डॉ0 ओमप्रकाश सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
राजनीति शास्त्र
रामनगर पी0जी0 कॉलेज,रामनगर (बाराबंकी)
प्रस्तावना –
जिस समय भारत अशांति, अन्याय, गरीबी, शोषण और गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था ठीक उसी समय यूरोप के देशों में औद्योगिक और वैज्ञानिक क्रान्ति हो रही थी। नये विचारों का आगमन हो रहा था और पुराने विचार धूमिल पड़ रहे थे। ठीक उसी समय भारत में महात्मा गांधी का अवतरण हुआ जिन्होंने अपने कार्य व्यवहार से विश्व को आश्चर्य चकित कर दिया। भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन गांधीजी के नेतृत्व में लड़ा गया और अन्ततः इस देश को पराधीनता से मुक्ति मिली। महात्मा गांधी की भारतीय राजनीति में सक्रियता के कारण ही 1919 से स्वतन्त्रता प्राप्ति तक का काल भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में गांधी युग के नाम से जाना जाता है।
गाँधी के विचारों पर पाश्चात्य और पूर्व दोनो के दर्शन का प्रभाव था वे ‘‘सर्मन आन द माउण्ट’’ से भी प्रभावित थे तो गीता भी उनका प्रेरणा स्रोत बनी। ‘‘गांधीजी ने जव सर्मन आन द माउण्ट पढ़ा तो वे अत्याधिक भाव-बिछवल हुए। उन्होंने ‘सर्मन आन द माउण्ट की गीता से तुलना की। त्याग को धर्म का सर्वोत्कृष्ट रूप जानकर वे अत्याधिक प्रभावित हुए।’1 गांधी जी को जब भी विशाद होता या मन में संशय उत्पन्न होता तो वो गीता को पढ़ते और उनका विशाद उल्लास में परिवर्तित हो जाता था। महात्मा गांधी को ‘गीता’ और ‘सर्मन आन द माउण्ट’ में कोई संघर्ष या विरोधाभास नहीं दिखा वे दोनों एक कोमल एकता में समाहित हो जाते हैं।2
गांधी के चिंतन का केन्द्र-बिन्दु है सत्याग्रह सत्याग्रह शब्द का आविष्कार गाँधीजी ने उस अहिंसात्मक संघर्ष को इंगित करने के लिए किया था जोकि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सरकार के विरुद्ध किया था। इसका शाब्दिक अर्थ है सत्य पर डटे रहना। गांधीजी इसे प्रेम बल या आत्मबल भी कहते थे। यह बुराई की अच्छाई से विजय करने के ईसाई धर्म के सिद्धान्त के अधिक निकट है।
सत्याग्रह के लिए सत्याग्रही को परिवार का मोह त्यागना पड़ता है। सत्याग्रह तलवार की धार पर चलने के समान कठिन मार्ग है। सत्याग्रही को यातनाओं से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। ‘‘सत्याग्रही को भूख-प्यास, गर्मी, सर्दी, परिवार का विछोह तथा आर्थिक संकट सभी झेलने पड़ते हैं। गाँधीजी ने कहा कि सत्याग्रह तया सशस्त्र विद्रोह में एक प्रमुख अन्तर यह है कि जहाँ सशस्त्र विद्रोह व्यक्ति को निर्दयी तथा अहंकारी बनाता है, सत्याग्रह में इसका लेशमात्र भी स्थान नहीं होता। सत्याग्रही विजयी होकर भी आतातायी नहीं बनता’’3 ‘‘ सत्याग्रह में सफल हुआ व्यक्ति संतोशी होता है। संतोष ही वास्तविक सुख है। इससे अन्य मृगतुपणा है।’’4
सत्याग्रह का एक अन्य लाभ यह है कि यह विरोधी के हिंसात्मक संघर्ष में काम आने वाले षास्त्रों को व्यर्थ व प्रभावहीन बना होता है और उसे एक धर्म संकट में डाल देता है। गॉधीजी शब्दों में सत्याग्रह ‘‘जो मनुष्य हिंसात्मक शस्त्रों का प्रयोग करता है और जिन्हें वह अपना शत्रु समझता है उन्हें नष्ट करने पर तुला हुआ है, उसे चौबीस घंटों में कुछ घंटों के लिए उसे अपने शस्त्र रखने पड़ते हैं और कुछ न कुछ समय के लिए उसे आराम की आवश्यकता होती है। सत्याग्रही के लिए ऐसी कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे वाह्य शस्त्र नहीं है वे तो मानव ह्दय में रहते हैं और आपके जागते, सोते सदैव काम करते रहते हैं। सत्य और अहिंसा के कवच से सुसाज्जित योद्धा सदैव सक्रिय रहता है और उसकी सक्रियता सदैव बढ़ती ही रहती है।’’5
गाँधीजी वर्गहीन तथा शोषण मुक्त समाज की स्थापना करना चाहते थे। जिसमें ऊँच-नींच, अमीर-गरीब सभी के साथ समानता का व्यवहार हो। वे छुआछूत को सबसे बड़ा अभिशाप समझते थे। गाँधीजी एक विकेन्द्रित तथा राज्यहीन समाज का सपना देखते थे। उनके सपनों का भारत रामराज्य था। ‘‘यद्यपि गांधीजी व्यक्त्तिव विकास में राज्य को साधन मानते थे। वे व्यक्ति को सर्वोच्च महत्ता देते हैं ताकि मानवीय गुणों को ठीक से विकसित किया जा सके और मानव को शोषण से मुक्त रखा जा सके।’’6 किंतु राज्य का आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप वे उचित नहीं मानते। उनके अनुसार राज्य का हस्तक्षेप व्यक्तित्व को कुंठित कर देता है।’’7 गांधीजी आधुनिक भारत में राज्य की शक्ति को अनावश्यक मानते थे और वे कहते थे कि राज्य की प्रभुता समाप्त होने पर ही रामराज्य स्थापित हो सकेगा।
गांधीजी ने सादगी की सदा प्रशंसा की। वे कहते है कि परिग्रह मत करो, पक्षी की भांति रहो, कुटिया में रहो। वर्तमान में कितने लोग है जो इस प्रकार रहना चाहंगेे ?
महात्मा गाँधी का जीवन दर्शन एक आदर्शवादी समरस, नैतिक मूल्यों में विश्वास, कर्मयोगी तथा मानव सेवा में तत्पर रहने की प्रेरणा देता है। दुनिया में बहुत कम ऐसे लोग होते हैं कि वे जो कहते हैं उस राह पर खुद भी चलकर दिखाते हैं। गाँधीजी ऐसे ही व्यक्तित्व थे। वह किसी बात को उपदेश देने से पहले उसको स्वयं अपने जीवन में उतार लेते थे। ‘‘यदि वह समाज के लिए किसी प्रयोग का प्रस्ताव करते हैं तो पहले वह स्वंय उसकी अग्नि परीक्षा में से गुजरेंगे, उसका मूल्य वह पहले स्वयं चुकायेंगे, जवकि बहुत से समाजवादी अपने विशेषाधिकारों का परित्याग करने के लिए उस दिन की प्रतीक्षा करते हैं जब सब लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा। गाँधीजी दूसरों से त्याग की माँग करने से पूर्व अपना सर्वस्व त्याग देते हैं।’’8
अन्त में हम यह कह सकते हैं कि अपने जीवन दर्शन के लिए गांधीजी न तो मौलिकता का दावा करते हैं और न अकाट्यता का। सत्य और अहिंसा का भारतीय जीवन दर्शन में सदैव ऊँचा स्थान रहा है, गांधीजी ने जो किया वह यह कि उन्होंने यह सिद्ध किया कि इन सिद्धान्तों का प्रयोग सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का निराकरण करने के लिए भी किया जा सकता है। निःसंदेह यह एक महत्त्वपूर्ण देन है। सत्याग्रह का विज्ञान और कला जिसका कि उन्होने आविष्कार किया, उनका मानव जाति को महानतम उपहार है। विश्व – शांति के हित में
इसका और अधिक परीक्षण और आरोपण होना चाहिए। राधाकृष्णन के शब्दों में गांधीजी को सदैव एक नैतिक और आध्यात्मिक क्रांति के पैगम्बर के रूप में याद रखा जाएगा जिसके बिना भटके हुए संसार को शान्ति नही मिल सकती।
संन्दर्भ सूची-
1- गाँधी, आटोवायोग्राफी च् 92
2- यंग इणिया 6 अगस्त 1925 तथा 22 सितम्बर 1927
3- महात्मा गांधी: द कलेक्टेड वर्क्स च् 226.227
4- महात्मा गाँधी: द कलेक्टेड वर्कस च् 227
5- डॉ0 जी0 एन0 धवन: महात्मा गांधी का राजनीतिक दर्शन
6- यंग इण्डिया: 13.11.1924
7- निर्मल कुमार बोस ‘एन इण्टरव्यू विथ महात्मा गांधी, माडर्न रिव्यू जून-दिसम्बर च् 410.413
8- टैगोर इन गांधी मेमोरियल: पीस नम्बर ऑफ द विश्व भारती क्वार्टरली च् 12
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