डा0 रश्मि फौजदार
प्रवक्ता (राज0शा0)
मुस्लिम गर्ल्स कालिज बुलन्दशहर
देश की संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली में शान्तिपूर्ण एवं निष्पक्ष तरीके से चुनाव सम्पन्न कराना बड़ी चुनौती है प्रत्याशी से लेकर राजनीतिक दल येन-केन प्रकारेण चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं इसके लिए मतदाताओं को डराने-धमकाने, उन्हें धन का लोभ देकर अपने पक्ष में करने, मतदान के दौरान जबरन मतदान करने मतपत्रों और मतपेटियों/ईवीएम को लूटने, सत्तासीन राजनीतिक दल द्वारा सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने एवं जाति- धर्म-समुदाय के आधार पर मतदाताओं का धुवीकरण करने जैसी घटनाएं आम बात हो गई हैं । इन्हे रोकने के लिए भारत निर्वाचन आयोग द्वारा किसी भी चुनाव की तिथियों की घोषणा किए जाने के साथ ही आदर्श आचार सहित लागू हो जाती है, जो चुनाव परिणाम की औपचारिक घोषणा हो जाने तक अमल में रहती है।
इस समय में प्रभावी आदर्श आचार सहिता केरल विधान सभा में 1960 में पारित ष्ळनपकंदबम व ि च्वसपजपबंस च्ंतजपमे ंदक ब्ंदकपकंजमेष् पर आधारित है भारत निर्वाचन आायोग द्वारा इन्ही दिशा-निर्देशों को 1962 के सामान्य निर्वाचन में कतिपय संशोधनो के साथ अपना लिया गया। 1962 से 1990 तक की अवधि में जितने भी चुनाव हुए उन सभी में आदर्श आचार संहिता जारी तो की गई लेकिन किसी भी स्तर पर इसके प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। अतः ’’यह एक व्यर्थ की कवायद रह जाती है’’1
भारत में आदर्श आचार सहिता का सशक्त स्वरूप 1996 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन के कार्यकाल में देखने को मिला । उनके बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्तो ने इसे और अधिक सशक्त बनाया है। आदर्श आचार संहिता को यद्यपि वैधानिकता प्राप्त नहीं है तथापि इसका पालन प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है क्योंकि भारत निर्वाचन आयोग को आदर्श आचार सहिता के प्रावधानो का उल्लघन किए जाने पर चुनाव प्रक्रिया को रोकने एवं रद्द करने की शक्ति प्राप्त है । यही भय उम्मीदवारों तथा राजनीतिक दलो को आदर्श आचार संहिता का पालन करने के लिए बाध्य करता है । प्रत्येक चुनाव में आदर्श आचार सहिता के उल्लघन की शिकायतें बडे़ पैमाने पर प्राप्त होती है लेकिन कोई प्रभावी कार्यवाही नही हो पाती, सिवाय इसके कि मीडिया में आचार सहिता का उल्लघन करने वालों के चेहरे अवश्य सामने आ जाते है। ’’आचार संहिता के उल्लंघन और नेताओं की बदजुबानी के मामलों की लम्बी सूची है।’’2 कार्मिक लोक शिकायत विधि एवं न्याय मन्त्रालय की संसद की ई.एम.सुदर्शन नचियप्पन की अध्यक्षता वाली स्थाई समिति ने आदर्श आचार सहिता को और अधिक प्रभावी बनाए जाने हेतु कतिपय महत्वपूर्ण सुझाव दिए है। वर्तमान में प्रभावी आदर्श आचार सहिता के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित प्रकार है-
प्रत्याशियों एवं राजनीतिक दलों को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए, जो विभिन्न जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के बीच विद्यमान मतभेदों को बढाए या घृणा की भावना उत्पन्न करे या तनाव पैदा करें। जब अन्य राजनीतिक दलो की आलोचना की जाए तो वह उनकी नीतियो और कार्यक्रम पूर्व रिकॉर्ड और कार्य तक ही सीमित होनी चाहिए यह भी आवश्यक है कि व्यक्तिगत जीवन के ऐसे सभी पहलुओं की आलोचना नही की जानी चाहिए, जिनका सम्बन्ध अन्य दलो के नेताओं या कार्यकर्ताओ के सार्वजनिक क्रियाओं के बारे में कोई ऐसी आलोचना नही की जानी चाहिए जो ऐसे आरोपों पर जिनकी सत्यता स्थापित न हुई हो । मत प्राप्त करने के लिए जातीय या साम्प्रदायिक भावनाओं की दुहाई नहीं दी जानी चाहिए मस्जिदों गिरजाघरों मन्दिरो या पूजा के अन्य स्थानो का निर्वाचन प्रचार के मंच के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
सभी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को ऐसे सभी कार्यों से ईमानदारी के साथ बचना चाहिए, जो निर्वाचन विधि के अधीन भ्रष्ट आचरण और अपराध है जैसे कि मतदाताओं को डराना- धमकाना, तमदाताओं का प्रतिरूपण, मतदान केन्द्र के 100 मीटर के भीतर मत माँगना, मतदान की समाप्ति के लिए नियत समय को खत्म होने वाली 48 घण्टे की अवधि के दौरान सार्वजनिक सभाए करना और मतदाताओं को वाहन से मतदान केन्द्रों तक लेजाना और लाना। सभी राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि वे प्रत्येक व्यक्ति के शान्तिपूर्ण और विघ्नरहित घरेलू जिन्दगी के अधिकार का आदर करें चाहे वे उसके राजनीतिक विचारो या कार्यों के कितने ही विरूद्ध क्यों न हो व्यक्तियों के विचारों या कार्यों के कितने ही विरुद्व क्यों न हों व्यक्तियों के विचारों या कार्यों का विरोध करने के लिए उनके घरों के सामने प्रदर्शन करने या धरना देने के तरीकों का सहारा किसी भी परिस्थिति में नहीं लेना चाहिए।
प्रत्याशियों व राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके समर्थक अन्य दलों द्वारा आयोजित सभाओं-जुलूसों आदि में बाधाएं उत्तपन्न न करें या उन्हें भग न करें एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं या शुभचिन्तकों को दूसरे राजनैतिक दल द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभाओं में मौखिक रूप से या लिखित रूप से प्रश्न पूछकर या अपने दल के परचे वितरित करके गड़बडी पैदा नहीं करनी चाहिए किसी राजनीतिक दल द्वारा जुलूस उन स्थानों से होकर नहीं ले जाना चाहिए जिन स्थानो पर दूसरे राजनीतिक दल द्वारा लगाए गए पोस्टर दूसरे राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं द्वारा हटाए न जाय। किसी भी राजनीतिक दल या प्रत्याशी को ध्वजदण्ड बनाने, ध्वज टाँगने सूचनाए चिपकाने नारे लिखने आदि के लिए किसी भी व्यक्ति को भूमि भवन अहाते दीवार आदि का उसकी अनुमति के बिना उपयोग करने की अनुमति अपने अनुयायियों को न दी जाय।
प्रत्याशी या राजनीतिक दल को किसी प्रस्तावित सभा के स्थान और समय के बारे में स्थानीय प्राधिकारियों को उपयुक्त समय पर सूचना दे देनी चाहिए ताकि वे यातायात को नियन्त्रित करने और शान्ति तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक इन्तजाम किये जा सके। प्रत्याशी या राजनीतिक दल को उस दशा में पहले ही यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उस स्थान पर जहाँ सभा करने का प्रस्ताव है कोई निर्बन्धात्मक या प्रतिबन्धात्मक आदेश लागू तो नही है यदि ऐसे आदेश लागू हों तो उनका कड़ाई के साथ पालन किया जाना चाहिए यदि ऐसे आदेशों से कोई छूट अपेक्षित हो, तो उसके लिए समय से आवेदन करना चाहिए और छूट हासिल कर लेनी चाहिए।
यदि किसी प्रस्तावित सभा के सम्बन्ध में लाउडस्पीकरों के उपयोग या किसी अन्य सुविधा के लिए अनुमति प्राप्त करनी हो तो राजनीतिक दल या प्रत्याशी को सम्बन्द्ध प्राधिकारी के पास काफी पहले ही से आवेदन करना चाहिए और ऐसी अनुमति प्राप्त कर लेनी चाहिए। किसी सभा के आयोजकों के लिए यह अनिवार्य है कि वे सभा में विध्न डालने वाले या अन्यथा अव्यवस्था फैलाने का प्रयत्न करने वाले व्यक्तियों से निपटने के लिए ड्यूटी पर तैनात पुलिस की सहायता प्राप्त करें, आयोजकों को चाहिए कि वे स्वय ऐसे व्यक्तियों के विरुद्व कोई कार्यवाही न करें। जूलूस का आयोजन करने वाले राजनीतिक दल या प्रत्याशी को पहले ही यह बात तय कर लेनी चाहिए कि जुलूस किस समय और किस स्थान पर समाप्त होगा सामान्यतः कार्यक्रम में कोई फरबदल नहीं होना चाहिए। आयोजकों को चाहिए के वे कार्य-क्रम के बारे में स्थानीय प्राधिकारियों को पहले से सूचना दे दें, ताकि वे आवश्यक प्रबन्ध कर सकें। आयोजकों को यह पता कर लेना चाहिए कि जिन इलाकों से होकर जुलूस गुजरता है, उनमें कोई निर्बन्धात्मक आदेश तो लागू नहीं है और जब तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा विशेष रूप से छूट न दे दी जाए, उन निर्बन्धनों का पालन करनी चाहिए। आयोजकों को जुलूस का आयोजन ऐसे ढंग से करना चाहिए जिससे कि यातायात में कोई रुकावट या बाधा उत्पन्न किए बिना जुलूस का निकलना सम्भव हो सके यदि जुलूस बहुल लम्बा है, तो उसे उपयुक्त लम्बाई वाले टुकडों में संगठित किया जाना चाहिए, ताकि सुविधाजनक अन्तरालों पर विशेषकर उन स्थानों पर जहाँ जुलूस को चौराहों से होकर गुजरना है, रुके हुए यातायात के लिए समय-समय पर रास्ता दिया जा सके और इस प्रकार भारी यातायात के जमाव से बचा जा सके रैलियों व जुलूसों की व्यवस्था ऐसी होने चाहिए कि जहाँ तक हो सके उन्हें सड़क की दायीं ओर रखा जाए और ड्यूटी पर तैनात पुलिस के निर्देश और सलाह का कड़ाई के साथ पालन किया जाना चाहिए। यदि दो या अधिक राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों ने लगभग उसी समय पर उसी रास्ते से या उसके भाग से जुलूस निकालने का प्रस्ताव किया है, तो आयोजकों को चाहिए कि वे समय से काफी पूर्व आपस में सम्पर्क स्थापित करें और ऐसी योजना बनाए, जिससे कि जुलूसों में टकराव न हो या यातायात को बाधा न पहुँचे स्थानीय पुलिस की सहायता सन्तोषजनक इन्तजाम करने के लिए सदा उपलब्ध होगी इस प्रयोजन के लिए दलों को यथाशीघ्र पुलिस से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।
रैलियों व जुलूस में शामिल लोगों द्वारा ऐसी चीजें लेकर चलने के विषय में जिनका अवांछनीय तत्वों द्वारा, विशेष रूप से उत्तेजना के क्षणों में दुरुपयोग किया जा सकता है, राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों को ऐसी चीजों पर अधिक-से-अधिक नियन्त्रण रखना चाहिए। किसी भी राजनीतिक दल या प्रत्याशी को अन्य राजनीतिक दलों के सदस्यों या उनके नेताओं के पुतले लेकर चलने, उनको सार्वजनिक स्थान में जलाने और इसी प्रकार के अन्य प्रदर्शनों से बचें। सभी राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को चाहिए कि वे- यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदान शान्तिपूर्वक और सुव्यवस्थित ढंग से हों और तमदाताओं को इस बात की पूरी स्वतन्त्रता हो कि वे बिना किसी परेशानी या बाधा के अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें तथा निर्वाचन कर्तव्य पर लगे हुए अधिकारियों के साथ सहयोग करें। अपने प्राधिकृत कार्यकर्ताओं को उपयुक्त बिल्ले या पहचान पत्र दें, इस बात से सहमत हों कि मतदाताओं को उनके द्वारा दी गई पहचान पर्चियाँ सादे (सफेद) कागज पर होंगी और उन पर कोई प्रतीक, अभ्यर्थी का नाम या दल का नाम नहीं होगा. मतदान के दिन और उसके पूर्व के 48 घण्टों के दौरान किसी को शराब पेश या वितरित न कीजिए। प्रत्याशियों व राजनीतिक दलों द्वारा मतदान केन्द्रों के निकट लगाए गए कैम्पों के नजदीक अनावश्यक भीड़ इकट्ठी न होने दें, जिससे राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के कार्यकर्ताओं और शुभचिन्तकों में आपस में मुकाबला और तनाव न होने पाए। यह सुनिश्चित करें कि अभ्यर्थियों के कैम्प साधारण हों उन पर कोई पोस्टर झण्डे प्रतीक या कोई अन्य प्रचार सामग्री प्रदर्शित न की जाए कैम्पों में खाद्य पदार्थ पेश न किए जाएं और भीड़ न लगाई जाए।
मतदान के दिन वाहन चलाने पर लगाए जाने वाले निर्बन्धनों का पालन करने में प्राधिकारियों के साथ सहयोग करें, वाहनों के लिए परमिट प्राप्त कर लें और उन्हें उन वाहनों पर ऐसे लगा दें जिससे ये साफ-साफ दिखाई देते रहें। किसी भी प्रत्याशी या राजनीतिक दल को अन्य राजनीतिक दलों के सदस्यों या उनके नेताओं के पुतले लेकर चलने उनको सार्वजनिक स्थान में जलाने और इसी प्रकार के अन्य प्रदर्शनों का समर्थन न दें। मतदाताओं के सिवाय कोई भी व्यक्ति निर्वाचन आयोग द्वारा दिए गए विधिमान्य पास के बिना मतदान केन्द्रों में प्रवेश नहीं करेगा।
निर्वाचन आयोग प्रेक्षक नियुक्त करता है, जो सामान्यतः राज्य से बाहर के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी होते हैं यदि निर्वाचनों के संचालन के सम्बन्ध में अभ्यर्थियों या उनके अभिकर्ताओं को कोई विशिष्ट शिकायत या समस्या हो, तो वे उसकी सूचना प्रेक्षक को दे सकते हैं। सत्ताधारी दल को, चाहे वे केन्द्र में हों या सम्बन्धित राज्य या राज्यों में हों, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह शिकायत करने को कोई मौका न दिया जाए कि उस राजनीतिक दल ने अपने निर्वाचन अभियान के प्रयोजनों के लिए अपने सरकारी पद का प्रयोग किया है और विशेष रूप से-मन्त्रियों को अपने शासकीय दौरों को निर्वाचन से सम्बन्धित प्रचार के साथ नहीं जोड़ना चाहिए और निर्वाचन के दौरान प्रचार करते हुए शासकीय मशीनरी अथवा कार्मिकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सरकारी विमानों, गाड़ियांे सहित सरकारी वाहनों, मशीनरी और कार्मिकों का सत्ताधारी दल के हित को बढ़ावा देने के लिए प्रयोग नहीं किया जाएगा।
शासकदल को चाहिए कि वह सार्वजनिक स्थान जैसे मैदान इत्यादि पर निर्वाचन सभाएं आयोजित करने और निर्वाचन के सम्बन्ध में हवाई उड़ानों के लिए हैलीपेडों का इस्तेमाल करने के लिए अपना एकाधिकार न जमाए ऐसे स्थानों का प्रयोग दूसरे राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को भी उन्हीं शर्तो पर करने दिया जाए, जिन शर्तो पर सत्ताधारी दल उनका प्रयोग करता है। शासकदल या उसके प्रत्याशियों का विश्रामगृहों, डाक बंगलों या अन्य सरकारी आवासों पर एकाधिकार नहीं होगा और ऐसे आवासों का प्रयोग निष्पक्ष तरीके से करने के लिए अन्य राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को भी अनुमति दलों प्रत्याशियों को भी अनुमति होगी लेकिन राजनीतिक दल या प्रत्याशी ऐसे आवासों का कार्यालय के रूप में या निर्वाचन प्रचार के लिए कोई सार्वजनिक सभा करने की दृष्टि से प्रयोग नहीं करेगा या प्रयोग करने की अनुमति नहीं दी जायेगी। निर्वाचन अवधि के दौरान शासक दल के हितों को अग्रसर करने की दृष्टि से उनकी उपलब्धियाँ दिखाने के उद्देश्य से राजनीतिक समाचारों तथा प्रचार की पक्षपातपूर्ण ख्याति के लिए सरकारी खर्च से समाचार-पत्रों में या अन्य माध्यमों से ऐसे विज्ञापनों का जारी किया जाना सरकारी जन माध्यमों का दुरुपयोग ईमानदारी से बिलकुल बन्द होना चाहिए। मन्त्रियों और अन्य प्राधिकारियों को उस समय जब से निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचित घोषित किए जाते हैं, विवेकाधीन निधि में से अनुदानों/अदायगियों की स्वीकृति नहीं देनी चाहिए। मन्त्री और अन्य प्राधिकारी, उस समय से जब से निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचित घोषित किए जाते हैं।
किसी भी रूप में कोई भी वित्तीय मंजूरी या वचन देने की घोषणा नहीं करेंगे अथवा (लोकसेवकों को छोडकर) किसी प्रकार की परियोजनाओं अथवा स्कीमों के लिए आधारशिलाएं आदि नहीं रखेंगे या सड़को के निर्माण का कोई वचन नहीं देंगे, पीने के पानी की सुविधाएं नहीं दंेंगे आदि या शासन, सार्वजनिक उपक्रमों आदि में ऐसी कोई भी तदर्थ नियुक्ति न की जाए जिससे सत्ताधारी दल के हित में मतदाता प्रभावित हों। केन्द्रीय या राज्य सरकार के मन्त्री, प्रत्याशी या मतदाता अथवा प्राधिकृत अभिकर्त्ता की अपनी हैसियत को छोड़कर किसी भी मतदान केन्द्र या गणना स्थल मंे प्रवेश नहीं करेंगे। आयोग किसी भी निर्वाचन की तारीख की घोषणा इस प्रकार करेगा, जो ऐसे निर्वाचनों के बारे में जारी होने वाली अधिसूचना की तारीख से सामान्यतः तीन सप्ताह से अधिक नहीं होगी.
हमारे देश में ’’चुनावी घोषणा पत्र को सचमुच कोई नहीं पढ़ता तथा 70 साल पुरानें ’’प्रजातंत्र से अपेक्षा तो थी कि घोषणा पत्र एक पवित्र दस्तावेज साबित हो, जिसे राजनीतिक दल गीता और कुरान का दर्जा देते हुए अपना शासन उसी के अनुरूप चलाये।’’4 उच्चतम न्यायालय ने 2008 (एस सुब्रमणियम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार एवं अन्य) की विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 21455 में दिनांक 5 जुलाई 2013 को अपने निर्णय में यह निदेश दिया था कि भारत निर्वाचन आयोग आयोग सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के परामर्श से निर्वाचन घोषणा-पत्रों की विषय-वस्तु के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश तैयार करें निर्णय में उल्लिखित वे मार्गदर्शक सिद्धान्त जो ऐसे दिशा-निर्देशों को बनाने में सहायक होंगे, नीचे दिए गए हैं-
यद्यपि विधि निश्चित रूप से स्पष्ट है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के अधीन निर्वाचन घोषणा-पत्र का ‘भ्रष्ट प्रथा’ के रूप में अर्थ नहीं लगाया जा सकता है, परन्तु इस वास्तविकता से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी प्रकार के मुफ्त उपहारों का वितरण, निस्संदेह लोगों को प्रभावित करता है बहुत हद तक यह स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचनों की जडें़ ही हिला देता है.
निर्वाचन आयोग, निर्वाचनों में निर्वाचन लड़ने वाले दलों तथा प्रत्याशियों को एकसमान अवसर सुनिश्चित कराने के प्रयोजनार्थ और यह जानने के लिए कि कहीं निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता विगत की भाँति दूषित तो नहीं हो रही है, आदर्श आचार संहिता के अधीन अनुदेश जारी करता रहता है संविधान का अनुच्छेद 324 उन शक्तियों का ऐसा स्रोत है, जिसके अधीन आयोग इन अनुदेशों को जारी करता है तथा जो आयोग को स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष निर्वाचनों को संचालित कराने का अधिकार देता है। हम इस वास्तविकता से परिचित हैं कि सामान्यतः राजनीतिक दल अपना घोषणा-पत्र निर्वाचन की तारीख की घोषणा से पहले जारी करते हैं स्पष्ट कहा जाए तो, उस परिदृश्य में, भारत निर्वाचन आयोग के पास ऐसे किसी कार्य को विनियमित करने का कोई अधिकार नहीं है, जो निर्वाचनों की तारीख की घोषणा से पहले किया गया हो, हालाकि निर्वाचन घोषणा-पत्र का सीधा सम्बन्ध निवाचन प्रक्रिया से होता है, अतः इस सम्बन्ध में अपवाद बनाया जा सकता है। विचार-विमर्श के दौरान, जबकि कुछ राजनीतिक दलों ने ऐसे दिशा-निर्देश को जारी करने का समर्थन किया, वहीं कुछ लोगों का विचार था कि बेहतर लोकतान्त्रिक राज्यव्यवस्था में घोषणा-पत्रों में मतदाताओं को ऐसे प्रस्ताव देना तथा वायदे करना उनका अधिकार है. जबकि आयोग सैद्धन्तिक रूप से इस विचार से सहमत है कि घोषणा-पत्र तैयार करना राजनीतिक दलों का अधिकार है, परन्तु स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष निर्वाचनों के संचालन और सभी राष्ट्रीय दलों तथा प्रत्याशियों को एकसमान अवसर प्रदान करने की भावना को बनाए रखने में कुछ वायदों और प्रस्तावों के अवांछित प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता.
संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को, अन्य बातों के साथ-साथ संसद तथा राज्य विधानमण्डलों में निर्वाचन कराने का अधिकार देता है माननीय उच्चतम न्यायालय के उपर्युक्त निदेशों को ध्यान में रखते हुए तथा राजनीतिक दलों के साथ परामर्श करने के उपरान्त, स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचनों के हित में, आयोग एतद् द्वारा यह निदेश देता है कि संसद या राज्य विधानमण्डलों के किसी भी निर्वाचन घोषणा-पत्र जारी करते समय राजनीतिक दल और प्रत्याशी दिशा-निर्देशों का अनुसरण करेंगे। निर्वाचन घोषणा-पत्र में ऐसी कोई बात नहीं होगी, जो संविधान में दिए गए सिद्धान्तों और आदर्शो के प्रतिकूल हो और इसके अलावा यह आदर्श आचार संहिता के अन्य प्रावधानों में निहित भावना के अनुरूप होगी।
संविधान में अधिष्ठापित राज्य के नीति-निदेशक तत्व, राज्य को यह आदेश देते हैं कि राज्य नागरिकों के लिए विभिन्न कल्याण सम्बन्धी उपायों की रचना करे तथा निर्वाचन घोषणा-पत्रों में ऐसे कल्याण सम्बन्धी उपायों के वायदों पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है तथापि राजनीतिक दलों को ऐसे वायदे करने से बचना चाहिए जो निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता को दूषित करें या मतदाताओं पर उनके मताधिकार के प्रयोग में कोई अनुचित प्रभाव डालें। पारदर्शिता, एक समान अवसर प्रदान करने तथा वायदों की विश्वसनीयता हेतु यह अपेक्षा की जाती है कि घोषणा-पत्रों में वायदों के मूलाधार पर भी विचार किया जाना चाहिए और इस प्रयोजनार्थ वित्तीय अपेक्षाओं का विश्वास ऐसे वायदों पर माँगा जाना चाहिए, जिन्हें पूरा करना सम्भव हो सके।
लोकसभा चुनाव 2017 के दौरान चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार के दौरान आपत्तिजनक टिप्पणीयां करने के मामले में उत्तर प्रदेश के कई बड़े नेताओं के जबावों को पर्याप्त न मानकर उनके प्रचार करने पर 72 व 48 घण्टे का प्रतिबन्ध नहीं लगाया। मगर कार्यवाई तब कि जब सुप्रीम कोर्ट ने आदर्श आचार संहिता में कड़ाई दिखाते हुए उससे कार्यवाही के बारें में पूछा । यह विडम्बना है कि एक ओर तो हम दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक चुनाव को लेकर गर्व करते हैं, वहीं चुनावों के दौरान राजनीतिक विमर्श लगातार नीचे गिरता जा रहा है और आयोग का रवैय्या सम्बन्धित नेताओं को नोटिस और एडवाईजरी भेजने तक सीमित रहा है। आयोग ने सर्वोच्च अदालत के समक्ष खुद को बेबस और दन्तहीन बताया है। जबकि हकीकत यह है कि संविधान के अनुच्छेद 354 के तहत आयोग के पास आचार संहिता उल्लंघन करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्यवाही करने का पर्याप्त अधिकार है।
सन्दर्भ –
1. वरूण गांधी, सांसद, घोषणा पत्र पर जबाव देही, अमर उजाला, नई दिल्ली, 29 मई 2018
2. आचार संहिता का मखौल अमर उजाला, नई दिल्ली, 16 अप्रैल 2019
3. वरूण गांधी, सांसद, घोषणा पत्र पर हो जबाव देही, अमर उजाला, नई दिल्ली, 29 मई 2018
4. एन0के0 सिंह, मूल मुद्दों पर कांग्रेस से जरा कम फोकस, संकल्प और घोषणा पत्र, 2019, हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्ली, 13 अप्रैल 2019
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