ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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भारतीय राजनीति में चैधरी चरण सिंह की सामाजिक, आर्थिक भ्ूामिका

डाॅ0 मिन्नी-प्रवक्ता
राजनीति विज्ञान
बरेली कालेज, बरेली

इस देश की राजनीति में कुछ गिने चुने ही नेता ऐसे है जिनका चरित्र पुण्य सलिल गंगा की तरह निर्मल, सागर की तरह गम्भीर, हिमालय की तरह महान है। जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अपनी चरम सीमा पर रहकर जनमानस को अपने तेज से अभिभूत कर रहा था तब तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिथियों मे चरण सिंह का जन्म एक साधारण कृषक परिवार में हुआ। साधारण परिवार में जन्म लेकर अपनी संघर्शशीलता, विद्वत्ता, त्याग, योग्यता एवं सादा जीवन उच्च विचार के बल पर समाज में अपनी गौरवशाली स्थान प्राप्त कर लेते हैं। किसान उन्हें देवता की तरह से पूजते है। इस देश की राजनीति में कुछ गिने चुने ही नेता ऐसे है जिनका चरित्र पुण्य सलिल गंगा की तरह निर्मल, सागर की तरह गम्भीर, हिमालय की तरह महान है। जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अपनी चरम सीमा पर रहकर जनमानस को अपने तेज से अभिभूत कर रहा था तब तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिथियों मे चरण सिंह का जन्म एक साधारण कृषक परिवार में हुआ। साधारण परिवार में जन्म लेकर अपनी संघर्शशीलता, विद्वत्ता, त्याग, योग्यता एवं सादा जीवन उच्च विचार के बल पर समाज में अपनी गौरवशाली स्थान प्राप्त कर लेते हैं। किसान उन्हें देवता की तरह से पूजते है।  जीवन दर्शन को परिभाशित करते हुए स्वयं चैधरी चरण सिंह लिखतें हैं ’’आमतौर से किसी एक व्यक्ति के विचार उसके परिवार की आय के स्रोत तथा उसके आस-पास के वातावरण के अनुसार बनते हैं। उसके माता-पिता, उसका व्यवसाय, उसके पड़ोस, उसके मित्र व परिचित उसके नातेदार इन सभी का जोड़ व्यक्ति के जीवन दर्शन को बनाता है, शिक्षा से इस प्रकार बने विचारों में बहुत कम अन्तर आता हैं। अक्सर शिक्षा उन विचारों की पुष्टि ही करती है। किसी व्यक्ति के जीवन संबंधी वे आदर्ष विचार, जिन्हें वह तर्क वितर्क द्वारा भली-भांति सोच समझकर अपने जीवन का उद्देश्य बना लेते हैं और सदैव विषय परिस्थितियों में भी उन पर चलता है उनका पालन करता हैं। समाज में व्याप्त कुरीतियों, धर्माडंबरों, छुआ छूत, जाति पांति का भेदभाव मिटाने, वेदों का ज्ञान कराने तथा विदेशी शासन के विरूद्ध जनमानस को जागृत करने के कारण दयांनद सरस्वती को जनता ने महर्षि दयानन्द कहकर पुकारा। महात्मा गांधी के सिद्धान्त थे सत्य, अहिंसा तथा स्वराज्य प्राप्ति के लिए सत्याग्रह। वे सच्चाई के मार्ग पर चलकर हिंसा के खिलाफ बुलंद आवाज उठाई और स्वतत्रता मिलने पर सर्वस्व त्याग दिया तभी वे महात्मा-राष्ट्रपिता कहलायेे। अपनी स्वार्थ रहित समाज-देश सेवा, खण्डित देश को अखण्ड भारत बनाने के दुर्द्धर्ष कार्यों तथा कठोर प्रशासन के विचारों को मूर्तरूप देने पर ही बल्लभ भाई पटेल लौहपुरूष, सरदार पटेल की ख्याति और आदर के पात्र बनें। चैधरी चरण सिंह इन तीनों महात्माओं से प्रेरित होकर अपना मार्ग सुनिश्चित किया, अपनी कृषि कृषक उद्धारक नीतियों, कृषि आधारित आर्थिक और औद्योगिक विकास तथा भ्रष्टाचार मुक्त सुदृढ जनहितकारी स्वच्छ प्रशासन जैसी संकल्पनाओं को व्यावहारिकता प्रदान करने के परिणाम स्वरूप आज किसान मसीहा के रूप में गरीब मजदूर किसानों के हृदय सम्राट बने हुए है। महात्मा गाँधी भारत को समृद्ध और आत्म निर्भर देखना चाहते थे, उनका लक्ष्य या सबसे कमजोर और निर्धन वर्ग को बढ़ावा देना। वे कहते थे जब तक पाँच लाख गाँवों में बसने वाला किसान व मजदूर समृद्धशाली नहीं होगा इस प्राप्त आजादी की कोई कीमत नहीं होगी। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि ही रीढ़ की हड्डी है। चैधरी चरण सिंह गाँधी जी की नीतियों को धरातल पर उतारा उन्हें अपनाया और कार्यान्वित किया वे खेती को ही आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति का एक मात्र साधन मानते थे जैसी कि कवि ने कहा है। ?खेती है इस देश में सब सम्पत्ति की मूल। कोहिनूर इस कोश में है कपास के फूल।। यदि अधिक समीक्षात्मक दृष्टि से देखा जाये तो कृषि केवल कृषि ही, आर्थिक प्रगति की नीवं और आधार है एक देश का उसी सीमा तक विकास हो सकता है जब तक कि उसकी भूमि से अन्न और कच्चे माल की सप्लाई होती रहे। जब तक किसान अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पन्न नहीं करते, तक तक उनके पास बेचने के लिए कुछ भी नहीं होगा और तब तक वे कोई सम्पत्ति नहीं खरीद सकेंगें।2 निः संदेह वह चाहे व्यापारी हो अथवा कारीगर, किसान हो या मजदूर सरकार हो या सरकारी कर्मचारी सभी को मूल भूत सुविधायें अर्थात रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए गाँधी जी की तरह चैधरी चरण सिंह की प्राथमिकता भी किसान ही था। उनके अनुसार देश का किसान सदियों से पीड़ित है, हर आने वाले शासक ने उन्हें लूटा है, अंग्रेजो ने गाँवो के कुटीर धन्धे समाप्त करके खेती पर अधिक भार बढ़ा दिया है। इसीलिए गांवों में गरीबी का विकराल रूप है असली भारत यही है यदि इनकी स्थिति में हमने सुधार नहीं किया, नहीं किया तो आजादी का क्या मतलब होगा।3 चैधरी चरण सिंह कुशाग्रवुद्धि के थे विचारवान थे वे जो भी सोचते और करते थे उसका आधार पुख्ता होता था। गँावों के विकास के लिए 1939 में धारा सभा में उच्च प्रशासनिक पद ग्रामीण परिवेश से आये हुए युवाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षित किये जाएँ पर दुर्भाग्य से व्रिटिश सरकार ने यह बात नही मानी। गाँधी जी पश्चिमी देशों की तरह मशीनों पर आधारित पूँजी-प्रधान उद्योग नहीं चाहते थे वह कहते थे उनसे बेरोजगारी बढेगी, कुछ लोगों के हाथों में सम्पत्ति केन्द्रित हो जायेगी और पूँजीवाद के सभी दुर्गुण हमारे देश में आ जायेंगें। नेहरू ने आर्थिक विकास के लिए विदेशी नीतियों को अपनाया और भारतीय जनमानस के लिए अनुकूल गाँधीवादी आर्थिक नीति को नकार दिया गया।4 इस तरह से भारी उद्योग देश्या की प्रगति में सहायक है चैधरी साहब कहते थे मैं भारी उद्योग के खिलाफ नहीं हूँ लेकिन केवल इनसे ही देश उन्नति नहीं कर सकता भारत में प्रगति का मापदण्ड यह नही है कि हम कितना इस्पात हटाना या कितने टी0वी. सेट या कितनी मोटर गाड़ियाँ बना सकते है। बल्कि यह है कि हम किस मात्रा में व किस तरह की जीवन की मूलभूत आवश्यकतायें जैसे रोटी, कपड़ा, आवास, स्वास्थ्य शिक्षा आदि को उस आदमी तक पहुँचा सकते हैं। जिसे गाँधी जी ’आखिरी आदमी’ कहते थे? भारत में या ऐसी ही स्थितियों वाले किसी भी देश में भारी उद्योग को प्राथमिकता देने का अर्थ है कृषि विकास को कुण्ठित करना, खाद्य पदार्थो की कभी करना व आयात की गयी भोजन सामग्री पर आश्रित रहना।5 हम चैधरी जी के इन विचारों से सहमत हुए बिना नहीं रह सकते चाँद पर पानी खोजने से अधिक आवश्यक है धरती पर जनता की प्यास बुझाना। अपनी किसानो द्वार नीतियों को कृषि मर्मज्ञ यथार्थ रूप देते हुए ब्रिटिश सरकार के अधीन होते हुए किसानों के ़ऋण माफ कराये तथा स्वतंत्योत्तर काल में जमीदारी उन्मूलन कानून पारित कराकर उन्हें अपने खेतों का मालिक भी बना दिया। सामूहिक खेती मानव स्वभाव के विरूद्ध है सामूहिक या सहकारी खेती से उत्पादन पर बुरा असर होगा और देश विनाश की ओर अग्रसर होगा। ’नेहरू जी को अपना प्रस्ताव वापस लेना पड़ा ऐसे माहौल में उनकी नीतियों का विरोध करने का साहस चैधरी साहब में ही था वे किसानों को समझाते थे कि यदि परिवार में चार भाई है तो एक खेती करे और शेश सभी अन्य कार्यो नौकरी या किसी  कारोबार में लगे तभी परिवार का भरण पोषण होगा इसके साथ ही वे एक बात पर विशेष बल देते थे योजनाओं में गाँवों और शहरों के बीच होने वाले विकास पर नजर रखी जाय और यह देखा जाए कि शहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों पर कुल व्यय का अनुपात क्या होगा? गाँवों को विकसित करने के लिए उनके अनुसार यह आवश्यक कि न केवल कृषि कार्यो, वरन् सामूहिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिए शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों पर व्यय अधिक हो। कृषि एक ऐसा धंधा है जिसमें प्रकृति से सामना होते रहने के कारण किसान को रोज सहनशीलता और धैर्य का सबक मिलता है और उसके भीतर कठोर श्रम झेलने की क्षमता विकसित होती है यानी यह चारित्रिक गुण जो किसी अन्य धन्धे में लगे व्यक्ति के लिए सुलभ नहीं होता। देश में अनेक प्रकार के आन्दोलन हुए जिसमें से चैधरी चरण सिंह प्रभावित हुए किन्तु उनका कार्यक्षेत्र सदैव ग्रामीण क्षेत्र व किसान ही रहे। कभी भूमि की बेदखली तो कभी पुलिस के अत्याचारों के विरोध में देहात के लोगों के हितों के लिए लडते रहे गाँधी जी के स्वराज्य का अर्थ ग्रामीण जनता की गरीबी दूर करना था, किन्तु हुआ इसके विपरीत जब भी देखा देश का नेतृत्व शहरी सफेद पोशों के हाथों में रहा। इसी समय उत्तर प्रदेश से एक कृषक क्रान्ति की आवाज आई कि किसानों के जीवन में परिवर्तन आना चाहिए वह आवाज चैधरी चरण सिंह की थी जो देश भर की देहाती जनता एवं किसानों की उन्नति के लिए जूझ रहे थे। चैधरी चरण सिंह किसानों की समस्याओं को उजागर करने के लिए किसी भी लड़ाई एवं त्याग से नहीं झिझके, आवश्यकता पड़ने पर सरकार में बैठकर आवाज बुलंद की और यदि समय की पुकार हुई तो राजगद्दी का भी त्याग कर दिया। देश को गाँवों में होने वाले अत्याचारों से अवगत कराया। चकबंदी से लेकर सीलिंग जोतदारी, कटाई, मालिकाना, रहन सहन पढ़ाई एवं उन्नति के अवसर, सरकार संचालन में देहात एवं किसानों की भागीदारी को उन्होनें वैज्ञानिक दर्शन का रूप दे दिया। चैधरी चरण सिंह ने राजनीति में नैतिकता एवं सद्चरित्र को सदैव महत्व दिया उन्होंनो कथनी और करनी में कभी अन्तर नहीं किया और इसी ने इनको लोकप्रिय बनाने कें महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। वे राजस्व मंत्री एवं कृषि मंत्री के रूप में उन्होंने अपने क्रिया कलापों जो छापा छोड़ी किसान उसे कभी भूल नही सकता। वे 1967 में संविद सरकार के मुख्यमंत्री भी बने।6 इसके पूर्व पंडित गोबिन्द बल्लभ पंत के मंत्रिमण्डल में राजस्व मंत्री के रूप में जमीदारी उन्मूलन कानून बनवाकर किसानों को उनका अधिकार दिला जमीदारी खत्म कर एक ऐतिहासिक कार्य किया। इस महान कार्य से वे हमेशा किसानों के दिलों में राज करते रहेंगें और देवता के रूप मंे किसान भी इन्हें सम्मान देते रहेंगें। चैधरी चरण सिंह के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनके मन में किसानों के प्रति बड़ी हमद्र्दी थी। किसान परिवार में जन्म लेने के कारण बे बचपन से ही किसानों के उत्थान के बारे में सोचा करते थे। जब वह कृशि मंत्री बने तो सरकारी अधिकारी कृषि, छोटे, उद्योगों कुटीर उद्योगों को गांव के विकास के लिए योजनायें बनाकर देश, ग्रामीण उत्थान  को प्राथमिकता दिया करते थे। चैधरी चरण सिंह कहा करते थे कि इस देश के विकास और खुशहाली का रास्ता खेत एवं खलिहान से होकर गुजरता है। परम्परागत चले आ रहे छोटे उद्योगों को जिनका विनाश अंग्रेजों ने कर दिया था और वे मृत प्राय हो गये थे, उन्हें प्रोत्साहन देकर, राष्ट्र के विकास के साथ जोड़कर, उन्होंने अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने पर विषेश बल दिया, किसानों को लाभकारी मूल्य मिले, उत्पादकता बढ़े तथा देष खाद्यन्न में आत्मनिर्भर बने, यह उनकी आर्थिक नीति की आधार शिला थी। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहते थे इसे वह समाज का जबरदस्त कोढ़ मानते थे इसीलिए जब कभी वह किसी पद पर आरूढ़ होते, अधिकारी एवं कर्मचारी उनसे बहुत भयभीत रहते थे। वे कार्यालयों पर समय से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे। चैधरी चरण सिंह तो किसी भ्रष्टाचारी के विरूद्ध अपने मंत्रियों की भी बात नहीं सुनते थे। इसलिए अधिकारी भी उनका सम्मान करते थे। वह सामाजिक रूढ़वादिता, अंधविश्वास, जातिवाद के कट्टर विरोधी थे। उनका विश्वास था कि इस देश में जातिवाद एवं वर्ण व्यवस्था ही प्रमुख कारण थे जिससे वाहरी आक्रमण भारत पर होते रहे और भारत पराधीनता की वेड़ियों में  जकड़ता गया। भारत में अंग्रेजों द्वारा बरवाद किये कुटीर धंधों की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है। उनकी सर्वनाश अधोनीति पर ही इन यूरोपीय देशों की भष्ट अट्टालिकायें खड़ी हुई। एशिया अफ्रीका की विपन्नता पर ही इनकी औद्योगिक सम्पन्नता ने आतंकित कर दिया। परन्तु महात्मा गाँधी प्रभावित होते हुए भी भारत की परिस्थितियों का अपनी आँखों से अनुभव किये होने के कारण इससे भिन्न सोचते थे। वे कुटीर उद्योगो धंधों जिनमें मशीनों का कम और मानव संसाधनों का ज्यादा उपयोग था पर जो देते थे7 चैधरी चरण सिंह ने लिखा यह हमारा दुर्भाग्य था कि हमने एक राष्ट्र के नाते उनकी (गाँधी जी की) पूरी तरह उपेक्षा की और उनके व्यावहारिक दर्शन को ताक पर रखकर अपने को और संसार को धोखा देते रहें। उनका जबानी गुणगान करके ही संतुष्ट होते रहे। चैधरी  साहब नेहरू जी की यह बात ठीक मानते है कि ’’लोगों के रहन सहन का स्तर ऊँचा उठाने के लिए भारत में औद्योगिक अथवा कृषितर साधनों का विकास आवश्यक है। ’’ चैधरी चरण सिंह जी ने नेहरू जी की इस एकांगी मशीनों पर आधारित औद्योगिक विकास नीति की कड़ी आलोचना की। पूँजी प्रधान उद्योगों के अधीन परिस्थितियाँ हमारे यहां उपलब्ध नहीं है। पश्चिमी ढंग की नीति के लिए जितनी पूँजी चाहिए, वह बचत करके कर लगाकर भी उपलब्ध करवाना सम्भव नहीं है कृषि की उपेक्षा का परिणाम यह हुआ कि भारत जो कभी खाद्यान्नों का निर्यात किया करता था उलटे उसका आयात करने पर मजबूर होना पड़ा हमारी जनसंख्या तो अधिक है ही इसके साथ ही बेकार श्रमिक हमारी दूसरी समस्या है भारी संख्या में मजबूर श्रम           उपलब्ध है, पर उसका कोई उपयोग नहीं किया जा रहा। गांवों में बुनियादी सुविधाओं तक का अभाव है। लाखों गाँव ऐसे है जहां पीने का पानी एक मील की दूरी के अन्दर उपलब्ध नहीं है। अन्य           सुविधाओं की बात तो जाने ही दीजिए। स्वास्थ्य शिक्षा का तो और भी बुरा हाल है इन समस्याओं का मूल कारण यही है कि कृषि की घोर उपेक्षा की गयी है इसे सुधारने की कोई नीति नहीं बनायी गयी बल्कि नाममात्र का वित्तीय प्रावधान करके छोड़ा हुआ है दूसरी ओर पश्चिमी देशों ने अपने ढंग से कृषि पर पूरा पूरा ध्यान दिया।8  अमेरिका औद्योगिक देश है फिर भी उसके पास इतना अन्न उपजता है कि वह अनेक देशों को उसका निर्यात करता रहा है। जिसमें भारत भी शामिल है उसने अपने संसाधनों का कृषि उत्पादन के लिए भरपूर उपयोग किया है। चीन भी इसी दिशा में संलग्न है। जो पश्चिमी देश उद्योग प्रधान बने है वहाँ प्राकृतिक संसाधनों का बाहुल्य है उन्हें लूटा खसोटा है जो देश ऐसा नहीं कर सकते उन्हे इस नीति का विकल्प ढूढना ही पड़ेगा पूँजी की कमी वाले देशों को गाँधीवादी ढंग की अर्थव्यवस्था अपनाकर अपना विकास करना होगा। उद्योग खुशहाल होते है तो कृषि का विकास होता है। हमें चाहिए कि धीरे-धीरे व धैर्यपूर्वक अपने संसाधनों के सहारे नीचे से निर्माण करते हुए ऊपर की तरफ बढें। हमें अपनी नीतियाँ मानव संसाधनों का अधिकतम उपयोग करते हुए उत्पादन बढ़ाने के लिए बनानी चाहिए।संदर्भ सूचीः-1. चैधरी चरण सिंह का लेख ’’गाँवों तथा खेती की उपेक्षा के कारण’’ जाट समाज पत्रिका, जून-जुलाई 1987 पृष्ठ232. असली भारत किसान दिवस विशेषांक 27 दिसम्बर 1986 3. राजेन्द्र सिंह – एक और कबीर पृष्ठ 674. चैधरी चरण सिंह – भारत की अर्थनीति, गाँधीवादी रूप रेखा किसान ट्रस्ट, पृष्ठ 72 5. चैधरी चरण सिंह – भारत की अर्थनीति: गाँधीवादी रूप रेखा, किसान ट्रस्ट पृष्ठ 1186. सी0पी0सिंह – चैधरी चरण सिंह एक चिन्तन एक चमत्कार पृष्ठ 937. किरन पाल सिंह – संस्तवनः एक आलोक पुरूष का चैधरी चरण सिंह स्मृति गं्रथ, भारतीय राजभाषा विकास संस्थान, देहरादून। 8. चैधरी चरण सिंह- भारत की अर्थनीति गाँधीवादी रूपरेखा, किसान ट्रस्ट पृष्ठ 61-67

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