ISSN- 2278-4519
PEER REVIEW JOURNAL/REFEREED JOURNAL
RNI : UPBIL/2012/44732
We promote high quality research in diverse fields. There shall be a special category for invited review and case studies containing a logical based idea.

जर्मी वेन्थम और उपयोगितावाद

डॉ0 ओमप्रकाश सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
राजनीति शास्त्र
रामनगर पी0जी0 कॉलेज,रामनगर (बाराबंकी)

प्रस्तावना –
कानून और राज्य का उद्देश्य क्या होना चाहिए ? दुनिया के मानचित्र पर सैकड़ों ऐसे देश है जो अपनी विधियों का निर्माण जन-कल्याण के दृष्टि से न करके (हालांकि उन्हे जन कल्याण का मुखौटा जरूर चढ़ाया जाता है) अपनी शक्ति और सत्ता को अक्षुण्ण रखने के लिए निर्मित करते है। जबकि कानून में सार्वजनिक कल्याण की भावना निहित होनी चाहिए। विधायिका जो भी कानून बनाए उसका उद्देश्य सामाजिक उपयोगिता हो यही वेन्थम के दर्शन की आधारशिला है। ‘उपयोगिता में सार्वजनिक कल्याण की भावना निर्हित है। यह कोई दार्शानिक सिद्धान्त न होकर एक प्रकार का व्यावहारिक आन्दोलन था जिसमें समाज और राज्य की परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर संशोधन होते रहे। यही कारण है कि इसकी निश्चित परिभाषा कठिन रही है। उपयोगितावाद अधिकाधिक व्यक्तियों को सुख पहुंचाने में रूचि रखता है तथा व्यावहारिक कार्यों द्वारा बौद्धिक आधार पर लोगों की दशा सुधारने एवं सक्रिय राजकीय कानूनों द्वारा जन-समूह के स्तर को ऊँचा उठाने में विश्वास करता है।’’1
नौतिक और कानून –
वेंथम ने अपनी विख्यात कृति ‘नैतिकता एवं विधि निर्माण के सिद्धान्तों की भूमिका’ के नैतिकता एवं विधि निर्माण के सिद्धान्तों की भूमिका’ के अन्तर्गत प्राचीन यूनानी विचारक एपीक्यूरस के इस विचार को नए संदर्भ में दोहराया है कि मनुष्य को ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे वह अपने सुख को बढ़ा सके और दुख से बच सके। सुखवाद पर आधारित उपयोगिता का सिद्धान्त किसी कार्य की उत्तमता या बुराई का मापदण्ड यह मानता है कि उस कार्य से सुख अधिक मिले और दुख कम या बिल्कुल नहीं। सी0एल0 वेयर के शब्दों में ‘‘उपयोगिता का सिद्धांत वह है जो हमें यह बताया है कि हम किस प्रकार अपने आचरण को विनियिमित करें।’’2 इसके आधार पर एक अच्छे कार्य तथा उचित कार्य में भेद किया जा सकता है। अच्छा कार्य वह है जिसमें अधिकतम सुख की प्राप्ति हो। एक उचित कार्य वह है जिससे वर्तमान परिस्थितियों में सम्भव किसी अन्य कार्य की तुलना में सुख का शेष अधिक तथा दुख का शेष न्यूनतम हो। यह बात परिस्थितियों पर निर्भर करती है कि कोई बुरा कार्य उचित है और कोई अच्छा कार्य अनुचित है।
सुख और दुख-
वेंथम ने सुख के 14 और दुख के 12 भेद बताए हैं। वंेथम ने सुख-दुख का व्यापक अन्तर बताने के लिए 32 लक्षणों के आधार पर उनका वर्गीकरण किया है। इनमें प्रमुख शारीरिक रचना, संवेदनशीलता, चरित्र निर्माण, शिक्षा, जाति लिंग आदि हैं जिनका सुख की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है। अपनी मान्यताओं को स्पष्ट करते हुए वेंथम ने आगे कहा है कि कुछ सुख ऐसे होते हैं जिसमें तीव्रता होती है किन्तु स्थायित्व नहीं होता अतः उनसे कुछ दुख उत्पन्न होता है। इसके विपरीत कुछ सुख विशुद्ध होते है और उनका स्थायित्व भी अधिक होता है, उनमें तीव्रता अधिक नहीं होती। इन विशुद्ध सुखों का परिणाम प्रायः दुख नहीं होता अतः हमें सुख को विशेष मूल्यवान बनाने की ओर ही सदैव प्रयत्नशील होना चाहिए। सुख-दुख की गणना करके किसी निश्चित परिणाम पर पहुंचने के लिए वेन्थम ने जो प्रक्रिया बताई वह इस प्रकार है ‘‘समस्त सुखों के समस्त मूल्य को एक ओर तथा समस्त दुखों के समस्त मूल्य को दूसरी ओर एकत्रित कर लेना चाहिए। यदि एक को दूसरे से घटा कर सुख शेष रह जाए तो उसका अभिप्राय यह होगा कि अमुक कार्य ठीक है और यदि दुख षेशरहे तो यह समझलेना चाहिए कि अमुक कार्य ठीक नहीं है, क्योंकि उसका परिणाम दुख होता है।’’3
सामाजिक सझौता –
वेंथम ने 17वीं और 18वीं सदी में प्रचलित प्रा.तिक अधिकार और सामाजिक संविदा की तीव्र आलोचना की है। वास्तव में वंेथमने अपना दृष्टिकोण व्यावहारिक समस्याओं तक सीमित रखा। आदर्शवादीया काल्पनिक सिद्धान्तों में उनकी कोई रूचि नही थी। उसने प्रा.तिक अधिकार संबंधी विचारधारा को मूर्खतापूर्ण, कल्पित तथा आधारहीन अधिकार एवं आध्यात्मिक तथा विभ्रम और प्रमाद का एक गड़बड़ घोटाला बताया। वेंथम का मानना है कि व्यक्ति राजाज्ञा का पालन इसलिए नहीं करता कि उसके पूर्वजोंने उसके में लिए कोई समझौता किया था। वह राज्य की आज्ञा इसलिए मानता है क्योंकि ऐसा करना उसके लिएउपयोगी है।‘‘ राजनीतिक समाज, राज्य, अधिकार, कर्तव्यआदि किसी समझौते से उत्पन्न नहीं होते। उनके उत्पन्न होने, चालू रहने और सफल होने में वर्तमान रूचि तथा उपयोगिता की भावना प्रबल रही है। सामाजिक उपयोगिता के विचार से ही राज्य का जन्म हुआ है। मनुष्य राज्य की आज्ञा को इसलिए शिरोधार्य करता है जिससे उसके द्वारा सुख का मार्ग प्रशस्त हो, इसलिए वह विधियों का पालन करता है।इस प्रकार राजाज्ञा पालन की वह आदत डाल लेता है।’’4 जिस समूह में इस प्रकार की आदतें वन जाती हैं या बनती जाती हैं, वह राजनीतिक समाज कहा जाने लगता है अतः आदत ही समाज और राज्य का आधार है, समझौता नहीं।
कानून और स्वतंत्रता-
कानून तथा स्वतन्त्रता के संबंध में वेंथम का कहना है कि राज्य नागरिकों को सामान्य सुख के लिए अपने निजी सुख तक बलिदान करने के लिए पुरस्कार तथा दण्ड व्यवस्था द्वारा प्रेरित कर सकता है इसलिए राज्य एक विधि निर्माता निकाय है, एक नैतिक समुदाय नहीं जिसका उद्देश्य जनता की नैतिक भलाई हो। जनता के साथ इसका संबंध केवल कानून के द्वारा स्थापित होता है। कानून एक आदेश है, एक प्रतिबन्ध है इसलिए यह स्वतंत्रता का शत्रु है। अतः जीवन की एक उपयोगितावादी योजना में स्वतन्त्रता का कोई विशेष स्थान नहीं हो सकता, यह सुख का कोई आवश्यक तत्त्व नहीं है, इसलिए इसे सुख के सामने समर्पण कर देना चाहिए। मनुष्य की आवश्यकता सुरक्षा की है, स्वतंत्रता की नहीं। वेंथम का कहना था कि स्वतंत्रता को एक स्वाभाविक तथा ‘अमर अधिकार समझना भूल है। वेन्थम की विचारधारा में स्वतन्त्रता को जो नीचा स्थान दिया गया है उसकी बड़ी सुन्दर व्याख्या प्रोफेसर सोरेलने इन शब्दों में की है ‘‘कानून का मुख्य उद्देश्य है सुरक्षा है और सुरक्षा का अर्थ है उन समस्त आशाओं को कायम रखना जिनको स्वयं कानून उत्पन्न करता है। सुरक्षा सामाजिक जीवन और सुखी जीवन की एक आवश्यकता है, समता एक प्रकार की विलासिता है जिसे कानून केवल उसी सीमा तक लेजा सकता है जहाँ तक कि उसका सुरक्षा से कोई विरोध न हो। जहां तक स्वतन्त्रता का संबंध है, यह कानून का कोई मुख्य उद्देश्य नहीं है, यह तो सुरक्षा की एक शाखा मात्र है और यह एक ऐसी शाखा है जिसमें कानून काट-छांट किए बिना नही रह सकता।’’5
इस प्रकार यह तो स्पष्ट है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता का जिसको लॉक, माण्टेस्क्यू तथा रूसों ने इतना ऊँचा स्थान दिया है, वेन्थम के चिंतन में कोई विशेष महत्व नहीं है, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता शासन का प्रमुख ध्येय नहीं है। वेपर के शब्दों में ‘‘सुख ही एकमात्र अन्तिम कसौटी है और स्वतन्त्रता को उसी कसौटी पर कसा जाना चाहिए। राज्य का ध्येय है अधिकतम सुख, अधिकतम स्वतन्त्रता नहीं।’’6

निष्कर्ष-
वेंथम की अनेक आधार पर आलोचना की जाती है परन्तु आधुनिक विश्व में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा और कानूनों का जन हितैशी बनाना वेंथम के विचारों की सफलता है। कानून के क्षेत्र में वेंथम को अपने महान योगदान के लिए हमेशा याद कियाजाता रहेगा। वेंथम का विचार आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण है और सर्वथा आधुनिक है वास्तव में राज्य को अपना औचित्य स्थापित करने के लिए यह सिद्ध करना होगा कि वह वर्तमान समाज की उपयुक्त सेवा कर रहा है। वेंथम की स्पष्ट धारणा थी कि राज्य व्यक्ति के लिए है न कि व्यक्ति राज्य के लिए और वहीं राज्य उत्तम है जिसके व्यक्ति सुखी है।
संदर्भ ग्रन्थ सूची-
1. डेविडसन: पोलिटिकल थ्योरी इन इंग्लैण्ड च्ण्2
2. सी0एड0 वेपर: पोलिटिकल थॉट च्ण्92
3. वेन्थम: प्रिंसिपल्स ऑफ मोेरल्ड एण्ड लेजिस्लेशन च्ण्31
4. डनिंग: पोलिटिकल थ्योरी फ्राम रूसो टू स्पेंसर च्ण् 218
5. जार्ज सोरेल: हिस्ट्री ऑफ इंग्लिश फिलासफी च्ण् 226
6. वेपर: पॉलिटिकल थॉट च्ण् 96

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