ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
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इंटरनेट और हिन्दी भाषा का विकास

डॉ0 अलका मेहरोत्रा
विद्यालय प्रभारी
माधवराव सिंधिया पब्लिक स्कूल,
बरेली।

भारत इंटरनेट, सूचना क्रान्ति और कम्प्यूटिंग प्रोग्रेसिंग में शीर्ष पर है। भारत में जन सामान्य के लिए इंटरनेट सेवा का आरम्भ 15 अगस्त, 1995 को विदेश संचार लिमिटेड द्वारा किया गया। इंटरनेट एक ऐसा विश्वव्यापी कम्प्यूटर नेटवर्क है, जो दुनिया भर में फैला है, लेकिन उस पर न तो किसी का नियंत्रण है, और न ही वह किसी कानूनी दायरे में आता है।
इंटरनेट जैसा पिछलग्गू ;ैंजमससपजमद्ध आधुनिक संचार माध्यम भी ’रीमिक्स’ भाषा से अछूता नही रह सका। हिन्दी भाषा का यह रीमिक्स भाषायी आयाम अनेक प्रश्नों को विवादों को जन्म तो दे रहा है, साथ ही साथ हिन्दी भाषा का यह चेहरा बदलते तकनीकि जगत में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हुआ है। इसे नकारा नही जा सकता।
इंटरनेट की, संचार-प्रक्रिया में अपनी भूमिका है। हिन्दी भाषा के प्रसार-प्रचार में भी ’इंटरनेट’ का स्थान महत्वपूर्ण एवं दृष्टिगोचर होता है। कहना सही होगा कि संचार प्रक्रिया में अर्थपूर्ण विचारों का आदान-प्रदान करने हेतु इंटरनेट का सही उपयोग हो रहा है। ’इंटरनेट’ के माध्यम से देवनागरी में यांत्रिक सुविधाओं तथा नवीनतम द्वि भाषी शब्द संसाधक प्रणाली का विकास हो रहा है। विडोंज पर आधारित देवनागरी फॉण्ट उपलब्ध हो रहे है। अक्षर – प्प् मल्टीवर्ड, शब्दमाला, शब्दरत्न सुपर, अलिशा, ए0एल0पी0, विजन, वर्ड्सवर्थ, भाषा, शब्द सम्राट, आकृति आदि द्वि भाषी शब्द संसाधकों की जानकारी इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी प्रेमियों को मिलने के कारण हिन्दी भाषा विकास को नई दिशा मिल रही है। ’इंटरनेट’ टेलीफोनी के माध्यम से भी प्रचुर मात्रा में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार विदेशों में हो रहा है। साहित्यकारों के लिए अधिकतम ज्ञान प्राप्त करने हेतु इंटरनेट उपयुक्त सिद्व हो रहा है। विभिन्न भारतीय भाषाओं का साहित्य हिन्दी के माध्यम से पाठकों तक पहुॅचाने का कार्य इंटरनेट के माध्यम से सुविधाजनक हो रहा है। वर्तमान समय में हिन्दी भाषा के अनुसंधानात्मक विकास में अनुसंधान क्षेत्र में नई दिशा देने में ’इंटरनेट’ की भूमिका महत्वपूर्ण दृष्टिगोचर होती है। इंटरनेट के माध्यम से मानव के ज्ञान में तीव्रता से वृद्वि होती है। इंटरनेट पर एक सवाल का जवाब खोजने के सिलसिले में कई दूसरे तरह का ज्ञान भी प्राप्त हो जाता है। जो अचानक ही खोज के दौरान जाहिर होते है। इंटरनेट की भाषा में इसे ’सिरेनडियिटी’ (आकस्मिक लाभवृत्ति) कहा जाता है। हिन्दी भाषा के विकास में इस आकस्मिक लाभवृत्ति का उपयोग हो रहा है। हिन्दी परिभाषिक शब्दों को सीखने हेतु अब इंटरनेट का प्रयोग हो रहा है। भले ही यह परिभाषिक शब्दावली हिन्दी व्याकरण के नियम तोड़ रही हो, इसमें अंग्रेजी शब्दों का प्राचुर्य हो, फिर भी इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी का जो सर्वथा भिन्न रूप सामने आ रहा है, इस रूप को हिन्दी पाठक अपना रहा है।
समकालीनता का विचार किया जाय, तो इंटरनेट के प्रति लोगों का आकर्षण दिन व दिन बढ़ता जा रहा है। उपयोगकर्ताओं को जिन शब्दों में ’ज्ञान’ की आवष्यकता है, उन्ही शब्दों में ज्ञान दियाजा रहा है और यह ज्ञान प्रचलित शब्दों में होने के कारण समकालीन पीढ़ी इंटरनेट की ’भाषा’ पर आपत्ति नही उठा रही है। अतः इंटरनेट पर आ रही हिन्दी भाषा पर विवाद उठाने के बजाय इंटरनेट के लिए ’व्यावसायिक उद्देश्य’ पूरा करने वाले हिन्दी शब्द का निर्माण करना हिन्दी भाषा की पुरानी इंटरनेटीय दिशा में अग्रेसित होना चाहिए। वर्तमान समय में हमें इंटरनेट के लिए ’स्वतन्त्र’ हिन्दी भाषा का निर्माण करना होगा।
अतः हिन्दी शब्दों का मानकीकृत रूप इंटरनेट में लाने के लिए व्यापक स्तर पर अनुसंधान होना अनिवार्य है। डॉ0 अवधेश सिंह कहते है- ’लाइनक्स नामक एक नया ऑपरेटिग सिस्टम इसी दिशा में अधुनातन पहल है। यह इंटरनेट पर अंतक्रिया करने वाले हजारों प्रोग्रामरों का सहयोगात्मक प्रयास है, जिसमे तकनीकि शब्दों को ही नही, आम जीवन के शब्दों को भी एक मानक रूप देकर प्रचलित करने की चेष्टा की जा रही है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हिन्दी शब्दों और उसके रूपों को मानकीकृत करने का काम हिन्दी वालो द्वारा किया जाता है, तो ऐसा नही है कि यह काम रूका रहेगा। बहुराष्ट्रीय कम्पनियॉ इस काम को अपने हाथ में ले लेगी। ऐसा वे हिन्दी के प्रति स्नेह के आवेश में नही, बल्कि अपना माल बेचने के लिए करेगी।
कहना आवश्यक नही कि अपना व्यावसायिक उद्देश्य पूरा करने के लिए काम चलाउ हिन्दी को विकसित करने का प्रयास हो रहा है। इसे रोकना होगा। इंटरनेट के लिए ’हिन्दी’ का मानक कोश निर्माण करने की जिम्मेदारी समकालीन पीढ़ी की है।’’ संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रमोचित हिन्दी सॉटवेयर उपकरण ;भ्पदकप ैवजिूंतम ज्ववसेद्ध विकसित किया गया है, जिसमें हिन्दी भाषा के यूनीकोड आधारित ओपन टाईप फॉन्ट्स, कीबोर्ड, ड्राइवर हिन्दी भाषा के शब्द वर्तनी जॉचकर्ता, हिन्दी, भाषा का शब्दानुवाद टूल आदि विषयों की जानकारी प्राप्त होती है।
इंटरनेट संसाधित भाषा शिक्षण को बढ़ावा देने में भारत सरकार द्वारा हुआ यह प्रयास महत्वपूर्ण माना जाता है। फिर भी भाषा अध्यापकों के लिए कम्प्यूटर के माध्यम से भाशा सिखाना आज भी कठिन कार्य बना है। भाषा शिक्षण के लिए आवश्यक हार्डवेयर और सॉटवेयर की उपलब्धता आज भी आवश्यकता के अनुसार नही हो रही है। इस स्थिति को नकारा नही जा सकता। कम्प्यूटर द्वारा गणित भौतिकी रसायन शास्त्र आदि विशय सिखाना सख्त है, क्योकि इन विषयों में किसी भी अध्यापक द्वारा पढ़ाई जाने वाली सामग्री प्रायः पूर्वनिर्धारित होती है। पर कम्प्यूटर के द्वारा भाषा सिखाना एक अत्याधिक जटिल कार्य है। भाषा सिखाना वास्तव में कौशल सिखाना है। लिखना व पढ़ना जैसा गौण कौशल अथवा नियमों पर आधारित व्याकरण आदि जैसा विषय तो फिर भी आधारभूत मूल सामान्य कम्प्यूटर से सिखाए जा सकते है, पर मौखिक और श्रवण कौशल सिखाना असंभव नही, तो दुश्कर अवश्य है।
वर्तमान समय का विचार किया जाय तो वर्तनीशोधक, कम्प्यूटर काश रूपात्मक और वाक्यात्मक विश्लेशक, स्पीच सिंथे साइजर, रिकगनाइजर, डिकोटर आदि की उपलब्धता के कारण इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी भाषा शिक्षण सुदूर पहुँच रहा है। इंटरनेट मे दिन व दिन बदलाव, भाशाई सुधार होकर हिन्दी भाषा शिक्षण पिछड़ी दशा में उभरकर नई दिशा की ओर अग्रसित हो रहा है। इसे हमे मानना होगा। हिन्दी भाषा के विकास हेतु नवीनतम टैक्नॉलॉजी विज्ञान के साथ सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
अखिल भारतीय स्तर पर यह प्रयास होना जरूरी है कि हिन्दी भाषा को व्यवहार एवं प्रयोग के स्तर पर सार्वदेशिक बनाया जाये। अतः यह बात तब संभव है जब समकालीन पीढ़ी इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी भाषा शिक्षण को नई दिशा दें। हिन्दी के विकास की यह प्रक्रिया जितनी तेज रतार से होगी, उतना ही हमारा और हमारे देश का विकास होगा। इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी भाषा को वैज्ञानिक, तकनीकी, यांत्रिकी, प्रौद्योगिकी आदि विशयों के साथ जोड़कर हिन्दी भाषा की सुदीर्ध परम्परा को और अधिक समृद्व बनाना होगा। समकालीन पीढ़ी के कम्प्यूटर विज्ञ तथा भाषाविज्ञ दोनो को एक साथ मिलकर हिन्दी भाषा विकास में इंटरनेट जैसे आधुनिक जनसंचार माध्यम की भूमिका को ध्यान में रखकर निरन्तर कार्यरत रहना होगा। तभा हिन्दी भाषा के विकास में इंटरनेट के माध्यम से नई दिशा प्राप्त होगी।
हिन्दी भाषा विकास में इंटरनेट जैसे आधुनिक जनसंचार माध्यम की भूमिका के सिंहावलोकन से यह स्पष्ट है कि इंटरनेट हिन्दी भाषा विकास में सर्वाधिक प्रभावी माध्यम बना रहा है। इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी पत्र पत्रिकाएॅ, नवीनतम सूचनाएं पुस्तके हमे प्राप्त हो रही है। अतः हिन्दी भाषा विकास में इंटरनेट दिशा दर्शक बनता नजर आ रहा है। हम हिन्दी भाषा को इंटरनेट के माध्यम से जितनी जीवनोपयोगी, व्यवसाय मूलक बनाने की दृष्टि से विकसित करेंगें, उतनी जल्दी समृद्व और शक्तिमान भाषा बनकर विश्व के सामने आयेगी। सरकारी, सार्वजनिक, व्यक्तिगत, स्कूलो, कॉलेजो मे व्यापक तौर पर यदि हिन्दी भाषा विकास के लिए इंटरनेट का प्रयोग किया जाएगा, तो हिन्दी अतंता विश्व मंच पर अपनी अलग पहचान बनायेगी।
आज सूचनाक्रंान्ति ने एकांगी भूमिका में अवतरित होकर बहुराष्ट्रीयकरण के द्वारा स्थानीय बाजारों पर साम्राज्यवादी शक्तियों के आधिपत्य का दरवाजा खोलकर भूमंडलीकरण की आवधारण को साकार कर दिया है। भूमंडलीय मीडिया बाजार में हिन्दी की प्रगति और विकास का मानक संख्या बल है। कितने टी0वी0 चैनल, कितने अखबार, कितनी फिल्में, कितनी साइट आदि आदि। हिन्दी के समाचार पत्रों में हिन्दी के आकलन पर प्रकाशित लेख और संपादकीय टिप्पणियों के शीर्षक विश्व बाजार से हिन्दी के गठबंधन की बेहद आश्वस्त तस्वीरे खींचते है – खुद मॉझी ही हिन्दी डुबोए पर बढ़ता बाजार उसे बचाए, मार्केट फ्रंेडली हिंन्दी ’बॉलीवुड का हिन्दी प्रेम’ तथा ’हिन्दी का मछली बाजार’।
इसमें कोई संदेह नही कि मीडिया, मंडी हिन्दी बढ़त लेती प्रतीत होती है। वह आज मनोरंजन उद्योग, समाचार मीडिया की सबसे बड़ी माध्यम भाषा बनी हुई है।
’हिन्दी ने उच्च प्रौद्योगिकी से उपलब्ध यांत्रिक उपकरणों के साथ अपना तालमेल बैठा लिया है। विश्व विख्यात माइक्रोसॉट आई0बी0एम0 और गूगल जैसी चोटी की बहुराष्ट्रीय कम्पनियॉ हिन्दी की ओर रूख कर चुकी हैं।
डिजिटल मीडिया अपनी इस भूमिका को कैसे निभा सकता है ? इस प्रश्न पर विचार करते समय हमें यह देखना होगा कि डिजिटल मीडिया जिस कम्प्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से जनसामान्य तक पहुॅचेगी उसे सर्व सुलभ बनाया जाए। इस दिशा में भारत सरकार ने नई शुरूआत की है – डिजिटल इंण्डिया की घोषणा करके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सरकार ने देश की जनता को इंटरनेट की सुविधा सर्वत्र सुलभ कराई है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रभाव से स्वयं को बचाए तथा डिजिटल मीडिया को भारतीय भाशाओं के माध्यम से शक्ति प्रदान करें। भाषा केवल वर्ण या शब्दों का समूह नही होती, भाषा का सीधा संबंध हमारी सोच, हमारी संस्कृति से, जीवन मूल्यों से होता है। अपनी भाषा एवं संस्कृति को खोकर किया गया कोई भी भौतिक विकास या सांसारिक उपलब्धि – सोना खोकर पीतल प्राप्त करने जैसी है।
कहा जा सकता है कि भारत के नव-निर्माण की गूॅज आज पूरे विश्व में सुनाई देने लगी है। इस नव-निर्माण के लिए विश्व में विद्यमान आधुनिकतम ज्ञान-विज्ञान और तकनीक को भारत मे लाना, अपनाना और इसका पूरा सदुपयोग करना अत्यावश्यक है। हम दुनिया को अपनी दृष्टि से देखे, न कि दूसरों की दृष्टि से स्वयं को देखे। शायर ने कहा है –
’’क्यो देखे जिन्दगी को, किसी की नजर से हम’,
अपने पास अपनी, फकत इक नजर तो है।’’
मीडिया के इस स्वरूप तथा इसके विभिन्न आयामो का अध्ययन करते हुए हम यह देख सकते है कि पिछले एक दशक में इसके द्वारा हिन्दी के विकास क्रम में एक क्रान्तिकारी बदलाव आया है। हिन्दी को विश्व के कोने-कोने मे पहुॅचाकर पूरे विश्व को एक कुनबे के रूप में परिवर्तित किया है।
इस पूरे लेख के माध्यम से हमने देखा कि इंटरनेट तकनीक, किस तरह जन-संचार एवं प्रसारण माध्यम से विविध आयामों द्वारा आज एक विश्वव्यापी सूझबूझ का संचार बना रहे है, जो मानव विकास की नई कथा कह रहा है।
इंटरनेट पर हिन्दी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। हिन्दी की वेबसाइटों की संख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है उसी अनुपात मे इसके पाठकों की संख्या भी बढ़ रही है। ढ़ेरो तकनीकि सुधारो और लिखावट के तरीके में बदलाव, आने से इंटरनेट पर हिन्दी का प्रयोग करने वालों की सख्ंया पर भी अब असर पड़ा है।
’गद्य, पद्य और साहित्य से लदी हुई हिन्दी की आम छवि डिजिटल जगत में तेजी से बदलती दिख रही है। हिन्दी अपने नए अवतार में युवाओं के एक वर्ग को कूल लगती है।’’
कम्प्यूटर पर भाषाओं की जानकारी रखने वाले कहते है कि अब अंग्रेजी से ज्यादा हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाशाये फल-फूल रही हैं
इंटरनेट पर ब्लागिंग ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अमूल्य योगदान दिया। आज कोई भी व्यक्ति अपने नाम से ब्लॉग लिखकर अपने विचार रख सकता है। इंटरनेट की सबसे बड़ी कम्पनी गूगल के भारत के प्रमुख राजन आनन्द ने बीते दिनों तक साक्षात्कार में कहा ’’ इंटरनेट पर अगले 30 करोड़ नए यूजर्स अंग्रेजी मे नही, बल्कि भारतीय भाषाएॅ बोलने वाले आएंगे। मैथलीशरण जी ने कहा, ’’इंटरनेट पर हिन्दी को सबसे अधिक फायदा पहुॅचाया अखबारों की वेबसाइटों ने, जिन्होंने लोगों को खूब जोड़ा।’’
वैश्विक सभ्यता में कम्प्यूटर, इंटरनेट के दौर में हमारी हिन्दी आधुनिक बने, इसके लिए आधुनिक प्रयोजन के अनुकूल विकास जैसी कुछ वैज्ञानिक शर्ते पूरी करना आवश्यक है। जिसे इंटरनेट के द्वारा पूर्ण किया जा सकता है। आधुनिक युग में कम्प्यूटर के इंजीनियरों का कहना है कि देवनागरी वर्णमाला का जो क्रम है, वह केवल वैज्ञानिक ही नही बल्कि उसमें कम्प्यूटर के प्रोग्राम आसानी से सिद्व होते है। स्थान और प्रयत्न की दृष्टि से यह वैज्ञानिक और सहज वर्णमाला है। इंटरनेट हिन्दी के लिए भविष्य का सर्वाधिक सक्रिय मीडिया होगा।

संदर्भ ग्रंथ
1. डॉ. गोविन्द प्रसाद, अनुपम पाण्डेय: हिन्दी पत्रकारिता का स्वरूप पृष्ठ – 282
2. डॉ. सातप्पा लहू चाहवाण: इंटरनेट मीडिया मे हिन्दी की भूमिका (इंटरनेट के संदर्भ मे) 21 अप्रैल 2012.
3. संपादक नंद किशोर मिश्र: भाषा (द्वैमासिक) पात्रिका, जुलाई – अगस्त 2000, पृष्ठ सं0 – 10
4. डॉ. सातप्पा लहू चाह्वाण: इंटरनेट मीडिया मे हिन्दी की भूमिका (इंटरनेट के संदर्भ मे), 21 अप्रैल 2012
5. संपादक, डॉ. गंगा प्रसाद विमलः भाषा (द्वमौसिक) पात्रिका जून 1996, पृष्ठ सं0 – 14
6. डॉ. सातप्पा लहू चाह्वाण: इंटरनेट मीडिया मे हिन्दी की भूमिका (इंटरनेट कें संदर्भ में), 21 अप्रैल 2012
7. वही
8. कुमुद शर्मा: विश्व बाजार और हिन्दी (स्मारिका), 10 वॉ विश्व हिन्दी सम्मेलन, 10-12 सितम्बर 2015, भोपाल पृष्ठ सं0 – 120
9. वही
10. रवि शर्मा: भारत निर्माण में डिजिटल मीडिया की भूमिका, स्मारिका 10 वां विश्व हिन्दी सम्मेलन, पृष्ठ – 177
11. वही
12. भास्कर जुयाल: इंटरनेट की दुनिया में हिन्दी का भविष्य (साहित्य) श्अभिव्यक्ति साहित्य का सुरूचिपूर्ण संसार से उद्घृत
13. तुषार बनर्जी बीबीसी, संवाददाता, 13 सितम्बर, 2013 डिजिटल इंडिया: क्यो पिछ़डी और कैसे हाईटैक होगी हिन्दी ?
14. वही

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