डॉ0 अलका मेहरोत्रा
विद्यालय प्रभारी
माधवराव सिंधिया पब्लिक स्कूल, बरेली
इस समय सूचना प्रौधोगिकी का जितना बोलबाला हो रहा है, उस पर उतना ही अधिक लिखा-बोल, विचार विमर्श किया जा रहा है, जिसके कारण, अनायास ही मीडिया क्रिटिक’ बनने के अवसर उपलब्ध हो रहे है। ऐसे ही अनगिनत क्षेत्र है, जो तकनीकी क्षेत्र में रोजगार दिला सकते है। भाषा के सहारे भला क्या हो सकता है ? कहने की अपेक्षा भाषा के बल पर क्या कुछ संभव नही’ यह सोंचने लगें, हिन्दी को लेकर मन में बसा हीनताबोध है। विज्ञान-तकनीक का ज्ञान प्राप्त कर समय के साथ कदमताल करने का माद्दा रखे तो सूचना तकनीक का क्षेत्र रोजगार की दृष्टि से विश्वभाषा हिन्दी के धनियों के लिए वरदान सिद्व होगा।
विश्व के सैकड़ो देशों से हजारों विद्यार्थी-शोधार्थी भारत में आकर सरकारी छात्रवृत्ति से और स्ववित्त पोषण से हिन्दी में अध्ययन एवं शोध करने आ रहे है इससे भी वैश्विक देशांे के भारतीय रिश्ते मजबूत हो रहें हैं और यहॉ से हिन्दी शिक्षण प्रशिक्षण लेकर अपने देशों में जाने वाले विद्यार्थी -शोधार्थी भारतीय भाषाओं का हिन्दी साहित्य एवं भाषा का, भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों का, यहॉ की जीवनशक्ति का शिक्षण, प्रशिक्षण तथा प्रचार-प्रसार अपने देशों मेें भी करते है।
’’अब स्थिति यह है कि विश्व के अनेक देशों में हिन्दी की पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित हो रही है। ई-माध्यमों ने एवं कम्प्यूटर तथा मोबाइल आदि उपकरणों ने भी इस दिशा में अविस्मरणीय भूमिका निभाई है। सभी ने हिन्दी को वैश्विक बनाया है तथा भारत को विश्व में एक नई, अपूर्व तथा स्तुत्य पहचान दिलवाई है।’’3
आज विश्व के अंसख्य देशों में बैठे भारतीय तो हिन्दी लेखन कर रहे है, एशिया तथा यूरोप के भी सैकड़ो लेखक हिन्दी -सृजन कर रहे है। भारतीय मनीशी ने विश्व के अनेक देशों में हिन्दी के प्रचार -प्रसार शिक्षण -प्रशिक्षण, शोध-अनुसंधान की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। कही न कही हमारी विदेश नीति के अन्तर्गत इस आदान -प्रदान को, विचार विनिमय को तथा आवागमन को प्रोत्साहित किया जाता रहा है।
विश्व अब यह जान गया है कि भारतीय चिंतन एवं दर्शन का मूल स्त्रोत ’हिन्दी’ है। भारत देश की आत्मा को हिन्दी के माध्यम से ही जाना-समझा जा सकता है। इसलिए विश्व हिन्दी सम्मेलनो में भी बार-बार यही दोहराया जाता है कि हिन्दी संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा बने, विश्व हिन्दी विद्यापीठ या सचिवालय की स्थापना हो, विश्व के हर देश में हिन्दी केन्द्र बने, जिससे उस देश में हिन्दी -विषयक तमाम गतिविधियॉ आयोजित की जा सकें।
सिनेमा तथा उनके विश्व भाषाओं में अनुवाद डबिंग, वॉयस बोवरिंग एवं पार्श्व वाचन आदि की नीति को भी वैश्विक विस्तार दिया जा रहा है। इससे भी हिन्दी की रचनात्मक एवं सार्थक भूमिका सुनिश्चित हो रही है।
हिन्दी को हम संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित देखना चाहते है, इसके लिए उसके समस्त रोशनदान, समस्त खिलाड़ियों तथा समस्त दरवाजे खोलना आवश्यक है। हमारी विदेशनीति में ’ऋग्वेद’ का यह मूलमंत्र झलकता है कि अच्छे विचारो का आह्वान हमे सभी दिशाओं ंतथा सभी देशों से करना चाहिए। इसके लिए हमें विश्व की अनेक भाषाओं से उनकी शब्द-सम्पदा के समतुल्य हिन्दी शब्द निर्मित रहना होगा। यह ’वैज्ञानिक एवं वैश्विक’’ एकता को स्थापित करने वाली भाषा है।
गत 01 जुलाई, 2015 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जिस ’’डिजिटल इंडिया’’ अभियान की शुरूआत की है, यह संभवतया आजादी के बाद देश का सबसे बड़ा प्रशासनिक सुधार, सरकार व जनता के बीच की दूरी कम करने, तंत्र में पारदर्शिता के साथ-साथ व्यापक स्तर पर रोजगार उपलब्ध करवाने की परियोजना है।6 यह बात दुनिया स्वीकार कर चुकी है कि भारत इंटरनेट, सूचना क्रान्ति और कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग में शीर्ष पर है। सबसे ज्यादा मोबाइल हमारे यहॉ है। लेकिन आम लोगों को अभी यह समझने में समय लग रहा है कि ’डब्ल्यू0 डब्ल्यू0 डब्ल्यू’ का संजाल महज मनोरंजन या संचार का माध्यम ही नही है। इससे मिलने वाली सूचनाये उनके जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम है।
जब दूसरे देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष भारत में आकर अपने देश की भाषा बोलते थे, तो हमारे प्रतिनिधि अंग्रेजी बोलते थे। लेकिन लगता है कि देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विदेश नीति के इस लज्जास्पद अध्याय को समाप्त करने का निर्णय ले लिया है।8 प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षेस देशो के राष्ट्राध्यक्ष दिल्ली आये थे। मोदी जी ने अपनी वार्ता में हिन्दी भाषा का प्रयोग किया । इससे देश विदेश में एक अच्छा संदेश गया है। भाषाई-निष्ठा की यह प्रक्रिया जारी रखनी होगी, क्योकि अब दुनिया से भारत अपनी भाषा में बातचीत करेगा। प्रधानमंत्री मोदी जी पहले ही कह चुके है कि भारत किसी भी देश से ऑख से ऑख मिलाकर बात करेगा। ऑख से ऑख अपनी भाषा में ही मिलाई जा सकती है। जो देश ताकतवर होते है, वे अपने देश की भाषा अपने देश के मुहावरों का प्रयोग करते हैं।9 विदेश मंत्रालय में भी हिन्दी का प्रयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
देश का श्रमजीवी अपने देश की भाषा से जुड़ा हुआ ही नही है, बल्कि उस पर गौरव भी करता है।10 लेकिन यहॉ का बुद्विजीवी वर्ग शिक्षा की उस भट्ठी मे तपकर निकला है, जिसे अग्रंेजी ने बहुत ही शातिराना तरीके से स्थापित किया था।
जिसमें भारतीय भाषाओं को वर्नाक्यूलर कहकर अपमानित किया जाता था। लेकिन नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री है, जिनका जन्म अंग्रेजों के शासन काल में नही हुआ था बल्कि स्वतन्त्र भारत में हुआ थां इसलिए वे विदेशी भाषा की दासता के भाव से मुक्त है। नरेन्द्र मोदी ने विदेश नीति के क्षेत्र में लगता है सबसे पहले इसी भाषाई गुलामी से मुक्त होने की पहल की है। ऊपर से देखने में यह पहल मामूली लग सकती है, किन्तु इसके संकेत गहरे है, शीर्ष वार्ताओं में राष्ट्रभाषा के प्रयोग से राष्ट्रीय अस्मिता और संप्रमुता प्रदर्शित होती है।11
भारत का सौभाग्य है कि उसे मोदीजी जैसा प्रधानमंत्री मिल गया है। उन्होने अपने पहले हते में ही दो ऐसे काम कर दिए, जो आज तक कोई भी प्रधानमंत्री नही कर सका। दक्षेस नेताओं को बुलाना और उनसे राष्ट्रभाषा में बात करना।12 कई मौके पर मोदीजी भी हिन्दी बोल रहे है, लेकिन जान-बूझकर राजभाषा का प्रयोग किया है। उन्होनें सविधान का मान बढ़ाया भारत का मान बढ़ाया और हिन्दी का नाम बढ़ाया है।13
हिन्दी सात समंदर पार की यात्रा करके भारत लौट आई है, और विश्व हिन्दी सम्मेलन भी भारत में ही होने वाला हैं। यह सम्मेलन अपने आप में अनूठा होगा और होना भी चाहिए, क्यांेकि भारत को विदेशों से आयतित चीजो से अजीब सा प्रेम एवं लगाव हो जाता है। गांधी जी को भी हमने तभी अपनाया जब वे विदेश से भारत लौटे, अब बारी हिन्दी की है।14
सभी महाशक्तियॉ अन्तर्राष्ट्रीय संधियॉ और अपने कानूनी दस्तावेज अपनी भाषा में तैयार करने पर जोर देती है। वैसे सारा काम-काज स्वभाषा में हो तो गोपनीयता बनाए रखना ज्यादा आसान होता है।
हिन्दी प्रेमियों के लिए गर्व का समय है कि विदेश मंत्रालय में वर्तमान मे जितना हिन्दी का प्रचलन हो रहा है, शायद आज तक कभी नही हुआ। हमारे प्रधानमंत्री बोलते है जिस समय संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को सबोधित करने का विषय आया, तो हमारे प्रधानमंत्री ने हिन्दी में ही संबोधित किया। प्रधानमंत्री के तौर पर पहला भाषण हिन्दी में देने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है।15
पश्चिमी देशों में हिन्दी की वेबसाइट जैसे जागरण. कॉम, अमर उजाला.कॉम या वेबदुनिया.कॉम वैसे ही देखते है, जैसे भारत के लोग भारत मे देखते है।16 भारत में अंग्रेजी ऑनलाइन पत्रकारिता और हिन्दी ऑनलाइन पत्रकारिता का अपना एक अलग-अलग संसार है और विकास की प्रक्रिया भी अलग-अलग ही हैं।
न्यू मीडिया की वजह से हिन्दी पत्रकारिता का स्वरूप बदला है। न्यू मीडिया ने परम्परागत मीडिया पर अपना वर्चस्व स्थापित किया है। ऐसे में बहुत से लेखकों ने हिन्दी की भाषायी संरचना और उसकी अस्मिता को बनाए रखने के लिए न्यू मीडिया के विज्ञान माध्यमों को अपना आधार बनाया। सोशल मीडिया के विभिन्न प्रकल्पों, यथा-फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, ब्लॉग, वेनन, लिंक्डइन, गूगल व्टसएप, हाईक, हाईज आदि ने जहॉ भाषा की दीवारों को तोड़कर भारत की प्राचीन अवधारणा ’वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को स्थापित किया, वही निजी अभिव्यक्ति को सामाजिक सरोकारों के साथ संबद्व किया।
नई सूचना प्रौद्योगिकी ने भाषा के विकास में दो दिशाओं में महत्वपूर्ण कार्य किया। एक ओर तो जहॉ भूमंडलीकरण ने पत्रकारिता की भाषा की मानकता को समाचार-पत्रों से विस्थापित कर दिया था, वहॉ इस नई प्रौद्योगिकी ने वैकल्पिक पत्रकारिता की एक नई दुनिया तैयार की और विस्थापित भाषाओं और उनकी मानकता को पुनजीर्वित करने में भूमिका निभाई। दूसरे अंग्रेजी वर्चस्व से भरपूर भारतीय पत्रकारिता के सामने हिन्दी की प्रबल सत्ता को स्थापित कर उसमें रोजगार की संभावनाओं को भी विकसित किया।17
अविश्वास और संशय की पृष्ठभूमि पर खड़ी हिन्दी पत्रकारिता के लोकतंात्रिक स्वरूप को फिर से स्थापित किया। बाजार के हाथों नियंत्रित चंद समाचार पत्रों को छोड़ दे तो हिन्दी पत्रकारिता ने अब भी अपने भाषाई स्वरूप को विखड़ित नही होने दिया। वैसे भी बाजार से लड़ने के लिए आपको बाजार के भीतर उतरना ही होगा।
वर्तमान दौर में हिन्दी भाषा ने बाजार की कॉरपोरेट सत्ता को न्यू मीडिया के छोटे-छोटे गैजेट्स से चुनौती देते हुए इस दिशा मे अपने कदम बढ़ा दिए है। अब हिन्दी भारत की सीमाओं के भीतर नही, बल्कि विश्व में अपनी प्रतिष्ठा के लिए ग्लोबल भाषा के रूप में अपने को विकसित कर चुकी है।18
समकालीन युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। ’’सूचना विस्फोट’’ के इस युग में ’इंटरनेट’ की भूमिका महत्वपूर्ण और सर्वव्यापी परिलक्षित होती है। अतः हिन्दी भाषा विकास में आधुनिक संचार माध्यम के रूप में इंटरनेट का स्थान नवीनतम प्रणाली के रूप मे महत्वपूर्ण बनता नजर आ रहा है।19 भाषा एक दैवी शक्ति है जो मानव को मानवता प्रदान करती है। भाषा के कारण ही मानव सुस्ंास्कृत होता है, सम्मान और यश का भागी बनता है। चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद हिन्दी ही विश्व की प्रमुख भाषा है जो स्वतन्त्रता तथा संप्रभुता की अमरवाणी है। हिन्दी मानव के बुद्धि कौशल विवेक, चिंतन, आचार व्यवहार तथा संस्कृति की भाषा है।20
अतः ’हिन्दी’ भाषा को कम्प्यूटर के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाने का विचार सामने आया।21 इंटरनेट की हिन्दी भाषा में महत्वपूर्ण भूमिका दृष्टिगोचर होती है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि समकालीन युग मे अपना विशेष प्रभाव बनाए रखने वाले न्यू इलैक्ट्राानिक जनसंचार माध्यमों में ’इंटरनेट’ प्रभावी बन रहा है।
संदर्भ ग्रन्थ –
1. भारतीय गौरे:- तकनीकी क्षेत्रो मेें रोजगार और हिन्दी (स्मारिका), 10 -12 सितम्बर, भोपाल, पृष्ठ 26 (10 वां वि.हि सम्मेलन)
2. पूरनचंद टंडन: वैश्विक विकास, विदेश नीति और हिन्दी (स्मारिका) 10 वां विष्व हिन्दी सम्मेलन, 10-12 सितम्बर, पृष्ठ – 51
3. वही
4. वही पृष्ठ – 52
5. पंकज चतुर्वेदी: इटरनेट पर लोकप्रिय विज्ञान की भाशा अनुवाद में सावधानियॉ (स्मारिका), 10-12 सितम्बर भोपाल (भारत) पृश्ठ -101
6. वही
7. रामलखन मीना: विदेश नीति और हिन्दी (स्मारिका) 10 वां विश्व हिन्दी सम्मेलन, 10-12 सितम्बर, 2015 भोपाल पृष्ठ -58
11. वही पृष्ठ – 59
16. हरीश अरोड़ा: भूमंडलीय, नई सूचना प्रौद्योगिकी और हिन्दी पत्रकारिता (स्मारिका) 10 वां विष्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल पृष्ठ – 172
17. वही
18. साताप्पा लहू चाक्षण: इंटरनेट मीडिया मे हिन्दी की भूमिका (इंटरनेट के संदर्भ में) 21 अप्रैल, 2012
19. डॉ. अर्जुन तिवारीः हिन्दी पत्रकारिता का बृहद इतिहास पृष्ठ – 17-18
20. सपा0 डॉ0 शशि भारद्वाज: भाषा (दवैमासिक) पात्रिका, मई, जून, 2002, पृष्ठ -132
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