा ध्यान न दिए जाने और औद्योगिक व सेवा क्षेत्र में सुधार को देश के विकास का प्रभावशाली उपाय माना जाने लगा है। परन्तु आज भी कृषि में सुधार और उनके सामाजिक आर्थिक प्रभावों को भुलाया नहीं जाना चाहिए, यह आलेख एक ऐसा ही विनम्र प्रयास है। जिससे किसी क्षेत्र विशेष के कृषि में हुए सुधारों तथा उनके परिणामों से लोेगों की आय में वृद्वि का उनके जीवन पर होने वाले प्रभाव का एक प्रयत्न है।भारत के कृषि प्रधान देश होने के नाते आजादी के बाद से ही और अब भी कृषकों की आय में वृद्वि उनके जीवन में सभी प्रकार के परिवर्तन परिलक्षित होते है। यद्यपि कृशि की ओर पहले जैसा ध्यान न दिए जाने और औद्योगिक व सेवा क्षेत्र में सुधार को देश के विकास का प्रभावशाली उपाय माना जाने लगा है। परन्तु आज भी कृषि में सुधार और उनके सामाजिक आर्थिक प्रभावों को भुलाया नहीं जाना चाहिए, यह आलेख एक ऐसा ही विनम्र प्रयास है। जिससे किसी क्षेत्र विशेष के कृषि में हुए सुधारों तथा उनके परिणामों से लोेगों की आय में वृद्वि का उनके जीवन पर होने वाले प्रभाव का एक प्रयत्न है। प्रस्तुत आलेख लेखक द्वारा किए गये शोध कार्य आधारित विश्वविद्यालय को प्रस्तुत शोध प्रबन्ध पर केन्द्रित किया गया है साथ ही शोध प्रबन्ध प्रस्तुत करने के बाद आवश्यकतानुसार हुए परिवर्तनों को भी विश्लेषण में शामिल किया गया है। हरदोई जनपद के शाहाबाद तहसील को ध्यान में रखते हुए ये प्रयास किया गया कि तहसील क्षेत्र में कृषि उत्पादन में वृद्धि तद्नुसार आय में वृद्वि का प्रभाव लोगों के सामाजिक आर्थिक विकास में स्पष्ट परिलक्षित होता है।हरदोई जनपद की तहसील शाहाबाद में निम्न तीन विकास खण्ड और ग्राम है
स्रोत:- सांख्यिकीय पत्रिका जनपद हरदोई 2002शाहबाद तहसील का उच्चर्ती क्षेत्र:- सुदूर उत्तर में स्थिति यह उपविभाग अन्य दो की अपेक्षा ऊँचा है। गर्रा के पूर्व का भाग निचली चीका मिट्टी का क्षेत्र है जिसके मध्य में गौरिया तथा नरभू नाले बहते है। इसी क्षेत्र में सिकन्दरपुर-नरकतरा के दक्षिण एक बडा झाबर है जो वर्षा ऋतु से जल से भर जाता है। गर्रा के पश्चिम का भाग भूड का क्षेत्र है जो यत्र-तत्र चीका के पैबन्दों द्वारा खण्डित है। इस उपविभाग का पश्चिम क्षेत्र संेढा की बाढ से प्रभावित होता है। इस भाग की ऊँचाई 140 मीटर से अधिक है।11- गजेटियर जनपद हरदोई।जनपद में तहसीलवार ऊसर भूमि क्षेत्र-1991

स्रोतः-अप्रकाशित भूमि अभिलेख, सदर कानूनगों कार्यालय, हरदोई।उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि शाहाबाद तहसील क्षेत्र में ऊसर भूमि पूरे जिले की 4.3 प्रतिशत ही है। इसलिए इस क्षेत्र की भूमि कृषि के लिए महत्वपूर्ण है। जनपद हरदोई में अधिकतर कृषि ही जीविकोपार्जन मात्र साधन है। अतः कुल खेतिहर भूमि के 71 प्रतिशत से भी अधिक भाग से मात्र खाद्यान्न-उपजें होती है। इनमें गेहूँ, चावल प्रमुख है। गन्ना व तिलहनों का उत्पादन नकदी फसलों के रूप में प्रधान है।  दालों में चना, मसूर, अरहर महत्वपूर्ण है। यहाँ पर फसली प्रारूप प्रधानतः मिट्टी में निहित उर्वरता पर ही टिका है। खेती के लिए अच्छे बीजों का उपयोग किया जाता है। लेकिन यहाँ के कृषि क्षेत्र (खेत) छोटे-छोटे है। क्योंकि अधिकतर किसान खेतों के किनारे से पगडण्डी बना लेते है। अतः एक कृषक किसी एक फसल का अकेला स्वामी नहीं हो सकता है। जनपद में फसल संयोजन प्रदेश एक सुदृढ आधार प्रस्तुत करता है।2 केवल प्रथम फसल के अन्तर्गत यहाँ गेहूँ प्रमुख है। प्रथम दो फसलों में गेहूँ-बाजरा व गेहूँ चना प्रमुख है। प्रथम तीन फसलों में गेहूँ-चावल-चना प्रमुख है। वीवर ने वास्तविक प्रतिशतों से सैद्धान्तिक मानक प्रति विचन ज्ञात कर वक्र ज्ञात करने हेतु निम्न विधि प्रयोग की3-एकल फसली कृषि – एक फसल में कुल काटी गई फसल क्षेत्र का 100 प्रतिशतदो-फसली संयोजन – प्रत्येक दो फसलों में 50 प्रतिशततीन-फसली संयोजन – प्रत्येक तीन फसलों में 33.3 प्रतिशतचार-फसली संयोजन – प्रत्येक चार फसलों में 25 प्रतिशतपाँच-फसली संयोजन – प्रत्येक पाँच फसलों में 20 प्रतिशतदस-फसली संयोजन – प्रत्येक दस फसलों में 10 प्रतिशत2- सूचना पत्रिका जनपद-हरदोई।3- कृषि भूगोल- डाॅ0 बी0एस0 नेगी। यहां की प्रमुख फसलें परम्परागत रूप से गेहूँ, धान और खरीफ की अन्य फसलें की जा रही है परन्तु गत दो दशकों के दौरान गन्ने के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्वि हुई है साथ ही उद्यान एवं दृग्ध उत्पादन अर्थात पशुपालन में हुए सुधार लोगों की आय बदी है और आय में हुई वृद्वि से सामाजिक आर्थिक क्षेत्र के विकास सम्भव हुआ है। कृषि के अन्तर्गत गन्ने का प्रयोग कच्चे माल के रूप में किया गया है इसके अलावा लोनी क्षेत्र में गन्ना मिल की स्थापना के बाद से क्षेत्र में गन्ने के उत्पादन में काफी वृद्वि हुई जिससे लोगों की आय में वृद्वि हुई और उसका आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक रूप में दिखाई देता है। जनपद हरदोई में गेहूँ, चावल व चने की खेती पर्याप्त मात्रा में होती है। पारम्परिक रूप फसलें जैसे गेहूँ, धान, मक्का, दलहन आदि के उत्पादन में भी वृद्वि हुई है जिससे स्वयं उपभोग के बाद अतिरिक्त उत्पादन भी उनकी आय में वृद्वि का साधन बना। पशुपालन के अन्तर्गत दुधारू पशुओं के विकास का प्रभाव भी लोगों की आय वृद्वि में दिखाई पड रहा है।-विकास खण्डवार दुग्ध उत्पादन का विवरण (2002)

स्रोत:- सांख्यिकीय पत्रिका जनपद हरदोई 2002।इस क्षेत्र की भौगोलिक एवं मिट्टी की अनुकूलता का लाभ सब्जियों एवं आम अमरूद जैसे फलों का उत्पादन भी बढा है जो भी क्षेत्रीय लोगों की आय वृद्वि में प्रमुख भूमिका रही।तहसील शाहाबाद में विकास खण्डवार फलों का उत्पादन 2001-02

स्र्रोत:- सांख्यिकीय पत्रिका जनपद हरदोई 2002यद्यपि शाहाबाद तहसील की तीनों विकास खण्डों की भूमि काफी उपजाऊ है फिर भी यह पूरी तहसील औद्योगिक क्षेत्र के विकास में पिछड़ गई है क्योंकि हरदोई जनपद में औद्योगिक विकास हेतु जो भी प्रयत्न किये गये हैं वह सभी सण्डीला तहसील के क्षेत्र में हुए हैं। थोड़ा बहुत विकास जो शाहाबाद क्षेत्र में हुआ भी है वह केवल छोटी-छोटी इकाईयों के रूप में ही हो पाये हैं जिसमें – चावल मिल, तेल मिल और आटा मिल। एक मात्र चीनी मिल ही शाहाबाद में लग पाई है यद्यपि इस चीनी मिल से क्षेत्रीय कृषकों में गन्ना की फसल उगाने हेतु जागरूकता आयी है और उसका भरपूर लाभ भी उठा रहें हैं। अगर औद्योगिक क्षेत्र में सण्डीला तहसील की तरह शाहाबाद तहसील क्षेत्र में भी उद्योगों की स्थापना की जाती तो जहाँ एक तरफ विकास भी संतुलित होता और शाहाबाद क्षेत्र की जनता और समृद्ध होती।
निष्कर्ष – प्रस्तुत आलेख से यह निष्कर्ष निकलता है कि जनपद की अधिकाशं जनसंख्या कृषि या कृषि से     सम्बन्धित क्रियाओं में संलग्न है। वही से उन्हें रोजगार और आय की प्राप्ति होती है। कृषि की उपेक्षा करके औद्योगिक और सेवाओं के विकास पर निर्भर रह कर लोगों की जिन्दगी में सुधार होने की आशा कोरी कल्पना लगती है। अतः कृषि को ही तकनीकी प्रगति के आधार पर विकसित करते हुए आय वृद्वि एवं अनुकूल परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं- जैसे उपभोग स्तर में वृद्धि, पर्यटन मे वृद्धि, शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य सम्बन्धित सुधार अर्थात् कृषि की उपेक्षा नही की जानी चाहिए। यह निष्कर्ष तो सीमित क्षेत्र के आधार पर दर्शाया गया है। पूरे देश के लिए भी उपयोगी माना जाना उचित प्रतीत होता है।
सन्दर्भ सूची:- 1. गजेटियर जनपद-हरदोई।2. सूचना पत्रिका जनपद- हरदोई।3. सांख्यिकीय पत्रिका जनपद- हरदोई 2002।4. कृषि भूगोल – डाॅ0 बी0एस0 नेगी।

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