-निशा यादव
यह तथ्य है कि प्रथम महायुद्ध के पूर्व कांग्रेस का विधिवत कोई संगठन नहीं था। पृथ्वीनाथ चक्र , रायदेवी प्रसाद पूर्ण, एन0पी, निगम, प्रताप नरायन मिश्र आदि संगठन चलाते थे। अतः कांग्रेस का कोई व्यापक जनाधार नहीं था। यह सीमित तथा विशेष वर्ग के लोगों की संस्था थी। राष्ट्रीय स्तर पर गांधीजी जो के अवतरण के बाद कांग्रेस का काया पलट हुआ।
कानपुर नगर में राजीनितिक सरगर्मियां 1888 से ही प्रारम्भ हो गई थी। कांग्रेस के नये संविधान में जनसाधारण को इस संस्था से जुड़ने के नये अवसर प्रदान किये । अतः यहां कांग्रेस की सदस्यता में भारी वृद्धि हुई है। सारे नगर व जिले में इस प्रक्रिया का अनुसरण हुआ। सदस्य संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि और संगठात्मक सीधे चुनाव के कारण यहां दल के अन्दर गुटबाजी प्रारम्भ हुई। कानपुर में दो गुट बने, दोनों के बीच चुनाव द्वारा पदो ंके लिये प्रतिस्पर्धा हुई।
इस समय तक यहां गण्ेाश शंकर विद्यार्थी का राजनीतिक, व्यक्तित्व काफी उभर चुका था। उनके पत्र प्रताप के कारण उनकी और उनके कारण प्रताप की ख्याति बहुत बढ़ गई थी। इसी गुट में दूसरे प्रभावशाली नेता डा0 मुरारीलाल थे । वे कांग्रेस के साथ मजदूरों के भी नेता थे, किन्तु विद्यार्थी जी की क्रियाक्लाप, सूझबूझ और लोकप्रियता अधिक थी। इसके अतिरिक्त डा0 जवाहर लाल रोहतगी,प्यारेलाल अग्रवाल, कृष्णदत्त पालीवाल, पं0 शिवनरायण प्रसाद तथा अरो़डा़ आदि भी गणेश जी के साथ थे। डा0 मुलारीलाल रोहतगी, डा0 जवाहर लाल रोहतगी, प्यारेलाल अग्रवाल वैश्य, नारायण प्रसाद अरोड़ा खत्री, कृष्णदत्त पालीवाल ,बालकृष्ण शर्मा आदि विद्यार्थी जी के साथ थे।
पं0 जगजीवन वितारी, गुरन रघूवर दयाल,रामप्रसाद मिश्र आदि ने असहयोग आन्दोलन के दिनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। नगर कांग्रेस कमेटी और मजदूर सभा पर गणेश गुट या प्रताप गुट का प्रभाव बहुत अधिक था। राष्ट्रीय स्तर पर भी स्वराज्य पार्टी के नेताओं जैसे पं0 मोतीलाल नेहरु तथा देशबन्धु चितरन्जन दास से गणेश ंशंकर विद्यार्थी बहुत नजदीक थे।
1925 के कांग्रेस अधिवेशन की तैयारी
1924 में बेलगाम कांग्रेस का अधिवेशन महात्मा गांधी जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इसमें सर्वसम्मति से यह निर्णय हुआ कि अगला (1925) अधिवेशन कानपुर में होगा। 1925 के आरम्भ होते ही बड़े बड़े नेताओं का कानपुर में अधिवेशन की तैयारी हेतु आगमन प्रारम्भ हो गया था। जनवरी मास में राजार्षि पुरषेात्तम दास टण्डन यहां आये और इसी के साथ अधिवेशन की तैयारी प्रारम्भ हुई। अन्य नेता भी आये। अनेक सभायें हुई। पं0 मोतीलाल नेहरु दिये तथा आगामी अधिवेशन के महत्व पर प्रकाश डाला और काकोरी काण्ड के अभियुक्तों के प्रति सहानुभूति जताई। मोतीलाल नेहरु ने स्थानीय प्रशासन के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
1925 के कांग्रेस अधिवेशन:
इस अधिवेशन के प्रति अंग्रेजी शासन की नीति अडंगेवाजी की थी। शासन अधिवेशन के स्थान के सम्बन्ध में असहयोगात्मक रवैया अपनाये कर किन्तु विद्यार्थी जी की इच्छानुसार तिलकनगर में अधिवेशन होनाा निश्चित हुआ।
महाअधिवेशन
कांग्रेस का अधिवेशन किस स्थान पर हुआ था। उसका नाम तिलक नगर रखा गया। यह नाम अभी भी प्रचलित है। गांधी जी तथा अन्य राष्ट्रीय नेताओं के बड़े-बड़े जुलूस स्टेशनसे अधिवेशन स्थल तक अन्य रुप से निकले गये। उनका भव्य स्वागत हुआ, उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया गया और जगह-जगह उनकी आरती उतारी गई। ला0 फूलचन्द्र जैन जैसे लागों ने कांग्रेस अधिवेशन को सफल बनाने में जी जान से जुट गये और साथ में अपनी थैली का मुंह खोकर लाखों रुपया खर्च कर दिया। उनका सुप्रबन्ध देखकर गांधी जी ने उन्हें ‘महानहृदय ‘ की उपाधि दी थी।
सर्वसम्पति से भारत कोकिला श्रीमती सरोजिनी नायडू को इस अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। कुछ ही समय पूर्व राष्ट्र के प्रमुख नेता देश बन्धु चितरन्जन द्वारा का निधन हुआ था। श्रीमती नायडू ने जब बड़े मार्मिक और हृदय स्पर्शी शब्दों में उन्हें भावनीति श्रद्धान्जलि अर्पित की तो पन्डाल के सभी श्रोता रो दिये।
अध्यक्षा महोदया ने ‘मित्रो‘ के सम्बोधन से अपना संवेदनशील भाषण शुरु किया। उन्होेंनंे सीता और सावित्री का स्मरण किया। फिर उन्होेंने खद्दर कुटीर एवं ग्राम उद्योगों की बात पर बल देते हुये गा्रमीण ‘पुर्नानिर्माण‘ की बात की । शिक्षा के सम्बन्ध में श्रीमती नायडू ने शासन की उपेक्षा पूर्ण नीति की आलोचना की ।
श्रीमती नायडू ने शिक्षा के साथ राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिये नवयुवकों को सैन्य प्रशिक्षण की भी वकालत की।
झण्डागान
कानपुर कांग्रेस के महाअधिवेशन में यहां के लोगों के लिये गर्व की बात थी कि स्वतंत्रता सेनानी श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद‘ द्वारा रचित झण्डागान को राष्ट्रीय महत्व दिया गया और अधिवेशन में यह ‘वन्देमातरम्‘ के साथ गाया गया।
चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान के पश्चात का्रन्तिकारी आन्दोलन काफी सीमा तक बिखरने लगा। गांधी जी द्वारा चौरीचारा की घटना के पश्चात् काफी सीमा तक कांग्रेस हिंसा के मार्ग से तो अलग रही किन्तु स्वत़ंत्रता संघर्ष में ठहराव आ गया। असहयोग आन्दोलन में देश का जनसाधरण चाहें वह अमीर हो या गरीब शामिल हो गया था। उसमें एक ऊर्जा उत्पन्न हो गयी थी । इस स्थगन को असफलता नहीं बल्कि संघर्ष का ठहराव कहना चाहिये। गांधी जी ने अब रचानात्मक कार्यक्रम की शुरुआत की उसका भी राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में विशेष महत्व है । एक तो इसके द्वारा समाज की त्रुटियों को दूर कर उसे शसख्त बनाना और दूसरे अपने को निर्धन से निर्धन तथा निम्न से निम्न वर्ग से सीधे से जुड़ा रखना था।
देश की बदली हुई परिस्थितियां जिस ओर जा रही थी, उस दिशा में अगला आन्दोलन अवश्यांभी था। इसके लिये गांधी जी ने खादी का प्रचार व प्रसार जारी रखा। इसके अतिरिक्त शराब बन्दी का कार्यक्रम भी अपनाया गया और अछूत दलितों के लिये कल्याणकारी कार्य प्रारम्भ किया। इस विषय में उनके और श्री नारायण गुरु और रामास्वामी नाइकर के बीच मतभेद भी सामने आये।
कानपुर में श्रमिक तथा कृषकों की दशा।
औधोेगिक करण के कारण कानपुर में श्रमिक वर्ग का उदय हुआ। काफी समय तक अधिकांश उद्योगों के स्वामी योरोपियन्स बने रहे । इनका उद्देश्य अत्याधिक धन कमाना था। इसी कारण श्रमिकोें का शोषण बहुत अधिक किया गया।
उनके काम के घन्टे अनिश्चित थे। श्रमिकों के लिये आवास की भी समुचित व्यवस्था नहीं थी। वायु तथा प्रकाशहीन दमघोटू कमरों या कोठरियों में वे कीड़े मकोड़े के तरह रहते थे। इस वर्ग की स्वास्थ सम्बन्धी दुर्दशा के सम्बन्ध में विशेष बात यह है कि यह दशा कानपुर के निकटस्थ गांवों की थी। दूरदराज के गांवों और ग्रामिणों की क्या दुर्दशा थी इसकी कल्पना से दिल दहल जाता है। उत्तर प्रदेश में जब 20 वी शती के दूसरे दशक में क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रादुर्भाव हुआ तो इन परिस्थितियों ने इस आन्दोलन में प्रगतिवादी और साम्यवादी रंग घोल दिया।
संदर्भ:-
1. प्रताप
2. पट्टाभिसीत रमैया- दि हिस्ट्री आफ, इंडियन कांग्रेस ( अंग्रेजी में) जिल्द प्रथम पृ0-48
3. नारायन प्रसाद अरोड़ा।
4. नारायण प्रसाद अरोड़ा पृ0-30
5. सत्यभक्त क्रान्तिपंथ के पथिक पृ0-129
6. वर्तमान कानपुर दिनांक 21.05.1925
7. पं0 लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी कृत कानपुर का नवजागरण
शीर्षक लेख- दैकि जागरण रजत जयन्ती अंक पृ0-155
8. बनारसीदास चतुर्वेदी (सम्पादक) गण्ेाशशंकर विद्याथी, स्मारक अंक 1961 पृ0-12
9. सुमित सरकार -मार्डन इंडिया 1885-1947 (अंग्रेजी) दिल्ली 1984-पृ0-230
10. देवदत्त शास्त्री-गणेशशंकर विद्यार्थी आत्माराम एन्ड सन्स दिल्ली 2002 पृ0-64
11. वर्तमान 01 दिसम्बर-1928
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