डॉ0 मोहित मलिक
असि0प्रो0
राजकीय महिला महाविद्यालय, खरखौदा, मेरठ
आजादी का अमृत महोत्सव 12 मार्च 2021 को 15 अगस्त 2022 से 75 सप्ताह पूर्व शुरू हुआ है और 15 अगस्त, 2023 तक चलेगा। इस लिहाज से इस वर्ष का स्वतंत्रता दिवस इस महोत्सव का पहला महत्वपूर्ण पड़ाव भी है और इस बात का बिल्कुल उचित अवसर भी है जब हम आजाद भारत की उपलब्धियों को विश्लेषण करते हुए उन तैयारियों और चुनौतियों का आकलन भी करें जो अमृत महोत्सव के संकल्प को पूरा करने के लिए आवश्यक होगी।
ये भी संयोग है कि इस महोत्सव की शुरूआत उसी दिन हुई है, जिस दिन हमारी आजादी के आन्दोलन के सबसे बड़े नायक महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा की शुरूआत की थी। प्रधानमंत्री ने दोनों अवसरों के प्रभाव और संदेश के बीच अद्भुत साम्य को रेखांकित भी किया। गुलामी के दौर में नमक हमारी आत्मनिर्भरता का प्रतीक था और जब अंग्रेजों ने इसे चुनौती दी, तो पूरे देश ने गांधीजी की अगुआई में दांडी यात्रा के रूप में अपनी पहचान के लिए लड़ने का संकल्प लिया। अमृत महोत्सव भी विदेश वस्तुओं की ’गुलामी’ से मुक्ति और आत्मनिर्भर बनने का संकल्प है।
भारत इस वर्ष जश्न-ए-आजादी का 75वां साल मना रहा है। यूं तो आजाद हवा में सांस लेने का एक एक पल भी खास होता है, लेकिन इन एक-एक पल ने भी आपस में जुड़कर दिन, महीनों और वर्षों के ऐसे खास पड़ाव तैयार किए हैं, जो एक राष्ट्र के सफर में हर देशवासी के लिए गर्व और स्वाभिमान के प्रतीक बन गए हैं। ’’भावनाओं का ये ज्वार इसलिए भी उमड़ता है, क्योंकि इतनी लम्बी यात्रा असंख्य मुश्किलों, दुखों और बड़ी-बड़ी चुनौतियों से पार पाकर पूरी हुई है। यही वजह है कि इस उपलब्धि का अहसास भी बड़ा खास है। आजादी का अमृत महोत्सव देश को इसी दिशा में और आगे ले जाने का प्रयास है। संस्कृति, सभ्यता और सफलता वाले हमारे गौरवशाली राष्ट्र के आध्यात्मिक चिंतन का आधार रहे वेदों में भी लिखा है – मृत्योः मुक्ष़्ाीय मामृतात। इसका अर्थ है कि दुःख, कष्ट, क्लेश और विनाश से निकल कर ही अमृत मिलता है, अमरता की ओर बढता जाता है। यही भाव आजादी के इस अमृत महोत्सव का संकल्प भी है। नए विचारों का अमृत। नए संकल्पों का अमृत। आत्मनिर्भरता का अमृत।’’1
एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत की प्रगति कई मायनों में गौरवशाली है। जो देश कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था, उसे विदेशी आक्रांताओं ने जमकर लूटा। नतीजा ये हुआ कि आजादी मिलने के लंबे समय बाद तक हमें गरीब देशों में शुमार कर हमारा उपहास उड़ाया जाता रहा। वही भारत आज न केवल दुनिया की टॉप-5 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है, बल्कि वैश्विक संतुलन में एक अहम स्थान भी रखता है। भारत आज दुनिया की चार सबसे बड़ी सैन्य शक्तियों में से एक हैं खाद्यान्न के उत्पादन में भारत केवल अपनी जरूरत का नहीं, बल्कि आधी दुनिया का पेट भर रहा है। मिड-डे मील दुनिया का सबसे बड़ा स्कूल भोजन कार्यक्रम है जिसमें रोज 12 करोड़ बच्चों को खाना दिया जाता है। हमारा ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम दुनिया के लिए एक मिसाल बन चुका हैं।
आईटी सेक्टर से लेकर अंतरिक्ष कार्यक्रम तक में आज दुनिया में हमारी धाक है। कोरोना काल ने एक बार फिर महामारियों के उन्मूलन में दुनिया को हमारी पुरानी काबिलियत से रूबरू करवाया है। धर्म और संस्कृतियों की विविधता के बावजूद भारत ने एक राष्ट्र के रूप में जिस छवि का निर्माण किया है, उसका आज कोई दूसरा सानी नहीं दिखता। केवल सामरिक और रणनीतिक मामलों में ही नहीं, भारत ने खुद को दुनिया में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में भी स्थापित किया है। कई लोगों को इस बात की कम ही जानकारी है कि भारत दुनिया का अकेला ऐसा देश है जिसने आजादी की पहली सांस लेने के साथ ही अपने प्रत्येक व्यस्क नागरिक को मतदान का अधिकार दे दिया था। दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति और सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में आजादी के 200 साल से ज्यादा समय बाद भी आज वहां के नागरिक कुछ तय पैमानों के आधार पर ही मतदान कर पाते हैं।
इस गौरवशाली अतीत को नई ऊँचाइयों तक आगे ले जाने के लिए हम कितने तैयार हैं? क्या हमारा भविष्य भी हमारे गुजरे कल की तरह ही सुनहरा है? क्या आजादी के 100 साल बाद 2047 में हम भी खुद को अमेरिका या चीन की तरह महाशक्ति के रूप में स्थापित कर पाएंगे? सवाल उठता है क्यों नहीं? अगर हम अपनी विकास यात्रा में अधूरे रहे लक्ष्यों को पूरा करने की परीक्षा में पास हो जाएं, तो यह चुनौती असंभव नहीं होनी चाहिए। लेकिन उससे पहले हमें अपने विरोधाभासों पर विजय हासिल करनी होगी। हाल के वर्षों में आए बदलाव के बावजूद चिकित्सा, शिक्षा, स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरतों के मामले में अभी हमें काफी कुछ करना है। भ्रष्टाचार जैसी नए जमाने की बीमारी के साथ ही जातिवाद, वंशवाद, क्षेत्रवाद व संप्रदायवाद जैसे हमारे समाज के पूर्वाग्रह अभी भी हमारी आगे बढ़ने की रफ्तार पर ब्रेक लगाने का काम कर रहे हैं। ग्रामीण भारत में सामाजिक-आर्थिक खाई लगातार बढ़ी है और आबादी का केवल एक फीसद हिस्सा बाकी 99 फीसद का भाग्य विधाता बना हुआ है। एक तरफ खाप पंचायतें आए-दिन खुलेआम देश के कानून का मखौल उड़ा रही हैं, तो दूसरी तरफ कानून बनाने वाले हमारे सांसद भी संसद में देश के विकास का खाका तैयार करने की जगह अपना स्वार्थ साधते दिख रहे हैं। हम जनतंात्रिक तो हैं, लेकिन एक मजबूत लोकतंत्र का हमारा सफर अभी भी अधूरा दिखता है।
इसके बावजूद आज भारत वह सब कर रहा है, जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना नहीं की जाती थी। हमारा देश आज उन लक्ष्यों को संभव बना रहा है, जो कभी असंभव लगते थे। खास बात ये है कि मौजूदा दौर में हमारी सफलताएं केवल हम तक सीमित नहीं रहती हैं, बल्कि पूरी दुनिया और पूरी मानवता को प्रभावित करती हैं। इस मायने में हमारी विकास यात्रा अब दुनिया की विकास यात्रा बन चुकी है। कोरोना काल ने इस तथ्य को मजबूती से स्थापित भी किया है। बेशक, महामारी से भारत बुरी तरह प्रभावित हुआ, लेकिन शुरू आती झटकों से तुरंत उबर कर हमने वैक्सीन बनाकर दुनिया को भी इससे उबारने का जो महाप्रयास किया, उसकी सफलता समूची मानवता के लिए एक आदर्श हैं अमृत महोत्सव इसी दिशा में आगे कदम बढ़ने और भारतवर्ष का भविष्य और भव्य बनाने का माध्यम है।
स्वतंत्रता के 75 में वर्ष का मूल्यांकन इस आधार पर करें कि ’’15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज जिस दुरावस्था वाले भारत को छोड़कर गए थे, उसकी तुलना में आज हम कहां खड़े हैं, जो ज्यादातर मानक हमारे अंदर गर्व का अनुभव कराएंगे। आंकड़ों में जाने की आवश्यकता नहीं। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक, यातायात, संचार, रक्षा, सुरक्षा, प्रशासन हर क्षेत्र में हम आज उन पायदानों पर खड़ें हैं, जिसकी कल्पना आजादी के समय विश्व तो छोडिए स्वयं भारतीयों तक को नहीं थी। अंतराष्ट्रीय पटल पर जिस प्रभावी स्थिति मंे आज भारत खड़ा है, उसकी कल्पना तक मुश्किल थी। थोड़े शब्दों में कहें तो 75वें वर्ष में भारत अनेक मामलों में ईर्ष्या और अनुकरण, दोनों का कारण बना है। भारत के दुश्मन देशों में ईर्ष्या इसलिए है कि इसने इतनी उत्तरोत्तर प्रगति कैसे की, भारत ने विश्व मंच पर अपनी धाक कैसे जमा ली, अनेक देश भारत के साथ कैसे खड़े हो जाते हैं, आदि आदि।’’2 दूसरी ओर, ऐसे देशों की भी बड़ी संख्या है, जो अपने यहां भारत का उदाहरण देते हैं। यहां की चुनाव प्रणाली, शासन व्यस्था, शिक्षा, संस्कृति, अर्थव्यवस्था आदि इन सबके लिए प्रेरणा के स्त्रोत बनी हुई है।
एक देश के लिए ’’75 वर्ष की आयु अधिक नहीं होती है, जब इस अवधि में हम अपने आस-पास के देशों की अनिश्चितता देखते हैं, तो हमें गर्व होता है कि एक देश अपनी परिस्थिति को सुधारते-सुधारते कैसे सबल होता है, और अन्य देशों के लिए अनुकरणीय उदाहरण बनता है।’’3
प्रधानमंत्री मोदी ने अमृत महोत्सव के पांच स्तम्भों पर विशेष जोर दिया हैं ये स्तम्भ हैं, फ्रीडम स्ट्रगल, आईडियाज एट 75, अचीवमेंट एट 75, एक्शन एट 75 और रिजॉल्व एट 75। पांचों स्तम्भ आजादी की लड़ाई के साथ-साथ आजाद भारत के सपनों और कर्तव्यों को देश के सामने रखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देंगे। किसी राष्ट्र का गौरव तभी जागृत रहता है, जब वो अपने स्वाभिमान और बलिदान की परंपराओं को अगली पीढ़ी को भी सिखाता है, और उन्हें संस्कारित करता है। किसी राष्ट्र का भविष्य तभी उज्जवल होता है, जब वो अपने अतीत के अनुभवों और विरासत के गर्व से जुड़ा रहता है। भारत के पास तो गर्व करने के लिए समृद्ध इतिहास और चेतनामय सांस्कृतिक विरासत है। आजादी के 75 साल का यह अवसर अमृत की तरह वर्तमान पीढ़ी को प्राप्त होगा। ऐसा अमृत, जो हमें प्रति पल देश के लिए जीने और कुछ करने के लिए प्रेरित करेगा।’’4
भारत उभरती शक्ति के साथ-साथ मानव प्राकृतिक पूंजी के क्षेत्र में सर्वाधिक पोटैंशियल रखने वाला देश है। बीजिंग की रणनीति इसे कमजोर करने की होगी। ’’ऐसे में भारत को दो समंातर रणनीतिक राजमार्गों पर चलना होगा। एक, नई दिल्ली-मास्को, जो मध्य-पूर्व के माइंडसेट को प्रभावित करने के काम आ सकता है, और दूसरा, नई दिल्ली-वाशिंगटन-हिंद-प्रशांत, जो नई रणनीतिक ऊर्जा और सुरक्षा प्रदान कर सकता है। फिलहाल, भारत को पूरे परिदृश्य पर गहरी नजर रखनी होगी।’’5
भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए एकल केन्द्र नहीं है, केन्द्र और राज्यों के टकराव और क्षेत्रीय राजनीति इसमें लगातार बाधक बनी हुई है। पुलिस की भारी कमी है। आईबी और रॉ के बीच तालमेल की कमी सामने आई है, और आतंकियों का कोई केन्द्रीय डाटाबेस भी नहीं है। सार्वजनिक स्थानों की सुरक्षा भगवान भरोसे है, और हाई डेफिनिशन के कैमरों की संख्या नगण्य है।
धार्मिक स्थलों की अधिसंख्यता बड़ी चुनौती है। ’’भारत में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013 अस्तित्व में है, जिसका काम देश में इन्टरनेट और डिजिटल सिस्टमों को सुरक्षित बनाता है। लेकिन हकीकत यह है कि सुरक्षा नीति के प्रमुख उद्देश्य को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा अभी तक नहीं बन पाया है। बैंक, शेयर बाजार, हवाई यातायात और रक्ष प्रतिष्ठान कम्प्यूटर के बूते ही संचालित होते हैं। इन्हें हैक करने से देश की सारी व्यवस्थाएं ठप पड़ सकती है। आंतरिक सुरक्षा के समुचित प्रबन्धन के लिए सीमा सुरक्षा भी जरूरी है। सीमा क्षेत्रों में तारबंदी, फ्लड लाइट, बार्डर आउटपोस्ट, थर्मल छवि वाले उपकरण और गश्त और निगरानी के लिए टॉवर की जरूरत बनी हुई है, और इस दिशा में अभी बहुत काम करने की संभावना है।’’6
भारत अपनी आजादी के 75वें साल की ओर अग्रसर है, और ’’अनेकों उतार-चढ़ाव के बावजूद अपनी सभ्यतागत अवधारणाओं के साथ विश्व पटल पर मजबूती से स्थापित है। अनेक क्षेत्रों में हमारी उपलब्धि नजीर है, तो अनेकानेक प्रकल्पों पर हमारी चाल मंथर है, और उनमें से एक है प्रकृति के साथ मानवीय सम्बन्ध में आए आमूल चूल परिवर्तन।’’7
कुल मिलाकर ’’कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मोर्चे में देश की सबसे बड़ी उपलब्धियों के पीछे बड़ी चुनौतियां भी खड़ी हैं। इस दौरान कई गलतफहमियां दूर हुई हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर अगले कदम उठाने होंगे। मिसाल के तौर पर, आजादी के बाद कृषि नीति का पूरा जोर उत्पादन बढ़ाने पर रहा है। इससे उत्पादन तो बढ़ा भी लेकिन उस अनुपात में किसानों की आमदनी और खेती की आय नहीं बढ़ी।’’8
आजादी के बाद देश में कृषि उत्पादन बढ़ाने पर तो खूब जोर दिया गया लेकिन सरप्लस उत्पादन को कैसे संभाला जाएगा, आपूर्ति की अधिकता की स्थिति में कीमतों को गिरने से कैसे बचाया जाएगा, इसे बाजार या फिर मामूली सरकारी हस्तक्षेप के भरोसे छोड़ दिया। इस तरह खेती के घाटे का सौदा बनने का फायदा शहरों और उद्योगों को मिला। दम तोड़ते ग्रामीण कुटीर उद्योग, बंटती जोत और कृषि आय में कमी के कारण गांवों से जो पलायन हुआ। यह शहरों के लेबर चौक पर सस्ते श्रमिकों के रूप में नजर आया। गांव के किसान शहरों में दिहाड़ी मजदूर बन गए।
यह अक्सर है एक राष्ट्र के रूप में अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने तथा विचार करने का कि हम कहां चूक कर गए तथा कितना कुछ और हासिल कर सकते थे। बहरहाल, एक राष्ट्र के रूप में गर्व करने के लिए हमारे पास वह सब कुछ है जो अधिकांश देशों के पास कदाचित ही हो। देश के स्वतंत्र होने के साथ ही तमाम चुनौतियां हमारे सामने थीं। हमें तय करना था कि किस दिशा में अपनी राजनीति और अर्थनीति को ले जाना है। तय करना था कि अपने समाज को किस कदर जागरूक करना है। अनेक पैमानों पर भारत आगे बढ़ा और आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। कई क्षेत्रों में हमने बेमिसाल उपलब्धियां हासिल की हैं। लेकिन इसी सब पर हमारे थम जाने की गुंजाइश नहीं है। दुनिया हर पल बदली रही है, और किसी भी राष्ट्र के लिए बेहद जरूरी हो जाता है कि तेजी से बदलते समय के साथ कदम मिलाए चलता चले।
सन्दर्भ –
1. उपेन्द्र राय, मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं एडिटर इन चीफ, सहारा न्यूज नेटवर्क, आत्मनिर्भरता के अमृतत्व का महोत्सव, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
2. अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार, महान सपनों के लिए काम करने की घड़ी, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
3. शैलेन्द्र भाटिया, प्रशासनिक अधिकारी, 75 की अप्रतिम यात्रा, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
4. प्रो0 संजय द्विवेदी, महानिदेशक, भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली, आजादी की ऊर्जा का अमृत, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
5. डॉ0 रहीस सिंह, वैदेशिक मामलों के जानकार, चुनौतियों से गुजरती दुनिया के बीच राह बनाएगा भारत, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
6. डॉ0 ब्रह्मदीप अलूने, सुरक्षा सम्बन्धी मामलों के जानकार, असुरक्षा से जूझती आजादी, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
7. डॉ0 राजेंद्र कुशाग्र, हेड ऑफ डिपार्टमेन्ट, एमिटी स्कूल ऑफ अर्थ एण्ड एनवायरमेंटल साइंस, प्रकृति सम्मत विकास की सीख, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
8. अजीत सिंह, कृषि मामलों के जानकार, कब मिलेगी घाटे से आजादी?, राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), नई दिल्ली, 14 अगस्त 2021
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